कर-विवर्तन का सिद्धांत : संकेद्रण And विकेद्रण सिद्धांत
कर-विवर्तन का सिद्धांत : संकेद्रण And विकेद्रण सिद्धांत
अनुक्रम
संकेन्द्रण के सिद्धांत का प्रतिपादन फ्रांस के प्रकृतिवादी Meansशास्त्रियों ने Reseller तथा विकेन्द्रण सिद्धांत का प्रतिपादन प्रफांसीसी Meansशास्त्री केनार्ड और ब्रिटिश विद्वान मैन्सपफील्ड ने Reseller। जब किसी वस्तु पर कर लगाया जाता है अथवा पुराने कर की दर में वृद्धि की जाती है तो करदाता कर के भार को दूसरों पर टालने का प्रयत्न करता है। करारोपण में न्याय की समस्या बहुत महत्त्वपूर्ण है। अत: समाज के विभिन्न वर्गों में कर का भार समान Reseller से वितरित Reseller जाना चाहिए।
कर-विवर्तन अथवा करापात के सिद्धांत
कर-विवर्तन का सिद्धांत कर के भार के सम्बन्ध में तीन सिद्धांत प्रस्तुत किए गए हैं जो हैं-
संकेन्द्रण का सिद्धांत
इस सिद्धांत का प्रतिपादन फ्रांस के प्रकृतिवादी Meansशास्त्रियों ने Reseller। उनका विश्वास था कि भूमि में ही वास्तविक उत्पादन (Net Product) प्राप्त होता है अत: भूमि पर ही कर लगाया जाना चाहिए। उनका विचार था कि कर चाहे जिस व्यक्ति या वस्तु पर लगाया जाय, उसका अन्तिम भार भूमि पर ही पड़ेगा Meansात् अन्त में जाकर कर भूमि पर ही केन्द्रित हो जाते हैं। अत: सरकार को अनेक प्रकार के कर न लगाकर केवल भूमि की शुद्ध आय पर ही कर लगाना चाहिए। इससे कर प्रक्रिया सरल होगी तथा करों को Singleत्र करने की लागत भी कम होगी।
उपर्युक्त सिद्धांत की आलोचना की गई है क्योंकि Meansशास्त्रियों का मत है कि केवल भूमि ही उत्पादक नहीं होती वरन् अन्य व्यवसाय भी उत्पादक होते हैं अत: समाज के अन्य वर्गों पर भी कर लगाए जाने चाहिए। इससे करों का वितरण भी न्यायपूर्ण होगा। संकेन्द्रण सिद्धांत यद्यपि दोषपूर्ण है पर इससे यह बात ज्ञात होती है कि करों का भुगतान अतिरेक से ही Reseller जा सकता है जो कर भार के आधुनिक सिद्धांत का आधार है।
विकेन्द्रण अथवा प्रसरण सिद्धांत
इस सिद्धांत का प्रतिपादन फ्रांसीसी Meansशास्त्री केनार्ड (Canard) और ब्रिटिश विद्वान मैन्सपफील्ड (Mansfield) ने Reseller। यह सिद्धांत संकेन्द्रण सिद्धांत के विपरीत है तथा स्पष्ट करता है कि All कर चाहे जिस Reseller में लगाए जाएँ, वे पूरे समाज में पैफल जाते हैं। अन्य Wordों में, कर विवर्तन उस समय तक होता रहता है जब तक कि वह सम्पूर्ण समाज में नहीं पैफल जाता है। केनार्ड के According जिस प्रकार शरीर की किसी Single शिरा से रक्त निकालने पर रक्त की कमी केवल उस शिरा में नहीं होती वरन् यह कमी पूरे शरीर में पैफल जाती है, उसी प्रकार यदि वर्ग विशेष से सरकार कर वसूल करती है तो उस कर का भार कर विवर्तन के माध्यम से अन्य All वर्गों पर वितरित हो जाता है। इसी सन्दर्भ में प्रो. पिफण्डले शिराज मैन्सपफील्ड को उद्धृत करते हुए कहते हैं कि फ्किसी भी स्थान पर लगाया जाने वाला कोई भी कर किसी झील में गिरने वाले वंफकड़ की भांति होता है जो पानी में इस प्रकार चक्र उत्पन्न करता है कि Single चक्र Second को गति प्रदान करता चला जाता है और केन्द्र-बिन्दु से सम्पूर्ण परिधि आन्दोलित हो जाती है। उपर्युक्त सिद्धांत की भी आलोचना की गई है। इस सिद्धांत की यह मान्यता गलत है कि प्रत्येक कर को विवर्तित Reseller जा सकता है। वास्तव में प्रत्यक्ष करों का विवर्तन नहीं Reseller जा सकता। Second, यह सिद्धांत कर पैफलने की प्रवृत्ति तो बताता है, कर की मात्रा को स्पष्ट नहीं करता। Third यह सिद्धांत पूर्ण प्रतियोगिता की मान्यता को लेकर चलता है जो अवास्तविक And काल्पनिक है।
कर भार का आधुनिक सिद्धांत
कर भार का आधुनिक सिद्धांत मूल्य और कीमत के विश्लेषण पर आधारित है। यह सिद्धांत मानकर चलता है कि कर का भुगतान केवल अतिरेक (Surplus) में से ही Reseller जाता है And कर वस्तु की उत्पादन लागत का भाग है। प्रो. डाल्टन और प्रो. टेलर का मत है कि उन्हीं करों का विवर्तन सम्भव है जो कीमत सौदों (Price Transactions) से सम्बन्धित होते हैं। यही कारण है कि प्रत्यक्ष करों को इसलिए विवर्तित नहीं Reseller जा सकता क्योंकि वे कीमत सौदों से सम्बन्धित नहीं होते। जैसा कि शुरू में ही स्पष्ट कर दिया गया है, करों का भुगतान अतिरेक से ही Reseller जाता है। यदि करदाता को कोई अतिरेक प्राप्त नहीं होता तो वह कर का विवर्तन करता है और यह विवर्तन उस समय तक Reseller जायगा जब तक कि ऐसी स्थिति पैदा नहीं हो जाती कि उसे आधिक्य प्राप्त होने लगे। वस्तुओं का मूल्य इतना होना चाहिए जिससे कर की राशि का भुगतान Reseller जा सके। यदि कर लगाने के बाद वस्तु के मूल्य में कोई वृद्धि नहीं होती तो इसका यह Means है कि विक्रेता को वर्तमान मूल्य पर ही आधिक्य प्राप्त हो रहा है। इसके विपरीत, यदि वर्तमान मूल्य से कर का भुगतान नहीं Reseller जा सकता है तो वस्तु के मूल्य में वृद्धि कर दी जाएगी।