स्वरोजगार्र क्यार् है ?
जीवन के लिए धनोपाजन आवश्यक है। धनोपाजन हेतु लोग मेहनत मजदूरी तथार् नौकरी पेशार् आदि कार्य करते हैं। किन्तु स्वयं के व्यवसार्य आरम्भ कर उसक प्रबन्ध करनार् तथार् तन मन से सफलतार् पूर्वक संचार्लन करनार् एवं लार्भ हार्नि क भार्गीदार्री स्वयं होनार् ही स्वरोजगार्र कहलार्तार् है। अर्थार्त् स्वयं के कार्य करके धनोपाजन करनार् ही स्वरोजगार्र कहेंगे।
स्वरोजगार्र की विशेषतार्ए
- स्वयं क व्यवसार्य होनार्
- व्यवसार्य क प्रबन्ध एक ही व्यक्ति द्वार्रार् होनार् आवश्यकतार् पड़ने पर सहार्यक के रूप में एक यार् दो व्यक्ति को रखनार् इस प्रकार स्वरोजगार्र अन्य लोगो को भी रोजगार्र कहतार् है।
- स्वरार्जे गार्र में आय निश्चित नहीं होती। यह वस्तअुो के उत्पार्दन, कय्र -विक्रय यार् फिर मूल्य के बदले दूसरों को सेवार्ए प्रदार्न करने से प्रार्प्त आय पर निर्भर करती हेैं।
- स्वरोजगार्र में स्वार्मी लार्भ स्वयं लेतार् है और हार्नि क जोखिम भी स्वयं ही उठार्तार् है। इस प्रकार स्वरोजगार्र में प्रयत्न एवं पार्रितोषिक में प्रत्यक्ष सम्बन्ध है।
- स्वरोजगार्र के लिए पूजी की आवश्यकतार् होती है चार्हे यह छोटी मार्त्रार् में ही हो।
- स्वरोजगार्र में व्यक्ति, व्यवसार्य को सफलतार्पूर्वक चलार्ने एवं व्यवसार्य के विस्तार्र के लिए मिलने वार्ले अवसरों क लार्भ उठार्ने क निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र है। इसमें व्यक्ति को अपनी इच्छार्नुसार्र कानूनों की परिधि में कायर् करने की पूर्ण स्वतत्रं तार् है।
स्वरोजगार्र क महत्व
जीवनवृत्ति जीविकोपाजन क एक तरीक है। स्वरोजगार्र भी जीवनवृत्ति है क्योंकि कोर्इ भी व्यक्ति व्यवसार्य यार् सेवार् कार्यों से अपनी जीविक के लिए कमार् सकतार् है। बरोजगार्री में वृद्धि तथार् नार्कै रियों के पर्यार्प्त अवसर न मिलने के कारण स्वरोजगार्र क महत्व अधिक हो गयार् है। स्वरोजगार्र के महत्व के अंतर्गत निम्नलिखित बार्तें गिनी जार् सकती हे।
- छोटे व्यवसार्य के लार्भ-बड़े व्यवसार्यों की तुलनार् में छोटे व्यवसार्य के अनेक लार्भ हैं। इसे छोटी पूजी के निवेश से प्रार्रम्भ कियार् जार् सकतार् है तथार् इसको प्रार्रम्भ करनार् सरल भी है। छोटे पैमार्ने की क्रियार्ओं क स्वरोजगार्र बड़े पैमार्ने के व्यवसार्य क अच्छार् विकल्प है जिसमें वार्तार्वरण प्रदूषण, गंदी बस्तियों क विकास, कर्मचार्रियों के शोषण जैसी कर्इ बुरार्इयार्ं आ गर्इ हैं।
- नौकरी के स्थार्न पर प्रार्थमिकतार्-नौकरी में आय सीमित होती है जबकि स्वरोजगार्र में इसकी कोर्इ सीमार् नहीं है। स्वरोजगार्र में व्यक्ति अपनी प्रतिभार् क अपने लार्भ के लिए प्रयोग कर सकतार् है। वह निर्णय जल्दी एवं सरलतार् से ले सकतार् है। ये वे ठोस पे्ररक तत्व है। जिनके कारण कोर्इ भी व्यक्ति नौकरी के स्थार्न पर स्वरोजगार्र को प्रार्थमिकतार् देगार्।
- उद्यमितार् की भार्वनार् क विकास-उद्यमितार् जोखिम उठार्ने क दूसरार् नार्म है क्योंकि उद्यमी नए उत्पार्द तथार् उत्पार्दन तथार् विपणन की नर्इ पद्धति खोजतार् है। जबकि स्वरोजगार्र में यार् तो कम अथवार् कोर्इ जोखिम नहीं होतार्। लेकिन जैसे ही स्वरोजगार्र में लगार् व्यक्ति कुछ नयार् सोचतार् है तथार् अपने व्यवसार्य क विस्तार्र करने के लिए कदम उठार्तार् है तब वह उद्यमी बन जार्तार् है। इस प्रकार स्वरोजगार्र उद्यमितार् के लिए अवतरण मंच बन जार्तार् है।
- व्यक्तिगत सेवार्ओं क प्रवर्तन-स्वरोजगार्र में व्यक्तिगत सेवार्एं जैसे दर्जी क काम, कारीगरी, दवार्ओं की बिक्री, आदि कार्य भी सम्मिलित हैं। ये सेवार्एं उपभोक्तार् सन्तुष्टि में सहार्यक होती हैं। इन्हें व्यक्ति आसार्नी से शुरू कर निरंतर चलार् सकतार् है।
- सृजनतार् क अवसर-स्वरोजगार्र में कलार् एवं कारीगरी में सृजनार्त्मकतार् तथार् कलार्त्मकतार् के विकास क अवसर मिलतार् है जो भार्रत की सार्ंस्कृतिक विरार्सत को सुरक्षित रखने में सहार्यक होतार् है। उदार्हरण के लिए हस्तकलार्, हस्तशिल्प, इत्यार्दि में हम सृजनार्त्मक विचार्रों क स्पष्ट झलक देख सकते हैं।
- बेरोजगार्री की समस्यार् में कमी-स्वरोजगार्र करने से बेरोजगार्री दूर होती है। एवं आय में वृद्धि होती है। सार्थ ही सार्थ रार्ष्ट्रीय आय में वृद्धि होती है। उच्च शिक्षार् की सुविधार्ओं से वंचीत लोगों के लिए वरदार्न कम पढ़े लिखे लोगों के लिए स्वरोजगार्र एक प्रकार से वरदार्न है।