प्राकृतिक चिकित्सा का History

भारत में प्राकृतिक चिकित्सा का History-

प्राकृतिक चिकित्सा उतनी ही पुरानी है जितनी की प्रकृति स्वयं है और उनके आधार भूत तत्व Earth, जल, अग्नि, वायु, आकाश। प्रकृति के तत्व जिनसें जीवन की उत्पित्त होती है सदैव वही तत्व रोगों को दूर करने में सहायक रहे। प्राचीन काल से ही तीर्थ स्नान पर घूमना, उपवास रखना, सादा भोजन करना, आश्रमों में रहना, पेड़ पौधों की पूजा करना, Ultra site, अग्नि, तथा जल की पूजा करना आदि कर्म के अंग माने जाते रहे है यदि किसी प्राकृतिक नियमों को तोड़ने में कोर्इ कभी अस्वस्थ हो जाता था तो उपवास, जड़ी-बूटियों तथा अन्य प्राकृतिक साधनों का प्रयोग करके स्वस्थ हो जाता हैै। वेदकाल के वेद तथा अन्य प्राचीन ग्रन्थों में इसके सन्दर्भ मिलते है।
वायु तत्व-

‘‘पद दौ वात ते ग्रेहअमृतस्य निधिर्हित तहोनो देहि जीवसे’’ 

Meansात्! हे वायु तेरे घर जो है वे अपूर्व अमृत का खजाना है उसमें से हमारे दीर्घ जीवन के लिए थोड़ा सा भाग प्रदान करे।

Ultra site तत्व-

‘‘सवितानु: सवितु सर्वातीत सवितोनाराजतां दीर्घमायु’’

Meansात्! वह श्रेष्ठ प्रकाश जो विश्व को प्रकाशित कर रहा है हमें सद्बुद्धि और दीघायु प्रादन करे।Ultra site आत्मा जगतस्वस्थश्च। Meansात् Ultra site संसार के समस्त पदार्थों की आत्मा है।

जल तत्व-

‘‘सन्नो देवीर भस्तमायोशवन्तुपीतयेशं शयोरीशभवन्तु’’।(ऋग्वेद 10/4/4)

Meansात्! हे र्इश्वर दिव्य गुण वाला जल हमारे लिए सुखकारी हो जो हमें अभीष्ट पदार्थ प्राप्त कराये। हमारे पीने के लिए ये सम्पूर्ण रोगों का नाश करे तथा रोग से पैदा होने वाले भय को न पैदा होने दे, हमारे सामने बहे।

Earth तत्व-

‘‘अधतेडीप च भूतनित्यन्नत्व मुच्यते
तैित्त्ारीयक वेदान्ते तस्य भावोऽनुचिन्तयताम्
अध्यते विधिवद् मुक्तमति भोकतरमन्यथा’’।(तैतरीय उपनिशद)

Meansात् भोजन जो खाया जाता है और भोजन खाने वाला जो भी खाता है भोजन का यह महत्व विचारणीय है विचित्र रीति से Reseller गया भोजन खाने वाले द्वारा खाया जाता हैै परन्तु जो गलत विधि से खाया जाता है ऐसा भोजन खाने वाले को खा जाता है First प्रकार का भोजन मनुष्य को आयुश And स्वास्थ्य प्रदान करता है जबकि Second प्रकार के भोजन का विपरीत प्रभाव पड़ता है। वैदिक सभ्यता के बाद पुराण काल में प्राकृतिक चिकित्सा प्रचलित थी King दिलीप ने दुग्ध कल्प, फल जल सेवन (रहना) लाभ प्राप्त Reseller।

आयुर्वेद के According-

वायु तत्व-

दध्यान्ते ध्यायमाननां धातू नाहि यथा मला:।
तर्थोन्द्रयाणि दध्यन्ते दोशा: प्राणस्य निग्रहत।।(ऋग्वेद-10/86/3) 

Meansात्! धातुओं को आग में डालने से जैसे उनके मल Destroy हो जाते है वैसे ही प्राणायाम से मनुष्य के समस्त रोग दूर हो जाते है। वायु हमारे हृदयों में शक्ति पैदा करे। वह सुख देने वाला होकर हमारे पास बहती रहे जब हमारी आयु को दीर्घ करें।

Ultra site तत्व-

‘‘कफीयतोदभवा रोगान वात, रोगास्तथैव च।तत्सवनान्न रोजित्वा जीवेच्च शरदाशतम्।।’’ 

Meansात् Ultra site रश्मियों के दैनिक प्रयोग से मनुष्य कफ पित्त व वायु दोश से उत्पन्न All रोगों से मुक्त होकर सौ वर्ष तक जीवित रह सकता है।

‘‘ददुविस्फोट कुश्टहन कामला शोध नाशक:।
ज्वादि सार शूलना हारको नात्रसंशय:।।’’ 

Meansात् Ultra site रश्मियाँ दाद, कुश्टपूर्ण दाने, कोढ़, जलशोथ, अति उदरशूल जैसे रोगों को Destroy कर देती है इसमें सन्देह नहीं।

जल तत्व-

दीपनं वृश्य दृश्टातायुश्यं स्नानमोजो बल।
प्रदम् कडमलश्रम स्वेदन्द्रोतऽदाह पायुत।
रक्त प्रसादन चापि सवेन्द्रिय विशोधनम्।। 

Meansात् स्नान, ओज, आयु, जीवनी शक्ति को बढ़ाता है। थकावट, पसीना, चर्म रोग, मल और उसकी दुर्गन्ध आलस्य, प्यास, जलन तथा पाप का नाश करता है साथ रक्त को शुद्ध करता है And सम्पूर्ण इन्द्रियों को स्वच्छ व निर्मल कर देता है।

Earth तत्व-

Earth न चाहारसमं किंचिद् भैशज्य मुकलभ्यते।
शक्यतेऽयन्नं मात्रेण नर: कुर्त निरामय:।।
भेशजो नोपन्नोऽसि निराहारो न शक्यते।
तस्याद् भिशग्भिराहारो महा भैशन्यमुच्यते।। 

Meansात्! भोजन से बढ़कर दूसरी दवा नहीं है केवल भोजन सुधार से मनुष्य के सारे रोग दूर हो जाते है दवा कितनी दी जाए पर यदि रोगी के भोजन में उचित सुधार न Reseller जायेगा तो कुछ लाभ नहीं होगा मनुष्य जो खाता है वह भैशज्य नही महा भैशज्य है। पद्यपथ्यं किमौशधया, यदि पथ्यं किमौशधै:। Meansात् यदि रोगी का पथ्य ठीक नहीे है तो औशधीय दिये जाने का कोर्इ Means नहीं और यदि ठीक है तब भी औषधि निरर्थक है। भोजन सुधार से मनुष्य के सारे रोग दूर हो जाते है, दवा कितनी ही दी जाए पर रोगी के भोजन में उचित सुधार नहीं Reseller जायेगा तो कुछ लाभ नहीं होगा। मनुष्य जो खाता है भोजन नहीं महाभैशज है। सदा पथ्यं किमौशधया यदिपथ्यं किमौशधै:। Meansात् यदि रोगी का पथ्य ठीक नहीं है तो औषधि लिए जाने का कोर्इ Means नहीं और यदि पथ्य ठीक है तो भी औषधि निरर्थक है।

पुराण काल-वेदकाल के बाद पुराण काल में प्राकृतिक चिकित्सा का उपयोग रोगों को दूर करने तथा स्वास्थ्य वर्धन के लिये Reseller जाता था। प्रारम्भ में कोर्इ औषधि चिकित्सा नहीं थी लोग लंघन (उपवास) को ही अचूक औषधि मानते थे। इस सम्बन्ध प्रसंग आता है कि King दिलीप दुग्धकल्प And फल सेवन तथा King दशरथ की रानियों ने फल द्वारा संतान लाभ प्राप्त Reseller। उपवास All रोगों से मुक्त होने का सहज उपचार माना जाता है।

त्रेतायुग में रावण के समय जड़ी-बूटी का औषधि के Reseller में प्रयोग होने लगे क्योंकि भोग-विलासी होने के कारण रावण को प्राकृतिक चिकित्सा में कष्ट होता था उसने वैधों का लघंन (उपवास) के बिना चिकित्सा की विधि खोजने का आदेश दिया तभी से औषधि चिकित्सा का आरम्भ हो गया।

महाबग्ग बौद्ध ग्रन्थ-इस ग्रन्थ में वर्णन Reseller गया है कि Single बार भगवान बुद्ध श्रावस्ती नगर से राजगृह जाते हुए कलंद निवास नामक संघ मे रूके थे। वहाँ Single बौद्ध भुक्षु को सांप ने काट लिया उसकी सूचना भगवान बुद्ध को मिली उन्होंने सलाह दी कि विष नाश करने के लिए चिकनी मिट्टी, गोबर, गौमूत्र और राख का उपयोग Reseller जाए इस प्रकार Reseller जाय इस प्रकार के प्रसंग से ज्ञात होता है कि भगवान बुद्ध ने अपने शिष्यों को प्राकृतिक चिकित्सा से सही करते, करवाते थे।

सिन्धुघाटी की सभ्यता- इस काल में भी प्राकुतिक चिकित्सा का उपयोग होता था। मोहन जोदड़ो में पाये गये पुराने स्नानगार जिस में गरम, ठण्डा दोनों ही प्रकार के स्नान का प्रबन्ध था। इससे यह स्पष्ट होता है कि 350 र्इ0 पूर्व जल चिकित्सा महत्वपूर्ण स्थान रखती थी।

मिस्र यूनानी व यहूदी जातियाँ- जल से चिकित्सा होती थी। 2000 वर्ष यूनान Single व्यक्ति बुकरात ने जल और Ultra site चिकित्सा द्वारा लोगों का ज्वर, रक्तविकार, चर्मरोग आदि को ठीक करने के लिए प्रसिद्ध थे।रोम में 800 वर्ष पूर्व Ultra site चिकित्सा होती थी ।

आधुनिक प्राकुतिक चिकित्सा का जन्म And विकास- 

र्इसा के जन्म के 400 वर्ष पूर्व ग्रीस के हिप्पोक्रेटीज प्राकृतिक चिकित्सा के जनक कहे जाते है। उनके समय तक दौ सौ पैसठ औषधियों का अविष्कार हो चुका था ये उनकी लिखी पुस्तकों से ज्ञान होता है लेकिन ये औषधियाँ मुख्यत: कुछ नये रोगों में ही प्रयोग की जाती थी। यदपि हिप्पोक्रेटीज इन औषधियों में विश्वास रखता था , उनकी धारणा थी कि प्रकृति में रोग निवारण शक्ति है। तथा नये-नये रोग स्वयं ही शरीर में Single प्रकृति तरीके से उभार लाकर शरीर के भागों में से Single अधिक के द्वारा विकारों के बाहर कर देते है। उनका कहना था कि चिकित्सक का कर्त्त्ाव्य है कि वह रोगी में आये बदलाव का अनुमान First से कर ले जिससे वह उन प्राकृतिक तरीको को सहज सफल होने में सहायता दे तथा रोगी चिकित्सक की मदद से रोग निवारण कर सके।

हिप्पोक्रेटीज को जल चिकित्सा का पूरा-पूरा ज्ञान था उन्होंने शीतल तथा उष्ण दोनों प्रकार के जल का उपयोग अल्सर, ज्वर और अन्य रोगों में Reseller। उन्होंने कहा कि शीतल जल का स्नान लघु कालीन होना चाहिए उसके तुरन्त बाद या घर्षण स्नान करना चाहिए। लघुकालीन शीतल स्नान से शरीर गरम रहता है इसके विपरीत उष्ण जल से स्नान से इसके विपरीत प्रभाव पड़ता है। यूनान के स्पार्टन नामक जाति में शीतल जल से स्नान करने का कानून बना था वहाँ बड़े-बड़े स्नानगार में शीतल और उष्ण वायु स्नान की व्यवस्था की। फादर नीप ने प्राकृतिक चिकित्सा का उपयोग बड़े उत्साह से Reseller और जड़ी बूटी व जल के प्रयोग सम्बन्धी बहुमूल्य अविष्कार किये। मध्यकाल में अरा के चिकित्सकों ने जल चिकित्सा को महत्व दिया।

रेजेज ने ज्वर के ताप को कम करने के लिए बरफीला जल थोड़ा पानी की सलाह दी।

एवी सेना कब्ज निवारण हेतु शीलत जल का स्नान तथा मिट्टी को लाभकारी बताया।

कुलेन चिकित्सक के Reseller में जल के सन्दर्भ में कुछ व्यवस्थिति अवलोकन प्रस्तुत किये। उन्होंने ज्वर के उपचार के लिए जल के सम्बन्ध में कहा कि जब प्रतिक्रिया की दिशा को कम करने के लिए जल का उपयोग Reseller जाता है तो उसका प्रभाव शान्तिदायक होता है लेकिन जब हृदय और धमनियों के कार्यों को बढ़ाने के लिए तथा सबल देने के लिए जल का उपयोंग Reseller जाता है तो वह टॉनिक का कार्य करता है। जल रोग निवारण और स्वास्थ्य संवर्धन के लिए उपयुक्त माना जाता है।

प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति भारत की प्राचीनतम चिकित्सा पद्धति है किन्तु बीच में इस चिकित्सा प्रणाली के संसार से लोप हो जाने के बाद उसके पुर्नरूथान का श्रेय पाश्चात्य देशों को दी है इस सत्य को नकारा नहीं जा सकता। प्राकृतिक चिकित्सा के पुनरूथान में मदद देने वाले अनेक प्राकृतिक चिकित्सक थे और ये लोग वह थे जो औषधियों द्वारा रोगों का उपचार करते-करते अपनी आयु के Single बड़े भाग को समाप्त कर देने पर भी शान्ति नहीं पा सके। उनके स्वयं के प्राण प्राकृतिक चिकित्सा द्वारा बचे थे। इस सम्बन्ध में निम्नवत जानकारी है।

पाश्चात्य देशों में प्राकृतिक चिकित्सा का History-

डाक्टर फ्लायर इग्लैण्ड के लिचफील्ड निवासी थे। लिचफील्ड के Single स्त्रोत के पानी में कुछ किसानों को नहाते देखकर स्वास्थ्य लाभ प्राप्त देखा और इस सम्बन्ध में उन्होंने खोज की और जल चिकित्सा आरम्भ की।
सन् 1667 में सर जान फ्लोयर ‘‘हिस्ट्री आफ कोल्ड बायिंग’’ नामक पुस्तक लिखी जिसमें इन्होंने शीतल जल के महत्व स्नान पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने कहाँ कि शीतल जल के स्नान देने से First रोगी को पसीना अवश्य आना चाहिए। इसके लिए रोगी को Single गीला चादर लपेट कर कम्बल से ढक देना चाहिए। इसके बाद पसीना आ जायेगा, तब स्नान कराना चाहिए। उन्होंने इग्लैण्ड के लिचफील्ड में वाटर क्योर केन्द्र बनाया इसमें दो कमरे हुआ करते थे। Single कमरे में रोगी को उष्ण स्नान तथा शुष्क लपेट पसीना लाने के लिए दी जाती थी। Second कमरे में शीतल जल की स्नान करवाया जाता था। दोनों कमरे Single Second से बिल्कुल आस-पास थे।

आधुनिक प्राकृतिक चिकित्सा के प्रणेता विनसेन्ज प्रेविनज माने जाते है। जो कि फादर ऑफ वाटर थरैपी माने जाते है। इनका जन्म जर्मनी के सिलेसियन पहाड़ की तलहटी मे Single गाँव में 1752 में Single गरीब परिवार में हुआ था। बड़े होने पर चरवाहे का काम करते हुए Single लगड़ी हिरनी को बुरी तरह घायल देखा वह हिरनी झरने के नीचे आधे घण्टे पानी में खड़े होने के बाद पानी से निकलकर जिधर से आयी थी उधर ही चली गयी। Second दिन भी वह हिरनी करीब उसी समय आयी और इस बार आधे घण्टे से अधिक समय तक पानी में रहने के पश्चात पुन: चली गयी। प्रिस्निज ने देखा कि तीन सप्ताह तक हिरनी इसी प्रकार आती रही। उन्होंने लगड़ी हिरनी झरने में नहाने से उसकी चोट को ठीक होता हुआ देखकर आश्चर्य चकित हुए।

प्रिस्निज जी सोलह वर्ष के थे जब Single दिन जंगल से लकड़ी काटकर लौटते समय बर्फ गिरने लगी। वह आधी तूफान में फसकर चार पसलियां टूट गयी। उन्होंने अपनी चिकित्सा हिरनी की तरह जल से की। इन्होंने गीली पट्टी बाधकर ठीक Reseller। सूती कपड़े की गद्दी पानी में भिगोकर अपने अंग पर रखने लगे और गद्दी सूख जाती तो फिर से उसे पानी में भिगोकर रख लेते। इस तरह कुछ समय के पश्चात वह बिल्कुल स्वस्थ हो गये।

इनका जल चिकित्सा पर गहन विश्वास हो गया। इन्होंने 1829 में जल चिकित्सा प्रणाली की स्थापना की। जिससे इनके पास दूर-दूर से रोगी आने लगे। प्रिस्निज की चिकित्सा में विशेष जल के व्यवहार और सादा भोजन था। इनका आधारभूत सिद्धान्त पसीना निकाल कर ठण्डे जल का प्रयोग था। इसके बाद रोगी की प्रतिरोधक क्षमता शक्ति को भी बढ़ाने में सहायता करने लगा। प्रिस्निज के बाद जोहान्स स्क्राथ ने शोध से कार्य को आगे बढ़ाया।

जोहान्स स्क्राथ- प्रिस्निज के काल है इन्होंने Single साधु के उत्साहित करने पर अपनी चोट को जल चिकित्सा से सही Reseller था बाद में जानवरों पर सिद्धस्य हो जाने पर मनुष्यों पर जल चिकित्सा का प्रयोग Reseller। इनकी ख्याति बढ़ने पर ऎलोपैथिक चिकित्सा में विश्वास रखने वाले लोगों ने शडयंत्र करके इन्हें जेल भिजवा दिया। जेल से बाहर आकर 1849 में जब Single घायल सिपाही को कुछ ही दिनों में ठीक कर दिया तो इनका यश बढ़ने लगा। इनकी चिकित्सा प्रणाली को ‘‘स्क्राथ चिकित्सा’’ कहते है। इमेन्युल स्क्राथ यह जोहान्स के पुत्र थे इन्होंने प्राकृतिक चिकित्सा के द्वारा अनेक रोगियों का उपचार Reseller।

फादर सेबस्टिन नीप जो देवरिया के रहने वाले थे इन्होंने प्राकृतिक चिकित्सा का बहुत प्रचार Reseller तथा जल का सफल प्रयोग Reseller। इन्होंने Single स्वास्थ्य ग्रह 45 वर्ष तक चलाया अनेकों संस्थायें जर्मनी में इस चिकित्सा प्रणाली से चल रही है। जल चिकित्सा पर पुस्तक भी लिखी है।

अर्नाल्ड रिचली Single व्यापारी थे। इन्होंने जब प्राकृतिक चिकित्सा के गुणों को देखा और सुना तो उससे प्रभावित होकर इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया और वायु चिकित्सा, जल चिकित्सा पर कार्य Reseller।

क्राफोर्ड ने भी 1781 में शीतल जल के शरीर पर प्रभाव का अध्ययन Reseller तथा उपचार हेतु उपयोग भी Reseller।
डॉ0 हैलरी बेन्जामिल प्राकृतिक चिकित्सा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योग दिया। उनके द्वारा रचित पुस्तक इवरी बडी गाइड टू नेचर क्योर Single प्रसिद्ध पुस्तक है।

डॉ0 मेकफेडन ने प्राकृतिक चिकित्सा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने ‘‘फास्टिंग फार हेल्थ’’ तथा ‘‘मेकफेडन इन्साइक्लोपीडिया फार फिजिकल क्योर’’ जैसी अनेकों पुस्तक लिखी। डॉ0 लाकेट ने अपने अनुभव पर भाप स्नान द्वारा पसीना निकालने की नयी विधि अपनायी गयी।
एडोल्फ जूस्ट इन्होंने प्राकृतिक चिकित्सा की सुप्रसिद्ध पुस्तक ‘‘रीटर्न टू नेचर’’ लिखी। इन्होंने बताया कि मिट्टी के प्रयोग द्वारा समस्त रोगों को दूर Reseller जा सकता है। इन्होंने अपने आप मालिश करने की क्रिया को भी जन्म दिया।

रावर्ड हावर्ड यह प्राकृतिक आहार के अच्छे ज्ञाता माने जाते है।

सेलमन आपके प्राकृतिक चिकित्सा के प्रचार में महत्वपूर्ण योगदान दिया इनकी लिखी पुस्तक स्वास्थ्य और दीर्घायु आज भी लोकप्रिय है।

डॉ0 केलाग ने रेशनल हाइड्रोथेरेपी पुस्तक लिखी और प्राकृतिक चिकित्सा में महत्वपूर्ण योगदान दिया। डॉ0 केलाग ने मालिश, धूप चिकित्सा, आहार चिकित्सा आदि अनेक विषयों पर अनेकानेक पुस्तक लिखी। All चिकित्सा प्रणालियाँ जैसे आहार चिकित्सा, जल चिकित्सा, शल्य चिकित्सा, विघुत चिकित्सा, द्वारा रोगों का उपचार होता है वहाँ यह भी बताया जाता है कि उत्त्ाम स्वास्थ्य तथा लम्बी आयु कैसे प्राप्त करें।आज अमेरिका में प्राकृतिक चिकित्सा Single चिकित्सा विज्ञान के Reseller में कर्इ विश्वविद्यालय में पढ़ार्इ जा रही है तथा उनके चिकित्सीय महत्पपूर्ण योगदान दे रहे है। डॉ0 जानबेल द्वारा रचित पुस्तक ‘‘बाथ’’ Single प्रसिद्ध कृति है।
स्टैनली लीफ का सन् 1892 र्इ0 में रूस के Single गाँव में जन्म हुआ। और इनका जीवन दक्षिण अफ्रीका में बीता और जब बड़े हुए तब अमेरिका जाकर मैकफेडन के प्राकृतिक शिक्षालय में भर्ती होकर प्राकृतिक चिकित्सा की शिक्षा प्राप्त की। इग्लैण्ड से निकलने वाली मासिक पत्र ‘‘हेल्थ फार आल’’ के सम्पादक तथा दो प्रसिद्ध पुस्तक भी लिखी। वेनेडिक्ट लुस्ट अमेरिका के Single जाने माने प्राकृतिक चिकित्सक रहे है उन्होंने ‘‘नीप वाटर क्योर’’ नामक Single मासिक पत्रिका निकाली तथा न्यूयार्क में नैच्यूरोपेथी स्कूल आफ कैरोप्रेिक्ट्स की भी स्थापना की।
आस्ट्रिया के फ्रंन प्रान्त के अन्र्तगत टेल्डास- नामक स्थान पर सन् 1848 र्इ0 में धूप और वायु का जो संसार में First अपने ढंग का प्राकृतिक चिकित्सा भवन या बाद में लगभग All प्राकृतिक चिकित्सकों ने इसी आधार पर चिकित्सा ग्रहों का निर्माण कराया। अपने 67 वर्ष की लम्बी आयु का उपयोग Reseller और मरने के समय तक स्वस्थ और स्फूर्तिवान बने रहे। लुर्इ कुने-प्राकृतिक चिकित्सा को विकास And उन्नति के शिखर पर पहुँचाने का श्रेय प्रिस्निज, नीप And कूने तीनों को है। परन्तु कुने के विशेष योगदान की वजह से आज प्राकृतिक चिकित्सा को कुने चिकित्सा प्रणाली के नाम से भी जाना जाता है।

लूर्इ कूने का जन्म जर्मनी के लिपजिंग नगर में Single जुलाहे के घर हुआ था। इनके माता पिता की मृत्यु एलोपैथ चिकित्सकों के उपचार के मध्य हुर्इ 20 वर्ष की अल्पायु में ही इन्हे भी मस्तिष्क And फुस्फुस के भयंकर रोग के साथ-साथ आमाशय का फोड़ा हो गया जो कि किसी भी डाक्टर से ढीक नहीं हुआ जीवन से ऊबकर अंत में सन् 1864 में इन्होंने प्राकृतिक चिकित्सा की शरण ली और बहुत जल्दी स्वास्थ्य प्राप्त Reseller।परिणामत: ये प्राकृतिक चिकित्सा के भक्त बने और निरन्तर अध्ययन मनन के बाद 10 अक्टूबर 1883 र्इ0 में लिपजिंग स्थित प्लास प्लेट्ज स्थान पर Single निज का स्वास्थ्य ग्रह खोल दिया। कुने की जर्मन भाषा में लिखी अनेक पुस्तकों में the science of facial expression vkSj New science of healing जिनका हिन्दी Resellerान्तर सस्ता साहित्य मंडल दिल्ली And आरोग्य मंदिर गोरखपुर ने क्रमश: आकृति से रोगी की पहचान And रोगों की नर्इ चिकित्सा नाम से Reseller है ये पुस्तकें विश्व प्रसिद्ध है। फ्रेच, ग्रीक, इंग्लिश आदि कर्इ भाषा में इन पुस्तकों के अनुवाद हो चुके है तथा अन्य भाषाओं में हो रहे है।कुने प्राकृतिक चिकित्सा सिद्धान्तों में रोगों का कारण Single ही है, शरीर में विजातीय द्रव्य का इक्कठा होना मुख्य कारण है इनके उपचार के तरीकों में Ultra site चिकित्सा, भाप स्नान, कटिस्नान प्रमुख है।

Schweninger ऐलोपैथिक डाक्टर ने बाद में प्राकृतिक चिकित्सा बने। इन्होंने The Doctor नामक Single सुप्रसिद्ध पुस्तक लिखकर वर्तमान में प्रचलित जहरीली तथा प्राण घातक औषधियों द्वारा चिकित्सा विधि की बड़ी कटु आलोचना की।

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