ज्ञानयोग क्या है ?

यदि हम इस तथ्य पर विचार करें कि यह ज्ञानयोग वस्तुत: है क्या? तो हम कह सकते हैं कि यह ध्यानात्मक सफलता की Single ऐसी प्रक्रिया है, जो हमे अपनी आन्तरिक प्रकृति के अत्यधिक पास लाकर हमारी आत्मिक ऊर्जा का हमें भान कराती है Meansात स्वयं में छिपी हुर्इ अनंत संभावनाओं का साक्षात्कार कर ब्रह्मा में लीन होना ही ‘ज्ञानयोग’ है। इसे परिभाषित करते हुये कहा गया है-

 ‘‘ज्ञानयोग गहन आत्मान्वेषण के भाव से निर्देशित Single ध्यान योग है।’’

 (परमहंस निरघनानंद, योग दर्शन, 1994, पे0 73) 

ज्ञानयोग की साधना 

ज्ञानयोग की साधना के किन साधनों And गुणों की Need होती है, उन्हें दो भागों में वगÊकृत Reseller गया है ।

  1. बहिरंग साधना 
  2. अन्तरंग साधना 

अब आइये, यह जाने कि ये बहिरंग और अन्तरंग साधन क्या है ?

बहिरंग साधना – 

जब साधक ज्ञानयोग के मार्ग अग्रसर होता है तो प्रारंभ में उसे कुछ नियमों का पालन करना आवश्यक होता है, उन्हीं नियमों की बातों को ‘बहिरंग साधन’ कहते है। इन बहिरंग साधनों को संख्या में चार होने की वजह से ‘‘साधन चतुश्टय ‘‘ भी कहा जाता है, इन साधनों का विवेचन निम्नानुसार है –

  • विवेक – प्रिय पाठकों, विवेक का आशय है अच्छे-बुरे, सही-गलत, नित्य-अनित्य का यथार्थ बोध Meansात ज्ञानयोग के According नित्य वस्तु को नित्य ओर अनित्य वस्तु को अनित्य मानना ही ‘‘नित्यानित्यवस्तु विवेक’’ है। इसके According Only ब्रº्रा ही सत्य And नित्य है तथा इसके अलावा अन्यन All वस्तुए मिथ्या And अनित्य है। जैसा कि कहा गया है- 

‘‘नित्य्वस्वेंक ब्रह्मा तद्व्यनिरिक्तं सर्वमनित्यत्यम। 

 अयमेव नित्यानित्य वस्तुविवेक’’ (तथ्य बोध) 

रामानुजाचार्य के According ज्ञानयोग के साधक को इस बात पर भी विचार करना चाहिए कि वह क्या न खायें और क्या न खायें क्यों कि अन्न का प्रभाव हमारे मन पर भी पड़ता है। साधक को राजसिक And तामसिक भोजन को त्याग कर Seven्विक भोजन ग्रहण करना चाहिए।

  • वैराग्य- बहिरंग साधनों में दूसरा प्रमुख साधन है वैराग्य। वैराग्यं का आशय है कि इहलौकिक And पारलौकिक All प्रकार के भाग, ऐÜवर्य And स्वगÊय सुखों की मिथ्या And अनित्य मानकर उनके भोगने की इच्छा का पूरी तरह परित्याग कर देना। वैराग्य के बिना साधक अपनी साधना में प्रगति नहीं कर सकता। भगवद्गीता And महर्षि पतंजलि के योगसूत्र में भी वैराग्य की महिमा को स्वीकार Reseller गया है। 
  • षट्सम्पति – ज्ञानयोग के साधक को छ: बातों का पालन करना आवश्यक होता है। ये छ: बातें अथवा गुण या नियम Single प्रकार से ज्ञानयोगी की सम्पत्ति होते हैं। अत: इन्हें ‘‘षट्सम्पति’’ कहा जाता है। ये निम्न हैं – 
    • शम-’शम’ Wordं का Means है शमन Meansात् शान्त करना। अब प्रश्न यह उठता है कि यहॉं पर किस चीज का शमन करना है तो इसका उत्तर है कि अन्तर इन्द्रिय ‘मन’ का निग्रह करना मन का संयम करना साधक के लिए Single अत्यधिक महत्वपूर्ण उपलब्धि है। इस मन को कैसे साधा जा सकता है, इस विषय में गीता में कहा गया है – 

     ‘‘असंशयं महाबाहो, मनोदुर्निग्रहं चलम। 

     अभ्यासेन तु कैन्तेयवैराग्येनि च गृहचते।।’’ 

    Meansात् ‘‘हे महाबाहो अर्जुन, निश्च्य ही मन बड़ा चंचल है। किन्तु अभ्यास And वैराग्य के द्वारा इसे वष में Reseller जा सकता है। इसमें कुछ भी सन्देह नहीं है।’’ इस प्रकार स्पष्ट है कि मन के निग्रह का नाम ही ‘शम’ है। 

    • दम- ‘दम’ का शाब्दिक Means है दमन करना Meansात चक्षु इत्यादि इन्द्रियों को बाह्य विषयों से हटाकर चित्त को आत्मा में स्थिर करना ही दम है। 
    • उपरति- कर्मफलों का परित्याग करते हुए आसक्ति रहित होकर कर्म करना तथा उन्हें र्इश्वर को समर्पित करना ही उपरति है। 
    • तितिक्षा – साधना के मार्ग में आने वाले All प्रकार के कष्टों को बिना किसी प्रतिक्रिया के प्रसन्ता पूर्वक सहन करते हुए अपने लक्ष्य की प्राप्ति होती निरन्तर साधना करने का नाम ही तितिक्षा है। 
    • क्षद्धा- गुरू वाक्य And शास्त्र वाक्य (वेद-वेदान्त इत्यादि के वाक्य) में अटूट निष्ठा And विश्वास का नाम ही क्षद्धा है। 
    • समाधान- चित्त को सर्वदा ब्रह्मा में स्थिर And Singleाग्र करने का नाम ही समाधान है न कि चित्तं की इच्छापूर्ति का नाम समाधान है। 
  • मुमुक्षुत्व- दुख Resellerी संसार सागर को पार करके मोक्ष Reseller अमृत को प्राप्त करने की साधक की जो तीव्र अभीलाशा (इच्छा ) होती है, उसे ही ‘मुमुक्षुत्व’ कहा जाता है। प्रिय पाठकों, इस प्रकार आपने जाना कि किस प्रकार साधक में विवेक से वैराग्य और वैराग्य से मोक्ष की इच्छा प्रबल होने लगती है। आपने जाना होगा कि ज्ञानयोग की साधना के बहिरंग साधन कौन-कौन से है। अब हम Discussion करते हैं, अन्तरंग साधनों के विषय में। 

अन्तरंग साधना- 

बहिरंग साधनों के समान अन्तरंग साधनों की संख्याय भी चार ही है, जो निम्न है- 

  1. श्रवण- शास्त्रों में आत्मा-ब्रह्मा के बारे में भिन्न-भिन्न प्रकार से वर्णन होने के कारण हो सकता है कि साधक को अनेक प्रकार के संशय उत्पन्न हो जाये कि ठीक या यथार्थ क्या है ये मार्ग अथवा कथन सत्य है या दूसरा। अत: इस संशय को दूर करने हेतु Single उपाय बताया गया, जिसका नाम है श्रवण। श्रवण का Means है संशय को दूर करने के लिए साधक का First गुरू के मुख से ब्रह्मा के विषय में सुनना। 
  2. मनन – श्रवण के बाद दूसरा अन्तरंग साधन है ‘मनन’। मनन का Means है र्इश्वर के विषय में गुरूमुख से जो कुछ सुना है, उसको अपने अन्त:करण में स्थापित कर लेना। सम्यक प्रकार से बिठा लेना। 
  3. निदिध्यासन- निदिध्यासन का आशय है अनुभव करना अथवा बोध होना या आत्म साक्षात्कार करना। देह से लेकर बुद्धि तक जितने भी जड़ पदार्थ है, उनमें पृथकत्व की भावना को हटाकर All में Only ब्रह्मा को ही अनुभव करना निदिध्यासन है। निदिध्यासन के 15 अंग माने गये है। जो निम्न है- 1. यम 2.नियम 3. त्याग 4.मौन 5.देश 6.काल 7.आसन 8.मूलबन्ध 9. देहस्थिति 10.–कस्थिति 11. प्राणायाम 12.प्रत्यााहार 13.धारणा 14. ध्यान 15. समाधि
  4. समाधि- ध्याता, ध्येय And ध्यान का भेद मिटकर Only ध्येय की प्रतीति होना तथा आत्म स्वReseller में प्रतिष्ठित होने का नाम ही समाधि है। 

उपर्युक्त विवेचन से आपने जान ही लिया होगा कि ज्ञानयोग की साधना Single अत्यन्त महत्वपूर्ण उच्चकोटि की साधना है। जिसमें अज्ञान की निवृत्ति तथा ज्ञान के माध्यम से परमात्मा का साक्षात्कार Reseller जाता है। Only ब्रह्मा ही सत्य है, शेष अन्य All असत्य And मिथ्या है यही ज्ञानयोग की आधारभूत अवधारणा है।

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