मुद्रा के प्रकार
- वास्तविक मुद्रा और हिसाब की मुद्रा,
- विधि ग्राह्य मुद्रा और ऐच्छिक मुद्रा,
- धातु मुद्रा और पत्र-मुद्रा,
- सुलभ मुद्रा और दुर्लभ मुद्रा,
- सस्ती मुद्रा और महँगी मुद्रा,
- वास्तविक मुद्रा और हिसाब की मुद्रा
वास्तविक मुद्रा –
किसी देश में सरकार द्वारा प्रचलित मुद्रा ही वास्तविक मुद्रा कहलाती है। Meansात् वास्तविक मुद्रा वह होती है जो किसी देश में वास्तव में प्रचलित होती है। सिक्के तथा नोट वास्तविक मुद्रा होते हैं । वास्तविक मुद्रा तथा चलन में कोर्इ अन्तर नहीं है। भारतवर्ष में 5 पेसै से लेकर 1000 Resellerये तक के नोट सब वास्तविक मुद्रा के अन्तर्गत आते है। कीन्स ने वास्तविक मुद्रा को दो भागों में बाँटा है-
(1) पदार्थ मुद्रा –
(2) प्रतिनिधि मुद्रा –
हिसाब की मुद्रा-
हिसाब की मुद्रा से आशय, उस मुद्रा से होता है जिसमें All प्रकार के हिसाब-किताब रखे जाते है। इसी मुद्रा में ऋणों की मात्रा, कीमतों And क्रय-शक्ति को व्यक्त Reseller जाता है। यह आवश्यक नहीं है कि देश की वास्तविक मुद्रा ही हिसाब-किताब की मुद्रा हो। संकटकाल में ये दोनों अलग-अलग हो सकती है। जेसै – First महाFight के बाद (सन् 1923) जर्मनी में वास्तविक मुद्रा तो मार्क थी, किन्तु हिसाब-किताब की मुद्रा अमेरिकन डालर या फ्रंके थी। इसका कारण यह था कि जमर्न मार्क की तलु ना में इन मुद्रा ओं का मूल्य अधिक स्थिर थे प्राय: प्रत्यके देश की वास्तविक मुद्रा तथा हिसाब-किताब की मुद्रा Single ही होती है। जसै – भारत में Resellerया और अमेरिका में डालर वास्तविक मुद्रा भी है और हिसाब-किताब की मुद्रा भी।
विधि ग्राह्य मुद्रा और ऐच्छिक मुद्रा-
(1) विधि ग्राह्य मुद्रा –
यह वह मुद्रा है जो भुगतान के साधन के Reseller में जनता द्वारा स्वीकार की जाती है। कोर्इ भी व्यक्ति भुगतान के Reseller में इसे स्वीकार करने से इन्कार रहीं कर सकता है और यदि वह एसेा करता है, तो सरकार उसको दण्डित कर सकती है। इसीलिए इस विधि गा्रह्य मुद्रा कहते है। विधि गा्र ह्य मुद्रा दो श्रेि णयों में विभाजित Reseller जा सकता है-
- सीमित विधि ग्राह्य मुद्रा – यह वह मुद्रा है जिसको Single निश्चित सीमा तक ही स्वीकार करने के लिए किसी व्यक्ति को बाध्य Reseller जा सकता है। इस निश्चित सीमा में अधिक मुद्रा लेने से व्यक्ति इन्कार कर दे तो न्यायालय की शरण लेकर उसको बाध्य नही Reseller जा सकता। जैसे- भारत में 5 पैसे से लेकर 25 पैसे तक के सिक्के केवल 25 Resellerये तक ही विधि गा्रह्य है। अत: यदि किसी व्यक्ति को इन सिक्कों की 25 Resellerये से अधिक की रजे गारी दी जाती है तो वह इसे अस्वीकार कर सकता है। हाँ वह 25 Resellerये तक इन सिक्कों को स्वीकार करने के लिए कानूनी Reseller से बाध्य है।
- असीमित विधि ग्राह्य मुद्रा – यह वह मुद्रा है जिसे कोर्इ भी व्यक्ति किसी भी सीमा तक (Single बार म) भगु तान के Reseller में स्वीकार करने के लिए बाध्य है। यदि कोर्इ व्यक्ति असीमित मात्रा में इसे स्वीकार करने से इन्कार कर दे तो उसके विरूद्ध कानूनी कार्यवाही की जा सकती है तथा उसको दण्डित Reseller जा सकता है। जसै -भारत में 50 पैसे से लेकर 1000 Resellerये तक के नोट असीमित विधि ग्राह्य मुद्रा है।
(2) ऐच्छिक मुद्रा –
यह वह मुद्रा है जिसे व्यक्ति प्राय: अपनी इच्छा से स्वीकार कर लेता है, किन्तु उसके अस्वीकार करने पर कानून द्वारा उसे इस मुद्रा को स्वीकार करने के लिए बाध्य नहीं Reseller जा सकता। जैसे- चेक, हुण्डियाँ, विनिमय-पत्र इत्यादि ऐच्छिक मुद्रा कहै जा सकते हैं ।
धातु-मुद्रा और पत्र-मुद्रा-
(1) धातु-मुद्रा –
यदि मुद्रा धातु की बनी होती है, तो उसे धातु-मुद्रा या सिक्का कहते हैं । प्राचीन समय में धातु-मुद्रा विशेष Reseller से चलन में थी। प्रारम्भ में प्राय: धातु के टुकडा़ें पर King, महाKing या नवाब का कार्इे ठप्पा या चिन्ह अंकित कर दिया जाता था, किन्तु वर्तमान में Single निश्चित आकार-प्रकार And तौल वाली मुद्रा जिस पर राज्य का वैधानिक चिन्ह अंकित होता है, धातु-मुद्रा कहलाती है। धातु-मुद्रा में कौन-सी धातु कितनी मात्रा में हागेी ? यह कानून द्वारा निधार् िरत Reseller जाता है। धातु मुद्रा दो प्रकार की होती है।
- प्रामाणिक सिक्का – प्रामाणिक सिक्का को प्रधान, पूर्णकाय तथा सवार्गं मुद्रा भी कहते है। ये सिक्के प्राय: चाँदी या सोने के बनाये जाते हैं जो कानून द्वारा निश्चित वजन तथा शुद्धता के होते हैं ।
- सांकेतिक सिक्का – इसे प्रतीक मुद्रा के नाम से जाना जाता है। सांकेितक मुद्रा , वह मुद्रा होती है जिसका बाह्य मूल्य And आतं रिक मूल्य बराबर होता है। यह मुद्रा प्राय: घटिया धातु की बनी होती है।
(2) पत्र-मुद्रा –
कागजी नोटों के Reseller में निगर्मित मुद्रा को ‘पत्र-मुद्रा ‘ कहा जाता है। पत्र-मुद्रा पर किसी सरकारी अधिकारी अथवा केन्द्रीय बकैं के गवर्नर के हस्ताक्षर होते है। अलग-अलग नोटों का आकार And रगं अलग-अलग निधार् िरत Reseller जाता है तथा कागज के नोटों पर नम्बर भी अंिकत रहता है। भारत में 1 Resellerये का नोट भारत सरकार द्वारा निर्गमित Reseller जाता है, जिस पर वित्त मत्रं ालय के सचिव के हस्ताक्षर होते है। तथा 2, 5, 10, 20, 50, 100, 500 And 1000 Resellerये के नोटों का निर्गमन Indian Customer रिजर्व बैंक द्वारा Reseller जाता है। इन नोटों पर रिजर्व बकैं के गवर्नर के हस्ताक्षर होते हैं । पत्र-मुद्रा को दो भागों में बाँटा जा सकता है-
- प्रतिनिधि पत्र-मुद्रा तथा
- प्रादिष्ट पत्र-मुद्रा।
(अ) प्रतिनिधि पत्र-मुद्रा –जब निगरिमत पत्र-मुद्रा के पीछे ठीक इसके मूल्य के बराबर सोना व चाँदी, आरक्षित निधि Reseller में रखे जाते है। तब इस मुद्रा को प्रतिनिधि पत्र-मुद्रा कहा जाता है। निगरिमत पत्र-मुद्रा क्योंिक उस धातु काषेा का प्रतिनिधित्व करती है, जिसके आधार पर पत्र-मुद्रा निर्गमित की जाती है इसलिए इस प्रतिनिधि पत्र-मुद्रा कहते हैं । प्रतिनिधि पत्र-मुद्रा भी दो प्रकार की होती है-
- परिवर्तनशील प्रतिनिधि पत्र-मुद्रा- जब किसी देश में पत्र-मुद्रा इस प्रकार जारी की जाती है कि उसको जनता किसी भी समय सोन अथवा चाँदी में परिवर्तित कर सकती है, तब इस प्रकार की मुद्रा का परिवतर्न शील प्रतिनिधि पत्र-मुद्रा कहते हैं । इस प्रकार की गारण्टी दिये जाने पर जनता का विश्वास पत्र-मुद्रा में बना रहता है तथा कवे ल आवश्कयता पड़ने पर ही वह पत्र-मुद्रा को बहुमल्ूय धातुओं में परिवर्तित करती है।
- अपरिवर्तनशील प्रतिनिधि पत्र-मुद्रा – जब किसी देश में पत्र-मुद्रा इस प्रकार जारी की जाती है कि सरकार उसे सोने या चाँदी में परिवर्तित करने की कोर्इ गारण्टी नहीं देती है, तब इस प्रकार की मुद्रा को अपरिवतर्न शील प्रतिनिधि पत्र-मुद्रा कहते हैं । Second Wordों में नोटों को सिक्कों में परिवर्तित करने की कार्इे गारण्टी सरकार द्वारा नहीं दी जाती है। इस प्रकार मुद्रा पूर्णत: सरकार की साख पर आधारित होती है।
(ब) प्रादिष्ट पत्र-मुद्रा – यह भी पत्र-मुद्रा का ही Single Reseller है। प्रादिष्ट मुद्रा प्राय: संकटकालीन स्थिति में निर्गमित की जाती है। इसीलिए इसे कभी-कभी संकटकालीन मुद्रा भी कहा जाता है। First महाFight के प्रारम्भ (सन् 1914) में इसे अस्थायी आधार पर जारी Reseller जाता था, किन्तु अब यह स्थायी Reseller धारण कर चुकी है। प्रादिष्ट मुद्रा के पीछ े किसी भी प्रकार का सरु क्षित कोष नहीं रखा जाता है और न ही सरकार पत्र-मुद्रा को धातु में परिवतिर्त करने की गारण्टी ही देती है। प्रादिष्ट मुद्रा का Single उदाहरण, अमेिरका में गृहFight के दौरान ग्रीनवैक्स नामक मुद्रा का जारी करना है। इसी प्रकार, First महाFight के बाद जमर्नी में भी कागजी मार्क मुद्रा जारी की गयी थी जो Single प्रकार की प्रादिष्ट मुद्रा ही थी।
प्रादिष्ट मुद्रा इसलिए अच्छी मानी जाती है क्याेिक इसमें सकंटकालीन परिस्थिति में बहमुल्ूय धातुओं का कोष रखने की Need नहीं होती है किन्तु जब सरकार इस प्रकार की पत्र-मुद्रा जारी करती है तो इससे अत्यधिक मुद्रा -प्रसार का भय बना रहता है, जिससे Meansव्यवस्था बुरी तरह प्रभावित होती है। प्रादिष्ट मुद्रा इसलिए अच्छी मानी जाती है क्याेिक इसमें सकंटकालीन परिस्थिति में बहमुल्ूय धातुओं का कोष रखने की Need नहीं होती है किन्तु जब सरकार इस प्रकार की पत्र-मुद्रा जारी करती है तो इससे अत्यधिक मुद्रा -प्रसार का भय बना रहता है, जिससे Meansव्यवस्था बुरी तरह प्रभावित होती है।
विदेशी विनिमय के आधार पर मुद्रा का वर्गीकरण-
विदेशी विनिमय के आधार पर मुद्रा को दो भागों में बाँटा जा सकता है-
(1) सुलभ मुद्रा-
(2) दुर्लभ मुद्रा –
कीमत अथवा ब्याज के आधार पर मुद्रा का वर्गीकरण-
कीमत अथवा ब्याज के आधार पर मुद्रा को दो भागों में बाटँा जा सकता है-