रोगी व्यक्ति के लक्षण

Single रोगी व्यक्ति शारीरिक, मानसिक And आध्यात्मिक स्तर पर अपने सामान्य कार्यों को भली- भांति नही कर पाता है Meansात उस व्यक्ति के शारीरिक कार्य जैसे भोजन का पाचन, श्वसन, उत्र्सजन व रक्त परिभ्रमण आदि कार्य अव्यवस्थित हो जाते हैं। मानसिक स्तर पर उसे निरसता, उदासी, तनाव, क्रोध, र्इष्या, घबराहट And बैचेनी आदि उद्वेगों की अनुभूति होने लगती है। आध्यात्मिक स्तर पर भी ऊर्जा की कमी होने पर रोगी व्यक्ति के अन्दर आत्महीनता के भाव उत्पन्न हो जाते है। इस प्रकार शारीरिक, मानसिक And आध्यात्मिक कार्यों का अव्यवस्थित होना क्रमश: शारीरिक, मानसिक And आध्यात्मिक रोगी व्यक्ति के लक्षण हैं। अब हम इन शारीरिक, मानसिक And आध्यात्मिक रोगी व्यक्ति के लक्षणों का सविस्तार अध्ययन करेगें

शारीरिक रोगी व्यक्ति के लक्षण

आधुनिक चिकित्सा विज्ञान Human शरीर को ग्यारह तंत्रों में विभाजित करता है, इन ग्यारह तंत्रों का सुव्यवस्थित रुप में कार्य करना ही शारीरिक स्वास्थ्य है Meansात इन तंत्रों का भलि भांति कार्य करना शारीरिक सवस्थ व्यक्ति के लक्षण हैं जबकि इन तंत्रों में विकार उत्पन्न होना शारीरिक रोगी व्यक्ति के लक्षण है। Human शरीर के तंत्रों के आधार पर शारीरिक रोगी व्यक्ति के लक्षण इस प्रकार हैं-

  1. पाचन तंत्र के रोगी व्यक्ति के लक्षण : समय पर ठीक तरह से भूख नही लगना, ग्रहण किए गये भोजन का ठीक प्रकार से पाचन नही होना तथा मल पदार्थो का शरीर से ठीक प्रकार से निष्कासन नही होना पाचन तंत्र के रोगी व्यक्ति के लक्षण हैं। इसके अन्र्तगत भोजन ग्रहण करने के उपरान्त पेट में भारीपन रहना, खट्टी डकारें आना, गैस बनना आदि लक्षणों का वर्णन भी आता है। 
  2. श्वसन तंत्र के रोगी व्यक्ति के लक्षण : श्वास- प्रश्वास की क्रिया में कठिनार्इ उत्पन्न होना श्वसन तंत्र के रोगी व्यक्ति के लक्षण हैं। इसके अन्र्तगत श्वास नलिका में जकडन, कफ की अधिकता, गले में टँासिल्स, खांसी And जुकाम आदि लक्षणों का वर्णन आता है। 
  3. उत्सर्जन तंत्र के रोगी व्यक्ति के लक्षण : शरीर की उत्र्सजन क्र्रिया में बाधा होना उत्र्सजन तंत्र के रोगी व्यक्ति के लक्षण हैं। शरीर से मूत्र के रुप में उत्सर्जी पदार्थो की सही मात्रा निष्कासित नही होने की अवस्था उत्सर्जन तंत्र रोगी व्यक्ति के लक्षण हैं। वक्क में सूजन, जलन, भारीपन व बहुमूत्र आदि लक्षण व्यक्ति को रोगी की श्रेणी में रखते हैं। 
  4. अस्थि तंत्र के रोगी व्यक्ति के लक्षण : शरीर को आकृति And ढँाचा प्रदान करने वाली अस्थियों And उपास्थियों में विकृति उत्पन्न होना अथवा किसी दुर्घटना आदि के कारण अस्थियों का टूट जाना अस्थि तंत्र के रोगी व्यक्ति के लक्षण है। शरीर की लम्बार्इ ठीक नही होना भी अस्थि तंत्र के रोगी व्यक्ति के लक्षण हैं। 
  5. पेषिय तंत्र के रोगी व्यक्ति के लक्षण : शरीर के जोडों में सूजन, दर्द And जकडन पेशिय तंत्र के रोगी व्यक्ति के लक्षण हैं। कमर दर्द, गर्दन दर्द, हाथों-पैरों में दर्द, चलने में कठिनार्इ And लिगामेंटस में खिचाव व दर्द का सम्बन्ध पेशिय तंत्र के साथ है तथा ये लक्षण पेशिय तंत्र के रोगी व्यक्ति के लक्षण हैं। 
  6. अध्यावरणीय तंत्र के रोगी व्यक्ति के लक्षण : त्वचा में अधिक लालीपन, खुजली, जलन, दाने, फोडे फुसीं आदि लक्षण अध्यावरणीय तंत्र के रोगी व्यक्ति के लक्षण हैं। 
  7. रक्त परिसंचसण तंत्र के रोगी व्यक्ति के लक्षण : रक्त में स्थित लाल रक्त कणों, श्वेत रक्त कणों व प्लेटलेट्स की संख्या सामान्य से कम अथवा अधिक होना रक्त परिसंचरण तंत्र के रोगी व्यक्ति के लक्षण हैं। हृदय का रोगग्रस्त होना And रक्तवाहीनियों में रक्त का सामान्य से कम अथवा अधिक दबाव से परिभ्रमण करना रक्त परिसंचसण तंत्र के रोगी व्यक्ति के लक्षण है। 
  8. अन्त:स्रावी तंत्र के रोगी व्यक्ति के लक्षण : शरीर में स्थित अन्त:स्रावी ग्रन्थियों के स्रावों का अव्यवस्थित रुप से स्रावित होना अन्त:स्रावी तंत्र के रोगी व्यक्ति के लक्षण है। शरीर की चयापचय दर का असन्तुलित होना, बौनापन, बाँझपन, थायराइड, मधुमेह तथा अनिन्द्रा आदि लक्षणों का सम्बन्ध अन्त:स्रावी तंत्र के साथ है। 
  9. प्रतिरक्षा तंत्र के रोगी व्यक्ति के लक्षण : जुकाम होना, एलर्जी होनी, बुखार होना, टाँसिल्स बढना व उल्टी-दस्त आदि संक्रामक रोगों का बार-बार होना And जल्दी से ठीक नही होना प्रतिरक्षा तंत्र के रोगी व्यक्ति के लक्षण है। 
  10. तंत्रिका तंत्र के रोगी व्यक्ति के लक्षण : शरीर की नस-नाडियों पर नियंत्रण का अभाव, दुर्बल स्मरण “ाक्ति, हाथों-पैरों में कम्पन्न व शरीर के अंगों में सुन्नपन रहना अथवा चिटियों के रेंगनें जैसी अनुभूति होना तंत्रिका तंत्र के रोगी व्यक्ति के लक्षण है।
  11. प्रजनन तंत्र के रोग : पुरुषों में पुरुषत्व का अभाव And नारियों में नारीत्व का अभाव प्रजनन तंत्र के रोगी व्यक्ति के लक्षण है।

मानसिक रोगी व्यक्ति के लक्षण

शारीरिक रोग के अतिरिक्त मानसिक रोग से ग्रस्त व्यक्ति कहीं अधिक कष्टों को प्राप्त होता है। Single मानसिक रोगी व्यक्ति कहीं पर भी सुख And चैन प्राप्त नही कर पाता है। मानसिक रोग से ग्रस्त हाने का प्रभाव शरीर पर भी पडता है तथा इसके परिणाम स्वरुप शारीरिक रोग भी जन्म लेने लगते है। Single मानसिक रोगी व्यक्ति के अन्दर  लक्षण प्रकट होते हैं-

  1. मानसिक ऊर्जा में असामान्य रुप से वृद्धि होने के परिणाम स्वरुप मानसिक तनाव, उद्विग्नता, को्रध, र्इष्या And बैचेनी आदि लक्षणों का प्रकट होना Single मानसिक रोगी व्यक्ति के लक्षण हैं। कुछ अवस्थओं में इसके शरीर में सुक्ष्म कम्पन्न भी होने लगता है। इस व्यक्ति की नींद बहुत कम हो जाती है तथा वह प्रतिक्षण उत्तेजना से ग्रस्त रहता है। 
  2. मानसिक ऊर्जा में असामान्य रुप से कमी होने के परिणाम स्वरुप मानसिक अवसाद, निराशा, शोक, मूढता And घबराहट आदि लक्षणों का प्रकट होना Single मानसिक रोगी व्यक्ति के लक्षण हैं। इस व्यक्ति के शरीर में आलस्य, भारीपन, कार्यों में अरुचि And अतिनिन्द्रा आदि लक्षण प्रकट होते हैं। 
  3. मानसिक स्तर पर सांवेगिक अस्थिरता मानसिक रोगी व्यक्ति के लक्षण हैं। छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा करना, दूसरों के साथ झगडा करना, समय पर कार्य नही करना, अनुशासन को नही अपनाना, धैर्य की कमी होना, सही And गलत का निर्णय ठीक प्रकार से नही कर पाना Meansात बु़िद्धमत्ता का अभाव होना तथा गलत दिनचर्या को अपनाते हुए विकृत आहार विहार का सेवन करना मानसिक रोगी व्यक्ति के लक्षण हैं। 
  4. अपने आसपास के वातावरण, परिवार And समाज के अन्य व्यिक्यों के साथ सामन्जस्य का अभाव होना Single मानसिक रोगी व्यक्ति के लक्षण हैं। ऐसे मानसिक रोगी व्यक्ति का स्वभाव चिडचिढा रहता है तथा वह अन्य व्यक्तियों के साथ अच्छे सम्बन्ध नही बना पाता है।

आध्यात्मिक रोगी व्यक्ति के लक्षण

शरीर And मन का संचालन आत्मा से होता है, इस आत्मा में ऊर्जा (आध्यात्मिक ऊर्जा) के असन्तुलन की अवस्था में आध्यात्मिक रोग उत्पन्न होते हैं। Single आध्यात्मिक रोगी व्यक्ति के लक्षण होते हैं-

  1. र्इश्वर के प्रति नास्तिकता के भाव रखते हुए स्वंम को पूजा-पाठ, हवन, यज्ञ, प्रार्थना आदि कर्मकाण्डों And सत्कार्यों से दूर कर लेना And स्वंम को बुरे रास्ते पर बुरार्इयों के साथ जोडकर अपना जीवन यापन करना Single आध्यात्मिक रोगी व्यक्ति के लक्षण हैं। 
  2. शारीरिक And मानसिक कार्यो पर नियंत्रण का अभाव होना Single आध्यात्मिक रोगी व्यक्ति का सबसे प्रमुख लक्षण है। इस व्यक्ति को अपने द्वारा किए जाने वाले कार्यों का भलि भांति ज्ञान अथवा अनुभूति नही होती है। ऐसा व्यक्ति स्वंम में ही खोया-खोया सा रहता है And दूसरों के साथ अपने दुख, पीड़ा अथवा कष्टों को नही बांटता हैं। 
  3. किसी भी छोटे-बडे दुख अथवा समस्या के आने स्वमं को दुख And पीडा में डूबा अनुभव करना तथा हीनता के भावों से ग्रस्त होकर जीवन के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण को अपना लेना आध्यात्मिक रोगी व्यक्ति के लक्षण हैं। 
  4. जीवन में प्रेम, विनम्रता, परिश्रम, र्इमानदारी, उत्साह, उमंग, हर्ष, उल्लास And सकारात्मक भावों के स्थान पर घृणा, द्वेष, शोक, निराशा, हताशा, चिन्ता And नकारात्मक भावों को अपनाते हुए नीरस रुप में जीवनयापन करना आध्यात्मिक रोगी व्यक्ति के लक्षण हैं। 
  5. कभी भी दूसरों के काम नही आना तथा दूसरों के जीवन व कार्यों में व्यवधान उत्पन्न करना Single आध्यात्मिक रोगी व्यक्ति के लक्षण हैं।

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