स्वास्थ्य की अवधारणा And परिभाषाएँ

स्वास्थ्य की अवधारणा

स्वास्थ्य जीवन का सबसे महत्त्वपूर्ण अंग है। इसकी अवधारणा को समझने के लिए विभिन्न क्षेत्रों से जुड़ी स्वास्थ्य संबंधी अवधारणाओं को समझना होगा, क्योंकि सामाजिक जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में इसे न केवल अलग-अलग Reseller से परिभाषित Reseller गया है बल्कि उन क्षेत्रों में इसके सिद्धान्त भी अलग-अलग हैं। वर्तमान वैज्ञानिक युग में नवीन शोधों के आधार पर स्वास्थ्य संबंधी नित नर्इ विचारधाराएँ सामने आने से इसकी व्याख्याओं में भी समय-समय पर परिवर्तन होता रहा है। स्वास्थ्य को Single व्यक्तिगत समस्या के साथ-साथ Humanीय, सामाजिक And पर्यावरणीय लक्ष्य के Reseller में भी देखा गया है। इस दृष्टि से स्वास्थ्य की अवधारणाएँ मुख्य है।- 1. जैव-चिकित्सकीय अवधारणा 2. पारिस्थितिकीय अवधारणा 3. मनोसामाजिक अवधारणा 4. समग्र-स्वास्थ्य अवधारणा।

1. जैव-चिकित्सकीय अवधारणा

व्यक्ति को स्वस्थ तब कहा जाता है जब उसे कोर्इ रोग नहीं होता है Meansात् रोग न होने की अवस्था स्वास्थ्य है। इस विचारधारा के आधार पर ‘‘जैव-चिकित्सकीय अवधारणा’’ का जन्म हुआ। इस अवधारणा के आधार पर ‘‘रोगों के रोगाणु सिद्धान्त’’ का विकास हुआ। इस सिद्धान्त के आधार पर विभिन्न बीमारियों तथा उनके रोगाणुओं की खोज की गर्इ तथा इन रोगाणुओं को समाप्त करने के उपाय भी खोज लिये गये। निश्चित ही यह सिद्धान्त प्राणी जगत् के साथ- साथ वनस्पति जगत् के लिए भी वरदान सिद्ध हुआ है लेकिन इसमें स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले पर्यावरणीय, सामाजिक, मनोवैज्ञानिक, सांस्कृतिक व अन्य कारकों को कोर्इ महत्त्व नहीं दिया गया परिणामत: चिकित्सा विज्ञान इस महत्त्वपूर्ण उपलब्धि के बाद भी अनेक बीमारियों, जैसे-कुपोषण, नशे की लत, पर्यावरण-प्रदूषण, मानसिक रोग आदि का कोर्इ सफल निदान नहीं कर सका।

2. पारिस्थितिकीय अवधारणा

विभिé समस्याओं के निवारण में चिकित्सा विज्ञान की असफलताओं ने अन्य अवधारणाओं को जन्म दिया। उनमें से Single प्रमुख ‘‘पारिस्थितिकीय अवधारणा’’ है। पारििस्थ्तिकी, जीवों तथा उनके पर्यावरण के परस्पर संबंधों का विज्ञान है। पारिस्थितिकीविदों ने Single परिकल्पना प्रस्तुत की, जिसके According स्वास्थ्य Human और उसके पर्यावरण के बीच Single शक्तिशाली संतुलन की अवस्था है तथा बीमारी उसमें असंतुलन का परिणाम। पर्यावरणविदों के According स्वास्थ्य वह अवस्था है, जिसमें असुविधा तथा दर्द न्यूनतम् होते है। तथा पर्यावरण के साथ सतत् सामंजस्य बना रहता है, जिसके परिणाम स्वReseller All शारीरिक And मानसिक क्रियाएँ उच्चतम् स्तर पर चलती रहती है। Human की पारिस्थितिकीय And सांस्कृतिक संतुलन की क्षमता में नकारात्मक परिवर्तन न केवल रोगों की उत्पत्ति का कारण बनता है बल्कि इससे खाद्य पदार्थों की उपलब्धता तथा जनसंख्या विस्फोट पर भी असर पड़ता है, जो भविष्य में स्वास्थ्य को प्रभावित करते है। इस अवधारणा के द्वारा दो मुद्दे प्रमुखता से उठाये जाते है।-First अपूर्ण Human, द्वितीय अपूर्ण पर्यावरण। अपूर्ण Human से तात्पर्य Human के असंतुलित व्यवहार से है, जबकि अपूर्ण पर्यावरण से आशय पर्यावरण के अनिवार्य घटकों के असंतुलन से है। इन दोनों के मध्य अगर किसी को सर्वाद्विाक हानि होती है तो वह है-स्वास्थ्य। नवीन शोधों के According प्राकृतिक पर्यावरण के प्रति Human का सामंजस्यपूर्ण और संतुलित व्यवहार अच्छे स्वास्थ्य और लम्बी उम्र का जन्म देता है। जो तत्त्व पर्यावरण के घटक तत्त्व है।, उन्हीं तत्त्वों से व्यक्ति का निर्माण तथा विकास होता है इसलिए व्यक्ति और पर्यावरण के मध्य आवश्यक तत्त्वों का लेन-देन अनवरत चलता रहता है, जिससे निरन्तर व्यक्ति का चहुंमुखी विकास होता रहता है And व्यक्ति स्वस्थ रहता है। इसलिए लेन-देन के इस क्रम में निरन्तरता तथा संतुलन आवश्यक है।

3. मनोसामाजिक अवधारणा

सांस्कृतिक, आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक And मनोविज्ञान के क्षेत्र में वर्तमान में किये गये शोधों से यह निष्कर्ष निकलता है कि स्वास्थ्य का दायरा केवल जैव-चिकित्सा तक ही सीमित नहीं है बल्कि इस पर सांस्कृतिक, आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक, मनोवैज्ञानिक व अन्य कारकों का भी गहरा प्रभाव पड़ता है। सांस्कृतिक रीति-रिवाज व्यक्ति को घिसी-पिटी आधारहीन लीक पर चलने को विवश करते है। जबकि कमजोर आर्थिक स्थिति में व्यक्ति स्वास्थ्य के लिए आवश्यक न्यूनतम सुविधाएँ भी प्राप्त नहीं कर पाता है। समाज विशेष के प्रचलित नियम व्यक्ति को शारीरिक व मानसिक Reseller से कमजोर कर देते है। राजनैतिक कारणों से सरकारी सुविधाएँ जन-सामान्य तक नहीं पहुंच पाती है। मनोवैज्ञानिक स्थितियां यदि विपरीत हुर्इ तो व्यक्ति तनाव, कुण्ठा, अवसाद आदि रोगों से ग्रसित हो सकता है। अत: जब किसी समाज, राज्य या राष्ट्र विशेष के स्वास्थ्य का आकलन करते है। तब उपरोक्त All तथ्यों को ध्यान में रखा जाता है।

4. समग्र अवधारणा

अगर उपरोक्त First, द्वितीय And तृतीय अवधारणा को मिला दिया जाए तो स्वास्थ्य की समग्र अवधारणा सामने आ जाती है Meansात् समग्र स्वास्थ्य की अवधारणा इन All कारकों को Single साथ सम्मिलित करके प्राप्त की जा सकती है। इस अवधारणा के According स्वास्थ्य Single ऐसी गेंद है, जिसमें कर्इ चैम्बर या कक्ष है। प्रत्येक कक्ष में हवा जाने की अलग-अलग व्यवस्था है। गेंद तभी फूली हुर्इ होगी जब प्रत्येक कक्ष में पूर्ण हवा भरी हुर्इ हो। स्वास्थ्य Resellerी गेंद के चैम्बर है।-रोग मुक्ति, शुद्ध हवा, शुद्ध जल, अप्रदुषित मृदा, कम शोरगुल तथा सांस्कृतिक, आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक, शारीरिक, मानसिक तथा भावनात्मक मजबूती।

समग्र अवधारणा में All कारकों को साथ लेकर व्यक्ति के सम्पूर्ण स्वास्थ्य को पर्यावरण के संदर्भ में देखा जाता है और फिर उसके उच्चतम स्तर को प्राप्त करने की दिशा में सार्थक प्रयास Reseller जाता है Meansात् समाज के All घटक जैसे-शिक्षा, भोजन, रोजगार, आवास, सामाजिक व मानसिक दशाएँ आदि, स्वास्थ्य को किसी-न-किसी Reseller से प्रभावित करते है। परन्तु All का लक्ष्य होता है-अच्छे स्वास्थ्य की Safty And संवर्धन। स्वास्थ्य के संबंध में Indian Customer प्राचीन मान्यता यह है कि स्वस्थ मन, स्वस्थ शरीर, स्वस्थ परिवार के लिए स्वस्थ वातावरण आवश्यक है। इसीलिए Indian Customer सभ्यता में जल, भूमि, वायु, दिशा, वनस्पति, जीव आदि को सम्मानजनक स्थान दिया गया है।

स्वास्थ्य की परिभाषाएँ

स्वास्थ्य विज्ञान को अंग्रेजी भाषा में हाइजीन (Hygiene) कहते है। इस Word की व्युत्पत्ति ग्रीक भाषा में ‘हार्इजिया’ (Hygea) Word से हुर्इ है। ‘ग्रीक’ को पौराणिक गाथाओं में ‘हार्इजिया’ स्वास्थ्य की देवी का नाम है। इस देवी को यूनान के निवासी स्वास्थ्य का रक्षक मानते थे। इस प्रकार ‘हाइजीन’ Word का Means ‘स्वास्थ्य रक्षा’ से संबंधित है। ‘स्वास्थ्य’ Word का अंग्रेजी Resellerान्तरण हेल्थ (Health) है, जिसका Means है-Windows Hosting व सुन्दर रहना। Wordकोष के According शरीर, मन और आत्मा का प्रसन्नचित्त और निरोग रहना ही स्वास्थ्य है। स्वास्थ्य की कुछ महत्त्वपूर्ण परिभाषाएँ है।-

  1. वेब्सटर – शरीर, मन तथा चेतना की ओजस्वी अवस्था, जिसमें समस्त शारीरिक बीमारी और दर्द का अभाव हो, की स्थिति को स्वास्थ्य कहते है।
  2. पर्किन्स – शरीर की Creation और क्रिया की ऐसी सापेक्ष साम्यावस्था जो किसी भी प्रतिकूल स्थिति में शरीर को सफलतापूर्वक, संतुलित And जीवन्त रखती है, स्वास्थ्य कहलाती है। स्वास्थ्य शरीर के आन्तरिक अवयवों और इन्हें आहत करने वाले कारकों के बीच निष्क्रिय प्रक्रिया न होकर इन दोनों के बीच सामंजस्य स्थापित करने की सक्रिय प्रक्रिया है।
  3. ऑक्सफोर्ड इंग्लिश कोष – शरीर और मन की तेजपूर्ण स्थिति, ऐसी अवस्था जिसमें समस्त शारीरिक और मानसिक कार्य समय से और पूरी क्षमता से सम्पादित हो रहे हों, ऐसी अवस्था को स्वास्थ्य कहते है।
  4. जे.एफ. विलियम्स – स्वास्थ्य जीवन का वह गुण है, जो व्यक्ति को अधिक सुखी ढंग से जीवित रहने तथा सर्वोत्तम Reseller से सेवा करने के योग्य बनाता है। 
  5. मेरीबेकरऐड्डी – स्वास्थ्य वस्तु अवस्था न होकर मानसिक अवस्था है। 
  6. विश्व स्वास्थ्य संगठन (नं. 137) 1957 – किसी आनुवांशिक और पर्यावरणीय स्थिति में मनुष्य के जीवन चर्या का ऐसा गुणवत्तापूर्ण स्तर, जिसमें उसके द्वारा सारे कार्य यथोचित समय और सुचारू Reseller से सम्पादित किये जा रहे हों, स्वाथ्य कहलाता है। 
  7. टैबर मेडिकल इंसाइक्लोपीडिया – स्वास्थ्य वह दशा है, जिससे शरीर और मस्तिष्क के समस्त कार्य सामान्य Reseller से सक्रियतापूर्वक सम्पन्न होते है। 
  8. डयूवोस, आर., 1968 – जीवन का ऐसा उपक्रम, जो व्यक्ति को प्रतिकूल परिस्थितियों और अपूर्व विश्व में सुखपूर्वक जीवन जीने का मार्ग प्रशस्त करता है, स्वास्थ्य कहलाता है। –
  9. आयुर्वेद – समदोष: समानिश्य समधातुमल क्रिया। प्रसन्नत्येन्द्रियमना: स्वस्था इत्ययिधीयते।। Means-वात, पित्त And कफ-ये त्रिदोष सम हों, जठराग्नि, भूताग्नि आदि अग्नि सम हो, धातु And मल, मूत्र आदि की क्रिया विकार रहित हो तथा जिसकी आत्मा, इन्द्रिय और मन प्रसन्न हों, वही स्वस्थ है। 
  10. संस्कृत व्युत्पत्ति के According-’’स्वस्मिन् तिष्ठति इति स्वस्था:’’ जो स्व में रहता है, वह स्वस्थ है।
  11. विश्व स्वास्थ्य संगठन, 1948 – स्वास्थ्य पूर्ण शारीरिक, मानसिक And सामाजिक संतुलन की अवस्था है, केवल रोग या अपंगता का अभाव नहीं। 

वर्तमान में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस परिभाषा में कुछ संशोधन Reseller है, जिसमें शारीरिक, मानसिक और सामाजिक संतुलन के साथ आर्थिक And सामाजिक Reseller से उपयोगी जीवन को स्वास्थ्य कहा गया है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन की परिभाषा की आलोचना यह कहकर की गर्इ कि यह मात्र आदर्शवादी है, इसमें व्यवहारिकता की कमी है। आलोचना करने वालों का कहना है कि विश्व में शायद ही कोर्इ व्यक्ति ऐसा होगा जो इस परिभाषा पर खरा उतर सके। इस दृष्टि से संसार का प्रत्येक व्यक्ति अस्वस्थ है। आलोचना के बाद भी यह परिभाषा सर्वाधिक मान्य है तथा स्वास्थ्य का लक्ष्य प्राप्त करने की दिशा में विश्व स्वास्थ्य संगठन की इसी परिभाषा को आधार बनाये जाने की स्वीकृति प्राप्त है।

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