सामाजिक निदान का Means

निदान के सम्बन्ध में All निदानात्मक सम्प्रदाय के विचारकों ने अपने-अपने मत प्रस्तुत किये हैं। परन्तु उन All मतों और विचारों का मूल Means लगभग समान है। यहाँ पर हम कुछ विद्वानों की परिभाषाओं And विचारों का History निदान Word को स्पष्ट करने के लिए कर रहे है। रिचमण्ड, मेरी, सामाजिक निदान, जहाँ तक सम्भव हो Single सेवार्थी के व्यक्तित्व तथा सामाजिक स्थिति की Single यथार्थ परिभाषा पर पहुँचने का प्रयत्न है।

निदानात्मक तथा कार्यात्मक संप्रदाय में अंतर

निदानात्मक सम्प्रदाय फ्रायड तथा उनके साथियों द्वारा विकसित किये गये व्यक्तित्व सिद्धांत का पालन करता है जब कि कार्यात्मक सम्पद्राय ओटो की संकल्प शक्ति पर आधारित है। रैंक के विचार से व्यक्तित्व में ही संगठनात्मक शक्ति होती है। जिसे संकल्प कहते हैं। फ्रायड के सिद्धान्त के Accordingव्यक्तित्व संCreation में संगठन शक्ति नहीं होती है। व्यक्तित्व संगठन में अनेक विभिन्न तथा अन्त: क्रियात्मक शक्तियाँ होती है जो न केवल Single-Second के प्रति अन्तक्रिया करती है बल्कि पर्यावरण में अनुकूल And प्रतिकूल प्रभावों के प्रति भी प्रकट होती है। इन शक्तियों की सापेक्षित ताकत तथा संतुलन व्यवस्था व्यक्ति के पूर्व अनुभव द्वारा उत्पन्न होती है जिसको वह अपने माता-पिता से सम्बन्ध स्थापित करने के कारण प्राप्त करता है। इस मनोसंCreation में अहं का मुख्य स्थान होता है। वह अनेक कार्य करता है परन्तु सबसे प्रमुख कार्य पराहं तथा आन्तरिक चालकों में सन्तुलन बनाये रखना है। वह व्यक्ति की मनोNeedओं को वास्तविकता की माँग से समझौता कराता है।

इस प्रकार अहं आन्तरिक तथा बाह्य दोनों ही शक्ति के Reseller में कार्य करता है। इसका कार्य प्रत्यक्षीकरण, वास्तविकता परीक्षण, निर्णय, संगठन, नियोजन तथा आत्म संरक्षित रखना है। अहं की शक्ति व्यक्ति के मनो-सामाजिक विकास पर निर्भर होती है। मनो-चिकित्सकीय सहायता द्वारा अहं का विकास Reseller जा सकता है। निदानात्मक सम्प्रदाय के According व्यक्तित्व संCreation, अन्तर्मनोसंघर्ष तथा उसका वर्तमान समस्या से सम्बन्ध का ज्ञान प्राप्त करना सेवाथ्री में सुधार And परिवर्तन के लिए आवश्यक होता है। यह मनोकार्यात्मकता में प्रतिमानों के अस्तित्व को स्वीकार करता है जिसके द्वारा व्यक्ति के विचलन को वर्गीकृत करके समझा जा सकता है। मनोसामाजिक व्यवधान चिकित्सा के Reseller को निश्चित करता है।

कार्यात्मक सम्प्रदाय व्यिक्त्व सिद्धान्त की आन्तरिक मूल-प्रवृत्तियों And Needओं में अन्त:क्रिया तथा बाह्य पर्यावरण सम्बन्धी अनुभव को महत्व देता है। परन्तु यह अन्त:क्रिया जन्मजात संकल्प शक्ति द्वारा आत्म विकास के लिए संगठित And निर्देशित होती है। वह इस प्रकार से आन्तरिक तथा वाह्य अनुभव उत्पन्न करता है जिससे अहं का विकास होता है। संकल्प अच्छा का कार्य वैयक्तिकता का विकास करना है। अत: Human प्राणी प्रारम्भिक काल से ही न केवल बाºय तथा आन्तरिक वास्तविकता द्वारा कार्य करता है बल्कि वास्तविकता पर भी कार्य करता है। इस दृष्टि से अहं तथा आत्म (स्व) का विकास संकल्प साधन द्वारा आन्तरिक तथा बाह्य अनुभवों में Creationत्मक उपयोग द्वारा होता है। आन्तरिक तथा बाह्य शक्तियों में अन्त:क्रिया के फलस्वReseller स्वयं का विकास सम्भव नहीं है। यह विकास परिवेश में Meansपूर्ण सम्बन्धों के विकसित होने के साथ-साथ घटित होता है। इन परिवेश के सम्बन्धों में सबसे First तथा प्रमुख स्थान माता से सम्बन्ध का है। बालक इन सम्बन्धों में अपनी Needओं को दूसरों पर प्रक्षेपित करता है

इस अवस्था में मुख्य Needएँ जैविकीय होती हैं अत: उनमें बहतुअधिक मानसिक महत्व होता है। इस Need की संतुश्टि के कार्य में बालक से संघ स्थापित करने के लिए मनौवैज्ञानिक प्रभाव होता है। बालक इन सम्बन्धों के अनुभव से बिलकुल रिक्त होने के कारण बहुत अधिक प्रभाव अनुभव करता है। परन्तु वास्तविकता में सम्पूर्ण संघ या सम्बन्ध सम्भव नहीं है अत: पृथक्कीरण स्वभावत: घटित होता है जिसका उपयोग संकल्प शक्ति Creationत्मक तरीके से करती है और इससे वास्तविकता की सीमाओं की Creation का आन्तरिक सम्पूर्णता का विकास सम्भव होता है अथवा ध्वंSeven्मक तरीके से सीमाओं का उल्लंघन कर Second से संघ स्थापित करने के कार्य में निरन्तरता बनाये रखता है। दोनों सम्प्रदाय प्रक्षेपण तथा प्रतिरोध का अलग-अलग Means लगाते है।

निदानात्मक सम्प्रदाय के According प्रक्षेपण Single Saftyत्मक यन्त्र है जिसके द्वारा अपनी भावनाओं को Second पर आरोपित कर दिया जाता है। कार्यात्मक सम्प्रदाय के विचारक इसका Means आन्तरिक मूल प्रवृत्तियों के बाह्य वस्तु पर व्यक्तिकरण से समझते है। व्यक्ति उस बाह्य वस्तु औचित्यता को अपनी रुचि के According उपयोग करता है।

प्रतिरोध भी इसी प्रकार दोनों सम्प्रदायों के लिए अलग-अलग Means रखता है। निदानात्मक सम्प्रदाय के दृष्टिकोण से प्रतिरोध का Means अस्वीकृत विचारों को व्यक्त होने पर अहं द्वारा रोक लगाना है, प्रतिरोध आत्म ज्ञान में बाधक होता है। अत: चिकित्सा प्रक्रिया में प्रतिरोध को सेवाथ्री के इच्छित अनुकूलन तथा समायोजन के लिए दूर करना आवश्यक होता है। कार्यात्मक सम्प्रदाय के विचार से प्रतिरोध का Means संकल्प द्वारा सम्बद्व स्थिति पर नियन्त्रण रखना है जिससे शीघ्र परिवर्तन सम्भव हो। अत: कार्यात्मक वैयक्तिक कार्यकर्ता प्रतिरोधों को दूर करने के प्रयत्न के स्थान पर इस स्थिति के किसी भी भाग पर सेवाथ्री की नियन्त्रण की Need की प्रामाणिकता को स्वीकार करता है और इस प्रकार वह नवीन अनुभव प्रदान करता है जिसके द्वारा वह संकल्प के ध्वनात्मक प्रयोग का बहिष्कार करता है।

कार्यात्मक कार्यकर्ता सेवाथ्री को स्वयं अपने भाग्य का निर्माता मानता है। वह व्यक्तित्व निर्माण आन्तरिक चालकों तथा बाह्य परिस्थितियों के प्रभाव को स्वीकार नहीं करता है। निदानात्मक कार्यकर्ता के According व्यक्ति के व्यक्तित्व का निर्माण मूल Needओं तथा शारीरिक And मानसिक पर्यावरण के अन्त: सम्बन्धों से होती है।

निदानात्मक And कार्यात्मक संप्रदाय की प्रणाली में अंतर

निदानात्मक सम्प्रदाय के विचार से चिकित्सा का उद्देश्य व्यक्ति की अहं शक्ति में वृद्धि करना है। उन प्रभावों को जानने के लिए जो सेवाथ्री की अहं कार्यात्मकता पर सकारात्मक परिणाम प्रदान करने वाले कारक तथा वास्तविकता का दबाव का ज्ञान प्राप्त करना आवश्यक होता है। यह ज्ञान सेवाथ्री से प्रारम्भिक साक्षात्कारों द्वारा प्राप्त Reseller जाता है। सेवाथ्री का प्रत्युत्तर कार्यात्मक सम्बन्ध-स्थापित करने के लिए महत्वपूर्ण समझा जाता है, क्योंकि इसके द्वारा ही उसकी समस्या का ज्ञान होता है। प्रत्युत्तर द्वारा ही सेवाथ्री को समस्या अध्ययन, निदान तथा उपचार कार्य में भागीकृत Reseller जा सकता है। सेवाथ्री को समस्या अध्ययन, निदान तथा उपचार कार्य में भागीकृत Reseller जा सकता है। सेवाथ्री की मनोवृत्ति तथा सम्बन्ध स्थापन की प्रकृति जिसको वह स्थापित करने का प्रयत्न करता है समस्या निदान के लिए आवश्यक समझे जाते हैं परन्तु वे सेवाथ्री के व्यक्तित्व तथा सम्प्रेरणाओं के मूल्यांकन अथवा चिकित्Seven्मक निर्देशन के लिए महत्वपूर्ण नहीं होता है।

कार्यात्मक वैयक्तिक कार्यकर्ता व्यथित व्यक्ति की अन्र्तक्षमताओं की अभिव्यक्ति में सहायता करता है। वह मानता है कि संकल्प में कार्य, अनुभव तथा अनुभूति की शक्ति होती है। कार्यकर्ता इनको करके समस्या का समाधान करता हे। उसकी सहायता का केन्द्र बिन्दु संकल्प शक्ति द्वारा व्यक्तित्व में उत्पादात्मक परिवर्तन लाना है। वह वर्तमान स्थिति के प्रति सेवाथ्री की भावनाओं का ज्ञान प्राप्त करता है जिसके अन्तर्गत समस्या तथा वैयक्तिक सेवा कार्य सम्बन्ध दोनों-निहित होते है जिसके द्वारा वह समस्या का समाधान कर सकता है। निदानात्मक वैयक्तिक सेवा कार्य की सहायता नियोजित, लक्ष्य भेदित तथा चिकित्Seven्मक होती है।

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