भारत चीन Fight 1962 – Scotbuzz
भारत चीन Fight 1962
अनुक्रम –
भारत – चीन Fight जो भारत चीन सीमा विवाद के Reseller में भी जाना जाता है, चीन और भारत के बीच 1962 में हुआ Single Fight था। विवादित हिमालय सीमा Fight के लिए Single मुख्य बहाना था, लेकिन अन्य मुद्दों ने भी भूमिका निभाई। चीन में 1959 के तिब्बती विद्रो के बाद जब भारत ने दलाई लामा को शरण दी तो भारत चीन सीमा पर हिंसक घटनाओं की Single श्रृंखला शुरू हो गयी। भारत ने फॉरवर्ड नीति के तहत मकै माहे न रेखा से लगी सीमा पर अपनी सैनिक चौResellerँ रखी जो 1959 में चीनी प्रीमियर झोउ एनलाई के द्वारा घोषित वास्तविक नियंत्रण रेखा के पूर्वी भाग के उत्तर में थी।
चीनी सेना ने 2 अक्टूबर 1962 को लद्दाख में और मैकमोहन रेखा के पार Single साथ हमले शुरू किये। चीनी सेना दोनों मोर्चे में Indian Customer बलों पर उन्नत साबित हुई और पश्चिमी क्षेत्र में चुषूल में रेजांग-ला And पूर्व में तवांग पर कब्जा कर लिया। जब चीन ने 20 नवम्बर 1962 को Fight विराम और साथ ही विवादित क्षेत्र से अपनी वापसी की घोषणा की तब Fight खत्म हो गया। भारत चीन Fight कठारे परिस्थितियों में हई लड़ाई के लिए Historyनीय है इस Fight में ज्यादातर लडा़ई 4250 मीटर (14,000 फीट) से अधिक ऊचाई पर लड़ी गयी।
इस प्रकार की परिस्थिति ने दोनों पक्षों के लिए रासन और अन्य लोजिस्टिक समस्याएँ प्रस्तुत की। भारत चीन Fight चीनी और Indian Customer दोनों पक्ष द्वारा नौसेना या वायु सेना का उपयोग नहीं करने के लिए भी विख्यात है।
- तिथि – 20 अक्टूबर – 21 नवम्बर 1962
- स्थान – दक्षिणी क्सिंजिग (अक्साई चीन) अरूणाचल प्रदेश (दक्षिण तिब्बत, उत्तर पूर्व फ्रंटियर एजेंसी)
- परिणाम – चीनी सेना की जीत अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चीन की छवि धूमिल
- क्षेत्रीय – अक्साई चिन चीन के नियंत्रण में
- बदलाव – आया
सेनानायक
भारत चीन
बृज मोहन कौल – जहाँग गुओहुआ
जवाहरलाल नेहरू – माओ जेडोंग
वी. के. कृष्ण मेनन – लिऊ बोचेंग
प्राण नाथ थापर – ज्होउ एनलाई
स्थान
चीन और भारत के बीच Single लंबी सीमा है जो नेपाल और भूटान के द्वारा तीन अनुभागो में फैला हुआ है। यह सीमा हिमालय पर्वतों से लगी हुई है जो बर्मा And तत्कालीन पश्चिमी पाकिस्तान (आधुनिक पाकिस्तान) तक फैली है। इस सीमा पर कई विवादित क्षेत्र अवस्थित है। पश्चिमी छोर में अक्साई चिन क्षेत्र है जो स्विट्जरलैंड के आकार का है। यह क्षेत्र चीनी स्वायत्त क्षेत्र झिंजियांग और तिब्बत (जिसे चीन ने 1965 में Single स्वायत्त क्षेत्र घोशित Reseller) के बीच स्थित है। पूर्वी सीमा पर बर्मा और भूटान के बीच वर्तमान Indian Customer राज्य अरूणाचल प्रदेश (पुराना नाम-नॉर्थ ईस्ट फ्रंटियर एजेंसी) स्थित है। 1962 के संघर्ष में इन दोनों क्षेत्रों में चीनी सैनिक आ गए थे।
ज्यादातर लड़ाई ऊँचाई वाली जगह पर हुई थी। अक्साई चिन क्षेत्र समुद्र तल से लगभग 5000 मीटर की ऊंचाई पर स्थित साल्ट फ्लैट का Single विशाल रेगिस्तान है और अरूणाचल प्रदेश Single पहाड़ी क्षेत्र है जिसकी कई चोटियाँ 7000 मीटर से अधिक ऊँची है। सैन्य सिद्धांत के मुताबिक आम तौर पर Single हमलावर को सफल होने के लिए पैदल सैनिकों के 3:1 के अनुपात की संख्यात्मक श्रेष्ठता की Need होती है।
पहाड़ी Fight में यह अनुपात काफी ज्यादा होना चाहिए क्योंकि इलाके की भौगोलिक Creation दुसरे पक्ष को बचाव में मद्द करती है। चीन इलाके का लाभ उठाने में सक्षम था और चीनी सेना का उच्चतम चोटी क्षेत्रों पर कब्जा था। दोनों पक्षों को ऊंचाई और ठंड की स्थिति से सैन्य और अन्य लाजिस्टिक कार्यों में कठिनाइयों का सामना करना पड़ा और दोनों के कई सैनिक जमा देने वाली ठण्ड से मर गए।
भारत-चीन सीमा विवाद
उस समय तक भारत और चीन के बीच सीमा को लेकर भी घोर विवाद शुरू हो चुका था। 1950-51 में ही कम्युनिस्ट चीन के नक्शे में भारत के Single बहुत बड़े भू-भाग को चीन का अंग दिखलाया गया था। जब भारत सरकार ने चीन का ध्यान इस ओर आकर्शित Reseller ता े उसे यह जवाब मिला कि नक्शे गलती से बन गये हैं और चीन की सरकार इनमें शीघ्र ही सुधार कर देगी। यह हिन्दी-चीन भाई-भाई का युग था और इसलिए भारत सरकार ने चीन की नेकनीयती पर संदेह नहीं Reseller लेकिन चीन ने कभी अपना नक्शा नहीं बदला और उनके प्रत्येक संस्करण में Indian Customer भू-भागों पर चीन का दावा बढ़ता गया।
भारत और चीन का सीमा विवाद मुख्यत: दो सीमान्तों के ऊपर है। उत्तर-पूर्व में मैकमोहन रेखा और उत्तर-पश्चिम में लद्दाख। भारत मैकमोहन रेखा को अपने और चीन के बीच Single निश्चित सीमान्त रेखा मानता है, लेकिन चीन उसे साम्राज्यवादी रेखा कहता है। उसका कहना है कि इस रेखा को चीन की किसी सरकार ने कभी मान्यता नहीं दी है। इसी तर्क के आधार पर चीन ने लोगंचू पर अधिकार कर लिया, यद्यपि पीछे उसको यहां से हट जाना पड़ा। लद्दाख में भी उसने भारत के Single बड़े भू-भाग पर दावा Reseller। उसने भारत को प्रादेशिक सीमाओं में अक्षय चीन सड़क को अनाधिकृत Reseller से बना लिया और इस प्रकार भारत के Single बहुत बड़े भू-भाग पर कब्जा कर लिया।
भारत सरकार को इस तथ्य की जानकारी बहुत First से थी, लेकिन Indian Customer जनता से इस तथ्य को छिपाकर रखा गया था। इसलिए जब Indian Customer जनता को सहसा यह ज्ञात हुआ कि भारत-चीन सीमा प्रदेश पर चीन की सशस्त्र टुकड़ियों ने भारत का बहुत सा क्षेत्र दबा लिया और अधिक भूमि हस्तगत करने की तैयारी कर रही है, तब वह हतप्रभ हो गयी।
आक्रामकों को खदेड़ने के लिए मांग होने लगी। लोगंचू चौकी पर सेना के कब्जे तथा लद्लाख में लुर्म सिंह के नेतृत्व में सीमा प्रदेश की जांच पड़ताल करने वाले Indian Customer पुलिस दल के विरूद्ध चीनी सैनिक कार्रवाई से तो यह असंतोष और भी उग्र हो उठा। प्रतिषोध ाात्मक सैनिक कार्यवाही की व्यापक मांग के बावजूद नेहरू ने इसे स्वीकार नहीं Reseller और समझौता वार्ता द्वारा समस्या को सुलझाने पर बल दिया। उनका तर्क था कि भारत All अंतरराष्ट्रीय समस्याओं को शांतिपूर्ण ढंग से सुलझाने के लिए बचन बद्ध है।
चीन की इन कार्रवाइयों को भारत पंचषील का उल्लंघन मानता रहा और उनका विरोध करता रहा। अत:And इन विवादों के शांतिपूर्ण समाधान के लिए 1960 के अप्रैल में चीन ने यह प्रस्ताव Reseller कि दोनों देशों के उच्च पदधिकारी इन सारी समस्याओं का अध्ययन करें और यह खोजने का प्रयास करें कि उनका शांतिपूर्ण समाधान कैसे Reseller जा सकता है। उसी वर्ष रंगून में इन पदधिकारियों का सम्मेलन हुआ, लेकिन कोई संतोशजनक समाधान नहीं निकल सका। इन पदधिकारियों की रिपोर्ट से यह ज्ञात हुआ कि इस समस्या के ऊपर दोनों पक्षों की दृष्टियों में घोर अंतर है।
इस हालत में दोनों के बीच तनातनी बनी रही। चीन के लद्दाख के दो हजार वर्गमील के नये क्षेत्र पर नया दावा Reseller। 1956 में चीन ने अपने दावे के समर्थन में जो नक्शा पेश Reseller था उसके According चीन का दावा लद्दाख में दस हजार वर्गमील पर था, लेकिन दोनों के अधिकारियों की वार्ता में जो नक्शा दिया गया उसके हिसाब से लद्दाख में चीन का दावा बारह हजार वर्गमील हो गया। अब चीन का यह दावा पचास हजार वर्गमील हो गया-पश्चिमी अंचल में बारह हजार वर्गमील, पूर्वी अंचल में बत्तीस हजार पांच सौ वर्गमील, मध्य में पांच सौ वर्गमील तथा कश्मीर के काराकोरम दरें से पश्चिम की ओर से पांच हजार वर्गमील। इस दावे में लगभग पचास हजार वर्गमील चीन के अधिकार में है। इस कारण भारत और चीन के बीच तनातनी का बढ़ना स्वाभाविक था।
लेकिन चीन को इस तनातनी की कोई परवाह नहीं थी। 1961 में Indian Customer भूमि पर दोनों पक्षों के मध्य सैनिक झड़पें होती रहीं। इस हालत में पंचषील संधि को नहीं दुहराया जा सकता था। 1954 के समझौते के According 2 दिसंबर 1961 को पंचशील की संधि दुहराई जानी चाहिए थी लेकिन बदली हुई परिस्थिति में यह असम्भव था और भारत-चीन पंचशील संधि की अकाल मृत्यु हो गई। भारत-चीन सीमा विवाद का description 10 मई 1962 को भारत ने चीन के सामने सीमा विवाद को तय करने के लिए वार्ताएं प्रारंभ करने का प्रस्ताव रखा। चीन ने उसे अस्वीकृत कर दिया और 11 जुलाई को गलवान घाटी में उसने Fight का शंख बजा दिया।
भारत द्वारा आक्रमण का दोषारोपण करके चीनी सैनिकों ने लद्दाख में Indian Customer चौकियों के प्रहरियों को घेरना शुरू Reseller, लेकिन Indian Customer सेना के सामने उनकी Single न चली और गलवान घाटी से चीनी सैनिकों को हट जाना पड़ा। इसके बाद अक्टबू र में नेफा क्षेत्रों में चीनियों का आक्रमण शुरू हुआ। Indian Customer चौकियों पर आक्रमण करने के चार दिन बाद Meansात अक्टूबर 1962 को चीन की सरकार द्वारा Single त्रिसूत्री प्रस्ताव पारित Reseller गया जो इस प्रकार था:
1.चीन की सरकार यह आषा करती है कि भारत की सरकार इस बात से अपनी Agreeि प्रकट करेगी कि दोनों पक्ष भारत-चीन के बीच की वास्तविक नियंत्रण रेखा का आदर करते हैं और दोनों पक्ष की सेनाएं उक्त नियंत्रण रेखा से बीस किलोमीटर दूर हट जायें।
2ण् भारत सरकार द्वारा यह न स्वीकार किये जाने पर भी चीन की सरकार दोनों सरकारों के विचार-विमर्ष के उपरांत पूर्वी क्षेत्र में वास्तविक नियंत्रण रेखा से अपने सैनिकों को हटाने के लिए तैयार है। इसी समय दोनों पक्ष उक्त वास्तविक नियंत्रण रेखा जो सीमा के मध्य और पश्चिमी क्षेत्र की परंपरागत सीमा रेखा है, का उल्लंघन न करने के लिए वचनबद्ध हों।
3ण् दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों की वार्ता हो ताकि सीमा समस्या का शांतिपूर्ण समाधान हो। इसके बाद ही 16 नवंबर को चीन ने नेफा और लद्दाख के क्षेत्रों में बड़े प्रचण्ड Reseller से आक्रमण शुरू कर दिया।
इस बार चीनियों ने बड़े पैमाने पर Fight की तैयारी की थी। वे टैंक और आधुनिकतम हथियारों से लैस होकर Indian Customer भूमि पर उतरे थे। भारत इतने बड़े पैमाने पर Fight करने के लिए तैयार नहीं हो सका। फलत: Indian Customer सेना को कई स्थलों को छोड़ना पड़ा। चीनी सेना बढ़ती हुई Indian Customer प्रदेश में प्रवेष करने लगी और तेजपुर से कोई अस्सी मील उत्तर तक आ गई। यह भारत और चीन के बीच Single अघोशित Fight था।
चीन के प्रधानमंत्री ने भारत के समक्ष वार्ताएं शुरू करने के लिए Single त्रिसूत्री प्रस्ताव रखा था। कोई भी स्वाभिमानी देश इस शर्त को नहीं मान सकता था। अत: एंव भारत ने उसे नामंजूर कर दिया। भारत ने यह मांग की कि चीनी सेना 8 दिसंबर की स्थिति में चली जाये और आक्रमण का अतं हो, तभी चीन के साथ किसी प्रकार बातचीत शुरू हो सकती है।
चीन इसके लिए तैयार नहीं हुआ, पर चीन के लिए अब Fight जारी रखना असंभव था। जाड़े का महीना आ रहा था और उस समय हिमाचल क्षेत्र में नीनियों को टिकना असभ्ं ाव था। उधर सोवियत संघ भीतर ही भीतर चीन पर आक्रमण बंद करने के लिए दबाव डाल रहा था। चीनी हमले के खिलाफ भारत में भी अपूर्व जनजागरण हुआ और भिन्न देशों से भारत को सहायता मिलने लगी। इन सब बातों को देखकर Fight बंद कर देने में ही चीन ने अपना कल्याण समझा।
20 नवंबर को उसने Single तरफा Fight बंद कर देने की घोषणा कर दी। उसने यह भी घोषणा की, कि 1 दिसंबर से वह अपनी फौज को 7 नवंबर की नियंत्रण रेखा तक वापस लौटा लेगा। All दृश्टियों से यह चीन की Single भयंकर राजनीतिक चाल थीं इसके द्वारा वह न केवल भारत को वर्न समस्त विश्व को धोखे में डालना चाहता था। इस घोषणा के उत्तर में नेहरू अपनी उसी पूर्ववर्ती मांग पर डटे रहे कि चीन 8 सितंबर वाली रेखा पर वापस जाये तभी उससे कोई वार्ता हो सकती है। चीन ने जिस तरह की मांग रखी है वह न केवल अपमानजनक किंतु सीमा के समस्त दर्रों पर तथा अधिकांश Indian Customer प्रदेश पर उसका अधिकार पक्का करने वाली है।
यह ध्यान देने योग्य बात है कि चीन वहां तक अपनी सेना हटाने को तैयार था। चीन की घोषणा में कहा गया था कि वह नेफा में अवध्ै मकै मोहन रेखा के पार अपनी सेना हटा लेगा और शेष सीमा पर वह अपने वर्तमान अधिकार क्षेत्र की सीमा से साढ़े चार मील पीछे हटेगा।
इसका तात्पर्य यह हुआ कि लद्दाख में जहां पचासी मील आगे बढ़ आया था, वहां पर अपना प्रभुत्व सिद्ध करने के लिए केवल साढ़े बारह मील पीछे हटेगा और इस प्रकार वहां लगभग सोलह हजार वर्गमील पर अपना आधिपत्य कायम रहखेगा। इतना ही नहीं पूर्वी क्षेत्र में भी वह थागला पहाड़ी तथा उसके निकटवर्ती All चौकियों पर अपना प्रभुत्व रखना चाहता था। चीन की शर्त थी कि वह अपने नियंत्रण के क्षेत्र में अपनी चौकियों को अक्षुण्ण रखेगा और उसे क्षेत्र की शांति व्यवस्था के लिए अपनी पुलिस भी तैनात रखेगा।
इस प्रकार अपने नियंत्रण के क्षेत्रों में वह असैनिक शासन-व्यवस्था स्थापित रखना चाहता था और साथ ही भारत को इस अधिकार से वंचित रखना चाहता था कि वह अपनी खोयी हुई चौकियों को पुन: प्राप्त कर सके। उसने भारत को धमकी भी दी कि यदि भारत ने फिर चौResellerं स्थापित करने की चेष्टा की तो चीन को पुन: लड़ाई प्रारंभ कर देने का अधिकार रहेगा। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि Fight विराम क प्रस्ताव न केवल भ्रमात्मक ही था वरन इसकी स्वीकृति भारत के लिए सांघातिक होती।
भारत सरकार के विदेश मंत्रालय ने चीन के इस प्रस्ताव को सावधानी से अध्ययन Reseller और इसके विश्लेषण करने के बाद इस नतीजे पर पहुंचा कि कई Meansों में यह प्रस्ताव 24 अक्टूबर के प्रस्ताव से भी खराब है। इस विश्लेषण के According चीन न केवल 8 सितंबर 1962 से First शक्ति के प्रयोग से हथियाये हुए काफी बड़े Indian Customer भू-भाग पर नियंत्रण बनाये रखना चाहता है बल्कि लद्दाख और नेफा दोनों में 8 सितंबर 1962 के बाद विशाल आक्रमणों से कब्जा किये प्रदेश पर भी नियंत्रण प्राप्त करना चाहता है। यह चीनी चाल इतनी स्पष्ट थी कि भारत उसे स्वीकार नहीं कर सकता था।
अत: भारत सरकार ने चीन के 21 नवंबर 1962 के प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया। फिर भी चीन ने Fight बंद कर दिया और इस कारण लड़ाई रूक गई। उसने जीते हुए Indian Customer प्रदेशों को भी खाली करना शुरू कर दिया। Fight में बहुत से Indian Customer सैनिक बंदी बना लिए गए थे। चीन ने इन बंदियों को रिहा कर दिया और भारत के सैनिक साजोसामान भी लौटा दिए।
चीन की धमकी
चीन ने भारत को 8 सितंबर से पूर्व की स्थिति स्थापित होने की मांग की मांग को ठुकरा दिया और यह धमकी दी कि इस बात पर अड़े रहने से सीमा संघर्ष सुलझ नहीं पायेगा। उसने भारत को आक्रमक बतलाया। इतना ही नहीं कोलम्बो-सम्मेलन प्रारंभ होने से पूर्व उसने धमकी से भारत विरोधी प्रचार Reseller ताकि सम्मेलन के समस्त राश्ट्ों को धमका कर उन्हें भारत को न्यायसंगत मांगों के समर्थन करने से रोक सके। अपने इस प्रयास में वह बहुत हद तक सफल भी रहा। सम्मेलन के Single दिन पूर्व चीन भारत को Single धमकी भरा पत्र भेजकर निम्न बातों को हां या ना में उत्तर देने को कहा।
- भारत Fight विराम का प्रस्ताव करता है या नहीं
- भारत चीन का यह प्रस्ताव स्वीकार करता है या नहीं की दोनों देश की सेनाए नवंबर 1959 की नियंत्रण रेखा से 20 किलोमीटर पीछे हट जाए।
भारत ने इस प्रस्ताव को नामंजूर कर दिया।
कोलम्बों प्रस्ताव
भारत चीन संघर्ष से उत्पन्न विवाद एषियाई क्षेत्र की Safty को संकट मानकर वर्मा, श्रीलंका, इण्डोनेशिया, मिश्र तथा हाना आदि देशों ने कोलम्बों में Single सम्मेलन का आयोजन Reseller जिसका उद्देशय सीमा विवाद का हल करना था। श्रीलंका के प्रधानमंत्री श्रीमती भण्डारनायके ने अथक प्रयासों से जनवरी 1963 को कोलम्बो प्रस्ताव को प्रकाशन Reseller जिसके अतंगर्त भारत व चीन ने सीमा विवाद के हल हेतु प्रयास किये जायेंगे। परंतु चीन के असहयोग रवैये के कारण यह प्रस्ताव विफल रहा। कोलम्बो प्रस्ताव से मिलता जुलता Single प्रस्ताव मिश्र के राष्ट्रपति कर्नल नासिर ने 3 अक्टूबर 1963 को प्रस्तुत Reseller, किंतु यह भी विफल रहा।
सन् 1963 के भारत पाक Fight में Single बार पुन: Indian Customer चीन शत्रुता स्पष्ट हो गई। ज्ञातव्य है कि सन् 1960 से ही चीन पाकिस्तान को अपने संबंधों को मधुर बनाने की नीति पर चल रहा था। यद्यपि चीन व पाकिस्तान विरोधी व्यवस्था पर आधारित देश है, तथापि भारत के विरूद्ध वे Single Second के निकट आ गये। चीनी पाकिस्तानी भाई-भाई के नारों को सार्थक सिद्ध करते हुए 16 सितंबर 1965 को चीन ने भारत को यह धमकी दी थी कि तीन दिनों के अंदर भारत, सिक्किम चीन सीमा पर गरै कानूनी ढगं से बनाये गये सैनिक प्रतिष्ठानों को हटा ले अन्यथा परिणाम बुरा होगा। परंतु विश्वशांति बनाये रखने के दृश्टिकोण से महाशक्तियों के हस्तक्षेप से चीन को यह धमकी तक ही सीमित रहीं।
अप्रैल 1965 के बाद भारत चीन सम्बंधों में गतिरोध व्याप्त रहा। लेकिन अप्रैल 1971 में कैटन के व्यापारिक मेले में हांगकांग स्थित Indian Customer वाणिज्य आयुक्त को आमंत्रित करने से दोनों देशों के पारस्परिक संबंधों में कुछ नरमी आयी। फरवरी 1972 में पौलेण्ड में चीन व भारत के राजदूतों की हुई मुलाकात तथा 15 अगस्त 1962 को लाल किले समारोह पर चीनी दूतावासों के प्रतिनित्रिायों की उपस्थिति का भी कोई ठोस महत्वपूर्ण परिणाम नहीं निकला। दूसरी ओर भारत चीन से मधुर संबंधों की स्थापना हेतु प्रयत्न रह। सन् 1976 में श्रीमती इंदिरा गांधी ने Single पक्षीय कार्यवाही द्वारा राजदूतों का आदान प्रदान करके श्री के. आर. नारायण की चीन में राजदूत के Reseller में Appointment की।
सन् 1977 में सत्ता में आयी जनता पार्टी ने भी चीन से मधुर सबंध्ं ाों की नीति के अंतर्गत विदेश मंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी को चीन भेजा परंतु उसी समय वियतनाम पर चीन के आक्रमण होने से भारत चीन संबंधों को सामान्य बनाने के प्रयासों पर प्रष्न चिन्ह लग गया। तथापि कालान्तर में दोनों देश सीमा विवाद के हल आर्थिक, सांस्कृतिक व “ौक्षणिक समझौतों हेतु प्रयत्नषील दृश्टिगत हुए।
युद्द के परिणाम
चीन के सरकारी सैन्य History के According, इस Fight से चीन ने अपने पश्चिमी सेक्टर की सीमा की रक्षा की नीति के लक्ष्यों को हासिल Reseller, क्योंकि चीन ने अक्साई चिन का वास्ताविक नियंत्रण बनाए रखा। Fight के बाद भारत ने फॉरवर्ड नीति को त्याग दिया और वास्तविक नियंत्रण रेखा वास्तविक सीमाओं में परिवर्तित हो गयी।
जेम्स केल्विन के According, भले ही चीन ने Single सैन्य विजय पा ली परन्तु उसने अपनी छवि अंतरराष्ट्रीय के मामले में खो दी। पश्चिमी देशों, खासकर अमेरिका, को First से ही चीनी नजरिए, इरादों और कार्यों पर शक था। इन देशों ने चीन के लक्ष्यों को विश्व विजय के Reseller में देखा और स्तश्ट Reseller से यह माना की सीमा Fight में चीन हमलावर के Reseller में था। चीन की अक्टबू र 1964 में First परमाणु हथियार परीक्षण करने और 1965 के भारत पाकिस्तान Fight में पाकिस्तान को समर्थन करने से कम्युनिस्टों के लक्ष्य तथा उद्देष्यों And पूरे पाकिस्तान में चीनी प्रभाव के अमेरिकी राय की पुटि हो जाती है।
भारत
Fight के बाद Indian Customer सेना में व्यापक बदलाव आये और भविश्य में इसी तरह के संघर्ष के लिए तैयार रहने की जरूरत महसूस की गई। Fight से Indian Customer प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू पर दबाव आया जिन्हें भारत पर चीनी हमले की आशंका में असफल रहने के लिए जिम्मेदार के Reseller में देखा गया। Indian Customerों में देशभक्ति की भारी लहर उठनी शुरू हो गयी और Fight में शहीद हुए Indian Customer सैनिकों के लिए कई स्मारक बनाये गए। यकीनन, मुख्य सबक जो भारत ने Fight से सीखा है वह है अपने ही देश का मजबूत बनाने की जरूरत और चीन के साथ नेहरू की ‘‘भाईचारे’’ वाली विदेश नीति से Single बदलाव Reseller। भारत पर चीनी आक्रमण की आशंका को भाँपने की अक्षमता के कारण, प्रधानमंत्री नेहरू को चीन के साथ शांनिवादी संबंधों को बढ़ावा के लिए सरकारी अधिकारियों से कठोर आलोचना का सामना करना पड़ा।
Indian Customer राष्ट्रपति राधाकृष्णन ने कहा कि नेहरू की सरकार अपरिश्कृत और तयै ारी के बारे में लापरवाह थी नेहरू ने स्वीकार Reseller कि Indian Customer अपनी समझ की दुनिया में रह रहे थे। Indian Customer नेताओं ने आक्रमणकारियों को वापस खदेडने पर पूरा ध्यान केंद्रित करने की बजाय रक्षा मंत्रालय से कृष्ण मेनन को हटाने पर काफी प्रयास बिताया।
Indian Customer सेना कृष्ण मने न के ‘‘कृपापात्र को अच्छी Appointment’’ की नीतियों की वजह से विभाजित हो गयी थी और कुल मिलाकर 1962 का Fight Indian Customerों द्वारा Single सैन्य पराजय और Single राजनीतिक आपदा के संयोजन के Reseller में देखा गया। उपलब्ध विकल्पों पर गौर न करके बल्कि अमेरिकी सलाह के तहत भारत ने वायु सेना का उपयोग चीनी सैनिकों वापस खदेडऩ े में नही Reseller। सीआईए (अमेरिकी गुप्तरच संस्था) ने बाद में कहा कि उस समय तिब्बत में न तो चीनी सैनिको के पास में पर्याप्त मात्रा में र्इंधन थे और न ही काफी लम्बा रनवे था जिससे वे वायु सेना प्रभावी Reseller से उपयोग करने में असमर्थ थे।
अधिकाँश Indian Customer चीन और उसके सैनिको को संदेह की दृश्टि से देखने लगे। कई Indian Customer Fight को चीन के साथ Single लबं े समय से शांति स्थापित करने में भारत के प्रयास में Single विश्वासघात के Reseller में देखने लगे। नेहरू द्वारा ‘‘हिन्दी-चीनी भाई, भाई’’ (जिसका Means है ‘‘Indian Customer और चीनी भाई है’’) Word के उपयोग पर भी सवाल शुरू हो गए। इस Fight ने की इन आशाओं को खत्म कर दिया कि भारत और चीन Single मजबूत एशियाई ध्रुव बना सकते हैं जो शीत Fight गुट की महाशक्तियों के बढ़ते प्रभाव की प्रतिक्रिया होगी। सेना के पूर्ण Reseller से तैयार नहीं होने का सारा दोश रक्षा मंत्री मेनन पर आ गया, जिन्होंने अपने सरकारी पद से इस्तीफा दे दिया ताकि नए मंत्री भारत के सैन्य आधुनिकीकरण को बढ़ावा दे सके।
स्वदेशी स्त्रोतों और आत्मनिर्भरता के माध्यम से हथियारों की आपूर्ति की भारत की नीति को इस Fight ने पुख्ता Reseller। Indian Customer सनैय कमजारेी को महससू करके पाकिस्तान ने जम्मू और कश्मीर में घुसपैठ शुरू कर दी जिसकी परिणिति अंतत: 1965 में भारत के साथ दूसरा Fight से हुआ। हालांकि, भारत ने Fight में भारत की अपूर्ण तैयारी के कारणों के लिए हेंडरसन-ब्रूक्स-भगत रिपोर्ट का गठन Reseller था। परिणाम अनिर्णायक था, क्योंकि जीत के फैसले पर विभिन्न स्त्रोत विभाजित थे। कुछ सूत्रों का तर्क है कि चूकिं भारत ने पाकिस्तान से अधिक क्षेत्र पर कब्जा कर लिया था, भारत स्पष्ट Reseller से जीता था। लेकिन, दूसरों का तर्क था कि भारत को महत्वपूर्ण नुकसान उठाना पड़ा था और इसलिए, Fight का परिणाम अनिर्णायक था।
दो साल बाद, 1967 में, चोल घटना के Reseller में चीनी और Indian Customer सैनिकों के बीच Single छोटी सीमा झड़प हुई। इस घटना में आठ चीनी सैनिकों और 4 Indian Customer सैनिकों की जान गयी।
जनरल हेंडरसन ब्रुक्स रिपोर्ट
हार के कारणों को जानने के लिए भारत सरकार ने Fight के तत्काल बाद ले. जनरल हेंडरसन ब्रुक्स और इंडियन मिलिट्री Singleेडमी के तत्कालीन कमानडेंट ब्रिगेडियर पी. एस. भगत के नेतृत्व में Single समिति बनाई थी। दोनों सैन्य अब्रिाकारियो द्वारा सौंपी गई रिपोर्ट को भारत सरकार अभी भी इसे गुप्त रिपोर्ट मानती है। शायद दोनों अधिकारियों ने अपनी रिपोर्ट में हार के लिए प्रधानमत्रं ी जवाहर लाल नेहरू को जिम्मेदार ठहराया था।
भारत-चीन युद्द के दूरगामी परिणाम सामने आए –
- भारत-चीन संबंध तनापूर्ण हो गये।
- भारत के भ-ू भाग का Single बडा भाग चीन के कब्जे में चला गया।
- भारत की अंतर्राश्ट्रीय छवि And गुटनिरपेक्ष नीति आहत हुई।
- Indian Customer विदेश नीति में आद’रवाद के स्थान पर व्यावहारिकता और यथार्थवाद को स्थान मिला।
- भारत – अमेरिका के संबंधों में सुधार हुआ।
संदर्भ –
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