वैयक्तिक अध्ययन (Case Study)

वैयक्तिक अध्ययन पद्धति सामाजिक शोध में तथ्य संकलन की Single महत्वपूर्ण विधि है। इसका प्रयोग विविध सामाजिक विज्ञानों में कर्इ दशकों से होता आया है। अनेकों विद्धानों ने अपने अध्ययनों में इस पद्धति का प्रयोग Reseller है। यह पद्धति किसी भी सामाजिक इकार्इ का उसकी सम्पूर्णता And गहनता में अध्ययन करती है। इसके द्वारा Reseller गया अध्ययन इतना गहन होता है कि इसे ‘सामाजिक सूक्ष्मदर्शक यन्त्र‘ तक की संज्ञा दी गर्इ है। जिस प्रकार सूक्ष्मदर्शक यन्त्र से ऐसे कीटाणुओं को भी देखा जा सकता है जिन्हें हम अपनी नंगी आंखों से नहीं देख पाते हैं। वैसे ही इस पद्धति के द्वारा हम उन सामाजिक तथ्यों को भी उद्घाटित कर लेते हैं जो किसी अन्य विधि द्वारा सम्भव नहीं हो सकता है।

प्रस्तुत इकार्इ में हम आपको इस पद्धति के प्रारम्भिक विकास, परिभाषाओं, मान्यताओं, कार्यविधियों/चरणों, सूचनाओं के स्रोत इत्यादि से अवगत करवाते हुए इसके महत्व और सीमाओं को भी बतलायेगें। इकार्इ के अध्ययन के उपरान्त आपके लिए भी यह सम्भव होगा कि भविष्य में सामाजिक शोधों में इसका प्रयोग कर सकें।

वैयक्तिक अध्ययन Single पद्धति के Reseller में 

वैयक्तिक अध्ययन सामाजिक शोध की Single महत्वपूर्ण पद्धति/विधि है। जिसका विकास विशेषत: अमेरिका में हुआ। इस पद्धति का गहन And विस्तारपूर्वक प्रयोग मनोविज्ञान, शिक्षाशास्त्र, Meansशास्त्र, समाजशास्त्र तथा राजनीतिशास्त्र जैसी विधाओं में Reseller गया। शनै: शनै: किसी सामाजिक समस्या के विभिन्न पहलुओं के उद्विकास And वृद्धि को रेखांकित करने की Single अत्यधिक सुविधाजनक पद्धति के Reseller में इसे मान्यता प्रदान की गयी। यह पद्धति Single अर्द्धविकसित अथवा विकासशील राष्ट्र के अन्तर्गत विशेष Reseller से उपयोगी समझी जाती रही है, जहाँ विभिन्न प्रकार की सामाजिक संस्थाएँ पारस्परिक अन्त:क्रिया करती हैं।

पी.वी. यंग (1977 : 247) का कहना है कि, ‘‘किसी Single सामाजिक इकार्इ चाहे वह इकार्इ Single व्यक्ति, Single समूह, Single संस्था, Single जिला अथवा Single समुदाय ही हो, का विस्तृत अध्ययन वैयक्तिक अध्ययन कहलाता है।’’ सरलतम Wordों में हम कह सकते हैं कि इसमें किसी भी सामाजिक इकार्इ को सम्पूर्णता की दृष्टि से देखा जाता है। ऐसा ही विचार गुडे और हाट (1952 : 331) ने भी व्यक्त Reseller है। बीसेन्ज तथा बीसेन्ज ने अपनी पुस्तक ‘माडर्न सोसार्इटी (1982)* में लिखा है कि, ‘‘वैयक्तिक अध्ययन गुणात्मक विश्लेषण का Single विशेष स्वReseller है जिसके अन्तर्गत किसी व्यक्ति, परिस्थिति अथवा संस्था का अत्यधिक सावधानीपूर्वक और पूर्ण अवलोकन Reseller जाता है।’’

सिन पाओ येंग ने अपनी पुस्तक, ‘फैक्ट फार्इडिंग विद रूरल पीपुल (1971)’ में लिखा है कि, ‘‘वैयक्तिक अध्ययन पद्धति को किसी Single छोटे, सम्पूर्ण तथा गहन अध्ययन के Reseller में परिभाषित Reseller जा सकता है, जिसके अन्तर्गत अनुसंधानकर्ता किसी व्यक्ति के सम्बन्ध में पर्याप्त सूचनाओं का व्यवस्थित संकलन करने के लिए अपनी समस्त क्षमताओं और विधियों का उपयोग करता है, जिससे यह ज्ञात हो सके कि Single स्त्री अथवा पुरुष समाज की Single इकार्इ के Reseller में किस प्रकार कार्य करता है।’’

उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट होता है कि, वैयक्तिक अध्ययन से अभिप्राय सामाजिक शोध में प्रयुक्त Single विधि (पद्धति) से है, जो Single व्यक्ति, परिवार, संस्था अथवा समुदाय के Reseller में Single सामाजिक इकार्इ से सम्बन्धित गुणात्मक सामग्री के संग्रह को सम्भव बनाती है। इस विधि की प्रकृति को समुचित Reseller से समझने के लिए यह आवश्यक है कि इस प्रत्यय से सम्बन्धित प्रमुख विशेषताओं को स्पष्ट Reseller जाये।

  1. यह सापेक्षतया अधिक गुणात्मक है। 
  2. यह विधि Single विशिष्ट सामाजिक इकार्इ का सम्पूर्ण अध्ययन है। 
  3. इस विधि द्वारा Reseller जाने वाला अध्ययन अत्यधिक सूक्ष्म And गहन होता है। 
  4. इस विधि में अतीत And वर्तमान दोनों का समन्वय होता है। इस विधि में अध्ययनकर्ता किसी इकार्इ से सम्बन्धित अतीत के तथ्यों को जानने के साथ ही उनका वर्तमान स्थिति से सह-सम्बन्ध ज्ञात करने का प्रयत्न करता है।
  5. इस विधि के द्वारा अध्ययन की इकार्इ के विभिन्न तत्वों के Singleीकरण And समग्रता की स्थिति को स्वीकार करते हुए विभिन्न सूचनाओं को Singleत्रित करने का प्रयास Reseller जाता है। 
  6. इस विधि का प्रमुख उद्देश्य किसी चयनित इकार्इ की विभिन्न परिस्थितियों के बीच कार्य-कारण के सम्बन्धों को ज्ञात करना है। इस विधि के माध्यम से चयनित इकार्इ के व्यवहार को प्रेरणा अथवा प्रोत्साहन देने वाले कारकों के विषय में जानकारी प्राप्त की जाती है तथा यह जानने का भी प्रयत्न Reseller जाता है कि, वर्तमान परिस्थितियाँ अतीत की परिस्थितियों से किस प्रकार प्रभावित अथवा अप्रभावित हैं। 

संक्षेप में, वैयक्तिक अध्ययन विधि की उपर्युक्त विशेषताओं के सन्दर्भ में यह कहा जा सकता है कि, इस विधि का प्रयोग करते हुए यह ज्ञात होता है कि, प्रमुख Reseller से किसी चयनित इकार्इ के आन्तरिक संCreation सम्बन्धित पहलू क्या है तथा इस आन्तरिक संCreation के अतीत And वाºय वातावरण के बीच क्या सम्बन्ध हैं इसी आधार पर वैयक्तिक अध्ययन विधि को बर्गेस (1949रू25.26) ने ‘सामाजिक सूक्ष्म-दर्शक यंत्र‘ (सोशल माइक्रोस्कोप) नाम से सम्बोधित Reseller है।

वैयक्तिक अध्ययन विधि की विशेषताओं को ज्ञात कर लेने के पश्चात यह भी आवश्यक प्रतीत हो जाता है कि, सामाजिक विज्ञानों के अन्तर्गत इस विधि के उद्विकास पर प्रकाश डाला जाये। हॉवर्ड ओडम तथा कैथरीन जोचर (1929रू229) ने वैयक्तिक अध्ययन के उद्विकास पर अपने विचार इस प्रकार व्यक्त किए हैं, ‘‘वास्तव में सामाजिक विज्ञानों के अन्तर्गत वैयक्तिक विधि के सबसे First प्रयोग Historyकारों के व्यक्तियों And राष्ट्रों के description थे, जिनका अनुगमन बाद में अधिक छोटे समूहों, गुटों And व्यक्तियों के विस्तृत अध्ययनों द्वारा Reseller गया।’’ First फ्रेडरिक लीप्ले (1806.1882) ने सामाजिक विज्ञान में वैयक्तिक अध्ययन विधि का प्रयोग पारिवारिक बजट के अपने अध्ययनों के अन्तर्गत Reseller। तत्बाद हरबर्ट स्पेन्सर (1820.1903) ने नृशास्त्रीय अध्ययनों में वैयक्तिक अध्ययन का प्रयोग Reseller । बाद में बाल अपराधियों के अध्ययन में मनोचिकित्सक विलियम हीली ने इस पद्धति को अपनाया। पी.वी. यंग (1977रू 247.250) ने वैयक्तिक अध्ययन पद्धति के उद्विकास पर विस्तृत प्रकाश डाला है। थामस और नैनिकी की पुस्तक ‘दी पोलिश पीजेन्ट इन यूरोप एण्ड अमेरिका’ के प्रकाशन होने के बाद ही इस अध्ययन विधि को Single व्यवस्थित समाजशास्त्रीय क्षेत्र शोध के वास्तविक प्रयोग And स्वीकृति मिल पायी। इस पुस्तक में वैयक्तिक दस्तावेजों- डायरियाँ, पत्रों, आत्मकथाओं का प्रचुर मात्रा में प्रयोग Reseller गया था। इस विषय पर बेन्जामिन पाल की पुस्तक ‘वेल्थ, कल्चर एण्ड कम्युनिटी’ महत्वपूर्ण है, जिसने विश्व के विभिन्न भागों में सामुदायिक स्तर पर किए गये वैयक्तिक अध्ययनों को सम्मिलित कर विश्व समुदाय के समक्ष इस विधि को प्रकाशित Reseller। 

साधारण Reseller से ‘वैयक्तिक अध्ययन’ (Case Study) And ‘वैयक्तिक कार्य’ (Case Work) के प्रत्यय सामाजिक शोध के अन्तर्गत प्रयोग में आते रहें हैं। प्रचलन के तौर पर यह कहा जा सकता है कि जहाँ ‘वैयक्तिक अध्ययन’ किसी Single विशेष इकार्इ के गहन अन्वेषण के Reseller में स्थापित है, वहीं ‘वैयक्तिक कार्य’ विकाSeven्मक And समायोजनात्मक प्रक्रियाएँं जो निदान का अनुगमन करती हैं, के सन्दर्भ में प्रयुक्त होता रहा है। यहाँ यह ध्यान देने योग्य है कि, ये दोनों विधियाँ Single सामाजिक अथवा वैयक्तिक समस्या के प्रति समान अभिगम/उपागम का स्वReseller हैं, तथा अन्तर्सम्बन्धित And अनिवार्यत: दोनों Single-Second के सम्पूरक हैं। वैयक्तिक अध्ययन प्राय: Single पद्धति (विधि), कभी तकनीक अन्य अवसरों पर अभिगम तथा समय-समय पर किसी चयनित इकार्इ के परिदृश्य में आँकड़ों को संगठित करने के ढंग के Reseller में परिभाषित होता रहा है। यह भी समझा जाता रहा है कि वैयक्तिक अध्ययन पद्धति का तात्पर्य अध्ययन के Single ऐसे तरीके से है, जिसके द्वारा किसी व्यक्ति के क्रियाकलापों, मनोवृत्तियों और जीवन-History का गहन अध्ययन Reseller जाता है। परन्तु यह भी मत व्यक्त Reseller जाता रहा है कि, इस विधि के द्वारा केवल Single व्यक्ति का ही गहन अध्ययन नही Reseller जाता है, बल्कि किसी भी Single सामाजिक इकार्इ जैसे व्यक्ति, परिवार, समूह, संस्था अथवा समुदाय को केन्द्र मानते हुए प्रयोग Reseller जा सकता है। यहाँ यह कहना उचित होगा कि, ‘‘समग्र Reseller में वैयक्तिक अध्ययन सामाजिक शोध के अन्तर्गत प्रयोग में लाया जाने वाला Single ऐसा ढंग है जो अनुसंधानकर्ता को तीव्र And सूक्ष्म अन्तदृष्टि प्रदान करने, इकार्इयों का अधिक गहरार्इ में पैठकर अध्ययन करने, समस्याओं का मनो-सामाजिक अध्ययन करने, निदान करने And समाधान के उपाय प्रस्तुत करने, अन्य ढंगों तथा पर्यवेक्षण अत्यादि की सहायता लेते हुए निष्कर्षों को अधिक से अधिक यथार्थ And पूर्ण बनाने तथा नवीन परिकल्पनाओं को प्रतिपादित करने के लिए उपयुक्त आधार प्रदान करने में सहायक सिद्ध होता है।’’ (सुरेन्द्र सिंह, 1975 रू 401) 

उपरोक्त परिपेक्ष्य में, वैयक्तिक अध्ययन का प्रयोग विशेषतया मनोचिकित्सा, समाज कार्य तथा सामाजिक शोध में Reseller जाता है। आधुनिक समाज की जटिल समस्याओं की गहनता के सन्दर्भ में, वैयक्तिक अध्ययन पद्धति का प्रयोग ‘‘मनोचिकित्सा के अन्तर्गत मानसिक बीमारियों का उपचार करने हेतु मनो-सामाजिक अध्ययन करने And निदान प्रस्तुत करने के लिए तथा सामाजिक अनुसंधान के अन्तर्गत समस्या समाधान प्रस्तुत करने हेतु आवश्यक सूचना का संग्रह करने के लिए Reseller जाता है।’’ (सुरेन्द्र सिंह, 1975 : 402) वैयक्तिक अध्ययन के प्रत्यय को प्रमुख Reseller से दो दृष्टिकोणों से समझा जा सकता है : पहला, पद्धति (विधि) के Reseller में और दूसरा, उपागम के Reseller में। पद्धति के Reseller में, वैयक्तिक अध्ययन सामाजिक शोध के अन्तर्गत गुणात्मक सामग्री के संग्रह में सहायता प्रदान करता है और जो इसी सन्दर्भ में गणनात्मक Singleत्रीकरण को सम्भव बनाने वाली विधियों जैसे प्रश्नावली तथा साक्षात्कार से भिन्न है। उपागम के Reseller में, वैयक्तिक अध्ययन Single अधिक विस्तृत क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने वाले Single सूक्ष्म And सीमित क्षेत्र का अध्ययन करने से सम्बन्धित होता है। Single उपागम के Reseller में स्वीकार करने पर किसी भी जटिल परिस्थिति तथा उससे समिश्रित कारकों का अध्ययन करना तथा उसे निदानात्मक स्वReseller प्रदान करने में वैयक्तिक अध्ययन को प्रयोग में लाना सम्भव हो जाता है। 

प्राय: वैयक्तिक अध्ययन And सांख्यिकीय उपागमों के स्वResellerों के बीच अन्तर Reseller जाता रहा है, तथा दोनों को विरोधी की संज्ञा भी प्रदान की जाती रही है, क्योंकि वैयक्तिक अध्ययन को प्रमुखतया शोध की गैर-सांख्यिकीय प्रणाली के Reseller में स्वीकार Reseller जाता है। Single सांख्यिकीविद विशेषतया गुणात्मक/परिमाणात्मक सूक्ष्मता उपागम से अभिप्रेरित रहता है। वह समाज के समस्तर दृश्य लेते हुए आँकड़ों के Single विस्तृत क्षेत्र को प्रकट करता है। वह Single दी हुर्इ परिस्थिति के अन्तर्गत विभिन्न कारकों के घटित होने तथा अन्तर्सम्बन्धित सामान्यीकरणों के आकार को दर्शाता है। इसके विपरीत, वैयक्तिक अध्ययन सामाजिक प्रक्रियाओं का निर्धारण करता है तथा विभिन्न कारकों की जटिलता को स्पष्ट करते हुए निदानात्मक अभिव्यक्ति हेतु कार्यक्रमों And हस्तक्षेप-युक्त कार्यप्रणाली को प्रदर्शित करता है। सामाजिक प्रक्रियाओं के निर्धारण में SingleResellerता प्रदान करने हेतु वैयक्तिक अध्ययनों की Single कड़ी विशिष्ट And सामान्य भिन्नताओं की तुलना करने तथा उनमें विभेद स्थापित करने के उद्देश्य से समानताओं And विभिन्नताओं की खोज करती है। 

इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि, सांख्यिकीय उपागम केवल कुछ सीमित कारकों के साथ तुलना करता है, जो किसी भी सामाजिक समस्या पर सूक्ष्म दृष्टि प्रदान करने में सुविधाजनक प्रतीत नही होते हैं। किन्तु यह भी सत्य है कि Single सांख्यिकीविद् साहचर्य की मात्रा, बारम्बारता तथा सीमा को समझते हुए सामाजिक परिस्थिति को अधिक गहरार्इ के साथ समझने का प्रयास करता है। इस Reseller में सांख्यिकीय उपागम वैयक्तिक अध्ययन के लिए शोधकर्ता को उत्तरदाताओं के चुनाव में मार्गदर्शन प्रदान कर सकता है, तथा विशिष्ट And अधिक पूर्ण अध्ययन की Need रखने वाले कारकों को सामने लाने में सहायक हो सकता है। दूसरी तरफ, वैयक्तिक अध्ययन सांख्यिकीय विश्लेषण के लिए आधारभूत सामग्री प्रदान कर सकते हैं। 

वैयक्तिक अध्ययन And सांख्यिकीय उपागम की पारस्परिक निर्भरता को पी.वी. यंग (1977) ने इस प्रकार समझाने की चेष्टा की है- ‘‘. . . . Single विद्याथ्र्ाी जो वैयक्तिक अध्ययन पद्वति का प्रयोग करता है, सापेक्षतया छोटी संख्या में उत्तरदाताओं का प्रयोग करने में समर्थ होता है। किन्तु जहाँ तक वैयक्तिक अध्ययन पद्धति से उत्पन्न होने वाले प्रतिबन्धों का सम्बन्ध है, Single व्यक्ति से सम्बन्धित लक्षणों अथवा कारकों की सम्पूर्ण संख्या असीमित होती है। यह वैसे ही है जैसे कि Single सांख्यिकीविद Single समस्तर दृश्य ले रहा हो, जो आँकड़ों के Single विस्तृत क्षेत्र को काटता हो, जबकि वैयक्तिक अध्ययन पद्वति का प्रयोग करने वाला विद्याथ्र्ाी कम संख्या में वैयक्तिक उत्तरदाताओं का सीधा दर्शन उन अनेक विस्तारों पर गौर करते हुए करता है जो उसके ध्यान में आते हैं। विस्तार के प्रति मनोवृत्ति की यह भिन्नता कुछ सीमा तक दोनों अभिगमों में विभेद स्थापित करती है, क्योंकि सांख्यिकीविद सामान्य आधारों की प्रकृति से सम्बन्धित होता है, जबकि वैयक्तिक अध्ययन पद्धति का प्रयोग करने वाला विद्याथ्र्ाी उस सामग्री को बड़ी मात्रा में सम्मिलित करने के लिए उत्सुक होता है, जो कम से कम उस समय विशिष्ट प्रतीत होती है। इसके अतिरिक्त वैयक्तिक अध्ययन पद्धति द्वारा अध्ययन के अन्तर्गत व्यक्तियों में बड़ी संख्या में प्रतीत होने वाले लक्षणों And कारकों को Single साथ जोड़ना तथा अन्तिम Reseller से कार्य-कारण सम्बन्धों की स्थापना करना सम्भव है, जबकि सह-सम्बन्ध का सांख्यिकीय ढंग Single समय पर तीन अथवा सम्भवत: चार कारकों से अधिक के साथ कार्य नहीं कर सकता है।’’

वैयक्तिक अध्ययन की आधारभूत मान्यताएँ 

वैयक्तिक अध्ययन विधि, जिसका प्रमुख प्रयोजन Single अथवा कुछ इकाइयों का सर्वांगीण अध्ययन के आधार पर सम्पूर्ण समूह अथवा क्षेत्र की विशेषताओं के विषय में अवगत होना होता है, वाºय Reseller से कुछ त्रुटिपूर्ण प्रतीत हो सकता है, परन्तु यह विधि कुछ ऐसी मान्यताओं पर आधारित है जिनको समझकर इस प्रकार की आशंकाओं का निराकरण Reseller जा सकता है। इस दृष्टि से वैयक्तिक अध्ययन की आधारभूत मान्यताओं पर दृष्टिपात कर लेना आवश्यक प्रतीत होता है, जो निम्नलिखित है :-

  1. वैयक्तिक अध्ययन की सर्वप्रमुख मान्यता यह है कि All व्यक्तियों के व्यवहारों में उनकी विभिन्न परिस्थितियों के According भिन्नता होने के बाद भी Human स्वभाव में कुछ मौलिक Singleता विद्यमान रहती है, जिसके माध्यम से All व्यक्तियों के व्यवहारों को समझा जा सकता है। इस विषय पर आल्पोर्ट (1942) के विचार महत्वपूर्ण हैं, जिसने यह प्रतिपादित Reseller कि Human प्रकृति से सम्बन्धित कुछ विशेषताएँ ऐसी होती हैं जिन्हें All व्यक्तियों तथा Single समूह के प्रत्येक सदस्य पर लागू Reseller जा सकता है। इस आधार पर वैयक्तिक अध्ययन विधि के माध्यम से किसी इकार्इ अथवा Single विशेष समूह की विशेषताओं को समझना Single वैज्ञानिक विधि कहा जा सकता है। 
  2. वैयक्तिक अध्ययन विधि इस मान्यता पर भी आधारित रहती है कि, प्रत्येक Human व्यवहार कुछ विशेष परिस्थितियों से प्रभावित होता है। अत: यदि Single विशेष परिस्थिति के अन्तर्गत किसी व्यक्ति अथवा समूह के सदस्य के व्यवहार को समझ लिया जाये तो उसी परिस्थिति में अन्य व्यक्ति And समूह भी उसी प्रकार का व्यवहार करते हुए पाये जायेंगे। इस सन्दर्भ में यह भी सत्य है कि परिस्थितियों में पुनरावृत्ति होती रहती है। इस Means में, विभिन्न स्थानों And विभिन्न समय पर उत्पन्न होने वाले Human व्यवहारों का अनुमान लगाया जा सकता है। 
  3. वैयक्तिक अध्ययन की यह भी मान्यता है कि Humanीय क्रियाओं And व्यवहारों पर ‘समय तत्व’ का भाव अनिवार्य Reseller से परिलक्षित होता है। इस सन्दर्भ में यह समझना आवश्यक है कि जो घटना आज वर्तमान में घटित हो रही है, उसका बीजारोपण आज काफी समय पूर्व किसी न किसी कारक के प्रभाव से हो चुका होता है। अत: वैयक्तिक अध्ययन विधि के माध्यम से किसी विशेष घटना को प्रभावित करने वाले कारकों को Single विशेष अवधि अथवा समय के सन्दर्भ में समझा जा सकता है। उदाहरण के तौर पर यह कहा जा सकता है कि किसी समााजिक समस्या, क्रान्ति अथवा Fight की स्थिति केवल तात्कालिक दशाओं से उत्पन्न नहीं होती बल्कि इनका बीजारोपण काफी First हो चुका होता है। 
  4. वैयक्तिक अध्ययन की Single महत्वपूर्ण मान्यता है कि, किसी सामाजिक इकार्इ का सम्यक् अध्ययन उसे सर्वांगीण Reseller से देखकर ही प्राप्त Reseller जा सकता है, न कि उसके किसी Single अथवा कुछ अन्यत्र पहलुओं के आधार पर। यहाँ यह समझना आवश्यक प्रतीत होगा कि बहुत सी इकार्इयों के Single अथवा दो पक्षों का अध्ययन करने से अधिक अच्छा है कि Single या दो इकाइयों के All पहलूओं का समग्र Reseller में अध्ययन कर निष्कर्ष प्राप्त कर लिया जाये। 
  5. वैयक्तिक अध्ययन की उपयुक्तता इस मान्यता पर आधारित है कि Humanीय व्यवहार And सामाजिक क्रियायें इतनी जटिल होती हैं कि उन्हें केवल अवलोकन अथवा साक्षात्कार 86 के माध्यम से समुचित Reseller से समझा नही जा सकता, अपितु किसी सामाजिक इकार्इ के व्यवहारों, मनोवृत्तियों, प्रेरणाओं And प्रक्रियाओं पर सम्यक् दृष्टि प्राप्त करने हेतु उनका वैयक्तिक And समग्र अध्ययन करना आवश्यक होता है। इसी सन्दर्भ में जैसा कि First History Reseller गया है कि वैयक्तिक अध्ययन को Single ‘सामाजिक सूक्ष्मदर्शक यंत्र‘ की संज्ञा भी प्रदान की गर्इ है। 

वैयक्तिक अध्ययन के अन्तर्गत प्रयुक्त चरण/कार्य-विधि 

वैयक्तिक अध्ययन की विषय वस्तु सामाजिक इकाइयों की आन्तरिक संCreation तथा उसके वाºय वातावरण से सम्बन्धित रहती है, जो स्वभावतया इतनी जटिल And अव्यवस्थित होती है कि उनका सम्यक् अध्ययन करने के लिए Single व्यवस्थित कार्य-प्रणाली को उपयोग में लाना आवश्यक हो जाता है। वास्तव में वैयक्तिक अध्ययन के अन्तर्गत सामाजिक इकाइयों का सैद्धान्तिक And व्यावहारिक पक्षों का इस प्रकार अध्ययन करना होता है जिससे कि उनकी आन्तरिक संCreation And वाºय परिवेश की मौलिक विशेषताओं को समझा जा सके। इस पृष्ठभूमि में, वैयक्तिक अध्ययन के अन्तर्गत प्रयोग में लाए जाने वाले चरणों And सोपानों को समझ लेना आवश्यक प्रतीत होता है जिससे कि इस विधि का व्यवस्थित Reseller से उपयोग Reseller जा सके- वैयक्तिक अध्ययन पद्धति के प्रमुख चरण अथवा उसकी कार्य-विधि के मुख्य पक्ष निम्नलिखित हैं।

(1) समस्या के पक्षों का निर्धारण 

First वैयक्तिक अध्ययन के लिए अध्ययन की इकार्इ अथवा समस्या की प्रकृति का समुचित स्पष्टीकरण करना, इकाइयों का निर्धारण करना तथा अध्ययन क्षेत्र से पूर्णतया अवगत होना आवश्यक होता है। वास्तव में, वैयक्तिक अध्ययन की सफलता भी इसी प्रारम्भिक सोपान पर अत्यधिक आधारित होती है। अत: इस परिदृश्य में, अनुसंधानकर्ता को सामाजिक इकार्इ अथवा समस्या के विभिन्न पक्षों से सम्बन्धित निम्नलिखित तथ्यों पर ध्यान देना विशेष Reseller से महत्वपूर्ण होता है।

  1. समस्या का चुनाव : वैयक्तिक अध्ययन हेतु First अध्ययन से सम्बन्धित समस्या अथवा विषय का चयन करना अति आवश्यक होता है। वास्तव में, इसी चयनित समस्या के आधार पर ही किसी भी अनुसंधान को व्यवस्थित Reseller से सम्पन्न Reseller जा सकता है। उदाहरण के तौर पर, यह समस्या बाल-अपराध, मद्यपान, अनुशासन हीनता, पारिवारिक विघटन, सामाजिक तनाव, इत्यादि किसी विषय से सम्बन्धित हो सकती है। 
  2.  इकाइयों का निर्धारण : समस्या का चुनाव कर लेने के बाद उससे सम्बन्धित इकार्इयों का निर्धारण करना आवश्यक हो जाता है। उदाहरण के लिए यदि अध्ययन मादक द्रव्यों के उपयोग से सम्बन्धित है, तो इस तथ्य का निर्धारण करना आवश्यक होता है कि मादक द्रव्य व्यसन के अध्ययन हेतु उससे सम्बन्धित कौन सी इकार्इ का चयन Reseller जाना है। इसके अन्तर्गत ये इकाइयाँ कोर्इ भी व्यक्ति, समूह अथवा विशेष संस्थाएँ, इत्यादि हो सकती हैं। 
  3. इकाइयों की संख्या का निर्धारण : इसी क्रम में वैयक्तिक अध्ययन के लिए यह निर्धारित करना आवश्यक प्रतीत होता है कि, अध्ययन की जाने वाली इकाइयों की संख्या क्या होगी। इस संख्या का निर्धारण अनुसंधानकर्ता के पास उपलब्ध साधनों और समय पर आधारित होता है। यहाँ यह ध्यान देने योग्य है कि, यह संख्या इतनी कम नहीं होनी चाहिए कि अध्ययन से सम्बन्धित All प्रकार के तथ्यों का संकलन न Reseller जा सके और न ही इतनी अधिक होनी चाहिए कि उनका गहन अध्ययन करना सम्भव न हो सके।

(2) अध्ययन के क्षेत्र का निर्धारण 

वैयक्तिक अध्ययन के लिए समस्या के विभिन्न पक्षों का निर्धारण (जो उपरोक्त ‘क’, ‘ख’ तथा ‘ग’ के माध्यम से described Reseller गया है, के बाद अनुसंधानकर्ता द्वारा उस स्थान अथवा क्षेत्र का निर्धारण करना भी आवश्यक होता है, जहाँ विभिन्न इकाइयों का अध्ययन Reseller जाना है। उदाहरण के तौर पर, मादक द्रव्य व्यसन सम्बन्धित समस्या के अन्तर्गत इस समस्या से पीड़ित व्यक्ति, समूह किन संस्थाओं, सुधार-गृहों, चिकित्सालयों में रह रहें हैं, उनमें से किस स्थान पर वैयक्तिक अध्ययन करना है, इसका निर्धारण करना आवश्यक होता है। 

(3) विश्लेषण क्षेत्र का निर्धारण 

वैयक्तिक अध्ययन के अन्तर्गत समस्या के विशिष्ट क्षेत्र के निर्धारण के पश्चात अध्ययन की इकार्इ के विश्लेषण-क्षेत्र को पूर्णतया स्पष्ट कर लेना आवश्यक होता है। विश्लेषण क्षेत्र से अभिप्राय है अध्ययन की जाने वाली इकार्इ से सम्बन्धित वे कौन से पक्ष महत्वपूर्ण हैं तथा कौन से पक्ष उपयोगी नही हैं। इस प्रकार विश्लेषण क्षेत्रों की उपयोगिता And अनुपयोगिता दोनों का निर्धारण करना वैयक्तिक अध्ययन को व्यवस्थित करने से सम्बन्धित हैं। 

(4) समय या अवधि के अन्तर्गत घटनाओं के अनुक्रम का वर्णन 

अध्ययन की इकार्इ के विश्लेषण क्षेत्रों के निर्धारण के बाद अध्ययन से सम्बन्धित समस्या अथवा इकार्इ को Single विशेष समय या अवधि के सन्दर्भ में समझने का प्रयास करना आवश्यक होता है, Meansात् इस तथ्य को समझना कि सामाजिक इकार्इ की कुछ विशेष घटनायें किस अवधि में घटित हुर्इ तथा उन घटनाओं से सम्बन्धित विभिन्न समय/अवधि में कौन-कौन सी विशेषताएँ सम्बद्ध रही हैं, तथा भविष्य में इकार्इ से सम्बन्धित कौन-सी घटनाओं के घटित होने की सम्भावना की जा सकती है, इत्यादि। 

(5) निर्धारक अथवा प्रेरक 

तत्व वैयक्तिक अध्ययन की यह प्रमुख मान्यता रही है कि, कोर्इ भी घटना शून्य में नही घटती, Meansात् प्रत्येक घटना अथवा समस्या को उत्पन्न करने वाले कुछ-न-कुछ निर्धारक या प्रेरक तत्व विद्यमान रहते हैं। अत: घटनाओं के क्रम को स्पष्ट कर लेने के पश्चात अध्ययन के लिए समस्या अथवा इकार्इ के अन्तर्गत घटनाओं के निर्धारक तत्वों को ज्ञात कर लेना आवश्यक होता है। उदाहरणार्थ, मादक-द्रव्य व्यसन को प्रेरणा देने वाले अनेक कारक हो सकते हैं, जैसे पारिवारिक स्थिति, पड़ोस, मित्र की संगति, इत्यादि। वैयक्तिक अध्ययन के लिए ऐसे All प्रेरक तत्वों का ज्ञान वास्तविक अध्ययन को व्यवस्थित विधि से सम्पन्न करने हेतु आवश्यक होता है। 

(6) विश्लेषण And निष्कर्ष 

वैयक्तिक अध्ययन पद्धति के अन्तिम And सबसे महत्वपूर्ण चरण All संकलित तथ्यों का वर्गीकरण And उनका विश्लेषण कर निष्कर्ष प्राप्त करना होता है। इस विश्लेषण And निष्कर्ष का प्रमुख अभिप्राय है, Single विशेष अवधि अथवा वास्तविकता के अन्तर्गत होने वाली चयनित इकार्इ/इकाइयों के व्यवहार के स्वभाव से पूर्णतया अवगत होना तथा उन दशाओं अथवा कारकों से परिचय प्राप्त करना जो चयनित समस्या या Human व्यवहार के लिए उत्तरदायी होते हैं। 

सारांश में, यह कहा जा सकता है कि, वैयक्तिक अध्ययन के अन्तर्गत वैज्ञानिक ढंग को अपनाकर कार्य करते हुए अनुसंधानकर्ता चयनात्मक प्रत्यक्ष ज्ञान के माध्यम से अध्ययन प्रारम्भ करता है। वह Single सम्पूर्ण विश्लेषक की भूमिका में वैज्ञानिक वस्तुओं, तथ्यों And घटनाओं को Single विशिष्ट दृष्टिकोण तथा Single विशिष्ट प्रकार की अभिरुचि की दृष्टि से समझता है तथा उनका संग्रह, संकलन, अभिलेखन And निर्वचन करता है। वह यहाँ पर यद्यपि Single जटिल सामाजिक परिस्थिति/ वास्तविकता में पाये जाने वाले तत्वों की आत्मनिर्भरता को ध्यान में रखते हुए, किन्तु फिर भी इन All तत्वों का description Single साथ प्रस्तुत न कर Single-Single करके उनका विश्लेषण And विवेचन करता है। वह वैयक्तिक अध्ययन प्रक्रिया से सम्बन्धित आवश्यक गुणों जैसे अध्ययन विषय का समुचित ज्ञान, सूक्ष्म अवलोकन की क्षमता, विश्लेषण की क्षमता, तार्किक व्याख्या की कुशलता तथा प्रतिवेदन में वस्तुनिष्ठता इत्यादि के माध्यम से वैयक्तिक अध्ययन के विभिन्न चरणों/सोपानों को पार करता है। 

वैयक्तिक अध्ययन में सूचनाओं के स्रोत 

वैयक्तिक अध्ययन में अनुसंधानकर्ताओं द्वारा विविध प्रकार के स्रोतों And प्रविधियों का उपयोग Reseller गया है। इस दृष्टिकोण से, इसे बहमुखी प्रकृति वाली विधि की संज्ञा प्रदान की जा सकती है। नेल्स एण्डरसन (1923) ने ‘होबों’ लोगों के जीवन पद्धति की आन्तरिक संCreation का अध्ययन हेतु First उनके समूह में गाये जाने वाले लोक गीतों, गाथाओं तथा उनकी कविताओं का उपयोग Reseller। तत्बाद विभिन्न संस्थाओं द्वारा ‘होबो लोगों’ के जीवन के बारे में ज्ञान प्राप्त करने हेतु प्रकाशित सांख्यकीय तथ्य Singleत्र किये गये। इसी क्रम में, उनकी वंशावलियाँ, फोटो तथा निकटवर्ती व्यक्तियों से भी विविध प्रकार की सूचनाओं का संग्रह Reseller गया। इन्हीं स्रोतों के माध्यम से एण्डरसन ‘होबों लोगों’ के जीवन की आन्तरिक विशेषताओं तथा उनके सामाजिक संगठन के बारे में व्यावहारिक नियमों के स्थापना में सफल हो पाया। यदि हम वैयक्तिक अध्ययन के अन्तर्गत प्रयोग में लाये जाने वाले स्रोतों की प्रकृति का ज्ञान प्राप्त करना चाहते हैं, तो उन्हें दो भागों में विभाजित कर उनका अध्ययन Reseller जा सकता है : वैयक्तिक अध्ययन के प्राथमिक स्रोत And वैयक्तिक अध्ययन के द्वैतियक स्रोत।

  1. प्राथमिक स्रोत : वैयक्तिक अध्ययन में अनुसंधानकर्ता चयनित इकार्इ से सम्बन्धित विविध तथ्यों का संग्रह प्राथमिक सूचनाओं के माध्यम से करता है। इस दृष्टिकोण से वह व्यक्तिगत स्तर पर अवलोकन And साक्षात्कार प्रणालियों द्वारा प्रत्यक्ष Reseller से आवश्यक सूचनाओं को Singleत्र करता है। तत्पश्चात अन्य प्रकार के तथ्य प्राप्त करने तथा संकलित सूचनाओं का सत्यापन करने के उद्देश्य से उसके द्वारा अध्ययन की इकार्इ से सम्बन्धित व्यक्ति के मित्रों, पड़ोसियों, पारिवारिक सदस्यों तथा अन्य सम्बन्धियों से सम्पर्क स्थापित Reseller जाता है। प्राथमिक स्रोतों के माध्यम से न केवल विविध प्रकार की आवश्यक सूचनाओं को संग्रह Reseller जाता है बल्कि उनकी विश्वसनीयता भी स्थापित की जाती है। प्राथमिक स्रोतों द्वारा प्राप्य तथ्य अनोपचारिक तथा आन्तरिक प्रकृति दोनों प्रकार के हो सकते हैं। 
  2. द्वैतियक स्रोत : प्राथमिक स्रोतों के अतिरिक्त वैयक्तिक अध्ययन के अन्तर्गत सूचनाओं के संकलन के लिए द्वैतियक स्रोत भी महत्वपूर्ण होते हैं। सामान्य तौर पर ये द्वितीयक स्रोत अनेक प्रकार के वैयक्तिक प्रलेखों जैसे डायरी, वैयक्तिक पत्र And लेख इत्यादि के Reseller में होते हैं जो व्यक्तियों, समूहों, समुदायों से सम्बन्धित महत्वपूर्ण सूचनायें प्रदान करते हैं। ये वैयक्तिक प्रलेख इच्छित अथवा अनिच्छित Reseller से Creationकार की मानसिक विशेषताओं तथा वाºय परिवेश से सम्बन्धित विविध प्रकार के तथ्य प्रस्तुत करते हैं, जो वैयक्तिक अध्ययन के विभिन्न सोपानों के दौरान उपयोगी सूचनायें प्रदान करते हैं। इस विधि के अन्तर्गत जिन द्वितीयक स्रोतों का उपयोग Reseller जा सकता है, उनमें डायरियाँ, पत्र, जीवन History, लेख, वंशावली प्रलेख, जीवन गाथा तथा विभिन्न संगठनों द्वारा Windows Hosting रिकार्ड इत्यादि हैं। कुछ प्रमुख द्वैतियक स्रोत का description निम्नवत् है- 
    1. दैनन्दिनियाँ (डायरियाँ) : दैनन्दिनियाँ (डायरियाँ) अत्यन्त महत्वपूर्ण द्वैतियक स्रोत हैं जो अन्य स्रोत से प्राप्त वैयक्तिक आंकड़ों को अधिक पूर्ण बनाती हैं। दैनन्दिनियाँ व्यक्ति द्वारा स्वयं लिखी जाती हैं तथा इसमें व्यक्ति अत्यधिक स्वाभाविक Reseller से अपने जीवन की महत्वपूर्ण घटनाओं And संस्मरणों को लेखबद्ध करता रहता है। ये व्यक्ति के नये सम्पर्कों तथा उसके द्वारा आवश्यक समझे गये अनुभवों पर प्रकाश डालती हैं, तथा उसके व्यक्तिगत अनुभवों को स्पष्ट करने वाली टीकाएँ प्रदान करती हैं। इनकी प्रकृति गोपनीय होती है अत: इसमें व्यक्ति के जीवन सम्बन्धी अनेक महत्वपूर्ण सूचनाओं और रहस्यों का History होता है। चूँकि यह प्रतिदिन लिखी जाती है, अत: इसमें व्यक्ति के जीवन से सम्बन्धित छोटी सी छोटी बातों का समावेश होता रहता है। इसके माध्यम से व्यक्ति की भावनाओं, मनोवृत्तियों, गोपनीय क्रियाओं, सफलताओं तथा असफलताओं को बहुत स्वाभाविक Reseller से समझा जा सकता है। दैनन्दिनियाँ द्वितीयक स्रोत में महत्वपूर्ण इसलिए भी हैं, क्योंकि इसके माध्यम से उन अनेक तथ्यों से अवगत हुआ जा सकता है जिन्हें साक्षात्कार अथवा अवलोकन के द्वारा नहीं समझा जा सकता। 
    2. वैयक्तिक पत्र : वैयक्तिक पत्रों के अन्तर्गत अन्तरंग सामग्री उपलब्ध होती है। ये व्यक्तिगत मनोवृत्तियों, संदेशों, संवेगात्मक प्रतिक्रियाओं तथा निजी अभिरूचियों को स्पष्ट करते हैं, जिन्हें अन्य दस्तावेज स्पष्ट करने में असमर्थ होते हैं। थामस और नैनकी ने अपने शोध अध्ययनों में विस्तृत स्तर पर पत्रों का प्रयोग Reseller। उनकी आधारभूत मान्यता यह थी कि व्यक्ति का विश्व के प्रति अभिमुखीकरण जानने के लिए भावनात्मक कारकों का अध्ययन करना आवश्यक है। उनके According इस Humanीय दस्तावेज के माध्यम से ही उन वास्तविक Humanीय अनुभवों And मनोवृत्तियों जो पूर्ण जीवित And वास्तविक सामाजिक वास्तविकता का निर्माण करते हैं, तक पहुँचा जा सकता है। 
    3. जीवन-History : किसी व्यक्ति के जीवन-History से वैयक्तिक अध्ययन में विस्तृत And स्पष्ट जानकारी प्राप्त होती है। वैयक्तिक जीवन History को सामान्यतया ‘अन्य पुरुष’ ;ज्ीपतक च्मतेवदद्ध में लिखा जाता है। इसमें लेखक स्वयं अपने जीवन की भावनाओं And अनुभवों के बारे में अपनी ही भाषा में लिखता है। थामस और नैनकी ने जीवन History दस्तावेजों का व्यापक प्रयोग Reseller है। इनका उद्देश्य सम्पूर्ण जीवन चक्र अथवा उसकी किसी Single विशिष्ट प्रक्रिया का अध्ययन करना होता है। यह जीवन चक्र किसी Single व्यक्ति, परिवार, संस्था, संगठन, सामाजिक समूह अथवा समुदाय के Reseller में किसी Single वैयक्तिक इकार्इ से सम्बन्धित हो सकता है। 
    4. अन्य वैयक्तिक दस्तावेज : उपरोक्त द्वितीयक सामग्रियों जैसे दैनन्दिनियाँ, वैयक्तिक पत्र, जीवन-History के अतिरिक्त अन्य वैयक्तिक दस्तावेज, जैसे आत्मकथायें, स्वीकारोक्तियां भी वैयक्तिक अध्ययन में सहायक हो सकते हैं। आल्पोर्ट (1942 रू 12) ने इन्हें आत्म-प्रकटन करने वाले अभिलेख कहा है, ‘‘जो इरादे के बिना अथवा इरादे के साथ लेखक के मानसिक जीवन की संCreation, गतिकी तथा क्रिया से सम्बन्धित सूचना प्रदान करते हैं।’’ वैयक्तिक दस्तावेज जीवन की उन परिस्थितियों में अनुभव की निरन्तरता का प्रतिनिधित्व करते हैं जो उसके व्यक्तित्व, सामाजिक व्यवहार तथा जीवन दर्शन पर प्रकाश डालते हं ै और जो सामाजिक वास्तविकता से सम्बन्ध बनाते हुए सम्पूर्ण जीवन परिस्थिति तथा वैयक्तिक संगठन के सम्बन्ध में अन्तदर्ृष्टि प्रदान करते हैं। 

वैयक्तिक अध्ययन का महत्व 

सामाजिक घटनाओं तथा समस्याओं के अत्यधिक सूक्ष्म And गहन अध्ययन में वैयक्तिक अध्ययन पद्धति अत्यधिक व्यावहारिक And उपयोगी सिद्ध हुर्इ है। वर्तमान में यह तथ्य प्रमुख Reseller से स्वीकार Reseller जाने लगा है कि, अधिकांश सामाजिक समस्याओं की प्रकृति व्यक्तिगत होती है तथा वैयक्तिक अध्ययन के आधार पर ही उनके समाधान के व्यावहारिक आधारों को ढूढ़ा जा सकता है। मानसिक चिकित्सा का तो सम्पूर्ण विकास वैयक्तिक अध्ययन और उसके सफल प्रयोग से ही सम्बन्धित रहा है। वास्तव में, वैयक्तिक अध्ययन-विधि सैद्धान्तिक And व्यवहारिक दोनों दृष्टियों से उपयोगी समझी गर्इ है। इसी परिप्रेक्ष्य में इस विधि के गुणों And उपयोगिता को निम्नांकित Reseller से समझा जा सकता है :

  1.  वैयक्तिक अध्ययन के द्वारा किसी भी सामाजिक इकार्इ अथवा इकार्इयों का अत्यधिक सूक्ष्म And गहन अध्ययन Reseller जा सकता है।
  2. वैयक्तिक अध्ययन के द्वारा विभिन्न इकार्इयों केा सूक्ष्म And गहन अध्ययन की सहायता से अनेक उपयोगी तथा व्यवस्थित परिकल्पनाओं का निर्माण Reseller जा सकता है, जो इस अध्ययन के साथ-साथ नये अध्ययनों के लिए आधार के Reseller में काम कर सकती है। 
  3.  वैयक्तिक अध्ययन के अन्तर्गत अनेक महत्वपूर्ण तथ्यों की जानकारी प्राप्त होने के बाद उस अध्ययन अथवा अन्य सम्बन्धित अध्ययन के परिप्रेक्ष्य में प्रयोग लाये जाने वाले प्रपत्रों जैसे, प्रश्नावली अथवा साक्षात्कार-अनूसूची में सुधार करने का समुचित अवसर प्राप्त हो जाता है।
  4. वैयक्तिक अध्ययन के द्वारा ही यह सम्भव हो सकता है कि अध्ययन से सम्बन्धित क्षेत्र, विभिन्न विशेषताओं का प्रतिनिधित्व करने वाली इकाइयों तथा Single ही श्रेणी की इकाइयों में से किस प्रकार सर्वोत्तम निदर्शन प्राप्त Reseller जा सकता है।
  5. सामाजिक सर्वेक्षण तथा अनुसंधान में केवल विषय से सम्बन्धित इकाइयों का अध्ययन करना ही पर्याप्त नहीं होता बल्कि प्राय: जो इकार्इयाँ First ऊपर से अध्ययन की विरोधी अथवा निरर्थक प्रतीत होती हैं, उनके द्वारा भी कुछ महत्वपूर्ण तथ्यों का ज्ञान प्राप्त Reseller जा सकता है। ऐसी विरोधी अथवा निरर्थक इकाइयों का ज्ञान वैयक्तिक अध्ययन के अतिरिक्त अन्य विधि से प्राप्त नहीं Reseller जा सकता। 
  6. वैयक्तिक अध्ययन विधि के द्वारा चयनित सामाजिक इकार्इ से सम्बद्ध प्रलेखों का विस्तार से अध्ययन करते-करते अनुसंधानकर्ता के ज्ञान में ही वृद्धि नहीं होती बल्कि अध्ययन के प्रति उसकी रूचि में भी वृद्धि हो जाती है, जिससे उसे अध्ययन के विभिन्न पक्षों का विश्लेषण करने की स्वयं ही Single अन्र्तदृष्टि प्राप्त हो जाती है। विषय के प्रति अनुसंधानकर्ता में रूचि And ज्ञान बहुत बड़ी सीमा तक अध्ययन की सफलता का परिचायक होता है। 
  7. चूँकि सामाजिक तथ्य प्रकृति से गुणात्मक होते हैं, वैयक्तिक अध्ययन सामाजिक इकार्इ/इकाइयों से सम्बन्धी व्यक्तियों की रूचियों, मनोवृत्तियों, सामाजिक मूल्यों तथा विशेष परिस्थितियों में उनकी प्रतिक्रियाओं से भली-भाँति सम्बन्धित होने के बाद वैज्ञानिक हो जाता है। इस दृष्टि से, मनोवृत्तियों से सम्बन्धी गुणात्मक विशेषताओं का अध्ययन करने में वैयक्तिक अध्ययन विधि ही सबसे उपयोगी है। 
  8. वैयक्तिक अध्ययन Single ऐसी विधि है जिसके द्वारा चयनित इकार्इ के अतीत, वर्तमान तथा भविष्य को समझकर And उनका समन्वय करके निष्कर्ष प्राप्त करना सम्भव होता है। 
  9. वैयक्तिक अध्ययन विधि के माध्यम से प्रारम्भिक स्तर पर समस्या से सम्बद्ध इकार्इयों की जानकारी प्राप्त कर लेने के बाद किसी भी बड़े अध्ययन को प्रारम्भ करने के लिए उसके समग्र का निर्धारण, निदर्शन की प्राप्ति तथा उपकरणों के निर्माण में सहायता मिलती है। 

सारांश में, वैयक्तिक अध्ययन से प्राप्त निष्कर्ष उस समय अत्यधिक उपयोगी हो सकते हैं जब हम विशिष्ट क्षेत्रों में कुछ विशिष्ट स्रोत And प्रविधियों के प्रयोग से अध्ययन कार्य से प्राप्त परिणामों (निष्कर्षों) में Singleीकरण करने का प्रयास करें। यह Singleीकरण विभिन्न विधा विषयों के स्तर भी Reseller जाना चाहिए। आज सामाजिक अनुसंधान के क्षेत्र में प्रयोग किये जाने वाले All अभिगम अन्तर्विषयी है, और हम विभिन्न क्षेत्रों में उपलब्ध ज्ञान का अधिक से अधिक उपयोग करते हुए सामाजिक अनुसंधान की All विधियों, जिसमें वैयक्तिक अध्ययन विधि भी सम्मिलित है, को संचालित करना चाहते हैं। ऐसा इसलिए है, क्योंकि हम आधुनिक नागरिक औद्योगिक समाज की जटिलता तथा उसके परिप्रेक्ष्य में किसी भी घटना के घटित होने के लिए उत्तरदायी कारकों की बहुलता को स्वीकार करते हैं। अत: अन्तर्विषयी केन्द्रित वैयक्तिक अध्ययन सामाजिक वास्तविकता को उसकी अधिक पूर्णता में तथा अधिक वस्तुनिष्ठ ढंग से देखने का अवसर प्रदान कर सकते हैं।

वैयक्तिक अध्ययन की सीमाएँ 

इसमें कोर्इ संदेह नहीं है कि वैयक्तिक अध्ययन अपने गुणात्मक प्रकृति के कारण बहुत महत्वपूर्ण विधि प्रमाणित हुर्इ है। परन्तु साथ-साथ यह भी स्वीकार Reseller गया है कि इसकी कुछ अंतनिर्हित सीमाएँ हैं, जो इसे दोष रहित स्थापित नहीं कर पाती। ब्लूमर ;1939द्ध ने तो यहाँ तक कह दिया कि वैयक्तिक अध्ययन-विधि स्वतन्त्र Reseller से अपर्याप्त और अवैज्ञानिक होने के साथ ही सिद्धान्तों के निर्माण में अव्यवहारिक सिद्ध हुआ है। ब्लूमर का यह कथन वैयक्तिक अध्ययन को केवल Single पूरक विधि के Reseller में ही उपयोगी मानता है।

वैयक्तिक अध्ययन विधि के अन्तर्गत तैयार किये गये अभिलेखों द्वारा प्रत्यक्षीकरण, स्मृति, निर्णय, असामान्य घटनाओं इत्यादि पर Need से अधिक बल दिये जाने की विशेष प्रवृत्ति के कारण अचेतन Reseller से पूर्वाग्रह की त्रुटियाँ हो जाती हैं। आंकड़ों की प्रकृति भावानात्मक होने के कारण इनकी वस्तुनिष्ठ Reseller से जाँच नहीं की जा सकती है। निदर्शन का प्रयोग न किये जाने के कारण प्रतिनिधित्वपूर्णता की कमी होती है तथा किये जाने वाले सामान्यीकरण विश्वसनीय नहीं होते क्योंकि ये कुछ विशेष प्रकार के व्यक्तियों से प्राप्त की गर्इ सूचना पर आधारित होते हैं। इस विधि के अन्तर्गत कोर्इ ऐसी तकनीक नहीं होती जिसके द्वारा वैयक्तिक दस्तावेजों की प्रमाणिकता की जाँच हो सके। अध्ययन के लिए जिन इकाइयों का चुनाव Reseller जाता है उनका प्रतिचयन किसी वैज्ञानिक प्रणाली द्वारा न करके सुविधापूर्वक Reseller से कर लिया जाता है।

रीड बेन (1929:156.161) ने सामाजिक अनुसंधानों में वैयक्तिक अध्ययनों द्वारा सार्थक वैज्ञानिक सामग्री उपलब्ध कराने में सन्देह व्यक्त करते हुए कहा कि, अवैयक्तिकता, सार्वभौमिकता, गैरनैतिकता, गैर-व्यावहारिक तथा घटनाओं की पुनरावृत्ति की दृष्टि से जीवन अभिलेख महत्वपूर्ण नहीं होते।’ रीड बेन ने इसकी निम्नांकित सीमाओं/कमियों का History Reseller है :-

  1. जितना अधिक तारतम्य स्थापित होगा उतना ही ज्यादा सम्पूर्ण प्रक्रिया वस्तुगत होगी। 
  2. विषय स्व-न्याय प्रतिपादक हो जाता है न कि तथ्यात्मक। 
  3. उत्तरदाता की साहित्यिक चाह उसे बहका सकती है। 
  4.  उत्तरदाता वास्तविकता की तुलना में आत्म-औचित्य पर अधिक बल दे सकता है।
  5. अनुसंधानकर्ता स्वयं यह देखना चाहता है कि उसके उद्देश्यों की पूर्ति हो रही है अथवा नहीं।
  6. जीवन दस्तावेज प्रदान करने वाले अधिकतर उत्तरदाता समस्याग्रस्त होते हैं। 
  7. अनुसंधानकर्ता प्राय: उत्तरदाता की सहायता करता है। 
  8.  बहुसंख्यक चरों के समग्र में वैयक्तिक परिस्थितियाँ प्राय: अतुलनीय होती हैं। 
  9. जीवन दस्तावेजों के लिए वैज्ञानिक Wordावली का विकास Reseller जाना होता है। 

उपरोक्त सीमाओं के होते हुए भी, वैयक्तिक अघ्ययन की कमियों पर अनुसंधानकर्ताओं को विशेष Reseller से प्रशिक्षित कर विजय प्राप्त की जा सकती है। इस विशेष प्रशिक्षण का यह प्रमुख उत्तरदायित्व होना चाहिए कि, सुप्रशिक्षित व्यक्ति किसी-न-किसी स्रोत का प्रयोग करते हुए आंकड़ों को Singleत्रित करें, उनकी जाँच करें, उन्हें प्रतिदर्शित And विश्लेषित करें। सुप्रशिक्षित व्यक्तियों से यह अपेक्षा की जा सकती है कि वे इस विशेष प्रशिक्षण के माध्यम से वैयक्तिक अध्ययन के अन्तर्गत अन्वेषण And अभिलेखन के क्रमबद्ध ढंगों को विकसित करते हुए उनका अधिक से अधिक उपयोग करने में सक्षम होंगे।

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