मंत्रणा का Means

सामाजिक वैयक्तिक सेवा कार्य में मन्त्रणा कार्य का विकास First बेरथा रेयनोल्ड्स ने सन् 1932 र्इ0 में Reseller। सामाजिक संस्थाओं में कार्य करने का अनुभव जैसे-जैसे होता गया वैयक्तिक कार्यकर्ताओं में नये-नये विचार उत्पन्न होते गये। कुछ वैयक्तिक कार्यकर्ताओं ने बिना किसी सामाजिक सेवा के सेवार्थियों को सहायता देने में रूचि प्रकट की। उनका यह अनुभव था कि सेवाओं को उपलब्ध कराने से संबंधित कार्य के अतिरिक्त अन्य कार्य मनोवैज्ञानिक तथा मनोविकास चिकित्सक के समान ही थे। परन्तु समस्या यह थी कि मन्त्रणा Word का उपयोग विभिन्न Meansों में Reseller जाता था।

मंत्रणा का संबंध सेवाथ्री की व्यक्तिगत समस्याओं से होता है। उदाहरण के लिए संकटकालीन स्थिति से निपटना, दूसरों से मतभेद तथा संघर्ष, अन्तदर्ृष्टि विकास की समस्या तथा पारस्परिक संबंधों में मतभेद आदि ऐसी समस्यायें हैं जिनका समाधान मंत्रणा के माध्यम से Reseller जाता है।

मंत्रणा का Means 

मंत्रणा का कार्य उतना ही प्राचीन है जितना कि हमारा समाज, स्वयं जीवन के प्रत्येक स्तर पर तथा दिन-प्रतिदिन के जीवन में मंत्रणा की Need होती है। परिवार के स्तर पर बच्चों को माता-पिता मंत्रणा देते हैं, रोगिंयों को चिकित्सक मंत्रणा देते हैं, वकील अपने सेवाथ्री को मंत्रणा देता है, अध्यापक विद्यार्थियों को मंत्रणा देतें है। Second Wordों में यह कहा जा सकता है कि समस्याओं की कोर्इ सीमा नहीं है, जिनमें मंत्रणा की Need न महसूस होती है।

आप्टेकर के According, ‘‘ मंत्रणा उस समस्या-समाधान की ओर लक्षित वैयक्तिक सहायता है जिसका Single व्यक्ति समाधान कर सकने में स्वयं को असमर्थ पाता है और जिसके कारण निपुण व्यक्ति की सहायता प्राप्त करता है। जिसका ज्ञान, अनुभव तथा सामान्य स्थिति ज्ञान उस समस्या के समाधान करने के प्रयत्न में, उपयोग में लाया जाता है।’’
गार्डन हैमिल्टन के According, ‘‘मंत्रणा, तर्क-वितर्क के माध्यम द्वारा Single व्यक्ति की क्षमताओं तथा इच्छाओं को तार्किक बनाने में सहायता करता है। मंत्रणा का मुख्य उद्देश्य सामाजिक समस्याओं तथा सामाजिक अनुकूलन के लिए चेतना अहं को प्रोत्साहित करता है।’’

वास्तव में मंत्रणा Single मनोवैज्ञानिक पहलू है। मंत्रणा को बिना संस्था के माध्यम से भी सम्पन्न Reseller जा सकता है। इसके लिए रिलीफ फन्ड्स, फॉस्टर होम या होम मेकर की Need नहीं होती है। मंत्रणा के अन्तर्गत सेवाथ्री को कोर्इ ठोस सेवा न प्रदान करके केवल मार्गदर्शन करने का प्रयत्न Reseller जाता है। परन्तु वैयक्तिक सेवा कार्य में जब कार्यकर्ता तथा सेवाथ्री समस्या समाधान के लिए मिलते हैं तो ठोस सेवा की उपलब्धि का पुट अवश्य होता है।

मंत्रणा के अन्तर्गत- सूचना देना, व्यवस्था तथा इसके विषयों की व्याख्या करना, सम्मिलित होता है। मंत्रणा के द्वारा सेवाथ्री की समस्या को स्पष्ट करके उसके अंह को सुदृढ़ बनाने का प्रयत्न Reseller जाता है। मंत्रणा में कार्यकर्ता का ध्यान सेवा पर न होकर केवल समस्या पर ही रहता है। मंत्रणा का केन्द्र बिन्दु, विशिष्ट प्रकार की समस्या होती है। परन्तु यदि सामाजिक समस्या में दूसरा व्यक्ति-माता-पिता, बालक, पति/पत्नी या अन्य धनिष्ठ संबंधी निहित होता है तो मंत्रणा मनोचिकित्सा की दिशा में मुड़ जाती है।

मंत्रणा का परिचय 

मंत्रणा कला तथा विज्ञान दोनों हैं। इसके लिए न केवल यह आवश्यक है कि विषय-वस्तु का ज्ञान हो बल्कि आत्म ज्ञान, आत्म अनुशासन And आत्मिक विकास की विधाओं का भी ज्ञान हो। अभिव्यक्ति तब होती है जब मंत्रणादाता सेवाथ्री तथा अपने बीच संबंधों को सुदृढ़ करने के लिए विभिन्न निपुणताओं का उपयोग करता है तथा सेवाथ्री की स्वायत्ता बनाये रखने का समर्थन करता है। मंत्रणा के लिए यह आवश्यक है कि मंत्रणादाता अच्छा सम्प्रेषक हो और यह सम्प्रेषण सावधानी पूर्वक अवलोकन पर निभर्र होता है। परामर्श Single विशेष प्रकार का वयै क्तिक सम्प्रेषण है। जिसमें भावनाओं, विचारों, मनोवृत्तियों का प्रगटन होता है। जिनका प्रगटन नहीं हो पाता हे, उनकी खोजकर प्रगटन की स्थिति तैयार की जाती है और यदि कोर्इ स्पष्टीकरण की जरूरत होती है तो स्थिति का विश्लेषण करके उसे सेवाथ्री को बताया भी जाता है।

अत: कहा जा सकता है कि –

  1. मंत्रणा में दो व्यक्ति होते हैं – Single सहायता चाहता है तथा दूसरा व्यावसायिक Reseller से प्रशिक्षित होने के कारण सहायता देने में समर्थ होता है। 
  2. यह आवश्यक है कि दोनों व्यक्ति के बीच सम्बन्धों का आधार पारस्परिक स्वीकृति हो तथा दोनों ही उसे आदर And सम्मान करें। 
  3. मंत्रणादाता को मित्रवत व्यवहार करना चाहिए तथा उसमें सहयोग देने की भावना प्रबल हो। 
  4. परामर्श प्राप्त करने वाले में मंत्रणादाता के प्रति विश्वास तथा भरोसा हो।
  5. मंत्रणा के माध्यम से सेवाथ्री में आत्मनिर्भरता तथा उत्तरदायित्व को पूरा करने की भावना का विकास Reseller जाता है। 
  6. मंत्रणा के माध्यम से सेवाथ्री की सहायता उसकी क्षमताओं को ढूंढने तथा उन्हें पूरी तरह से उपयोग में लाने का प्रयास Reseller जाता है जिससे उसकी All क्षमतायें वास्तविक Reseller में प्रकट होकर उसे समस्याओं के समाधान करने में तथा सुखमय जीवन बनाने में सफलता मिल सके। 
  7. यह केवल सलाह ही नहीं बल्कि इसके माध्यम से सेवाथ्री स्वयं समस्या का मार्ग ढूंढता है, मंत्रणादाता केवल उपाय बताता है। 
  8. मंत्रणा के माध्यम से व्यक्ति में परिवर्तन लाया जाता है जिससे समस्या का समाधान सम्भव होता है।
  9. इसका सम्बन्ध मनोवृत्तियों के बदलाव से भी होता है। 
  10. यद्यपि मंत्रणा प्रक्रिया में सूचना और वैकल्पिक ज्ञान का महत्व होता है लेकिन सबसे महत्वपूर्ण ,सांवेगिक भावनायें होती है जिस पर प्रक्रिया निर्भर होती है। 

मंत्रणा में कार्यकर्ता का ध्यान सेवा पर न होकर केवल समस्या पर ही रहता है। मंत्रणादाता किसी Single विशेष समस्या पर ही केन्द्रित रहता है। मंत्रणादाता किसी Single विशेष समस्या से संबंधित सहायता करने में निपुण होता है। जैसे – विवाह मंत्रणा, व्यावसायिक मंत्रणा, परिवार मंत्रणा, विद्यालय मंत्रणा आदि। उसका ज्ञान, दक्षता, निपुणता, योग्यता तथा समय, विशिष्ट सहायता प्रदान करने में ही उपयोग में लायी जाती है।

मंत्रणा-प्रक्रिया 

सामान्यत: मंत्रणा के दो प्रकार माने गये हैं – 1. निर्देशित मंत्रणा 2. अनिर्देशित मंत्रणा

  1. निर्देशित मंत्रणा के अन्तर्गत मंत्रणादाता सम्पूर्ण प्रक्रिया में मुख्य भूमिका निभाता है। वह सेवाथ्री को सलाह देता है तथा इसमें सेवाथ्री की समस्या, मुख्य केन्द्र-बिन्दु होती है न कि सेवाथ्री।
  2. अनिर्देशित मंत्रणा में सेवाथ्री की Agreeि से समय व दिन निश्चित Reseller जाता है तथा मंत्रणादाता सेवाथ्री से संबंधित कुछ प्रारम्भिक टिप्पणियों- जैसे विद्यालय से हट कर उसकी गतिविधियां, उसकी रूचि आदि के प्रयोग से मंत्रणा सत्र को प्रारम्भ कर सकता है। यह सम्पूर्ण प्रक्रिया मंत्रणादाता व सेवाथ्री के मध्य अच्छी अन्तर्क्रिया को प्रेरित करता है व सुगम बनाता है तथा ऐसा होने से सम्पूर्ण मंत्रणा-प्रक्रिया सरल हो जाती है।

1. निर्देशित मंत्रणा की प्रक्रिया 

र्इ0जी0 विलियम्स के According निर्देशित मंत्रणा में निम्नलिखित चरण होते हैं-

  1. विश्लेषण – विभिन्न यंत्रों व प्रविधियों के प्रयोग द्वारा विविध स्रोतों से तथ्य संकलन Reseller जाता है। सेवाथ्री को पर्याप्त Reseller से समझने के लिए ये तथ्य आवश्यक होते हैं। 
  2. संश्लेषण – तथ्यों का संक्षिप्तीकरण तथा भली-भांति संगठित होना चाहिए जिससे सेवाथ्री के संबंध में All आवश्यक सूचनायें प्राप्त हो जाये, जैसे उसके गुण, समायोजन करने की क्षमता, उत्तरदायित्व की भावना, असमायोजन आदि।
  3. निदान – सेवाथ्री द्वारा बतायी गर्इ समस्याओं की प्रकृति व कारण से संबंधित निष्कर्ष निकालना। 
  4. समस्या संबंधी – सेवाथ्री की समस्याओं के भविष्य में विकसित होने की प्रति लक्षणों से सेवाथ्री को अवगत कराना। 
  5. उपचारात्मक मंत्रणा – इसके अन्तर्गत निम्नलिखित प्रक्रियाओं में से कुछ या All प्रक्रियायें आती है : –
    1. सेवाथ्री के साथ संबंध स्थापना 
    2. सेवाथ्री के सम्मुख Singleत्र तथ्यों की व्याख्या व निवर्चन करना। 
    3. सेवाथ्री के साथ क्रियात्मक कार्यक्रम करने की सलाह देना या योजना बनाना 
    4. क्रियात्मक येाजना को लागू करने में सेवाथ्री की सहायता करना 
    5. मंत्रणा या निदान में अन्य मंत्रणादाताओं की Need होने पर सेवाथ्री को अन्य संस्था में संदर्भित करना। संक्षेप में, इस स्तर पर मंत्रणादाता सेवाथ्री के साथ अनुकूलन या पुन:अनुकूलन के लिए कार्य करता है। 
  6. अनुगमन – अनुगमन में मंत्रणादाता सेवाथ्री की किसी नर्इ समस्या या पुरानी समस्या के पुन: उत्पन्न न होने में सहायता करता है। वह सेवाथ्री को प्रदत्त मंत्रणा की प्रभावशीलता को सुनिश्चित करता है। 

2. अनिर्देशित मंत्रणा की प्रक्रिया 

  1. संबंध-स्थापना – यह चरण संपूर्ण मंत्रणा प्रक्रिया का सर्वाधिक महत्वपूर्ण चरण है क्योंकि मंत्रणा की सम्पूर्ण प्रक्रिया इस बात पर निर्भर करती है कि मंत्रणादाता सेवाथ्री के साथ अच्छा संबंध स्थापित कर पाया है या नहीं। मंत्रणादाता का यह दायित्व होता है कि वह Single ऐसे वातावरण का निर्माण करे जिसमें सेवाथ्री स्वयं को मानसिक बंधनों से स्वतंत्र अनुभव करे जिससे वह अपनी समस्याओं के संतोषजनक समाधान प्राप्त कर सके।
  2. समस्या का अन्वेषण – मंत्रणादाता सेवाथ्री के साथ की गर्इ अन्तर्क्रिया के माध्यम से उसकी भावनाओं के संबंध में प्रतिक्रिया करता है। वह सेवाथ्री की नकारात्मक भावनाओं को अपनी शांत स्वीकृति के साथ स्वीकार करता है। वह सेवाथ्री को सहायता प्रदान करता है जिसमें सेवाथ्री अपनी भावनाओं की स्वतंत्र अभिव्यक्ति कर सके। मंत्रणादाता सेवाथ्री की वास्तविक समस्या की पहचान करने में भी सहायता करता है।
  3. समस्या के कारणों का अन्वेषण – जब सेवाथ्री अपनी वास्तविक समस्या की पहचान कर लेता है, तब मंत्रणादाता सेवाथ्री का मार्गदर्शन इस प्राकर करता है जिससे सेवाथ्री समस्या की गहनता समझ कर समस्या के कारणों को पहचान सके।
  4. वैकल्पिक समाधानों की खोज करना – जब सेवाथ्री को समस्या के All पहलुओं व कारणों की अच्छी समझ हो जाती है तब मंत्रणादाता सेवाथ्री की पुन: समायोजन की क्रियाविधि के क्रियान्वयन में सहायता करता है। मंत्रणादाता पूर्व-निर्मित समाधानों को नहीं प्रदान करता बल्कि वह यह प्रयास करता है कि सेवाथ्री स्वयं अपनी समस्या के समाधान खोजे व समायोजन की रणनीतियां विकसित करे। मंत्रणादाता यह सुनिश्चित करता है कि सेवाथ्री स्वयं के लिए सर्वाधिक उपयुक्त रणनीति का चयन करे।
  5. सत्र की समाप्ति – जब मंत्रणादाता Discussion के परिणामों से सन्तुष्ट हो जाता है तब अगला चरण सत्र की समाप्ति का होता है। इस चरण में मंत्रणादाता सेवाथ्री से समस्या के कारणों तथा पुन: समायोजन की रणनीतियों का पुन: अवलोकन करने के लिए कहता है। मंत्रणादाता सेवाथ्री को पुन: आश्वासन तथा प्रोत्साहन प्रदान करता है जिससे सेवाथ्री पुन: समायोजन की रणनीति का प्रयोग प्रभावशाली प्रकार से कर सके। मंत्रणादाता व सेवाथ्री साथ में आपसी Agreeि से भविष्य में भेंट की योजना बनाते है जिससे रणनीति की प्रभावशीलता का मूल्यांकन भली-भांति Reseller जा सके।
  6. अनुगमन – यह मंत्रणा प्रक्रिया का अंतिम चरण होता है।

मंत्रणा का महत्व 

 वैज्ञानिक उन्नति तथा भौतिकवादी दृष्टिकोण का बढ़ता हुआ महत्व इस बात की ओर इंगित करता है कि व्यक्ति आंतरिक तथा बाह्य दोनों प्रकार की समस्याओं से निरंतर उलझता रहेगा तथा पीड़ित होता रहेगा। इस पीड़ा का निराकरण कभी तो अपने प्रयत्नों से कर लेता है, लेकिन कभी-कभी ऐसे अवसर आते हैं जब उसकी समझ में नहीं आता है कि कौन सी दिशा का अनुसरण करे जिससे आंतरिक तथा बाह्य कष्ट को दूर करते हुए सुखमय जीवन व्यतीत कर सके। उसमें अSafty की भावना बढ़ जाती है, आत्मविश्वास कम हो जाता है तथा नैराश्य के लक्षण दिखार्इ देने लगते हैं। ऐसे अवसरों पर जब तक बाह्य सहायता नहीं प्राप्त होती है तब तक व्यक्ति व्याकुल, बेचैन तथा असमंजस की स्थिति में बना रहता है। ऐसे समय में मंत्रणा का महत्व व Need प्रतीत होती है।

मंत्रणा का महत्व आपातकाल, दुर्घटना, जीवनक्षय, अपंगुता, जीवन को संकट में डालने वाली बीमारी तथा रोग, कार्यमुक्ति अथवा नौकरी से निकाल दिया जाना, वैवाहिक संघर्ष तथा इसी प्रकार की अन्य स्थितियां उत्पन्न होने पर समझ में आता है। इसके अतिरिक्त युवकों को उस समय मंत्रणा की Need अधिक होती है जब वे विद्यालय से शिक्षा प्राप्त करने के बाद कार्य जगत में प्रवेश करते हं।ै बाल अपराध तथा दुव्र्यसनी व्यक्तियों के लिए भी ये सेवायें बहुत महत्वपूर्ण व लाभकारी हं।ै इसके अतिरिक्त वृद्धों तथा रोगियों को भी इन सेवाओं से लाभ होता है। उच्च शिक्षा, व्यवसायिक शिक्षा, स्वास्थ्य शिक्षा, सामाजिक शिक्षा के लिए भी मंत्रणा महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। मंत्रणादाता अपना योगदान मुख्य Reseller से निम्न योगों में करता हैं –

  1. शैक्षिक 
  2. वैयक्तिक तथा सामाजिक 
  3. जीवनवृत्ति विकास

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *