जर्मनी का Singleीकरण

फ्रासं की क्रांति द्वारा उत्पन्न नवीन विचारों से जर्मनी प्रभावित हुआ था। नेपोलियन ने अपनी विजयों द्वारा विभिन्न जर्मन-राज्यों को राइर्न -संघ के अंतर्गत संगठित Reseller, जिससे जर्मन-राज्यों को Single साथ रहने का एहसास हुआ। इससे जर्मनी में Singleता की भावना का प्रसार हुआ। यही कारण था कि जर्मन-राज्यों ने वियना-कांगे्रस के समक्ष उन्हें Single सूत्र में संगठित करने की पेशकश की, पर उस पर कोई ध्यान नहीं दिया गया।

वियना कांग्रेस द्वारा जमर्न -राज्यों की जो नवीन व्यवस्था की गयी, उसके According उन्हें शिथिल संघ के Reseller में संगठित Reseller गया और उसका अध्यक्ष ऑस्ट्रिया को बनाया गया। राजवंशो के हितों को ध्यान में रखते हुए विविध जर्मन राज्यों का पुनरूद्धार Reseller गया। इन राज्यों के लिए Single संघीय सभा का गठन Reseller गया, जिसका अधिवेशन फ्रेंकफर्ट में होता था। इसके सदस्य जनता द्वारा निर्वाचित न होकर विभिन्न राज्यों के Kingओं द्वारा मनोनीत किए जाते थे। ये King नवीन विचारों के विरोधी थे और राष्ट्रीय Singleता की बात को नापसंद करते थे किन्तु जमर्न राज्यों की जनता में राष्ट्रीयता और स्वतंत्रता की भावना विद्यमान थी। यह नवीन व्यवस्था इस प्रकार थी कि वहाँ आस्ट्रिया का वर्चस्व विद्यमान था। इस जर्मन क्षेत्र में लगभग 39 राज्य थे जिनका Single संघ बनाया गया था।

जर्मनी के विभिन्न राज्यों में चुंगीकर के अलग-अलग नियम थे, जिनसे वहां के व्यापारिक विकास में बड़ी अड़चने आती थीं। इस बाधा को दूर करने के लिए जर्मन राज्यों ने मिलकर चुङ्गी संघ का निर्माण Reseller। यह Single प्रकार का व्यापारिक संघ था, जिसका अधिवेशन प्रतिवर्ष होता था। इस संघ का निर्णय सर्वसम्मत होता था। अब सारे जर्मन राज्यों में Single ही प्रकार का सीमा शुल्क लागू कर दिया गया। इस व्यवस्था से जर्मनी के व्यापार का विकास हुआ, साथ ही इसने वहाँ Singleता की भावना का सूत्रपात भी Reseller। इस प्रकार इस आर्थिक Singleीकरण से राजनीतिक Singleता की भावना को गति प्राप्त हुई। वास्तव में, जर्मन राज्यों के Singleीकरण की दिशा में यह पहला महत्वपपूर्णा कदम था।

फ्रांस की क्रान्तियों का प्रभाव

जर्मनी की जनता में राष्ट्रीय भावना कार्य कर रही थी। देश के अंदर अनेक गुप्त समितियाँ निर्मित हुई थीं। ये समितियाँ नवीन विचारों का प्रसार कर रही थीं। यही कारण था कि 1830 ई. और 1848 ई. में फ्रासं में होने वाली क्रांतियों का प्रभाव वहाँ भी पड़ा और वहाँ की जनता ने भी विद्राहे कर दिया। यद्यपि ये क्रांतियाँ सफल न हुइर् तथापि इससे देश की जनता में राजनीतिक चते ना का आविर्भाव हुआ।

1860 ई. में जब इटली की राष्ट्रीय Singleता का कार्य काफी कुछ पूरा हो गया तब जमर्न जनता में भी आशा का संचार हुआ और वह भी Singleीकरण की दिशा में गतिशील हुई। इटली के Singleीकरण का कार्य पीडमाण्ट के King के नेतृत्व में हो रहा था। इसी तरह जर्मन देशभक्तों ने प्रशा के नेतृत्व में जर्मनी के Singleीकरण के कार्य को संपन्न करने का निशचय Reseller। इस समय प्रशा का King विलियम First तथा चांसलर बिस्मार्क था किन्तु इन जर्मन देशभक्तों के समक्ष दो प्रमुख समस्यायें थीं-

  1. आस्ट्रिया के प्रभुत्व से छुटकारा पाना। 
  2. जर्मन-राज्यों को प्रशा के नेतृत्व में संगठित करना।

बिस्मार्क का उदय

ऑटो एडवर्ड लियोपोल्ड बिस्मार्क का जन्म 1815 ई. में ब्रेडनबगर् के Single कुलीन परिवार में हुआ था। बिस्मार्क की शिक्षा बर्लिन में हुई थी। 1847 ई. में ही वह प्रशा की प्रतिनिधि-सभा का सदस्य चनु ा गया। वह जर्मन राज्यों की संसद में प्रशा का प्रतिनिधित्व करता था। वह नवीन विचारों का प्रबल विरोधी था। 1859 ई. में वह रूस में जर्मनी के राजदूत के Reseller में नियुक्त हुआ। 1862 ई. में वह पेिरस का राजदूत बनाकर भेजा गया। इन पदों पर रहकर वह अनेक लोगों के संपर्क में आया। उसे यूरोप की राजनीतिक स्थिति को भी समझने का अवसर मिला। 1862 ई. में प्रशा के King विलियम First ने उसे देश का चाँसलर (प्रधान मंत्री) नियुक्त Reseller।

बिस्मार्क ‘रक्त और लोहे’ की नीति का समर्थक था। उसकी रुचि लोकतंत्र ओर संसदीय पद्धति में नहीं थी। वह सेना और राजनीति के कार्य में विशेश रुचि रखता था। इन्हीं पर आश्रित हो, वह अपने उद्दशे यों को प्राप्त करना चाहता था। वह प्रशा को सैनिक दृष्टि से मजबूत कर यूरोप की राजनीति में उसके वर्चस्व को कायम करना चाहता था। वह आस्ट्रिया को जर्मन संघ से निकाल बाहर कर प्रशा के नेतृत्व में जर्मनी का Singleीकरण करना चाहता था। वह सभाओं और भाशणों में विशवास नहीं करता था। वह सेना और शस्त्र द्वारा देश की समस्याओं का सुलझाना चाहता था। वह अवैधानिक कार्य करने से भी नहीं हिचकता था।

बिस्मार्क और जर्मनी का Singleीकरण

प्रशा की सैनिक शक्ति में वृद्धि कर तथा कूटनीति का सहारा लेकर उसने जर्मन राज्यों के Singleीकरण के कार्य को पूरा Reseller। इस कार्य को पूरा करने के लिए उसने तीन प्रमुख Fight लड़े। इन All Fightों में सफल होकर उसने जर्मन-राज्यों के Singleीकरण के कार्य को पूरा Reseller। इससे यूरोपीय History का स्वReseller ही बदल गया।

डेनमार्क से Fight (1864 ई.)

First बिस्मार्क ने अपनी शक्ति का प्रहार डेनमार्क के राज्य पर Reseller। जर्मनी और डेनमार्क के बीच दो प्रदेश विद्यमान थे, जिनके नाम शलेसविग और हॉलस्टीन थे। ये दोनों प्रदेश सदियों से डेनमार्क के अधिकार में थे, पर इसके भाग नहीं थे। हॉलस्टीन की जनता जर्मन जाति की थी, जबकि शलेसविग में आधे जर्मन और आधे डेन थे।

19वीं सदी में अन्य देशों की तरह डेनमार्क में भी राष्ट्रीयता की लहर फैली, जिससे प्रभावित होकर डेन देशभक्तों ने देश के Singleीकरण का प्रयत्न Reseller। वे चाहते थे कि उक्त दोनों राज्यों को डेनमार्क में शामिल कर उसकी शक्ति को सुदृढ़ कर लिया जाए। फलस्वReseller 1863 ई. में डेनमार्क के King क्रिश्चियन दशम् ने उक्त प्रदेशों को अपने राज्य में शामिल करने की घोषणा कर दी। उसका यह कायर् 1852 ई. में संपन्न लंदन समझौते के विरूद्ध था, इसीलिए जमर्न राज्यों ने इसका विरोध Reseller। उन्होंने यह मांग की कि इन प्रदेशो को डेनमार्क के अधिकार से मुक्त Reseller जाए। प्रशा ने भी डेनमार्क की इस नीति का विरोध Reseller। बिस्मार्क ने सोचा कि डेनमार्क के खिलाफ Fight करने का यह अनुकूल अवसर है। वह इन प्रदेशों पर प्रशा का अधिकार स्थापित करने का इच्छुक था। इस कार्य को वह अकेले न कर आस्ट्रिया के सहयोग से पूरा करना चाहता था, ताकि प्रशा के खिलाफ कोई विपरीत प्रतिक्रिया न हो। आस्ट्रिया ने भी इस कार्य में प्रशा का सहयोग करना उचित समझा। इसका कारण यह था कि यदि प्रशा इस मामले में अकेले हस्तक्षेप करता तो जर्मनी में ऑस्ट्रिया का प्रभाव कम हो जाता। इसके अतिरिक्त वह 1852 ई. के लंदन समझौते का पूर्ण Reseller से पालन करना चाहता था। इस प्रकार प्रशा और ऑस्ट्रिया दोनों ने सम्मिलित Reseller से डेनमार्क के खिलाफ सैनिक कार्यवाही करने का निशचय Reseller। फलस्वReseller 1864 ई. में उन्होंने डेनमार्क पर आक्रमण कर दिया। डेनमार्क पराजित हो गया और उसने आक्रमणकारियों के साथ Single समझौता Reseller। इसके According उसे शलेसविग और हॉलस्टील के साथ-साथ लायनबुर्ग के अधिकार से भी वंचित होना पड़ा।

गेस्टीन का समझौता

इस समझौते के According शलेसविग और हॉलस्टीन के प्रदेश तो डेनमार्क से ले लिये गए, पर इस लूट के माल के बंटवारे के संबंध में प्रशा और ऑस्ट्रिया में मतभेद हो गया। इस प्रशन को लेकर दोनों के बीच काफी कटुता उत्पन्न हो गयी। ऑस्ट्रिया अपनी आंतरिक स्थिति के कारण Fight करने के पक्ष में नहीं था जबकि प्रशा इस प्रसंग के माध्यम से ऑस्ट्रिया को जर्मन राज्य संघ में कमजोर करना चाहता था। अंतत: दोनों के बीच 14 अगस्त 1865 ई. को गेस्टीन नामक स्थान पर समझौता हो गया, जो ‘गेस्टीन-समझौता’ के नाम से जाना जाता है। यह समझौता इस प्रकार था-

  1.  शलेसविंग प्रशिया को दिया गया। 
  2. हॉलस्टीन पर आस्ट्रिया का अधिकार मान लिया गया। 
  3. लायनवर्ग का प्रदेश प्रशा ने खरीद लिया, जिसका मूल्य ऑस्ट्रिया को दिया गया।

यह समझौता बिस्मार्क की कूटनीतिक विजय थी। वह इसे Single अस्थायी समझौता मानता था, जिसकी अवहेलना कभी भी की जा सकती थी। अत: आगे चलकर इसके खिलाफ प्रतिक्रिया होना स्वाभाविक थी।

ऑस्ट्रो-प्रशियन Fight

वास्तव में बिस्मार्क की इच्छा ऑस्ट्रिया को Fight में Defeat कर उसे जर्मन संघ से बहिश्कृत करना था। इस दिशा में उसने तैयारी करनी आरंभ कर दी थी पर यह कार्य सरल न था, क्योंकि ऑस्ट्रिया यूरोप का Single महत्वपूर्ण राज्य था और उस पर आक्रमण करने से अंतर्राश्ट्रीय संबंधों पर असर पड़ सकता था। अत: ऑस्ट्रिया के खिलाफ सैनिक कार्यवाही करने के पूर्व बिस्मार्क अन्य राज्यों की मंशा जान लेना चाहता था। इस प्रकार Fight के पूर्व उसने कूटनीतिक चाल द्वारा अन्य राज्यों की संभावित प्रतिक्रिया को समझ लेना आवशयक समझा। गे्रटब्रिटेन के इस Fight में हस्तक्षेप करने की संभावना न थी, क्योंकि वह Singleाकीपन की नीति पर चल रहा था। रूस बिस्मार्क का मित्र था। उसने फ्रांस को लालच देकर Fight में तटस्थ रहने का आशवासन प्राप्त कर लिया। नेपोलियन तृतीय ने तटस्थ रहना राष्ट्रीय हित में उचित समझा। उसने यह सोचा कि ऑस्ट्रिया और प्रशा के Fightों से उनकी शक्ति क्षीण होगी और उस स्थिति से फ्रांस को विकास करने का अवसर प्राप्त होगा। 1866 ई. में प्रशा और इटली के बीच संधि हो गयी, जिसके According इटली ने Fight में प्रशा का साथ देने का आशवासन दिया। इसके बदले बिस्मार्क ने Fight में सफल होने के पशचात इटली को वेनेशिया देने का वचन दिया। इस संधि की सूचना पाकर ऑस्ट्रिया बड़ा चिंतित हुआ। अब ऑस्ट्रिया और प्रशा की सैनिक तैयारियाँ तीव्र गति से चलने लगीं। इस प्रकार प्रशा और ऑस्ट्रिया के बीच Fight की स्थिति निर्मित हो गयी। अब Fight के लिए केवल अवसर ढढूंने की Need थी। ॉलेसविग और हॉलस्टीन संबधी समझौते में Fight के कारणों को ढूँढ़ निकालना कोई कठिन कार्य न था। 1866 ई. में प्रशा को यह अवसर प्राप्त हुआ और उसने ऑस्ट्रिया के खिलाफ Fight घोशित कर दिया। इटली प्रशा का साथ दे रहा था। यह Fight सेडोवा के मैदान में दोनो के बीच Seven सप्ताह तक चला, जिसमें ऑस्ट्रिया पराजित हुआ। इस Fight की समाप्ति प्राग की संधि द्वारा हुई, जिसकी शर्तें इस प्रकार थीं-

  1. ऑस्ट्रिया के नेतृत्व में जो जर्मन-संघ बना था, वह समाप्त कर दिया गया।
  2.  शलेसविग और हॉलस्टीन प्रशा को दे दिये गये। 
  3. दक्षिण के जर्मन-राज्यों की स्वतंत्रता को मान लिया गया। 
  4. वेनेशिया का प्रदेश इटली को दे दिया गया। 
  5. ऑस्ट्रिया को Fight का हरजाना देना पड़ा।

जर्मन राजसंघ की स्थापना

इस Fight के फलस्वReseller जमर्न -राज्यों से ऑस्ट्रिया का वर्चस्व समाप्त हो गया। अब वहाँ प्रशा का प्रभाव कायम हो गया। इस Fight के बाद प्रशा को अनेक नवीन प्रदेश मिले, जिसके कारण अब वह यूरोप का शक्तिशाली राज्य माना जाने लगा। अब बिस्मार्क भी यूरोप में Single महत्वपूर्ण व्यक्ति बन गया। प्रशा की इस सफलता ने परोक्ष Reseller से फ्रांस की भावी पराजय का संकेत दिया। इस प्रकार इस Fight से प्रशा को अनेक लाभ हुए।

होनेवर, हेसकेसल, नासो और फ्रेंकफर्ट प्रशा के राज्य में शामिल कर लिये गये। इसके बाद उसने जमर्न -राज्यों को नये सिरे से अपने नेतृत्व में संगठित करने का प्रयास Reseller। किन्तु दक्षिण-राज्यों के विरोध के कारण ऐसा करना संभव नहीं हुआ। ऐसी स्थिति में यह उचित समझा गया कि चार दक्षिण जमर्न राज्यों को छोड़कर (बवेिरया, बटु र्मवर्ग, बादेन और हेसं ) शेश जमर्न -राज्यों का संगठन प्रशा के नेतृत्व में बना लिया जाए। बिस्मार्क ने ऐसा ही Reseller। इस प्रकार उसने उत्तरी जमर्न राज्यों का गठन कर लिया। इसमें 21 जर्मन राज्य शामिल थे। इस नवीन संघ का अध्यक्ष प्रशा को बनाया गया। बिस्मार्क इस संघ का First चाँसलर नियुक्त हुआ। वह वहाँ गठित होने वाली संघीय परिशद का अध्यक्ष भी नियुक्त Reseller गया। इस परिशद में कुल 43 सदस्य थे, जिनमें 17 सदस्य प्रशा के थे। संघ के अध्यक्ष के Reseller में प्रशा के King को अनेक महत्वपूर्ण कार्यों जसै े Fight And संधि को संपादित करने का अधिकार था। दूसरी सभा का नाम लोकसभा था, जिसके सदस्य वयस्क मताधिकार के According जनता द्वारा चुने जाते थे।

इस प्रकार बिस्मार्क जर्मनी के Singleीकरण की दिशा में काफी आगे बढ़ गया। अब उसके लिए केवल अंतिम कार्य करना ही शेश था।

फ्रेंको पर्शियन Fight

जर्मनी के Singleीकरण के लिए बिस्मार्क ने फ्रासं से अंतिम Fight Reseller, क्योंिक उसे पराजित किये बिना दक्षिण के चार जर्मन राज्यों को जर्मन संघ में शामिल करना असंभव था। उधर फ्रासं ऑस्ट्रिया के विरूद्ध प्रशा की विजय से अपने को अपमानित महसूस कर रहा था। उसका विचार था कि दोनों के बीच चलने वाला Fight दीघर्क ालीन होगा किन्तु आशा के विपरीत यह Fight जल्दी समाप्त हो गया, जिसमें प्रशा को सफलता मिली।

फ्रांस के राश्ट्रपति नेपोलियन तृतीय ने अपनी गिरती हुई प्रतिश्ठा को पुन: जीवित करने के लिए फ्रासं की सीमा को राइन-नदी तक विस्तृत करने का विचार Reseller, किन्तु वह इस कार्य में सफल नहीं हो सका। बिस्मार्क अपनी कूटनीतिक चालों द्वारा फ्रांस की हर इच्छा को असफल करता रहा। नेपालियन ने हॉलैण्ड से लक्जेमबर्ग लेना चाहा, पर बिस्मार्क के विरोध के कारण वह संभव न हो सका। इसमें दोनों के बीच कटुता की भावना निर्मित हो गयी। फ्रांस समझता था कि प्रशा के उत्कर्श के कारण उसकी स्थिति नाजुक हो गयी है। उधर प्रशा भी फ्रांस को अपने मार्ग का बाधक मानता था। फलस्वReseller दोनो देशों के अखबार Single Second के खिलाफ जहर उगलने लगे। एसेी स्थिति में दोनो के बीच Fight आवशयक प्रतीत होने लगा।

स्पेन की राजगद्दी का मामला

इसी बीच स्पने में उत्त्ाराधिकार का प्रशन उपस्थित हो गया, जिससे वहां गृहFight प्रारभ हो गया। 1863 ई. में स्पेन की जनता ने विद्रोह करके रानी ईसाबेला द्वितीय को देश से निकाल दिया और उसके स्थान पर प्रशा के सम्राट के रिशतेदार लियोपोल्र्ड को वहाँ का नया King बनाने का विचार Reseller। नेपोलियन इसके तैयार न था, क्योंकि ऐसा होने से स्पेन पर भी प्रशा का प्रभाव स्थापित हो जाता। फ्रांस के विरोध को देखते हुए लियोपोल्ड ने अपनी उम्मीदवारी का परित्याग कर दिया। किन्तु फ्रांस इससे संतुश्ट नहीं हुआ। उसने यह आशवासन चाहा कि भविश्य में भी प्रशा का कोई राजकुमार स्पने का King नहीं होगा। यह नेपोलियन की मनमानी और प्रशा का अपमान था। अत: इस घटना के कारण 15 जुलाई 1870 ई. को फ्रांस ने प्रशा के विरूद्ध Fight की घोशणा कर दी।

यह Fight सीडान के मैदान में लड़ा गया, जिसमें नेपोलियन तृतीय पराजित कर दिया गया। जर्मन सेनाएँ फ्रांस के अंदर तक घुस गयीं। 20 जनवरी 1871 ई. को पेरिस के पतन के पशचात Fight समाप्त हो गया। अतं त: दोनो के बीच Single संधि हुई, जो History में ‘फेकं फर्ट की संधि’ के नाम से विख्यात हुआ। इसकी शर्तें इस प्रकार थीं-

  1. फ्रासं को अल्सास और लॉरेन के प्रदेश प्रशा को सौंपने होगे। 
  2. फ्रासं को Fight का हरजाना 20 करोड़ पाउंड देना होगें । 
  3. हरजाने की अदायगी तक जमर्न सेना फ्रांस में बनी रहेगी। यह संधि फ्रांस के लिए अत्यंत ही अपमानजनक सिद्ध हुई और इसके परिणाम दूरगामी सिद्ध हुए और जिसने दोनों के बीच दुशमनी की जड़ें मजबूत कर दीं।

जर्मन-साम्राज्य का गठन

सीडान के Fight के बाद दक्षिण जर्मनी के चार राज्यों-बवेरिया, बादेन, बुटर्मवर्ग और हेसं को जर्मन संघ में शामिल कर उसे जर्मनी (जर्मन साम्राज्य) Single नया नाम दिया गया। प्रशा का King जर्मनी का भी King घाेि शत Reseller गया। इस प्रकार जमर्नी का Singleीकरण पूर्ण हुआ। 18 जनवरी 1871 ई. में विलियम First का राज्याभिशेक जर्मनी के सम्राट के Reseller में हुआ। इस असंभव से लगने वाले कार्य को पूर्ण करने का श्रेय बिस्मार्क को है।

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