जनसंपर्क क्या है ?

जनसंपर्क का Means है जनता से संपर्क। जनता से यह सम्पर्क क्यों Reseller जाता है, किस उद्देश्य के लिये Reseller जाता है ? इससे क्या लाभ-हानि होती है यह सब जनसंपर्क के अन्र्तगत आता है। जनसंपर्क का Means इतना सरल होते हुए भी इसे परिभाषित करना इतना आसान नहीं है क्योंकि जनसंपर्क अपने आप में Single व्यापक Word है। इस कारण इसे किसी निश्चित And सर्वमान्य परिभाषा की सीमा में बांधा नहीं जा सकता है। अनेक विचारकों और लेखकों ने जन सम्पर्क को अपने-अपने दृष्टिकोण से देखने का प्रयास Reseller है।

  1. रैक्स हारलो (Rex harlow) के According, ‘‘ जनसंपर्क Single विज्ञान है जिसके द्वारा कोर्इ संगठन यथार्थ Reseller में अपने सामाजिक उत्तरदायित्व को पूरा करने तथा कार्य में सफलता के लिए आवश्यक लोक-स्वीकृति और अनुमोदन प्राप्त करने का प्रयत्न करता है।
  2. जे0एल0 मेकेनी (J.L. Macany) की यह मान्यता है कि, ‘‘प्रशासन में जन-सम्पर्क, अधिकारी वर्ग तथा नागरिकों के मध्य पाये जाने वाले प्रधान And गौण सम्बन्धों द्वारा स्थापित प्रभावों And दृष्टिकोणों की पारस्परिक क्रियाओं का मिश्रण है। यह मानते हैं कि ‘‘ जनसंपर्क प्रशासन के उस कार्य का Single भाग है जिसके अन्तर्गत वह इस बात का पता लगाता है कि उसके संगठन तथा कार्यक्रम के बारे में लोग क्या सोचते हैं?’’
  3. जॉन डी. मिलेट (John D. Millett) के According, ‘‘ जनसंपर्क इस बात की जानकारी प्राप्त करता है कि लोग क्या आशा करते है तथा इस बात का स्पष्टीकरण देता है कि प्रशासन उन मांगों को कैसे पूरा कर रहा है?’’ मिलेट (Millett) ने जनसंपर्क के चार प्रमुख तत्वों का History Reseller है –
    1. जनसंपर्क में जनता की इच्छाओं And Needओं के सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त की जाती है।
    2. जनसंपर्क द्वारा जनता को यह सलाह दी जाती है कि उसकी इच्छाएं क्या होनी चाहिए।
    3. जनसंपर्क जनता तथा सरकार के कर्मचारियों के बीच सन्तोषजनक सम्बन्ध स्थापित करता है।
    4. विभिन्न सरकारी अभिकरण क्या कार्य कर रहे हैं इस सम्बन्ध में जनता को सूचित करने का काम भी जनसंपर्क द्वारा Reseller जाता है।

एच.एल. चाइल्ड्स (H.L. Childs) ने जनसंपर्क को परिभाषित करते हुए कहा है कि ‘‘विभिन्न जन-समूहों के मत को प्रभावित करने के लिए Single संगठन जो भी कार्य करता है वह सब जन सम्पर्क है।

कोर्इ उद्योग, यूनियन, कार्पोरेट हाउस, व्यवसाय, सरकार या अन्य संस्था जब अपने ग्राहकों, कर्मचारियों, हिस्सेदारों या जनसाधारण के साथ स्वस्थ या उत्पादक सम्बन्ध स्थापित करने या उन्हे स्थायी बनाने के लिए प्रयत्न करती है, जिनसे वह अपने आप को समाज के अनुकूल बना सके, अथवा अपना उद्देश्य समाज पर व्यक्त कर सके, इसके इन प्रयत्नों को जन-सम्पर्क कहते हैं। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि जनसंपर्क किसी निश्चित लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए जनता और सरकार के मध्य जीवित सम्बन्धों की स्थापना करता है ताकि Single-Second की भावनाओं को समझा जा सके। उपुर्यक्त परिभाषाओं के आधार पर जनसंपर्क के सम्बन्ध में निम्नलिखित बातें स्पष्ट होती हैं :

  1. जनसंपर्क लोक कल्याणकारी राज्य की प्रमुख अनिवार्यता है।
  2. जनसंपर्क जनता की भावनाओं और समस्याओं को समझने का Single साधन है।
  3. जनसंपर्क सरकारी नीतियों और कार्यक्रमों का जनता पर पड़ने वाले प्रभावों, लाभों अथवा हानियों को जानने वाला Single माध्यम है।
  4. जनसंपर्क के द्वारा यह जानने का प्रयास Reseller जाता है कि जनता किसी सरकारी अथवा गैर सरकारी संगठन से क्या-क्या अपेक्षाएं रखती है?
  5. जनसंपर्क के द्वारा यह बताने का प्रयास Reseller जाता है कि कोर्इ संगठन जनसाधारण के लिए क्या-क्या कार्य कर रहा है और वह उनके लिए कितना महत्वपूर्ण है ?
  6. जनसंपर्क Single ऐसा माध्यम है जिसमें कर्इ सरकारी And गैर-सरकारी संगठन तथा जनता Single-Second की भावनाओं के अनुकूल व्यवहार करने के लिए Single-Second को राजी करने का प्रयास करते हैं।

जनसम्पर्क का History 

प्रचार का प्रस्थान बिन्दु व्यक्ति और उसकी Needएं होती है कोर्इ भी प्रचार सफल नहीं होता यदि उसका आधार या मांगें, Needएं या इच्छाएं न हों। प्रचारकर्ता की सफलता इसी में है कि वह जनता को यह विश्वास दिला दे कि वह जो कुछ कहता है लोगों के अपने दिल की आवाज है इसके लिए लोकसम्पर्क कर्मी को सामूहिक मनोविज्ञान पर इतना अधिकार होना चाहिए कि वह जनता के अवचेतन मन में सोर्इ हुर्इ इच्छाओं और आकांक्षाओं को मुखरित कर दे और जनता का विश्वास प्राप्त कर ले। जब से सामाजिक जीवन का सूत्रपात हुआ है किसी न किसी Reseller में लोकसम्पर्क की Need रही है प्राचीनकाल में राजनीतिक तथा धार्मिक सम्बन्ध सीधे And स्पष्ट होते थे, तो भी लोकसम्पर्क या इसी प्रकार की किसी और प्रक्रिया को अनिवार्य माना जाता था और आज का युग तो लोकयुग ही कहलाता है इस युग में लोकसम्पर्क का महत्व स्वत: ही स्पष्ट हो जाता है

आज के युग में लोकसम्पर्क का हमारे जीवन में क्या स्थान है, इसे समझने के लिए यह आवश्यक है कि इसके समारम्भ, विकास और History पर दृष्टिपात Reseller जाए। ज्ञान के किसी भी अन्य क्षेत्र की तरह, लोकसम्पर्क का आज का Reseller History की कर्इ शक्तियों और प्रक्रियाओं के निरन्तर घात-प्रतिघात का परिणाम है कालांतर में इस कला का और भी कर्इ दिशाओं में विकास हो सकता है इसलिए लोक सम्पर्क की बहुमुखी प्रगति के विभिन्न चरणों को किसी देश या काल विशेष से बांधना अनुचित और भ्रांतिजनक होगा। तथापि वस्तु स्थिति को समझने के लिए कुछ ऐतिहासिक उदाहरण और दृष्टांत दिये जा सकते है।

प्राचीन काल में समाज छोटी-छोटी इकार्इयों (परिवारों, कबीलों या वंषों) में बंटा हुआ था। उस जमाने में किसी लम्बी चौड़ी या जटिल शासन व्यवस्था की Need नहीं थी। न ही उन दिनों तक Second से लेनदेन में मुद्रा का प्रयोग होता था, जिस पर आज का सारा आर्थिक ढांचा अवस्थित है इसलिए उस सीमित जनसमुदाय के All सदस्यों का निर्वाह सीधे और सरल आदान-प्रदान से ही हो जाता था। जब Human ने First अपने हृदयोद्गारों को अपने कुटुम्ब पर व्यक्त करने और उसे अपने साथ Agree करने के लिए प्रयत्न किए और किसी भी सिद्धान्त अथवा विचारधारा को समाज द्वारा स्वीकृत कराने के लिए पग उठाए, तभी से लोक सम्पर्क का श्रीगणेश भी हो गया, भले ही इस नाम का आविष्कार तब न हुआ हो। आज का राजनीतिक और सामाजिक जीवन समस्याओं और उलझनों से अटका पड़ा है इनको सुलझाने के लिए और जीवन का अबोध विकास सुनिश्चित करने के लिए सैद्धान्तिक And व्यावहारिक दृष्टिकोण से लोकसम्पर्क Single अभाव की पूर्ति करता है जैसे मतदान लोकतन्त्र का अनिवार्य अंग माना जाता है, उसी प्रकार लोकसम्पर्क भी लोकतंत्रात्मक राज्य की Single Indispensable जरूरत है लोकसम्पर्क के विकास की कहानी आधुनिक राजनीतिक प्रणाली के History से घनिष्ठ Reseller से सम्बद्ध है पिछले Single सौ साल में अभूतपूर्व जनजागरण हुआ है उस जनजागरण से जहां समाज में जनचेतना आर्इ है वहीं उसमें राजनैतिक चेतना का भी विकास हुआ है जैसे-जैसे समाज में सामाजिक जनचेतना और राजनैतिक जनचेतना बढ़ी, उसी तरह लोकसम्पर्क का कार्य क्षेत्र भी बढ़ता गया है Human समाज में जनम्पर्क की उपयोगिता और उसके महत्व का अध्ययन करने के लिए हमें Human के अतिरिक्त अन्य प्राणियों के जीवन का भी अवलोकन करना होगा क्योंकि मूलत: इन्सान भी तो अन्य जीवों की तरह Single प्राणी ही है विज्ञान तो कहता है कि Human के और अन्य जीवधारियों के बीच अगर कोर्इ अन्तर है तो मात्र यह कि मनुष्य की सोचविचार की शक्ति या बोलने और मनोदशा को अभिव्यक्त करने की क्षमता ने उसे प्रकृति में समस्त प्राणियों में सर्वोपरि स्थान दिया है अन्यथा जीवन के All मूल पेर्र क तत्व-आहार, निंद्रा, मैथुन आदि इन्सान में भी उसी प्रकार विद्यमान है जैसे Second प्राणियों में। यहां तक भी देखा गया है कि जिन गुणों के कारण हम अपने आप को Second जानवरों की अपेक्षा उच्चस्तर के प्राणी मानते है वे गुण न्यूनाधिक Reseller में Humanेतर प्राणियों में भी पाए जाते है। भेद है तो केवल यह कि हम में ये क्षमताएं Second प्राणियों की अपेक्षा अधिक विकसित दशा में पार्इ जाती है लोकसम्पर्क के सिद्धान्तों की स्थापना के लिए पषु पक्षियों में संचार का काम किस तरह चलता है उसे हम बारीकी से देखें तो बहुत से रहस्य खुल जाते है हमने अकसर देखा है कि जब भी कभी कोर्इ खतरा दिखार्इ देता है तो कर्इ पक्षी बहतु शोर मचाना शुरू कर देते है कौओं को ही लीजिए। अगर कोर्इ कौआ कहीं पकड़ा जाए या कंकर या छरें का निशाना बन जाए तो समूह के सारे कौए कॉंव-कॉंव कर के आसमान सिर पर उठा लेते है। वन्य प्राणियों विशेषता: हिरनों, हाथियों, भेडियों और जिराफों आदि के भी परस्पर संचार के अपने-अपने तरीके है। ये जानवर प्राय: अपने अपने झुण्ड बनाकर चलते है और जब किसी शिकारी या पशु का खतरा महसूस करते है तो अपने ‘परिवार’’ या समूह के All सदस्यों को सचेत कर देते है या मुकाबले के लिए तैयार हो जाते है। यह भी देखा गया है कि जिराफ अपने परिवार के Single सदस्य को पहरे पर खडा कर देते है।

इस प्रकार कहै तो संचार Human जाति के अलावा अन्य प्राणियों में भी होता है जो किसी उद्देश्य या लाभ के लिए Reseller जाता है लोकसपर्क का History प्राचीन काल से शुरू हो जाता है इसका Single उदाहरण प्रभु र्इसा मसीह का संदेश भी है आज से लगभग दो हजार वर्श पूर्व फिलीस्तीन में Single साधारण मजदूर बढ़र्इ जोसेफ का बेटा लोगों को ज्ञान-ध्यान और कर्म-धर्म की बातें समझाया करता था। Single दिन उसने देखा कि श्रोताओं की भीड़ काफी है वह Single छोटी सी पहाड़ी पर चढ़ गया और उस पहाड़ी पर से उसने लोगों को उपदेश दिया जिसे लिखने वालों ने ‘‘सर्मन आफ दि माउंट’’ Meansात् ‘‘पहाड़ी पर से उपदेश’’ का नाम दिया। यह उपदेश आज भी अमर है और उसे अमर बनाया है उन कलाकारों ने जिन्होंने विभिन्न कला माध्यमों से उसे जीवित रखा। र्इसा के जीवन और उनके अन्तिम बलिदान को आधार मानकर साहित्य की Creation की गर्इ। धार्मिक आयोजन हुए और कला के All माघ्यम इसके लिए प्रयुक्त हुए। इस तरह लोक सम्पर्क और प्रचार के साधनों के प्रयोग से वह सन्देश अमर बन गया।

पुराने जमाने में अमेरिका, बेबीलोन और सुमेरिया आदि देषों में स्वेच्छाचारी नरेषों का अधिपत्य था, वे अपनी कीर्ति और नाम को दूर-दूर तक फैलाने के लिए काव्य (साहित्य) लिखवाते थे और मूर्तियां बनवाते थे। लोकसम्पर्क से सम्बद्ध सबसे पुरानी खोज र्इराक के पुरातन खण्डहरों से मिलती है आज से 3700 वर्ष पूर्व (1800 र्इ0 पू0 में)र्इराक में किसानों को शिलालेखों द्वारा खेती के बारे में संदेश दिये जाते थे। ठीक उसी तरह जैसे आजकल सरकारें अपनी विज्ञप्तियां प्रकाशित करती और करवाती हैं। King को भगवान का Reseller सिद्ध करने के लिए मिश्र के जितने धर्म-प्रचारक And सिद्ध-पुरुष हुए, वे बाजारों में और पूजास्थानों के सामने घूम फिर कर उपदेश दिया करते थे। प्राचीन यूनान में लोकतन्त्रात्मक व्यवस्था थी। इसलिए उन दिनों वहां विधिवत् प्रोपेगण्डा करने की प्रथा थी। छोटे-छोटे नगरों के अपने-अपने स्वतंत्र राज्य थे। लोकमत की सत्ता प्रत्यक्ष Reseller से मानी जाती थी। डिमास्थनीज उस जमाने (सन् 384-322) का Single प्रसिद्ध नेता था जो अपने भाषणों द्वारा जनता को सजग Reseller करता था। सुकरात (सन् 470 से 399) अपने छात्रों और अनुगामियों में प्रश्नोत्तर द्वारा अपने आदशों का प्रचार करते थे। पुरातन रोम तो इस बात के लिए प्रसिद्ध था कि वहां लोकमत और लोकवाणी अपना प्रबल प्रभाव दिखाती थी। रोम के सम्राट जूलियस सीजर (सन् 100 से 44) ने तो समाचार प्रकाशित करने की प्रारम्भिक परिपाटी ही चलार्इ थी। उसने Single्टा ड्यूरेना प्रकाशित करना आरम्भ Reseller जिसका Means है ‘दैनिक समाचार’। यह Single प्रकार से सरकारी सूचनाओं के पोस्टर होते थे। इसमें सरकार की सूचनाएं तथा अन्य समाचार होते थे और यह सिलसिला चार सौ साल तक चलता रहा था।

इंग्लैंड में तेरहवीं शताब्दी में अधिकारों का घोषणा पत्र मैग्नाकार्टा सन् 1215 में पास हुआ, जिसमें विचारों की स्वतंत्रता का अधिकार स्वीकृत Reseller गया था। मार्टिन लूथर (1483-1546) ने बाइबिल का जर्मन भाषा में अनुवाद प्रकाशित करके रोम के कट्टरपन्थी धर्माचायोर्ं के विरूद्ध व्रिद्रोह की पताका फहरायी। इंग्लैंड में भी इसी प्रकार का आन्दोलन चल चुका था जब जान वार्इल्किफ ने (1330-1384) में बाइबिल का अंग्रेजी में अनुवाद Reseller, जिसे चर्च के अधिकारियों ने निषिद्ध घोषित कर दिया था।

पुनर्जागरण काल में बड़े-बड़े विचारकों ने लोकमत के प्रभाव और अपेक्षित दिशा में जनमत के निर्माण की समस्याओं पर प्रकाश डाला। इटली के विचारक मेक्यावली ने (1469-1526) लोकमत के प्रभाव पर बहुत बल दिया। शेक्सपियर (1564-1616) के नाटकों के माध्यम से भी ऐसे नए विचारों का प्रचार हुआ। लोकमत के प्रभाव और लोकमत निर्माण की Need को इतना महत्वपूर्ण समझा गया कि रोम के पोप ने धर्म-सुधार आन्दोलन का मुकाबला करने के लिए धर्म-सुधार विरोधी अभियान शुरू Reseller। वास्तव में अंग्रेजी Word ‘प्रोपेगण्डा’ का प्रयोग भी तब से शुरू हुआ जब पोप ग्रेगरी पन्द्रहवें (सन्1554-1623) ने रोमन कैथोलिकों की तरफ से प्रोटेस्टेटों के प्रचार के विरूद्ध जवाबी प्रचार चलाया। इसके पष्चात् पोप अर्बन् आठवें ने प्रचारकों के प्रशिक्षण के लिए ‘प्रोपेगण्डा कालिज’ की स्थापना की। फ्रांस की राज्यक्रान्ति (सन् 1789-1799) ने Human History में Single निर्णायक अध्याय जोड़ा। क्रान्तिकारी विचारों के प्रचार और क्रान्तिकारी राजसत्ता की Safty के हेतु जनमत जागृत करने के लिए जो साधन अपनाए गए, समयान्तर में उन्होंने आधुनिक युग की पब्लिसिटी का Reseller धारण Reseller। फ्रांस की राज्यक्रान्ति का अपना ध्वज था-तिरंगा, जिसे दृश्यमान‘‘प्रतीक’’ कहा जा सकता है इसका श्रव्य चिन्ह था ‘‘लॉ मार्सेलाज’’ का क्रान्तिकारी गीत और तीसरा प्रतीक था, ‘‘श्रीमान’’ की जगह ‘‘भार्इ’’ या ‘‘बन्धु’’ अथवा ‘‘नागरिक’’ का लोकप्रिय सम्बोधन। ऐसे प्रतीकों का प्रभाव वहां के समाज में आज भी स्पष्ट देखा जा सकता है सन् 1800 से 1865 तक की अवधि को अमेरिका में लोकसम्पर्क के विस्तार का युग कहा जाता है इस अवधि में बड़ी तीव्रगति से आर्थिक प्रगति हुर्इ। नये-नये उद्योग स्थापित हुए। बड़े-बड़े फार्म बने। यातायात के नये साधन भी विकसित हुए। मषीनी युग बड़ी तेजी से बढ़ रहा था। सन् 1832 में तार द्वारा संदेश भेजने के नये तरीकों का अविश्कार हुआ। सन् 1844 में अखबारी कागज बनने लगा। सन् 1863 में छपार्इ के नए-नए तरीके ढूंढ निकाले गए। अमेरिका की राज व्यवस्था भी लोकमत पर आधारित थी, इसलिए लोकमत को आंदोलित किये बगैर किसी भी सामाजिक And आर्थिक कार्यक्रम को सफल बनाना वहां असंभव था। अत: उन दिनों कर्इ Single नारों को लेकर बहुत से आन्दोलन चले। स्त्रियों के लिए मताधिकार की मांग, मद्य निषेध और श्रमिकों के लिए ट्रेड यूनियन की स्थापना आदि ऐसे विशय थे, जिन पर लोकमत को जागृत करने के लिए प्रोपेगण्डा को वे All उपाय अपनाने आवश्यक थे जो उन दिनों तो प्रारम्भिक अवस्था में थे किन्तु आज हम उन्है भली प्रकार जानते है।

अब्राहम लिंकन दास प्रथा उन्मूलन आन्दोलन के नेता थे। उन्है इस समस्या पर और इसके परिणामस्वReseller राष्ट्रपति पद के चुनाव और गृहFight के मोचोर्ं पर भी अपने विरोधियों के साथ प्रचार Fight लड़ना पड़ा। उनका विश्वास था कि जनता का सक्रिय समर्थन और सहयोग सफलता की पहली कुन्जी है इसलिए उन्होंने गृहFight के आरम्भ के दिनों में कहा: ‘‘हम जिस स्थिति का सामना कर रहे है उसमें हमें जनता को अपने साथ लेकर चलना है जनता का समर्थन लेकर हम सब कुछ प्राप्त कर लेंगे। इसके बिना हम कुछ नहीं कर पायेंगे। हमें याद रखना चाहिए कि इस लड़ार्इ में वही जीतेगा जो जनता को अपने साथ लेकर चलेगा। जिसने लोकमत की परवाह न की और ऊपर-ऊपर से हुक्म चलाया, वह कहीं का नहीं रहेगा।’’ लिंकन ने लोकसम्पर्क में अपनी सूझबूझ का परिचय राष्ट्रपति बनकर व्हार्इट हाऊस में पदार्पण करते ही दिया। उन्होंने जनता से बे रोक-टोक मिलने के लिए सप्ताह में Single दिन निश्चित कर दिया। इससे राष्ट्रपति निवास की चारदीवारों में भी उनका सर्वसाधारण से सम्पर्क बना रहा। जिस कारण वे अमेरिका के Single सफल राष्ट्रपति के Reseller में माने जाते है। बीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ में अमेरिका में बड़ी-बड़ी हड़तालें हुर्इ और मार्क ट्वेन (Mark Twain 1835-1910) जैसे लेखकों ने पूंजीवादी शोशण का घिनौना चित्र अपनी पुस्तकों और उपन्यासों में खींचा। उन्होंने आवाज उठार्इ कि “Public Be Damned” कहने वालों के दिन लद गये है। उनकी मांग थी “Public be Informed” Meansात् ‘‘जनता को जबाब दो।’’

रूस के एजीटेटरों के काम का सिद्धान्त यह है कि जो प्रचार मौखिक Reseller से जनता से घुल-मिल कर Reseller जाता है वह सर्वाधिक प्रभावपूर्ण होता है रेडियो पेस्र और टेलिविजन द्वारा प्रचार सब देषों के के लिए तो सम्भव नहीं क्योंकि इसके लिए बहुत अधिक पूंजी अपेक्षित है Second निजी सम्पर्क से जो बात कही जाती है, उसका प्रभाव तो स्वयं सिद्ध है क्योंकि इसमें वह आत्मीयता, घनिश्ठता और स्निगधता होती है जो रेडियो द्वारा आकाश में आवाज फेंक देने में नहीं उपलब्ध होती यद्यपि रेडियो या प्रेस आदि का अपना अलग महत्व है हमारे देश में सरकारी लोकसम्पर्क विभागों में भी कुछ ऐसे कार्यकर्ता रखे जाते है या अनुबंधित किये जाते है जो रूस के ‘‘एजीटेटरों’’ की तरह जनता में घुलमिल कर प्रचार कार्य करते है। उनके काम करने का ढंग अनौपचारिक होता है ‘नुक्कड’ जलसों में भाषण करने में या सरकारी प्रचार सामग्री वितरित करके ये अपना काम करते है। ये कार्यकर्ता मुख्यत: सरकार की पक्षधर राजनीतिक पार्टियों से भी किसी न किसी तरह जुड़े होते है। इसलिए जनता से सम्पर्क बनाने का इनका तरीका कुछ अलग ही होता है तथापि ये लोग पूर्ण Reseller से सरकारी अनुशासन के अधीन होते है ये कार्यकर्ता लोगों के विचार जानते है और समझते है और समय-समय पर लोगों को सोचने की उचित दिशा भी देते है। अगर कहीं कोर्इ गलत प्रोपेगण्डा चल रहा हो तो उसका खण्डन भी करते है। अनुभव से ये कार्यकर्ता जान जाते है कि जनमत का झुकाव किस ओर है इनको यह निर्देश दिया जाता है कि अपने जिले के लोकसम्पर्क अधिकारी को जनमत के झुकावों या परिवर्तनों की सूचना देते रहै। अत: कहें तो विश्व में जनसंम्पर्क या लोकमत का इस्तेमाल आदिकाल से होता रहा है वर्तमान में यह Single विकसित विधा बन गया है और समाज का अभिन्न अंग बन गया है यही कारण है कि आज प्रत्येक सरकारी, गैरसरकारी संस्थानों, राजनैतिक पार्टियों और उद्योगों में जनसम्पर्क विभाग अवश्य होते है।

    भारत में जनसंपर्क का उद्भव And विकास

    भारत की समस्त परम्पराएं, सामाजिक जीवन में जनसंम्पर्क के महत्व और जनसम्पर्क के निर्माण की कार्यविधियों पर आधारित हैं। वैदिक काल में देवासुर संग्राम में देवताओं द्वारा विजेताओं पर प्रसंगानुसार पुष्प वर्षा, नारद का संवादवाहक के Reseller में तीनों लोकों का भ्रमण और राजसूय यज्ञों की व्यवस्था, ये सब पौराणिक बातें प्रागैतिहासिक काल में लोकमत निर्माण के उपक्रम का ही अंग समझी जाती थीं। अशोक के शिलालेख, राजस्थान का कीर्तिस्तम्भ, अकबर की फतेहपुर सीकरी नगरी, मंदिरों के घंटे घडियाल, मुनादी वाले के ढोल, पंचायतों की घंटी से लेकर राजमहलों में लगी न्याय की जंजीरें तक All का प्रचार व सम्पर्क की दृष्टि से अपना महत्व है।

    1. भारत में प्रारम्भिक जनसम्पर्क- 

    जनसम्पर्क के आरम्भ को जानने के लिए हम History के ज्ञात स्रोतों की तरह किसी निष्चित तारीख को निर्धारित नहीं कर सकते हैं। किन्तु माना जा सकता है कि Human के उद्भव के साथ ही जनसम्पर्क का उद्भव भी हुआ। Human सदैव ही समन्वयी प्रवृत्ति का रहा है। उसकी चेष्टा रही है कि परिवेश के अनुReseller उसके कार्य की सराहना की जाए और विरोध को समाप्त Reseller जाए। इसमें ‘जनमत’ अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। रामचरित मानस में प्रसंग मिलता है कि श्री राम ने Single धोबी के कहने पर सीता को बाल्मीकि के आश्रम में भेज दिया था। प्राचीन काल में King अपना वेश बदल कर जनता के सुख-दुख की जानकारी रखते थे। बड़े-बड़े सम्राटों और वंशो में गुप्तचर, दूत आदि जनता से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष सम्बन्ध बनाए रखते थे।

    प्राचीन काल में पड़ोसी राज्यों से आक्रमण और सत्ता हस्तान्तरण का डर बना ही रहता था। ऐसे में दूर-दूर तक फैले साम्राज्य में सूचना देना व जनता को विपित्त का आभास दिलाना जरूरी था। अत: आवाजाही के प्रमुख मार्ग पर बुर्जियां होती थीं और घुडसवार, पैदल या अन्य सैनिक Single बुर्जी से दूसरी बुर्जी तक समाचार पहुंचाते थे। जनसम्पर्क को अधिक प्रभावी बनाने के लिए King जनता की आशाओं का अनुमान भी लगाते थे। ऐसे King जो समाज के कल्याणकारी गतिविधियों के लिए जागरूक थे। वे अपने महत्वपूर्ण निर्णयों को ‘शिलालेखों’ के Reseller में राज्य के कर्इ भागों में लगवा देते थे। ‘अशोक’ का नाम History में ऐसे जनसम्पर्क करने वाले सम्राट के Reseller में विख्यात है। इसी प्रकार अन्य King भी महत्वपूर्ण धर्मादेशो, Kingज्ञाओं व फरमानों को जनता तक पहुंचते थे। कर्इ Kingओं ने अपने काल की उपलब्धियों के प्रचार हेतु अपने राज्य में प्रवीण लेखकों व कवियों को श्रेष्ठ स्थान प्रदान Reseller था जिससे उनकी उपलब्धियां दूर-दराज तक पहुंचती थीं। मुनादी व फरमान द्वारा Kingज्ञा जनसामान्य तक पहुंच जाती थी। प्राचीन भारत में विभिन्न युगों में ‘धर्म’ ने अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभार्इ है। हर Single King किसी न किसी धर्म का अनुयायी रहा है इसलिए उसकी इच्छा व प्रकृति के अनुReseller जनसम्पर्क का दायित्व ब्राह्मणों, ऋषि-मुनियों या मंत्रियों जैसे वर्ग पर होता था। यही वर्ग समय समय पर King को उचित शिक्षा और मार्गदर्शन भी देता था। चक्रवर्ती सम्राटों ने जनसम्पर्क के ऐसे तरीके अपनाए थे जिससे समान्यजन उन्हें समर्थन दें और छोटे Kingओं व सामंतों का साथ भी उन्हें मिलता रहे। King इसी प्रयोजन हेतु ऐसे दूत रखते थे जो शुद्ध हृदय, चतुर व कुलीन होते थे। वे देशकाल की स्थितियों के पारंगत भी होते थे।

    KingमहाKingओं और गुलामी का युग समाप्त हो जाने के पष्चात गणतन्त्र की घोषणा हुर्इ। प्रजातंत्र में यह माना गया कि इसमें जनता द्वारा चुनी गर्इ सरकार होने के नाते ‘जनसम्पर्क’ का महत्वपूर्ण स्थान है। आज संसार का कोर्इ भी शासनतन्त्र क्यों न हो वह जनसम्पर्क के बिना भलीभांति कार्य नहीं कर सकता है। आज के युग में शासनतंत्र की कठिनाइयों व जटिलता के कारण King व शासित के बीच की दूरी को कम करने के लिए ‘जनसम्पर्क’ पुल का कार्य करता है। प्राचीन भारत की सामाजिक-राजनैतिक व्यवस्था में ‘जन सम्पर्क’ का विशेष महत्व माना जाता था, यद्यपि उस जमाने में इस Word का प्रचलन नहीं था। King और प्रजा के सम्बन्ध, व्यक्ति की समाज के प्रति जिम्मेदारियां, व्यक्ति के व्यक्ति के प्रति कर्त्तव्य, यह All विषय धर्म की परिकल्पना में ही शामिल समझे जाते थे। अत: लोकसम्पर्क भी धर्म का ही Single पहलू माना जाता था। लोकरंजन King का धर्म था। आजकल के जमाने में भी लोकसम्पर्क के सामने मुख्य उद्देष्य लोकरंजन ही माना जाता है।

    प्राचीन भारत में ग्रामीण लोकतंत्रों की व्यवस्था थी। हमारे ग्राम स्वावलम्बी होते थे और सारी राजसत्ता विकेन्द्रित थी। लोग धर्म को सर्वोपरि मानते थे। धर्म से अभिप्राय मत-मतान्तर का संकीर्णतामूलक सम्प्रदायवाद नहीं होता था। धर्म तो Single व्यापक और विशाल दृष्टिकोण का सूचक समझा जाता था, जिसे मूल मानकर समाज में ‘‘बहुजन हिताए और बहुजन सुखाय’’ के आदर्ष से प्रतिबद्ध सारी व्यवस्था चलती थी। प्रजा की क्या आशाएं आरै आकांक्षाएं  है यह जानने के लिए King और King वे सब तरीके अपनाते थे जो प्रकारान्तर में आजकल के लोकसम्पर्क में बरते जाते  है

    कौटिल्य ने Meansशास्त्र में कहा है कि King को चाहिए कि वह प्रतिदिन कम से कम तीन घंटे आम दरबार लगाए और जनता की तकलीफें और शिकायतें सुने। अगर King की प्रजा सुखी नहीं तो King भी चैन की नींद नहीं सो सकता। जनता की सुखसमृद्धि में King अपना पूर्ण योगदान दे। प्रजा के सुख के लिए King को अपनी इच्छाओं की बलि भी देने के लिए तैयार रहना चाहिए। कौटिल्य के पथप्रदर्शन में चन्द्रगुप्त मौर्य ने अपने शासन तंत्र में Single सूचना विभाग भी संगठित Reseller था। सूचना विभाग का Single अनुभाग गुप्तचरों का भी होता था। यह अनुभाग ‘‘खुले’’ यानी सार्वजनिक लोकसम्पर्क की सहायता के लिए गुप्त जानकारी देता था। मौर्यकाल में प्रमुख नागरिकों की Single परिषद भी काम करती थी। इस परिषद का साल में Single बार अधिवेशन होता था। यह परिषद जनता की समस्याओं पर Discussion करती थी और अपने सुझाव सरकार को भेजती थी।

    सम्राट अशोक के शिलालेखों में ऐसे राजकीय कर्मचारियों का History आया है जिन्हें ‘‘प्रतिवेदक’’ कहा जाता था। इनका काम सार्वजनिक हित की बातों पर सूचनाएं Singleत्र करके King की जानकारी के लिए प्रस्तुत करना होता था। ‘प्रतिवेदकों’ को यह सुविधा प्राप्त थी कि वे King के सामने आसानी से पेश हो सकें ताकि जनता की तकलीफें जितनी जल्दी हो सके King तक पहंचु जाएं। अपने Single अन्य शिलालेख में सम्राट अशोक ने यह घोषणा भी की थी कि वह जनता का दु:ख सुख सुनने के लिए हर समय तैयार रहते हैं। बौध धर्म का तो पूरा प्रसार ही लोकसम्पर्क के जरिए हुआ था।

    2. मध्ययुगीन भारत में जनसम्पर्क- 

    हिन्दुस्तान के मुसलमान बादशाहों ओर Kingों ने प्रजा के साथ अपने सम्बन्धों को इस्लाम के सिद्धान्तों और हिन्दू प्रजा के परम्परागत रीतिरिवाजों के According निर्मित Reseller। उनका यह विष्वास था कि उन्हें परमात्मा के सामने इस बात का जवाब देना है कि उन्होंने अपनी प्रजा की सुखसमृद्धि के लिए क्या Reseller। मुसलमान बादशाह विभिन्न विभागों में अधिकारी नियुक्त करते समय इस बात का ध्यान रखते थे कि वे कार्य कुशल, विष्वास पात्र और न्याय प्रिय हों। यह अधिकारी जनता के साथ सम्पर्क रखते थे और King को सूचना देते रहते थे कि लोकमत का झुकाव किस ओर है।

    इन बादशाहों ने स्थानस्थान पर ‘‘वाकया नवीस’’ यानी संवाददाता नियुक्त किए हुए थे। इसी तरह संवाददाताओं की Single श्रेणी ‘‘स्वान्ह नवीस’’ होती थी जो प्रान्तीय या स्थानीय Kingओं या नवाबों की कचहरियों के हालात लिखकर केन्द्रीय सरकार यानी दिल्ली सम्राट को भेजा करते थे। जैसा कि नाम से स्पश्ट है कि, गुप्त रिपोर्ट भेजने के लिए ‘‘खुफिया नवीस’’ भी रखे जाते थे। इन बादशाहों की कार्य प्रणाली का अनुसरण करते हुए हिन्दू Kingओं ने इसी प्रकार की व्यवस्था की जिसमें प्रजा के साथ उन के सम्बन्ध घनिश्ठ और सुदृढ़ हो गए। ‘‘स्वान्ह नवीस’’ हों या ‘‘वाकया नवीस’’ ये All लोगों के बीच में घूमते रहते थे और जनता में अगर कोर्इ आक्रोश या असन्तोष देखते थे तो तुरन्त Kingों को सूचित करते थे। जनसम्पर्क की प्रक्रिया द्विपक्षीय होती है। इसलिए King और King भी अपने आदेश भी जनता तक इन्हीं माध्यमों द्वारा लोगों तक पहुंचाते थे।

    अकबर महान् (1556-1605) के शासनकाल में King और प्रजा के सम्बन्ध बहुत सुमधुर रहे। अकबर का Single दरबारी अबुल फजल लिखता है, ‘‘लोगों के कल्याण के लिए क्या कुछ हो रहा है, King इस बात को पूरी तरह जानता है। जनता को भी सरकारी गतिविधियों की जानकारी दी जाती हैं इस में दोनों पक्षों (King-प्रजा) दोनों का ही लाभ है।’’ अकबर ने वाकया नवीसों की सेवाओं का भी खूब लाभ उठाया।

    3. आधुनिक भारत में जनसम्पर्क-

    वह दिन अभी बहुत पुराने नही हुए जब हमारे देश में पत्रकारिता के बारे में भी यही आपित्त की जाती थी कि पत्रकारिता कोर्इ स्वतंत्र व्यवसाय नहीं। इसका कारण भी था। प्राय: वही लोग इस क्षेत्र में पदार्पण करते थे जिनका मुख्य ध्येय अपने आदशोर्ं के लिए संघर्श करना होता था। इसलिए वे आर्थिक हानि-लाभ की चिंताओं से सर्वथा मुक्त रहते हुये उन आदशोर्ं का प्रचार करते थे। किसी व्यवसाय जीविकोपार्जन का साधन समझकर नहीं। जब तक पत्रकारिता को प्रचार का माध्यम और विशेष आदशोर्ं की प्राप्ति का साधन ही माना जाता रहा, तब तक केवल जीविका कमाने के विचार से पत्रकार बनने वाले इस धन्धे में शामिल नहीं हुए। उन दिनों पत्रकार सार्वजनिक कार्यकर्ता, अध्यापक, कलाकार, साहित्यकार, समाज सुधारक, धर्म प्रचारक आदि कुछ भी हों, व्यावसायिक दृष्टि से पत्रकार नहीं होते थे। पत्रकारिता विषुद्ध Reseller से उनका प्रधान लक्ष्य नहीं होता था और न ही जीवन यापन का साधन। इसलिए इसे स्वतंत्र व्यवसाय का Reseller न मिल सका। आधुनिक भारत में अब स्थिति बदल गर्इ है। पत्रकार अब Single व्यवसाय के अंग हैं। उनका काम है समाचारों का संकलन, सम्पादन और प्रकाशन। समाचारों के संकलन और सम्पादन में वे ‘‘विषुद्ध समाचार-मूल्य’’ (News Value) की खोज करते हं।ै अपने व्यक्तिगत विचारों को इस कायर् से Singleदम अलग रखते है। उनका निजी दृष्टिकोण जो कुछ भी हो, उनसे अपेक्षा की जाती है कि वे समाचार मूल्यों को ही मुख्य समझकर अपना कर्तव्य पूरा करेंगे।

    इसके अतिरिक्त आज का युग इतना प्रतिस्पर्धा प्रधान हो गया है कि समाचार संकलन और सम्पादन पत्रकार का पूरा समय मांगता है। समाचार संकलन के अपने कर्इ क्षेत्र हो गए है जिनमें विशेष ज्ञान और अनुभव की Need होती है। समाचार पत्रों में साहित्यिक, कलाविषयक, राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक आदि विशयों के विशेष स्तम्भ और पृष्ठ होते हैं जिनके लिए संवाददाताओं को विशेष तैयारी करनी पड़ती है। यही समस्याएं लोकसम्पर्क की है। लोकसम्पर्क की साधना भी पूर्णकालिक श्रम से ही सम्भव है। इसीलिए तो लोकसम्पर्क को स्वतंत्र व्यवसाय का गौरव और महत्व प्राप्त हुआ है। Single स्वतंत्र व्यवसाय के Reseller में सार्वजनिक मान्यता प्राप्त करने के लिए लोकसम्पर्क कर्मियों का सर्व First अखिल Indian Customer सम्मेलन 1968 में दिल्ली में हुआ था। इसलिए कहा जा सकता है कि यह व्यवसाय अपने वर्तमान Reseller में अभी 50 वर्ष का भी नहीं हुआ है। इस पेशे की Single प्रतिनिधि संस्था पब्लिक रिलेशन्स सोसाइटी ऑफ इण्डिया है। इस सोसाइटी की स्थापना 1958 में हुर्इ थी। इस संस्था का पंजीकृत मुख्यालय बम्बर्इ में है।

    लोकसम्पर्क को Single स्वतंत्र व्यवसाय की मान्यता मिलने से इस क्षेत्र में हो रहे सारे कायोर्ं को स्वस्थ और Creationत्मक दिशा मिली है। इससे जनसम्पर्क Single आवष्यक विषय या विधा व विभाग के Reseller में समाज में आया है। जिसमें हजारों नवयुवकों को रोजगार प्राप्त हो रहा है तथा वे अपनी योग्यता का उपयोग समाज के इस स्वतंत्र व्यवसाय के लिए कर रहे हैं।

      भारत में जनसम्पर्क के परंपरागत साधन

      1. लोककलाएं- चित्रकला, मूर्तिकला, वास्तुकला, हस्तकला। 
      2. लोकनृत्य – कठपुतली नृत्य, समूह नृत्य, विवाह,जन्मादि अवसर पर किये गये नृत्य। 
      3. लोकगीत – विभिन्न क्षेत्रों के परम्परागत गीत विवाह, जन्म, मुण्डन, जन्मदिन और त्यौहारों के अवसर पर गाये जाने वाले गीत। 
      4. लोकनाट्य – नौटंकी, तमाशा, भवर्इ, रास, जात्रा, अंReseller नाटक आदि। 
      5. लिखित स्वReseller – ताम्रपत्र शिलालेख, कला पत्रक। 
      6. लोक गाथाएं- प्रषस्ति परक काव्य तथाशौर्य गाथाएं। 
      7. अन्य साधन- डुगडुगी पीटना, मुनादी करना, हरकारों द्वारा सन्देष, कारिन्दों द्वारा घोशणाएं, सभाएं, यज्ञ, स्वयंवर आदि। 
      8. सामाजिक तथा धर्मिक पर्व- उत्सव, त्यौहार, मेले,प्रदर्शनियां, कीर्तन आदि। शिकार किये गये पशुओं के कारण Reseller गया सामूहिक भोजन। 
      9. धार्मिक आयोजन- मन्दिर, मस्जिद, गुरूद्वारे और आश्रमों में होने वाले धार्मिक उत्सवों के अवसर पर लोग भारी संख्या में Singleत्रित होते हैं तथा संवाद करते हैं। 

      उपर्युक्त All संवाद व सम्पर्क के परम्परागत साधन हैं। कहने को ये साधन परम्परागत हैं किन्तु आज के इलेक्ट्रानिक मीडिया के युग में भी इनका आकर्षण तथा प्रभाव कम नहीं हुआ है। यह कहना अतिशयोक्ति न होगा कि आज भी दृश्य, श्रव्य And All इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों में प्रचार-प्रसार तथा विज्ञापन के लिए परम्परागत साधन अधिक मुखर व प्रभावशाली हैं लोक शैलियों का प्रयोग सूचना को रोचक बनाकर प्रस्तुत करता है अत: यह आकर्षक भी है और प्रभावशाली भी है।

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