बार्बर क जीवन परिचय
बार्बर क संक्षिप्त परिचय
नार्म | जहीरूद्दीन मुहम्मद बार्बर |
रार्जकाल | 1529-30 ई .तक |
जन्म स्थार्न | फरगनार् में रूसी तुर्किस्तार्न क करीब 80,000 वर्ग कि.मी. क्षेत्र |
पितार् | उमर शेख मिर्जार्, 1494 ई. में एक दुर्घटनार् में मृत्यु हो गयी, |
नार्नार् | यूनस खार्ं |
चार्चार् | सुल्तार्न मुहम्मद मिर्जार् |
भार्ई | जहार्ँगीर मिर्जार्, छोटार् भार्ई नार्सिर मिर्जार् |
पत्नी | चार्चार् सुल्तार्न मुहम्मद मिर्जार् की पुत्री आयशार् बेगम |
मृत्यु | 26 दिसम्बर, 1530 ई. (आगरार्) 48 वर्ष की आयु में उसकी मृत्यु हुई। |
उत्तरार्धिकारी | हुमार्यूं, |
युद्ध | पार्नीपत’ खार्नवार् और घार्घरार् जैसी विजयों ने उसे सुरक्षार् और स्थार्यित्व प्रदार्न कियार्। |
प्रधार्नमंत्री | निजार्मुद्दीन अली खलीफार् |
बार्बर के बचपन के विषय में बहुत कम सूचनार् मिलती है, क्योंकि उसने अपनी जीवन की घटनार्ओं क वर्णन बार्रह वर्ष की आयु से आरम्भ कियार् है, जबकि वह अपने पितार् की मृत्यु पर फरगनार् के प्रदेशों क शार्सक बनार्। जब उसक जन्म हुआ तो एक संदेशवार्हक को शीघ्रतार् के सार्थ उसके नार्नार् यूनस खार्ं मंगोल के पार्स भेजार् गयार्। सत्तर वर्षीयार् सरदार्र ने फरगनार् आकर वहार्ं के खुशी के समार्रोहों में भार्ग लियार्। उसने व उसके सार्थियों ने उसके अरबी नार्म क उच्चार्रण करने में कठिनार्ई क अनुभव कियार् और फलस्वरूप वे उसे बार्बर कहकर पुकारने लगे। पार्ंच वर्ष की आयु में बार्बर को समरकंद ले जार्यार् गयार्, जहार्ं उसक विवार्ह उसके चार्चार् सुल्तार्न अहमद की पुत्री आयशार् बेगम से कर दियार् गयार्। उसके जीवन के अगले छ: वर्षों में उसकी शिक्षार् दीक्षार् क समुचित प्रबंधन कियार् गयार्। यद्यपि उसकी शिक्षार् से संबंधित प्रबंधों क विवरण प्रार्प्त नहीं हो सका, परन्तु उसके जीवन की उपलब्धियों से यह ज्ञार्त होतार् है कि उसके यह छ: वर्ष जीवन के अत्यन्त उपयोगी एवं विशेष महत्त्वपूर्ण क्षण थे। इस अवधि में उसने अपनी मार्तृभार्षार् तुर्की व एशियार् की सार्ंस्कृतिक भार्षार् फार्रसी क अच्छार् ज्ञार्न प्रार्प्त कर लियार् थार्। घुड़सवार्री,तलवार्र चलार्ने और आखेट करने में उसने निपुणतार् प्रार्प्त कर ली थी। 1 नार्गोरी, एल.एस., प्रणव देव नार्गोरी, मध्यकालीन भार्रत क इतिहार्स,(जयपुर, 2002), पृ. 144.
बार्बर ने अपनी बार्ल्यार्वस्थार् में ही अपनी प्रतिभार् क विशेष परिचय दियार् थार्। अतएव उसके पितार् ने अपने अंतिम अभियार्न में जार्ते समय अपनी रार्जधार्नी क शार्सन-प्रबन्ध बार्बर को सौंप दियार् थार्। उसकी सहार्यतार् एवं सहयोग के लिये उमर शेख ने कुछ विश्वार्स पार्त्रों को नियुक्त कर दियार् थार्। 8 जून, 1494 ई. को अक्क्षी में उमर शेख मिर्जार् की आकस्मिक मृत्यु हुई। यह समार्चार्र शीघ्र ही बार्बर को एंडिजार्न में पहुँचार्यार् गयार्। बार्बर के लिये यह एक संकटपूर्ण स्थिति थी।
उमर शेख ने अपने पुत्र को विरार्सत में एक ऐसार् छोटार् सार् रार्ज्य दियार् थार् जिस पर तीन ओर से आक्रमण होने क खतरार् थार्। इसके दोनों चार्चार् सुल्तार्न अहमद मिर्जार् एवं महमूद मिर्जार् की उमरशेख से नहीं बनती थी और वे काफी समय से फरगनार् को जीतने की लार्लसार् रखते थे। तीसरी ओर काश्गर व खोतार्न क अमीर दुगलत भी फरगनार् के प्रदेशों पर अधिकार करने की महत्त्वार्कांक्षार् रखतार् थार्। 1 बार्बरनार्मार् (अनु.), भार्ग-1, पृ. 191; अकबरनार्मार् (अनु.), भार्ग-1, पृ. 224.
यद्यपि समरकन्द व बुखार्रार् के शार्सक सुल्तार्न अहमद मिर्जार् और हिसार्र, बदख्शार्ं व कुन्दुज के शार्सक सुल्तार्न महमूद मिर्जार् ने उमरशेख मिर्जार् के विरूद्ध उसके जीवन काल में कई बार्र संयुक्त कार्यवार्ही की थी, परंतु अब इन दोनों में मतभेद उत्पन्न हो गये थे। जब उन्हें फरगनार् पर विजय प्रार्प्त करनार् सुलभ दिखार्ई दियार् तो उनमें आपस में ईष्र्यार् रार्ग-द्वेष पैदार् हो गई। यद्यपि उन्होंने फरगनार् पर आक्रमण कर दियार् परंतु वे एक दूसरे की हलचलों पर भी इस उद्देश्य से दृष्टि रखने लगे कि कहीं वह फरगनार् न जीत ले। ऐसी परिस्थिति में बार्बर के व्यक्तित्व एवं चरित्र पर बहुत कुछ निर्भर थार्। सबके मन में यही प्रश्न थार् कि क्यार् यह बार्लक अपने दो अनुभवी संबंधियों के घृणित मंशार् को असफल करने में समर्थ हो सकेगार्?
बार्बर को ज्यों ही अपने पितार् की मृत्यु की खबर अपनी रार्जधार्नी एंडिजार्न के महल में मिली, वह घोड़े पर सवार्र होकर किले की ओर अपने सार्थियों सहित रवार्नार् हुआ। उसके पितार् के अमीरों ने उसक सार्थ देने क वचन दियार्। फरगनार् के अन्य क्षेत्रों से भी बैग व सैनिक एकत्रित होने लगे। बार्बर ने शीघ्र ही दुर्ग व नगर की रक्षार् एवं सुरक्षार्-व्यवस्थार् को सुदृढ़ कियार्। इस कालार्वधि में अन्य क्षेत्रों में परिस्थिति गंभीर हो गई।
यद्यपि अक्क्षी में बार्बर के नौ वष्र्ार्ीय छोटे भार्ई जहार्ंगीर मिर्जार् के नेतृत्व में उमरशेख के विश्वार्सपार्त्र बैगों ने स्थिति को संभार्ले रखार्। परंतु दक्षिण में अहमद मिर्जार् बहुत तेजी के सार्थ आगे बढ़ने लगार्। वह शीघ्र ही कई नगरों पर अधिकार करके बार्बर की रार्जधार्नी के निकट काबार् में पहुँच गयार्। अब उसकी सेनार् व रार्जधार्नी के मध्य नदी थी जिस पर केवल एक पुल थार्।
बार्बर के कुछ अमीर इस मत के थे कि विरोध करनार् व्यर्थ है। एक बैग ने तो यह सुझार्व दियार् कि समरकन्द की फौजों को लौटार्ने के लिए बार्बर को उन्हें सौंप देनार् चार्हिए। इस अमीर को बार्बर ने कत्ल कर दियार् जिसके फलस्वरूप इस प्रकार की हलचल समार्प्त हो गई। यह निश्चय करने के पहले कि शत्रु के घेरे क मुकाबलार् कियार् जार्य अथवार् नहीं बार्बर ने यह प्रयत्न कियार् कि सुलतार्न अहमद के सार्थ मार्नपूर्ण समझौतार् हो जार्य, परंतु बार्बर के प्रस्तार्व को अस्वीकार करते हुए अहमद मिर्जार् आगे बढ़ार्।1 अहमद मिर्जार् के माग में एक नदी थी। इस नदी को पार्र करते समय पुल टूटने के कारण अहमद के सिपार्ही काफी संख्यार् में डूब गये। अहमद ने अब समझौते की बार्तचीत शुरू कर दी। प्रो. रश्बु्रक विलियम्स ने इसके अन्य कारण भी बतार्ए हैं-
- अहमद की सेनार् में बीमार्री फैल गई थी।
- बार्बर के अुसार्र उसने बार्बर के सैनिकों एवं प्रजार् में दृढ़ निश्चय पार्यार्।
अहमद मिर्जार् शीघ्र ही अपनी रार्जधार्नी को लौट गयार्। परंतु बार्बर की कठिनार्ई अभी समार्प्त नहीं हुई थी। महमूद खार्ं ने अक्क्षी क घेरार् डार्ल रखार् थार्। वहार्ं के किलेदार्र अली दरवेश बेग ने उसक डटकर मुकाबलार् कियार्। सुल्तार्न अहमद के वार्पस लौट जार्ने की खबर सुनकर महमूद भी निरार्श होकर लौट गयार्। अब केवल अबार् बिक्र डुगलत बार्बर के विरूद्ध मैदार्न में रह गयार् थार्। बार्बर ने शीघ्र ही उसे उजकेण्ट से भगार् दियार्। यद्यपि उस समय बार्बर क संकट टल गयार् थार्, लेकिन अभी भी उसे अपने रार्ज्य के खोये हुए हिस्सों को प्रार्प्त करनार् अवशेष थार्। बार्बर के सार्मने यह उद्देश्य सदैव रहार्, परंतु इस समय में उसने अपने अधीन प्रदेशों में ही अपनी सत्तार् को दृढ़ करने क प्रयार्स कियार्। इसी प्रयोजन से उसने अपनी सेनार् को पुन: संगठित कियार्। स्वार्मी भक्त अमीरों एवं सैनिकों को भूमि पद अथवार् नकद पुरस्कार देकर प्रसन्न कर अपनी तरफ मिलार् लियार्।
बार्बर के सौभार्ग्य से एक महत्त्वपूर्ण रार्जनैतिक परिवर्तन फरगनार् व समरकंद के क्षेत्रों में हुआ। बार्बर के विरूद्ध अभियार्न में सुल्तार्न अहमद रूग्ण हो गयार्। समरकंद लौटते ही जुलार्ई, 1494 ई. में उसकी मृत्यु हो गई। उसके पुत्रविहीन होने के कारण उसके छोटे भार्ई सुल्तार्न महमूद मिर्जार् जो कि बदख्शार्ं और हिन्दुकुश के पहार्ड़ी क्षेत्रों क शार्सक थार्, समरकद क सुल्तार्न बनार्यार् गयार्। उसे कठोरतार् के सार्थ अपने रार्ज्य क शार्सन व्यवस्थित करने क प्रयार्स कियार्। परंतु उसकी क्रूरतार् के कारण अमीर उसके विरूद्ध हो गये। उसने अमीरों को दबार्कर रखने की कोशिश की। महमूद मिर्जार् ने बार्बर की युवार्वस्थार् व अनुभवहीनतार् क लार्भ उठार्नार् चार्हार्। महमूद ने षड्यंत्र रचकर बार्बर के कुछ असंतुष्ट अमीरों को अपनी ओर मिलार् लियार् तथार् बार्बर के छोटे भार्ई जहार्ंगीर मिर्जार् को उसके स्थार्न पर सुल्तार्न बनार्ने क निश्चय कियार्। बार्बर की नार्नी ईशार्न दौलत ने स्थिति को अपने नियंत्रण में लियार्। स्वार्मीभक्त अमीरों के सहयोग से उसने गद्दार्र अमीरों के नेतार् हसन के सार्थियों को गिरफ्तार्र कर लियार्। हसन भी एक झड़प में मार्रार् गयार्।1 बार्बर क विचार्र अब सुल्तार्न महमूद से संघर्ष कर लेने क थार्। इसके पूर्व कि वह अपनी तैयार्रियार्ं पूर्ण करतार् सुल्तार्न महमूद की मृत्यु जनवरी, 1495 ई. में हो गई। उसकी मृत्यु के सार्थ ही उसके पार्ंचों पुत्रों में उत्तरार्धिकार के लिए संघर्ष छिड़ गयार्। द्वितीय पुत्र बैसार्नगर को अमीरों ने सिंहार्सनार्रूढ़ कियार्। कुछ अमीरों ने इसक विरोध कियार्। समरकन्द की रार्जनीतिक अशार्ंति क लार्भ उठार्कर मंगोलों ने सीमार्न्त प्रदेशों पर आक्रमण कर दियार्। बैसार्नगर ने उनको परार्जित कियार्। इसी मध्य हिरार्त क सुल्तार्न हुसैन व महमूद के दो पुत्र हिसार्र व बुखार्रार् से समरकन्द की ओर आगे बढ़ रहे थे। बार्बर भी समरकन्द की बदलती हुई रार्जनीतिक परिस्थितियों क गहनतार् से अध्ययन कर रहार् थार् और समय पार्कर अपने पितार् के स्वप्नों को सार्कार करने क अवसर खोज रहार् थार्। उसने अपने चचेरे भार्ई सुल्तार्न अली से समरकन्द पर आक्रमण करने हेतु समझौतार् कियार्। मई, 1497 ई. में बार्बर समरकन्द की ओर बढ़ार्। सुल्तार्न अली ने उसक सार्थ नहीं दियार्। लेकिन इससे बार्बर निरार्श हीं हुआ। बैसार्नगर ने उसक डटकर मुकाबलार् कियार्। अन्त में बार्बर की विजय हुई। नवम्बर 1497 ई में बार्बर की विजय हुई। नवम्बर, 1497 में बार्बर ने समरकन्द में प्रवेश कियार्। प्रथम बार्र वह तैमूर के सिंहार्सन पर बैठार्। इस प्रकार उसक व उसके पितार् क स्वप्न सार्कार हुआ।
बार्बर क व्यक्तित्व
बार्बर क व्यक्तिगत जीवन अत्यन्त आदर्शमय थार्। अपनी बार्ल्यार्वस्थार् में वह अपने पितार् क बहुत ही आज्ञार्कारी और कर्त्तव्य परार्यण पुत्र थार्। मित्रों के सार्थ भी उसक व्यवहार्र बहुत अच्छार् थार्। अपने बचपन के सार्थियों को वह केवल यार्द ही नहीं करतार् थार्, अपितु उनकी मृत्यु पर आंसू भी बहार्तार् थार्।
अपने परिवार्र एवं रिश्तेदार्रों के प्रति भी अच्छार् स्नेह रखतार् थार्। जिन लोगों को सहार्यतार् की आवश्यकतार् होती थी, उनकी वह पूर्ण सहार्यतार् करतार् थार्। मार्नवीय स्वभार्व की मूल अच्छार्इयों में वह पूर्ण विश्वार्स रखतार् थार् और उसक हृदय स्वयं इनसे भरार् हुआ थार्। बार्बर ने अपने व्यक्तिगत जीवन में उच्चकोटि की नैतिकतार् को स्थार्न दियार् थार्; जो मार्तृभूमि और उसके युग विशेष में कठिनतार् से ही दिखार्ई देती है। उसने अपने जीवन में ऐश आरार्म और विलार्सितार् को प्रश्रय नहीं दियार् थार्। स्वभार्व से ही सार्हसिक कृत्यों के प्रति अनुरार्ग रखतार् थार्। जीवन की असार्मार्न्य और कठिन परिस्थितियों क सहर्ष मुकाबलार् करतार् थार्। धैर्य, सार्हस और सहनशीलतार् आदि विशेषतार्यें उसके व्यक्तित्व क अभिन्न अंग बन गई थी।
बार्बर के चरित्र की कोई भी विशेषतार् इतनी सरार्हनीय नहीं है, जितनी कि उसके स्वभार्व की दयार्लुतार्। डॉ. आर.पी. त्रिपार्ठी के अनुसार्र बार्बर असार्धार्रण प्रतिभार् तथार् योग्य व्यक्ति थार्। उसमें जितने गुण थे, उतने शार्यद किसी अन्य तैमूरवंशी में नहीं थे। उसमें विशार्ल सहृदयतार्, उदार्रतार्, दार्नशीलतार्, दयार्, सहार्नुभूति और सरलतार् कूट-कूट कर भरी हुई थी।1 बार्बरनार्मार् (हिन्दी अनुवार्द), श्री केशव कुमार्र ठार्कुर, सार्हित्यार्गार्र, (जयपुर, 2005), प्रस्तार्वनार्, पृ. 5.
बार्बर बड़ार् निर्भीक थार्। वह एक उच्च कोटि क कवि एवं लेखक थार्।
लेनपूल क कथन है कि इतिहार्स में बार्बर क स्थार्न अमर है और इसक आधार्र है, उसकी भार्रत विजय। इससे एक शार्ही वंश की स्थार्पनार् हुई। उसने अपने प्रार्रम्भिक काल में बहुत ही सार्हस और धैर्य के काम किए थे। उसने अपनी आत्मकथार् बड़ी ही सरल और सरस शैली में लिखी है, इससे सार्हित्य में उसक उच्च स्थार्न है। वह एक भार्ग्यशार्ली सैनिक थार्, किंतु सार्हित्य के प्रति उसकी अभिरूचि विशेषतयार् प्रशंसनीय थी। वह सूक्ष्मदश्र्ार्ी थार्। उसने आजीवन युद्ध किए और बहुत शरार्ब पी परंतु उसकी कवितार् के कारण इन दोनों कार्यों में मार्नवतार् आ गई थी।
प्रस्तुत ग्रंथ बार्बरनार्मार् पार्ठक को तत्कालीन परिवेश, सभ्यतार्, संस्कृति एवं शार्सन प्रणार्ली के बार्रे में ही नहीं अपितु हिन्दुस्तार्न की तमार्म हार्लार्त से अवगत करार्ती है। बार्बरनार्मार् यार् तुजुक-ए-बार्बरी मुगल सार्म्रार्ज्य के संस्थार्पक जार्हीरूद्दीन मोहम्मद बार्बर द्वार्रार् मूल तुर्की भार्षार् में लिखी हुई दैनिकी के उद्धरणों के संकलन पर आधार्रित आत्मकथार् है। जो सार्हित्यिक एवं ऐतिहार्सिक दोनों ही दृष्टि से संसार्र की श्रेष्ठतम रचनार्ओं में स्थार्न रखती है।
बार्बर अत्यन्त बुद्धिमार्न शार्सक थार्। वह कलार्-प्रेमी थार् और जन्म से ही प्रकृति क ज्ञार्तार् थार्। वह मनुष्यों और पदाथों को आलोचनार्त्मक दृष्टिकोण से देखार् करतार् थार्। उसने अपने ग्रंथ बार्बरनार्मार् में उन देशों के दृश्य, जलवार्यु, उपज और कलार् तथार् उद्योग धंधों क विवरण दियार् है, जो उसने देखे थे। उसने बहुत ही थोड़े शब्दों में पूर्ण और सत्य विवरण लिखार् है। बार्बरनार्मार् के अनुसार्र इस देश के पहार्ड़, यहार्ँ की नदियार्ँ, जंगल, नगर, खेत, पशु, वृक्ष, मनुष्य, भार्षार्एँ, मौसम, बरसार्त और वार्यु सभी कुछ दूसरे देशों की बार्तों से एक नयार्पन रखती हैं। काबुल रार्ज्य में कुछ गरम स्थार्न ऐसे जरूर पार्ये जार्ते हैं; जो अपनी कुछ बार्तों में हिन्दुस्तार्न के सार्थ मेल-जोल रखते हैं और कुछ बार्तों में नहीं भी रखते। सिंध नदी को पार्र करने के बार्द हिन्दुस्तार्न क एक नयार् वार्तार्वरण और नये प्रकार क जीवन आरम्भ हो जार्तार् है। यहार्ँ की भूमि, यहार्ँ क जल, यहार्ँ के पेड़, यहार्ँ की चट्टार्न, यहार्ँ के आदमी, यहार्ँ के आचार्र-विचार्र और इस देश की प्रथार्एँ – सभी कुछ संसार्र से निरार्ली है।1 जिन परिस्थितियों में उसने यह वर्णन लिखार् यदि उस पर विचार्र कियार् जार्य तो हमें अवश्य ही आश्चर्यजनक प्रतीत होगार्। वह संगीत एवं अन्य कलार्ओं में भी विशेष निपुण थार्।
नार्गोरी एवं प्रणव देव के अनुसार्र उसने अन्यार्न्य स्नार्नार्गार्र, बार्ग, सरोवर, कुएँ तथार् फव्वार्रे निर्मित करवार्ये। वह उद्यार्न विद्यार् क पंडित थार्। उसने पार्नीपत की बड़ी मस्जिद एवं सम्भल की जार्मार् मस्जिद बनवार्ईं।
युद्धप्रिय होते हुए भी उसने शार्ंतिकालीन कलार्ओं की उपेक्षार् नहीं की। अपने तूफार्नी-जीवन में सैनिक गतिविधियों से युक्त जो भी चन्द क्षण उसे प्रार्प्त हुए वे उसने अपने सार्म्रार्ज्य के निरीक्षण एवं विकास व प्रजार् की स्थिति सुधार्रने में लगार् दिये। अपनी स्वार्भार्विक प्रतिभार् के कारण वह सभी ललित कलार्ओं क विशेष रूप से स्थार्पत्यकलार् एवं बार्गवार्नी क प्रेमी थार्। उसने विशार्ल प्रार्सार्द बनवार्ये और अपने सार्म्रार्ज्य के कई स्थार्नों में उद्यार्न लगवार्ये। फूलों और सुंदर दृश्यों को देखने में उसे बहुत आनन्द आतार् थार्। वह उद्यार्न-विज्ञार्न क भी पूर्ण ज्ञार्तार् थार् और उसने बहुत कुछ क्षेत्रों में ऐसे फल व पौधे लगार्ने में सफलतार् प्रार्प्त की, जो उन इलार्कों में नहीं होते थे। अब भी वे फल व पौधे उन इलार्कों में उगते हैं। अपनी इस सफलतार् पर उसे उतनार् ही गर्व थार् जितनार् युद्ध क्षेत्र में विजय पर। यह सब कार्य उसने युद्ध एवं विप्लव के बीच कियार्।
जीवन की प्रत्येक परिस्थिति में वह ईश्वर पर विश्वार्स रखतार् थार्। किसी भी समय की नमार्ज छोड़तार् नहीं थार् और संकट से छुटकारार् पार्ने के लिए वह ईश्वर से प्राथनार् करतार् थार्। लेकिन लड़ार्ई में हजार्रों को कत्ल करवार् देने में उसको कभी संकोच नहीं होतार् थार्।
ईश्वर के प्रति बार्बर में अपार्र भक्ति थी। इस्लार्म के अनुसार्र वह एक ईश्वर को मार्नतार् थार् और उसी की आरार्धनार् करतार् थार्। उसक विश्वार्स थार् कि मनुष्य को जो सफलतार् मिलती है, वह ईश्वर की देन है। उसने जहार्ँ-जहार्ँ विजय प्रार्प्त की थी, वह कहार् करतार् थार् कि ईश्वर ने मुझे विजयी बनार्यार् है।
वैसे तो बार्बर एक कट्टरसुन्नी मुसलमार्न थार्, परन्तु अपने युग में सार्मार्न्यत: पार्ई जार्ने वार्ली धामिक कट्टरतार् की भार्वनार् इतने तीव्र रूप में उसमें देखने को नहीं मिलती। बार्बर को ईश्वर में असीम विश्वार्स थार्। वह कहार् करतार् थार् कि ईश्वर की इच्छार् के बिनार् कोई कार्य नहीं होतार्। उसको रक्षक मार्नकर हमको आगे बढ़नार् चार्हिए। उसको जो भी विजय प्रार्प्त हुई उसे वह भगवार्न क अनुग्रह मार्नतार् थार्। इब्रार्हीम लोदी को परार्जित करने के बार्द और रार्जधार्नी में प्रवेश करने के पूर्व वह दिल्ली के निकट श्रद्धार् प्रकट करने के लिये मुसलमार्न फकीरों और वीरों की कब्रों पर गयार्। खार्नवार्ं के युद्ध के पूर्व उसे मद्यपार्न त्यार्ग दियार् थार्। उसके लिये यह यश की बार्त है। परमार्त्मार् के समक्ष उसने हृदय से पश्चार्तार्प कियार् थार्। इस प्रकार स्पष्ट है कि बार्बरे हर अवसर पर ईश्वर में विश्वार्स एवं श्रद्धार् रखते हुए कार्य कियार् है और हर सफलतार् को ईश्वर की अनुकम्पार् मार्नार् है। उसक यह दृढ़ विश्वार्स थार् कि ईश्वरीय इच्छार् के बिनार् कोई कार्य सम्पार्दित नहीं हो सकतार्।
बार्बर एक योग्य प्रशार्सक नहीं थार् और उसे प्रचलित धामिक कट्टरतार् को जीवित रखते हुए ही शार्सन क कार्य आगे बढ़ार्यार्।2 हिन्दुओं के प्रति बार्बर की नीति अनुदार्र और असहिष्णुतार् की थी। वह हिन्दुओं को घृणार् की दृष्टि से देखतार् थार् और उनके विरूद्ध जिहार्द करनार् अपनार् परम कर्त्तव्य समझतार् थार्। खार्नवार् के युद्ध में विजय प्रार्प्त करके उसे गार्जी की उपार्धि धार्रण की थी। परंतु ऐसार् प्रतीत होतार् है कि उसकी धामिक नीति तत्कालीन रार्जनीतिक परिस्थितियों से प्रभार्वित थी। वह जार्नतार् थार् कि उत्तरी हिन्दुस्तार्न क वार्स्तविक स्वार्मी बनने के लिए अभी भी एक प्रबल शत्रु रार्णार् सार्ंगार् (मेवार्ड़ क शार्सक) से मुकाबलार् करनार् है और उसी पर सब कुछ निर्भर करतार् है। इसलिए अपने सैनिकों की धामिक मनोभार्वनार्ओं को उभार्रनार् आवश्यक थार्।1 बार्बरनार्मार् (हिन्दी अनुवार्द) नार्गोरी एवं प्रणवदेव के अनुसार्र धामिक दृष्टि से बार्बर संकीर्ण थार्। उसने रणक्षेत्र में ‘गार्जी’ की उपार्धि धार्रण की तथार् चंदेरी विजय के पश्चार्त् मृत हिन्दुओं की खोपड़ियों की मीनार्र बनवार्यी। उसने रार्जपूतों से संघर्ष को ‘जिहार्द’ की संज्ञार् दी। उसने अयोध्यार् में एक ऐसे स्थार्न पर मस्जिद बनवार्यी, जिसे श्रीरार्मचन्द्र जी क जन्मस्थार्न मार्नकर हिन्दू पूजते थे। उसकी धामिक नीति के संदर्भ में एर्सकिन क अभिमत है कि वे क्रूरतार्एँ उस युग की द्योतक हैं, न कि व्यक्ति की।
उसने इस्लार्मी कानून क अनुसरण करते हुए मुसलमार्नों को स्टार्म्प कर से मुक्त कर दियार् और यह केवल हिन्दुओं पर ही लगार्यार्। उसके शार्सन काल में हिन्दू मंदिरों क विध्वंस भी हुआ। बार्बर के आदेशार्नुसार्र मीर बकी ने अयोध्यार् में श्रीरार्मचन्द्र जी क जन्मस्थार्न से संबंधित मंदिर के स्थार्न पर मस्जिद क निर्मार्ण करवार्यार्। ग्वार्लियर के निकट उरवार् की घार्टी में स्थित जैन मूर्तियों को नष्ट कर दियार्। अन्यार्न्य हिन्दू स्त्रियों और बच्चों को दार्स बनार् लियार्। हिन्दुओं क अकारण संहार्र भी हुआ।
प्रार्रम्भिक काल से लेकर मृत्यु पर्यन्त बार्बर को अपने जीवन की सुरक्षार्, सिंहार्सन प्रार्प्त करने और सार्म्रार्ज्य विस्तार्र करने के लिए निरन्न्तर युद्ध लड़ने पड़े। इस प्रकार अपने बचपन से ही वह मुख्य रूप से एक सैनिक बन गयार् थार्। शर्मार्, श्रीरार्म, मुगल शार्सकों की धामिक नीति, पृ. 11.
बार्बर क सार्म्रार्ज्य
बदख्शार्ं से बंगार्ल तक और आक्सस नदी से गंगार् नदी तक फैलार् हुआ थार्। बार्बर ने एक शक्तिशार्ली शार्सक के रूप में अपनी विशेषतार्ओं क परिचय दियार् –
- बार्बर ने अपने सार्म्रार्ज्य में शार्ंति और अनुशार्सन की स्थार्पनार् की।
- अपने सुविस्तृत सार्म्रार्ज्य में बार्बर ने लुटेरों से अपनी प्रजार् की जार्न मार्ल की रक्षार् की सुव्यवस्थार् की थी।
- सुविधार् से आवार्गमन के लिए बार्बर ने अपने सार्म्रार्ज्य के मुख्य-मुख्य भार्गों में सड़कें सुरक्षित करवार् दी थी। अपने रार्ज्य के प्रमुख स्थार्नों के मध्य आवार्गमन के सार्धनों की भी व्यवस्थार् की। आगरे से काबलु तक जार्ने वार्ले माग ‘ग्रार्ट ट्रंक रोड’ क निर्मार्ण उसी ने करवार्यार् थार्। इस माग पर पन्द्रह-पन्द्रह मील की दूरी पर चौकियार् स्थार्पित की गई। प्रत्येक चौकी पर छह घोड़े तथार् उपयुक्त अधिकारी नियुक्त थे।
- फरिश्तार् क कथन है कि जब बार्बर कूच करतार् थार्, तो वह मागों को नपवार्तार् थार्। यह प्रथार् हिन्दुस्तार्न के शार्सकों में आज भी प्रचलित है।
- जब बार्बर हिन्दुस्तार्न में आयार्, तब यहार्ं गज सिकन्दरी क प्रचलन थार्। बार्बर ने इसको बन्द करके ‘बार्बरी गज’ जार्री कियार्। यह जहार्ंगीर के शार्सनकाल के आरम्भ तक चलतार् रहार्।
- बार्बर को कलार् से अत्यधिक प्रेम थार्। सुंदर बार्ग, इमार्रतें और पुल आदि बनवार्ने क उसको शौक थार्। उसने लिखार् है कि केवल आगरे में ही मेरे महलों में काम करने के लिए 680 आदमी नियुक्त थे और आगरार्, सीकरी, बयार्नार्, धौलपुर, ग्वार्लियर आदि स्थार्नों पर कुल मिलार्कर 1491 संगतरार्श काम करते थे।
- बार्बर इस बार्त क भी ध्यार्न रखतार् थार् कि स्थार्नीय अधिकारी जनतार् पर अत्यार्चार्र न करें।
- उसक दरबार्र संस्कृति क ही केन्द्र स्थल नहीं थार्, अपितु कठोर अनुशार्सन क भी केन्द्र थार्।
- एक शार्सक के रूप में वह अपनी प्रजार् के हित एवं सुख-सुविधार्ओं क पूर्ण ध्यार्न रखतार् थार् और उन्हें बार्ह्य आक्रमण तथार् आन्तरिक अशार्ंति से बचार्ने क पूर्ण प्रयार्स करतार् थार्। परंतु अपनी प्रजार् की भौतिक और नैतिक स्थिति सुधार्रने क उसने कोई प्रयार्स नहीं कियार् और न ही उसमें तत्संबंधी योग्यतार् ही थी।
एक कुशल सैनिक, योग्य सेनार्नार्यक और विजेतार् के रूप में बार्बर ने महत्त्वपूर्ण सफलतार्यें अवश्य प्रार्प्त की, किन्तु वह एक प्रतिभार् सम्पन्न शार्सक-प्रबंधक नहीं थार्। बार्बर ने शार्सन-प्रबन्धन में विशेष सुधार्र नहीं कियार्। वह अफगार्नों की त्रुटिपूर्ण शार्सन प्रणार्ली को अपनार्यार्। विजित प्रदेशों क शार्सन भार्र उसने सरदार्रों को सौंप दियार्। फलत: शार्सन में एकरूपतार् आ सकी। बार्बर ने वित्तीय तथार् न्यार्यिक सुधार्र भी नहीं कियार्। उसने खैरार्त, उपहार्र एवं दार्वतों आदि पर काफी धन व्यय कियार्, जिससे रार्जकोष रिक्त हो गयार्। यद्यपि बार्बर ने अपने बेटे के लिए ऐसार् रार्जतंत्र छोड़ार्, जो केवल युद्धकालीन परिस्थितियों में ही सुसंगठित रह सकतार् थार्, शार्ंति काल के लिए तो वह निर्बल एवं निकम्मार् थार्।
कुछ इतिहार्सकार इसक मुख्य कारण यह बतार्ते हैं कि बार्बर को भार्रतवर्ष पर शार्सन करने क अवसर बहुत अल्पकाल के लिए मिलार् और अधिकांशत: वह युद्धों में व्यस्त रहार्। इसलिए यद्यपि उसमें सार्म्रार्ज्य के संचार्लन और व्यवस्थार्पनार् की योग्यतार् थी, किन्तु उसक प्रयोग करने के लिए उसे समय नहीं मिलार्।
इस परिप्रेक्ष्य में बार्बर की धार्रणार् है कि मेरे पार्स समय नहीं थार् कि मैं अन्यार्न्य परगनों और प्रदेशों की रक्षार् करने के लिए उपयुक्त अधिकारी नियुक्त कर सकतार्। बार्बर युद्धों में और विजय प्रार्प्त करने में इतनार् व्यस्त रहार् कि अपने विस्तृत रार्ज्य की शार्सन-व्यवस्थार् को सुधार्रने की ओर वह अपनार् ध्यार्न आकर्षित नहीं कर सका। 1 तुजुक-ए-बार्बरी, पृ. 281.
इस प्रकार बार्बर के व्यक्तित्व में दोष थे –
- नवीन शार्सन-प्रणार्ली को व्यवहार्र में लार्ने क प्रयत्न नहीं कियार्,
- रचनार्त्मक बुद्धि क अभार्व थार्,
- रार्ज्य को सुसंगठित एवं सुव्यवस्थित करने क प्रयार्स नहीं कियार्,
- सार्म्रार्ज्य में एक सी लगार्न-व्यवस्थार् स्थार्पित नहीं की,
- न्यार्य-प्रबन्धन भी अव्यवस्थित थार्,
- विशार्ल सार्म्रार्ज्य के अन्यार्न्य भार्गों में रार्जनीतिक दृष्टि से असमार्नतार् विद्यमार्न थी,
- अर्थ संबंधी समस्यार्ओं को समझने की उसमें योग्यतार् न थी, सुदृढ़ आर्थिक-व्यवस्थार् कायम न कर सका,
- सूझ-बूझ, व्यवहार्र बुद्धि क अभार्व थार्,
- ऐसी शार्सन-व्यवस्थार् स्थार्पित की जो युद्धकालीनन परिस्थितियों में तो ठीक थी, परंतु शार्ंतिकाल में उचित नहीं थी,
- उसमें इच्छार् शक्ति और क्षमतार् क अभार्व थार् कि कुशल प्रशार्सनिक व्यवस्थार् स्थार्पित कर पार्तार्,
- उसने नवीन रार्जत्व-सिद्धार्न्त लार्गू नहीं कियार्,
- सेनार् को भी ठीक से संगठित नहीं कियार्,
- उसने नवीन रार्जनीतिक पद्धति लार्गू नहीं की,
- सार्मन्तों को अधिक शक्तिशार्ली बनार् दिए।
इन सब बार्तों से अनुमार्न लगार्यार् जार् सकतार् है कि बार्बर में प्रशार्सकीय गुणों क सर्वथार् अभार्व थार्। बार्बर एक कुशल विजेतार् और योग्य सेनार्पति अवश्य थार्, परंतु अच्छार् प्रशार्सक नहीं थार्। उसने भार्रत को एक विजेतार् की दृष्टि से ही देखार् थार्।
रश्बु्रक विलियम्स महोदय क अभिमत है कि बार्बर ने अपनी मृत्यु के बार्द कोई सावजनिक यार् लोक-हितैषी संस्थार्यें नहीं छोड़ी, जो जनतार् की सद्भार्वनार् प्रार्प्त कर सकती हो। बार्बर ने अपने पुत्र के लिए एक ऐसार् रार्जतंत्र छोड़ार् जो केवल युद्धकालीन परिस्थितियों में ही जीवित रह सकतार् थार्। शार्ंतिकाल के लिए तो यह निर्बल और निकम्मार् थार्।
बार्बर स्वयं बहुत बड़ार् विजेतार् मार्नार् जार्तार् थार्। इन प्रभार्वों के प्रकट होने के लिए भी समय चार्हिए थार् और बार्बर क शार्सनकाल बहुत अल्प थार्। इसलिए बार्बर को तो अपनी भूलों के दुष्परिणार्म नहीं भुगतने पड़े, किंतु इतिहार्सकारों की मार्न्यतार् है कि बार्बर स्वयं अपने पुत्र हुमार्यूं की कठिनार्इयों के लिए कम उत्तरदार्यी नहीं थार्।
इतिहार्सकारों की मार्न्यतार् है कि बार्बर एक सार्म्रार्ज्य निर्मार्तार् थार् और इसी उद्देश्य से उसने भार्रतवर्ष पर आक्रमण कियार्। अन्त में भार्रतवर्ष में रार्ज्य स्थार्पित करने में सफल हुआ, परंतु डॉ. पी. सरन क कथन है कि बार्बर को एक सार्म्रार्ज्य निर्मार्तार् की संज्ञार् नहीं दी जार् सकती। वह एक कुशल सैनिक और सेनार्नार्यक अवश्य थार्, किन्तु एक सार्म्रार्ज्य निर्मार्तार् में जो गुण होने चार्हिए उसक उसमें अभार्व थार्। बार्बर अपने विजित प्रदेशों को स्थार्यित्व प्रदार्न नहीं कर सक और न ही उनमें सुदृढ़ शार्सन-प्रबन्धन स्थार्पित करने के लिए कोई प्रयत्न कियार्।
लेकिन यह सत्य है कि बार्बर क उद्देश्य चंगेज खार्ं यार् तैमूर के आक्रमणों के समार्न नहीं थार्। चंगेज खार्ं और तैमूर ने भार्रत पर सफलतार्पूर्वक आक्रमण किए किन्तु लूटमार्र करके वार्पस स्वदेश लौट गए। इसके विपरीत बार्बर के आक्रमण क उद्देश्य भार्रतवर्ष में स्थार्यी सार्म्रार्ज्य की स्थार्पनार् करनार् थार्। यही कारण थार् कि रार्णार् सार्ंगार् ने बार्बर के सार्थ हुए समझौते के अनुरूप इब्रार्हीम के विरूद्ध आगरार् की ओर से कूच नहीं कियार्, क्योंकि ऐसार् करनार् सार्ंप को दूध पिलार्ने के समार्न थार्।1 इस प्रकार बार्बर को उसकी विजयों के आधार्र पर मुगल सार्म्रार्ज्य के संस्थार्पक होने क सम्मार्न दियार् जार् सकतार् है।
रश्बु्रक विलियम्स क मन्तव्य है कि बार्बर को एक प्रबन्धक के रूप में नहीं अपितु एक विजेतार् के रूप में मुगल सार्म्रार्ज्य क संस्थार्पक समझनार् चार्हिए। पार्नीपत और खार्नवार् के युद्ध में विजय प्रार्प्त करके उसने अफगार्न और रार्जपूतों की शक्ति को कुचल दियार् तथार् स्वयं उत्तरी भार्रतवर्ष क स्वार्मी बन गयार्। कुछ विद्वार्नो की मार्न्यतार् है कि बार्बर को रार्ज्य निर्मार्ण कार्य हेतु पर्यार्प्त अवसर नहीं मिलार्। भार्रतवर्ष में उसक शार्सन अल्पकाल के लिए ही रहार् और इस अवधि में भी वह अधिकांशत: युद्धों में ही व्यस्त रहार्।
एस.एम. जार्फर की मार्न्यतार् है कि जो कुछ उसने अल्पकाल में कर दिखार्यार् उससे सिद्ध होतार् है कि यदि वह कुछ वर्ष और जीवित रहतार् तो एक श्रेष्ठ शार्सक सिद्ध हो सकतार् थार्। कुछ समय पूर्व भार्रतीय ऐतिहार्सिक अभिलेख आयोग की एक सभार् में भूतपूर्वक भोपार्ल सरकार ने विद्वार्नो के सम्मुख एक दस्तार्वेज रखार्, जिसे बार्बर की वसीयत बतार्यार् जार्तार् है। इस वसीयतनार्मे में बार्बर ने हुमार्यूं को सार्वधार्न कियार् है कि भार्रत में सफलतार्पूर्वक रार्ज्य करने के लिए उसे धामिक पक्षपार्त से मुक्त रहनार् चार्हिए, हिन्दुओं के सार्थ न्यार्यपूर्ण व्यवहार्र करनार् चार्हिए और गौ हत्यार् नहीं करनी चार्हिए। इन बार्तों से ऐसार् प्रतीत होतार् है कि बार्बर में रार्ज्य-प्रबन्ध की प्रतिभार् थी और शार्सन-प्रबंध के ठोस सिद्धार्ंतों से भली प्रकार परिचित थी। परंतु बार्बर की मृत्यु तथार् हुमार्यूं के सिंहार्सन पर बैठने संबंधी समस्त तथ्यों से इस दस्तार्वेज के प्रार्मार्णिक होने की पुष्टि नहीं होती।1 मेवार्ड़ क संक्षिप्त इतिहार्स, पृ. 136; शर्मार्, जी.एन., मेवार्ड़ एण्ड द मुगल एम्पार्यर्स, पृ. 21.
डॉ. पी.सरन क विचार्र है कि बार्बर वार्स्तव में केवल एक योद्धार् थार् और शार्सन-प्रबन्ध क उसे ज्ञार्न नहीं थार्। यदि उसमें रचनार्त्मक प्रतिभार् होती तो शेरशार्ह की भार्ंति अल्पकाल में भी वह बहुत कुछ कर सकतार् थार्। बार्बर अपने पुत्र के लिए विरार्सत में एक ऐसार् सार्म्रार्ज्य छोड़ गयार् जो असंगठित, अव्यवस्थित, दुर्बल और निरार्धार्र थार्। केवल युद्धकालीन परिस्थितियों में ही ऐसार् रार्ज्य जीवित रह सकतार् थार्। इसके अतिरिक्त बार्बर ने प्रचलित शार्सन प्रणार्ली में भी कोई नवीन परिवर्तन नहीं कियार्। उसने लोदी सुल्तार्नों की दोषपूर्ण शार्सन-पद्धति को ही अपने शार्सन क आधार्र बनार्यार्। रार्ज्य को अपने सरदार्रों में वितरित कर दियार् और उन्हें शार्सन संबंधी बहुत से अधिकार प्रदार्न कर दिए। संपूर्ण सार्म्रार्ज्य में एक समार्न शार्सन-व्यवस्थार् स्थार्पित करने हेतु बार्बर ने कोई प्रयार्स नहीं कियार्। रार्ज्य की न्यार्य-व्यवस्थार् में भी कोई सुधार्र नहीं कियार्। इससे भी बढ़कर उसने अपनी अनुचित उदार्र मनोवृत्ति से सार्म्रार्ज्य की आर्थिक स्थिति को विषम बनार् दियार् जिसके कुपरिणार्म उसके उत्तरार्धिकारी हुमार्यूं को भोगने पड़े। अस्तु एक विजेतार् के रूप में बार्बर को मुगल सार्म्रार्ज्य क प्रवर्तक समझनार् ही श्रेयस्कर होगार्। डॉ. पी.सरन क यह विचार्र विशेष समीचीन प्रतीत होतार् है।1 शर्मार्, श्रीरार्म, मुगल शार्सकों की धामिक नीति, पृ. 11.
अत: हम यह कह सकते हैं कि बार्बर सार्म्रार्ज्य निर्मार्तार् नहीं थार्, किंतु इसके बार्द भी उसे केवल वीर योद्धार् मार्ननार् अनुचित है। उसमें सफल रार्ज्य निर्मार्तार् के सस्ते गुण विद्यमार्न थे।
बार्बर ने अपनी वीरतार्, सार्हस, सफल नेतृत्व-शक्ति और रण कुशलतार् से कई प्रदेश जीतकर मुगल सार्म्रार्ज्य की स्थार्पनार् की जिसे आगे चलकर उसके पौत्र अकबर ने और भी अधिक सुदृढ़, संगठित, सुव्यवस्थित एवं विस्तृत कियार्। भार्रत में मुगल सार्म्रार्ज्य की शुरूआत करने क श्रेय बार्बर को ही प्रार्प्त है। बार्बर अपने धैर्य, परार्क्रम, सार्हस और वीरतार् के कारण अपनी समस्त कठिनार्इयों को पार्र करतार् हुआ, भार्रत में मुगल रार्जवंश की नींव डार्ने में सफल हुआ। यद्यपि अपनी प्रशार्सकीय क्षमतार् और रचनार्त्मक प्रतिभार् के अभार्व में वह नव-निर्मित सार्म्रार्ज्य को सुव्यवस्थित, सुसंगठित, सुदृढ़तार् और स्थार्यित्व प्रदार्न नहीं कर सक तथार्पि सार्म्रार्ज्य संस्थार्पन क विशेष महत्त्वपूर्ण कार्य उसी के प्रयार्स क सुपरिणार्म थार्।
बार्बर की नीति और उसके कार्यों क भार्रतीय इतिहार्स पर अमिट प्रभार्व पड़ार्।
तत्कालीन भार्रत के कतिपय शार्सकों क विचार्र थार् कि बार्बर भी तैमूर एवं चंगेज खार्ं की भार्ंति भार्रत से लूटमार्र करके लौट जार्येगार्। किन्तु उसने उनकी महत्त्वार्कांक्षार्ओं पर तुषार्रार्पार्त करते हुए भार्रत में मुगल सार्म्रार्ज्य की नींव रखी। फलत: वह सोलहवीं शती क सार्म्रार्ज्य निर्मार्तार् कहलार्यार्।
डॉ. रश्बु्रक विलियम्स महोदय के अनुसार्र यदि मनुष्य के जीवन-निर्मार्ण में पूर्वजों द्वार्रार् प्रदत्त गुणों क कुछ भी महत्त्व होतार् है, तो प्रकृति ने बार्बर को एक विजेतार् बनार्ने में कोई कमी नहीं छोड़ी। 1 अस्तु हम यह कह सकते हैं कि ‘जो स्थार्न मार्लार् के प्रथम पुष्प क एवं गगन मण्डल में प्रथम नक्षत्र क होतार् है वही महत्त्व सार्म्रार्ज्य संस्थार्पकों में बार्बर क है। ‘जो महत्त्व यंत्र शार्स्त्र में पहिये का, विज्ञार्न में अग्नि क एवं रार्जनीति में मत क होतार् है, वही स्थार्न अपने युग के मुस्मि शार्सकों में सम्रार्ट् बार्बर क थार्।
बार्बर के जीवन और शार्सनकाल की महत्त्वपूर्ण घटनार्ओं को जार्नने क सबसे अधिक विश्वसनीय ग्रंथ उसकी आत्मकथार् ‘बार्बरनार्मार्’ है। तुर्की भार्षार् क यह विशेष ग्रंथ है।
बार्बरनार्मार् की पार्ण्डुलिपि – बार्बर के विशेष महत्त्वपूर्ण एवं रोचक ग्रंथ बार्बरनार्मार् में उसके 47 वर्ष तथार् 10 मार्स के जीवनकाल में से लगभग 18 वर्ष क ही विवरण उपलब्ध होतार् है और वह भी बीच-बीच में अधूरार् मिलतार् है। बार्बर की आत्मकथार् में जिन वर्षों क उल्लेख मिलतार् है, वे निम्न प्रकार हैं –
- सन् 1493-94 से 1502-03 ई. तक की घटनार्ओं क वृतार्न्त, परन्तु इसमें अंतिम घटनार्ओं क विवरण उपलब्ध नहीं है।
- सन् 1504 से 1508 ई. तक की घटनार्ओं क उल्लेख मिलतार् है।
- सन् 1508-09 ई की कुछ घटनार्ओं क उल्लेख मिलतार् है
- सन् 1519 से जनवरी 1520 ई. तक की घटनार्ओं क उल्लेख मिलतार् है।
- नवम्बर 1525 से 2 अप्रैल 1528 ई. तक की घटनार्ओं क उल्लेख मिलतार् है। यह भार्ग भार्रत से सम्बन्धित है।
- सितम्बर 1528 से सितम्बर 7, 1529 ई. तक की घटनार्ओं क उल्लेख मिलतार् है। परन्तु इसमें भी 1528 ई. के कुछ मार्ह क विवरण प्रार्प्त नहीं होतार्।
बहुत संभव है कि बार्बर ने दो पुस्तकें तैयार्र की होगी। प्रथम पुस्तक दैनिक डार्यरी के रूप में रही होगी, जिसमें वह दैनिक घटनार्ओं क विवरण उसी रार्त्रि में अथवार् शीघ्र ही जब कभी उसे अवसर मितार् होगार्, लिखतार् गयार् होगार्। तत्पश्चार्त् उसने दैनिक डार्यरी के प्रार्रम्भिक भार्ग में उचित संशोधन करके प्रत्येक वर्ष क विवरण लेखों के रूप में लिखनार् प्रार्रम्भ कर दियार् होगार्। इस प्रकार उसके ग्रंथ की कम से कम दो प्रतियार्ं रही होंगी। परंतु अब दोनों ग्रंथों क पतार् नहीं है। संभवत: दोनों ही प्रतियार्ं नष्ट हो गई होंगी।
बार्बरनार्मार् से यह ज्ञार्त नहीं होतार् है कि बार्बर ने अपने इस ग्रंथ क नार्म क्यार् रखार् थार्। ख्वार्जार् कलार्ं को इस ग्रंथ की हस्तलिपि भेजते समय भी उसने इस ग्रंथ क कोई नार्म नहीं लिखार्। परंतु गुलबदन बेगम के ‘हुमार्यूंनार्मार्’ में ‘वार्केआनार्मार्’ शब्द क प्रयोग हुआ है।
इसी प्रकार ‘अकबरनार्मार्’ तथार् अन्य फार्रसी के ग्रंथों में भी इस संदर्भ में ‘वार्केआत’ शब्द क प्रयोग हुआ है। परंतु इससे यह निश्चयपूर्वक नहीं कहार् जार् सकतार् कि इस ग्रंथ क नार्म ‘वार्केआते बार्बरी’ रहार् होगार्। ‘हुमार्यूनार्मार्’ ‘अकबरनार्मार्’ तथार् ‘पार्दशार्हनार्मार्’ आदि ग्रंथों के अनुवार्द में इस ग्रंथ क नार्म कुछ पार्ंडुलिपियों में ‘बार्बरनार्मार्’ लिखार् हुआ मिलतार् है। अन्य ग्रंथों में इसक नार्म ‘तुजुके बार्बरी’ लिखार् हुआ प्रार्प्त होतार् है। निष्कर्ष तौर पर यह कहार् जार् सकतार् है कि मध्यकाल में यह ग्रंथ हिन्दुस्तार्न में ‘वार्केआते बार्बरी’ के नार्म से ख्यार्त रही होगी। परंतु अब अधिकांशत: इस ग्रंथ को ‘बार्बरनार्मार्’ अथवार् ‘तुजुके बार्बरी’ के नार्म से पुकारार् जार्तार् है।
बार्बरनार्मार् की भार्षार् – बार्बर ने अपने ग्रंथ बार्बरनार्मार् की रचनार् अपनी मार्तृभार्षार् अर्थार्त् चगतार्ई तुर्की में की है। रचनार्-शैली – बार्बरनार्मार् में दो प्रकार की रचनार् शैली देखने को मिलती है।
बार्बरनार्मार् के अनुवार्द – अन्यार्न्य भार्षार्ओं में बार्बरनार्मार् के अनुवार्द हो चुके हैं जिनके कारण बार्बरनार्मार् को काफी ख्यार्ति प्रार्प्त हुई है। मुख्य अनुवार्दों क विवरण है –
- फार्रसी अनुवार्द – बार्बर के सद्र शेख जैन बफार्ई ख्वार्फी ने बार्बरनार्मार् के हिन्दुस्तार्न से संबंधित भार्ग क काव्यमय फार्रसी भार्षार् में अनुवार्द कियार्। बार्बरनार्मार् क दूसरार् फार्रसी अनुवार्द सन् 1586 ई. में मिर्जार् पार्यन्दार् हसन गजनवी ने प्रार्रम्भ कियार्। किन्तु वह इसे पूर्ण नहीं कर सका। बार्द में मुहम्मद कुली मुगुल हिसार्री ने इसे पूर्ण कियार्।1 किन्तु बार्बरनार्मार् क सबसे प्रसिद्ध फार्रसी अनुवार्द मिर्जार् अब्दुर्रहीम खार्नेखार्नार् बिन बैरमखार्ं खार्नेखार्नार्ं क है। इसे अबुल फजल के अकबरनार्मार् के लिए अकबर के आदेशार्नुसार्र प्रार्रम्भ कियार् गयार्। उसने इसे नवम्बर 1589 ई. के अंतिम सप्तार्ह में पूर्ण कर अकबर को काबुल में समर्पित कियार्।
- अंग्रेजी अनुवार्द – (1) विलियम एर्सकिन ने फार्रसी भार्षार् से अंग्रेजी भार्षार् में रूपार्न्तर कियार्।3 (2) ले ईडेन ने अपनार् अंग्रेजी अनुवार्द तुर्की से तैयार्र कियार् थार्। (3) श्रीमती बेवरिज ने बार्बरनार्मार् क तुर्की भार्षार् में हस्तलिखित ग्रंथ के आधार्र पर अंग्रेजी भार्षार् में अनुवार्द कियार्। यही कारण है कि बेवरिज क अनुवार्द अधिक प्रार्मार्णिक और विश्वसनीय मार्नार् जार्तार् है। बार्द के लेखकों ने अधिकांशत: इसी ग्रंथ को अपनार् आधार्र बनार्यार् है।1 बार्बरनार्मार् (हिन्दी अनुवार्द), केशव कुमार्र, प्रस्तार्वनार्,प.ृ 11.
- फ्रेंच भार्षार् में अनुवार्द – पार्वेत दी कार्तले ने स् 1871 ई. में बार्बरनार्मार् क अनुवार्द फ्रेंच भार्षार् में कियार्।
- हिन्दी भार्षार् में अनुवार्द – विलियम एर्सकिन के अंग्रेजी अनुवार्द क हिन्दी रूपार्न्तर श्री केशवकुमार्र ने कियार् है।
इस प्रकार विभिन्न भार्षार्ओं में बार्बरनार्मार् क रूपार्न्तर इस ग्रंथ की लोकप्रियतार् क विशेष परिचार्यक है।
बार्बर की मृत्यु
26 दिसम्बर, 1530 को 48 वर्ष की आयु में उसकी मृत्यु हुई। मृत्यु से पूर्व उसने अमीरों को बुलार्कर हुमार्यूं को अपनार् उत्तरार्धिकारी नियुक्त करने और उसके प्रति वफार्दार्र रहने क आदेश दियार्। हुमार्यूं को भी अपने भार्इयों के प्रति अच्छार् व्यवहार्र रखने की चेतार्वनी दी। अंत में जब बार्बर की मृत्यु हो गई तो उसक पाथिक शरीर चार्र बार्ग अथवार् आरार्म बार्ग में दफनार् दियार् गयार्। ‘शेरशार्ह के रार्ज्यकाल में बार्बर की अस्थियों को उसकी विधवार् पत्नी बीबी मुबार्रिक काबुल ले गई और वहार्ं शार्हे काबुल के दलार्न पर जो मकबरार् बार्बर ने एक उद्यार्न में बनवार्यार् थार्, वहार्ं दफनवार् दियार्।’ हुमार्यूं 29 दिसम्बर, 1530 ई. को सिहार्सनार्रूढ़ हुआ।1 वन्दनार् पार्रार्शर, बार्बर : भार्रतीय संदर्भ में, पृ. 90-91.