सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम

निजी कम्पनियां ऐसे क्षेत्रों में उद्योग लगाने हेतु रूचि नहीं लेते थे जिसमें, भारी पूंजी निवेश हो लाभ कम हो, सगर्भता की अवधि (जेस्टेशन पीरियड) लम्बी हो जैसे-मशीन निर्माण, आधारभूत ढ़ांचा, तेल अन्वेषण आदि इसी तरह निजी उद्यमी उन क्षेत्रों को ही प्राथमिकता देते हैं जहां संसाधन सुलभता से उपलब्ध हों जैस-कच्चे माल, श्रमिक, विद्युत, बाजार आदि। इसके परिणाम स्वReseller क्षे़त्रीय असंतुलन बढ़ने लगा था। इसलिए सरकार ने निजी डपक्रमों के व्यावसायिक कार्यकलापों को नियंत्रित करते हुए व्यवसाय में प्रत्यक्ष Reseller से भाग लेना प्रारंभ Reseller, और सार्वजनिक उद्रयो उदयमों जैसे, कोयला उद्योग तेल उद्योग मशीन-निमार्ण, इस्पात उत्पादन, वित्त आरै बैंकिंग, बीमा, रेलवे इत्यादि उद्योगो की स्थापना सरकार द्वारा की गर्इ है।

इन इकाइयों पर न केवल केन्द्र सरकार, राज्य सरकार या स्थानीय सरकारों का स्वामित्व रहता है, वरन् इनका प्रबंधन और नियंत्रण भी इनके द्वारा ही Reseller जाता है। ये इकाइयां सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम के नाम से जानी जाती हैं। इसमें आप सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों की प्रकृति और उनकी विशेषताओं तथा उनके संगठन के स्वResellerों के बारे में अध्ययन करेंगे।

सार्वजनिक उपक्रम का Means 

ऐसे व्यावसायिक इकाइयाँ जिनका स्वामित्व, प्रबंधन और नियंत्रण, केन्द्र सरकार, राज्य या स्थानीय सरकार के द्वारा Reseller जाता है उन्हें सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों अथवा सार्वजनिक उपक्रमों के नाम से जाना जाता है।

सार्वजनिक उपक्रमों के अन्तर्गत राष्ट्रीयकृत निजी क्षेत्र के उद्यमों जैसे, बैंक, Indian Customer जीवन बीमा निगम और सरकार द्वारा स्थापित नये उद्यमों जैसे हिन्दुस्तान मशीन टूल्स (एच एम टी), Indian Customer गैस प्राधिकरण (गेल), राज्य व्यापार निगम (एस टी सी), इत्यादि आते हैं।

सार्वजनिक उपक्रमों की विशेषताएँ 

सार्वजनिक उपक्रमों की प्रकृति को देखते हुए उनकी मूलभूत विशेषताएँ  हैं-

  1. सरकारी स्वामित्व And प्रबन्ध-सार्वजनिक उपक्रमों का स्वामित्व और प्रबन्ध केन्द्रीय सरकार, राज्य सरकार या स्थानीय सरकार के पास होता है तथा उन्हीं के द्वारा इनका प्रबन्ध Reseller जाता है। सार्वजनिक उपक्रमों पर या तो सरकार का पूर्ण स्वामित्व रहता है या उन पर सरकारी और निजी उद्योगपतियों तथा जनता का स्वामित्व संयुक्त Reseller से होता है। उदाहरण के लिए, राष्ट्रीय थर्मल पॉवर कार्पोरेशन Single औद्योगिक संगठन है, जिसकी स्थापना केन्द्रीय सरकार द्वारा की गर्इ और इसकी अंश पूँजी का भाग जनता द्वारा उपलब्ध कराया गया है। ऐसी ही स्थिति तेल And प्राकृतिक गैस निगम लिमिटेड (ओ एन जी सी) की है।
  2. सरकारी कोष से वित्तीय सहायता- सार्वजनिक उपक्रमों को उनकी पूॅंजी सरकारी कोष से मिलती है, और सरकार को उनकी पूॅंजी के लिए प्रावधान अपने बजट में करना पड़ता है।
  3. लोक कल्याण- सार्वजनिक उपक्रमों का लक्ष्य लाभ कमाना नहीं अपितु सेवाओं और वस्तुओं को उचित दामों पर उपलब्ध कराना होता हैं। इस संदर्भ में Indian Customer तेल निगम या Indian Customer गैस प्राधिकरण लिमिटेड (गेल) का उदाहरण ले सकते हैं। ये इकाइयॉं जनता को पैट्रोलियम और गैस उत्पादों को उचित मूल्य पर उपलब्ध कराते हैं।
  4. सार्वजनिक उपयोगी सेवाएॅ- सार्वजनिक उपक्रम लोक उपयोगी सेवाओं जैसे परिवहन, बिजली, दूरसंचार आदि को उपलब्ध कराते हैं।
  5. सार्वजनिक जवाबदेही- सार्वजनिक उपक्रम लोक नीतियों से शासित होते हैं जिन्हें सरकार बनाती है तथा यह विधायिका के प्रति उत्तरदायी होते हैं।
  6. अत्यधिक औपचारिकताएँ- सरकारी नियम And विनियम सार्वजनिक उद्यमों को उनके कार्यों में अनेकों औपचारिकताओं को पूरा करने के लिए बाध्य करते हैं। इसी के फलस्वReseller प्रबन्धन का कार्य बहुत संवेदनशील और बोझिल बन जाता है।

निजी क्षेत्र के उपक्रमों और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के बीच अन्तर 

निजी क्षेत्र से हमारा अभिप्राय आर्थिक और सामाजिक गतिविधियों का निजी तौर पर किसी Single व्यक्ति अथवा व्यक्तियों के समूह द्वारा संचालन से है। ये व्यक्ति लाभ कमाने के लिए निजी क्षेत्र में व्यवसाय करने को प्राथमिकता देते हैं। दूसरी ओर सार्वजनिक क्षेत्र का Means, सार्वजनिक प्रभुत्व के द्वारा आर्थिक और सामाजिक गतिविधियों का संचालन करना है। सार्वजनिक क्षेत्र में स्थापित उद्यमों का मुख्य उद्देश्य लोक हित को Safty प्रदान करना होता है।

सार्वजनिक उपक्रमों  के सगंठनों के प्रकार 

भारत में सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के सगंठन के तीन स्वReseller होते है। 1. विभागीय उपक्रम, 2. सांविधानिक (अथवा लोक) निगम; और 3. सरकारी कम्पनी।

  1. संगठन के विभागीय उपक्रम-स्वReseller का प्रयोग मुख्यत: आवश्यक सेवाओं जैसे, रेलवे, डाक सेवाएॅं, प्रसारण इत्यादि का प्रबन्ध करने के लिए Reseller जाता है। इन संगठनों का संचालन और संपूर्ण नियंत्रण सरकार के Single मंत्रालय के अधीन होता है, तथा इसकी वित्तीय व्यवस्था और नियंत्रण सरकार के द्वारा ठीक उसी प्रकार Reseller जाता है जैसे किसी अन्य विभाग का Reseller जाता है। सरकार जनता के हितों के विचार से ऐसे संगठनों पर नियंत्रण रखती है।
  2. सांविधिक निगम- (या सार्वजनिक निगम) से अभिप्राय संसद अथवा राज्य विधानमण्डल द्वारा निगमित संगठन का किसी विशेष अधिनियम द्वारा गठन से है जो इसके अधिकार, कार्य And प्रबन्धन के प्रतिमान को परिभाषित करता है। सांविधिक निगम को सार्वजनिक निगम के नाम से भी जाना जाता है। इसकी संपूर्ण वित्त व्यवस्था का प्रबंध सरकार द्वारा Reseller जाता है। इस प्रकार के संगठनों के उदाहरण हैं, Indian Customer जीवन बीमा निगम, राज्य व्यापार निगम, इत्यादि।
  3. सरकारी कम्पनी- सरकारी कम्पनी- से अभिप्राय उस कम्पनी से है जिसकी 51 प्रतिशत अथवा इससे अधिक प्रदत्त पूॅंजी सरकार के पास हो। यह कम्पनी अधिनियम के अन्तर्गत पंजीकृत होती हेै तथा इसका संचालन पूर्णत: अधिनियम के प्रावधानों के अनुReseller होता है। सरकार के स्वामित्व में उसके द्वारा प्रबंधित अधिकतर व्यवसाय इकाइयांॅ इसी श्रेणी में आती है।

1. विभागीय उपक्रम- 

सार्वजनिक उद्यमों में विभागीय उपक्रम सबसे पुराना है। विभागीय उपक्रम का निर्माण, प्रबंधन और वित्तीयन सरकार द्वारा Reseller जाता है। इसका नियंत्रण सरकार के विशेष विभाग द्वारा Reseller जाता है। इस प्रकार के प्रत्येक विभाग की अध्यक्षता Single मंत्री द्वारा की जाती है। All नीतिगत मामलों में और अन्य महत्वपूर्ण निर्णय नियंत्रक मंत्रालय द्वारा लिए जाते हैं। संसद ऐसे उपक्रमों के लिए सामान्य नीतियों को निर्धारित करती है। और उसे इन उपक्रमों पर लागू करती है।

विभागीय उपक्रमों की विशेषताएॅं – 

  1. इसका निर्माण सरकार द्वारा Reseller जाता है और इन पर मंत्री का पूर्ण नियंत्रण रहता है।
  2. यह सरकार का Single भाग है और इसका प्रबंधन सरकार के किसी अन्य विभाग की तरह होता है।
  3. इसकी वित्तीय आपूर्ति सरकारी कोष से होती है। 
  4. इन पर बजटीय, लेखांकन और अंकेक्षण नियंत्रण रहता है। 
  5. सरकार द्वारा इसकी नीतियां निर्धारित की जाती हैं और यह विधायिका के प्रति उत्तरदायी होता है। 

केन्द्रीय सार्वजनिक , क्षेत्र के उपक्रम ‘नवरत्न’ –

  1. बी एच र्इ एल – भारत हैवी इलैक्ट्रीकल्स लिमिटेड 
  2. बी पी सी एल – भारत पैट्रोलियम कॉरपोरेशन लिमिटेड 
  3. गेल – गैस अथोरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड 
  4. एच पी सी एल – हिंन्दुस्तान पैट्रोलियम कॉरपोरेशन लिमिटेड
  5. आर्इ ओ सी – इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन 
  6. एम टी एन एल – महानगर टेलीफोन निगम लिमिटेड 
  7. एन टी पी सी – नेशनल थर्मल पॉवर कॉरपोरेशन 
  8. ओ एन जी सी – आयॅ ल एण्ड नेचरु ल गैस कॉरपारे श्े ान लिमिटडे 
  9. सेल – स्टील अथोरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड 

विभागीय उपक्रमों के गुण- 

  1. सामाजिक उद्देश्यों की पूर्ति-सरकार का इन उपक्रमों पर पूरा नियंत्रण होता है। इस प्रकार यह अपने सामाजिक और आर्थिक उद्देश्यों की पूर्ति कर सकता है। उदाहरण के लिए, दूर-दराज इलाकों में खुलने वाले डाकघरों, कार्यक्रमों का रेडियों And टेलीविजन पर प्रसारण, जिनसे लोगों का सामाजिक, आर्थिक और बौद्धिक विकास होता है, ऐसे सामाजिक उद्देश्य होते हैं जिनकी पूि र्त करने का प्रयास विभागीय उपक्रमों द्वारा Reseller जाता है। 
  2. विधायिका के प्रति उत्तरदायी-संसद में विभागीय उपक्रमों के कार्य विधि के विषय में प्रश्न पूछे जाते हैं जिनका उत्तर संबधित मंत्री द्वारा जनता को संतुष्ट करने के लिए दिया जाता है। इस प्रकार वे ऐसा कोर्इ कदम नहीं उठा सकते जिससे जनता के किसी विशेष समूह के हितों को हानि पहॅुंचे। ये उपक्रम संसद के द्वारा जनता के प्रति उत्तरदायी होते हैं। 
  3. आर्थिक गतिविधियों पर नियंत्रण- यह सरकार की विशिष्ट आर्थिक गतिविधियों पर नियंत्रण स्थापित करने में मदद करता है तथा सामाजिक और आर्थिक नीतियों के निर्माण में Single उपकरण के Reseller में कार्य कर सकता है। 
  4. सरकारी राजस्व में योगदान-सरकार से सम्बन्धित विभागीय उपक्रमों में यदि कोर्इ अधिशेष हो तो इससे सरकार की आय में बढ़ोत्तरी होती है। इसी प्रकार यदि इसमें कोर्इ कमी है तो इसे सरकार द्वारा पूरा Reseller जाता है। 
  5. कोष के दुResellerयोग होने का कम अवसर- चूंकि इस प्रकार के उपक्रम बजटीय, लेखांकन And अंकेक्षण नियंत्रण के लिए उत्तरदायी हैं इसलिए इनके द्वारा कोष के दुResellerयोग होने की सम्भावना कम हो जाती है। 

विभागीय उपक्रमों की सीमाएॅं- 

  1. अधिकारी वर्ग का प्रभाव- सरकारी नियंत्रण के कारण, Single विभागीय उपक्रम नौकरशाही की All बुराइयों से ग्रसित होते हैं। उदाहरण के लिए, प्रत्येक खर्च के लिए सरकारी अनुमति प्राप्त करनी होती है, कर्मचारियों की Appointment और उनकी पदोन्नति पर सरकार का नियन्त्रण होता है। इन्हीं कारणों की वजह से महत्वपूर्ण निर्णय लेने में देरी हो जाती है, कर्मचारियों को Singleदम पदोन्नति और दण्ड नहीं दिया जा सकता है। इन्हीं कारणों की वजह से विभागीय उपक्रमों के कार्य के रास्ते में समस्यायें खड़ी हो जाती हैं। 
  2. अत्यधिक संसदीय नियंत्रण- संसदीय नियंत्रण के कारण प्रशासनिक कार्यों में दिन-प्रतिदिन समस्यायें आती रहती है। इसका कारण यह भी ह ै क्योंकि संसद में उपकम्र के संचालन के विषय में प्रश्नों की पुनरावृत्ति होती रहती है।
  3. व्यावसायिक विशेषज्ञों की कमी-प्रशासनिक अधिकारी को जो विभागीय उपक्रमों के मामलों का प्रबंधन करते है।, सामान्यत: व्यवसाय का अनुभव नही होता है और न ही वे इस क्षेत्र के विशेषज्ञ होते हैं। अत: इनका प्रबन्धन पेशेवर तरीके से नहीं होता तथा इनकी कमियों के कारण सार्वजनिक कोषों की अत्यधिक बरबादी होती है।
  4. लचीलेपन में कमी-Single सफल व्यवसाय के लिए लचीलापन का होना आवश्यक होता है ताकि समय According मांग में परिवर्तन को पूर्ण Reseller जा सके। लेकिन विभागीय उपक्रमों में लचीलेपन की कमी के कारण इसकी नीतियों में तुरंत परिवर्तन नहीं Reseller जा सकता है।
  5. अकुशल कार्यप्रणाली- इस प्रकार के संगठनों को अपने अदक्ष कर्मचारियों और उनकी दशा सुधारने के लिए पर्याप्त प्रेरणात्मकों की कमी के कारण अकुशलता से जूझना पड़ता है। यह ध्यान देने की बात है कि सार्वजनिक उपक्रमों के लिए संगठन का विभागीय स्वReseller लुप्त होता जा रहा है। अधिकतम उपक्रमों जैसे, दूरभाष, बिजली सेवाएॅं उपलब्ध कराने वाले उद्यम, आदि सरकारी कम्पनियों में परिवर्तित हो रहे हैं। उदाहरण- महानगर टेलीफोन निगम लिमिटडे , Indian Customer सचं ार निगम लिमिटडे , इत्यादि। 

2. सांविधिक निगम-

 सांविधिक निगम (या लोक निगम) से अभिप्राय ऐसे संगठन से है, जिसकी स्थापना संसद, राज्य विधानमंडल द्वारा विशेष अधिनियम के अन्र्तगत होती है। इसके प्रबंधन की रीति, इसकी शक्ति और कार्य, क्रिया-कलापों का क्षेत्र, कर्मचारियों के लिए नियम और विनियम तथा सरकारी विभागों के साथ इसके सम्बन्धों, इत्यादि का description सम्बन्धित अधिनियम में दिया जाता है। सांविधिक निगमों के उदाहरण है-Indian Customer स्टेट बैंक, Indian Customer जीवन बीमा निगम, Indian Customer औद्योगिक वित्त निगम, इत्यादि।

सांविधिक निगमोंं की विशेषताएॅं- 

  1. इसकों संसद अथवा राज्य विधान सभा के द्वारा विशेष अधिनियम के अन्तर्गत समामेलन Reseller जाता है। 
  2. यह Single स्वायत्त संगठन है और अपने आन्तरिक प्रबन्धन के संदर्भ में यह सरकारी नियंत्रण से मुक्त है। तथापि यह संसद और राज्य विधान मंडल के प्रति उत्तरदायी होता है। 
  3. इसका अपना स्वतन्त्र वैधानिक अस्तित्व होता है। इसके लिए सम्पूर्ण पूॅंजी की व्यवस्था सरकार द्वारा की जाती है। 
  4. इसका प्रबन्धन निदेशक मण्डल द्वारा Reseller जाता है जो व्यवसाय प्रबन्धन में प्रशिक्षित और अनुभवी व्यक्तियों द्वारा गठित होता है। निदेशक मण्डल के सदस्यों का चयन सरकार द्वारा Reseller जाता है।
  5. वित्तीय मामलों में यह अनुमानत: स्वावलंबी होता है। हालांकि Need के समय यह ऋण ले सकता है, अथवा सरकारी सहायता पा्र प्त कर सकता है। 
  6. इन उद्यमों के कर्मचारियों की भर्ती, निगम की Needनुसार इसके अपने भर्ती बोर्ड द्वारा तय किये नियमों और शर्तों के According की जाती है। 

सांविधिक निगमों के गुण- 

  1. प्रबन्धन विशेषज्ञ- इसके अन्दर विभागीय और निजी दोनों उद्यमों के गुणों का समावेश होता है। इन उद्यमों का संचालन विशेषज्ञ और अनुभवी निदेशकों के दिशा-निर्देशों के अन्तर्गत व्यवसाय के सिद्धांतों से होता है। 
  2. आन्तरिक स्वायत्तता-इन निगमों के दिन-प्रतिदिन के क्रियाकलापों में सरकार का प्रत्यक्ष हस्तक्षेप नहीं होता है। निर्णय शीघ्र And बिना किसी बाधा में लिया जा सकता है। 
  3. संसद के प्रति उत्तरदायी- सांविधिक निगम संसद के प्रति उत्तरदायी होते है। उनके क्रिया-कलापों पर प्रेस और जनता की निगाहें होती हैं। इसीलिए उनको उच्च स्तर की कुशलता और जिम्मेदारी को बनाए रखना पड़ता है। 
  4. लचीलापन-चूंकि ये प्रबन्ध और वित्त के मामले में स्वतन्त्र होते हैं, ये अपने कार्यों के संचालन में पर्याप्त लचीलेपन का उपयोग करते हैं। यह अच्छे प्रदर्शन और संचालन के परिणामों को सुनिश्चित करने में मदद करता है। 
  5. राष्टी्रय हितों को बढ़ा़ावा देना- सांविधिक निगम राष्ट्रीय हितों की रक्षा करते हैं And उन्हें बढ़ावा देते हैं। 
  6. कोष Singleत्र करना सरल- सरकार के स्वामित्व में होते हुए सांविधिक निगम बॉन्ड, इत्यादि जारी करके आवश्यक कोष आसानी से प्राप्त कर सकते हैं। 

सांविधिक निगमों की सीमाएॅं- 

  1. सरकारी हस्तक्षेप- सांविधिक निगमों पर अधिकतर मामलों में अत्यधिक सरकारी हस्तक्षेप होता है। 
  2. कठोरता- इनकी कार्यप्रणाली और अधिकारों में संशोधन केवल संसद द्वारा ही Reseller जा सकता है। परिणामस्वReseller निगमों के कार्यों में अनेकों बाधाएॅं उत्पन्न हो जाती है जिन्हें बदलती स्थितियों के अनुReseller ढालने और निभ्र्ाीक निर्णय लेने में कठिनाइयॉं आती हैं। 
  3. व्यावसायिक अभिगम की अनभिज्ञता- सांविधिक निगमों को प्राय: अच्छे प्रदर्शन करने के लिए नाम मात्र की प्रतियोगिता और अभिप्रेरणा के अभाव का सामना करना पड़ता है। अत: उन्हें अपने मामलों के प्रबन्ध में व्यावसायिक सिद्धांतों की अनभिज्ञता से जूझना पड़ता है। 

3. सरकारी कम्पनियॉं 

Indian Customer कम्पनी अधिनियम की व्यवस्था के According Single कम्पनी जिसकी 51 प्रतिशत या इससे अधिक प्रदत्त पूॅंजी केन्द्र सरकार अथवा राज्य सरकार या दोनों के पास संयुक्त रुप में हो, सरकारी कम्पनी कहलाती है। ये कम्पनियॉं Indian Customer कम्पनी अधिनियम 1956 के अन्तर्गत पंजीकृत होती है तथा उन नियमों और विनियमों का अनुकरण करती हैं जो कि किसी अन्य पंजीकृत कम्पनी पर लागू होते हैं। भारत सरकार ने ऐसे बहुत सारे उपक्रमों की स्थापना, सरकारी कम्पनियों के Reseller में, प्रबन्धकीय स्वायत्तता, संचालन की कुशलता और निजी क्षेत्र से प्रतियोगिता करने के लिए सुनिश्चित की हैं।

सरकारी कम्पनियों की विशेषताएॅं- 

  1. यह कम्पनी अधिनियम 1956 के अन्तर्गत पंजीकृत होती है।
  2. इसका अपना स्वतन्त्र वैधानिक अस्तित्व होता है। यह मुकदमा चला सकती है तथा इसके विरूद्ध मुकदमा चलाया जा सकता है, और अपने नाम से सम्पत्ति का अधिग्रहण कर सकती है। 
  3. सरकारी कम्पनियों की वार्षिक रिपोर्ट को संसद में प्रस्तुत Reseller जाता है।
  4. सरकार द्वारा पूॅंजी पूर्णत: अथवा अंशत: उपलब्ध कराया जाता है। आंशिक स्वामित्व वाली कम्पनी की दशा में, पूॅंजी की व्यवस्था सरकार और निजी निवेशकों द्वारा की जाती है। लेकिन इस प्रकार की स्थिति में केन्द्रीय अथवा राज्य सरकार द्वारा कम्पनी के कम से कम 51 प्रतिशत अंशों का स्वामित्व प्राप्त करना होगा। 
  5. इसका प्रबन्धन निदेशक मण्डल द्वारा Reseller जाता है। All निदेशकों अथवा उनके बहुमत की Appointment सरकार द्वारा की जाती है जो निजी सहभागीता की सीमा पर निर्भर करती है। 
  6. इसका लेखा और लेखा परीक्षा निजी उद्यमों के समान होती है तथा इसके लेखा परीक्षक और चार्टर्ड Singleाउन्टेंट की Appointment सरकार द्वारा की जाती है। 
  7. इसके कर्मचारी सरकारी अधिकारी नहीं होते हैं। यह अपनी व्यक्तिगत नीतियों का संचालन अपने अन्तर-नियमों के According करती हैं। 

सरकारी कम्पनियों के गुण- 

  1. स्थापना की साधारण प्रक्रिया-Single सरकारी कम्पनी का गठन अन्य सार्वजनिक उद्यमों की तुलना में सरल होता है क्योंकि इसके लिए संसद अथवा विधानमण्डल द्वारा बिल पास कराने की Need नहीं होती है। इसका निर्माण कम्पनी अधिनियम में निर्धारित प्रक्रिया को अपनाते हुए सरलता से Reseller जा सकता है। 
  2. व्यावसायिक क्षेत्र में कुशल कार्यप्रणाली- सरकारी कम्पनी का संचालन व्यावसायिक सिद्धांतों से हो सकता है। यह वित्तीय And प्रशासनिक मामलों में पूर्णत: स्वतन्त्र होती है। इसके निदेशक मण्डल में सामान्यत: कुछ पेशेवर और स्वतन्त्र ख्याति प्राप्त व्यक्ति होते हैं। 
  3. कुशल प्रबन्धन-चूंकि कम्पनी की वार्षिक रिपोर्ट संसद के दोनों सदनों के समक्ष विचार-विमर्श के लिए प्रस्तुत की जाती है, इसीलिए इसका प्रबन्धन इसकी गतिविधियों के क्रियान्वयन में सावधानी रखता है तथा व्यवसाय के प्रबन्धन में कुशलता को सुनिश्चित करता है। 
  4. स्वस्थ प्रतियोगिता-ये कम्पनियॉं अक्सर निजी क्षेत्र को स्वस्थ प्रतियोगिता प्रदान करती हैं और इसलिए माल And सेवाओं को उचित मूल्यों पर उचित गुणवत्ता के साथ उनकी उपलब्धता सुनिश्चित करती हैं। 
  5. भारी उद्योगों की स्थापना 
  6. पिछड़े क्षेत्रों का विकास 

सरकारी कम्पनियों की सीमाएॅं- 

  1. पहल क्षमता का अभाव-सरकारी कम्पनियों के प्रबन्धन को हमेशा जनता के प्रति जवाब देही का डर बना रहता है। परिणामत: वे समय पर सही निणर्य नहीं ले पाते। इसके अतिरिक्त कुछ निदेशक व्यवसाय में जनता की आलोचना के कारण वास्तविक रूचि नहीं लेते है। 
  2. व्यावसायिक अनुभवों की कमी-व्यवहार में सामान्यत: इन कम्पनियों का प्रबन्धन प्रशासनिक सेवा अधिकारियों के हाथ में रहता है जिनका अक्सर व्यावसायिक क्षेत्र के प्रबन्धन में पेशेवर अनुभव कम होता है। 
  3. नीतियों और प्रबन्धन में परिवर्तन- इन कम्पनियों की नीतियां और प्रबन्धन सामान्यत: सरकार बदलने के साथ-साथ परिवर्तित होती रहती है। नियमों, नीतियों और प्रक्रिया में अचानक परिवर्तन के कारण व्यावसायिक उद्यमों में विकृत स्थिति बन जाती हेै। 
  4. भ्रष्टाचार And लाल-फिताशाही इन उधमों में बढ़ती जा रही है। 

सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों का महत्व 

हमारे देश में All उपक्रम, सार्वजनिक उपक्रम नहीं हैं। हमारे देश में मिश्रित Meansव्यवस्था है और हमारी Meansव्यवस्था के विकास के लिए निजी क्षे़त्रों के साथ-साथ सार्वजनिक क्षेत्रों के उपक्रम भी सहयोग देते है। तथापि, केवल कुछ ही चुनिन्दा क्षेत्र हैं जहॉं पर सरकार अपने उपक्रमों की स्थापना Meansव्यवस्था के संतुलित विकास के लिए और समाज कल्याण को बढ़ावा देने के लिए करती है। ऐसी अनेक जगहें हैं जिनमें पूॅंजी के भारी-भरकम निवेश की Need है लेकिन लाभांश की मात्रा या तो कम है या इसे लम्बी अवधि के बाद प्राप्त Reseller जा सकता है। चूंकि बिजली के उत्पादन और आपूर्ति, मशीनों के निर्माण, बांधों के निर्माण आदि में ज्यादा समय लगता है, निजी व्यापारी इन क्षेत्रों में अपना व्यवसाय स्थापित करने से कतराते है। लेकिन सार्वजनिक हितों को दृष्टि में रखते हुए इन क्षेत्रों का अनदेखा नहीं Reseller जा सकता है। इसीलिए इन उपक्रमों की स्थापना और संचालन सरकार द्वारा Reseller जाता है। इसी प्रकार से सार्वजनिक उपक्रम भी देश के प्रत्यके भाग में उद्योगों को बढा़ वा दके र क्षेत्रीय विकास में संतुलन स्थापित करने में सहायता करते हेैं।

  1. संतुलित क्षेत्रीय विकास 
  2. Single Meansव्यवस्था की आधार इकार्इयों 
  3. जन-कल्याण के क्रिया-कलापों पर 
  4. निर्यात को प्रोत्साहन देना 
  5. आवश्यक वस्तुओं की कीमत पर नियंत्रण रखना
  6. निजी Singleाधिकार के प्रभाव को सीमित करना का विकास 
  7. देश की Safty को सुनिश्चित करना केंद्रित करना 
  8. आर्थिक असमानता को कम करना 
  1. संतुलित क्षेत्रीय विकास- देश का संतुलित आर्थिक विकास Meansात् देश के प्रत्येक राज्य And क्षेत्र में उद्योगों का विकास कर संतुलित क्षेत्रीय विकास करना है। 
  2. Single Meansव्यवस्था की आधार इकार्इयों का विकास करना भी महत्वपूर्ण है। 
  3. जन-कल्याण के क्रिया-कलापों पर ध्यान देना- सार्वजनिक उपक्रम जन-कल्याण से संबन्धित जैसे विद्युत, गैस, दूरभाष आदि का उत्पादन And सेवा प्रदान करने में विशेष ध्यान देती है।
  4. निर्यात को प्रोत्साहन देना- निर्यात को बढ़ावा देने वाले उद्योगों को सार्वजनिक क्षेत्र में प्रोत्साहन दिया जाता है। 
  5. आवश्यक वस्तुओं की कीमत पर नियन्त्रण स्थापित करने हेतु सरकार ऐसे वस्तुओं से सम्बन्धित उपक्रम सार्वजनिक क्षेत्र में स्थापित करती है।
  6. निजी Singleाधिकार के प्रभाव व हानि से नागरिकों को Safty प्रदान करना।
  7. देश की Safty को सुनिश्चित करना- देश की Safty सर्वोपरि है अत: लड़ाकू विमानों का उत्पादन, अस्त्र-शस्त्रों का उत्पादन, देश की Safty से संबंधित ऐसे ही उत्पादन सार्वजनिक उपक्रम के तहत की जाती है। 
  8. आर्थिक असमानता को कम करना- देश के विभिन्न क्षेत्रों And राज्यों में सार्वजनिक उपक्रमों की स्थापना से लोगों को रोजगार की प्राप्ति होती है जिससे आर्थिक असमानता And गरीबी में कमी आती है। 

इस प्रकार जन कल्याण, देश का योजनाबद्ध आर्थिक विकास, क्षेत्रीय संतुलन, आयात विकल्प, आर्थिक शक्तियों पर नजर कुछ ऐसे लक्ष्य हैं जिन्हें सार्वजनिक उद्यमों के द्वारा प्राप्त Reseller जाता है।

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