संघर्ष का Means, परिभाषा And प्रकार

संघर्ष Human सम्बन्धों में सतत रहने वाली Single प्रक्रिया है। जब व्यक्ति व्यक्ति के बीच सहयोग नहीं होता अथवा जब वे Single Second के प्रति तटस्थ भी नहीं होते, तो संघर्ष की स्थिति उत्पन्न हो ही जाती है। संघर्ष को समाज में अस्वाभाविक भी नहीं कहा जा सकता क्योंकि जब सीमित लक्ष्यों को अनेक व्यक्ति प्राप्त करना चाहें तो संघर्ष स्वाभाविक ही है।

Conflict Word लेटिन भाषा के Con+Fligo से मिलकर बना है Con का Means है together तथा Fligo का Means है-To Strike. अत: संघर्ष का Means है-लड़ना, प्रभुत्व के लिए संघर्ष करना, विरोध करना, किसी पर काबू पाना आदि। ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी के According-दो वर्गों में या समूहों के बीच सशस्त्र प्रतिरोध, लड़ार्इ या Fight संघर्ष है। विपरीत सिद्धान्तों, कथनों, तर्कों आदि सेविरोध भी संघर्ष है तथा विचारों, मतों और पसन्द के बीच असामंजस्यपूर्ण व्यवहार भी संघर्ष है।गिलीन And गिलीन के According-संघर्ष वह सामाजिक प्रक्रिया है, जिसमें व्यक्ति अथवा समूह अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए विरोधी के प्रति प्रत्यक्ष हिंसा या हिंसा की धमकी का प्रयोग करते ह®। Meansात् किसी साध्य प्राप्ति हेतु किये जाने वाले संघर्ष की प्रकृति में ही विरोधी के प्रति घृणा और हिंसा की भावना विद्यमान होती है। प्रो. ग्रीन के According-’’संघर्ष जानबूझकर Reseller गया वह प्रयत्न है, जो किसी की इच्छा का विरोध करने, उसके आड़े आने अथवा उसको दबाने के लिए Reseller जाता है।’’ Meansात् ग्रीन ने हिंसा व आक्रमण के साथ उत्पीड़न को भी संघर्ष का Single प्रमुख तत्त्व स्वीकार Reseller है। किंग्सले डेविस ने प्रतिस्पर्धा को ही संघर्ष माना है। उनके According प्रतिस्पर्धा व संघर्ष में केवल मात्रा का ही अन्तर है।

संघर्ष की विशेषताएँ

संघर्ष के लिए दो या दो से अधिक व्यक्तियों या समूहों का होना जरूरी है जो Single-Second के हितों को हिंसा की धमकी, आक्रमण, विरोध या उत्पीड़न के माध्यम से चोट पहुँचाने की कोशिश करते हैं।

  1. संघर्ष Single चेतन प्रक्रिया है जिसमें संघर्षरत व्यक्तियों या समूहों को Single-Second की गतिविधियों का ध्यान रहता है। वे अपने लक्ष्य की प्राप्ति के साथ-साथ विरोधी को मार्ग से हटाने का प्रयत्न भी करते हैं।
  2. संघर्ष Single वैयक्तिक प्रक्रिया है। इसका तात्पर्य यह है कि संघर्ष में ध्यान लक्ष्य पर केन्द्रित न होकर प्रतिद्विन्द्वयों पर केन्द्रित हो जाता है।
  3. संघर्ष Single अनिरन्तर प्रक्रिया है। इसका Means यह है कि संघर्ष सदैव नहीं चलता बल्कि रूक-रूक कर चलता है। इसका कारण यह है कि संघर्ष के लिए शक्ति और अन्य साधन जुटाने पड़ते हैं जो किसी भी व्यक्ति या समूह के पास असीमित मात्रा में नहीं पाए जाते। कोर्इ भी व्यक्ति या समूह सदैव संघर्षरत नहीं रह सकते हैं। 
  4. संघर्ष Single सार्वभौमिक प्रक्रिया है। इसका तात्पर्य यह है कि संघर्ष किसी न किसी Reseller में प्रत्येक समाज और प्रत्येक काल में कम या अधिक मात्रा में अवश्य पाया जाता है। 
  5. समाज की Creation इस तरह की होती है जिसमें व्यक्तियों व समूहों में विभिन्न स्वार्थ और हित होते हैं। व्यक्ति और समूह अपने हित की पूर्ति के लिए प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष Reseller से संघर्ष करते रहते हैं। 
  6. संघर्ष आंतरिक व बाह्य प्रक्रियाओं के कारण होता है। आंतरिक प्रक्रिया- जब स्त्रियों को शिक्षा में प्रवेश दिया तो वे आर्थिक Reseller से स्वतंत्र हो गयी और फिर उन्होंने अपने अधिकारों की मांग की। आज नारी आंदोलन का जो स्वReseller दिखार्इ देता है वह व्यवस्था या समाज का आंतरिक संघर्ष है। साम्प्रदायिक दंगे, आतंकवाद, भ्रष्टाचार, विद्याथ्र्ाी और श्रमसंघ आंदोलन आदि आंतरिक संघर्ष हैं। बाह्य प्रक्रिया- दो राष्ट्रों के मध्य Fight, अन्तर्राष्ट्रीय बाजार व मंडी में Fight, तकनीकी साधनों के उत्पादन में जापान व अमेरिका में जो होड़ है वह भी बाह्य संघर्ष है। 
  7. कोजर व उसकी परम्परा के विचारकों का मानना है कि संघर्ष हमेशा समाज के लिए हानिकारक नहीं होता। जब Single समाज Second समाज के साथ संघर्ष में होता है तो समाज की सुदृढ़ता बढ़ती है।

संघर्ष का स्वReseller

मूलत: संघर्ष परिवर्तन का Single साधन है। परिवर्तन की Need और इच्छा को नकारा नहीं जा सकता और यह भी स्वीकार करना ही होगा कि परिवर्तन के साधनों से ही परिवर्तन होगा। अतएव संघर्ष को सदैव हिंसक Reseller में ही न देखकर उसे परिवर्तन के संदर्भ में भी देखना चाहिए। यह धारणा या विचार मिथ्या है कि ‘‘संघर्ष नैतिक Reseller से गलत व सामाजिक Reseller से अनचाहा है, संघर्ष सदैव त्याज्य या विध्वंSeven्मक ही नहीं होता, यह समूहों के बीच तनाव को समाप्त भी करता है, जिज्ञासाओं व रुचियों को प्रेरित करता है तथा यह Single ऐसा माध्यम भी हो सकता है जिसके द्वारा समस्याएं उभारकर उनके समाधान तक पहुंचा जा सकता है Meansात् यह व्यक्तिगत और सामाजिक परिवर्तन का आधार भी हो सकता है। संघर्ष का अनिवार्यत: यह Means नहीं है कि यह समुदाय व सम्बन्धों के टूटने का कारण है। कोजर ने सामाजिक संघर्षों की महत्ता को प्रकाशित करते हुए लिखा है- संघर्ष असंतुष्टि के स्रोतों को खत्म कर तथा परिवर्तन की Need की पूर्व चेतावनी तथा नवीन सिद्धान्तों का परिचय देकर समुदाय पर Single स्थिर And प्रभावशाली छाप छोड़ता है।मूल Reseller से संघर्ष की दो स्थितियां हैं-

  1. न्यायोचित लक्ष्य के लिए प्रतिस्पर्धा में शामिल होना And
  2. ऐसा लक्ष्य जो न्यायोचित नहीं है, उसकी प्राप्ति के लिए प्रतिस्पर्धा में शामिल होना।

First यथार्थवादी संघर्ष है, जो Single विशेष परिणाम की प्राप्ति के लिए होता है। इसलिए यह संघर्ष या तो मूल्यों की संरक्षा के लिए या उन जीवनदायिनी चीजों के लिए होता है जिनकी आपूर्ति कम होती है।

उपर्युक्त Means में संघर्ष कुछ परिणाम की प्राप्ति का साधन है। समाजशास्त्रियों का मानना है-संघर्षविहीन समाज की कल्पना भी नहीं की जा सकती। मेक्स वेबर के According-’’सामाजिक जीवन से हम संघर्ष को अलग नहीं कर सकते। हम जिसे शांति कहते है। वह और कुछ नहीं है अपितु संघर्ष के प्रकार व उद्देश्यों तथा विरोधी में परिवर्तन है।’’ रोबिन विलियम्स के According-किसी भी परिस्थिति में हिंसा पूर्ण Reseller से उपस्थित या अनुपस्थित नहीं हो सकती। यहां भगवान् महावीर की दृष्टि ज्ञातव्य है-उनके According समाज केवल हिंसा या केवल अहिंसा के आधार पर नहीं चल सकता। प्रोमहेन्द्र कुमार के According-हिंसा की पूर्ण अनुपस्थिति असंभव है क्योंकि अंतर्राष्ट्रीय समाज से संघर्ष का पूर्ण विलोपन सम्भव नहीं है और न ही यह वांछनीय है क्योंकि हिंसा की अहिंसक-समाज निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका है या हो सकती है। अतएव संघर्ष को नियंत्रित या इच्छित दिशा में गतिशील Reseller जा सकता है, उसे पूर्ण Reseller से हटाया नहीं जा सकता।महात्मा गांधी ने भी संघर्ष की अनिवार्यता को स्वीकार Reseller है। जे.डी. टाटा ने जब गांधीजी से यह पूछा-बापू! आप तमाम उम्र संघर्ष करते रहे ह® (ब्रिटिश लोगों से), उनके चले जाने के बाद आपकी संघर्ष की आदत का क्या होगा? क्या आप इसे छोड़ देंगे? गांधीजी का उत्तर था-नहीं म® इसे अपने जीवन से कभी अलग नहीं कर सकता। लेकिन गांधीजी ने कार्लमाक्र्स की तरह संघर्ष को सामाजिक कानून के Reseller में नहीं माना। उन्होंने संघर्ष की अहिंसक पद्धति विकसित करने पर बल दिया।

द्वितीय अयथार्थवादी संघर्ष है जो ऐसे लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए Reseller जाता है जिन्हें किसी भी परिस्थिति में न्यायोचित नहीं कहा जा सकता। जैसे उग्रवादी हिंसा। ऐसा कोर्इ भी संघर्ष अथवा इसके लिए किये जा रहे प्रयत्न सदैव त्याज्य है।

1. विध्वंSeven्मक बनाम उत्पादक संघर्ष-

संघर्ष विध्वंSeven्मक भी हो सकता है और उत्पादक भी। Single संघर्ष को उस समय विध्वंSeven्मक कहा जा सकता है जब इस संघर्ष में सहभागी व्यक्ति इसके परिणामों से असंतुष्ट हों तथा वे यह अनुभव करते हों कि संघर्ष के परिणामस्वReseller उन्होंने कुछ खोया है। यही उत्पादक होगा, जब संघर्ष में सहभागी व्यक्ति इसके परिणामों से संतुष्ट हों तथा वे यह अनुभव करते हों कि संघर्ष के परिणामस्वReseller उन्होंने कुछ प्राप्त Reseller है।

2. दृष्टिकोण, व्यवहार और संघर्ष-

विध्वंSeven्मक दृष्टिकोण और व्यवहार को संघर्ष के समकक्ष या संघर्ष मानना भ्रामक है। तीनों का स्वतंत्र अस्तित्व है। संघर्ष Single प्रकार से विरोध व Single ऐसा लक्ष्य है जो Second की लक्ष्य प्राप्ति में बाधक है। सामान्य Reseller से संघर्ष के दो Reseller है।

  1.  समाज के विभिन्न समूहों की वस्तुनिष्ठ रूचियों में भेद And
  2. सामाजिक गतिविधियों के आत्मनिष्ठ लक्ष्यों में विरोध।

दृष्टिकोण व व्यवहार जब संघर्ष से जुड़ जाते ह® तब उन्हें निषेधात्मक दृष्टिकोण व व्यवहार कहा जाता है। इस प्रकार के निषेध अचानक घृणा या प्रत्यक्ष हिंसा के Reseller में प्रकट होते है। जातीय और प्रजातीय संघर्षों में सामाजिक दूरी पूर्वाग्रहों के कारण होती है जबकि संCreationत्मक हिंसा में यह भेदभाव के Reseller में प्रकट होती है।

3. सम्बन्ध न होने की अपेक्षा संघर्षपूर्ण सम्बन्ध अच्छे है-

प्रसिद्ध उक्ति है-’पाप से घृणा करो, पापी से नहीं।’ अन्याय से घृणा या विरोध आवश्यक है क्योंकि यह अन्याय के संस्थाकरण को रोकता है लेकिन अन्यायी से घृणा संबंधों के सुधार को रोकता है। इसी संदर्भ में यह कहा जा सकता है-संघर्ष पर आधारित सम्बन्ध किसी प्रकार के संबंध न होने से अच्छे है। मेरे और आपके बीच संघर्ष यह दर्शाता है कि कोर्इ Single चीज हम दोनों में सामान्य है। हमारी समस्या मेरी और आपकी है इसलिए हम इस समस्या से लड़ें न कि Single Second से। संघर्ष के सावधानीपूर्ण प्रयोग से समाज में सामंजस्यपूर्ण सम्बन्ध स्थापित किये जा सकते है। इस निष्कर्ष पर पहुंचने के दो आधार है।

  1. Humanीय Singleता
  2. कर्त्ता बनाम व्यवस्था 

प्रत्येक मनुष्य Single Second से अनेक बन्धनों व सामाजिक सम्बन्धों से जुड़े ह®। उनके बीच के सम्बन्ध सामंजस्यपूर्ण है। तो वे उन्हें प्रदर्शित कर और अधिक प्रगाढ़ कर सकते है। यदि उनके बीच सामंजस्य नहीं है तो हम उन्हें यह समझा सकते है। कि सामंजस्यपूर्ण संबंध Humanीय Singleता के लिए आवश्यक है। यदि उनके बीच किसी प्रकार के सम्बन्ध ही नहीं है।, तो यह Humanीय Singleता का बहिष्कार है। किसी व्यक्ति के अन्यायी बनने में परिस्थितियों व व्यवस्था का भी योगदान होता है। सम्बन्धों को स्वीकार न करना अन्यायी की अस्वीकृति है जबकि असामंजस्यपूर्ण सम्बन्धों का स्वीकरण व्यवस्था व व्यक्ति सुधार की दिशा में प्रस्थान है।

संघर्ष  के प्रकार

1. वैयक्तिक संघर्ष –

वैयक्तिक संघर्ष उसे कहते हैं जब संघर्षशील व्यक्तियों में व्यक्तिगत Reseller से घृणा होती है तथा वे अपने स्वयं के हितों के लिए अन्य को शारीरिक हानि पहुंचाने तक भी तैयार हो जाते हैं। परस्पर विरोधी लक्ष्यों को लेकर घृणा, द्वेष, क्रोध, शत्रुता आदि के कारण इस प्रकार का संघर्ष हो सकता है।

वैयक्तिक संघर्ष आंतरिक व बाह्य दोनों प्रकार के हो सकते हैं। जब व्यक्ति का संघर्ष स्वयं से होता है तो वह आंतरिक संघर्ष का Reseller है व जब व्यक्ति का संघर्ष किसी अन्य व्यक्ति या समूह से होता है तो वह बाह्य संघर्ष का Reseller है। उदाहरण के लिए किसी कार्य को करने या न करने का मानसिक द्वन्द्व आंतरिक संघर्ष है व जमीन, जायजाद आदि के लिए होने वाला संघर्ष बाह्य संघर्ष है।

व्यक्ति के भीतर होने वाले संघर्ष- आंतरिक संघर्ष के मुख्य Reseller से तीन कारक हैं जो इसे जन्म देते हैं- कुण्ठा, स्वार्थपरकता व हितों का टकराव।व्यक्ति स्वयं जब कोर्इ लक्ष्य निर्धारित करता है व किसी अवरोध से यदि वह लक्ष्य बाधित हो जाता है तो व्यक्ति की वह असफलता, कुण्ठा का Reseller ले लेती है और जिसके परिणाम से व्यक्ति की कुछ प्रतिक्रियाएं होती है जो उसके आंतरिक संघर्ष को प्रदर्शित करती है।

व्यक्ति में आंतरिक संघर्ष उत्पन्न होने के जो कारण हैं उनमें सबसे महत्त्वपूर्ण कारण व्यक्ति की स्वार्थपरकता है। अपने स्वार्थों की पूर्ति वह उचित-अनुचित, वैध-अवैध All तरीकों से करना चाहता है। फलत: व्यक्तिगत र्इष्र्या उत्पन्न हो जाती है जिसके परिणामस्वReseller व्यक्ति की कुछ आंतरिक प्रतिक्रियाएं होती हैं जो आंतरिक संघर्ष को दर्शाती हैं।व्यक्ति कभी स्वयं के हितों के कारण भी दुविधा में पड़ जाता है। व्यक्ति के पास स्वयं के हित के अनेक विकल्प होते हैं और उनमें से जब उसे यह चयन करना होता है कि क्या उसके लिए अच्छा होगा व क्या गलत, कौन-सा विकल्प हितकर होगा व कौन-सा अहितकर, कौन-सा सुगम होगा व कौन-सा जटिल तो यह असमंजस व ऊहापोह की सिथति संघर्ष पैदा करती है।

जब व्यक्ति का संघर्ष अन्य व्यक्तियों व समूहों से होता है तो वह बाह्य संघर्ष होताहै। यह भी दो प्रकार का होता है- वास्तविक व अवास्तविक। जब संघर्ष किसी न्यायपूर्ण या न्यायोचित उद्देश्यों को लेकर होते हैं तथा सामाजिक व कानूनी स्वीकृति को लेकर होते हैं तो वे वास्तविक संघर्ष कहलाते हैं। हितों का टकराव सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, व्यक्ति का अहम व स्तर आदि कर्इ कारक होते हैं जो इसे प्रभावित करते हैं।जब संघर्ष अन्यायपूर्ण व अनुचित उद्देश्यों को लेकर होते हैं तो वे अवास्तविक संघर्ष कहलाते हैं। इनमें ‘जैसे को तैसे’ की प्रवृत्ति रहती है। ये संघर्ष कानूनी प्रक्रियाओं के द्वारा भी होते हैं।

अत: यह स्पष्ट है कि वैयक्तिक संघर्ष शीघ्र ही उत्पन्न हो जाते हैं। इनकी प्रकृति में निरन्तरता नहीं रहती, कभी संघर्ष चलता है तो कभी बंद हो जाता है व फिर चल सकता है। जब तक संघर्ष की परिणति सहयोग में न हो जाए यह चलता ही रहता है। ये संघर्ष अत्यधिक कटु नहीं होते हैं क्योंकि सामाजिक नियम उन्हें किसी न किसी Reseller में नियंत्रित रखते हैं। इसमें शारीरिक हिंसा तुलनात्मक Reseller से कम होती है।

2. प्रजातीय संघर्ष –

जब आनुवांशिक शारीरिक भेदभाव के कारण व्यक्तियों का वर्गीकरण Reseller जाता है तो उसे प्रजाति कहते हैं। वैयक्तिक संघर्ष के अतिरिक्त सामूहिक संघर्ष भी हो सकता है। प्रजातीय संघर्ष भी इसमें से Single है। प्रजातीय संघर्ष का आधार प्रजातीय श्रेष्ठता व हीनता जैसी वैज्ञानिक अवधारणा है। श्रेष्ठता व हीनता का मुख्य आधार संस्तरण है व उच्चता व निम्नता की भावना होती है। संस्तरण के कारण उच्च स्तर के व्यक्ति को अधिकार प्राप्त हो जाते हैं व उन अधिकारों का प्रयोग जब संस्तरण के निचले स्तर के व्यक्तियों पर Reseller जाता है या प्रदर्शित किए जाते हैं तो यह प्रजातीय संघर्ष है। भौगोलिक परिस्थितियों की भिन्नता, जीन संCreation, विशिष्ट शारीरिक लक्षण, सांस्कृतिक भिन्नता आदि ऐसे कर्इ तत्त्व हैं तो प्रजाति की उच्चता व निम्नता निर्धारण में सहायक होते हैं। इन तत्त्वों के परिणामस्वReseller निर्धारित होने वाली प्रजाति की श्रेष्ठता व हीनता में व्यक्ति स्वयं जिम्मेदार नहीं होता है पर उस आधार पर व्यक्ति को ही श्रेष्ठ व हीन ठहरा दिया जाता है। उदाहरण के लिए अमेरिका में नीग्रो व श्वेत प्रजाति के बीच, श्वेत प्रजाति व जापानी प्रजातियों के बीच और अफ्रीका में श्वेत व श्याम प्रजातियों के बीच अक्सर जो संघर्ष होता है वह प्रजातीय संघर्ष के अनुपम उदाहरण हैं।

वर्तमान प्रगतिशील युग में प्रजातीय भेदभाव राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक आदि क्षेत्रों में कानून के Reseller में व व्यवहार में जातीय भेदभाव के Reseller में विद्यमान है। प्रजातीय संघर्ष कहीं सरकारी नीतियों से पुष्ट है तो कहीं प्रच्छन्न Reseller में, जिससे विभिन्न वर्गों के बीच विषमता पायी जाती है। राजनैतिक क्षेत्र में विश्व के किसी भी देख में प्रजातीय भेदभाव को मान्यता नहीं है परन्तु राष्ट्रों में वहां की नीतियों व दशाओं के कारण All लोगों का मत देने, सरकारी सेवा में प्रवेश पाने And सार्वजनिक पदों के लिए चुनाव लड़ने का अधिकार नहीं है। आर्थिक क्षेत्र में प्रजातीय भेदभाव के परिणाम से कुछ विशेष प्रजाति के लोग कम वेतन पर मजदूर के Reseller में सदैव उपलब्ध रहते हैं। प्रजातीय भेदभाव सार्वजनिक स्थल, स्वास्थ्य व चिकित्सा सम्बन्धी सुविधाओं, सामाजिक Safty व पारस्परिक सम्बन्धों में भी देखा जा सकता है। सांस्कृतिक क्षेत्र में जातीय भेदभाव जीवन स्तर की विभिन्नता से जन्म लेता है। वर्तमान समय में हर प्रजाति अपने को श्रेष्ठ व Windows Hosting बनाए रखना चाहती है इसलिए इस आधार के संघर्ष होते रहते हैं। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर होने वाले संघर्षों का Single प्रमुख कारण यह भी है।

भेदभाव की यह भावना उस समाज में अधिक पायी जाती है जहां सांस्कृतिक, सामाजिक व आर्थिक जीवन में बहुत अधिक विरोधाभास होता है। नस्ल, रंग व वंश की दृष्टि से जिन राष्ट्रों में अलगाव की भावना है And जहां संस्कृति, रीति-रिवाज व परम्पराओं के कारण भिन्नताएं हैं वहां की स्थितियां वास्तव में ही शोचनीय है। जातीय पृथक्करण की नीतियां विश्व के लिए Single बड़ा कलंक है।

3. वर्ग संघर्ष –

वर्ग संघर्ष का History समाज के निर्माण से ही प्रारम्भ हो गया था। कार्लमाक्र्स ने लिखा था कि ‘‘आज तक अस्तित्व में रहे समाज का History, वर्ग-संघर्ष का History है।’’ समूचे समाज का History वर्ग संघर्ष में ढूंढा जा सकता है। प्राचीन काल में जब मुखिया सर्वेसर्वा था तब से वर्ग प्रणाली का प्रादुर्भाव हुआ। प्राचीनकाल में मालिक व दास, मध्ययुग में सामन्त व सेवक या कामदार, आधुनिक युग में मजदूर व पूंजीपति आदि वर्ग रहे हैं। विभिन्न समूहों की सामाजिक व आर्थिक स्थिति में परस्पर भिन्नताएँ पायी जाती है, फलत: उनके जीवन प्रतिमान Single-Second से मेल नहीं खाते व ये समूह कालान्तर में विभिन्न वर्गों का Reseller ले लेते हैं। प्रत्येक वर्ग सामाजिक व आर्थिक उपयोगिता की दृष्टि से स्वयं को सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण मानता है। इस प्रकार की स्थिति उनके बीच विवादों व संघर्ष को जन्म देती है। उदाहरण के लिए वर्तमान में मजदूरों व मिल मालिकों का संघर्ष देखने को मिलता है। मजदूर अधिक से अधिक वेतन व सुविधाएं लेना चाहते हैं जबकि पूंजीपति उनका अधिक से अधिक शोषण करना चाहते हैं। परिणामत: उनमें संघर्ष होता है। इस संघर्ष में मजदूर मिल-मालिकों को उनकी मांग न मानने पर तोड़फोड़ की धमकी देते हैं व अनेक बार ऐसा कर भी देते हैं। कुछ वर्ग के लोग आजकल अधिकारियों, मंत्रियों आदि का अपनी मांगों के समर्थन में घेराव करते हैं तथा हड़ताल व नारेबाजी करते हैं। ये All वर्ग संघर्ष के ही लक्षण हैं।
कार्ल मार्क्स ने कहा कि ‘‘समाज सदैव दो आर्थिक वर्गों में बंटा रहेगा- शोषक व शोषित। ये वर्ग सदैव Single Second के साथ संघर्षरत रहेंगे जब तक कि वर्ग विहीन समाज की स्थापना न हो जाए।’’ मनोवैज्ञानिक Reseller से इस संघर्ष को कभी समाप्त नहीं Reseller जा सकता है क्योंकि व्यक्ति विशेष में श्रेष्ठता व हीनता की भावना स्वभावत: होती ही है। चूंकि वर्ग विहीन समाज का अस्तित्व वर्ग स्वार्थों के कारण व्यावहारिक Reseller में कठिन है अत: वर्ग संघर्ष Single सार्वभौमिक प्रघटना है। ऐसे संघर्षों का अंत प्रत्येक बार या तो समग्र समाज के क्रांतिकारी पुनर्निर्माण में होता है या संघर्षरत वर्गों की बर्बादी में निहित होता है।

4. जातीय संघर्ष-

जातीय संकीर्णता सामाजिक संघर्षों का Single प्रमुख कारण बनी है। यह समस्या अर्द्धविकसित व विकासशील देशों में अधिक पायी जाती है। हम कुछ जातीय पूर्वाग्रहों को पालते हैं, क्योंकि इनसे हमारी Safty, प्रतिष्ठा व मान्यता जैसी कतिपय गहन Needओं की संतुष्टि होती है। सामाजिक व्यवस्था में जाति विशेष की श्रेष्ठता व हीनता को मानने की प्रवृत्ति जातीय संघर्ष का कारण बनती है। ऐसे संघर्ष भी संस्तरण की मानसिकता से जुड़े रहते हैं। आज कट्टरपंथी व उदारवादी लोगों के बीच जो संघर्ष होता है वह जातीय संघर्ष का ही Single भाग है। Single जाति का शासन के साथ, कट्टरपंथी का जातीय समीकरणों के साथ, किसी जाति विशेष का जाति विशेष के साथ, उदारवादी व कट्टरपंथी आदि के बीच होने वाले संघर्ष जातीय संघर्ष के विभिन्न स्वReseller हैं। भारत में जातीय तनाव अधिक देखने को मिलते हैं। जैसे मणिपुर में नागा व हुकी जाति का विवाद, बिहार में लाला व ब्राह्मण जाति का विवाद आदि।

ये संघर्ष परम्परागत Reseller से लम्बे समय से Single सामाजिक बुरार्इ के Reseller में स्थापित होते रहे हैं। यद्यपि कानूनी Reseller से विभिन्न जातियों के बीच ऊंच-नीच की भावना को अस्वीकार Reseller गया है फिर भी ऊंच-नीच की भावना के कारण विभिन्न जातियों में बैर-भाव रहता है व जातीय संघर्ष चलते रहते हैं। इन जातीय विवादों के कारण आज Indian Customer राजनीति का मुख्य आधार ही जातिवाद बन गया है जिससे जनता सदैव आपसी संघर्षों में उलझी रहती है। Single पूर्ण विकसित समाज में ऐसे संघर्षों के खत्म होने की संभावना रहती है अन्यथा ये संघर्ष निरन्तर चलते रहते हैं।

5. राजनैतिक संघर्ष –

राजनैतिक संघर्ष के दो Reseller हैं-राष्ट्रीय संघर्ष And अन्तर्राष्ट्रीय संघर्ष। जातिवाद, साम्प्रदायिक तनाव, राजनैतिक तनाव, उग्रवाद, पृथक्करण, विभाजन आदि राष्ट्रीय संघर्षों के प्रमुख कारण बनते हैं। अन्तर्राष्ट्रीय संघर्ष की अभिव्यक्ति के भी अनेक Reseller हैं- जैसे घृणा तथा आक्रामकता की अभिवृत्ति, जिसके फलस्वReseller समाचार पत्रों, रेडियो व दूरदर्शन पर भड़कीले समाचार प्रसारित कर मनोवैज्ञानिक Fight Reseller जाता है। स्वजातिवाद की पृष्ठभूमि भी अन्तर्राष्ट्रीय तनाव का Single प्रमुख कारण है। अडोर्नो ने यह दर्शाया है-जिन व्यक्तियों में यह सोचने की अतिरंजित प्रवृत्ति है कि उनका अपना समूह अथवा जाति, अन्य जातियों से अत्यन्त श्रेष्ठ है, उनका सामान्य दृष्टिकोण रुढ़िवादी होता है तथा वे शक्ति की प्रशंसा व पराजितों से घृणा करते हैं जिससे वे दूसरों को अपने समान स्थान देने को तैयार नहीं होते। फलत: विदेशियों व अल्पसंख्यकों को हीन दृष्टि से देखा जाता है तथा उनमें अSafty की भावना उत्पन्न होती है। इससे सैनिक संगठनों को बल मिलता है। राष्ट्रवादी अभिवृत्तियों के साथ-साथ अन्य देशों के प्रति प्रबल नकारात्मक भावना हो और प्रबल अंतर्राष्ट्रीय भावना का अभाव हो तो उस स्थिति में अन्तर्राष्ट्रीय संघर्ष उत्पन्न हो ही जाता है और वह स्थिति शांति तथा Singleता की बजाए Fight की प्रेरक होती है।

उपर्युक्त कारणों के अतिरिक्त वैचारिक भिन्नताएं, विस्तारवादी नीतियां, व्यापारिक And सीमा विवाद, अस्त्र-शस्त्र आदि भी अन्तर्राष्ट्रीय विवादों के प्रमुख कारण बनते हैं।

6. अन्तर्राष्ट्रीय संघर्ष-

यह भी राजनैतिक संघर्ष का ही Single विस्तृत Reseller है। राजनैतिक संघर्ष का क्षेत्र जब Single राष्ट्र की सीमा पार करके अन्य राष्ट्रों तक फैल जाता है तो उसे अन्तर्राष्ट्रीय संघर्ष कहते हैं। Second Wordों में, जब राष्ट्रीय सीमाओं के पार संघर्ष होता है तो वह अन्तर्राष्ट्रीय संघर्ष कहलाता है। इसका सबसे स्पष्ट Reseller Fight है जो कि भारत और चीन के बीच, भारत-पाकिस्तान के बीच व अन्य राष्ट्रों के बीच होते हैं।

उपरोक्त समस्त विवेचन के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि संघर्ष अनेक स्वResellerों/प्रकारों में दृष्टिगोचर होता है। वैयक्तिक संघर्ष से प्रारम्भ होकर संघर्ष प्रजातीय व वर्ग संघर्ष की सीढ़ियां चढ़ते-चढ़ते जातीय संघर्ष परिवर्तित होता है व अंतत: संघर्ष के विभिन्न Reseller राजनैतिक स्तर के राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय संघर्ष में परिवर्तित हो जाता है। भारत के संदर्भ में संघर्ष के इन स्वResellerों की विवेचना की जा सकती है। धर्म के आधार पर भारत का विभाजन हुआ व पाकिस्तान के Reseller में Single नए राष्ट्र की स्थापना हुर्इ। विभाजन के बाद धर्म को लेकर जो दंगे हुए वे धार्मिक आधार पर निर्मित थे व स्वतंत्रता के बाद भी कहीं-कहीं समाज विरोधी तत्त्वों के द्वारा धार्मिक भावनाओं के आधार पर दंगे फसाद किए गए। धर्म निरपेक्ष राष्ट्र में ऐसी घटनाएं राष्ट्र विरोधी मानी जाती हैं। इसके अतिरिक्त सिक्ख धर्म पर कुछ व्यक्तियों की अलग सिक्ख राष्ट्र की मांग को लेकर भी भारत के Single भू-भाग में संघर्ष की स्थिति को जन्म दिया है। इन संघर्षों में तर्क व व्यापक दृष्टिकोण का अभाव रहता है व निहित स्वार्थ वाले तत्त्व संकीर्णता के आधार पर अपनी स्वार्थ सिद्धि का प्रयास करते हैं। क्षेत्र को लेकर भी भारत में संघर्ष के कतिपय उदाहरण मिलते हैं। आसाम व देश के कुछ अन्य भागों में आंदोलन व संघर्ष इसके उदाहरण माने जा सकते हैं। भाषा के आधार पर भी यदा-कदा संघर्ष की स्थितियां उत्पन्न हो जाती है। भाषा, संस्कृति का प्रमुख अंग है। अत: इसको संचार की प्रमुख व्यवस्था के Reseller में नहीं मानकर भावनात्मक आवेग से जोड़ने का दुराग्रह Reseller है। अनुसूचित जाति व तथाकथित उच्च जातियों के मध्य संघर्ष के उदाहरण अनुसूचित जातियों के लोगों में जागरूकता का प्रतीक है। धर्म निरपेक्ष, वर्ग विहीन, जाति विहीन आधार पर बना Indian Customer संविधान देश के प्रत्येक निवासी को समान अधिकार प्रदान करता है। ऐसी दशा में किसी विशेष जाति को नीचा मानकर उनसे सामाजिक विभेद अनुचित है। ये संघर्ष राष्ट्र Singleता में बाधक होते हैं व साथ ही साथ व्यापक व दुरगामी दृष्टिकोण से व्यक्ति व समाज के लिए घातक भी होते हैं।

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