आर्थिक विकास का प्रतिष्ठित विकास प्राReseller
एडम स्मिथ का विकास प्रारुप
प्रतिष्ठित Meansशास्त्रियों द्धारा Meansव्यवस्था का अत्यन्त सरल Reseller में क्रमबद्ध ढंग से विवेचन Reseller गया है। उनका प्रमुख ध्येय आर्थिक नीति निर्धारएा के लिए ऐसे मार्ग का निर्धारण करना जिनसे राश्ट्रों की सम्पत्ति को बढाया जा सके।
प्रतिष्ठित सम्प्रदाय के Meansशास्त्री एडम स्मिथ डेविड रिकार्डो द्वारा प्रस्तुत आर्थिक विकास से सम्बन्धित विचारों में बहुत सीमा तक समानता पाई जाती है। इनके सम्मिलित विचारों को ही आर्थिक विकास का प्रतिष्ठित सिद्धान्त कहा जाता है। आर्थिक विकास के ये प्रतिष्ठित सिद्धान्त को विकास का प्रारम्भिक सिद्धान्त भी कह सकते है।
एडम स्मिथ प्रतिष्ठित सम्प्रदाय के अगुवा माने जाते है। उनका 1776 में प्रकाशित होने वाला महान ग्रन्थ “An Enquiry in to the nature and Causes of wealth of notions” स्वयं में ही आर्थिक विकास के महत्व का Single स्पष्टीकरण है। एडम स्मिथ के प्रगति के सिद्धान्त की प्रमुख विचारधाराएँ निम्न प्रकार वर्गीकृत की जा सकती है :-
मुक्त साहस And प्रतिस्पर्द्धा
एडम स्मिथ के विचार में आर्थिक विकास के लिए मुक्त साहस And मुक्त प्रतिस्पर्द्धा अत्यन्त आवश्यक है। इनके द्वारा (प्रकृति) निर्धारित न्याय पूर्ण वैधानिक पद्धति ही विकास करने का सर्वोच्च साधन है। न्यायपूर्ण वैधानिक पद्धति का Means उस व्यवस्था से लिया गया है जिसमें प्रत्येक व्यक्ति के अपने हितों का अन्य सदस्यों के दबाव से मुक्त रहकर अनुसरण करने के अधिकार को संरक्षण प्राप्त होता है। Meansव्यवस्था को अदृष्य हाथों द्वारा यदि संचालित होने के लिए मुक्त छोड़ दिया जाय तो समन्वित And लाभकारी आर्थिक व्यवस्था की स्थापना हो सकती है। अदृष्य हाथों से स्मिथ का तात्पर्य मुक्त प्रतिस्पर्द्धा में उदय हुई शक्तियों से है जो Means-वयवस्था में आवष्यक समायोजन स्थापित करती रहती है।
श्रम विभाजन
श्रम विभाजन द्वारा श्रम की उत्पादन क्षमता में वृद्धि होती है। श्रम विभाजन And विषिश्टीकरण द्वारा श्रमिकों की निपुणता में वृद्धि होती है। वस्तुओं के उत्पादन में लगने वाले समय में कमी होती है तथा अच्छी मशीनों And प्रसाधनों का अविष्कार होता है। उत्पादकता में वृद्धि होती है। परन्तु श्रम-विभाजन द्वारा उत्पादकता बढ़ाने की प्रक्रिया की तीन परिसीमाएँ है:-
- श्रम विभाजन का प्रारम्भ Human की Single वस्तु के बदले दूसरी वस्तु प्राप्त करने की इच्छा पर होती है।
- श्रम विभाजन के प्रारम्भ अथवा विस्तार के लिए पूँजी सचंयन होना आवश्यक है। पूँजी संचयन के लिए बचत होना और बचत अथवा पूँजी मितव्ययता से बढ़ती है तथा फिजूलखर्ची And दूराचरण से घटती है।
- तीसरी सीमा बाजार का आकार होती है। यदि बाजार संकुचित है और उत्पादको को अपने उत्पादन के अतिरेक (Surplus) के विनिमय के अवसर सीमित हो तो व्यक्ति Single रोजगार में रहकर Need से अधिक उत्पादन नही करेगा। इस प्रकार संकुचित बाजार में श्रम विभाजन के लाभ प्राप्त नहीं होगें।
विकास प्रक्रिया
पूँजी संचयन की व्यवस्था होने से श्रम विभाजन का उदय होता है जिससे उत्पादकता के स्तर में वृद्धि होती है जिसके फलस्वरुप राष्ट्रीय आय And जनसंख्या में वृद्धि होती है। आर्थिक विकास की यह प्रक्रिया धीरे2 चलती है और Meansव्यवस्था के Single क्षेत्र से Second क्षेत्र में फैल जाती है Single क्षेत्र का विकास Second क्षेत्रों के विकास को प्रभावित करता है और अन्तत: Means व्यवस्था के समस्त क्षेत्र विकसित हो जाते है।
- मजदूरी का निर्धारण :- मजदूरी का निर्धारण श्रमिको And पूँजी पतियों की सौदा करने की क्षमता पर निर्भर करता है।
- लाभ निर्धारण :- विकास की प्रक्रिया में लाभ And मजदूरी उस समय तक घटते बढ़ते रहते है जब तक कि जनसंख्या में Needनुसार पर्याप्त वृद्धि होती है। अन्तत: Meansव्यवस्था स्थिर अवस्था में पहुँच जाती है जहाँ पूँजी संचयन And आर्थिक विकास की प्रक्रिया दोनों ही रूक जाते है।
- लगान का निर्धारण :- भूमि पर Singleाधिकार का प्रतिफल लगान होता है।
- विकास के दूत (Agents og Growth) :- एडम स्मिथ के According कृषक उत्पादन तथा व्यापारी आर्थिक उन्नति तथा विकास के दूत है।
विकास का क्रम
विकास की प्रक्रिया में First कृषि का विकास होता है। कृषि के बाद निर्माण प्रक्रिया का अन्त में वाणिज्य का विकास होता है।
यद्यपि स्मिथ ने अपने विचार आर्थिक विकास के सिद्धान्त के रुप में प्रकट नही किये परन्तु उनके विचार का प्रभाव बाद में आर्थिक विकास के सिद्धान्त पर पड़ता है। पूँजी संचयन का महत्व, स्थिर Meansव्यवस्था का विचार तथा विकास प्रक्रिया में सहकारी हस्तक्षेप के तिरस्कार को बाद के प्रतिश्ठित Meansशास्त्रियों ने भी मान्यता प्रदान की है।
स्थिर अवस्था :- परन्तु यह प्रगतिशील अवस्था सदैव नही चलती रहती है। प्राकृतिक साधनों की कमी विकास को रोकती है। जब Meansव्यवस्था अपने साधनों का पूर्ण विकास कर लेती है ऐसी समृद्ध अवस्था में श्रमिकों में रोजगार के लिए प्रतिस्पर्धा मजदूरी कम करके निर्वाह स्तर पर ला देती है और व्यापारियों में प्रतिस्पर्धा लाभों को कम कर देती है। जब Single बार लाभ घटते है तो घटते ही चले जाते है जिससे निवेश – निवेश भी घट जाता है-पूँजी संचय भी रूक जाता है- जनसंख्या स्थिर हो जाती है-लाभ न्यूनतम होने लगते – मजदूरी जीवन निर्वाह स्तर पर पहुँच जाती है- प्रति व्यक्ति आय स्थिर हो जाती है और – Meansव्यवस्था गतिहीनता की अवस्था में पहुँच जाती है। जिसे एडम स्मिथ ने स्थिर अवस्था का नाम दिया।
रिकार्डो का विकास प्रारुप
डेविड रिकार्डो के विकास सम्बन्धी विचार उनकी पुस्तक “The Principles of political Economy and Taxation” (1917) में जगह पर अव्यवस्थित रुप में व्यक्त किये गये। इनका विश्लेषण Single चक्करदार मार्ग है। यह सीमान्त और अतिरेक नियमों पर आधारित है। शुम्पीटर ने कहाँ रिकार्डो ने कोई सिद्धान्त नही प्रतिपादित Reseller केवल स्मिथ द्वारा छोड़ी गयी कड़ियों को अपेक्षाकृत Single अधिक कठोर Reseller से जोड़ने का प्रयास अवश्य Reseller। इसी तरह का विचार मायर And वाल्डविन आदि का था।
विकास प्रारुप की मान्यताएं
- अनाज के उत्पादन में समस्त भूमि का प्रयोग होता है और कृषि में कार्यशील शक्तियाँ उद्योग में वितरण निर्धारित करने का काम करती है।
- भूमि पर घटाते प्रतिफल का नियम क्रियाशील है।
- भूमि की पूर्ति स्थिर है।
- अनाज की माँग पूर्णतया अलोचशील है।
- पूँजी और श्रम परिवर्तनशील आगत (Inputs) है।
- समस्त पूँजी समReseller है।
- पूँजी में केवल चल पूँजी ही शामिल है।
- तकनीकी ज्ञान की स्थिति दी हुई है।
- All श्रमिकों को निर्वाह मजदूरी दी हुई है।
- श्रम की पूर्ति कीमत स्तर पर दी हुई है।
- श्रम की माँग पूँजी संचय पर निर्भर करती है। श्रम की माँग और श्रम की पूर्ति कीमत दोनों ही श्रम की सीमान्त उत्पादकता से स्वतन्त्र होती है।
- पूर्ण प्रतियोगिता पाई जाती है।
- पूँजी संचय लाभ से उत्पन्न होती है।
विकास के दूत
इन मान्यताओं के आधार पर रिकार्डो ने कहा कि Meansव्यस्था का विकास तीन वर्गो के परस्पर सम्बन्धों पर आधारित है। वे है। 1) भूमिपति 2) पूँजीपति तथा 3) श्रमिक जिनमें भूमि की समस्त उपज बाँटी जाती है। इन तीन वर्गो मं कुल राष्ट्रीय उत्पादन क्रमश: लगान, लाभ और मजदूरी के Reseller में बाँट दी जाती है।
पूँजी संचय की प्रReseller
रिकार्डो पूँजी संचय लाभ से होता है यह जितना बढेगा पूँजी निर्माण के काम आत है। पूँजी संचय दो घटकों पर निर्भर करेगा। First बचत करने की क्षमता और द्वितीय बचत करने की इच्छा जैसा कि रिकार्डो ने कहा दो रोटियों में से मैं Single बचा सकता हूँ और चार में से तीन यह बचत (अतिरेक) भूमिपति तथा पूँजीपति ही करते है। जो लाभ की दर पर निर्भर करता है।
लाभ दर :- लाभ की दर = लाभ/मजदूरी Meansात जब तक लाभ की दर धनात्मक रहेगी, पूँजी संचय होता रहेगा। वास्तव मं लाभ मजदूरी पर निर्भर करता है, मजदूरी अनाज की कीमत पर अनाज की कीमत सीमान्त भूमि की उर्वरकता पर। इस प्रकार लाभ तथा मजदूरी में विपरीत सम्बन्ध है। कृषि में सुधार से उर्वरकता बढ़ती है इससे उपज बढेगी कीमत कम होगी निर्वाह मजदूरी कम होगी परन्तु लाभ बढेगा पूँजी संचय अधिक होगा इससे श्रम की माँग बढे़गी मजदूरी अधिक होगी लाभ घटेगा।
मजदूरी में वृद्धि :- रिकार्डो यह बातते है कि पूँजी संचय विभिन्न परिस्थितियों में लाभ को ही कम करेगा। मजदूरी बढ़ेगी तो मजदूर निर्वाह की वस्तुओं की माँग बढ़ेगी जिससे मूल्य बढ़ेगा। मजदूर उपभोग की वस्तुऐं प्रमुख रुप से कृषि वस्तुऐं होती है। ज्यों – 2 जनसंख्या बढ़ेगी उपज की माँग बढ़ेगी उपजाऊ काश्त में वृद्धि होगी मजदूरी की माँग बढ़ेगी मजदूरी बढ़ेगी अनाज की कीमत बढ़ेगी। लाभ कम हो जायेगा। लगान बढ़ जायेगा जो अनाज कीमत में हुई वृद्धि खपा लेगा। ये दोनों विरोधी प्रवृत्तियाँ अनत में पूँजी संचय कम कर देती है।
अन्य उद्योगों में भी लाभों की कमी :- रिकार्डो के According “किसानों के लाभ अन्य सब व्यापारियों के लाभों को नियमित करते है।” क्योंकि हर क्षेत्र के लिए आगत (Input) कृषि क्षेत्र से आता है।
पूँजी संचय के अन्य साधन
रिकार्डो के According “आर्थिक विकास उत्पादन तथा उपभोग के अन्तर पर निर्भर करता है इसलिए वह उत्पादन के बढ़ाने और अनुत्पादक उपभोग में कमी करने पर जोर देता है। कर :- कर सरकार के हाथ में पूँजी संचय का साधन है रिकार्डो के According करों को केवल दिखावटी उपभोग को कम करने के लिए ही लगाना आवश्यक होता है अन्यथा इनसे निवेश पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
बचत :- बचत पूँजी संचय के लिए अधिक महत्वपूर्ण है। यह लाभ की दरों को बढ़ाकर, वस्तुओं के मूल्य कम करने व्यय तथा उत्पादन से की जाती है।
मुक्त व्यापार :- रिकार्डो मुक्त व्यापार के पक्ष में है। देश की आर्थिक उन्नति के लिए मुक्त व्यापार महत्वपूर्ण तत्व है।
स्थिर अवस्था
जिस अवस्था में लाभ शून्य होता है त्र पूँजी संचय रूक जाता है = जनसंख्या स्थिर होती है = मजदूरी निर्वाह स्तर पर होती है = लगान ऊँचा होता है आर्थिक विकास रूक जाता है। इस अवस्था को रिकार्डो ने स्थिर अवस्था का नाम दिया है।