संघर्ष सम्बन्धी अधिनियम

यदि हम भारत में औद्योगिक संघर्षों के विधानों का अवलोकन करें, तो स्पष्ट होता है कि यह पुराना नहीं है। इसका कारण यह है कि भारत में औद्योगिक जीवन में संघर्ष का प्रारम्भ 1914-18 के बाद हुआ। इससे First मालिक और मजदूरों के विवादों का निबटारा 1860 के मालिक And श्रमिक (विवाद) अधिनियम द्वारा होता था। 1920 में भारत सरकार का ध्यान इस ओर गया कि औद्योगिक विवादों के सम्बन्ध में कानून बनाए जाएं। 1921 में बंगाल और बम्बर्इ में किसी विषय को ध्यान में रखकर औद्योगिक विवाद अधिनियम समितियों ने विचार Reseller। 1924 में बम्बर्इ की सूती मिलों के मालिकों And श्रमिकों में जोरदार संघर्ष हुआ। इसके बाद ही भारत में औद्योगिक संघर्ष से निपटने के लिए अधिनियम बनाने की Need पर जोर दिया गया। भारत में औद्योगिक संघर्ष के सम्बन्ध में जो अधिनियम बने, उनका संक्षिप्त में इस प्रकार से Reseller जा सकता है।

1. व्यवसाय विवाद अधिनियम – 

1920-1924 में बम्बर्इ मे जो भीषण हडत़ाल हुर्इ उसके कारण भारत सरकार का ध्यान इस ओर गया कि औद्योगिक संघर्ष से निपटने के लिए अधिनियम का निर्माण Reseller जाय। 1924 में भारत सरकार ने Single विधेयक जनता की राय जानने के लिए प्रसारित Reseller था। परिणामस्वReseller 1929 में व्यवसाय विवाद अधिनियम पारित हुआ। इस अधिनियम में दो अंगों का निर्माण Reseller गया था –

  1. जॉच न्यायालय
  2. समझौता मण्डल


श्रम न्यायालय का कर्तव्य था कि वह इसके सामने आने वाले संघर्ष की जॉच पड़ताल करे। समझौता मण्डलों का यह कर्तव्य था कि वह संघर्ष जॉंच पड़ताल करें और इसके आधार पर दोनों पक्षों के बीच समझौता स्थापित करने का प्रयास करें। इसके साथ ही आवश्यक सेवाओं (डाक, तार, टेलीफोन, स्वास्थ्य, विद्युत, जलापूर्ति, सफार्इ आदि) में हड़ताल And तालाबन्दी से 14 दिन पूर्व सूचना देना आवश्यक था। इन अधिनियमों का पालन नहीं करने पर कठोर दण्ड देने की व्यवस्था इस अधिनियम में की गर्इ थी।

2. 1934 का अधिनियम – 

1935 में 1929 के अधिनियम को संशोधित करके जॉच न्यायालय और समझौता मण्डल के किसी भी सदस्य को गुप्त सूचना प्रकट करने से मना कर दिया और ऐसा करने पर अदालत में मुकदमा चलाये जाने की व्यवस्था की गर्इ। 1929 का अधिकतम सिर्फ 5 वर्षों के लिए ही बनाया गया था। अत: 1934 र्इ. में Single संशोधन की सहायता से इसे स्थायी बना दिया गया।

3. 1938 का अधिनियम – 

शाही श्रम आयागे ने ऐसी सिफारिश की थी कि समझौता अधिकारियों के कर्तव्यों को और भी विस्तृत Reseller जाय। इसी के आधार पर 1936 में भारत सरकार ने इस अधिनियम में संशोधन के लिए विधेयक प्रस्तुत Reseller जो 1930 में अधिनियम के Reseller में पारित हो गया। इस अधिनियम में समझौता अधिकारियों की Appointment की व्यवस्था की गर्इ थी। साथ ही हड़ताल और तालाबन्दी पर जो प्रतिबन्ध लगाए गये थे, उन्हें शिथिल कर दिया गया। साथ ही इस अधिनियम में ऐसी व्यवस्था भी की गर्इ थी कि यदि श्रम अधिकारी झगड़ों का निपटारा करने में सफल नहीं होते हैं तो इस कार्य के लिए श्रम आयुक्त की Appointment की जाय।

4. बम्बर्इ औद्योगिक विवाद अधिनियम – 

1938 व्यावसायिक अधिनियम के होते हुए भी बम्बर्इ की सूती वस्त्र मिलों की श्रमिकों की हड़ताल से नहीं रोका जा सका। इसका परिणाम यह हुआ कि 1939 में बम्बर्इ सरकार ने औद्योगिक विवादों से निपटने के लिए अपना प्रान्तीय विधान बनाया।

  1.  इसका मूल उद्देश्य समझौता द्वारा संघर्षों को शान्ति और मैत्रीपूर्ण तरीकों से निपटाना था,
  2. इस अधिनियम में ‘श्रम आयुक्त’ समझौता अधिकारियों और श्रम आधिकारियों की Appointment की व्यवस्था की गर्इ थी।
  3. इस अधिनियम के द्वारा प्रान्तीय सरकार औद्योगिक न्यायालय व औद्योगिक विवेचना न्यायालय भी बना सकती है।
  4. उपयुक्त नोटिस दिए बिना की जाने वाली हड़ताल को अवैध ठहराने का अधिकार इस अधिनियम को था।
  5. यदि किसी प्रश्न पर औद्योगिक न्यायालय में विचार हो रहा है तो उस समय तक हड़ताल नहीं की जा सकती।
  6. समझौते की कार्यवाही के समय मालिक लोग सेवा शर्तों में किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं कर सकते।

5. Fightकालीन व्यावसायिक विवाद विधान – 

1930 में द्वितीय विश्वFight्र प्रारम्भ हो गया। इसके कारण बम्बर्इ औद्योगिक विवाद अधिनियम 1938 को 1941 में संशोधित कर दिया गया। इसके According यदि सरकार ऐसा समझती है कि कोर्इ झगड़ा इतना भयंकर Reseller धारण कर लेगा कि इससे राष्ट्र और समाज को धक्का लगेगा, तो वह संशोधन के According मालिकों को काम करने के घण्टों और अवकाश के घण्टों की सूचना देने की छूट दे दी गर्इ। 1945 में इसमें पुन: संशोधित Reseller गया। इस संशोधन के According श्रम अधिकारियों को इस आशय का अधिकार प्रदान Reseller गया कि वे श्रमिकों के काम करने के स्थान के पास ही श्रिमेकों की बैठक बुला सके।

6. औद्योगिक विवाद अधिनियम – 

1947, 30 सितम्बर, 1946 से Fightकालीन अधिनियम निष्क्रिय हो गया। Fightकाल में जो नियम बनाये गये थे उनसे सरकार को आभास हुआ कि औद्योगिक शान्ति की स्थापना में इनका महत्वपूर्ण हाथ है। इसी उद्देश्य को सामने रखकर सरकार ने ऐसा उचित समझा कि इन्हीं विधानों को ध्यान में रखकर Single व्यापक कानून का निर्माण Reseller जाय। परिणामस्वReseller 1947 में औद्योगिक विवाद अधिनियम पारित Reseller गया। इसके विपरीत होने के साथ ही 1924 का व्यवसाय विवाद अधिनियम और ‘बम्बर्इ औद्योगिक विवाद अधिनियम’ निरस्त हो गये। 1956 में इस अधिनियम में संशोधन किये गये। वर्तमान में सरकार की ओर से यही मशीनरी है। जिससे औद्योगिक विवाद हल करने का प्रयास Reseller जाता है। इस अधिनियम के महत्वपूर्ण उपायों को इन भागों में विभाजित Reseller जा सकता है –

  1. राज्य सरकार को अधिकार –
    1. औद्योगिक संस्थाओं में ‘मालिक-मजदूर समितियों’ की स्थापना करना जिससे मालिकों और मजदूरों के बीच होने वाले संघर्ष को समाप्त Reseller जाये तथा उनमें अच्छे सम्बन्धों की स्थापना की जाये। जून 1987 तक केन्द्र सरकार के 560 उद्यमों में कार्य समितियां काम कर रही थीं।
    2. समझौता अधिकारियों की Appointment करना जो औद्योगिक झगड़ों का निपटारा करें।
    3. समझौता मण्डलों और जॉंच न्यायालयों के प्रतिवेदन को मध्यस्थता के लिए औद्योगिक अधिकरण को भेजना।
    4. किसी विवाद की जॉच के लिए जॉच न्यायालय की Appointment करना।
    5. समझौता मण्डलों और जॉच न्यायालयों के प्रतिवेदन को मध्यस्थता के लिए औद्योगिक अधिकरण को भेजना।
    6. अधिकरण जो भी निर्णय दे उसे मानने के लिए दोनों पक्षों -मालिकों और श्रमिकों को बाध्य करना।
  2. इस अधिनियम द्वारा निम्न हड़त़तालों को अवैध घोेषित कर दिया गया था-
    1. लोकहित सेवाओं में उस हड़ताल को अवैध घोषित करना जो 6 सप्ताह का नोटिस दिये बिना ही प्रारम्भ की गर्इ हो,
    2. जब कोर्इ झगड़ा ‘समझौता मण्डल’ या ‘औद्योगिक न्यायालय’ मे चल रहा है’ तब तक उस सम्बन्ध में की गर्इ हड़ताल, और
    3. यदि सरकार ने किसी विवाद को मण्डल, अदालत को सौंपा हो और सरकार ने उस हड़ताल को अवैध घोषित कर दिया हो, जब तक विवाद की जॉच चले।
  3. इस अधिनियम में First वाले अधिनियमों की व्यवस्थाओं को ज्योंं-ं-का-त्योंं रखा गया है-
  4. इस अधिनियम मेंं दो नर्इ संस्थाओंं की स्थापना की सिफारिश की गर्इ है-
    1. मालिक-मजदूर समितियॉ और
    2. औद्योगिक अधिकरण ।
  5. इस अधिनियम द्वारा उन व्यक्तियों को Safty प्रदान करने की व्यवस्था की गर्इ है, जो हड़तालों आदि में भाग लेना नहीं चाहते हैं-
  6. जो लोग अवैध हड़़तालोंं मेंं शामिल होंंगे या उनको किसी प्र्रकार की सहायता प्रदान करेंंगे, उन्हेंं दण्डित Reseller जायेगा।
  7. 1949 में Single आदेश के माध्यम से 1949 के अधिनियम में संशोधन कर दिया था जिसके According इस अधिनियम को बैंक और बीमा कम्पनियों पर भी लागू कर दिया गया। प्रान्तीय सरकारों के इस अधिकार को केन्द्र सरकार ने ले लिया जिसके द्वारा प्रान्तीय सरकारों, अधिकरणों और मण्डलों की स्थापना करनी थी।
  8. 1950 में Single नए अधिनियम की सहायता से श्रमिक अपील न्यायालयों की Appointment की व्यवस्था की गर्इ। इसमें जॉंच न्यायालयों, मजदूरी मण्डलों और समझौता मण्डलों के निर्माण की अपील की जा सकती थी।
  9. 1951 में सरकार ने श्रम सम्बन्धी विधेयक पास Reseller। इसके According झगड़े का निर्णय करने के लिए सरकार आन्तरिक और बाहरी मशीनरी की स्थापना कर सकती थी। साथ ही राज्य को इस सम्बन्ध के कर्इ अधिकारी और न्यायालय स्थापित करने का आदेश दिया गया था।
  10. 1953 में ‘औद्योगिक विवाद (संशोधित) अधिनियमपास Reseller गया। इसके According छटनी और जबरी छुट्टी की अवस्थाओं में क्षतिपूर्ति की व्यवस्था की प्रमुख विशेषताएं हैं।
  11. 1954 में इस अधिनियम के क्षेत्र को बढ़ाकर इसे बगान में भी लागू कर दिया गया। इस अधिनियम के द्वारा ऐसी व्यवस्था भी की गयी थी जो व्यक्ति Single वर्ष से लगातार काम कर रहा है, उसे Single माह का नोटिस दिये बिना काम से नहीं निकाला जा सकता है।
  12. 1955 में इस अधिनियम को श्रमजीवी पत्रकारों पर भी लागू कर दिया गया।
  13. 1956 में औद्योगिक विवाद (संशोधन) अधिनियम पास Reseller गया। इस अधिनियम की प्रमुख विशेषताएं निम्न हैं- (अ) इसके द्वारा 500 रू. से कम मासिक वेतन पाने वाले निरीक्षकों को सम्मिलित कर लिया गया जो प्रबन्ध या प्रशासन सम्बन्धी काम न करते हों, (आ) श्रमिकों को 21 दिन First नोटिस दिए बिना मालिक काम के घंटे, मजदूरी, फण्ड आदि में कोर्इ परिवर्तन नहीं कर सकते। (इ) इसके द्वारा तीन प्रकार के न्यायालयों की स्थापना की गर्इ है-
    1. श्रम न्यायालय,
    2. औद्योगिक अधिकरण,
    3. राष्ट्रीय अधिकरण
  14. योजना आयोग की सिफारिशेंं – औद्योगिक विवादों को कम करने की दृष्टि से योजना आयोग ने जो आधारभूत सिद्धान्तों को अपनाया वे इस प्रकार हैं-
    1. वैज्ञानिक पेचीदगियों और कार्यवाहियों में प्रयुक्त औपचारिकता को कम Reseller जाए,
    2. किसी भी विवाद की प्रकृति और महत्व के आधार पर उसका प्रत्यक्ष और अन्तिम निपटारा Reseller जाए, 
    3. औद्योगिक अधिकरणों और औद्योिगेक न्यायालयों में उन्हीं व्यक्तियों को Appointment Reseller जाय जो विशेष कुशलता प्राप्त हों,
    4. ऐसी व्यवस्था की जानी चाहिए कि इन न्यायालयों के निर्णय की अपील कम से कम हो,
    5. ऐसी व्यवस्था की जाय जिससे किसी की भी निर्णय को शीघ्रता से लागू Reseller जा सके,
    6. पारस्परिक बातचीत द्वारा झगड़ों को निपटाना,
    7. ऐच्छिक समझौते को मानने से इन्कार करने की दशा में दण्ड की व्यवस्था और
    8. श्रमिकों और मालिकों की संयुक्त परिषदों के निर्माण की व्यवस्था आदि,
    9. अनुशासन संहिता का निर्माण Reseller जाय, जिससे श्रमिक और मालिक अपने उत्तरदायित्वों को समझकर कार्यों का सम्पादन करें,
    10. स्वयंसेवी पंचनिर्णय के सिद्धान्त को अधिक से अधिक प्रभावशाली बनाया जाए,
    11. संयुक्त प्रबन्ध परिषद योजनाओं को धीरे धीरे All उद्योगों में लागू Reseller जाय,
    12. श्रमिकों में शिक्षा को बड़े पैमाने पर फैलाने की व्यवस्था की जाय,
    13. मजदूर संघों को औद्योगिक ढॉंचे के अनिवार्य अंग के Reseller में स्वीकार Reseller जाय,
    14. राष्ट्रीय विकास में श्रमिकों के योगदान को व्यावहारिक उपाय की दृष्टि से देखना,
    15. श्रमिकों को श्रम कानून के अनुReseller लाभ प्राप्त करने की व्यवस्था,
    16. समझौता मध्यस्थता And न्याय निर्णय को मजबूत बनाने की व्यवस्था करना, तथा
    17. श्रमिकों को आर्थिक लाभ पहुॅंचाने के अन्तर्गत राष्ट्रीय उत्पाद के ऊपर नियंत्रण रखने के साथ ही साथ न्यायालयों की स्थापना करना And कार्यवाही करना।

इस प्रकार First पंचवर्षीय योजना से दशम पंचवर्षीय योजना के मध्य औद्योगिक संघर्षों को सुलझाने के अनेक प्रयाय किये गये हैं तथा अनेक कानूनों का निर्माण इसी दृष्टिकोण से Reseller गया है। मुक्त व्यापार की नीित के अन्तर्गत विभिन्न देशों की कम्पनियॉं विभिन्न देशों में अपने उद्योग स्थापित करने के लिए स्वतंत्र हैं। ऐसी स्थिति में राष्ट्रीय कानून में अनेक प्रकार के परिवर्तन किये गये हैं तथा औद्योगिक संघर्ष को भी संवैधानिक कानून के अन्तर्गत लाया गया है।

You may also like...

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *