रूसो का शिक्षा दर्शन

रूसो के According शिक्षा में तीन महत्वपूर्ण पक्ष हैं- बच्चे की अन्तर्निहित शक्ति, सामाजिक वातावरण तथा भौतिक वातावरण। शिक्षा प्रकृति, Human या वस्तुओं से ली जा सकती है। तीनों के मध्य सहयोग या समन्वय हो तो आदर्श शिक्षा हो सकती है। पर यह सहयोग सम्भव नहीं है क्योंकि प्रकृति And Human संघर्षरत रहता है। रूसो के Wordों में ‘‘हम बाध्य हैं Human या प्रकृति से संघर्ष करने के लिए। आप मनुष्य या नागरिक में से Single का चुनाव कर लें- दोनों को आप साथ-साथ प्रशिक्षित नहीं कर सकते।’’ रूसो का चुनाव प्राकश्तिक शिक्षा है न कि सामाजिक शिक्षा। रूसो दो तरह की शिक्षा व्यवस्था की बात करता है- पब्लिक या सार्वजनिक, जो बहुतों के लिए समान है तथा दूसरा प्राइवेट या घरेलू। पब्लिक शिक्षा का संचालन सरकार करती है क्योंकि यह लोकप्रिय सरकार की मूल Need है। दि न्यू हेलॉयज् में रूसो प्राइवेट या निजी शिक्षा या घरेलू शिक्षा का वर्णन करता है। इस घरेलू शिक्षा में माँ मुख्य अध्यापिका है। रूसो का विद्यार्थी कोई विशेष बालक नहीं बल्कि सामान्य बालक है। रूसो ने कहा ‘‘हमलोगों को सामान्य को देखना चाहिए न कि विशेष को, अपने विद्यार्थी को हम अमूर्त मानें।’’ इस तरह से रूसो Human के सार्वकालिक And सार्वदेशिक प्रकृति पर बल देता है, अत: एमिल को प्रजातांत्रिक शिक्षा का स्रोत माना जाता है। रूसो पहला शिक्षाशास्त्री है जो सार्वजनिक शिक्षा पर जोर देता है।

रूसो का शिक्षा-दर्शन इस सिद्धान्त पर आधारित है कि बच्चे को इस तरह से तैयार Reseller जाय कि वे अपनी स्वतंत्रता का भविष्य में सही उपयोग कर सकें। बड़ों के पूर्वाग्रह से मुक्त रहते हुए बच्चे को अपने बचपन का आनन्द उठाने का अधिकार है।

रूसो के According बालक की शिक्षा के तीन प्रमुख स्रोत हैं- (i) प्रकृति (ii)  पदार्थ (iii)  मनुष्य। रूसो के According बालक का विकास प्रकृति तथा पदार्थ के माध्यम से होता है। Human यानि अध्यापक जब अपनी ओर से शिक्षा देने लगता है तो बच्चे की स्वाभाविक शिक्षा प्रभावित होती है और कुशिक्षा प्रारम्भ हो जाती है। रूसो के According शिक्षक पर समाज की बुराइयों का इतना अधिक प्रभाव पड़ चुका होता है कि वह बच्चों में सद्गुणों का विकास नहीं कर सकता क्योंकि उसमें स्वयं सद्गुण बचे नहीं रहते हैं। अत: कम से कम प्रारम्भिक स्तर पर बच्चे की शिक्षा में रूसो अध्यापक की कोई भूमिका नहीं देखता है। माता-पिता ही इस अवस्था में बच्चों के सहज शिक्षक होते हैं। उन्हें भी कम से कम हस्तक्षेप करते हुए बच्चे को अपनी प्रकृति के According विकास करने की स्वतंत्रता मिलनी चाहिए।

शिक्षा का उद्देश्य

रूसो के According शिक्षा का उद्देश्य Human को प्रकृति के अनुReseller जीवन जीने के योग्य बनाना है। शिक्षा द्वारा Human संसर्ग के परिणामस्वReseller जो कश्त्रिमता उसमें आती है, उससे उसकी रक्षा करता है। रूसो सामाजिक संस्थाओं और उनमें विद्यमान रूढ़ियों के कटु आलोचक हैं। वे कहते हैं- ‘‘तुम समाज सम्मत व्यवहार के ठीक विपरीत कार्य करो। और तुम प्राय: सही होगे।’’ वे Humanीय सामाजिक संस्थाओं को ‘मूर्खता तथा विरोधाभास का समूह बताते हैं।’’ रूसो प्रकृति को ईश्वर निर्मित मानता है और बच्चे को ईश्वरीय कश्ति। वह मानता है कि जब तक बच्चा प्रकृति के प्रभाव में रहता है तब तक वह सद्गुणी, शुभ तथा पवित्र रहता है परन्तु Human के हस्तक्षेप से उसमें गिरावट आने लगती है। इस प्रकार रूसो के According शिक्षा का उद्देश्य बालकों में अन्तर्निहित प्रकश्त स्वभाव And गुणों को Windows Hosting रखना है। रूसो ने शिक्षा को केवल अभिजात्य वर्ग तक ही सीमित न रखकर उसे जनसामान्य तक पहुँचाने का प्रयास Reseller। रूसो ने अमीर घर के बच्चों को भी प्राकश्तिक शिक्षा देने की वकालत की। रस्क (2000) के Wordों में यह अमीर घर के बच्चों को भी गरीबी की शिक्षा देना चाहते थे ताकि भावी जीवन में जो भी स्थिति बने वह सफलता पूर्वक विपत्ति या दुर्भाग्य का सामना कर सके। रूसो सामान्य या प्राकश्तिक Human के आदर्श पर जोर देता है न कि प्लेटो की तरह सुपरमैन के आदर्श पर।

रूसो मजबूत, अच्छे शरीर सौष्ठव का स्वस्थ बच्चा चाहता है। रूसो कमजोर शरीर And कमजोर मस्तिष्क के बच्चे को पसन्द नहीं करता है क्योंकि Single स्वस्थ शरीर ही स्वस्थ मन And उच्च नैतिक चरित्र का आधार है। रूसो का कहना था ‘‘ कमजोर शरीर कमजोर मस्तिष्क का निर्माण करता है।’’ रूसो शिक्षा का उद्देश्य नैतिकता का विकास मानते हैं। पर नैतिकता का विकास प्राकश्तिक परिणामों के द्वारा होना चाहिए न कि व्याख्यानों के द्वारा। रूसो कहते हैं ‘‘बच्चे के लम्बे अवकाश काल (First बारह वर्ष) में नैतिक शिक्षा का कोई प्रत्यक्ष पाठ नहीं पढ़ाया जाना चाहिए। Only नैतिक शिक्षा दी जानी चाहिए ‘‘किसी को आघात मत पहुँचाओं।’’ रूसो लोककथाओं द्वारा भी अप्रत्यक्ष Reseller से नैतिक शिक्षा देने के विरूद्ध हैं।

छात्र-संकल्पना

रूसो बालक को ईश्वर की पवित्र कश्ति मानता है। प्रकृति-निर्माता के हाथों से जो भी वस्तु आती है वह पवित्र होती है परन्तु मनुष्य के हाथों में आकर उसकी पवित्रता खत्म होने लगती है। रूसो बालक को जन्म से अच्छा और पवित्र मानता है और यह सुझाव देता है कि बालक के प्रकश्त गुणों को शिक्षा के द्वारा समाप्त न Reseller जाये। रूसो का यह स्पष्ट मत है कि बच्चे को बच्चा रहने दिया जाये- शिक्षा द्वारा कश्त्रिम Reseller से उसे अल्पावस्था में ही व्यस्क बनाने का प्रयास न Reseller जाये। Human-जीवन के क्रम में बचपन का Single स्थान है, निश्चय ही प्रौढ़ को प्रौढ़ और बच्चे को बच्चा मानकर व्यवहार करना चाहिए।

रूसो बालक पर किसी भी तरह के दबाव डाले जाने का विरोधी है। वह समाज की बुराइयों से बच्चे को बचाना चाहता है। वह उसे प्रसन्न देखना चाहता है। रूसो परम्परागत शिक्षा के अवगुणों पर ध्यान खींचते हुए पूछता है ‘‘उस निर्दयी शिक्षा को क्या कहा जाए, जो वर्तमान को अनिश्चित भविष्य के लिये बलिदान करा देती है, जो बालक को All तरह से प्रतिबंधित कर उसके जीवन को भविष्य की ऐसी खुशी के लिए दुखमय बना देती है जो शायद वह कभी प्राप्त न कर सके।’’

रूसो प्रकृति की व्याख्या ‘स्वभाव’ की दश्ष्टि से भी करता है। बालक की रूचि And स्वभाव के According शिक्षा देने की बात First कही जाने लगी फलस्वReseller बालकेन्द्रित शिक्षा का आन्दोलन चल पड़ा। पर इन सबके मूल में रूसो की छात्र या बालक संकल्पना ही है।

विद्यार्थी जीवन के सोपान

रूसो ने विद्यार्थी के जीवन को चार भागों में बाँटा है-

  1. शैशवावस्था
  2. बाल्यकाल (12 वर्ष की अवस्था तक)
  3. पूर्व किशोरावस्था (12 से 15 वर्ष) तथा 
  4. किशोरावस्था (15 वर्ष से आगे)

रूसो कहते हैं ‘‘प्रत्येक शिक्षा के लिए Single निश्चित समय है और हमें इससे जानना चाहिए।’’

(अ) शैशवावस्था : रूसो का मानना है कि शिक्षा जन्म से ही प्रारम्भ हो जाती है। वे बच्चे की उचित देखभाल का नियम बताते हैं। इस काल में उसके शरीर And इन्द्रियों के सही विकास पर ध्यान देना चाहिए। बच्चे की मातश्भाषा में वार्तालाप के द्वारा उनमें भाषा की योग्यता का विकास Reseller जा सकता है। रूसो बच्चों में आदतों के विकास का विरोध करता है। वह कहता है ‘‘बच्चे को केवल Single आदत विकसित करने देना चाहिए और वह है किसी भी आदत का नहीं होना।’’ इस समय बच्चों को अपनी स्वतंत्रता पर नियंत्रण रखने के लिए तैयार Reseller जाता है। उसमें आत्म नियंत्रण की भावना भरी जाती है।

(ब) बाल्यकाल : इस काल में भी रूसो लड़कों के लिए किसी भी तरह के पाठ्य पुस्तक के उपयोग का विरोध करता है। वह बारह वर्ष तक एमिल को पुस्तकों से दूर रखना चाहता था। Only पुस्तक ‘राबिन्सन क्रूसो’ को छोड़कर। लड़के को निरीक्षण And अनुभव के द्वारा सीखने का अवसर मिलना चाहिए। इन्हें अलग से कुछ भी नहीं पढ़ाना चाहिए। इस तरह से निषेधात्मक शिक्षा के संप्रत्यय का विकास हुआ।

निषेधात्मक शिक्षा रूसो के शिक्षा-सिद्धान्त का Single महत्वपूर्ण आयाम है। एमिल के प्रशिक्षण का सिद्धान्त है ‘‘हर तरह के ज्ञान के ग्रहण का Single निश्चित समय होता है, और वह समय है जब बच्चा उसकी Need अनुभव करता है।’’ रूसो के According यह Single प्राकश्तिक प्रक्रिया है। जबकि परम्परागत पद्धति में विद्यार्थी की Need का अनुमान Reseller जाता है। ‘‘प्रौढ़ो के द्वारा दी गई शिक्षा प्राय: समय पूर्व होती है।’’ इस सिद्धान्त के आधार पर ही रूसो बारह वर्ष की आयु तक बच्चे की शिक्षा रोके रहने की बात कहता है। इस समय तक उसे शिक्षा न दी जाये और उसे अवसर दिया जाय कि वह बिना कोई सामाजिक बुराई ग्रहण किये बारह वर्ष तक का समय व्यतीत करे। इसे रूसो ने निगेटिव एडुकेशन (निषेधात्मक शिक्षा) कहा।

रूसो चाहते हैं कि बच्चे में सही कार्य करने की आदत डाली जाय, जो कि नैतिक जीवन का पहला पाठ है। सही और गलत की समझ सामाजिक जीवन के बजाय प्रकृति द्वारा होती है। निर्भरता दो तरह की होती है- वस्तुओं पर निर्भर करना, जो कि प्रकृति का कार्य है; तथा Human पर निर्भर करना जो कि समाज का कार्य है। वस्तु पर निर्भरता गैर नैतिक है तथा स्वतंत्रता को आघात नहीं पहँुचाती है और न ही दुर्गुणों को जन्म देती है। बारह वर्ष तक की उम्र तक की शिक्षा का प्रमुख सिद्धान्त है ‘‘बच्चे को वस्तुओं पर निर्भर रहने दो। इससे Human पर निर्भर रहने से स्वतंत्रता मिल जाती है।’’ यह गैर नैतिक And गैर सामाजिक शिक्षा है। अत: प्रारम्भिक वर्षों की शिक्षा केवल निषेधात्मक होनी चाहिए। इसमें अच्छाइयों या सत्य को पढ़ाना नहीं है वरन् हृदय को बुराइयों तथा गलत होने की भावना से बचाना है। मुख्य सिद्धान्त है समय को बचाया न जाय वरन् इसे व्यतीत करने दिया जाय। इस काल में शरीर, अंगों, इन्द्रियों का व्यायाम होना चाहिए पर मस्तिष्क को निष्क्रिय रहने देना चाहिए।

बच्चे को पुस्तकीय ज्ञान देने की जगह उसे खेलने-कूदने, And इच्छानुसार अन्य क्रियाओं को करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए। इन क्रिया-कलापों And अनुभवों से उसका शरीर शक्तिशाली होगा जिससे मानसिक क्षमता भी बढ़ेगी। रूसो के According नैतिक शिक्षा देने के स्थान पर उसे अपने कार्यों के प्राकश्तिक परिणाम के आधार पर उचित-अनुचित के विवेक के विकास का अवसर मिलना चाहिए। अत: इस काल में किसी औपचारिक पाठ्यक्रम की Need नहीं है।

(स) पूर्व किशोरावस्था : बारह वर्ष की आयु के उपरांत रूसो बच्चों को तीव्रता से शिक्षा देने की बात कहता है। यह तीव्रता संभव है क्योंकि विद्यार्थी अधिक परिपक्व होता है और ज्ञान को अधिक वस्तुगत या मूर्त तथा व्यावहारिक रीति से दिया जाता है। रूसो कहते हैं ‘‘मुझे बारह वर्ष का Single लड़का दीजिए जो कुछ भी नहीं जानता हो लेकिन पन्द्रह वर्ष की अवस्था में वह उतना जानता होगा जितना उस उम्र का लड़का जो शैशवावस्था से ही शिक्षा प्राप्त कर रहा है, पर इस अन्तर के साथ कि तुम्हारा छात्र रट कर चीजों को जानता है जबकि मेरा विद्यार्थी इन चीजों को कैसे प्रयोग Reseller जाय जानता है।’’

रूसो के According इस स्तर पर प्राकश्तिक विज्ञान, भाषा, गणित, काष्ठकला, संगीत, चित्रकला, सामाजिक जीवन तथा व्यावसायिक प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए। इस स्तर पर भी पुस्तकों से अधिक जोर विद्यार्थी द्वारा इन्द्रियों के प्रयोग द्वारा अनुभव प्राप्त करने पर होना चाहिए। विज्ञान का अध्ययन लड़के की जिज्ञासा को बढ़ायेगा उसे खोज या अविष्कार हेतु प्रेरित करेगा तथा वह स्वयं सीखने की प्रक्रिया को तेज करेगा। चित्रकला आंख और मांसपेशियों को प्रशिक्षित करेगा। शिल्प या हस्त उद्योग लड़के में कार्य करने की क्षमता का विकास करेगा। सामाजिक जीवन में व्यावहारिक अनुभव से वह समझेगा कि Human Single Second पर निर्भर करेगा, जिससे बच्चा सामाजिक उत्तरदायित्व को समझेगा और उसका निर्वहन करेगा।

रूसो का कहना है कि किताबें ज्ञान नहीं देती है वरन् बोलने की कला सिखाती है। अत: पाठ्यक्रम पुस्तकों पर आधारित न होकर कार्य पर आधारित होना चाहिए। इस काल में किशोर को शिक्षा प्राप्त करने And कठिन परिश्रम करने के लिए पर्याप्त समय और अवसर मिलना चाहिए।

(द) किशोरावस्था : शिक्षा के चतुर्थ चरण में रूसो नैतिक तथा धार्मिक शिक्षा पर जोर देता है। नैतिक शिक्षा भी वास्तविक अनुभव के द्वारा होनी चाहिए न कि व्याख्यानों के द्वारा। जैसे कि Single नेत्रहीन व्यक्ति को देखने के बाद किशोर या नवयुवक में सहानुभूति, प्रेम, स्नेह, दया जैसे भावों का स्वत: संचार होता है। धार्मिक शिक्षा भी इसी तरह से देने का सुझाव रूसो ने दिया पर इसके लिए History, पौराणिक And धार्मिक कथाओं का भी उपयोग Reseller जा सकता है। धार्मिक And नैतिक शिक्षा के अतिरिक्त रूसो शारीरिक स्वास्थ्य, संगीत और यौन शिक्षा को भी महत्व प्रदान करता है।

पाठ्यक्रम

जैसा कि हमलोग देख चुके है रूसो First बारह वर्षों तक औपचारिक शिक्षा देने का विरोधी है। साथ ही पाठ्यक्रम में कई विषयों And उनके परम्परागत शिक्षण-विधियों का भी विरोध करता है। रूसो भाषा की शिक्षा को व्यर्थ मानता है। भूगोल में विश्व कैसा है यह पढ़ाने की जगह केवल नक्शा पढ़ाया जाता है। ‘‘उसे शहरों, देशों, नदियों के केवल नाम पढ़ाये जाते हैं जिसका उसके लिए कोई अस्तित्व नहीं है केवल उसके सामने रखे कागज पर छोड़कर। यह और अधिक हास्यापद गलती है कि इस स्तर पर History पढ़ाया जाता है जबकि वे उन सम्बन्धों को नहीं समझ पाते जिन्हें राजनीतिक क्रिया कहते हैं।’’

जिन विषयों की शिक्षा देने की रूसो संस्तुति करता है वे हैं- शारीरिक शिक्षा : बारह वर्ष तक की अवस्था तक धनात्मक शिक्षा शारीरिक व्यायाम तथा इन्द्रियों के प्रशिक्षण तक सीमित है। शारीरिक शिक्षा स्पार्टा के मॉडल पर आधारित है। अच्छे स्वास्थ्य पर प्रकाश डालते हुए रूसो कहता है: ‘‘अगर आप अपने छात्र की बुद्धि विकसित करना चाहते है तो First उस शक्ति का विकास करो जिसे बुद्धि नियंत्रित करेगा। उसके शरीर को लगातार व्यायाम दो, उसे शक्तिशाली And स्वस्थ होने दो ताकि वह अच्छा And बुद्धिमान बने। उसे दौड़ने दो, चिल्लाने दो, कुछ न कुछ करने दो। इससे वह Single शक्तिशाली And विवेकशील Human होगा। उसमें खिलाड़ी का बल और दार्शनिक की दश्ष्टि होगी।’’

इन्द्रियों का प्रशिक्षण : रूसो इन्द्रियों के प्रशिक्षण पर अत्यधिक जोर देता है। वह कहता है कि हमारा पहला अध्यापक हाथ, पैर, आंख आदि है। इनकी जगह हम पुस्तक रखते हैं तो यह Second के अनुभव या तर्कों का प्रयोग करना हुआ न कि अपना। इन्द्रियों के प्रशिक्षण से रूसो का तात्पर्य औपचारिक व्यायाम न होकर वास्तविक परिस्थितियों में निर्णय लेने की क्षमता का विकास करना है- जैसी परिस्थितियों का वह भविष्य में सामना करेगा।

First इन्द्रिय जिसे रूसो प्रशिक्षित करने का सुझाव देता है वह स्पर्श है। इसका प्रशिक्षण अंधेरे में देना चाहिए। स्पर्श अगर देखते हुए Reseller जाय तो मस्तिष्क देखने की क्रिया से वस्तु के बारे में निर्णय ले लेता है। दूसरी तरफ, स्पर्श के द्वारा विभेदीकरण सुनिश्चित है। यह अन्य इन्द्रियों के जल्दीबाजी में लिए गये गलत निर्णयों को सही करता है।

दश्ष्टि के प्रशिक्षण हेतु रूसो ऐसे कार्यों को बताता है- यह तय करना कि सीढ़ी इतनी लम्बी है या नहीं कि वह पेड़ की उच्चतम शाखा तक पहुँच जाय, कोई लकड़ी इतनी लम्बी है कि नहीं वह किसी जलधारा को ढ़ँक दे, मछली पकड़ने हेतु धागे की लम्बाई पर्याप्त है या नहीं, दो वश्क्षों के मध्य झूला बाँधने के लिए रस्सी की लम्बाई कम ता नहीं है। दौड़ में असमान दूरी देकर तथा बच्चे को तय करने देना कि कौन सी दूरी सबसे छोटी है ताकि वह उसे चुन सके। रूसो के According दश्ष्टि All इन्द्रियों में से वह है जिसे हमें मस्तिष्क के निर्णय से सबसे कम अलग कर सकते हैं, इसलिए स्पर्श की तुलना में देखना सीखना में अधिक समय लगता है। दश्ष्टि को प्रशिक्षित करना आवश्यक है जिससे वह दूरी और आकार के बारे में सही जानकारी दे सके। इसी तरह रूसो अन्य इन्द्रियों- श्रवण, स्वाद, घ्राण के प्रशिक्षण की Need बताता है।

इस पूरे काल में रूसो एमिल को पढ़ाता नहीं है वरन् भावी शिक्षा के लिए तैयार करता है। इस समय ‘समय को व्यतीत करना और उसे बचाना’ मुख्य उद्देश्य है। इस काल की शिक्षा के संदर्भ में रूसो कहते हैं: ‘‘उसके विचार कम है लेकिन स्पष्ट है, वह रट कर कुछ नहीं जानता पर अनुभव के द्वारा बहुत जानता है। अगर वह अन्य बच्चों की तुलना में किताब खराब ढ़ंग से पढ़ता है तो वह प्रकृति की पुस्तक को काफी बेहतर पढ़ता है, उसके विचार उसके जिह्वा नहीं उसके मस्तिष्क में रहता है; उसे याद कम है और निर्णय अधिक है। वह केवल Single भाषा बोल सकता है पर वह समझता है कि वह क्या बोल रहा है; और अगर उसकी भाषा उतनी अच्छी नहीं है जितना अन्य बच्चों के तो उसके कार्य दूसरों से बेहतर हैं।’’ ‘‘उसने बचपन का सर्वोत्तम प्राप्त Reseller है, उसने बच्चों का जीवन जिया है; उसकी प्रगति उसकी खुशियों की कीमत पर नहीं खरीदी गई है; उसने दोनों प्राप्त Reseller है।’’

बारह वर्ष की आयु के उपरांत पाठ्यक्रम : यह काल बाल्यावस्था से किशोरावस्था के मध्य परिवर्तन का काल है। पहला काल आवश्यक से सम्बन्धित था, यह काल उपयोगी से सम्बन्धित है तथा आगे का काल क्या सही है इससे सम्बन्धित है। रूसो कहते है: ‘‘प्रारम्भिक बाल्यवस्था में लम्बा समय था- हमने केवल अपना समय व्यतीत करने का प्रयास Reseller ताकि इसका दुResellerयोग न हो, अब विपरीत स्थिति है- हमलोगों के पास उन All के लिए जो उपयोगी हैं, पर्याप्त समय नहीं है।

जिन ज्ञान को प्राप्त करना है उनका चुनाव बड़ी सावधानी से होना चाहिए। यह निश्चित Reseller से बच्चे की वर्तमान Need के अनुकूल हो। ‘‘इसका क्या उपयोग है? यही पवित्र सूत्र है।’’ विगत काल में जिन विषयों को छोड़ दिया गया था- उन पर उपयोगिता की दश्ष्टि से पुनर्विचार होने चाहिए, तथा जो विषय उपयोगी होने की परीक्षा उत्तीर्ण करे उनकी शिक्षा दी जानी चाहिए। यह अध्यापक का काम नहीं है कि छात्र को विभिन्न विषय/विज्ञान पढ़ाये। पर उसे विषयों की जानकारी दे और जब छात्र में रूचि हो सीखने की विधि बताये।

शिल्प की शिक्षा : एमिल को Single शिल्प या हस्तउद्योग अवश्य सीखना चाहिए, सीखने के लिए कम पर इसे बिना प्राप्त न करने से उत्पन्न होने वाले पूर्वाग्रह से मुक्त होने के लिए अधिक। रूसो इसके महत्व को मानते हुए कहते हैं ‘‘अगर मैं उक बच्चे को पुस्तक से मुक्त कर Single कार्यशाला में काम करने हेतु भेजता हूँ तो यह उसके मस्तिष्क के विकास के लिए। यद्यपि वह कार्य करते हुए Single शिल्पी या मजदूर होने की कल्पना करता है पर वह Single दार्शनिक बन रहा होता है।’’ एमिल के लिए जिस कार्य की कल्पना रूसो करते हैं वह है काष्ठकार्य। ‘‘यह साफ-सुथरा And उपयोगी है: इसे घर में Reseller जा सकता है, यह पर्याप्त व्यायाम देता है, यह कौशल और परिश्रम चाहता है तथा प्रतिदिन के प्रयोग के लिए वस्तुओं का निर्माण करते हुए परिष्कार और सुरूचि के विकास की संभावना बनी रहती है।’’ रूसो के According एमिल को अनिवार्यत: Single किसान की तरह काम करना चाहिए तथा Single दार्शनिक की तरह सोचना चाहिए।’’ रूसो के According शिक्षा का महान रहस्य है शरीर और मस्तिष्क के व्यायाम को Single-Second के आराम के लिए प्रयोग करना।

औद्योगिक And यांत्रिक कला : अब तक विद्यार्थी जहाँ तक संभव हो वस्तुओं पर निर्भर करता था। ‘‘बच्चा तब तक वस्तुओं पर निर्भर करता है जब तक वह Human के अध्ययन के लिए बड़ा And योग्य नहीं हो जाता है।’’ सामाजिक जीवन की Needओं की समझ अब आवश्यक है। आदमियों के परस्पर सम्बन्धों And कर्तव्यों को सीधे तौर पर सिखाने की जगह- अध्यापक को विद्यार्थी का ध्यान औद्योगिक And यांत्रिक कला की ओर खींचना चाहिए जिसमें परस्पर सहयोग की Need पड़ती है। Human की Human पर आर्थिक र्निभरता के आधार पर अध्यापक अपने विद्यार्थियों में सामाजिक व्यवस्था की Need को महसूस करायेगा। रूसो के According सारी सम्पत्ति समुदाय की है तथा प्रत्येक व्यक्ति समुदाय के लिए अपनी भूमिका का निर्वहन करता है।

पन्द्रह वर्ष तक की शिक्षा का निचोड़ रूसो के Wordों में निम्न है- ‘‘अपने ऊपर आधिपत्य पाकर, हमारा बच्चा अब बच्चा रहने के लिए तैयार नहीं है। उसके शरीर और मस्तिष्क को क्रियाशील कराने के बाद आपने उसके मस्तिष्क And उसके निर्णय को क्रियाशील Reseller है। और अंतत: उसके अंगो और बौद्धिक क्षमताओं को जोड़ दिया है। हमलोगों ने उसे Single मजदूर या शारीरिक श्रम करने वाला तथा Single विचारक बनाया है। अब उसे हम स्नेहसिक्त और कोमल हृदय का बनायें।’’

पन्द्रह वर्ष के उपरांत पाठ्यक्रम : छात्र अब नैतिक स्तर पर पहुँच जाता है। उसे Single जवान व्यक्ति का सान्निध्य प्राप्त करना चाहिए। रूसो इस आयु की शिक्षा के संदर्भ में कहता है ‘‘उसे यह जानने दो कि Human प्रकृति से अच्छा है, उसे यह महसूस करने दो, उसे अपने पड़ोसियों के संदर्भ में स्वयं निर्णय लेने दो, लेकिन उसे यह भी देखने दो कि समाज ने Human को किस तरह से विकश्त Reseller है। उसे महसूस करने दो कि Human के पूर्वनिर्धारित विचारों या पूर्वाग्रह ही सारी बुराइयों की जड़ है। उसे व्यक्ति को आदर देने दो पर समूह को नापसन्द करने दो, उसे महसूस करने दो कि All Human Single ही मुखौटा लगाते हैं लेकिन उसे यह भी जानने दो कि कुछ चेहरे उस मुखौटे से बेहतर होते हैं जो उसे छिपाता है।’’

History : रूसो के According अब History की शिक्षा दी जानी चाहिए। History के माध्यम से वह बिना दर्शन पढ़े Human के हृदय को समझ सकता है। वह उन्हें बिना किसी भावना या पक्षपात के निरपेक्ष दर्शक की तरह देखेगा- न्यायाधीश की दृष्टि से देख्ेागा। ‘‘History को क्रांति और बर्बादी रूचिकर बनाता है। जब तक राष्ट्र शांतिपूर्ण ढंग से विकास करता है History उस ओर ध्यान नहीं देता है- पतन की प्रक्रिया पर जोर देता है। शैतान चरित्र सिद्ध हो जाते हैं- अच्छे को भूला दिया जाता है। इस तरह से History, दर्शन की तरह Human को गिराता है।’’ दूसरी कठिनाई यह है कि History Human की जगह क्रिया को दिखाता है। वह Human को कुछ चुने हुए समय में ही दिखाता है। घटनाओं के धीमे विकास की प्रक्रिया को History नहीं देख पाता है। Fight उन घटनाओं को दिखाता है जो नैतिक कारणों द्वारा सुनिश्चित होता है, जिसे कुछ ही Historyकार समझ पाते हैं। History के चरित्र को आदर्श (मॉडल) नहीं माना जा सकता।

नैतिकता : रूसो प्राचीन जीवनियों जैसे प्लूटार्क की जीवनी पढ़ने का सुझाव देता है वह आधुनिक जीवनियों को महत्व प्रदान नहीं करता है। विद्यार्थी के प्रशिक्षण में बरती गई तमाम सावधानियों के बावजूद गलतियाँ हो सकती हैं- इनका सुधार अप्रत्यक्ष Reseller से होना चाहिए। ‘‘गलतियों का समय (लोककथाओं) का समय है।’’ Single कहानी की सहायता से अगर हम गलतियों का एहसास कराते हैं तो वह अपमानित महसूस नहीं करता है। लेकिन कहानी की शिक्षा अलग से बताने की जरूरत नहीं है- क्योंकि वह तो कहानी में ही स्पष्ट रहता है।

धार्मिक शिक्षा : पन्द्रह वर्षों तक विद्यार्थियों को धार्मिक शिक्षा देने का रूसो विरोध करता है। उसके According अभी तक एमिल ने शायद ही ईश्वर का नाम सुना होगा। पन्द्रहवें वर्ष तक वह शायद ही यह जान पाया होगा कि उसके पास Single आत्मा है, अठारहवें वर्ष में भी शायद इसकी शिक्षा के लिए तैयार न हुआ हो। रूसो एमिल को किसी सम्प्रदाय से जोड़ने का सुझाव नहीं देता है- वह स्वयं अपनी समझ के According निर्णय लेगा। यद्यपि रूसो ‘दि क्रीड ऑफ ए सवोयाड प्रिस्ट’ के पक्ष में है। रूसो यह नहीं बताता है कि क्यों कोई सम्प्रदाय बेहतर है।

रूसो आन्तरिक प्रकाश पर जोर देता है। सत्य स्वयं स्पष्ट है। जिस पर ईमानदारी से विश्वास करने से इन्कार नहीं कर सकता है। रूसो एमिल के लिए प्राकश्तिक धर्म दिये जाने का प्रस्ताव रखता है।

सौन्दर्यशास्त्र : रूसो किशोर के लिए सौन्दर्यशास्त्र पढ़ने की अनुशंसा करता है- रूचि के सिद्धान्त का दर्शन। रूचि जो हृदय में प्रवेश करता है, शास्त्रीय ग्रन्थों में ही उपलब्ध है। इन्हें नैतिकता की ही तरह सौन्दर्यशास्त्र के शिक्षण में रूसो उपयोग में लाना चाहता है।

शारीरिक प्रशिक्षण : किशोरावस्था में शारीरिक प्रशिक्षण की उपेक्षा नहीं की जानी चाहिए। छात्र को किसी Single व्यवसाय में लगा होना चाहिए जो उसे परिश्रमी बनायेगा। किसी Single पेशे जिसमें वह अत्यधिक रूचि लेने लगता है, जिसमें वह अपने को पूर्णत: लगा देता है उसे और अधिक गहनता से प्राप्त करने का सुझाव देता है।

यौन शिक्षा : रूसो के According अगर आवश्यक हो तो शुचिता या पवित्रता हेतु नैतिक उपदेश दिए जा सकते है। छात्र को प्रकृति के नियम का संपूर्ण सच बतायें। विवाह पवित्रम तथा मधुरतम सामाजिक सम्बंध है। इसके विरूद्ध जाने वाला निन्दा का पात्र बनते हैं। शुचिता या पवित्रता की इच्छा पर स्वास्थ्य, मजबूती, साहस, नैतिकता, प्यार आदि अच्छे गुण निर्भर करते हैं। यौन-प्रश्वत्ति को आदर्श स्त्रियोचित गुण के प्रति अनुराग के Reseller में परिष्कश्त करना चाहिए। आदर्श संगिनी के Reseller में रूसो सोफी, एमिल की भावी पत्नी, के लिए शिक्षा की Resellerरेखा प्रस्तुत करता है।

शिक्षण-विधि

रूसो अपने प्रकृतिवादी सिद्धान्तों को शिक्षण-विधि का आधार बनाता है। बच्चे को पढ़ाये जाने की क्रिया को वह बचपन का अभिशाप मानते है। अगर बच्चे में जानने या सीखने की इच्छा जागश्त हो जायेगी तो वह स्वयं सीख लेगा। रूचि सीखने की पहली शर्त है। हमलोग वैसे पाठ से कुछ भी नहीं सीख सकते जिसे हम नापसन्द करते हैं। उसने शिक्षण-विधि में दो सिद्धान्तों को महत्व दिया-

  1. अनुभव के द्वारा सीखना : रूसो एमिल को किताबों की बजाय अनुभव के द्वारा शिक्षित होते देखना चाहता था। रूसो पुस्तकों का विरोधी था क्योंकि उसकी दश्ष्टि में पुस्तक वैसी चीजों के बारे में बोलना सिखाता है जिसे हम जानते नहीं हैं। रूसो First बारह वर्षों तक बच्चे को पुस्तकों की दुनिया से अलग रखना चाहता था। केवल राबिन्सन क्रूसो नामक पुस्तक को छोड़कर। यह किताब Human की प्राकश्तिक Needओं का बड़े ही सरल ढ़ंग से विश्लेषण करता है। बच्चा इसे आसानी से समझ सकता है और इन Needओं को कैसे संतुष्ट Reseller जाय यह भी सीख सकता है।
  2. कर के सीखना : रूसो Wordों द्वारा दी जाने वाली शिक्षा उस हद तक प्रभावशाली नहीं मानता था जिस हद तक कर के सीखने की प्रक्रिया को। वह रट कर सीखने का विरोधी था। वह बच्चों में तर्क, विश्लेषण And संश्लेषण की शक्ति को विकसित करना चाहता था। रूसो परम्परागत शिक्षण-विधि का प्रबल विरोधी था। वह छात्रों को स्वयं निरीक्षण अनुभव And विश्लेषण द्वारा सीखने का पक्षपाती था। बच्चे के मस्तिष्क में अध्यापक अपने ज्ञान को ढ़ूँढ़ने का प्रयास न कर उसकी जिज्ञासा को बढ़ाये ताकि वह स्वयं समस्या का समाधान ढ़ूंढ़ सकें जिससे उसका मस्तिष्क विकसित होगा। विज्ञान जिज्ञासा, निरीक्षण, प्रयोग And अनुसंधान के माध्यम से ही सर्वोत्तम ढ़ंग से पढ़ाया जा सकता है। रूसो के इन्हीं विचारों के आधार पर बाद में ह्यूरिस्टिक विधि का विकास Reseller गया। लम्बे व्याख्यान बच्चे के शिक्षण को अवरोधित करते है क्योंकि यह नई चीजो के लिए बच्चे के भूख को समाप्त करता है। व्याख्यान की जगह बच्चों को स्वयं कर के सीखने का अवसर मिलना चाहिए यह अनुचित है कि First हम Single शिक्षण-विधि का विकास कर लें और फिर बच्चे को उस विधि के अनुReseller बनाने का प्रयास करें।

अनुशासन

बच्चे में उचित अनुशासन की भावना की विकास के लिए रूसो के According, बच्चे को पूर्ण स्वतंत्रता देनी चाहिए। यह अनुशासन के लिए पहला कदम है। बच्चे को अनावश्यक बंधन में रखने से उसमें अनुशासन की भावना के विकास को बाधित करना है। बच्चा अगर प्राकश्तिक वातावरण में स्वतंत्र रहेगा तो उसकी अन्तर्निहित शक्तियों का बेहतर विकास होगा। रूसो दण्ड देने के विरूद्ध थे क्योंकि उनका मानना था बच्चे को गलतियों का प्राकश्तिक परिणाम के Reseller में आना चाहिए। रूसो के According बच्चे को गलत और सही की समझ नहीं रहती है- लेकिन जब गलती करता है तो उसे पीड़ा या दंड मिलता है और जब वह सही करता है तो आनन्द। इस प्रकार वह प्राकश्तिक परिणाम के अनुभव के द्वारा प्रकृति के नियमों को पालन करना सीखता है। अनुशासन के संदर्भ में व्याख्यान उसे अनुशासन से उदासीन बनायेगा। प्रकृति के परिणाम के द्वारा स्वयं बेहतर अनुशासित व्यक्ति बन सकता है। रूसो के According व्यक्ति को कभी भी आज्ञाकारिता के कारण नहीं बल्कि Need के कारण कर्म करना चाहिए।

शिक्षक की भूमिका

रूसो की दृष्टि में अध्यापक की भूमिका प्रKing की नहीं होनी चाहिए न ही वह सारे ज्ञान का स्रोत है जो बच्चों को मिलना चाहिए। अध्यापक की भूमिका वस्तुत: निरीक्षक (गाइड) And सहयोगी की है। अध्यापक उसके दिमाग को सूचनाओं से भरने का प्रयास नहीं करेगा न ही उसके चरित्र को प्रभावित करने का प्रयास करेगा। बच्चा जब किसी चीज को सीखने की Need अनुभव करे तो अध्यापक उन परिस्थितयों के निर्माण में सहायता कर सकता है जिससे बच्चा स्वयं सीख सके। मान्टेसरी पद्धति रूसो के इसी सिद्धान्त पर आधारित है। शिक्षा बच्चे की रूचि के According होनी चाहिए। अध्यापक को अपने को पृष्ठभूमि में रखना चाहिए ताकि बच्चा अपनी रूचि को प्रदर्शित कर सके और उसके अनुReseller शिक्षा ग्रहण कर सके।

रूसो के द्वारा प्रतिपादित निषेधात्मक शिक्षा में अध्यापक बच्चे की गतिविधि में हस्तक्षेप नहीं करेगा पर उसकी गतिविधियों पर अपनी दश्ष्टि रखेगा। वह बच्चे से सहानुभूति और स्नेह रखेगा। वह बालक की निश्छलता And सादगी को अपने में बनाये रखेगा और बच्चों के साथ खेलते, दौड़ते उन्हीं में से Single हो जायेगा तभी वह बच्चों को धनात्मक परिवेश दे सकता है।

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