कृषि के प्रकार, महत्व And विशेषताएं
कृषि – परिचय And महत्व
भारत Single कृषि प्रधान देश हैं। अति प्राचीन काल से ही कृषिकार्य Reseller जाता हैं। जब संसार के अधिकांश Human असभ्य थे, उस समय भारतवासी कृषि में निपुण थे। इस बात का History साक्षी हैं। आर्य युग में जुतार्इ सिंचार्इ, कटार्इ, निदार्इ, आदि कार्य Reseller जाता था। कृषि के साथ पशुपालन व्यवसाय संलग्न हैं। वर्तमान में देश की लगभग 64 प्रतिशत जनसंख्या अपनी जीविका के लिये प्रत्यक्ष Reseller से कृषि कार्य पर निर्भर हैं। विश्व में चीन के बाद भारत ही वह दूसरा देश हैं, जहाँ इतनी बड़ी संख्या में लोग कृषिकार्य में संलग्न हैं। कृषि Indian Customer Meansव्यवस्था का मूल आधार हैं तथा देश की 50 प्रतिशत कृषि से ही होती हैं। देश के घरेलू उत्पाद में कृषि क्षेत्र का लगभग 26 प्रतिशत योगदान हैं। देश के कुल निर्यातों में कृषि का योगदान 1999-2000 में 43 प्रतिशत था। इसीलिये कृषि को देश की Meansव्यवस्था की रीढ़ कहा जाता हैं। भारत के 22 करोड़ पशुओं का भोजन भी कृषि जन्य पदार्थो से प्राप्त होता हैं। गैर कृषि क्षेत्र के लिये बड़ी मात्रा में उपभोक्ता वस्तुयें और अधिकांश बड़े उद्योग जैसे सूती वस्त्र, जूट उद्योग, चीनी उद्य़ोग, कागज उद्योग, वनस्पति उद्योग, घी उद्योग आदि को कच्चा माल कृषि से ही प्राप्त होता हैं। देश की Single अरब से भी अधिक जनसंख्या का भरण पोषण कृषि के विकास से ही संभव हैं। कृषि के प्रकार भारत Single विशाल देश हैं। विशाल देश होने के साथ साथ कृषि प्रधान देश भी हैं। जो कि मानसूनी जलवायु And सिंचार्इ पर निर्भर हैं। फसलों का उत्पादन यहां की जलवायु मिट्टी, स्थलाकृति आदि की पर्याप्त विभिन्नता हैं। यहां पर अनेक प्रकार से कृषि की जाती हैं। भारत की कृषि पर वर्षा का प्रभाव अधिक पड़ता हैं।
कृषि के प्रकार
1. आर्द्र कृषि:-
भारत के जिन भागों में 100 से 200 सेमी. की वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्रों में और समतल धरातल पर कॉप मिट्टी की प्रधानता पायी जाती हैं। वहां आध्र्द खेती की जाती हैं। इन भागों में चॉवल की वर्श में दो फसलें ली जाती हैं। पष्चिम बंगाल, ब्रम्हपुत्र की घाटी, केरल, पूर्वी तट के दक्षिणी भाग तथा पूर्वी भारत के अन्य प्रदेशों में आध्र्द कृषि का अधिक प्रचलन हैं। जिन क्षेत्रों में आदिवासियें की अधिकता हैं। जैसे नागालैंड, त्रिपुरा, मणिपुर, मेघालय, अरूणाचलप्रदेश और पष्चिमी घाट वहां चलवासी कृषि की जाती हैं। 200 सेमी. से अधिक वर्शा होने से मिट्टी में नमी बनी रहती हैं और वर्श में दो तीन फसलें लेने के बाद जंगल काटकर नये खेत बना दिये जाते हैं और पुराने खेत अनुपजाऊ हो जाने से त्याग दिये जाते हैं। इस प्रकार कृषि को झूमिंग कृषि कहते हैं।
2. शुष्क कृषि:-
शुष्क कृषि मुख्यत: उन प्रदेशों में की जाती हैं तथा फसलें पूर्णतः वर्षा पर निर्भर होती हैं। भारत में जिन क्षेत्रो में 50 सेमी. से कम वर्शा होती हैं। वहां इस प्रकार की खेती की जाती हैं। शुष्क कृषि के अंतर्गत कृषि में अधिक व्यय होता हैं। इसमें उन्हीं फसलों का उत्पादन Reseller जाता हैं, जो शुष्कता को सहन कर सके। इन क्षेत्रों में दालें, गेहूँ, ज्वार, बाजरा, तिलहन, मक्का आदि फसलें पैदा की जाती हैं। दक्षिण हरियाणा, पूर्वी राजस्थान व पश्चिम घाट के वृष्टि प्रदेश हैं। ये सूखाग्रस्त क्षेत्र कहलाते हैं।
3. निर्वहन या जीविकोपार्जन कृषि:-
इस प्रकार की कृषि कृषक द्वारा अपने परिवार के जीविकोंपार्जन संपूर्ण कृषि उत्पादन परिवार की Need की पूर्ति में ही खप जाता हैं।
विशेषताएं:-
- प्राय: खेत छोटे आकार का होता हैं।
- कृषि कार्य हेतु छोटे औजारों का प्रयोग होता हैं। Humanश्रम Single पशुबल को अधिक महत्व दिया जाता हैं।
- अधिकतम उत्पादन हेतु वर्श में Single या दो फसल ली जाती हैं।
- खाद्यान्न फसलों की प्रधानता होती हैं।
- अधिकांश उपजाऊ भूमि में कृषि की जाती हैं। चारागाह की कमी।
4. व्यापारिक कृषि:-
- व्यापार के उद्देष्य से की जाने वाली फसलों को कृषि कहते हैं। इसे मृद्रादायिनी कृषि भी कहते हैं।
- कृषि उत्पादन बड़ें पैमानें पर व्यापार के उद्देश्य से Reseller जाता हैं।
- All प्रकार के उत्तम खाद, उर्वरक एंव दवांर्इयां, मशीनों आदि का प्रयोग Reseller जाता हैं।
- रोपण, बागाती खेती, ट्रक फॉमिंग, डेयरी फॉमिर्ंग, आदि व्यापारिक कृषि के अंतर्गत आते हैं।
फसल चक्र
जब किसी खेत पर बार बार Single ही प्रकार की फसल उगायी जाती हैं तो उसकी उर्वरा शक्ति नश्ट हो जाती हैं। भूमि की उर्वरा शक्ति को बनाये रखने के Single ही खेत पर Single ही फसल को बार बार न उगायें। खाद्यान्न फसल के बाद फली वाले फसलें लेना जिससे अनेक तत्वों को विशेष Reseller से नाइट्रोजन को दोबारा मिट्टी को लौटा दिया जाता हैं। इसके लिये फली वाली फसलों मूंग, उड़द, तिलहन आदि का चक्र अपनाया जाता हैं। शस्यावर्तन भी कहते हैं।
मिश्रित फसल
जब Single ही खेत में दो अथवा दो से अधिक फसल Single साथ उगायी जाती हैं, तो उसे फसलों का साहचर्य कहा जाता हैं। ऐसी फसलों का चुनाव Reseller जाता हैं। जो पोशक तत्वों की दृष्टि से Single Second की पूरक होती हैं। जैसे किसान लोग प्राय: गन्ने के साथ गेहूँ, ज्वार के साथ उड़द, मूंग, तथा अफीम लहसून आदि की फसल बोया करते हैं।
गहन कृषि
जब किसी खेत में वर्ष में Single से अधिक फसलें उगार्इ जाती हैं तो उसे फसलों की गहनता कहा जाता हैं। फसलों की गहनता को सूचकांक द्वारा नापा जाता हैं। यदि किसी खेत में वर्ष भर में केवल Single ही फसल होती हैं तो उसका सूचकांक 100 होता हैं। यदि वर्ष में दो फसलें उगायी जाती हैं तो उस स्थिति में फसल सूचकांक 200 होता हैं। शस्य गहनता सूचकांक ज्ञात करने का सूत्र है।
शस्य गहनता सूचकाकं
शस्य गहनता
वास्तविक बोया क्षेत्रफल
सूचकांक:- —————— x100
कुल कृषि भूमि
फसलों की गहनता को प्रभावित करने वाले कारक।
- पर्याप्त वर्षा ।
- उर्वरकों का प्रयोग ।
- यंत्रीकरण ।
- फसलों का हेर-फेर।
नर्इ तकनीकी कृषि में नवीन प्रवृत्तियां का प्रभाव ।
- उत्पादकता में वृध्दि।
- उत्पादन लागत में कमी।
- किसानों की आय में कमी।
- समय की बचत।
- व्यापारिक कृषि का विस्तार।
- भारी कार्यो में मशीन का उपयोग।
- श्रम की कुशलता में वृद्धि।
- उपभोक्ता को लाभ।
- प्रकृति पर निर्भरता मे कमी।
- हरित क्रान्ति।
Indian Customer कृषि की विशेषताएं
भारत में कृषि की विशेषताएं निम्न प्रकार हैं:-
- कृषि देश की अधिकांश 64 प्रतिशत जनसंख्या की आजीविका का प्रमुख साधन हैं।
- यह राष्ट्रीय आय का प्रमुख स्त्रोत हैं। कुल राष्ट्रीय आय का लगभग Single चौथार्इ कृषि से प्राप्त होता है।
- उद्योगों को कच्चे माल की भरपूर आपूर्ति होती हैं। सूती वस्त्र जूट, तम्बाकू, शक्कर, व वनस्पति आदि उद्योगों को कच्चे माल की पूर्ति कृषि द्वारा ही की जाती हैं।
- हमारें यहां कृषि में श्रम की प्रधानता हैं। कृषि का अधिकांश कार्य किसान हाथ से करते हैं।
- अन्य देशों की तुलना में हमारे यहां कृषि योग्य भूमि का क्षेत्रफल सबसे अधिक हैं।
- भारत में पैदा की जाने वाली कर्इ फसलों चाय, जूट, तम्बाकू, कपास, तिलहन,व मसालें आदि के कारण कृषि का अंतर्राश्ट्रीय व्यापार में महत्वपूर्ण योगदान हैं। इससे भारत का अंतर्राष्ट्रीय महत्व बढ़ा हैं।
कृषि में नवीन प्रवृत्तियाँ
- उन्नत बीजो का प्रयोग।
- रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग में वृद्धि।
- बहुफसली कृषि यंत्रों के उपयोग में वृद्धि।
- फसल संरक्षण।
- आधुनिक कृषि यंत्रों में वृद्धि।
- लघुसिंचार्इ योजना हैं।
- भूमि का परीक्षण।
- गांवों में आधुनिक सुविधायें हैं।
- सहकारी समितियाँ तथा बैंक।
- राजकीय फार्म।
- फसन बीमा।
Indian Customer कृषि की समस्यायेंं And निदान
- कृषि की वर्षा पर निर्भरता।
- जोतो का छोटा आकार ।
- प्रति हेक्टेयर कम उत्पादन।
- मिट्टी की कम उत्पादन।
- जनसंख्या का अधिक दवाब।
- रूढ़िवादी किसान।
- सिंचार्इ की सुविधाओं का अभाव।
- उन्नत बीज एंव उर्वरकों का अभाव।
- सड़क तथा बिजली का अभाव।
निदान
- जमींदारी प्रथा का उन्मूलन।
- भूमि की अधिकतम सीमा का निर्धारण।
- चकबंदी कार्यक्रम को लागू करना।
- कृषि कार्य हेतु किसानों को प्रशिक्षण देना।
- ग्रामीण क्षेत्र में शिक्षा का प्रचार प्रसार करना।
- बैंकों के माध्यम से कम ब्याज पर ऋण उपलब्ध कराना ।
- मानसून की अनिष्चितता।
- कृषि अनुसंधान केंद्रों की स्थापना।