प्राणायाम क्या है ?

प्राणायाम योग का Single प्रमुख अंग है। हठयोग And अष्टांग योग दोनों में इसे स्थान दिया गया है। महर्षि पतंजलि ने अष्टांग योग में Fourth स्थान पर प्राणायाम रखा है। प्राणायाम नियंत्रित श्वसनिक क्रियाओं से संबंधित है। स्थूल Reseller में यह जीवनधारक शक्ति Meansात प्राण से संबंधित है। प्राण का Means श्वांस, श्वसन, जीवन, ओजस्विता, ऊर्जा या शक्ति है। ‘आयाम’ का Means फैलाव, विस्तार, प्रसार, लंबार्इ, चौड़ार्इ, विनियमन बढ़ाना, अवरोध या नियंत्रण है। इस प्रकार प्राणायाम का Means श्वास का दीघ्र्ाीकरण और फिर उसका नियंत्रण है।

प्राणायाम का Means- 

 प्राणायाम Word संस्कृत व्याकरण के दो Wordों ‘प्राण’ और ‘आयाम’ से मिलकर बना है। संस्कृत में प्राण Word की व्युत्पत्ति ‘प्र’ उपसर्गपूर्वक ‘अन्’ धातु से हुर्इ है। ‘अन’ धातु जीवनीशक्ति का वाचक है। इस प्रकार ‘प्राण’ Word का Means चेतना शक्ति होता है। ‘आयाम’ Word का Means है- नियमन करना। इस प्रकार बाह्य श्वांस के नियमन द्वारा प्राण को वश में करने की जो विधि है, उसे प्राणायाम कहते हैं। प्राणायाम अत्यंत महत्वपूर्ण प्रक्रिया है जो अश्टांग योग में described है। प्राणायाम का Means प्राण का विस्तार करना। स्वामी विवेकानंद ने इसे प्राण का सयंमन करना कहा है। महर्षि पतंजलि प्राणायाम को Single सहज स्वाभाविक प्रक्रिया मानते हैं। प्राणायाम की परिभाषा उन्होंने निम्न प्रकार दी है-

     तस्मिन् सति श्वासप्रश्वासयोर्गतिविच्छेद: प्राणायाम:।। पांतजल योग सूत्र 2/49 

Meansात उस आसन के स्थिर हो जाने पर श्वास और प्रश्वास की गति का रुक जाना प्राणायाम है। प्राणायाम से संबंधित विभिन्न व्याख्याकारों ने जो व्याख्या की है वह इस प्रकार है- महर्षि व्यास- आसन जय होने पर श्वास या बाह्य वायु का आचमन तथा प्रश्वास या वायु का नि:सारण, इन दोनों गतियों का जो विच्छेद है Meansात उभय भाव है, वही प्राणायाम है।

योगी याज्ञवल्क्य के According- 
    प्राणापान समायोग: प्राणायाम इतीरित:।
    प्राणायाम इति प्रोक्तो रेचक पूरक कुम्भकै:।। 6/2 

Meansात प्राण और अपान वायु के मिलाने को प्राणायाम कहते हैं। प्राणायाम कहने से रेचक, पूरक और कुंभक की क्रिया समझी जाती है।

जाबाल दर्शनोपनिषद के According- 
    प्राणायाम इति प्रोक्तो रेचकपूरककुम्भकै:।। 6/1/2 

 Meansात रेचक, पूरक And कुम्भक क्रियाओं के द्वारा जो प्राण संयमित Reseller जाता है, वही प्राणायाम है।

त्रिशिखिब्राह्मणोपनिषद के According-    निरोध: सर्ववृत्तीनां प्राणायाम:।। 2/30 

Meansात All प्रकार के वृत्तियों के निरोध को प्राणायाम कहा गया है। स्वामी ओमानन्द तीर्थ के According – बाहर की वायु का नासिका द्वारा अंदर प्रवेश करना श्वास कहलाता है। कोष्ठ स्थित वायु का नासिका द्वारा बाहर निकलना प्रश्वास कहलाता है। श्वास प्रश्वास की गतियों का प्रवाह रेचक, पूरक और कुम्भक द्वारा बाह्याभ्यान्तर दोनों स्थानों पर रोकना प्राणायाम कहलाता है।

पं. श्रीराम शर्मा आचार्य के According – प्राणायाम सांस खींचने, उसे अंदर रोके रखने और बाहर निकालने की Single विशेष क्रिया पद्धति है। इस विधान के According, प्राण को शरीर में संचित Reseller जाता है।  

स्वामी विवेकानन्द के According – प्राणायाम क्या है ? शरीर स्थित जीवनीशक्ति को वश में लाना। प्राण पर अधिकार प्राप्त करने के लिए हम First श्वास-प्रश्वास को संयत करना शुरू करते हैं क्योंकि यही प्राणजय का सबसे सख्त मार्ग है।  

स्वामी शिवानन्द के According- प्राणायाम वह माध्यम है जिसके द्वारा योगी अपने छोटे से शरीर में समस्त ब्रह्माण्ड के जीवन को अनुभव करने का प्रयास करता है तथा सृष्टि की समस्त शक्तियाँ प्राप्त कर पूर्णता का प्रयत्न करता है। 

अत: प्राणायाम Meansात प्राण का आयाम जोड़ने की प्राण तत्व संवर्धन की Single ऐसी प्रक्रिया जिसमें जीवात्मा का क्षुद्र प्राण ब्रह्म चेतना के महाप्राण से जुड़कर उसी के तुल्य बन जाए।

प्राणायाम के भेद-  

महर्षि पतंजलि ने प्राणायाम के मुख्यत: तीन भेद बताए हैं- बाह्याभ्यनन्तरस्तम्भवृत्तिर्देशकालसंख्याभि: परिदृष्टो दीर्घसूक्ष्म:।। पांतजल योग सूत्र 2/50 Meansात (यह प्राणायाम) बाह्य वृत्ति, आभ्यान्तर वृत्ति और स्तम्भ वृत्ति वाला (तीन प्रकार का) होता है। देश, काल और संख्या के द्वारा देखा जाता हुआ विशाल And हल्का होता है। उपरोक्त तथ्यों को हम निम्नलिखित बिन्दुओं से स्पष्ट कर सकते हैं-

  1. बाह्य वृत्ति (रेचक)- प्राणवायु को नासिका द्वारा बाहर निकालकर बाहर ही जितने समय तक सरलतापूर्वक रोका जा सके, उतने समय तक रोके रहना ‘बाह्य वृत्ति’ प्राणायाम है। 
  2. आभ्यान्तरवृत्ति (पूरक)- प्राणवायु को अंदर खींचकर Meansात श्वास लेकर जितने समय आसानी से रूक सके, रोके रहना आभ्यान्तर वृत्ति है, इसका अपर नाम ‘पूरक’ कहा गया है। 
  3. स्तम्भ वृत्ति (कुम्भक)- श्वास प्रश्वास दोनों गतियों के अभाव से प्राण को जहाँ-तहाँ रोक देना कुम्भक प्राणायाम है। प्राणवायु सहजतापूर्वक बाहर निष्कासित हुआ हो Meansात जहाँ भी हो वहीं उसकी गति को सहजता से रोक देना स्तम्भवृत्ति प्राणायाम है। 

प्राणायाम के इन तीनों लक्षणों को योगी देश, काल And संख्या के द्वारा अवलोकन करता रहता है कि वह किस स्थिति तक पहुँच चुका है। देश, काल व संख्या के According, ये तीनों प्राणायामों में से प्रत्येक प्राणायाम तीन प्रकार का होता है-

  1. देश परिदृष्ट- देश में देखता हुआ Meansात देश से नापा हुआ है Meansात प्राणवायु कहाँ तक जाती है। जैसे- (1) रेचक में नासिका तक प्राण निकालना, (2) पूरक में मूलाधार तक श्वास को ले जाना, (3) कुम्भक में नाभिचक्र आदि में Singleदम रोक देना। 
  2. काल परिदृष्ट- समय से देखा हुआ Meansात समय की विशेष मात्राओं में श्वास का निकालना, अन्दर ले जाना और रोकना। जैसे- दो सेकण्ड में रेचक, Single सेकण्ड में पूरक और चार सेकण्ड में कुम्भक। इसे हठयोग के ग्रंथों में भी माना गया है। हठयोग के ग्रंथों म पूरक, कुम्भक और रेचक का अनुपात 1:4:2 बताया गया हैें। 
  3. संख्या परिदृष्ट:- संख्या से उपलक्षित। जैसे- इतनी संख्या में पहला, इतनी संख्या में दूसरा और इतनी संख्या में तीसरा प्राणायाम। इस प्रकार अभ्यास Reseller हुआ प्राणायाम दीर्घ और सूक्ष्म Meansात लम्बा और हल्का होता है। 

इन तीन प्राणायामों के अतिरिक्त महर्षि पतंजलि ने Single Fourth प्रकार का प्राणायाम भी बताया है- बाह्याभ्यन्तरविषयाक्षेपी चतुर्थ:।। पांतजल योग सूत्र 2/51 Meansात अंदर बाहर के विषय को फेंकने वाला चौथा प्राणायाम है। बाह्य आभ्यान्तर प्राणायाम पूर्वक Meansात इनका पूर्ण अभ्यास होने पर प्राणायाम की अवस्था विशेष पर विजय करने से क्रम से दोनों पूर्वोक्त प्राणायामों की गति का निरोध हो जाता है, तो यह प्राणायाम होता है।

यह चतुर्थ प्राणायाम पूर्व described तीनों प्राणायामों से सर्वथा भिन्न है। सूत्रकार ने यहॉं यही तथ्य प्रदर्शित करने के लिए सूत्र में ‘चतुर्थ पद’ का प्रयोग Reseller है। बाह्य And अन्त: के विषयों के चिंतन का परित्याग कर देने से Meansात इस अवधि में प्राण बाहर निष्कासित हो रहे हों अथवा अंदर गमन कर रहे हों अथवा गतिशील हों या स्थिर हों, इस तरह की जानकारी को स्वत: परित्याग करके और मन को अपने इष्ट के ध्यान में विलीन कर देने से देश, काल And संख्या के ज्ञान के अभाव में, स्वयमेव प्राणों की गति जिस किसी क्षेत्र में रूक जाती है, वही यह चतुर्थ प्राणायाम है। यह सहज ही आसानी से होने वाला राजयोग का प्राणायाम है। इस प्राणायाम में मन की चंचलता शांत होने के कारण स्वयं ही प्राणों की गति रूक जाती है। यही इस प्राणायाम की विशेषता है।

इसके अतिरिक्त हठयोग के ग्रंथों में प्राणायाम के आठ प्रकार लिते हैं। हठयोग में प्राणायाम को ‘कुम्भक’ कहा गया है। ये आठ प्रकार के प्राणायाम या कुम्भक हैं-

हठप्रदीपिका के According- 
   Ultra siteभेदनमुज्जायी, सीत्कारी शीतली तथा।
   भस्त्रिका भ्रामरी मूच्र्छा, प्लाविनी त्यष्टकुम्भका:।। 2/44 

Meansात Ultra siteभेदन, उज्जायी, सीत्कारी, शीतली, भस्त्रिका, भ्रामरी, मूच्र्छा तथा प्लाविनी ये आठ प्रकार के कुम्भक हैं घेरण्ड

संहिता के According-    सहित: Ultra siteभेदश्च उज्जायी शीतली तथा।
   भस्त्रिका भ्रामरी मूच्र्छा, केवली चाष्टकुम्भका:।। 4/66 

Meansात केवली, Ultra siteभेदी, उज्जायी, शीतली, भस्त्रिका, भ्रामरी, मूच्र्छा तथा केवली ये आठ कुम्भक हैं।

प्राणायाम का परिणाम – 

प्राणायाम मन पर नियंत्रण, मानसिक स्थिरता, शांति तथा Singleाग्रता विकसित करने की पद्धति है। इसके अभ्यास से ध्यान के अभ्यास में आसानी होती है। प्राणायाम से शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक And आध्यात्मिक शक्ति का विकास करना संभव होता है। इसके साथ ही प्राणायाम का अभ्यास द्वारा शट्चक्रों के जागरण में सुविधा होती है तथा प्राणायाम अनेक प्रकार के रोगों के निवारण में सहायक होता है। महर्षि पतंजलि ने प्राणायाम के दो फल बताये हैं जो इस प्रकार हैं-

प्रकाश के आवरण का नाश- 

प्राणायाम से भौतिक और आध्यात्मिक दोनों प्रकार के लाभ मिलते हैं। प्राणायाम से पाचन शक्ति, वीर्य शक्ति, प्रत्यक्ष ज्ञान और स्मरण शक्ति बढ़ती है। इससे मन शरीर के बंधन से मुक्त होता है, बुद्धि प्रखर होती है, आत्मा को प्रकाश मिलता है। महर्षि पतंजलि प्राणायाम के फल को स्पष्ट करते हुये बताते हैं कि-

    तत: क्षीयते प्रकाशावरणम्।। पांतजल योग सूत्र 2/52 

Meansात उस प्राणायाम के अभ्यास से प्रकाश का आवरण क्षीण हो जाता है। प्राणायाम के फल से संबंधित विभिन्न व्याख्याकारों ने इस सूत्र के सन्दर्भ में जो व्याख्या की है वह इस प्रकार है-

महर्षि व्यास के According- 
प्राणायामानभ्यस्यतोSस्य योगिन: क्षीयते विवेकज्ञानावरणीयं कर्म।। योगभाष्य 2/52 

Meansात प्राणायाम अभ्यासकारी योगी के विवेकज्ञान का आवरणभूत कर्म क्षीण होता है।

पंचशिखाचार्य के According – 
   तपो न परं प्राणायामात्ततो विशुद्धिर्मलानां दीप्तिश्च ज्ञानस्थे। 

Meansात प्राणायाम से बढ़कर कोर्इ तप नहीं है, उससे मन धुल जाते हैं और ज्ञान का प्रकाश होता है।

महर्षि घेरण्ड के According –  नाड़ी शुद्धिष्च तत: पष्चात्प्राणायामं या साधयेत्। घेरण्ड संहिता 5/2 

नाड़ियों की शुद्धि के लिए प्राणायाम करना चाहिए।

हठप्रदीपिका के According – 
  प्राणायामेन युक्तेन सर्वरोगक्षयो भवेत्। 

हठप्रदीपिका 2/16 उचित रीति से प्राणायाम का अभ्यास करने से All रोगों का नाश होता है।

हठप्रदीपिका में आगे कहा गया है-
  ब्रह्मादयोSपि त्रिदशा: पवनाभ्यासतत्परा:।
  अभूवन्नन्तकभयात् तस्मात् पवनमभ्यसेत्।। हठप्रदीपिका 2/39 

बह्मा आदि देवता भी काल के भय से प्राणायाम के अभ्यास में लगे रहते हैं इसलिए सबको प्राणायाम का अभ्यास करना चाहिए।

आचार्य श्रीराम शर्मा के According – क्लेशादि संचित कर्मों का पर्दा प्राणायाम के अभ्यास द्वारा शनै:-शनै: दुर्बल होते-होते क्षीणता को प्राप्त हो जाता है तब योगी का विवेकज्ञान Resellerी प्रकाश Ultra site के सदृश्य प्रकाशित हो जाता है।

अत: योगी साधक को प्राणायाम का नियमित अभ्यास आत्मिक उत्थान हेतु सतत करते रहना चाहिए।

स्वामी विवेकानन्द के According – चित्त में स्वभावत: समस्त ज्ञान भरा है। वह सत्व पदार्थ द्वारा निर्मित है, पर रज और तम पदार्थों से ढंका हुआ है। प्राणायाम के द्वारा चित्त का यह आवरण हट जाता है।यह आवरण हट जाने से, हम मन को Singleाग्र करने में समर्थ होते हैं।

धारणा की योग्यता- 

 महर्षि पतंजलि प्राणायाम के Second फल को स्पष्ट करते हुये बताते हैं कि-

 धारणासु च योग्यता मनस:।। पांतजल योग सूत्र 2/53 

Meansात समस्त धारणाओं में मन की योग्यता होती है। प्राणायाम के फल से संबंधित विभिन्न व्याख्याकारों ने इस सूत्र के सन्दर्भ में जो व्याख्या की है वह इस प्रकार है-

 महर्षि व्यास के According – प्राणायाम के अभ्यास से ही धारणा करने की योग्यता बढ़ती जाती है। इसमें ‘प्रच्छर्दनविधारणाभ्यां वा प्राणस्य’ सूत्र भी प्रमाण है।

आचार्य श्रीराम शर्मा के According – प्राणायाम के दीर्घकालीन नियमित अभ्यास से ही मन में धारणा की योग्यता आ जाती है। प्राणायाम में सतत आध्यात्मिक देश की भावना करनी पड़ती है। इस प्रकार से करते रहने से चित्त को उन देशों में प्रतिष्ठित करने की योग्यता प्राप्त हो जाती है।

प्राणायाम का महत्व- 

प्राण के नियंत्रण से मन भी नियंत्रित होता है क्योंकि प्राण शरीर व मन के बीच की कड़ी है। प्राणायाम से चित्त की शुद्धि होती है और चित्त शुद्ध होने से अनेक तर्कों, जिज्ञासुओं का समाधान स्वयमेव हो जाता है। इन्द्रियों का स्वामी मन है और मन पर अंकुश प्राण का रहता है। इसलिए जितेन्द्रिय बनने वाले को प्राण की साधना करनी चाहिए। इस प्रकार प्राणायाम वह प्रक्रिया है जिसके माध्यम से हम प्राणों का नियमन, नियंत्रण, विस्तार And शोधन करते हैं। चित्त शुद्ध होता है और चित्त शुद्ध होने पर ज्ञान प्रकट होता है जो योग साधना का प्रमुख उद्देश्य है। प्राणायाम के प्राण का विस्तार And नियमन होता है और प्राण Humanीय जीवन में विशेष महत्व रखता है। प्राण की महत्ता सर्वविदित है और प्राणायाम प्राण नियंत्रण की प्रक्रिया है। अत: प्राणायाम का योग में महत्वपूर्ण स्थान है।

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