आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का जीवन परिचय
आचार्य रामचंद्र शुक्ल का जन्म सन् 1884 में उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले के अगोना गाँव में हुआ था। बाल्यकाल से ही आपने संस्कृत का ज्ञान प्राप्त Reseller And इंटरमीडिएट तक शिक्षा प्राप्त की। तभी से आपकी साहित्यिक प्रवृत्तियाँ सजग रहीं। 26 वर्ष की उम्र में’ हिन्दी-Word-सागर’ के सहकारी संपादक हुए And नौ वर्षों तक ‘नागरी प्रचारिणी’ पत्रिका के संपादक भी रहे। हिन्दू विश्वविद्यालय काशी में आप हिन्दी विभाग में अध्यापक हो गए और बाद में विभागाध्यक्ष भी बनाए गए। सन् 1937 तक आप वहीं रहे। फिर अवकाश ग्रहण कर साहित्य-सेवा करने लगे। सन् 1940 में 56 वर्ष की उम्र में शुक्ल जी स्वर्गवासी हुए।
Creationएँँ –
‘त्रिवेणी’, ‘रस-मीमांसा’, ‘चिन्तामणि’ भाग-1 व 2, ‘हिन्दी साहित्य का History’ आदि।
भाषा-
शुक्ल जी की भाषा अत्यंत परिमार्जित, प्रौढ़ And साहित्यिक खड़ी बोली है। भाषा भावानुकूल होने के कारण सजीव व स्वाभाविक है। तत्सम Wordों की बहुलता है।
शैली-
शैली पर शुक्ल जी के व्यक्तित्व की छाप है। वे समीक्षात्मक, विवेचनात्मक शैली का प्रयोग करते हैं । वे First किसी गंभीर बात को संक्षेप में कहते हैं, फिर उसकी विशद् व्याख्या करते हैं।
साहित्य मेंं स्थान-
‘हिन्दी साहित्य का History’ जैसी Creation ने शुक्ल जी को अमर बना दिया है । उनके द्वारा लिखे निबंध संपूर्ण Indian Customer साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान पाने के योग्य हैं ।
केन्द्रीय भाव-
क्रोध मनुष्य के ह्रदय में स्थित वह भाव है जो Second द्वारा सताए जाने पर या इच्छा के अनुकूल काम न करने पर या अपने पराये की भावना उत्पन्न होने पर स्वत: ही पैदा होता है। क्रोध की Need लोकहित के लिए भी होती है। ऐसी स्थिति में अक्सर वह साहित्य का Reseller ले लेता है। क्रोध कभी-कभी घातक भी सिद्ध होता है। इससे बनते काम बिगड़ जाते हैं, क्रोध करने से मानसिक शांति भंग हो जाती है, ऐसे समय में मानसिक संतुलन बनाए रखना अति आवश्यक हो जाता है। किसी भी प्रकार से क्रोध पर नियंत्रण रखना चाहिए ।