अल्पविकसित देश का आशय And विशेषताएं
अल्पविकसित तथा विकासशील Meansव्यवस्था
अल्प विकास या अल्प विकसित देश को परिभाषित करना काफी कठिन है। प्रो0 सिंगर का भी मत है कि ‘Single अल्प विकसित देश ‘जिराफ’ की भांति है जिसका वर्णन करना कठिन है। लेकिन जब हम इसे देखते हैं तो समझ जाते हैं।’ वैसे अल्प विकसित Meansव्यवस्था के अनेक मापदण्ड प्रस्तुत किये गए हैं जैसे निर्धनता, अज्ञानता, निम्न प्रति व्यक्ति आय, राष्ट्रीय आय का असमान वितरण, जनसंख्या भूमि अनुपात, प्रशासनिक अयोग्यता, सामाजिक बाधायें इत्यादि।
- प्रो0 डब्ल्यू0 डब्ल्यू0 सिंगर – का मत है कि अल्प विकसित Meansव्यवस्था को परिभाषित करने का कोई भी प्रयास, समय को बर्बाद करना है। फिर भी किसी Single निश्चित निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए यह आवश्यक होगा कि कुछ प्रचलित परिभाषाओं का अध्ययन कर लिया जाए।
- संयुक्त राष्ट्र संघ – की Single विज्ञप्ति के According ‘‘अल्प विकसित देश वह है जिसकी प्रति व्यक्ति वास्तविक आय अमेरिका, कनाडा, आस्ट्रेलिया तथा पश्चिम यूरोपीय देशों की प्रति व्यक्ति वास्तविक आय की तुलना में कम है।’’
- प्रो0 मेकलियोड – के मतानुसार ‘‘Single अल्प विकसित देश अथवा क्षेत्र वह है जिसमें उत्पत्ति के अन्य साधनों की तुलना में उद्यम And पूंजी का अपेक्षाकृत कम अनुपात है परन्तु जहां विकास सम्भाव्यतायें विद्यमान हैं और अतिरिक्त पूंजी को लाभजनक कार्यों में विनियोजित Reseller जा सकता है।’’
- प्रो0 जे0 आर0 हिक्स – के Wordों में ‘‘Single अल्प विकसित देश वह देश है जिसमें प्रौद्योगिकीय और मौद्रिक साधनों की मात्रा, उत्पादन And बचत की वास्तविक मात्रा की भांति कम होती है, जिसके फलस्वReseller प्रति श्रमिक को औसत पुरस्कार उस राशि से बहुत कम मिलता है जो प्राविधिक विकास की अवस्था में उसे प्राप्त हो पाता है।’’
यह परिभाषा केवल प्रावधिक घटक पर ध्यान देने के कारण Singleांगी मानी जाती है। प्राविधिक घटक के अलावा कुछ अन्य महत्वपूर्ण आर्थिक, प्राकृतिक, सामाजिक घटकों को दृष्टि में नहीं रखा गया है।
- प्रो0 ऑस्कर लैंज – की दृष्टि में ‘Single अल्प-विकसित Meansव्यवस्था वह Meansव्यवस्था है जिसमें पूंजीगत वस्तुओं की उपलब्ध मात्रा देश की कुल श्रम शक्ति को आधुनिक तकनीक के आधार पर उपयोग करने के लिये पर्याप्त नहीं है।’’
- ऑस्कर लैंज And नर्कसे के विचार मेकलियोड की भांति ही त्रुटिपूर्ण है। आर्थिक विकास के लिए पूंजी Single आवश्यक शर्त है परन्तु Single मात्र नहीं। परिभाषा में अन्य आवश्यक तत्वों की ओर संकेत नहीं Reseller गया है।
- जैकब वाईनर – के According ‘अल्प विकसित देश वह देश है जिसमें अधिक पूंजी अथवा अधिक श्रम-शक्ति अथवा अधिक उपलब्ध साधनों अथवा इन सबको उपयोग करने की पर्याप्त संभावनायें हों, जिससे कि वर्तमान जनसंख्या के रहन सहन के स्तर को ऊंचा उठाया जा सके, और यदि प्रति व्यक्ति आय First से ही काफी अधिक है तो रहन सहन क स्तर को कम किये बिना, अधिक जनसंख्या का निर्वाह Reseller जा सके।
- यूजीन स्टैले – के विचारानुसार ‘अल्प विकसित देश वह देश है जहां जनसाधारण में दरिद्रता व्याप्त है जो अत्यन्त स्थायी व पुरातन है, जो किसी अस्थायी दुर्भाग्य का परिणाम नहीं है, बल्कि उत्पादन के घिसे पिटे परम्परागत तरीकों और अनुपयुक्त सामाजिक व्यवस्था के कारण हैं। जिसका अभिप्राय यह है कि दरिद्रता केवल प्राकृतिक साधनों की कमी के कारण नहीं होती है और इसे अन्य देशों में श्रेष्ठता के आधार पर परखे हुए तरीकोंं द्वारा सम्भवत: कम Reseller जा सकता है।’
- Indian Customer योजना आयोग – के According ‘Single अल्प विकसित देश वह देश है जहां पर Single ओर अप्रयुक्त Humanीय शक्ति और दूसरी ओर अवशोषित प्राकृतिक साधनों का कम या अधिक मात्रा में सह अस्तित्व का पाया जाना है।’
सामान्यतया Single अल्प विकसित देष वह है जहां जनसंख्या की वृद्धि की दर अपेक्षाकृत अधिक हो, पर्याप्त मात्रा में प्राकृतिक साधन उपलब्ध होंं, परन्तु उनका पूर्णResellerेण विदोहन न हो पाने के कारण उत्पादकता व आय का स्तर नीचा हो। सरल Wordों में, वह देश अल्प विकसित देश माना जाएगा जिसका आर्थिक विकास सम्भव तो हो, किन्तु अपूर्ण हो।
अल्पविकसित तथा विकासशील Meansव्यवस्था की विशेशतायें
Single विकासशील या अल्प विकसित Meansव्यवस्था वाले देश में कौन सी आधार भूत विशेषताएं पायी जाती हैं, इस सम्बन्ध में सर्वमान्य विशेषताएं बताना कठिन है। इसका कारण यह है कि भिन्न भिन्न विकासशील या अल्प विकसित Meansव्यवस्थाओं में भिन्न भिन्न विशेषताएं पायी जाती हैं। मानर And बाल्डबिन ने अपनी पुस्तक “Economic Development” में अल्प विकसित Meansव्यवस्था के छ: आधारभूत लक्षण बताये हैं :-
- प्राथमिक उत्पादन की प्रधानता
- जनसंख्या दबाव,
- अल्प विकसित प्राकृतिक साधन,
- जनसंख्या का आर्थिक दृष्टि से पिछड़ा होना
- पूंजी का अभाव
- विदेशी व्यापार की उन्मुखता।
हार्वे लिबिन्सटीन ने अल्प विकसित देशों की चार विशेषताएं बतायी हैं।
- आर्थिक,
- जनसंख्या सम्बन्धी,
- प्राविधिक तथा
- सांस्कृतिक And राजनीतिक।
उपर्युक्त विवेचन के आधार पर हमने Single अल्प विकसित Meansव्यवस्था की विशेषताओं को छ: भागों में बांटा है। 1. आर्थिक विशेषताएं, 2. जनसंख्या सम्बन्धी विशेषताएं, 3. तकनीकी विशेषताएं, 4. सामाजिक विशेषताएं, 5. राजनीतिक विशेषताएं And 6. अन्य विशेषताएं।
आर्थिक विशेषताएं
- कृषि की प्रधानता – अल्प विकसित देशों की सबसे प्रमुख विशेषता अधिकांश जनता का कृषि में लगे रहना है। यहां कृषि से Means कृषि, बागवानी, जंगल कटाई, पशुपालन व मछली पालन आदि से है। भारत, इण्डोनेशिया, पाकिस्तान, आदि देशों को अल्प विकसित माना जाता है, क्योंकि भारत की 51.2 प्रतिशत जनसंख्या, इण्डोनेशिया की 57 प्रतिशत जनसंख्या And पाकिस्तान की 56 प्रतिशत जनसंख्या कृषि कार्यों में लगी है, जबकि विकसित देश फ्रांस, कनाड़ा, अमरीका And ब्रिटेन की कुल जनसंख्या का प्रतिशत बहुत कम है, जैसे फ्रांस की 5 प्रतिशत, कनाड़ा की 3 प्रतिशत, अमरीका की 1 प्रतिशत व ब्रिटेन की 2 प्रतिशत। यही कारण है कि अल्प विकसित देशों की राष्ट्रीय आय, निर्यात व्यापार व उद्योग कृषि पर आधारित होते हैं।
- प्राकृतिक साधनों का अल्प उपयोग – अल्प विकसित देशों में प्राकृतिक साधनों के प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होने के बाद भी उनका उपयोग या तो होता ही नही है और यदि होता भी है तो बहुत ही कम मात्रा में। कभी-कभी तो अल्प विकसित देशों को इस बात का पता ही नहीं होता कि उनके देश में प्राकृतिक साधन उपलब्ध है।
- प्रति व्यक्ति आय का निम्न स्तर – इन देशों में प्रति व्यक्ति आय का स्तर निम्न होता है। World Development Report, 2009 के According भारत की प्रति व्यक्ति आय 950 डॉलर है, जबकि भारत की तुलना में प्रति व्यक्ति आय अमेरिका में 46040 डॉलर, जापान में 37670 डॉलर तथा यू0 के0 में 42740 डालर है।
- पूंजी निर्माण का निम्न स्तर – यहां पूजी निर्माण का स्तर निम्न है। अल्प विकसित देशों में घरेलू निवेश की दर राष्ट्रीय आय की 5 से 10 प्रतिशत तक होती है, जबक विकसित देशों में यह 20 से 25 प्रतिशत तक की होती है। वर्तमान में भारत में पूंजी निर्माण की दर 39.1 प्रतिशत है।
- सम्पत्ति And आय वितरण में असमानता – अल्प विकसित देशों में राष्ट्रीय सम्पत्ति And आय का बहुत बड़ा भाग कुछ ही व्यक्तियों के अधिकार में होता है, जबकि जनसंख्या के बड़े भाग को सम्पत्ति And आय का छोटा सा हिस्सा मिल पाता है।
- औद्योगिक पिछड़ापन – अल्प विकसित देश औद्योगिक विकास की दृष्टि से पिछड़े हुए होते हैं। इसका Means यह है कि यहां आधारभूत उद्योगों का अभाव होता है। यहां कुछ उद्योग जो उपभोक्ता वस्तु या कृषि वस्तु बनाते हैं उनका ही विकास हो पाता है। औद्योगिक पिछड़ेपन की पुष्टि इस अनुमान से हो जाती है कि 74 प्रतिशत जनसंख्या वाले देश विश्व औद्योगिक उत्पादन में केवल 20 प्रतिशत का ही योगदान देते हैं शेष 80 प्रतिशत उत्पादन विकसित देशों में ही होता है।
- अल्प रोजगार व बेरोजगारी – इन अल्प विकसित देशों में अल्प रोजगार के साथ-साथ बेरोजगारी भी होती है। जिन लोगों को काम मिला हुआ होता भी है उनको भी पूरे समय के लिए काम नहीं मिलता है। इन देशों में कुछ लोग सदा ही बेरोजगार बने रहते हैं। उनके लिए समाज के पास कोई कार्य नहीं होता है। इसका मुख्य कारण औद्योगीकरण की कमी And पूजी निवेश का अभाव है।
- बैंकिंग सुविधाओं का अभाव – अल्प विकसित देशों में बैंकिंग सुविधाओं का अभाव रहता है। ग्रामीण क्षेत्रों में तो बैंकिग सुविधाएं ही कम होती हैं। ऐसा अनुमान लगाया गया है कि अल्प विकसित देशों में यह प्रतिशत 60 तक होता है।
- आर्थिक दुष्चक्र –अल्प विकसित देशों में आर्थिक दुष्चक्रों की प्रधानता रहती है। वहां पूंजी की कमी से उत्पादन कम होता है। इससे वास्तविक आय कम होती है। अत: वस्तुओं की मांग कम रहती है। इन सबका परिणाम यह होता है कि साधनों का उचित विकास नहीं हो पाता है इस प्रकार यह कुचक्र चलता रहता है और इससे Meansव्यवथा निरन्तर प्रभावित होती रहती है।
- विदेशी व्यापार में अस्थिरता – अल्प विकसित देशों के कच्चे माल का निर्यात व पक्के माल का आयात Reseller जाता है। कच्चे माल की वस्तुओं के मूल्य अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में स्थिर नहीं रहते हैं। इससे विदेशी मुद्रा अर्जन में घटा बढ़ी होती रहती है जिससे देश की Meansव्यवस्था भी स्थिर नहीं रहती है।
- ऊंची जन्म व मृत्यु दरें – अल्प विकसित देशों में जन्म दर व मृत्यु दर अपेक्षाकृत ऊंची रहती है। Single अनुमान के According विकसित देशों में जन्म दर व मृत्यु दर क्रमश: 15 से 20 प्रति हजार व 9 से 10 प्रति हजार होती है, जबकि अल्प विकसित देशों मे यह दरें क्रमश: 30 से 40 प्रति हजार व 15 से 30 प्रति हजार तक होती है। अल्प विकसित देशों में ऊंची जन्म दर के कारण हैं – सामाजिक धारणा And विश्वास, पारिवारिक मान्यता, बाल विवाह, विवाह की अनिवार्यता, भाग्यवादिता, मनोरंजन सुविधाओं का अभाव, निम्न आय व निम्न जीवन-स्तर, निरोधक सुविधाओं का अभाव आदि। इसी प्रकार यहां ऊंची मृत्युदर के कारण हैं – अकाल व महामारी, लोक स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव, स्त्री शिक्षा का अभाव, पौष्टिक आहार का अभाव आदि। भारत में वर्तमान में जन्म दर 23.1 व मृत्युदर 7.4 प्रति हजार है।
- ग्रामीण जनसंख्या की अधिकता – अल्प विकसित देशों में अधिकांश जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है जिसका मुख्य व्यवसाय कृषि होता है। भारत की 65 प्रतिशत जनसंख्या गांवों में व शेष शहरों में रहती है।
- जनसंख्या का आधिक्य – अल्प विकसित देशों में जनसंख्या का घनत्व अधिक होता है, जबकि विकसित देशों में उतना नहीं होता है। साथ ही अल्प विकसित देशों में जनसंख्या तीव्र गति से बढ़ती है। अत: यहां जनसंख्या का आकार व घनत्व अधिक होता है।
- आश्रितों की अधिकता – अल्प विकसित देशों में Single परिवार में आश्रितों की मात्रा अधिक होती है। इसका Means यह है कि इन देशों में कमाने वाले कम होते हैं, जबकि खाने वाले अधिक। इसका कारण यह है कि यहां बच्चों व बूढ़ों की संख्या विकसित देशों की तुलना में अधिक होती है।
- अकुशल जनशक्ति की अधिकता – अल्प विकसित देशों में अकुशल जनशक्ति की अधिकता रहती है। इसके कारण शिक्षा व प्रशिक्षण का अभाव, प्रति व्यक्ति निम्न आय, संयुक्त परिवार प्रणाली, रूढ़िवादिता, भाग्यवादिता, आत्मसन्तोष की भावना आदि है।
- निम्न प्रत्याशित आयु – विकसित देशों की तुलना में अल्प विकसित देशों की प्रत्याशित आयु (Life exectanpcy) कम होती है। विकसित देशों में प्रत्याशित आयु औसतन 74 से 82 वर्ष होती है, जैसे जापान में 81 वर्ष, स्विटजरलैण्ड में 80 स्वीडन में 79 वर्ष, अमरीका में 77 वर्ष, ब्रिटेन में 77 वर्ष फ्रांस में 79 वर्ष। अल्प विकसित देशों में यह 40 से 60 वर्ष ही है। भारत में प्रत्याशित आयु 63.5 वर्ष है।
तकनीकी विशेषताएं
- पुरानी उत्पादन विधि – अल्प विकसित देशों में वही पुरानी उत्पादन विधि ही पायी जाती है जिसे उन्नत देश छोड़ चुके हैं। उदाहरण के लिए अल्प विकसित देशों में कृषि उत्पादन पुराने तरीके से ही होता है, जबकि उन्नत देश टै्रक्टर व आधुनिक मशीनों का प्रयोग करते हैं। कृषि के क्षेत्र में ही नहीं, लगभग All क्षेत्रों में अल्प विकसित देशों में पुरानी उत्पादन विधि ही पायी जाती है।
- तकनीकी शिक्षा का अभाव – अल्प विकसित देशों मे तकनीकी शिक्षा सम्बन्धी सुविधाओं का अभाव होता है तथा उनके द्वारा अनुसंधान व शोध कार्यों पर बहुत कम व्यय Resellerजाता है। इसके कारण अशिक्षा, श्रम की गतिशीलता का अभाव, परम्परावादी दृष्टिकोण तथा औद्योगिकरण की कमी है।
- अपर्याप्त संचार And आवागमन सुविधाएं – अल्प विकसित देशों में संचार And आवागमन के साधन अपर्याप्त होते हैं जिससे व्यापार सीमित मात्रा में ही होता है तथा श्रमिकों में गतिशीलता की कमी पायी जाती है।
- कुशल श्रमिकों का अभाव – श्रमिकों की कुशलता बढा़ने के लिए अल्प विकसित देशों में प्रशिक्षण सुविधाओं का अभाव रहता है। इससे देश में कुशल श्रमिक कम मात्रा में ही मिल पाते हैं।
सामाजिक विशेषताएं
- साक्षरता की कमी – अल्प विकसित देशों में साक्षरता की कमी पायी जाती है। Second Wordों में, इन देशों में व्यापक निरक्षरता होती है। जिसका प्रतिशत 70 या इससे भी ऊपर होता है। विकसित देशों में निरक्षरता का प्रतिशत 5 से भी कम होता है। इस निरक्षरता के कारण ही यहां के निवासी रूढ़िवादी, अन्धविश्वासी And भाग्यवादी होते हैं जो नवीन परिवर्तनों का धर्म के नाम पर विरोध करते हैं। 2001 की जनगणना के According भारत में साक्षरता की दर 64.3 प्रतिशत है।
- जातिवाद – इन देशों में वर्ग भेद व जातिवाद की भावना व्याप्त होती है। जिसके परिणामस्वReseller यहां के व्यक्तियों की सामाजिक स्थिति भिन्न भिन्न होती है तथा प्रत्येक जाति की अपनी परम्पराएं And रीति रिवाज होती हैं।
- रीति रिवाज की प्रधानता – अल्प विकसित देशों में रीति रिवाज की प्रधानता होती है जिनको प्रत्येक व्यक्ति आंखें मूंदकर मानता है और समय समय पर उन्हीं रिवाजों के According कार्य करता है जिसका परिणाम यह होता है कि फिजूलखर्ची को बढ़ावा मिलता है जिससे निवासी निर्धन व ऋणग्रस्त बने रहते हैं।
- स्त्रियों को निम्न स्थान – अल्प विकसित देशोंं में स्त्रियों की स्थिति अच्छी नही होती है, उनका समाज में कोई महत्वपूर्ण स्थान नहीं होता है। उन्हें कार्य करने की स्वतंत्रता नहीं होती है। उनमें साक्षरता भी कम होती है। वे अपना पेट भरने के लिए पुरूषों पर निर्भर रहती हैं।
राजनीतिक विशेषताएं
- अधिकारों के प्रति ज्ञान न होना – अल्प विकसित देशों में जनता अपने अधिकारों के प्रति ज्ञानवान नहीं होती है। अत: उसमें अधिकारों के प्रति जागरूकता नहीं पायी जाती है। इसका कारण यह है कि यहां के लोग अपनी दरिद्रता को ईश्वरीय देन मानते हैं।
- दुर्बल राष्ट्र – अल्प विकसित देश विकसित देशों के मुकाबले दुर्बल होते हैं और ऐसे देशों पर सदा ही विदेशी राष्ट्रों का आधिपत्य किसी न किसी Reseller में बना रहता है।
- आधुनिक सेना का अभाव – ऐसे देशों के पास आधुनिक अस्त्रों से लैस सेना का अभाव होता है।
- प्रशासनिक अकुशलता – इन राष्ट्रों में प्रशासनिक कुशलता And ईमानदारी का अभाव होता है। राजनीतिक नेता भी इस सम्बन्ध में कोई अच्छा उदाहरण प्रस्तुत नहीं करते हैं। अत: यहॉं कालाबाजारी, भ्रष्टाचार व बेईमानी विस्तृत Reseller में पायी जाती है।
अन्य विशेषताएं
- दोषपूर्ण वित्तीय संगठन – अल्प विकसित देशों में वित्तीय संगठन दोषपूर्ण होता है। इन देशों में परोक्ष कर अधिक लगाये जाते हैं। मुद्रा बाजार असंगठित होता है। बैंकिंग व्यवस्था प्रभावशाली नहीं होती है। सरकारी आय के साधन भी सीमित होते हैं।
- स्थिर व्यावसायिक ढांचा – इन देशों में व्यावसायिक ढांचा स्थिर रहता है। इसका Means यह है कि इन देशों ने व्यवसायिक ढांचा Single जैसा रहता है, उसमें परिवर्तन नहीं होता है।
विकसित तथा अल्प विकसित देश में अंतर
डॉ0 स्टीफैन ने इस दृष्टि से Single अल्प विकसित Meansव्यवस्था को ‘अनार्थिक संस्कृति’ का नाम दिया है। उनका मत है कि ‘परम्परागत सामाजिक मनोवृत्ति Humanी साधनों के पूर्ण उपयोग को कुंठित करती है जिसके फलस्वReseller Single रूढ़िवादी Human समाज भौतिक पर्यावरण में बदलाव लाने और उपभोग में अतिरिक्त वृद्धि के प्रति उदासीन हो जाता है।’
विकास के अंग | विकसित देश | अल्प-विकसित देश |
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आर्थिक स्थिति | उच्च प्रति व्यक्ति GNP, औसत 25000 डॉलर। |
निम्न प्रति-व्यक्तिGNP,औसतन 1100 डॉलर। |
कृषि | जसंख्या का लगभग 2:5 प्रतिशत कृषि कार्य में संलग्न। |
जनसंख्या का औसतन 50-65 प्रतिशत कृषि में लगा होना। |
उद्योग | बृहत स्तरीय उत्पादन | व्यवस्था लघु-स्तरीय उत्पादन ढांचा। |
प्राविधिक स्तर | उन्नत प्राविधिक-स्तर विशेष कर पूंजी प्रधान तकनीकी का प्रयोग Reseller जाना। |
तकनीकी द्वैतवाद, मुख्यतया श्रम प्रधान तकनीकी का प्रयोग Reseller जाना। |
जनसंख्या | सन्तुलित जनसंख्या कार्यशील जनसंख्या का अधिक प्रतिशत |
जन्म-दर ऊंची व मृत्युदर का कम होना अकार्यशील जनसंख्या का अधिक प्रतिशत। |
रोजगार | लगभग पूर्ण रोजगार। | व्यापक बेरोजगारी। संCreationत्मक And अदृश्य बेरोजगारी |
बचत निवेश | राष्ट्रीय आय के अनुपात में बचत तथा निवेश का उच्च स्तर। |
राष्ट्रीय आय के अनुपात में बचत तथा निवेश का नीचा स्तर। |
प्राकृतिक साधन | पर्याप्त प्राकृतिक साधन और उनका पूर्ण शोषण Reseller जाना। |
पर्याप्त प्राकृतिक साधन, परन्तु पूर्ण विदोहन सम्भव न होना। |
निर्यात | निर्यात पर कम निर्भरता। | निर्यात पर अधिक निर्भरता। |
पूंजीनिर्माण | प्रति व्यक्ति ऊंचा पूंजी अनुपात | प्रति व्यक्ति कम पूंजी अनुपात। |
यद्यपि उपरोक्त description से विकसित और अल्प विकसित या विकासशील Meansव्यस्था में अंतर स्वत: स्पष्ट तथा विद्यार्थियों की सुविधा हेतु हमने विभिन्न विकास अंगों के Reseller में इन दोनों प्रकार की Means व्यवस्थाओं में अंतर का Single संक्षिप्त-सार प्रस्तुत Reseller है।
Indian Customer Meansव्यवस्था का स्वReseller
क्या भारत Single अल्प विकसित Means व्यवस्था है ? अल्प विकसित देशों की सामान्य विशेषताओं के संदर्भ में अब हम भारत की आर्थिक स्थिति का अवलोकन करेंगे। भारत में प्रति व्यक्ति आय (GNP) 460 डॉलर है जबकि विकसित देशों का औसत लगभग 27500 डॉलर है। जन संख्या की वृद्धि-दर घटने के बावजूद हमारा देश निरन्तर जनाधिक्य की ओर बढ़ रहा है। First की तरह कृषि आज भी आजीविका का प्रमुख आधार है। पिछड़ा प्राविधिक स्तर, धीमा पूंजी- निर्माण और निम्न – उत्पादकता हमारे अल्प विकसित का प्रमाण हैं। आज सबसे बड़ी समस्या देश में चारो ओर फैली व्यापक बेरोजगारी की है। आजीविका का अभाव, आर्थिक विकास के बजाए पिछड़ेपन का प्रतीक है। देश में लगभग 26 प्रतिशत जनसंख्या निर्धनता रेखा के नीचे हैं जिसमें से 10 प्रतिशत जनसंख्या अति निर्धन है। भारत संसार के सर्वाधिक ऋणी देशों में से Single है। ‘विश्व बैंक रिपोर्ट’ के According विदेशी ऋणो के मामले में भारत का स्थान 1970 में पहला, 1980 में छठा, 1990 में तीसरा, 1995 में छठा और 1999 में 10वां था। जरा सोचिए, हम किस विकास की बात कर रहे है ? हां! विकास अवश्य हुआ है, पर केवल देश को दिशा-निर्देश देने वाले भ्रष्ट कर्णधारों का।
भारत के अल्प विकास का Single पुख्ता प्रमाण और भी है। ‘विश्व बैंक’ प्रतिवर्ष संसार के 133 प्रमुख देशों का प्रति व्यक्ति GNP के आधार पर उनके विकास की अवस्था का निर्धारण करता है। आय स्तर के आधार पर All देश तीन वर्गों में बांटे गये हैं – निम्न आय देश, मध्यम आय देश और उच्च आय देश। रिपोर्ट 2002 के According , भारत निम्न आय देशों में शामिल था और विकासक्रम में उसका 96वां स्थान था। Meansात कुल 133 देशों में से 95 देश उससे अधिक धनी थे और केवल 37 देश उससे गरीब थे। विडम्बना तो यह है कि वर्ष 1995 में भारत का स्थान 113वां, 1990 में 111वां और 1983 में 123वां था। स्पष्ट है कि भारत तीन दशक First भी निम्न आय देश था और आज भी Single स्थायी सदस्य के Reseller में उसी लक्ष्मण रेखा पर टिका हुआ है। जबकि उसकी बिरादरी के कई देश निम्न आय स्तर को लांघ कर मध्य आय क्रम में शामिल हो चुके हैं।
वर्ष 2000 में भारत की 26 प्रतिशत जनसंख्या निर्धनता रेखा से नीचे थी।
अंतर्राष्ट्रीय निर्धनता रेखा के Means में, वर्ष 1999 में भारत की (i) 44 प्रतिशत जनसंख्या की प्रतिदिन आय 1 डॉलर से कम थी और (ii) 86 प्रतिशत जनसंख्या की आय 2 डॉलर से कम थी। ‘क्रय शक्ति समता’ के Means में, वर्ष 2000 में भारत की प्रति व्यक्ति GNI 2390 डॉलर है जबकि विकासशील देशों का औसत 3890 डॉलर और उच्च आय देशों का औसत 27450 डॉलर है। भारत में वर्ष 1999 में ‘शिशु मृत्युदर’ 90 प्रति हजार थी। जबकि विकासशील देशों का औसत 85 और विकसित देशों का औसत 6 प्रति हजार था। मातृ मृत्युदर भारत में 440 प्रति लाख है। जबकि चीन में 95, श्रीलंका में 30, मलेशिया में 34, जापान में 18 और कनाड़ा में 6 है। भारत में वर्ष 1999 में वयस्क निरक्षरता 44 प्रतिशत थी जबकि चीन में 17, इथोपिया में 63, पाकिस्तान में 55 और विकसित देशों में शून्य प्रतिशत है।
Human तथा लिंग विकास के सम्बन्ध में भारत की वैश्विक स्थिति इस प्रकार है। भारत का वर्ष 2001 में Human विकास सूचकांक 0.571 था जबकि नार्वे का 0.939, चीन का 0.718 और बांग्लादेश का 0.470 था। भारत का लिंग विकास सूचकांक 0.533 था जबकि नार्वे का 0.937, चीन का 0.715 और बांग्लादेश का 0.309 था। वास्तव में, यह कुछ ऐसे मानदण्ड हैं जो भारत के अल्प विकसित देश की ओर संकेत करते हैं।
परन्तु इस तस्वीर का दूसरा पहलू भी है। पिछले कुछ वर्षों से भारत विकास की स्थैतिक अवस्था से निकल कर प्रावैगिक अवस्था में प्रवेश कर चुका हैं। विकास प्रवृत्तियां जन्म ले रही हैं। Single तरफ उद्योगों में विविधिता आई है तो दूसरी ओर कृषि में हरित क्रान्ति का आभास होने लगा है। बढ़ती हुई बचतें तथा निवेश वृद्धि, पूंजी निर्माण का संकेत है। खाद्यानों में आत्मनिर्भरता, प्राविधिक विकास, बृहत औद्योगिक क्षमता, सड़कों व रेलों के बिछाये गये जाल, अध: संCreation का विकास, अणु परीक्षण-1997 And 2002 के सफल उपग्रह प्रक्षेपण हमारे आर्थिक विकास And प्रगति के सक्षम प्रमाण हैं। 1990-2000 के दशक में भारत के GDP की विकास दर 6 प्रतिशत रही है। जो पूरे विश्व में केवल कुछ गिने चुने देश ही हासिल कर पाये हैं। इसी दशक में GDP का विश्व औसत 2.6 प्रतिशत, विकासशील देशों का 3.6 प्रतिशत और उच्च आय देशों का औसत 2.5 प्रतिशत रहा है। अत: यह कहा जा सकता है कि भारत अल्प विकास की सीमाओं को लांघकर Single अग्रणी विकासशील देश के Reseller में अगले उच्चतम पढ़ाव के लिए निरन्तर प्रयत्नशील है।