Meansव्यवस्था किसे कहते हैं?

प्रत्येक Meansव्यवस्था का मुख्य उद्देश्य अपने देश में उपलब्ध सीमित साधनों के प्रयोग से Human की असीमित Needओं की संतुष्टि है। मनुष्य की Needएं वस्तुओं And सेवाओं के उत्पादन से संभव है। उत्पादन के बाद जिसे व्यक्ति उपभोग करता है। उत्पादन के साधन आर्थिक गतिविधियों द्वारा उत्पादन की प्रक्रिया पूर्ण करते है। आर्थिक गतिविधियों के माध्यम से आर्थिक इकाइयों को आय की प्राप्ति होती है, जिससे उपभोग आदि प्रक्रिया संभव होती है। वस्तुओं एंव सेवाओं का उत्पादन Human के मानसिक व शारीरिक श्रम से संभव होता है। जैसे पढ़ाना, चिकित्सा वकील, गायक (मानसिक श्रम) रिक्शा चलाना, मकान बनाना (शारीरिक श्रम)।

हम विभिन्न प्रकार के कार्यों द्वारा आय अर्जित करत है। आय अर्जित कर इसे खर्च And बचत Reseller जाता है। बचत के द्वारा निवेश की प्रक्रिया संभव है। आय व्यय व बचत करने का मुख्य स्त्रोत है। Single Meansव्यवस्था में वे All क्रियाएं जैसे आय अर्जित करना, व्यय करना, बचत करना, निवेश करना आर्थिक क्रियांएं कहलाती है। जब निवेश व व्यय Reseller जाता है, तो उपभोग की प्रवृति होती हैं। और उपभोग की प्रवृति आय अर्जित करने की पे्ररणा दते ी है। यदि उपभोग न हो तो व्यय, बचत व निवेश करने की Need नही होगी। All आर्थिक क्रियाएं Single Second पर निर्भर होती है। And परस्पर सहयोग करती है। आर्थिक गतिविधियों के स्तर में उच्चावचन चलता रहता है।

Meansव्यवस्था वह सरंचना है, जिसके अंतर्गत All आर्थिक गतिविधियां का संचालन होता है। उत्पादन उपभोग व निवेश Meansव्यवस्था की आधारभतू गतिविधिया है। Meansव्यवस्था की संस्थाएं मनुष्यकृत होती है। अत: इनका विकास भी मनुष्य जैसा चाहता है, वैसा ही करता है।

आय का सृजन उत्पादन उत्पादन प्रक्रिया में होता है। उत्पादन प्रक्रिया द्वारा उत्पादित वस्तुओं व सेवाओं पर आय,व्यय Reseller जाता है। Needओं की संतुष्टि हेतु व्यय करना आवश्यक है जिसे Meansशास्त्र में उपभोग क्रिया कहते है। जब उपभोग क्रिया अधिक होती है तो उत्पादन भी अधिक करना आवश्यक है, उत्पादन करने के लिये अधिक धन व्यय करने की Need होती हैं। इस व्यय को विनियोग कहते हैं। जिन क्षेत्रों में उत्पादन उपभोग व निवेश की क्रिया की जाती है, उसे Meansव्यवस्था कहते हैं।

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