अनुवाद का Means, परिभाषा And क्षेत्र
अनुवाद का Means
अनुवाद Single भाषिक क्रिया है। भारत जैसे बहुभाषा-भाषी देश में अनुवाद का महत्त्व प्राचीन काल से ही स्वीकृत है। आधुनिक युग में जैसे-जैसे स्थान और समय की दूरियाँ कम होती गर्इं वैसे-वैसे द्विभाषिकता की स्थितियों और मात्रा में वृद्धि होती गर्इ और इसके साथ-साथ अनुवाद का महत्त्व भी बढ़ता गया। अन्यान्य भाषा-शिक्षण में अनुवाद विधि का प्रयोग न केवल पश्चिमी देशों में वरन् पूर्वी देशों में भी निरन्तर Reseller जाता रहा है। बीसवीं शताब्दी में देशों के बीच दूरियाँ कम होने के परिणामस्वReseller विभिन्न वैचारिक धरातलों और आर्थिक, औद्योगिक स्तरों पर पारस्परिक भाषिक विनिमय बढ़ा है और इस विनिमय के साथ-साथ अनुवाद का प्रयोग और अधिक Reseller जाने लगा है। बहरहाल, अनुवाद की प्रक्रिया, प्रकृति And पद्धति को समझने के लिए ‘अनुवाद क्या है ?’ जानना बहुत ज़रूरी है। Discussion की शुरुआत ‘अनुवाद’ के Means And परिभाषा’ से करते हैं।
‘अनुवाद’ का Means- अंग्रेजी में Single कथन है : ‘Terms are to be identified before we enter into the argument’ इसलिए अनुवाद की Discussion करने से First ‘अनुवाद’ Word में निहित Means और मूल अवधारणा से परिचित होना आवश्यक है। ‘अनुवाद’ Word संस्कृत का यौगिक Word है जो ‘अनु’ उपसर्ग तथा ‘वाद’ के संयोग से बना है। संस्कृत के ‘वद्’ धातु में ‘घञ’ प्रत्यय जोड़ देने पर भाववाचक संज्ञा में इसका परिवर्तित Reseller है ‘वाद’। ‘वद्’ धातु का Means है ‘बोलना या कहना’ और ‘वाद’ का Means हुआ ‘कहने की क्रिया’ या ‘कही हुर्इ बात’। ‘अनु’ उपसर्ग अनुवर्तिता के Means में व्यवहृत होता है। ‘वाद’ में यह ‘अनु’ उपसर्ग्ा जुड़कर बनने वाला Word ‘अनुवाद’ का Means हुआ-’प्राप्त कथन को पुन: कहना’। यहाँ ध्यान देने की बात यह है कि ‘पुन: कथन’ में Means की पुनरावृत्ति होती है, Wordों की नहीं। हिन्दी में अनुवाद के स्थान पर प्रयुक्त होने वाले अन्य Word हैं : छाया, टीका, उल्था, भाषान्तर आदि। अन्य Indian Customer भाषाओं में ‘अनुवाद’ के समानान्तर प्रयोग होने वाले Word हैं : भाषान्तर(संस्कृत, कन्नड़, मराठी), तर्जुमा (कश्मीरी, सिंधी, उर्दू), विवर्तन, तज्र्जुमा(मलयालम), मोषिये चण्र्यु(तमिल), अनुवादम्(तेलुगु), अनुवाद (संस्कृत, हिन्दी, असमिया, बांग्ला, कन्नड़, ओड़िआ, गुजराती, पंजाबी, सिंधी)।
प्राचीन गुरु-शिष्य परम्परा के समय से ‘अनुवाद’ Word का प्रयोग विभिन्न Meansों में Indian Customer वाड़्मय में होता आ रहा है। गुरुकुल शिक्षा पद्धति में गुरु द्वारा उच्चरित मंत्रों को शिष्यों द्वारा दोहराये जाने को ‘अनुवचन’ या ‘अनुवाक्’ कहा जाता था, जो ‘अनुवाद’ के ही पर्याय हैं। महान् वैयाकरण पाणिनी ने अपने ‘अष्टाध्यायी’ के Single सूत्र में अनुवाद Word का प्रयोग Reseller है : ‘अनुवादे चरणानाम्’। ‘अष्टाध्यायी’ को ‘सिद्धान्त कौमुदी’ के Reseller में प्रस्तुत करने वाले भट्टोजि दीक्षित ने पाणिनी के सूत्र में प्रयुक्त ‘अनुवाद’ Word का Means ‘अवगतार्थस्य प्रतिपादनम्’ Meansात् ‘ज्ञात तथ्य की प्रस्तुति’ Reseller है। ‘वात्स्यायन भाष्य’ में ‘प्रयोजनवान् पुन:कथन’ Meansात् First कही गर्इ बात को उद्देश्यपूर्ण ढंग से पुन: कहना ही अनुवाद माना गया है। इस प्रकार भतर्ृहरि ने भी अनुवाद Word का प्रयोग दुहराने या पुनर्कथन के Means में Reseller है : ‘आवृत्तिरनुवादो वा’। ‘Wordार्थ चिन्तामणि’ में अनुवाद Word की दो व्युत्पत्तियाँ दी गर्इ हैं : ‘प्राप्तस्य पुन: कथनम्’ व ‘ज्ञातार्थस्य प्रतिपादनम्’। First व्युत्पत्ति के According ‘First कहे गये Means ग्रहण कर उसको पुन: कहना अनुवाद है’ और द्वितीय व्युत्पत्ति के According ‘किसी के द्वारा कहे गये को भलीभाँति समझ कर उसका विन्यास करना अनुवाद है। दोनों व्युत्पत्तियों को मिलाकर अगर कहा जाए ‘ज्ञातार्थस्य पुन: कथनम्’, तो स्थिति अधिक स्पष्ट हो जाती है। इस परिभाषा के According किसी के कथन के Means को भलीभाँति समझ लेने के उपरान्त उसे फिर से प्रस्तुत करने का नाम अनुवाद है।
संस्कृत में ‘अनुवाद’ Word का प्रयोग बहुत प्राचीन होते हुए भी हिन्दी में इसका प्रयोग बहुत बाद में हुआ। हिन्दी में आज अनुवाद Word का Means उपर्युक्त Meansों से भिन्न होकर केवल मूल-भाषा के अवतरण में निहित Means या सन्देश की रक्षा करते हुए दूसरी भाषा में प्रतिस्थापन तक सीमित हो गया है। अंग्रेजी विद्वान मोनियर विलियम्स ने First अंग्रेजी में ‘translation’ Word का प्रयोग Reseller था। ‘अनुवाद’ के पर्याय के Reseller में स्वीकृत अंग्रेजी ‘translation’ Word, संस्कृत के ‘अनुवाद’ Word की भाँति, लैटिन के ‘trans’ तथा ‘lation’ के संयोग से बना है, जिसका Means है ‘पार ले जाना’-यानी Single स्थान बिन्दु से Second स्थान बिन्दु पर ले जाना। यहाँ Single स्थान बिन्दु ‘स्रोत-भाषा’ या ‘Source Language’ है तो दूसरा स्थान बिन्दु ‘लक्ष्य-भाषा’ या ‘Target Language’ है और ले जाने वाली वस्तु ‘मूल या स्रोत-भाषा में निहित Means या संदेश होती है। ‘ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी’ में ‘Translation’ का Means दिया गया है-‘a written or spoken rendering of the meaning of a word, speech, book, etc. in an another language.’ ऐसे ही ‘वैब्स्टर डिक्शनरी’ का कहना है-’Translation is a rendering from one language or representational system into another. Translation is an art that involves the recreation of work in another language, for readers with different background.’
बहरहाल, अनुवाद का मूल Means होता है-पूर्व में कथित बात को दोहराना, पुनरुक्ति या अनुवचन जो बाद में पूर्वोक्त निर्देश की व्याख्या, टीका-टिप्पणी करने के लिए प्रयुक्त हुआ। परंतु आज ‘अनुवाद’ Word का Means विस्तार होकर Single भाषा-पाठ (स्रोत-भाषा) के निहितार्थ, संदेशों, उसके सामाजिक-सांस्कृतिक तत्त्वों को यथावत् दूसरी भाषा (लक्ष्य-भाषा) में अंतरण करने का पर्याय बन चुका है। चूँकि दो भिन्न-भिन्न भाषाओं की अलग-अलग प्रकृति, संCreation, संस्कृति, समाज, रीति-रिवाज, रहन-सहन, वेशभूषा होती हैं, अत: Single भाषा में कही गर्इ बात को दूसरी भाषा में यथावत् Resellerांतरित करते समय समतुल्य अभिव्यक्ति खोजने में कभी-कभी बहुत कठिनार्इ होती है। इस दृष्टि से अनुवाद Single चुनौती भरा कार्य प्रतीत होता है जिसके लिए न केवल लक्ष्य-भाषा और स्रोत-भाषा पर अधिकार होना जरूरी है बल्कि अनुद्य सामग्री के विषय और संदर्भ का गहरा ज्ञान भी आवश्यक है। अत: अनुवाद दो भाषाओं के बीच Single सांस्कृतिक सेतु जैसा ही है, जिस पर चलकर दो भिन्न भाषाओं के मध्य स्थित समय तथा दूरी के अंतराल को पार कर भावात्मक Singleता स्थापित की जा सकती है। अनुवाद के इस दोहरी क्रिया को निम्नलिखित आरेख से आसानी से समझा जा सकता है :
अनुवाद की परिभाषा
साधारणत: अनुवाद कर्म में हम Single भाषा में व्यक्त विचारों को दूसरी भाषा में व्यक्त करते हैं। अनुवाद कर्म के मर्मज्ञ विभिन्न मनीषियों द्वारा प्रतिपादित अलग-अलग Wordों में परिभाषित किए हैं। अनुवाद के पूर्ण स्वReseller को समझने के लिए यहाँ कुछ महत्त्वपूर्ण परिभाषाओं का History Reseller जा रहा है :-
(क)-पाश्चात्य चिन्तन
- नाइडा : ‘अनुवाद का तात्पर्य है स्रोत-भाषा में व्यक्त सन्देश के लिए लक्ष्य-भाषा में निकटतम सहज समतुल्य सन्देश को प्रस्तुत करना। यह समतुल्यता First तो Means के स्तर पर होती है फिर शैली के स्तर पर।’
- जॉन कनिंगटन : ‘लेखक ने जो कुछ कहा है, अनुवादक को उसके अनुवाद का प्रयत्न तो करना ही है, जिस ढंग से कहा, उसके निर्वाह का भी प्रयत्न करना चाहिए।’
- कैटफोड : ‘Single भाषा की पाठ्य सामग्री को दूसरी भाषा की समानार्थक पाठ्य सामग्री से प्रतिस्थापना ही अनुवाद है।’ 1.मूल-भाषा (भाषा) 2. मूल भाषा का Means (संदेश) 3. मूल भाषा की संCreation (प्रकृति)
- सैमुएल जॉनसन : ‘मूल भाषा की पाठ्य सामग्री के भावों की रक्षा करते हुए उसे दूसरी भाषा में बदल देना अनुवाद है।’
- फॉरेस्टन : ‘Single भाषा की पाठ्य सामग्री के तत्त्वों को दूसरी भाषा में स्थानान्तरित कर देना अनुवाद कहलाता है। यह ध्यातव्य है कि हम तत्त्व या कथ्य को संCreation (Reseller) से हमेशा अलग नहीं कर सकते हैं।’
- हैलिडे : ‘अनुवाद Single सम्बन्ध है जो दो या दो से अधिक पाठों के बीच होता है, ये पाठ समान स्थिति में समान प्रकार्य सम्पादित करते हैं।’
- न्यूमार्क : ‘अनुवाद Single शिल्प है, जिसमें Single भाषा में व्यक्त सन्देश के स्थान पर दूसरी भाषा के उसी सन्देश को प्रस्तुत करने का प्रयास Reseller जाता है।’
इस प्रकार नाइडा ने अनुवाद में Means पक्ष तथा शैली पक्ष, दोनों को महत्त्व देने के साथ-साथ दोनों की समतुल्यता पर भी बल दिया है। जहाँ नाइडा ने अनुवाद में मूल-पाठ के शिल्प की तुलना में Means पक्ष के अनुवाद को अधिक महत्त्व दिया है, वहीं कैटफोड Means की तुलना में शिल्प सम्बन्धी तत्त्वों को अधिक महत्त्व देते हैं। सैमुएल जॉनसन ने अनुवाद में भावों की रक्षा की बात कही है, तो न्यूमार्क ने अनुवाद कर्म को शिल्प मानते हुए निहित सन्देश को प्रतिस्थापित करने की बात कही है। कैटफोड ने अनुवाद को पाठ सामग्री के प्रतिस्थापन के Reseller में परिभाषित Reseller है। उनके According यह प्रतिस्थापन भाषा के विभिन्न स्तरों (स्वन, स्वनिम, लेखिम), भाषा की वर्ण सम्बन्धी इकाइयों (लिपि, वर्णमाला आदि), Word तथा संCreation के All स्तरों पर होना चाहिए। नाइडा, कैटफोड, न्यूमार्क तथा सैमुएल जॉनसन की उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट हो जाता है कि अनुवाद Single भाषा पाठ में व्यक्त (निहित) सन्देश को दूसरी भाषा पाठ में प्रस्तुत करने की प्रक्रिया का परिणाम है। हैलिडे अनुवाद को प्रक्रिया या उसके परिणाम के Reseller में न देख कर उसे दो भाषा-पाठों के बीच ऐसे सम्बन्ध के Reseller में परिभाषित करते हैं, जो दो भाषाओं के पाठों के मध्य होता है ।
(ख)-Indian Customer चिन्तन
- देवेन्द्रनाथ शर्मा :‘विचारों को Single भाषा से दूसरी भाषा में Resellerान्तरित करना अनुवाद है।’
- भोलानाथ : ‘किसी भाषा में प्राप्त सामग्री को दूसरी भाषा में भाषान्तरण करना अनुवाद है, Second Wordों में Single भाषा में व्यक्त विचारों को यथा सम्भव और सहज अभिव्यक्ति द्वारा दूसरी भाषा में व्यक्त करने का प्रयास ही अनुवाद है।’
- पट्टनायक : ‘अनुवाद वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा सार्थक अनुभव (Meansपूर्ण सन्देश या सन्देश का Means) को Single भाषा-समुदाय से दूसरी भाषा-समुदाय में सम्प्रेषित Reseller जाता है।’
- विनोद गोदरे :‘अनुवाद, स्रोत-भाषा में अभिव्यक्त विचार अथवा व्यक्त अथवा Creation अथवा सूचना साहित्य को यथासम्भव मूल भावना के समानान्तर बोध And संप्रेषण के धरातल पर लक्ष्य-भाषा में अभिव्यक्त करने की प्रक्रिया है।’
- रीतारानी पालीवाल :‘स्रोत-भाषा में व्यक्त प्रतीक व्यवस्था को लक्ष्य-भाषा की सहज प्रतीक व्यवस्था में Resellerान्तरित करने का कार्य अनुवाद है।’
- दंगल झाल्टे : ‘स्रोत-भाषा के मूल पाठ के Means को लक्ष्य-भाषा के परिनिष्ठित पाठ के Reseller में Resellerान्तरण करना अनुवाद है।’
- बालेन्दु शेखर : अनुवाद Single भाषा समुदाय के विचार और अनुभव सामग्री को दूसरी भाषा समुदाय की Wordावली में लगभग यथावत् सम्प्रेषित करने की सोद्देश्यपूर्ण प्रक्रिया है।’
‘अनुवाद, मूल-भाषा या स्रोत-भाषा में निहित Means (या सन्देश) व शैली को यथा सम्भव सहज समतुल्य Reseller में लक्ष्य-भाषा की प्रकृति व शैली के According परिवर्तित करने की सोद्देश्यपूर्ण प्रक्रिया है।’
अनुवाद और अनुवादक
साधारणत: Single भाषा-पाठ मे निहित Means या सन्देश को दूसरी भाषा-पाठ में यथावत व्यक्त करना Meansात् Single भाषा में कही गर्इ बात को दूसरी भाषा में कहना ‘अनुवाद’ है। परन्तु यह कार्य उतना आसान नहीं, जितना कहने या सुनने में जान पड़ रहा है। चूँकि दो भिन्न भाषाओं की अलग-अलग प्रकृति, संCreation, संस्कृति, समाज, रीति-रिवाज़, रहन-सहन, वेश-भूषा होती है, अत: Single भाषा में कही गर्इ बात को दूसरी भाषा में यथावत् Resellerान्तरित करते समय समतुल्य अभिव्यक्ति खोजने में कभी-कभी बहुत कठिनार्इ का सामना करना पड़ता है। इस दृष्टि से अनुवाद Single चुनौती भरा कार्य प्रतीत होता है, जिसके लिए न केवल लक्ष्य-भाषा और स्रोत-भाषा पर अधिकार होना ज़रूरी है बल्कि अनुद्य सामग्री के विषय और सन्दर्भ का गहरा ज्ञान भी आवश्यक है। अत: अनुवाद दो भाषाओं के बीच Single सांस्कृतिक सेतु जैसा ही है, जिस पर चलकर दो भिन्न भाषाओं के मध्य स्थित समय तथा दूरी के अन्तराल को पार कर भावात्मक Singleता स्थापित की जा सकती है।
अनुवाद मूल लेखन से भी अधिक कठिन कार्य है। इसकी सबसे पहली और अनिवार्य अपेक्षा स्रोत-भाषा And लक्ष्य-भाषा का अच्छा ज्ञान है। हर भाषा विशिष्ट परिवेश में पनपती है, अत: उसकी ध्वन्यात्मक, शाब्दिक, वाक्यात्मक, मुहावरे और लोकोक्ति विषयक निजी विशेषताएँ होती हैं जो अन्य भाषाओं से काफ़ी भिन्न होती हैं। जिससे स्रोत-भाषा की पूर्णत: समान अभिव्यक्ति लक्ष्य-भाषा में कर पाना सर्वदा सम्भव नहीं होता है। स्रोत-भाषा की अभिव्यक्ति में जो Means व्यक्त होता है उसकी तुलना में लक्ष्य-भाषा में व्यक्त Reseller गया Means या तो विस्तृत या संकुचित या कुछ भिन्न होता है। चूँकि स्रोत-भाषा और लक्ष्य-भाषा में पूर्णत: समतुल्य अभिव्यक्तियाँ नहीं मिलतीं, अत: अनुवादक कभी-कभी उनमें समानता लाने के मोह में ऐसे प्रयोग कर देता है जो लक्ष्य-भाषा की प्रकृति में सहज नहीं होते। भिन्न-भिन्न भाषाओं में अनुवाद करते समय भिन्न-भिन्न समस्याएँ सामने आती हैं। जैसे चीनी, जापानी आदि भाषाएँ ध्वन्यात्मक न होने के कारण उनमें तकनीकी Wordों को अनूदित करना श्रम साध्य होता है। अनुवाद करते समय नामों के अनुवाद की समस्या भी सामने आती है। लिप्यन्तरण करने पर उनके उच्चारण में बहुत अन्तर आ जाता है। स्थान विशेष भी भाषा को बहुत प्रभावित करता है। उदाहरण के लिए एस्किमो भाषा में बर्फ के ग्यारह नाम हैं जिसे दूसरी भाषा में अनुवाद करना सम्भव नहीं है।
अनुवादक के लिए मूल-पाठ का सन्दर्भ जानना, काल व परिस्थितियों से अवगत होना भी बहुत आवश्यक है अनुवाद की तुलना परकाया प्रवेश से की गर्इ है। भाषा जीवन्त और निरन्तर परिवर्तनशील है। भाषा की इस प्रकृति के कारण अनुवाद का कार्य दुगुना कठिन हो जाता है। अत: अनुवादक द्वारा Single भाषा में कही गर्इ बात को दूसरी भाषा में व्यक्त करने की चेष्टा मात्र की जा सकती है। अनुवादक के लिए उन मानसिक संवेदनाओं और अनुभूतियों तक पैठ पाना कठिन होता है जिनमें मूल लेखक अपनी कृति का सर्जन करते हैं।
अनुवाद कर्म : Single बहस
अनुवाद कर्म के मर्मज्ञ विद्वानों द्वारा प्रतिपादित अनुवाद की परिभाषाएँ निश्चय ही अनुवाद के विभिन्न सकारात्मक पहलुओं व विशेषताओं पर प्रकाश डालती हैं। पर अनुवाद के सम्बन्ध में कुछ विद्वानों ने ऐसे भी मत व्यक्त किए हैं जो अनुवाद विरोधी जान पड़ते हैं। कुछ ऐसे Historyनीय कथन यहाँ द्रष्टव्य हैं :
- ’Translation is a sin’ Meansात् अनुवाद करना पाप है । (-शॅवरमैन )
- ’There is no such thing as translation’ Meansात् अनुवाद नाम की कोर्इ चीज़ नहीं होती। (-मे )
- ’Translation is a Compromise’ Meansात् अनुवाद महज Single समझौता है। (-जोवेट )
- ’Traduttore traditore’ Meansात् अनुवादक बड़े गद्दार होते हैं। (-इतालवी कहावत)
- कला की Single विधा के Reseller में अनुवाद कभी सफल नहीं हो सकते। (-राजगोपालाचारी )
किन्तु अनुवादक बनने या अनुवाद करने के पीछे जो चुनौती छिपी रहती है वह भी सर्वविदित है । फिर भी आज बाज़ार में अनूदित कृतियाँ, मूल Creationओं के बीच Single स्वतंत्र सत्ता लिए खड़ी हैं। आज अनुवाद कर्म न तो ‘दोयम दर्जे’ का है और न ही ‘Thankless job’ बल्कि दो भाषाओं के मूल में निहित दो संस्कृतियों को करीब लाने वाला महान् कार्य है । सच तो यह है कि मौजूदा परिप्रेक्ष्य में हम Single पल भी अनुवाद के बिना रहने की कल्पना नहीं कर सकते । कार्ल वॉसलर के Wordों में ‘If one denies the concept of translation, one must give up the concept of a language community.’ इसमें कोर्इ दो राय नहीं कि अनुवाद की राह में सैकड़ों काँटे हैं, कर्इ मुश्किलों का सामना करना पड़ता है, फिर भी दो भाषाओं की संCreationत्मक, व्याकरणिक, सांस्कृतिक और मिथकीय जैसी कर्इ गुत्थियों को सुलझाकर इस दुष्कर कार्य को Reseller जाता रहा है। हमें इन मुश्किलों से घबरा कर अनुवाद से दूर नहीं भागना चाहिए।
अनुवाद और अनुवादक
‘अनुवाद, अनुवाद न लगे’-यही अनुवाद की सुन्दरता है। और अनुवाद, अनुवाद न लगने के लिए विद्वानों ने अनुवादक के गुण, अनुवादक के दायित्व, अनुवादक से अपेक्षाएँ, अनुवाद की विशेषताओं के सन्दर्भ में जिन बातों का History Reseller है, उनका सार इस प्रकार है :
क-अनुवादक के गुण :
- गहरी सामाजिक प्रतिबद्धता,
- सर्जनात्मक प्रतिभा,
- स्रोत-भाषा And लक्ष्य-भाषा की सम्यक् जानकारी,
- जीवन का व्यापक और गहरा अनुभव,
- विभिन्न विषयों का ज्ञान।
ख-अनुवादक के दायित्व :
- मूलनिष्ठता का निर्वाह,
- बोधगम्यता And सम्प्रेषणीयता,
- निष्ठा And अभ्यास की निरन्तरता,
- विषय का सम्यक् ज्ञान तथा उसमें अभिरुचि।
ग-अनुवादक से अपेक्षाएँ :
- अभिव्यक्ति पर पूर्ण नियंत्रण,
- विषय के अनुReseller भाषा विधान,
- स्रोत-भाषा के साहित्य And समय के प्रति अभिरुचि का विकास।
घ-सफल अनुवाद की पहचान :
- अनुवाद मूलनिष्ठ हो,
- उसकी भाषा शुद्ध व सुवाच्य होने के साथ-साथ प्रवाहमयी भी हो,
- अनुवाद की गंध से यथा सम्भव मुक्त हो।
अत: इतना तो स्पष्ट है कि अनुवाद कर्म उतना आसान काम नहीं है, जितना समझा जाता रहा है। यह भी सच है कि सफल अनुवाद हेतु अनुवादक से जिन गुण, दायित्व व अपेक्षाओं की आशा की जाती हैं, वे सब के सब किसी अनुवादक में या शत-प्रतिशत उसके अनुवाद में ढूँढना शायद लाज़मी नहीं है। बावजूद इसके ‘God of Small Things‘Wings of Fire‘Mid-night Children‘Suitable Boy‘The Company of Women’ जैसी कृतियों के सुन्दर अनुवाद बहुत ही कम समय में होकर प्रशंसित हुए। इन अनूदित कृतियों को पढ़ने से स्पष्ट हो जाता है कि अनुवादकों ने मूल के समान Creationधर्मिता का निर्वाह ही नहीं Reseller बल्कि लक्ष्य-भाषा की प्रकृति के According विषय वस्तु के साथ न्याय भी Reseller है। इसमें अनुवादकों की नव-प्रवर्तनकारी प्रतिभा के दर्शन होते हैं। आज अनुवाद कर्म के प्रति समर्पित अनुवाद-पुजारियों की कमी नहीं है जो अनुवाद कर्म की चुनौतियों को स्वीकार कर उसे मूल के अनुReseller अभिव्यक्ति देकर अपने उत्तरदायित्व को बखूबी निभा रहे हैं।
परन्तु सरकारी कार्यालयों में कार्यरत अनुवादक और स्वेच्छा से अनुवाद कार्य के प्रति समर्पित अनुवादक दो भिन्न दुनिया में विचरण करते नज़र आते हैं। पहला वर्ग नीरस कार्यालयी अनुवाद में उलझा रहता है तो दूसरा सृजनात्मक साहित्य का अनुवाद कर Single साथ धन व यश कमा लेता है। सरकारी अनुवादक अक्सर कार्यालय में अनुवाद करते समय लक्ष्य-भाषा की प्रकृति, संCreation, स्वReseller आदि पर उतना ध्यान नहीं देते, जितना देना चाहिए। परिणामस्वReseller अनुवाद दुरूह, बोझिल और हास्यास्पद हो जाता है तथा कभी-कभी Means का अनर्थ भी। Single छोटे-से उदाहरण द्वारा इस बात को समझा जा सकता है। अंग्रेजी का Single छोटा सा वाक्य, ‘He can do the
job who thinks he can do’ का अनुवाद मिलता है, ‘वही कोर्इ काम कर सकता है जो यह समझता है कि वह कर सकता है।’ यहाँ द्रष्टव्य है कि ‘वह कर सकता है’ हिन्दी की प्रकृति के अनुकूल नहीं है, इसका सही अनुवाद होगा-’वही कोर्इ काम कर सकता है, जो यह समझता है कि मैं कर सकता हूँ।’ इस तरह के कर्इ उदाहरण देखे जा सकते हैं :
मूल | गलत अनुवाद | सही अनुवाद |
---|---|---|
Transfer (तबादले के सन्दर्भ में) Precious stone Near future Oil seed Still child Labour pain White elephant House breaker White ants Soft currency Total war Grey beared Warm welcome Cold blooded murder |
हस्तान्तरण कीमती पत्थर निकट भविष्य में तेल के बीज शान्त बच्चा श्रम पीड़ा सफेद हाथी घर तोड़ने वाला सफेद च्यूँटी नरम मुद्रा सर्वांगीण Fight भूरे भालू गर्म-स्वागत शीत रुधिर हत्या |
स्थानान्तरण जवाहरात जल्द ही तिलहन मृत बच्चा प्रसव पीड़ा महँगा सौदा सेंध लगाने वाला दीमक सुलभ मुद्रा सम्यक् Fight अधेड़ आदमी हार्दिक स्वागत नृशंस हत्या |
दरअसल ये All उदाहरण हमारी अज्ञानता को नहीं, बल्कि हमारी जल्दबाजी को दर्शाते हैं। अत: अनुवाद में हमें सदा स्रोत-भाषा के भाषिक, सांस्कृतिक सन्दर्भ को समझते हुए, विषय की तह में जाकर मूल Means की आत्मा को लक्ष्य-भाषा के भाषिक, सांस्कृतिक सन्दर्भानुसार अन्तरित करना चाहिए। अन्यथा ‘I am afraid that’ का अनुवाद ‘मुझे डर है कि’ हो जाने में देर नहीं लगती। इसके अलावा हमें Means के बारीक भेद पर भी ध्यान देना चाहिए। उदाहरण के लिए अंग्रेजी के दो छोटे वाक्यों को लेते हैं : ‘He compared me to moon.* और ^He compared me with moon.’ दोनों वाक्यों के अनुवाद क्रमानुसार होंगे-’उसने चन्द्रमा से मेरी उपमा दी’ और ‘उसने चन्द्रमा से मेरी तुलना की।’ अनुवाद में देश-काल, वातावरण का भी अलग महत्त्व है। हमारे लिए जो ‘निकट पूर्व’ है, अंग्रेजों के लिए ‘सुदूर पूर्व’ होगा । इसके अलावा दो समानाथ्र्ाी Wordों के लिए अनुवाद में भी दो सूक्ष्म Means भेदक Wordों का प्रयोग करना चाहिए। उदाहरण के तौर पर ‘statesman’ के लिए ‘राजमर्मज्ञ’ और ‘politician’ के लिए ‘राजनीतिक’, ‘criticism’ के लिए ‘आलोचना’ और ‘review’ के लिए ‘समीक्षा’, ‘development’ के लिए ‘विकास’ और ‘evolution’ के लिए ‘विकासक्रम’, ‘honour’ के लिए ‘सम्मान’ और ‘prestige’ के लिए ‘प्रतिष्ठा’, ‘trade’ के लिए ‘व्यापार’ और ‘business’ के लिए ‘व्यवसाय’, ‘war’ के लिए ‘Fight’ और ‘battle’ के लिए ‘लड़ार्इ’ Word का प्रयोग Reseller जा सकता है। इस प्रकार ‘anguish’ के लिए ‘व्यथा’ और ‘sorrow’ के लिए ‘दु:ख’, ‘regret’ के लिए ‘खेद’ और ‘agony’ के लिए ‘वेदना’, ‘gloom’ के लिए ‘विषाद’ और ‘pain’ के लिए ‘पीड़ा’ व ‘mourn’ के लिए ‘शोक’ को ले सकते हैं।
इससे अनुवाद को SingleResellerता मिलने के साथ-साथ कुछ हिन्दी Word भी स्थिर हो जाएँगे। मगर यह बात केवल अभिधा Wordशक्ति पर आधारित कार्यालयीन या तकनीकी विषयों के अनुवाद पर लागू हो सकती है, लक्षणा या व्यंजना प्रधान सृजनात्मक विषयों (ख़ासकर कविता) पर नहीं। इसीलिए ‘अनुवाद कर्म ‘ में विषय के सन्दर्भ व पाठक-वर्ग के साथ-साथ Creation के उद्देश्य को भी ध्यान में रखना पड़ता है। अत: अनुवाद कर्म में निहित बहुकोणीय व बहुस्तरीय चिन्तन को किसी सिद्धान्त या प्रक्रिया के बंधन में बाँध कर इसको यंत्रवत प्रक्रिया नहीं बनाया जा सकता। इस कर्म में अनुवादक की बहुज्ञता ही नहीं, उसकी दूरदृष्टि की भी ज़रूरत होती है।
अनुवाद के क्षेत्र
आज की दुनिया में अनुवाद का क्षेत्र बहुत व्यापक हो गया है। शायद ही कोर्इ क्षेत्र बचा हो जिसमें अनुवाद की उपादेयता को सिद्ध न Reseller जा सके। इसलिए यह कहना अतिशयोक्ति न होगी कि आधुनिक युग के जितने भी क्षेत्र हैं सबके सब अनुवाद के भी क्षेत्र हैं, चाहे न्यायालय हो या कार्यालय, विज्ञान And प्रौद्योगिकी हो या शिक्षा, संचार हो या पत्रकारिता, साहित्य का हो या सांस्कृतिक सम्बन्ध। इन All क्षेत्रों में अनुवाद की महत्ता And उपादेयता को सहज ही देखा-परखा जा सकता है। Discussion की शुरुआत न्यायालय क्षेत्र से करते हैं।
- न्यायालय : अदालतों की भाषा प्राय: अंग्रेजी में होती है। इनमें मुकद्दमों के लिए आवश्यक कागजात अक्सर प्रादेशिक भाषा में होते हैं, किन्तु पैरवी अंग्रेजी में ही होती है। इस वातावरण में अंग्रेजी और प्रादेशिक भाषा का बारी-बारी से परस्पर अनुवाद Reseller जाता है।
- सरकारी कार्यालय : आज़ादी से पूर्व हमारे सरकारी कार्यालयों की भाषा अंग्रेजी थी। हिन्दी को राजभाषा के Reseller में मान्यता मिलने के साथ ही सरकारी कार्यालयों के अंग्रेजी दस्तावेजों का हिन्दी अनुवाद ज़रूरी हो गया। इसी के मद्देनज़र सरकारी कार्यालयों में राजभाषा प्रकोष्ठ की स्थापना कर अंगे्रजी दस्तावेज़ों का अनुवाद तेजी से हो रहा है।
- विज्ञान And प्रौद्योगिकी : देश-विदेश में हो रहे विज्ञान And प्रौद्योगिकी के गहन अनुसंधान के क्षेत्र में तो सारा लेखन-कार्य उन्हीं की अपनी भाषा में Reseller जा रहा है। इस अनुसंधान को विश्व पटल पर रखने के लिए अनुवाद ही Single मात्र साधन है। इसके माध्यम से नर्इ खोजों को आसानी से सबों तक पहुँचाया जा सकता है। इस दृष्टि से शोध And अनुसंधान के क्षेत्र में अनुवाद बहुत ही महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
- शिक्षा : भारत जैसे बहुभाषा-भाषी देश के शिक्षा-क्षेत्र में अनुवाद की भूमिका को कौन नकार सकता है। कहना अतिशयोक्ति न होगी कि शिक्षा का क्षेत्र अनुवाद के बिना Single कदम भी आगे नहीं बढ़ सकता। देश की प्रगति के लिए परिचयात्मक साहित्य, ज्ञानात्मक साहित्य And वैज्ञानिक साहित्य का अनुवाद बहुत ज़रूरी है। आधुनिक युग में विज्ञान, समाज-विज्ञान, Meansशास्त्र, भौतिकी, गणित आदि विषय की पाठ्य-सामग्री अधिकतर अंग्रेजी में लिखी जाती है। हिन्दी प्रदेशों के विद्यार्थियों की सुविधा के लिए इन सब ज्ञानात्मक अंग्रेजी पुस्तकों का हिन्दी अनुवाद तो हो ही रहा है, अन्य प्रादेशिक भाषाओं में भी इस ज्ञान-सम्पदा को Resellerान्तरित Reseller जा रहा है।
- जनसंचार : जनसंचार के क्षेत्र में अनुवाद का प्रयोग अनिवार्य होता है। इनमें मुख्य हैं समाचार-पत्र, रेडियो, दूरदर्शन। ये अत्यन्त लोकप्रिय हैं और हर भाषा-प्रदेश में इनका प्रचार बढ़ रहा है। आकाशवाणी And दूरदर्शन में भारत की All प्रमुख भाषाओं में समाचार प्रसारित होते हैं। इनमें प्रतिदिन 22 भाषाओं में खबरें प्रसारित होती हैं। इनकी तैयारी अनुवादकों द्वारा की जाती है।
- साहित्य : साहित्य के क्षेत्र में अनुवाद वरदान साबित हो चुका है। प्राचीन और आधुनिक साहित्य का परिचय दूरदराज के पाठक अनुवाद के माध्यम से पाते हैं। ‘Indian Customer साहित्य’ की परिकल्पना अनुवाद के माध्यम से ही संभव हुर्इ है। विश्व-साहित्य का परिचय भी हम अनुवाद के माध्यम से ही पाते हैं। साहित्य के क्षेत्र में अनुवाद के कार्य ने साहित्यों के तुलनात्मक अध्ययन को सुगम बना दिया है। विश्व की समृद्ध भाषाओं के साहित्यों का अनुवाद आज हमारे लिए कितना ज़रूरी है कहने या समझाने की Need नहीं।
- अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध : अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध अनुवाद का सबसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्र है। विभिन्न देशों के प्रतिनिधियों का संवाद मौखिक अनुवादक की सहायता से ही होता है। प्राय: All देशों में Single Second देशों के राजदूत रहते हैं और उनके कार्यालय भी होते हैं। राजदूतों को कर्इ भाषाएँ बोलने का अभ्यास कराया जाता है। फिर भी देशों के प्रमुख प्रतिनिधि अपने विचार अपनी ही भाषा में प्रस्तुत करते हैं। उनके अनुवाद की व्यवस्था होती है। इस प्रकार हम देखते हैं कि अन्तर्राष्ट्रीय मैत्री And शान्ति को बरकरार रखने की दृष्टि से अनुवाद की भूमिका बहुत ही महत्त्वपूर्ण है।
- संस्कृति : अनुवाद को ‘सांस्कृतिक सेतु’ कहा गया है। Human-Human को Single Second के निकट लाने में, Human जीवन को अधिक सुखी और सम्पन्न बनाने में अनुवाद की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। ‘भाषाओं की अनेकता’ मनुष्य को Single Second से अलग ही नहीं करती, उसे कमजोर, ज्ञान की दृष्टि से निर्धन और संवेदन शून्य भी बनाती है। ‘विश्वबंधुत्व की स्थापना’ And ‘राष्ट्रीय Singleता’ को बरकरार रखने की दृष्टि से अनुवाद Single तरह से सांस्कृतिक सेतु की तरह महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहा है।