इस्लाम धर्म का उदय And विस्तार
मुहम्मद साहब द्वारा प्रचारित इस्लाम धर्म को समझना और उसका पालन करना सरला था। शीघ्र ही यह धर्म सारे अरब में फैल गया और इसने लड़ाकू प्रवृत्ति वाले कबीलों को संगठित Reseller। सन् 632 र्इ. में मुहम्मद साहब की मृत्यु के बाद मुसलमानों को धार्मिक और राजनीतिक नेतृत्व प्रदान करने का उत्तरदायित्व खलीफा को मिल गया ।
खलीफा अरबी भाषा का Word है जिसका Means नायब । मुहम्मद साहब के उत्तराधिकारियों को यह पदबी दी गर्इ ।
6़32-661 र्इ. के मध्य चार खलीफा हुए । खलीफाओं के काल में इस्लाम धर्म का तेजी से प्रसार हुआ । शीघ्र ही इस्लाम धर्म Single बड़ी राजनीतिक सत्ता बन गया । अरब वालों की सेना ने पश्चिमी एशिया, जार्डन, सीरिया, र्इराक तुर्की और र्इरान पर विजय प्राप्त की । उन्होंने उत्तरी अफ्रीका और दक्षिणी यूरोप के भी कुछ भाग विजय किए । अरब वालों का जहाजी बेड़ा 636 र्इ में बम्बर्इ के निकट आया । उमैयद वंश 661 से 750 र्इ. तक सत्ता में रहा । उन्होंने खिलाफत को स्थिरता और सम्पन्नात प्रदान की । उन्हीं के नेतृत्व में अरब के सैनिकों ने व्यापार के Single प्रमुख मार्ग पर अधिकार Reseller । यह मार्ग सिल्क मार्ग के नाम से प्रसिद्ध था और चीन तक जाता था। इससे ही भारत पर अनगिनत आक्रमण प्रारम्भ हुआ । यह आक्रमण र्इसा की Sevenवी शताब्दी के मध्य भारत की उत्तर पश्चिम सीमा पर हुए थे । उन्होंने आधुनिक अफगानिस्तान के दक्षिणी भाग पर अधिकार कर लिया था और अब अरब वाले सिंध विजय के लिए सोच रहे थे Meansात् उनकी दृष्टि सिंध पर थी ।
Sevenवीं शताब्दी में अरब में पैगम्बर मुहम्मद साहब द्वारा इस्लाम धर्म की स्थापना हुर्इ थी और उन्होंने ही इसका प्रचार Reseller । इस धर्म ने अरब के विभिन्न कबीलों को संगठित Reseller और शीघ्र ही वे Single बड़ी राजनीतिक सत्ता बन गए । उमैयद खलीफाओं के नेतृत्व में इस्लाम धर्म तेजी से फैला । खलीफाओं ने व्यापार को प्रोत्साहन दिया और इसी संदर्भ में अरब के मुसलमान व्यापारी र्इसा की Sevenवीं शताब्दी से भारत आने लगे ।
सिंघ विजय 712 र्इ.
आठवीं शताब्दी का प्रारम्भिक काल समैयद वंश की सत्ता का चरमोत्कर्ष काल था । उन्होंने इतना बड़ा मुस्लिम राज्य स्थापित Reseller जितना First कभी नहीं रहा था परन्तु वे अभी भी इस्लाम को पूरे उत्साह के साथ दूर-दूर तक फैला रहे थे । वे भारत की धन-सम्पदा की ओर भी आकर्षित हुए थे । भारत के धन-धान्य व समृद्धि की कहानियां अरब व्यापारियों और नाविकों द्वारा उन तक पहुंच चुकी थीं । आक्रमण की Need उस समय हुर्इ जब लंका के King द्वारा मुस्लिम राज्य के पूर्वी प्रान्त हाकिम हज्जाज बिन युसूफ को भेजे गए उपहारों से लदे आठ जहाजों को सिंध के समुद्री लुटेरों ने लूट लिया । जब हज्जाज ने सिंध के King दाहिर से क्षति पूर्ति के लिए कहा तो दाहिर ने कह दिया कि समुद्री लुटेरों पर उसका कोर्इ नियंत्रण नहीं है, इसलिए वह न तो उन्हं दण्ड दे सकता है और न क्षति पूर्ति कर सकता है । उसके उत्तर से संतुष्ट न होकर हज्जात ने सिंघ के विरूद्ध दो सैनिक अभियान भेजे परन्तु दोनों ही अभियान असफल रहे । इन असफलताओं के पश्चात हज्जाज ने मुहम्मद बिन कासिम के नेतृत्व में Single विशाल सेना सिंघ पर आक्रमण करने के लिए भेजी ।
घटनाएं –
मुहम्मद बिन कासिम 711-712 र्इ. में सिंध आया और उसने समुद्र तट पर स्थित देवस को घेर लिया । उसने शान्तिप्रिय बौद्ध लोगों को सरलता पूर्वक विजय कर लिया । तत्बाद मुहम्मद बिन कासिम सिंध नदी को पार कर आगे बढ़ा । रावार नामक स्थान पर दाहिर ने शत्रु की सेना का मुकाबला Reseller । प्रारंभ में दाहिर की विजय के लक्षण दिखार्इ दे रहे थे परन्तु Single घटना ने Fight का पासा पलट दिया । दाहिर के हाथी को Single तीर लगा और हाथी दाहिर को गिरा कर भाग गया । दाहिर के दिखार्इ न देने पर सेना ने समझा कि दाहिर भाग गया और सैनिक हतोत्साहित होकर भागने लगे । दाहिर पकड़ा गया और उसको निर्दयता पूर्वक मार दिया गया । मुहम्मद बिन कासिम धीरे-धीरे आगे बढ़ा और उसने ब्राह्मणवाद सहित सिंध के अनेक क्षेत्रों पर विजय प्राप्त कर ली ।
कासिम के सिंध आक्रमण के प्रभाव
कासिम की विजय के परिणाम स्वReseller सिंध के लोगों का आर्थिक जीवन छिन्न-भिन्न हो गया । सिंध की अधिकांश जनता व व्यापारी सिंध से चले गए । मुहम्मद बिन कासिम ने निचले पंजाब (पंजाब का निचला भाग) सहित सिंध का अधिकांश भाग विजय कर लिया था और उसने विजित प्रदेश में शासन व्यवस्था स्थापित की । वह तीन वर्ष से कुछ अधिक समय तक ही सिंध में रहा क्योंकि अचानक ही उसे नए खलीफा ने वापिस बुला लिया था । दो वर्ष बाद ही सिंध की जनता ने अरब वालों के विरूद्ध विरोद्र कर अपनी स्वतंत्रता प्राप्त कर ली । इस प्रकार सिंध विजय स्थायी सिद्ध नहीं हुर्इ । कुछ Historyकारों ने कहा कि सिंध आक्रमण का कोर्इ परिणाम नहीं निकला ।
तथापि सिंध आक्रमण के कुछ प्रभावी And निश्चित परिणाम हुए । अनेक अरबवासी सिंध में बस गए और उन्होंने वहीं की जनता से संबंध स्थापित कर लिए । दसवीं शताब्दी में इब्न हाकुल नामक भूगोल वेत्ता और यात्री ने देखा कि सिंध में अरबी और सिंधी दोनों ही भाषाएं बोली जाती थी और हिन्दू व मुसलमान जनता में सद्भावना थी । आज भी सिंध में मुसलमानों का बाहुल्य है। जिनमें अधिकांश व्यापारी है । सिंधी भाषा अरबी लिपि में लिखि जाती है । आपसी सम्पर्क से अरब वालों ने Indian Customer संस्कृति से बहुत कुछ सीखा । उन्होंने दर्शन शास्त्र, खगोल शास्त्र, गणित, औषधि विद्या, रसायन शास्त्र और विषयों का ज्ञान प्राप्त Reseller । इस विजय के फलस्वReseller भारत का पश्चिमी देशों से व्यापार बढ़ा । बारहवीं शताब्दी तक इस प्रदेश में अरबवासियों (व्यापारियों) का स्थल और समुदी्र मार्ग पर अधिकार बना रहा ।
शाहबुददीन मुहम्मद गोरी का आगमन-
शाहबुद्दीन मुहम्मद गोरी के भारत आगमन से पूर्व मध्य-एशिया में होने वाली राजनीतिक घटनाओं और परिवर्तनों को समझ लेना आवश्यक है । महमूद गजनबी की मृत्यु 1030 र्इ. को हुर्इ थी। उसकी मृत्यु के बाद मध्य-एशिया में सलजुक तुर्की साम्राज्य का उदय हुआ । महमूद के निर्बल उत्तराधिकारी उनका सामना न कर सके । गजनी साम्राज्य धीरे-धीरे गजनी और पंजाब तक सीमित रह गया और वह भारत के लिये भय का कारण नहीं रहा था । सलजुक साम्राज्य के पतन के बाद मध्य-एशिया में दो शक्तिशाली राज्यों का उदय हुआ ये राज्य थे- र्इरान का ख्वारज्म राज्य और उत्तर पश्चिमी अफगानिस्तान के गोरी में गोरी साम्राज्य । गोरी गजनबी साम्राज्य के सामन्त रह चुके थे । उन्होंने गजनबी साम्राज्य की कमजोरियों का लाभ उठाकर अपनी स्वतंत्रता की घोषणा कर दी थी ।
1173 र्इ. में शाहबुद्दीन मुहम्मद गोरी (1173-1205 र्इ.), जिसे मुर्इजदुद्ीन बिन साम भी कहा जाता है, गोर के राजसिंहासन पर बैठा । गोर साम्राज्य इतना शक्तिशाली नहीं था कि वह ख्वारजम साम्राज्य की बढ़ती शक्ति का सामना कर पाता । दोनों के मध्य खुरासान झगड़े का कारण था और अन्त में ख्वारज्म ने खुरासान विजय कर लिया । गोर वालों ने समझ लिया कि उन्हें अब मध्य एशिया में कुछ नहीं मिलने वाला है । गोर वाले अपने साम्राज्य विस्तार की महत्वाकांक्षा को भारत में विस्तार कर पूरी करने के लिए विवश हुआ ।
मुहम्मद गोरी का उद्देश्य लूटमार करने की अपेक्षा भारत में अपना Single स्थायी साम्राज्य स्थापित करना था । उनके आक्रमण सुनियोजित थे और जब भी उसने कोर्इ प्रदेश जीता तो उसने वहां अपनी अनुपस्थिति में विजित प्रदेश की व्यवस्था के लिए अपना प्रतिनिधि छोड़ा । उसके आक्रमणों का ही परिणाम था कि उसने विन्धय पर्वत की उत्तरी प्रदेश में तुर्की सल्तनत की स्थापना की ।
पंजाब और सिघ की विजय
मुहम्मद गोरी ने भारत पर First आक्रमण 1175 र्इ. में Reseller । उसने मुल्तान पर आक्रमण कर उसे वहां के King से मुक्त Reseller । इस Fight में ही उसने भट्टी राजपूतों को पराजित कर उच्छ पर अधिकार Reseller । वह उच्छ और मुल्तान में अपने हाकिम नियुक्त कर गजनी वापिस चला गया । तीन वर्ष बाद 1178 र्इ. में उसने गुजरात पर आक्रमण Reseller परन्तु चालुक्य King भीमदेव ने मुहम्मद गोरी को अहिन्लवाड़ा के Fight में बुरी तरह पराजित Reseller । परन्तु इस पराजय से मुहम्मद गोरी हताश नहीं हअु ा । उसने गजनबी के प्रदेश पजं ाब पर आक्रमण Reseller जिसके फलस्वReseller उसने 1179-80 में पेशावर और 1186 र्इ. में लाहौर विजय कर लिए । इसके बाद उसने स्यालकोट और देवल विजय किए । इस प्रकार 1190 र्इ. में मुल्तान, सिंघ और पंजाब को प्राप्त कर मुहम्मद गोरी के लिये दिल्ली और गंगा घाटी का मार्ग खुल गया था ।
महमूद गजनबी के भारत आक्रमण
महमूद गजनबी के आक्रमणों की Discussion करने से पूर्व पश्चिमी और मध्य एशिया की घटनाओं और परिवर्तनों का अध्ययन कर लेना उपयुक्ता होगा ।
750र्इ. में उमैयद वंश के खलीफओं की शक्ति समाप्त होने पर सत्ता अब्बासी वंश के हाथ में आ गर्इ थी । नवीं शताब्दी के अन्तिम चरण में अब्बासी वंश की सत्ता घटने लगी थी । नये Kingों ने सुल्तान का पद धारण Reseller और अधिकाधिक प्रदेश अब्बासी सत्ता से संबंध विच्छेद कर स्वतंत्र होने लगे । इनमें से ही समानी King थे । इनका राज्य ट्रांस आकिसयाना, खुरासान और र्इरान के कुछ भागों पर था । समानी गवर्नरों में अलप्तगीन नामक Single तुर्की दास था । बाद में अलप्तगीन ने Single नए राज्य की स्थापना की जिसकी राजधानी गजनी थी महम्मूद गजनबी 998 र्इ. में गजनी का King बना । उसकी सबसे बड़ी महत्वाकांक्षा थी, गजनी को मध्य एशिया में Single शक्तिशाली राज्य बनाना जिसको पूरा करने के लिए ही महमूद गजनबी ने भारत पर आक्रमण किए थे । इन आक्रमणों का उद्देश्य धन Singleत्र करना था । इस ध्न से ही वह मध्य-एशिया में अपने विशाल साम्राज्य को संगठित कर सकता था । उसकी भारत में राज्य स्थापना की कोर्इ इच्छा नहीं थी ।
जिस समय मध्य-एशिया में उपरोक्त घटना चक्र चल रहा था उसी समय उत्तर-भारत में छोटे-छोटे राज्यों का युग आरम्भ हुआ था । यह राज्य सदा ही परस्पर लड़ते रहते थे । जब इन राज्यों पर उत्तर-पश्चिम की ओर से आक्रमण हुआ तो यह अपनी रक्षा न कर सके ।? महमूद ने 1000-1026 र्इ. के बीच भारत पर 17 आक्रमण किए । उसने प्रारम्भ में पूर्वी अफगानिस्तान और पंजाब के हिन्दू शाही राज्य पर आक्रमण किए । जब से गजनी स्वतंत्र राज्य के Reseller में उभरा था तभी से हिन्दू शाही Kingों ने इसे भय का कारण समझा था ।
तराइन का First Fight (1191 र्इ.)
मुहम्मद गोरी के पंजाब विजय करने और गंगा घाटी की ओर बढ़ने के कारण उसका Earthराज चौहान से प्रत्यक्ष संघर्ष हुआ । वह गोरी का प्रबल शत्रु था । यह राजस्थान के छोटे-छोटे राज्य तथा दिल्ली विजय कर चुका था और वह पंजाब तथा गंगा घाटी में बढ़ना चाहता था । इसलिये दोनों महत्वाकांक्षी Kingों में Fight होना अनिवार्य था । भटिंडा पर दोनों ही अपना अधिकार मानते थे । इसे ही लेकर दोनों में संघर्ष प्रारम्भ हुआ । तराइन के First Fight 1191 र्इमें गोरी की सेना बुरी तरह पराजित हुर्इ और मुहम्मद गोरी बहुत ही कठिनार्इ से अपने प्राण बचा पाया । Earthराज ने भटिंडा विजय कर लिया परन्तु उसने वहां सैनिक छावनी नहीं बनार्इ और न उसने यहां से गोर वालों को निकाला । इससे मुहम्मद गोरी को शक्ति अर्जित करने केा अवसर मिल गया और 1192 र्इ. में उसने दुसरी बार भारत पर आक्रमण Reseller ।
तराइन का दूसरा Fight (1192 र्इ.)
इस Fight के बाद ही Indian Customer History में बदलाव आया । गोरी ने इस Fight के लिए पूरी तरह तैयारी की थी । शायद Earthराज चौहान ने भी अनुभव कर लिया था कि गोरी का आक्रमण कोर्इ आकस्मिक घटना नहीं था वरन् सुनियोजित आक्रमण था इसलिये उसने उत्तर भारत के All Kingओं को संगठित होकर शत्रु का मुकाबला करने का आव्हान Reseller । बहुत से Kingओं ने अपनी सेनाएं उसकी सहायता के लिए भेजी तथापि कन्नौज के King जयचंद ने कोर्इ ध्यान नहीं दिया, और वह चुपचाप बैठा रहा । Single बार फिर तराइन के मैदान में राजपूतों और तुर्की सैनिकों का मुकाबला हुआ । Indian Customer सैनिक संख्या में अधिक थे परन्तु तुर्की सेना का संगठन और संचालन बेहतर था । Fight मुख्य Reseller से घुड़सवारी के मध्य था । Indian Customer सैनिक तुर्की घुड़सवारों के संगठन कुशलता और तेज गति का मुकाबला नहीं कर सके । बहुत से सैनिक मारे गए । Earthराज बच तो गया परन्तु सरस्वती के समीप पकड़ा गया । तुर्की सेना ने हांसी, सरस्वती और समाना के गढ़ विजय कर लिए । इसके बाद उन्होंने अजमेर भी विजय कर लिया परन्त ु Earthराज को कंछु समय तक अजमेर पर शासन करने दिया गया । कुछ समय बाद उसे “ाडयंत्र रचने के आरोप में मृत्युदण्ड दे दिया गया और उसका स्थान उसके पुत्र को दे दिया गया । Earthराज के भार्इ के विद्रोह के कारण अजमेर Earthराज के बेटे के हाथ से निकल गया । तुर्की सेना ने पुन: अजमेर विजय Reseller और यहां तुर्की सेना नायक रखा ।
तराइन का दूसरा यद्धु Indian Customer History में महत्वपूर्ण है । First तो महु म्मद गोरी का अधिकार क्षेत्र दिल्ली से दूर नहीं रहा था । दिल्ली के राजपूत King को हटा कर गंगा घाटी की ओर भावी गतिविधियों का केन्द्र बनाया गया । इस प्रकार दिल्ली और पूर्वी राजस्थान तुर्की राज्य में शामिल हो गए थे । Second तुर्की के विरूद्ध संगठित संघर्ष का अन्तिम अवसर था । इसके बाद मुहम्मद गोरी और उसके सेना नायकों की व्यक्तिगत चुनौतियों का सामना करना पड़ा, परन्तु उन्हं संगठित मुकाबले का सामना नहीं मिला ।
तराइन के Fight के बाद मुहम्मद गोरी Indian Customer मामलों का उत्तरदायित्व अपने विश्वसनीय दास कुतुबुद्दीन ऐबक को सौप कर गजनी चला गया । मुहम्मद गोरी 1194 र्इ. में Single बार फिर भारत आया । वह 50,000 घुड़सवार लेकर यमुना नदी पार कर कन्नौज की ओर बढ़ा । उसने कन्नौज के समीप चन्द्रावार नामक स्थान पर कन्नौज के King जयचन्द्र को बुरी तरह पराजित Reseller । इस प्रकार तराइन और चन्द्रावर के Fight के बाद उत्तर भारत में तुर्की राज्य की स्थापना हुर्इ । 1205 र्इ. में मुहम्मद गोरी की मृत्यु के बाद कुतबुद्दीन ऐबक ने उसके Indian Customer विजित प्रदेशों का उत्तरदायित्व संभाला ।
मध्य एशिया की राजनीतिक परिस्थितियों न शाहबुदद्ीन मुहम्मद गोरी को भारत की ओर बढ़ने के लिए विवश Reseller । उसका उद्देश्य केवल लूटमार कर धन Singleत्र करना नहीं था, वरन् वह भारत में राज्य स्थापित करना चाहता था । वह अन्हिलवाड़ा और तराइन के First Fight में पराजित हुआ था तथापि राजपूतों के सत्ता के लिए परस्पर संघर्ष ने उसे तराइन के Second Fight में सफलता प्राप्त करना सरल कर दिया ।
मामलुक सुल्तान
कुतुबुद्दीन ऐबक से मामलुक सुल्तानों का युग आरम्भ होता है । मामलुक अरबी भाषा का Word है जिसका Means है अपनाया हुआ । सैनिक सेवा के लिए लगाए गए तुर्की दासों को निजीया आर्थिक कार्यो पर लगाए गए दासों से अलग करने के लिए इस Word का प्रयोग Reseller गया था। मामलुक सुल्तानों ने 1206 से 1290 र्इ. तक शासन Reseller । इन सुल्तानों की संख्या 10 थी । वे कुतुबुद्दीन ऐबक, शमशुद्दीन अल्तमश और गयासुद्दीन बलबन के वंशज थे । इस भाग में हम कवे ल उन चार Kingों का अध्ययन करेंग,े जिन्हांने े सल्तनत के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया था ।
कुतुबु्दीन ऐबक (1206-1210 र्इ.)
कुतुबुद्दीन ऐबक Single तुर्की दास था । वह अपने परिश्रम के कारण मुहम्मद गोरी की सेना में उच्च पद पर पहुंचा था । भारत में विजय और राज्य विस्तार का समस्त कार्य 1192-1205 र्इके समय कुतुबुद्दीन ऐबक ने ही Reseller था । मुहम्मद गोरी की मृत्यु के बाद कुतुबुद्दीन ऐबक ने भारत में अपनी स्थिति सुदृढ़ की । वह भारत में First तुर्की सुल्तान बना और इस प्रकार उसने Single स्वतंत्र राज्य की स्थापना की ।
कुतुबुद्दीन ऐबक को अनेक समस्याओं और कठिनाइयों का समाना करना पड़ा । नर्इ स्थापित तुर्की सल्तनत को आक्रमणों और विद्रोहों का भय था । गजनी का King यल्दोज दिल्ली पर अपना अधिकार जता रहा था । सुल्तान और उच्छ का गवर्नर नासिरूद्दीन कुबाचा और पंजाब का अलीमदेंन खां स्वतंत्रा के स्वप्न देख रहे थे । स्थानीय Kingओं ने विद्रोह किए । ऐबक ने अपनी All शत्रुओं को शक्ति और समझौतों की नीति के बल पर विजय Reseller । उसने यल्दोज को पराजित Reseller जो गजनी से दिल्ली की ओर चल दिया था ऐबक ने गजनी पर कब्जा Reseller, परन्तु जब यल्दोज गजनी में वापिस आया तो ऐबक लाहौर वापिस आ गया और उसने लाहौर को अपनी राजधानी बनाया । इसके बाद दिल्ली सल्तनत गजनी से अलग हो गर्इ । इससे दिल्ली मध्य एशिया की राजनीति में पड़ने से बच गर्इ । यह अब अस्थायी था । शत्रुओं को पूर्ण Reseller से दमन करने का कार्य योग्य उत्तराधिकारी सल्तनत के लिए रह गया ।
अल्तमश इल्तुमिश (1210-1236 र्इ.)
कुतुबुद्दीन ऐबक की मृत्यु के बाद तुर्की अमीरों ने उसके बेटे आराम शाह को गद्दी पर बैठाया । परन्तु वह अयोग्य और निर्बल सिद्ध हुआ । ऐबक के योग्य दामाद अल्मश ने दिल्ली के तुर्की अमीरों की सहायता से उसे गद्दी से उतार दिया और स्वयं सुल्तान बना । इस प्रकार उत्तराधिकारी नियम के According पिता की मृत्यु के बाद पुत्र को गुद्दी देने की प्रथा को आरम्भ में ही रोक दिया गया । अल्तमश ने 1210 से 1236र्इ. तक शासन Reseller । दिल्ली सल्तनत को संगठित करने का श्रेय अल्तमश को ही प्राप्त है ।
जिस समय अल्तमश गद्दी पर बैठा उसे सब ओर समस्याएं ही दिखार्इ दी । प्रान्तीय हाकिम सल्तनत से सम्बन्ध विच्छेद कर रहे थे । यल्दोज, कुबाचा और अलीमर्दन खां भी विरोधी हो रहे थे । जालौर और रणथम्भोर के सरदार, ग्वालियर और कालिंजर के साथ मिलकर अपनी स्वतंत्रता की घोषणा कर रहे थे । इसके अतिरिक्त चगेंज खां के नेतृत्व में मंगोलों की बढ़ती शक्ति की सल्तनत उत्तर पश्चिमी सीमा के लिए भय का कारण बन रही थी ।
अल्तमश ने दृढ़ निश्चय पूर्वक अपनी स्थिति को सुदृढ़ बनाना आरम्भ Reseller । उसने यल्दोज को पराजित कर उसकी हत्या कर दी । उसने Single अन्य अभियान छेड़ कर कुबाचा से छुटकारा पाया । जिस समय 1220 र्इ. में मंगोल नेता चंगेज खां ने ख्वारजम राज्य समाप्त Reseller, उस समय अल्तमश ने अनुभव Reseller कि राजनीतिक दृष्टि से आए संकट को टालना ही हितकर है । इसलिए जब ख्वारजम के शाह का पुत्र जलालुद्दीन भग..रनी मंगोलों से बचकर भाग निकला तो उसने अल्तमश से शरण मांगी । अल्तमश ने किसी प्रकार उसे टाल दिया । इस प्रकार उसने मंगोलों से दिल्ली सल्तनत की रक्षा की ।1225 र्इ. के बाद अल्तमश के पूर्वी भाग में विद्रोह दमन करता रहा । जिस समय अल्तमश उत्तर-पश्चिमी सीमा के मामलों में उलझा हुआ था उस समय बंगाल के नए King इयाजखां ने स्वतंत्र Reseller से राज्य करना आरम्भ कर दिया था । अल्तमश ने 1226-27 र्इ. में अपने पुत्र नासिरूद्दीन महमद के नेतृत्व में Single विशाल सेना बंगार विजय के लिए भेजी । इस सेना ने इबाज को पराजित Reseller और बंगाल तथा बिहार को पुन: दिल्ली सल्तनत के अधीन Reseller । इसी प्रकार उसने राजपूतों के विरूद्ध भी अभियान छेड़ा । उसने 1226 र्इ. में रणथम्भौर विजय Reseller और 1231 र्इ. तक उसने मन्दोर, जालौर, बयाना और ग्वालियर पर अपना अधिकार जमा लिया था । यद्यपि अल्तमश को गुजरात अभियान में सफलता नहीं मिली थी तथापि इसमें सन्देह नहीं कि उसने ऐबक के अधूरे कार्य को पूरा Reseller । जब दिल्ली सल्तनत का पर्याप्त विस्तार हो चुका था । अल्तमश ने अमीरों का Single संगठन बनाया । यह संगठन चहलगानी या 40 का दल कहलाता था । अस्तमश ने ही दिल्ली सल्तनत के प्रशासन की नींव रखी थी ।
रजिया (1236-1240 र्इ.)
अल्तमश ने अपने किसी भी पुत्र को गद्दी के उपयुक्त नहीं समझा था । इसलिए उसने अपनी पुत्री रजिया को मनोनीत Reseller । अल्तमश की मृत्यु के बाद कुछ अमीरों ने उसके सबसे बड़े बेटे रूकनुद्दीन को गद्दी पर बैठाया । तथापि रजिया ने दिल्ली की जनता और कुछ नायकों की सहायता से गद्दी प्राप्त कर ली ।
रजिया के लिए राजसिंहासन Single समस्या सिद्ध हुआ । उसके भाइयों के साथ-साथ अमीरों का Single वर्ग भी उसके विरूद्ध षड्यंत्र रच रहा था । तथापि रजिया ने बुद्धिमता पूर्वक स्थिति को संभाला । उसने अनुभव कर लिया था कि चहलगामी सरदार बहुत शक्तिशाली हो गए थे । इसलिए उसने जान-बुझकर गैरतुर्की को प्रशासन के ऊँचे पर दिए । उसने अपनी राजनीतिक सूझ-बूझ का परिचय उस समय दिया जब उसने निर्बल ख्वारज्म साम्राज्य के साथ मंगोलों के विरूद्ध सन्धि को अस्वीकार कर दिया ।
रजिया Single शक्तिशाली और यथार्थवादी King थी । वह प्रत्यक्ष Reseller में शासन कार्य करने लगी वह स्वयं दरबार लगाती और सेना का संचालन करती थी । अमीरों ने भी अनुभव कर लिया था कि रजिया स्त्री होने पर भी उसके हाथ की कठपुतली नहीं बनेगी । अमीरों ने प्रान्तों में विद्रोह करने शुरू कर दिए क्योंकि वे जानते थे कि वह गैर तुर्कों को उच्च पद दे रही थी और उसे दिल्ली की जनता का समर्थन प्राप्त था । उन्होंने आरोप लगाया कि वह याकूबखां नामक अबेसीनीयार्इ सरदार से मित्रता कर रही थी । रजिया वीरता पूर्वक लड़ी परन्तु पराजित हुर्इ और बाद में मारी गर्इ । इस प्रकार उसका संक्षिप्त शासन 1240 र्इ. में समाप्त हो गया ।
नसिरूदीन महमूद (1246-1266 र्इ.)
बलबन Single नाइब के Reseller में -ं रजिया के शासन काल मे सुल्तान और तुर्की सरदारों (चहलगानी) के बीच सत्ता के लिए जो संघर्ष आरम्भ हुआ था, वह अब भी चलता रहा । रजिया की मृत्यु के बाद चहलगानी सरदारों की शक्ति इतनी बढ़ गर्इ कि वे सुल्तान बनाने और हटाने में मुख्य भूमिका निभाने लगे । Single चहलगानी महत्वकांक्षी सदस्य उलध खां ने 1246 र्इ. में Single “ाड्यन्त्र रचकर नसिरूद्दीन नामक अनुभवहीन नवयुवक को गद्दी पर बैठाया । उलध खां (जो बाद मं बलबन के नाम से गद्दी पर बैठा) ने नाइब का पद लिया । उसने अपनी स्थिति सुदृढ़ करने के लिए अपनी पुत्री का विवाह नसिरूद्दीन से कर दिया । तथापि बलबन की बढ़ती शक्ति को देखकर अनेक तुर्की सरदार उससे जलने लगे । उन्होंने Single “ाड्यन्त्र रचकर 1250 र्इ. में बलबन को नाइब के पद से हटवा दिया । नाइब के पद पर Indian Customer मुसलमान इमामुद्दीन रैहान नियुक्त Reseller गया । बलबन के पद तो छोड़ दिया परन्तु वह अपने संगठन दृढ करता रहा । अन्त में वह अपने पुराने पद पर आ गया । पद भार संभालने के बाद उसने अपने शत्रुओं का दमन करने के लिए उचित और अनुचित All तरीके अपनाए । उसने शाही चिन्ह भी प्राप्त कर लिया । सुल्तान नसिरूद्दीन की मृत्यु 1265 र्इ. में हुर्इ । बहुतों का कहना है कि बलबन ने उसे जहर दिया था । बलबन गद्दी पर बैठा और उसके ही साथ शक्तिशाली केन्द्र शासन का युग आरम्भ हुआ ।
बलबन (1266-1287 र्इ.)
जिस समय बलबन गद्दी पर बैठा उसकी स्थिति सुदृढ़ नहीं थी । तुर्की सरदार किस प्रकार सहन करते कि उनमें से Single गद्दी पर बैठे । मंगाल, सल्तनत पर आक्रमण करने के लिए उचित अवसर की प्रतीक्षा में थे । दूर-दराज के प्रान्तीय हाकिम स्वतंत्र King बनने के प्रयत्न कर रहे थे । हिन्दू King छोटे से छोटा अवसर पाकर विदा्र हे करन े के लिए तैयार थे । दिल्ली के आस-पास के क्षेत्र में मेवाती गड़बड़ कर रहे थे । बलबन ने आरम्भ से ही कठोर नीति अपनार्इ । इस नीति को ‘ब्लड एंड आयरन’ (लौह और रक्त) की नीति कहा जाता है । वह स्वेच्छाधारी King था । उसने सुल्तान के पद की प्रतिष्ठा बढ़ाने का प्रयत्न Reseller । उसने दरबार की दलबन्दी को समाप्त Reseller और अमीरों की शक्ति को बढ़ने से राकने का प्रयास Reseller । उसने सुंल्तान के पद की प्रतिष्ठा बढ़ाने के लिए राजस्व के सिद्धान्त का प्रतिपादन Reseller ।
बलबन ने सेना का पुनर्गठन Reseller । साम्राज्य के विभिन्न भागों में विद्रोह दमन के लिए उसने सेना तैनात की । उसने दोआब क्षेत्र में शासन व्यवस्था और शान्ति बनाए रखने के लिए अनेक कदम उठाए उसने जंगल कटवा कर सड़के बनवार्इ और किलों में सेना रखी । उसने मेवात, दोआब, अवध और कटिहार में फैली अशान्ति को कठोरता पूर्वक समाप्त Reseller । उसने पूर्वी राजपूताने में अजमेर और नागोर पर अपना नियंत्रण स्थापित Reseller । परन्तु उसके रणथम्भोर और ग्वालियर विजय के प्रयत्न असफल रहे ।
अल्तमश के बाद बिहार और बंगाल स्वतंत्र हो गए थे । बलबन ने उन्हें पुन: दिल्ली सल्तनत के अधीन लाने का प्रयास Reseller । बंगाल का हाकिम तुगरिल खां 1279 र्इ. में स्वतंत्र हो गया था। बलबन ने अपनी सेना बंगाल भेजी जिसने तुगरिल खां को निर्दयता पूर्वक मार दिया और बलबन ने अपने पुत्र बुगरा खां को बंगाल का हाकिम नियुक्त Reseller ।
मंगोल दलबन को निरन्तर तंग कर रहे थे । मंगोलों ने सिन्ध के पश्चिमी क्षेत्र पर तो अपना अधिकार जमा ही रखा साथ ही वे पंजाब पर भी आक्रमण करते रहे थे । इसलिए बलबन उन्हें पूर्व की ओर बढने से रोकना चाहता था । बलबन ने उत्तर पश्चिमी सीमा पर किले बनवाए और उनमें सेना रखरी । मंगोल नेता हलाकू दिल्ली सल्तनत से अच्छे संबंध बनाए रखना चाहता था । इसलिए उसने अपना राजदूत दिल्ली भेजा । इस प्रकार बलबन अपनी कूटनीति और शक्ति के बल पर मंगोलों को काबू में रख सका ।
1287र्इ. में बलबन की मृत्यु हुर्इ । उसका उत्राधिकारी शाहजाद मुहम्मद First ही मंगोल आक्रमण में मारा जा चुका था । इसलिए बलबन की मृत्यु के बाद सरदारों ने उसके पौत्र कैकुवाद को गद्दी पर बैठाया । वह अपने से पूर्व हुए अनेक सुल्तानों की भांति निर्बल और विलासप्रिय सिद्ध हुआ । Single बार फिर दरबार में दलबन्दी हुर्इ । जिस समय कैकुवाद को पक्षाघात् हुआ सरदारों ने उसके अल्पव्यस्क पुत्र कैमूर को गद्दी पर बैठाया । गद्दी पर तुर्को का अधिकार बनाए रखने के लिए ही यह Reseller गया था ।
तथापि बलबन का वंश अपने अंत की ओर था । गैर-तुर्क और Indian Customer मुसलमान सदा से ही तुर्को के Singleाधिकार के विरोधी रहे थे । जमालुद्दीन खलजी के नेतृत्व में खलजी सरदारों ने 1290 र्इ. में कैमूर को गद्दी से उतार कर अपना अधिकार बना लिया और इस प्रकार बलजी वंश की नीव रखी गर्इ ।