संगठन क्या है ?

हमारे समाज में धार्मिक संगठन (जैसे – विश्व हिन्दू परिषद, जमायते इस्लामी, कैथोलिक क्रिश्चियन सोसाइटी), राजनीतिक संगठन (कांग्रेस, Indian Customer जनता पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, समाजवादी पार्टी, कम्युनिस्ट पार्टी) आध् यात्मिक संगठन। राधास्वामी सत्संग, ओशो इंटरनेशनल, जूना अखाड़ा, निरंजनी अखाड़ा), आतंकवादी संगठन (लश्करे तैयबा, जैश ए मोहम्मद, तालिबान) वैधानिक संगठन (रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया, योजना आयोग) आदि अनेकों संगठन हैं जो अलग अलग गतिविधियों में संलग्न हैं। जिस संगठन का निर्माण जिन उद्देश्यों की पूर्ति के लिये होता है वह उसी कार्य में संलग्न रहते हैं, जिससे उनके लक्ष्यों की प्राप्ति सभ्मव हो सके। हम शिक्षा, नौकरी, उपचार, व्यवसाय, मनोरंजन, पर्यटन आदि का आनन्द सामाजिक संगठनों से ही प्राप्त करते हैं। संगठन से ही हम अपनी Needओं की पूर्ति करते हैं और उन्हें ही हम वस्तुएं और सेवायें प्रदान करते हैं। संभवत: Human संगठन में ही जन्म लेता है, संगठन में ही विकास करता है और संगठन में ही उसके जीवन का अंत हो जाता है।

Human Single सामाजिक प्राणी है। Human का जन्म विकास और अन्त समाज Resellerी संगठन में होता है। हम बिना संगठन के जीवित ही नहीं रह सकते। आज विश्व में Human संगठनों का निर्माण कर रहे हैं। संगठनों को प्रभावित कर रहे हैं और संगठनों से प्रभावित हो रहे हैं। परिवार सबसे छोटा सामाजिक संगठन है। संगठन समाज के नियमों को दृढ़ता प्रदान करते हैं। Human की प्रगति या अवनति संगठन पर ही निर्भर करती है। Human निर्मित संगठनों में आपसी सम्बन्ध संगठन के सदस्यों द्वारा निर्धारित होते हैं। संगठन के अभाव में किसी का अस्तित्व नहीं हैं।

संगठन के आशय व्यक्तियों के ऐसे समूह से है जो अपने उद्देश्यों की पूर्ति हेतु संगठन के संसाधनों And Humanीय प्रयासों में Single ऐसा सम्बन्ध स्थापित करता है। संगठन का आशय स्पष्ट करने हेतु विभिन्न विद्वानों ने अपने मत दिये हैं जिन्हें हम तीन वर्गों में विभक्त कर सकते है।

  1. व्यक्तियों के समूह के Reseller में
  2. व्यक्तियों की परस्पर सम्बन्धों की संCreation के Reseller में
  3. प्रक्रिया के Reseller में।

1. व्यक्तियों के Reseller में सगंठन –

संगठन व्यक्तियों का Single समूह है। इसका आशय यह कदापि नहीं है कि भीड़ Single संगठन है क्योंकि भीड़ का कोर्इ सामान्य उद्देश्य नहीं होता है। व्यक्तियों के Reseller में संगठन के सम्बन्ध में कुछ प्रमुख विद्वानों के मत हैं –

  1. चेस्टर आई बर्नार्ड के According, ‘‘सगंठन दो या दो से अधिक व्यक्तियों द्वारा सोच समझ कर की गर्इ समन्वित क्रियाओं का तंत्र है।
  2. मैक फालैड के According, ‘‘सगंठन से तात्पर्य व्यक्तियों के Single विशेष समूह से है जो पूर्वनिश्चित उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए मिलकर कार्य करते हैं।’’
  3. इटजियोनि के According, ‘‘सगंठन विशिष्ट उदद्ेश्यों की प्राप्ति के लिये, स्वेच्छा से निर्मित And पूर्वनिर्मित सामाजिक इकाइयाँ हैं।’’
  4. आर. सी. डेविस के According, ‘‘सगंठन व्यक्तियों का Single समहू है जो अपने नेता के निर्देशन में सामान्य उद्देश्य की पूर्ति हेतु सहयोग प्रदान करता हैं।’’

उपर्युक्त परिभाषाओं के अध्ययन And विश्लेषण के आधार पर हम यह कह सकते हैं कि ‘‘संगठन व्यक्तियों का Single समूह या तंत्र है जो Single व्यक्ति के नेतृत्व में पूर्व निश्चित उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए मिलकर समन्वित Reseller से कार्य करते हैं।’’

2. व्यक्तियों की परस्पर सरंचना के Reseller मे सगंठन-

इस दृष्टिकोण के According संगठन Single ऐसी संCreation है जो व्यक्तियों के समूह में परस्पर सम्बन्धों, अधिकारों, दायित्वों तथा कर्तव्यों को दर्शाती है। जिसके आधार पर सम्पूर्ण संगठन Single Singleीकृत इकार्इ के Reseller में कार्य करता है। इस सम्बन्ध में कुछ प्रमुख विद्वानों के विचार हैं –

  1. किम्बाल एव किम्बाल के According, ‘‘सगंठन के अन्तगर्त उन All कर्तव्यों का समावेश Reseller जाता है जो विभागों तथा उनके कर्मचारियों को तैयार करने, उनके प्रकार्यों की व्यवस्था करने तथा विभाग व व्यक्तियों के बीच सम्बन्धों के निश्चित करने से सम्बन्धित हैं।’’
  2. कूष्टज And आडेानेल के According, ‘‘सगंठन Single सामिप्राय And विन्धिसंगत भूमिकाओं अथवा अवस्थितियों की संCreation है।’’
  3. हरबर्ट ए. साइमन के According, ‘‘किसी Human समहू से संचार And अन्य सम्बन्धों के जटिल कलेवर को संगठन कहते हैं।’’
  4. हॉज व जॉॅनसन के According, ‘‘सगंठन Humanीय And भाैि तक तत्रं के अन्तर्जाल या ढांचे के Reseller में बनाया जाता है।’’
  5. थियो हैमेन के According, ‘‘सगंठन का तात्पर्य व्यक्तियों के कतर्व्यों के निर्धारण, उनके आवंटन And वर्गीकृत क्रियाओं के मध्य अधिकार सत्ता सम्बन्ध ाो की स्थापना तथा उनके अनुरक्षण से है।’’

अत: हम कह सकते हैं कि ‘‘संगठन व्यक्तियों के परस्पर सम्बन्धों की Single ऐसी संCreation है जिसके तहत संगठन के All व्यक्ति Singleीकृत And समान्वित Reseller से संगठन के उद्देश्यों को प्राप्त करने का प्रयास करते हैं।’’ संगठन में व्यक्तियों का Single समूह ही नहीं अपितु व्यक्तियों के बीच संबंधों की Single संCreation पायी जाती है। यदि Single परिवार को ले तो हम पायेंगे कि मॉं के अपने कर्तव्य और दायित्व हैं, पिता के अपने कर्तव्य और दायित्व हैं, बच्चों के अपने कर्तव्य और दायित्व हैं। पति पत्नी के अपने कर्तव्य और दायित्व हैं। इन कर्तव्यों और दायित्वों से परिवार में परस्पर Single संबंध संCreation विकसित हो जाती है। परन्तु सबका Single सर्वमान्य कर्तव्य है कि परिवार के हित के लिये कार्य करें। इसी प्रकार Single संगठन में भी व्यक्तियों के बीच परस्पर सम्बन्ध संCreation पायी जाती है। Single प्रबंधक, सुपरवाइजर, इंजीनियर, श्रमिक चौकीदार, आदि All के अपने कर्तव्य हैं परन्तु All का Single सर्वमान्य कर्तव्य संगठन के हित के लिये कार्य करना है। इस सम्बन्ध संCreation में कर्तव्य And दायित्वों का स्पष्ट विभाजन होता है। जिससे प्रत्येक व्यक्ति को उसके कार्य के लिये उत्तरदायी ठहराया जा सके। व्यक्तियों के बीच परस्पर  संबंध के अभाव में व्यक्तियों का समूह संगठन ही नहीं कहलायेगा। इसे केवल भीड़ ही कहा जा सकता है।

3. प्रक्रिया के Reseller में संगठन-

प्रक्रिया के Reseller में संगठन से आशय उन समस्त क्रियाओं के निष्पादन से है जिनके द्वारा संगठन का संचालन Reseller जाता है। इस मत के प्रमुख विचार हैं –

  1. उर्विक के According, ‘‘किसी कार्य को पूरा करने के लिए जिन जिन क्रियाओं को Reseller जाय, उनका निर्धारण करना And उन क्रियाओं को व्यक्तियों के व्यक्तियों के मध्य वितरित करना ही संगठन कहलाता है।
  2. र्इ.एफ.एल. के According, ‘‘सगंठन प्रबन्ध की कार्य सरंचना है क्याेिं क वह अधिक सार्थक कार्य सम्पादन के लिए कुल दायित्वों को ठीक ठीक विभक्त कर वितरित करता है।
  3. एलेन के According, ‘‘सगंठन कार्यो को निश्चित एव श्रेणीबद्ध करने दायित्वों And अधिकारों को परिभाषित And प्रत्यायोजित करने तथा उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु व्यक्तियों को श्रेष्ठतम विधि से काम करने के लिए सम्बन्ध स्थापित करने की प्रक्रिया है।

अत: हम कह सकते हैं कि ‘‘संगठन Single प्रक्रिया है जिसके अन्तर्गत संगठन की सम्पूर्ण क्रियाओं को निश्चित And वर्गीकृत Reseller जाता है, विभिन्न व्यक्तियों के मध्य अधिकारी And दायित्वों को आवंटित Reseller जाता है तथा उनके बीच परस्पर सम्बन्धों की स्थापना की जाती है।

इस प्रकार हम यह कह सकते हैं, कि संगठन Humanीय भौतिक संसाधनों का समूह है जिसमें All परस्पर अन्र्तवैयक्तिक सम्बन्धों द्वारा सम्बन्धित रहते हैं जिसमें All के अधिकारों And दायित्वों का समुचित निर्धारण होता है And पूर्वनिश्चित उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु All सामूहिक Reseller से प्रयासरत रहते हैं।

प्रत्येक संगठन कार्यों की Single निश्चित प्रक्रिया को अपनाता है और प्रत्येक प्रक्रिया के Single निश्चित चरण होते हैं। संगठन का Single प्रक्रिया के Reseller में विकास, व्यवसाय में प्रतियोगिता के बढ़ने के साथ साथ Indispensable हो गया है। प्रत्येक प्रक्रिया के, प्रत्येक चरण पूर्ण Reseller से परिभाशित होते हैं और प्रत्येक चरण किसी न किसी निर्णय से संबंधित होता है। प्रत्येक निर्णय किसी न किसी उद्देष्य की पूर्ति करते हैं और उद्देष्यों की पूर्ति हमें लक्ष्यों के नजदीक ले जाती है। इस प्रकार संगठन का विकास Single प्रक्रिया के Reseller में भी माना जाता है जिसमें सामूहिक उद्देष्यों की पूर्ति हेतु, सामूहिक प्रयास किये जाते हैं। क्रियाओं की जटिलताओं को कम करने के लिए ही संगठन में विभागों का विकास हुआ और इन विभिन्न विभागों के कार्यों में परस्पर समन्वय के लिए ही Single मुख्य कार्यकारी की व्यवस्था की गर्इ।

संगठन की विशेषताएँ

संगठन की विभिन्न परिभाषाओं के अध्ययन And विश्लेषण से संगठन की विशेषतायें दृष्टिगोचर होती हैं –

1. व्यक्तियो का समूह –

व्यक्ति Single निश्चित उद्देश्य की पूर्ति के लिए ही Single Second की ओर आकर्षित होते हैं और Single संगठन का निर्माण करते हैं। यह उद्देश्य पर निर्भर करता है कि किसे संगठन का सदस्य बनाया जाना चाहिए। और किसे संगठन का सदस्य नहीं बनाया जाना चाहिए। इस प्रकार Need ही व्यक्तियों को संगठन निर्माण के लिये प्रेरित करती है।

2. लक्ष्य का होना-

लक्ष्यों को ध्यान में रखकर ही संगठनों का निर्माण Reseller जाना And उसके सदस्य बनाये जाते हैं। लक्ष्य ही संगठनों को Single दिशा देते हैं। लक्ष्य ही कार्य पथ के चयन में सहायता प्रदान करते हैं। इसीलिये प्रत्येक संगठन अपने लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु सदैव प्रयत्नशील रहता है।

संसाधनों मेंं समन्वय-संगठन के संसाधनों में जितना अच्छा समन्वय होगा, संगठन उतने ही सरलता से अपने लक्ष्यों को प्राप्त कर सकेंगे।संगठन के लक्ष्यों के आधार पर ही, संगठन में संसाधनों की Need होती है। किसी भी संगठन में संसाधनों का अच्छा समन्वय तभी माना जायेगा जबकि न्यूनतम संसाधनों से अधिकतम उद्देश्यों की पूर्ति सम्भव हो।

3. Singleीकृत प्रणाली-

Singleीकृत प्रणाली के अभाव में संगठन छिन्न भिन्न हो जायेगा और निध्र्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति असम्भव हो जायेगी। किसी भी संगठन के लिए Singleीकृत प्रणाली इसलिये आवश्यक है क्योंकि संगठन के लक्ष्यों की प्राप्ति सामूहिक प्रयास से ही सम्भव है और इस प्रयास के लिये आवश्यक है कि संगठन में Single बेहतर संदेशवाहन तंत्र विकसित स्वReseller में हो और तभी संगठन Singleीकृत प्रणाली के Reseller में कार्य कर सकेंगे और निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त कर सकेंगें।

4. साधन-

संगठन का Single साधन के Reseller में सफल प्रयोग तभी सम्भव होगा जबकि संगठन स्वयं में सुव्यवस्थित, सुगठित And कार्यक्षम हो क्योंकि जब तक साधन श्रेष्ठ न हो और साधनों का प्रयोग श्रेष्ठतम ढंग से न Reseller जाय तब तक वांछित लक्ष्यों की प्राप्ति सम्भव नहीं है। संगठन को साधन के Reseller में प्रयोग कर ही हम अपने सामाजिक, आर्थिक , धार्मिक, राजनीतिक उद्देश्यों की पूर्ति करते हैं।

5. प्रन्धकीय व्यवस्था-

संगठन के संसाधनों का समन्वय, संगठन का Single साधन के Reseller में प्रयोग या संगठन को Singleीकृत प्रणाली के Reseller में प्रयोग करना आदि Single कुशल प्रबन्धन द्वारा ही सम्भव है इसीलिए संगठन को Single महत्वपूर्ण प्रबन्ध् ाकीय व्यवस्था माना जाता है जो निहित उद्देश्यों की पूर्ति हेतु सतत Reseller से कार्यरत रहती है।

6. प्रक्रिया-

संगठन Single प्रक्रिया के Reseller में निरन्तर गतिशील रहता है। संगठन Single निर्धारित उद्देश्यों की प्राप्ति करता हैं। संगठन के All कार्य Single चरणबद्ध तरीके से तथा सुनियोजित होते हैं। संगठन Single प्रक्रिया के Reseller में भी विकसित किये जाते हैं।

संगठन की प्रक्रिया

संगठन की प्रक्रिया से आशय, संगठन द्वारा उठाये गये उन आवश्यक कदमों से है जिससे संगठन प्रभावशाली ढंग से गतिशील रह सके। इसके लिए इन बिन्दु विचारणीय हैं।

1. क्रियाओं का वर्गीकरण 

प्रत्यके सगंठन से क्रियाओ का उचित वर्गीकरण Reseller जाना चाहिए। संगठन के प्रत्येक विभाग, विभाग के उपविभागों और उपविभागों से कार्यरत व्यक्तियों में कार्यों का स्पष्ट Reseller से वर्गीकरण Reseller जाना चाहिए। क्रियाओं के वर्गीकरण में यह सदैव ध्यान में रखना चाहिए कि कार्यभार का वितरण समान Reseller से तथा व्यक्ति या विभाग को अतिभार की अनुभूति। इससे संगठन के कार्य संचालन में संतुलन और समता बनी रहती है। संगठन के सफलतापूर्वक कार्य संचालन के लिये यह आवश्यक है कि विभिन्न विभागों के कार्यभार का समय समय पर मूल्यांकन करते रहना चाहिये।

2. व्यक्तियों में कार्य आवटंन

कार्मिकों में कार्य आवटंन के समय सतर्कता बरतनी चाहिए। काम का वितरण उचित आधारों पर Reseller जाना चाहिए। इसके लिए सम्बन्धित कार्मिक की योग्यता, अनुभव, कार्यचातुर्य आदि को ध्यान में रखा जा सकता है। कार्य के उचित आवंटन से व्यक्ति विशेष को उत्तरदायी ठहराया जा सकता है तथा इससे कार्य के प्रति व्यक्ति पर्याप्त Reseller से सजग रहते हैं।

3. निश्चितता

Single सगंठन का गठन Single निश्चित लक्ष्या ें की पा्र प्ति के लिये Reseller जाता है, संगठन Single निश्चित क्रियाविधि अपनाते हैं, Single निश्चित पथ का चयन करते हैं, निश्चित संसाधनों का प्रयोग करते हैं And Single निश्चित उद्देश्यों को प्राप्त करते हैं,। जब निश्चितता का अभाव हो जाता है तो असमंजस की स्थिति उत्पन्न हो जाती है और लक्ष्यों को प्राप्त करना दुरूह हो जाता हैं ।

4. सत्ता का हस्तान्तरण –

किसी सगंठन में कार्यो का आवटंन And उत्तरदायित्व के निर्धारण के साथ साथ यह परम आवश्यक है कि सम्बन्धित व्यक्ति को आवश्यक अधिकार दिये जायें जिससे वह निर्दिष्ट कार्य कर सकें। Single व्यक्ति All कार्य को सम्पन्न नहीं कर सकता है। करने/कराने हेतु आवश्यक अधिकार भी दिये जायें Meansात सत्ता का समुचित हस्तान्तरण भी Reseller जाय।

5. कुशलता –

सगंठन में उपलब्ध ससांधनों का प्रयोग कुशलता पूर्वक And सर्वोत्तम ढंग से Reseller जाना चाहिये जिससे संसाधनों की अधिकतम क्षमता का दोहन Reseller जा सके। इसके लिये उदारवादी कार्मिक नीति होनी चाहिए जिसमें र्इष्र्या, द्वेष संघर्ष, भेद भाव, दबाव And शोषणवादी प्रवृत्ति का सर्वथा अभाव होना चाहिए। जिसके परिणाम स्वReseller संगठन के All व्यक्ति तन्मय होकर सफलतापूर्वक कार्य करते हैं।

6. समन्वय एव संतुलन –

सगंठन के उद्देश्यों And कार्यों में समन्वय होना चाहिए। संगठन संCreation का कलेवर सुस्पष्ट होने पर ही बेहतर ढंग से समन्वय Reseller जा सकता है। संगठन के प्रत्येक कार्य, विभाग, व्यक्तियों में परस्पर समन्वय And संतुलन होना चाहिए। जिससे संसाधनों का अनुकूलतम प्रयोग सम्भव हो सके तथा श्रेष्ठतम परिणाम प्राप्त किये जा सकें।

7. लोचपूर्णता – 

सगंठन के कलेवर का विकास एव  विस्तार सुदढृ  आधारों पर Reseller जाना चाहिये जो दीर्घकाल तक गतिशील रह सके परन्तु आज के परिवर्तनशील युग में इस बात की भी Need है कि इसके कलेवर में लोचपूर्णता का गुण भी अवश्य होनी चाहिये जिससे Need पड़ने पर समुचित परिवर्तन कियेजा सकें। इन परिवर्तनों के कारण संगठन के कार्यों में किसी प्रकार अस्त व्यस्त नहीं होने चाहिए।

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