अधिकार सत्ता क्या है ?

अधिकार को शक्ति से भी सम्बोधित Reseller जाता है आदेशों का पालन निवेदन करके, अनुनय द्वारा , प्रार्थना द्वारा, स्वीकृति या मंजूरी द्वारा, शक्ति द्वारा, उत्पीड़न द्वारा, प्रतिबन्धों द्वारा, उत्पीड़न द्वारा, आर्थिक व अनार्थिक दण्ड द्वारा आदि विधियों से Reseller जा सकता है। वर्तमान समय में आदेशों का पालन कराने के लिए निवेदन या प्रार्थना ही अधिक सफल हो रहे हैं। अधिकार से ही अधीनस्थों को प्रभावित Reseller जा सकता है।

अधिकार का Means

अधिकार दूसरों को आदेश देने की शक्ति है। यह संगठन के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए शक्ति प्राप्तिकर्ता के निर्देशानुसार काम करने अथवा न करने का आदेश है। अधिकार से आशय विशिष्ट स्वत्व, शक्ति अथवा अनुमति से है। अधिकार के सम्बन्ध में विभिन्न विद्वानों ने अपने मत व्यक्त किये हैं जिन्हें हम परिभाषायें कह सकते हैं उनमें से कुछ प्रमुख परिभाषायें  हैं :-

  1. कूण्टज And आडेनेल के According – अधिकार से तात्पर्य वैधानिक या स्वत्वाधिकार सम्बन्धी शक्ति से होता है।
  2. हेनरी फयोल के According, ‘‘अधिकार हस्त आदेश देने का अधिकारन है और उसके पालन करवाने की शक्ति है।’’
  3. डेविस के According, ‘‘अधिकार सत्ता निणर्य लेने एव आदेश देने का अधिकार है।’’
  4. टरेरी के According, ‘‘किसी कार्य को करने , आदेश देने या दूसरों से काम लेने की शक्ति या अधिकार है।’’
  5. एलेन के According, ‘‘भारापिर्त कार्यों के निष्पादन को संभव बनाने के लिए सौंपी गर्इ शक्तियों को अधिकार के नाम से सम्बोधित Reseller जाता है।’’

उपर्युक्त परिभाषाओं के अध्ययन And विश्लेषण से स्पष्ट है कि अधिकार Single वैधानिक शक्ति है। जिसके बल पर उसे धारण करने वाला व्यक्ति, अधीनस्थ से कार्य करा सकता है या उसे कार्य से विरत रख सकता है तथा अनुशासनहीनता की स्थिति उत्पन्न होने पर अधीनस्थ को अपनी अस्थिाकार की सीमाओं में दण्डित कर सकता है।

अधिकार का महत्व

अधिकार प्रबन्ध का Single अस्त्र है जिसके माध्यम से अधीनस्थों से कार्य कराया जाता है। बिना अधिकार के कोर्इ भी व्यक्ति किसी से कार्य नहीं करा सकता है। अधिकारों का महत्व निम्नलिखित बिन्दुओं से स्पष्ट है :-

  1. प्रत्येक संगठन के संचालन के लिए अधिकार का होना आवश्यक है। 
  2. अधिकार के बल पर ही अधिकारी अधीनस्थ से काम करा सकता है। 
  3.  कार्यों के श्रेष्ठतम निष्पादन के लिए अधिकारों का ही भारार्पण Reseller जाता है।
  4. अधिकार से निर्णयन कार्य सरल And सुगम हो जाता है। 
  5. अधिकारों की प्राप्ति से कार्मिक के मनोबल में वृद्धि होती है। 
  6. अधिकारों की उपस्थिति, उत्तरदायित्व को Indispensable कर देती है। 
  7. अधिकारों से पहलपन की भावना का सृजन होता है। 
  8. अधिकारों के बल पर ही अनुशासनहीनता की स्थिति में अधीनस्थ को दण्डित Reseller जा सकता है।

अधिकार की सीमाएँ

संगठन के प्रत्येक स्तर के प्रबंधकों के पास अलग अलग सीमा तक अधिकार होते हैं। शीर्ष प्रबन्ध के पास अधिक तथा मध्य प्रबंधक के पास शीर्ष प्रबन्धक से कम अधिकार होते हैं। इसलिए अधिकारों का प्रयोग करते समय प्रबंधकों द्वारा इसकी सेवाओं को ध्यान में रखना आवश्यक है। अधिकार की कुछ प्रमुख सीमायें निम्नलिखित हैं-
अधिकारी को अपने अधीनस्थ को ऐसा आदेश नहीं देना चाहिए जिसका पालन असम्भव हो जैसे आसमान से तारे तोड़ लाओ। अधिकार का प्रयोग करते समय सम्बन्धित अन्य व्यक्तियों की प्रक्रियाओं को ध्यान में रखना चाहिए।
प्रबंध को अधीनस्थ को ऐसे आदेश नहीं देना चाहिए जो उसकी सीमा के बाहर हो।

  1. तकनीकी सीमाओं के परे कार्य हेतु आदेश नहीं देना चाहिए। 
  2. आदेश देते समय आर्थिक सीमाओं को ध्यान में रखना चाहिए। 
  3. प्रबंधकों को आदेश देने से पूर्व पद की सीमाओं को ध्यान में रखना चाहिए। 
  4. कोर्इ भी आदेश संगठन में प्रचलित नियमों के विरूद्ध नहीं होना चाहिए। प्रबन्धकीय सोपान में ऊपर से नीचे आने पर अधिकारों पर बन्धन बढ़ते जाते हैं।

अधिकार का केन्द्रीयकरण

अधिकार का भारार्पण न करना केन्द्रीयकरण कहलाता है। केन्द्रीयकरण में कार्य सम्बन्धी समस्त निर्णय सर्वोच्च प्रबन्ध द्वारा लिये जाते हैं अधीनस्थ तो केवल उसका पालन करते हैं। इसमें अधिकार And दायित्व शीर्ष प्रबन्धकों के लिए Windows Hosting कर दिये जाते हैं । ऐलन के Wordों में संगठन के प्रत्येक स्तर पर काम करने वाले व्यक्तियों द्वारा निर्णय न लेकर संगठन में किसी शीर्ष प्रबन्ध द्वारा निर्णय लेना केन्द्रीयकरण कहलाता है। अधिकार सत्ता के केन्द्रीयकरण पर अधिकार सर्वोच्च प्रशासन के हाथों में केन्द्रित रहती हैं। All विषयों पर निर्णय का अधिकार शीर्ष प्रबन्ध का होता है। अधीनस्थों का महत्व कम होता है। अधीनस्थ, उच्च प्रशासन द्वारा लिये गये निर्णयों को क्रियान्वित करते हैं केन्द्रीयकरण के कुछ प्रमुख महत्व हैं –

  1. केन्द्रीयकरण व्यक्तिगत नेतृत्व को सुविधाजनक बनाता है। 
  2. कार्य की SingleResellerता को प्रोत्साहन देता है। 
  3. आकस्मिक दशाओं में सफलता से कार्य करना सम्भव बनाता है। 
  4. केन्द्रीयकरण से संगठन पर प्रभावशाली नियंत्रण संभव है। 
  5. यह स्थायी व्ययों में कमी लाता है। 
  6. यह Singleता को बढ़ावा देता है। 
  7. संगठन के संसाधनों का अनुकूलतम प्रयोग सम्भव होता है।

अधिकार का विकेन्द्रीकरण

विकेन्द्रीकरण भारार्पण का विकसित Reseller है। अधिकारों के विकेन्द्रीकरण में अधीनस्थ कर्मचारियों को अधिकारों का व्यवस्थित Reseller से हस्तान्तरण Reseller जाता है। इससे अधीनस्थ कर्मचारियों की भूमिका में वृद्धि हो जाती है। हेनरी फेयोल के Wordों में वह प्रत्येक कार्य जिससे अधीनस्थ की भूमिका के महत्व में वृद्धि होती है। विकेन्द्रीकरण कहलाता है और जिससे उसकी भूमिका के महत्व में कमी होती है केन्द्रीयकरण के नाम से जाना जाता है। कीथ डेविस के Wordों में संगठन की छोटी से छोटी इकार्इ तक जहॉं तक व्यावहारिक हो, सत्ता And दायित्व का वितरण विकेन्द्रीकरण कहलाता हे। विकेन्द्रीकरण में ऊपर से नीचे तक लागू होने वाली प्रक्रिया होती है। अक्रिाकारों के विकेन्द्रीकरण को स्पष्ट Reseller जा सकता है –

  1. इससे अधीनस्थों की प्रबन्धकीय क्षमता का विकास होता है। 
  2. प्रभावशाली निरीक्षण सम्भव होता है।
  3. इससे श्रेष्ठ निर्णय लेने की प्रेरणा मिलती है। 
  4. शीर्षस्थ अधिकारियों के कार्य सार में कमी आने से वह अपना ध्यान व्यवसाय से सम्बन्धित अन्य महत्वपूर्ण पहलुओं पर ध्यान देते हैं।
  5. प्रबन्धकों के प्रशिक्षण And विकास में सहायता मिलती है। 
  6. अधीनस्थों का मनोबल ऊॅंचा उठता है। 
  7. नवीन विचारों, पद्धतियों And सुझावों की सरलतापूर्वक कार्यान्वित Reseller जा सकता है। 
  8. उद्देश्यानुसार प्रबंध प्रणाली को आसानी से लागू Reseller जा सकता है।

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