परिवेदना क्या है ?

हर संगठन में नियोक्ता, प्रबन्धन व कर्मचारी वर्ग सम्मिलित होता है। इन वर्गों के अन्दर भी गुटवाजी And व्यक्तियों अथवा गुटों में टकराव पाया जाता है। ये अक्सर Single Second के प्रति असंतोष व्यक्त करते रहते हैं तथा Single Second की अवसर पाते ही शिकायत भी करते हैं। उनमें अक्सर मतभेद, लड़ार्इ-झगड़ा तथा तीब्र असंतोष दिखाइर् देता रहता है। कभी नियोक्ता व प्रबन्धक अपने कार्मिको से असंतुष्ट होते हैं तो कभी कर्मचारी विभिन्न मुद्दों पर अपने मालिकों व प्रबन्धकों से। इन्हीं शिकायतों व परस्पर असंतोष की भावना को उद्योग जगत परिवेदना के Reseller में पहचानता है। इन परिवेनाओं का न्यूनतम स्तर औद्योगिक शांति को बढ़ावा देता है, जबकि इनकी अधिकता औद्योगिक परिवेश को अशांति व तनाव की ओर ले जाती है।

परिवाद वास्तविक व काल्पनिक, सच्चे व झूठे दोनोंं प्रकार के हो सकते हैं। ये वैधानिक दृष्टि से उचित व अनुचित भी हो सकते हैं। प्रबन्धन को इन परिवेदनाओं का समुचित संज्ञान लेकर वैधानिक व वास्तविक शिकायतों का त्वरित समाधान ढूँढ़ना चाहिए तथा अवैधानिक अथवा काल्पनिक व झूठी परिवेदनाओं का भंडाफोड़ भी करना चाहिए। ताकि इन परिवेदनाओं व शिकायतों, जो केवल लांछन लगाने व मनमुटाव उत्पन्न कर औद्योगिक वातावरण को बिगाड़ने के उद्देश्य से की जाती हों, से All पक्षों व समाज को अवगत कराया जा सके व उत्पादन पर उसके दुष्प्रभाव को रोका जा सके।

उद्योग में मनमुटाव होने से उत्पादक, उपभोक्ता, कार्मिक, बृहत्तर समाज व राष्ट्र All को हानि उठानी पड़ती है। इससे साधनों का अपव्यय बढ़ता है; औद्योगिक क्रियाकलापों में शिथिलता व ठहराव आ जाता है; अव्यवस्था व अशांति फैलती है; तथा उपादकता का ह्रास होता है। प्रबंधन व कर्मचारियों में सहयोग व समन्वय की बजाय मनमुटाव तथा तनाव घर कर जाता है। दोनों पक्ष Single Second की आलोचना करते हुए दिखार्इ देते हैं, जिससे औद्योगिक इकार्इ व संगठन के उद्देश्यों की प्राप्ति असंभव हो जाती है। अतएव परिवेदनाओं का सम्यक् व त्वरित समाधान अति आवश्यक है।

मोटेतौर पर, ऐसी All लिखित शिकायतें, जो मजदूरी, भुगतान, अधिसमय कार्य, छुट्टी, स्थानांतरण, पदोन्नति, वरिष्ठता, सेवा मुक्ति, सेवा अनुबन्ध के विवेचन, कार्य की दशाओं या किसी फोरमैन, सुपरवाइजर, मशीन व औजार, कैण्टीन And मनोरंजन की सुविधाओं आदि से सम्बन्धित हों, वे All परिवेदना के अन्तर्गत आती हैं। परिवेदना को विभिन्न विद्वानों ने परिभाषित Reseller है :

  1. डेल बीच के विचार से, ‘‘परिवेदना ऐसे असंतोष व अन्याय की भावना है, जो Single व्यक्ति अपने रोजगार की स्थिति में अनुभव करता है और जिसके लिए प्रबन्धक का ध्यान आकृष्ट Reseller जाता है।’’
  2. रिचर्ड पी0 कैल्हून के According, ‘‘ परिवेदना कोर्इ भी ऐसी स्थिति है, जिसे कोर्इ कर्मचारी सोचता या समझता है कि वह गलत है; तथा सामान्यतया उससे कर्मचारी को भावनात्मक व्याकुलता की अनुभूति होती है।’’ 
  3. माइकेल जे0 जूसियस के According, ‘‘परिवेदना किसी प्रकार का असंतोष है, चाहे वह अभिव्यक्त Reseller गया हो अथवा नहीं और चाहे वह वैध हो अथवा नहीं, जिसका सम्बन्ध उसकी कम्पनी से है, तथा जिसके बारे में कर्मचारी सोचता है, विश्वास करता है या सिर्फ अनुभव करता है कि अमुक कार्य अनुचित, अन्यायपूर्ण व असमानता मूलक है।’’ 
  4. पीगर्स And मायर्स ने लिखा है कि ‘‘परिवेदना औपचारिक Reseller से लिखित असंतोष है, जो संगठन की कार्य प्रणाली द्वारा उत्पन्न होता है। शिकायत करने वाला व्यक्ति संगठन के क्रिया कलाप को अनुचित, अन्यायपूर्ण, गलत And असमान समझता है।’’ 

कुछ संगठनों ने भी परिवेदना की परिभाषा की है, जो है :-

  1. राष्ट्रीय श्रम आयोग के According, ‘‘जो शिकायतें Single या अधिक श्रमिकों के मजदूरी भुगतान, अधिनियम, छुटी, स्थानांतरण, पदोन्नति, वरिष्ठता, कार्य सांपै ने, कार्य की दशाओं, रोजगार संविदा के निर्वचन, पदमुक्ति तथा कार्य से निकाले जाने से सम्बन्धित हों, परिवाद की श्रेणी आती हैं। किन्तु जहाँ समस्याएं सामान्य Reseller से लागू होने वाली हों या जो अधिक महत्वपूर्ण हों, वे परिवेदना प्रक्रिया के अन्तर्गत नहीं आयेंगी।’’ 
  2. सोसायटी फॉर एडवांसमेंट ऑफ मैनेजमेन्ट के According, ‘‘परिवेदना किसी कर्मचारी, श्रम संघ या नियोक्ता द्वारा किसी आरोप के Reseller में की गयी औपचारिक शिकायत है, जिसका सम्बन्ध किसी सामूहिक सौदाकारी के संविदा, कम्पनी की नीतियों अथवा अन्य किसी समझौते के उल्लंघन से हो।’’ 

उक्त परिभाषाओं से स्पष्ट होता है कि परिवेदना न केवल कर्मचारियों अपितु नियोक्ता अथवा प्रबन्धन द्वारा भी प्रस्तुत की जा सकती है। परिवादकर्ता द्वारा प्रस्तुत लिखित शिकायत, अपने अधिकारों की मांग तथा उसके लिए प्रदर्शन आदि परिवेदना मानी जा सकती है। किन्तु, वही बात परिवेदना कहलाती है, जो कर्मचारी को गलत अथवा अन्यायपूर्ण प्रतीत होती हो तथा उससे वह परेशान अथवा तनावग्रस्त रहता हो।’’

परिवेदना के तत्व 

  1.  श्रमिकों द्वारा अपने अधिकारों की माँंग; 
  2. श्रमिकों की Safty And कल्याण से सम्बन्धित समस्याएं; तथा; 
  3.  कर्मचारियों की व्यक्तिगत And कार्य सम्बन्धी रूचियाँ And अभिरूचियाँ 

असंतोष, शिकायत And परिवेदना में अन्तर 

पीगर्स And मायर्स ने असंतोष, शिकायत And परिवेदना में अन्तर स्पष्ट करते हुए लिखा है कि वस्तुत: ये परिवेदना के विभिन्न चरण हैं।

  1. असंतोष : कर्मचारी की कार्य के प्रति अथवा कार्य की शर्तों व दशाओं के प्रति अनुभूति है जो वह कार्यस्थल पर अपनी भूमिकाअें के निर्वहन के दौरान अनुभव करता है। कार्य की विभिन्न दशाएं व परिस्थितियाँ, कार्मिक की रूचि अथवा अपेक्षाओं अथवा प्रबन्धकों द्वारा पूर्व में दिए गये आश्वासनों के अनुReseller न होने पर असंतोष उत्पन्न होता है। यह परिवेदना का First चरण है। असंतोष जब तक कर्मचारी के द्वारा अभिव्यक्त नहीं Reseller जाता तब तक वह व्यक्ति-केन्द्रित ही रहता है व उसे व्यक्तिगत असंतोष के Reseller में ही लिया जाता है।
  2. शिकायत : असंतोष की अभिव्यक्ति का साधन है। जब कर्मचारी अपने असंतोष को मौखिक अथवा लिखित Reseller में समुचित Reseller से अधिकारियों व प्रबन्धकों के सम्मुख व्यक्त करता है तो वह शिकायत कहलाती है। शिकायत परिवेदना का द्वितीय चरण है। शिकायत मनगढ़न्त हो सकती है और वास्तविक भी। शिकायत कार्य की अवस्थाओं, व्यवस्थाओं या परिस्थितियों के प्रति हो सकती है तथा किसी व्यक्ति विशेष के प्रति भी।
  3. परिवेदनाएं: अंतिम चरण है। असंतोष की भाँति परिवेदना भी प्रकट अथवा अप्रकट हो सकती है। अप्रकट परिवेदनाओं का निवारण सम्प्रेषण के अभाव में सम्भव नहीं हो पाता, जिससे कर्मचारियों में कार्य असंतोष बढ़ता है व उनका मनोबल गिरता है। परिवेदनाओं का सम्यक् निवारण न होने पर औद्योगिक विवादों का जन्म होता है, जो औद्योगिक शांति के लिए घातक सिद्ध होता है।

अत: ऐसी प्रणाली अथवा व्यवस्था का निर्माण आवश्यक है कि कर्मचारी बिना किसी भय के अपने असंतोष, शिकायत व परिवेदनाओं का समय से प्रकटन कर सकें, ताकि इनका त्वरित समाधान खोजा जा सके।

परिवेदना के कारण 

जब कभी कर्मचारी के हितों And अधिकारों का अतिक्रमण Reseller जाता है, तो वह असंतोष अनुभव करता है और तदनन्तर समुचित ्रReseller से परिवाद प्रस्तुत करता है। साधारणतया परिवेदनाएं कम्पनी की नीतियों, नियमों And व्यवहारों को गलत ढंग से लागू करने के परिणामस्वReseller उत्पन्न होती हैं। अमेरिकी श्रम विभाग ने परिवेदनाओं को दो भागों में बांटा है : –

  1. श्रमिक परिवेदनाएं तथा 
  2. प्रबंधकीय(नियोक्ता) परिवेदनाए।

परिवेदना निवारण प्रक्रिया की Need 

परिवेदना, चाहे वह श्रमिक वर्ग की हो अथवा प्रबन्धन की, उसका त्वरित निवारण होना आवश्यक है, क्योंकि :

  1. अधिकांश परिवेदनाएँ श्रमिकों के मनोबल, उत्पादकता And सहयोग की भावना को कम कर देती है,, जिससे श्रमिक अशांति फैलने का भी खतरा हो सकता हैं। 
  2. परिवेदना निवारण प्रक्रिया प्रशासन के ऊपर Single अंकुश का कार्य करती है और प्रबन्धकों को अविवेकपूर्ण निर्णय लेने से रोकती है। 
  3. कर्मचारियों में निराशा और असंतोष कम करने तथा उनके अधिकारों की रक्षा करने मे परिवेदना निवारण की Single सुनिश्चित प्रणाली And प्रक्रिया होने पर सफलता मिल सकती हैं। 
  4. कर्मचारियों के रोष को कम करने में यह प्रक्रिया Single Safty उपकरण का काम करती है। क्योंकि इस प्रक्रिया से उन्हें न्याय प्राप्त करने का Single वैधानिक रास्ता मिल जाता है। यह प्रक्रिया श्रमिक समस्याओं पर विचार विनिमय का अवसर देती हैं। 
  5. परिवेदना की प्रस्तुति Single ऊध्र्व  सम्प्रेषण है, जिससे शिखर पब्र न्धक कर्मचारियों की निराशाओं, समस्याओं, अपेक्षाओं व कल्याण सम्बन्धी Needओं से परिचित हो जाता है। इससे कम्पनी के विस्तार आदि की योजनाएँ बनाते व नीति निर्धारण के समय श्रमिक वर्ग के हितों का संरक्षण होने की संभावना बढ़ जाती है। 

परिवेदना निवारण क्रियाविधि की पूर्व शर्ते 

परिवेदना निवारण प्िर क्रया की सफलता की पूर्व शर्त हैं, जिन पर ध्यान दिया जाना आवश्यक है:-

  1. परिवेदना निवारण क्रियाविधि सरल And शीघ्र निर्णय लेने वाली होनी चाहिए।
  2. इस क्रिया विधि में कम से कम औपचारिकताएँ हों, व समस्या समाधान की समयावधि निश्चित हो।
  3. सम्पूर्ण प्रणाली को चरणों में विभाजित Reseller जाना चाहिए। प्रत्येक चरण की कार्यवाही पूर्ण करने की समय सीमा निर्धारित की जानी चाहिए।
  4. परिवेदना निवारण क्रिया विधि वास्तव में सामूहिक सौदेबाजी का ही Single Reseller है। अत: इस प्रक्रिया में श्रम संघ And उसके प्रतिनिधियों का सक्रिय सहयोग सुनिश्चित Reseller जाना चाहिए। 
  5. परिवेदना प्रस्तुत करने वाले प्रत्येक व्यक्ति को अपनी समस्या पर विचार विमर्श का पर्याप्त अवसर मिलना चाहिए। उसे यह ज्ञात रहना चाहिए कि परिवेदना प्रणाली के विभिन्न स्तरों पर किस प्रकार कार्यवाही की जा रही है।
  6. निर्णय निष्पक्ष होने चाहिए तथा इसमें परिवेदना निवारण के सिद्धान्तों का पालन Reseller जाना चाहिए।
  7. परिवेदना निवारण क्रिया विधि में All स्तरों पर प्रक्रियाओं And तथ्यों के अभिलेखन की स्पष्ट व सरल प्रणाली होनी चाहिए, ताकि निर्णयों में SingleResellerता रहे व पारदर्शिता बनी रहे।

परिवेदना निवारण प्रक्रिया के प्रमुख तत्व 

  1. परिवेदना निवारण प्रक्रिया का प्रमुख उद्देश्य कर्मचारियों And प्रबन्धकों में अच्छे सम्बन्ध बनाना है। अत: प्रक्रिया तथा प्रचलित नियमों And कानूनों में तालमेल होना चाहिए। 
  2. परिवेदना निवारण प्रक्रिया में लचीलापन होना चाहिए ताकि समय And परिस्थितियों के According उसमें परिवर्तन लाया जा सके। 
  3. परिवेदना प्रक्रिया सरल And All कर्मचारियों के लिए सुगम होनी चाहिए। 
  4. साधारणतया मामले को दो स्तरों से ऊपर नहीं ले जाना चाहिए तथा निर्णय से असन्तोष की दशा में परिवेदनाकर्ता को शिखर प्रबन्धक के पास अपील करने का अधिकार होना चाहिए। 
  5. परिवेदनाएँ प्राप्त करने के लिए Single सक्षम अधिकारी का Appointment होनी चाहिए, ताकि कर्मचारी को यह पता रहे कि परिवेदना किसके पास प्रस्तुत करनी हैं। 
  6. परिवेदना निवारण समिति का आकार यथासंभव छोटा होना चाहिए, जिसमें अधिक से अधिक 4 से 6 सदस्य हो। 
  7. परिवेदना निवारण समिति में प्रबन्धन का प्रतिनिधित्व कम से कम विभागीय स्तर के प्रबन्धकों द्वारा ही Reseller जाना चाहिए। 

परिवेदना निवारण के सिद्धान्त 

माइकेल जे0 ज्यूसियस ने परिवेदना निवारण के समय अपनाए जाने वाले 4 सिद्धान्त बताए हैं।

1.साक्षात्कार का सिद्धान्त –

इस सिद्धान्त के अन्तर्गत यह प्रतिपादित Reseller गया है कि अच्छे औद्योगिक सम्बन्ध बनाए रखने के लिए प्रबन्धकों को चाहिए कि वे कर्मचारियों से यदा कदा बातें पूछते रहें :-

  1. उनका हाल चाल व आराम की स्थिति 
  2. व्यक्तिगत सम्बन्धों का निर्माण And संधारण 
  3. कार्य के प्रति चौकसी And लोच 

साथ ही, प्रबन्धकों को कर्मचारियों से बात करते समय कार्य करने चाहिए :-

  1. कर्मचारियों से अनौपचारिक ढंग से बात करना। 
  2. कर्मचारियों की भावनाओं को समझना And उन्हें सद्भाव से सुनना। 
  3. समस्याओं को सही ढंग से समझना And समझाना। 
  4. बात के लिए सुविधाजनक वातावरण का निर्माण करना। 
  5. उनकी बात का भावार्थ समझने का यत्न करना। 
  6. बातचीत का निष्कर्ष निकालना। 
  7. महत्वपूर्ण बातों को लेखबद्ध करना। 

2. कर्मचारियों के प्रति प्रबन्धकों की मनोवृत्ति का सिद्धान्त –

प्रबन्धकों को कर्मचारियों के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण रखना चाहिए। किसी भी परिस्थिति में पूर्वाग्रह या पक्षपात से काम नहीं लेना चाहिए। प्रबन्धक को अपनी बुद्धि का प्रयोग करते हुए शिकायत का औचित्य निर्धारण करना चाहिए तथा निर्णय काफी सोच समझकर विवेकपूर्ण ढंग से करना चाहिए। Single भी गलत निर्णय प्रबन्धन की प्रतिष्ठा And विश्वसनीयता को हानि पहुँचा सकता है। प्रबन्धकों को कर्मचारियों की परिवेदना सुनने में रूचि दिखानी चाहिए। उनके प्रति सद्भावना का परिचय देना चाहिए। परन्तु यह भी ध्यान रहे कि झूठी शिकायतों व मनगढ़न्त बातों पर आसानी से विश्वास न करके उनकी जाँच करायी जाए। तभी यह प्रतिष्ठान के सर्वोत्तम हित में रहेगा।

3. प्रबन्धकों के उत्तरदायित्व का सिद्धान्त –

कर्मचारियों की परिवेदनाओं के प्रति उचित अथवा अनुचित निर्णय के लिए प्रबन्धकों का उत्तरदायित्व होता है। कर्मचारियों को यह पूर्ण विश्वास होना चाहिए कि प्रबन्धक उनके लिए अहितकारी कदम कभी नहीं उठाएँगें। प्रबन्धकों में कर्मचारियों का यह सद्विश्वास ही औद्योगिक शांति को प्रोत्साहन देता है। अत: प्रबन्धकों का यह दायित्व है कि वे कर्मचारियों में अपनी विश्वसनीयता कायम करें।

4. दीर्घकालीन सिद्धान्त –

किसी भी निर्णय से First प्रबन्धकों को संगठन के दीर्घकालीन हितों को ध्यान में रखना चाहिए। कर्इ बार कर्मचारियों की तात्कालिक प्रसन्नता को ध्यान में रखकर लिए गये निर्णयों से दीर्घ काल में संगठन को अत्यधिक हानि उठानी पड़ सकती है, जिससे न केवल गलत परम्परा स्थापित होगी, वरन् कर्मचारियों का भी दीर्घकालीन हित प्रभावित होगा। इस प्रकार, यह ध्यान रखना चाहिए कि परिवेदना निवारण का अंतिम उद्देश्य औद्योगिक शांति को प्रोत्साहन देना है। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए उचित सम्प्रेषण प्रणाली का उपयोग, कर्मचारियों से निरन्तर संपर्क And अनौपचारिक वार्तालाप, शिकायतों को सद्भाव पूर्वक सुनना व उनके औचित्य का पक्षपात And पूर्वाग्रहरहित निर्धारण तथा संगठन के दीर्घकालीन हितों को ध्यान में रखते हुए उचित निर्णय लेना आवश्यक है।

श्रम संघ वाले संगठन में परिवेदना निवारण प्रक्रिया 

  1. First चरण (पर्यवेक्षकीय स्तर) में तीन व्यक्ति होते हैं – कर्मचारी, पर्यवेक्षक तथा श्रम सघ का प्रतिनिधि। परिवेदना मौखिक या लिखित Reseller में प्रस्तुत की जाती है। यदि पर्यवेक्षक चतुर, बुद्धिमान व समस्या निवारण में कुशल हो तो अधिकांश परिवेदनाओं का निवारण तत्काल Reseller जा सकता है। 
  2. द्वितीय चरण (विभागीय प्रबन्धक स्तर) में उच्चस्तरीय अधिकारी, मुख्य व्यावसायिक प्रतिनिधि, अधीक्षक, औद्योगिक सम्बन्ध अधिकारी या कार्मिक प्रबन्धक हो सकता है। First चरण में परिवेदना निवारण न हो सकने पर पर्यवेक्षक द्वारा परिवेदना लिखित Reseller में उच्चस्तरीय अधिकारी के पास भेजी जाती है। यह अधिकारी अपने स्तर से परिवेदना का निवारण करने में कर्इ बार सफल हो जाता है।
  3. तृतीय चरण (समिति स्तर) – द्वितीय स्तर पर असफलता मिलने पर परिवेदना को परिवेदना समिति के पास भेजा जाता है। इस समिति में नियोक्ता व श्रम संघ दोनों के प्रतिनिधि होते हैं। परिवेदना लिखित Reseller में प्रस्तुत की जाती है तथा उसका निवारण करने की यह समिति पूरी चेष्टा करती है। 
  4. चतुर्थ चरण (शीर्ष प्रबन्धन स्तर) – समिति स्तर पर परिवेदना का संतोषजनक निवारण न होने पर उसे शिखर प्रबन्धक के सुपुर्द कर दिया जाता है।
  5. पंचम चरण (पंच निर्णय) – चतुर्थ चरण में संतोषजनक समाधान न हो पाने पर अंतिम Reseller से परिवेदना को Single स्वतंत्र व निष्पक्ष व्यक्ति को पंच निर्णय के लिए सांपै दी जाती है। इस स्तर पर सरकार भी नियमानुसार हस्तक्षेप कर सकती है। पंच निर्णय को दोनों पक्षों को मानना पड़ता है। 

भारत में परिवेदना निवारण प्रक्रिया 

Indian Customer श्रम सम्मेलन (1928) मेंं परिवेदना निवारण के लिए त्रिपक्षीय व्यवस्था अपनायी गयी, जो इस प्रकार है :-

  1. प्रबन्धक तथा श्रम संघ मिलकर आपसी समझौते के आधार पर Single ऐसी परिवेदना निवारण क्रिया विधि निश्चित करेंगे, जिससे समस्या निवारण की दशा में सम्पूर्ण जाँच पड़ताल तथा शीघ्र निर्णय संभव हो सके। 
  2. वे दोनों पक्ष किसी Singleतरफा निर्णय पर नहीं पहुँचेगें। 

वे परिवेदना निवारण प्रक्रिया का पूर्ण पालन करेंगे। सम्मेलन में Single परिवेदना समिति के गठन का सुझाव दिया गया था। इस समिति क गठन  होगा :

  1. इस समिति में 4 से 6 सदस्य होंगे। 
  2. इस समिति का गठन प्रत्येक उद्योग के लिए Reseller जाएगा। 
  3. जहाँ श्रम संघ को मान्यता दी गयी हो, वहाँ प्रबन्धन के 2 प्रतिनिधि, श्रम संघ का Single प्रतिनिधि, तथा परिवेदना से सम्बन्धित विभाग का Single प्रतिनिधि समिति में होना चाहिए। 
  4. जहाँ श्रम संघ की मान्यता न हो, वहाँ संघ के प्रतिनिधि के स्थान पर कर्मचारी कार्य समिति का Single सदस्य रखा जाता है।
  5. प्रबन्धकीय प्रतिनिधि सम्बन्धित विभाग का अध्यक्ष होना चाहिए। परिवेदना निवारण प्रक्रिया में दैनिक परिवेदनाओं को सुलझाने के लिए सामूहिक समझौता प्रणाली का उपयोग Reseller जाता है। इस प्रक्रिया के तीन भाग होते है : 
  1. विभागीय प्रतिनिधि 
  2. परिवेदना समिति या कार्य समिति 
  3. पंच निर्णय 

उपरोक्त प्रक्रिया सेवा मुक्ति या निष्कासन के परिवाद में लागू नहीं होती। ऐसी अवस्था में निष्कासन करने वाले अधिकारी के पास निष्कासन आदेश निकलने के Single सप्ताह की अवधि में अपील की जा सकती है।

आदर्श परिवेदना निवारण प्रक्रिया 

आदर्श परिवेदना निवारण प्रक्रिया की व्यवस्था All श्रमिकों की परिवेदनाओं के सम्यक निवारण के द्वारा उन्हें न्याय दिलाने की दृष्टि से अपनायी जा सकती है। इसके अन्तर्गत प्रत्येक इकार्इ में यह व्यवस्था की जाती है कि Single परिवेदना निवारण मशीन ही कायम की जाये। इस मशीनरी का गठन करने के लिए प्रत्येक विभाग (यदि विभाग छोटा हो तो विभागों के Single समूह से प्रतिनिधि चयन कर भेजे जाते हैं। प्रत्येक पारी के लिए अलग-अलग प्रतिनिधि होते हैं। ये प्रतिनिधि कम से कम Single वर्ष की अवधि के लिए कार्य करते हैं। यदि किसी संघ द्वारा सर्वसम्मति से चुने गये प्रतिनिधियों की सूची प्रबन्धकों को दे दी जाती है, तो चयन करने की Need नहीं पड़ती। दो या तीन विभागीय श्रम प्रतिनिधि And दो या तीन विभागाध्यक्ष मिलकर परिवेदना निवारण समिति करते हैं। प्रबन्धन की ओर से प्रत्येक विभाग में मनोनीत सदस्य के पास First कोर्इ विवाद प्रस्तुत Reseller जाता है। बाद में यह परिवाद विभागीय अध्यक्षों के पास प्रस्तुत Reseller जाता है। सेवा मुक्ति आदि मामलों में अपील के लिए प्रबन्धक द्वारा सक्षम अधिकारी का मनोनयन कर दिया जाता है। परिवेदना प्रक्रिया And निर्णय को लागू करने की प्रक्रिया इस प्रकार चलती है :

परिवाद निर्णय की दिशा निर्णय पालन की दिशा

शीर्ष प्रबन्धक

शीर्ष प्रबन्धक

अधीक्षक

अधीक्षक
 ↓

पर्यवेक्षक

पर्यवेक्षक

श्रमिक

 श्रमिक

परिवेदना निवारण प्रक्रिया –

  1. Single असन्तुष्ट कर्मचारी First अपनी परिवेदना निकटस्थ सक्षम अधिकारी को मौखिक Reseller से प्रस्तुत करेगा। यह अधिकारी 48 घंटे में अपना प्रत्युत्तर देगा। 
  2. प्रत्युत्तर से असंतुष्ट होने या निर्धारित अवधि में उत्तर प्राप्त न होने पर वह या तो व्यक्तिगत Reseller से या फिर अपने संघ के प्रतिनिधि के माध्यम से परिवेदना को संबंधित विभागाध्यक्ष के सम्मुख प्रस्तुत करेगा। (इस कार्य के लिए विभाग में दिन व समय निश्चित किये जाएँ, जब कि कर्मचारी अपना परिवाद प्रस्तुत कर सके।) विभागीय अध्यक्ष अपना निर्णय परिवेदना प्राप्त होने के तीन दिन बाद देगा। यदि निर्धारित अवधि में निर्णय न दे सकेगा तो उसका कारण स्पष्ट करेगा। 
  3. विभागीय अध्यक्ष से सअन्तुष्ट रहने पर परिवाद कर्ता अपनी परिवेदना को परिवेदना समिति के पास अगे्िर “ात करने की पा्र थर्न ा कर सकता है। पा्र थर्न ा पत्र प्राप्त होने से 7 दिन की अवधि में यह समिति अपनी सिफारिशें प्रबन्धन को भेज देगी। इस अवधि में सिफारिश न कर पाने पर परिवेदना समिति कारण स्पष्ट करेगी। परिवेदना समिति की सिफारिशें प्रबन्धकों द्वारा निर्विवाद Reseller से लागू की जाएंगी; यदि समिति के सदस्यों में मतभेद होगा तो All सम्बन्धित सूचनाएँ व आलेख प्रबन्धक के सामने रखे जाएँगे, जिसका निर्णय अंतिम होगा व इस निर्णय को तीन दिन में सम्प्रेषित कर दिया जाएगा। 
  4. यदि प्रबन्धक निर्धारित अवधि में अपना निर्णय न दे सके अथवा निर्णय असंतोषजनक हो तो श्रमिक इसके पुनरावलोकन हेतु निवेदन कर सकता है। इस प्रकार की अपील के समय संघ के प्िर तनिधि भी भाग ले सकते हैं। पब्र न्धकों की ओर से इस पुनरावलोकन अपील पर Single सप्ताह में निर्णय देने की व्यवस्था है। 
  5. उक्त निर्णय पर अAgreeि होने पर श्रम संघ And प्रबन्धक मिलकर मामले के ऐच्छिक पंच निर्णय के लिए भेज सकते हैं। यह अग्रप्रेषण प्रबन्धक के निर्णय के उपरान्त 7 दिन की अवधि में ही Reseller जा सकता है। 
  6. Single परिवेदना उस समय विवाद बन जाती है, जब परिवेदना निवारण की दृष्टि से प्रबन्धक द्वारा दिया गया अन्तिम निर्णय भी श्रमिक को मान्य न हो। बिन्दु 1 से 5 तक श्रमिक द्वारा की गयी कार्यवाही में समझौता संयंत्र तब तक किसी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं करेगी, जब तक कि All साधनों का उपयोग करने पर भी समाधान प्राप्त न हो सका हो।
  7. यदि प्रबन्धक द्वारा लिए गये किसी निर्णय के फलस्वReseller कोर्इ परिवेदना उत्पन्न होती है तो First श्रमिक आदेश का पालन करेगा, तत्बाद परिवेदना प्रस्तुत कर सकेगा। यदि आदेश निकलने तथा लागू होने में कुछ अन्तर है तो परिवेदना तुरन्त प्रस्तुत की जा सकेगी, परन्तु श्रमिक को फिर भी आदेश का पालन करना पड़ेगा। प्रबन्धक को सलाह दी जाती है कि वह परिवेदना निवारण प्रक्रिया में प्राप्त मामले के All तथ्यों पर पूरा विचार कर ही निर्णय दे।
  8. परिवेदना समिति में श्रमिक प्रतिनिधि मामले की जाँच पड़ताल से सम्बन्धित किसी भी दस्तावेज का अवलोकन कर सकता है। किन्तु प्रबन्धकीय प्रतिनिधि ऐसी सूचना या प्रमाण उपलब्ध कराने से मना कर सकता है, जिसे वह गोपनीय समझता हो। ऐसे गोपनीय प्रमाणों का प्रयोग परिवेदना प्रक्रिया के अन्तर्गत श्रमिक के विरूद्ध नहीं Reseller जाएगा। 
  9. Single चरण से Second चरण पर अपील करते समय समयावधि का ध्यान अवश्य रखा जाना चाहिए।इस उद्देश्य से श्रमिक निर्णय प्राप्त करने के उपरांत या निश्चित अवधि में निर्णय नहीं प्राप्त होने पर 72 घंटों में उच्च चरण पर अपील कर सकता है। 
  10. अपील का समय निर्धारित करने में किसी भी स्तर पर छुट्ठी का दिन शामिल नहीं Reseller जाएगा। 
  11. प्रबन्धन परिवेदना प्रक्रिया के संचालन हेतु लिपिकीय व अन्य कर्मचारियों की व्यवस्था करेंगे।परिवेदना निवारण प्रक्रिया के अन्तर्गत बुलाए जाने पर यदि श्रमिक को कार्य छोड़ कर जाना पड़े तो उसे अपने अधिकारी से पूर्व अनुमति प्राप्त करना आवश्यक होगा। इस प्रक्रिया में श्रमिक को किसी प्रकार की हानि नहीं होगी। 
  12. यदि किसी ऐसे व्यक्ति के खिलाफ परिवेदना प्रस्तुत की गयी हो, जो परिवेदना निवारण प्रक्रिया का हिस्सा हो, तो श्रमिक अपना मामला विभागीय अध्यक्ष के पास ले जा सकता है।
  13. निष्कासन या पदमुक्ति के प्रबन्धकीय निर्णय के विरूद्ध दायर परिवेदना के मामले में उपर्युक्त प्रक्रिया लागू नहीं होगी। उस दशा में प्रभावित श्रमिक स्वयं को पदमुक्त करने वाले अधिकारी या प्रबन्धक द्वारा मनोनीत किसी वरिष्ठ अधिकारी के समक्ष अपील कर सकता है। यह अपील आदेश प्राप्ति के Single सप्ताह के अन्दर हो जाना चाहिए। अपील की सुनवार्इ के समय श्रमिक यदि चाहे तो किसी सहयोगी या श्रम संघ के प्रतिनिधि को अपने साथ रख सकता है।

व्यवस्थित परिवेदना निवारण प्रक्रिया के लाभ 

संस्थान में व्यवस्थित परिवेदना निवारण प्रणाली के उपलब्ध होने से सामान्य असंतोष बड़े विवाद का Reseller नहीं ले पाते। सुनियोजित परिवेदना प्रक्रिया के लाभ है :-

  1. इससे प्रत्येक कर्मचारी को यह संज्ञान रहता है कि किस व्यवस्थित श्रंख्ृ ाला का अनुगमन कर वह अपनी परिवेदना वैधानिक Reseller से व्यक्त सकता है। 
  2. पूर्व निर्धारित प्रक्रिया को अपनाकर किसी भी परिवेदना को ठीक से समझा व उसका निपटारा Reseller जा सकता है। 
  3.  यह ऐसा उपकरण तैयार करता है जिससे कर्मचारी अपनी भावनाओं को प्रस्तुत कर सकता हैं।
  4. यह प्रणाली परिवेदनाएँ सुलझाने के Single प्रमुख साधन के Reseller में काम करतीहै। 
  5. श्रम संघ And प्रबन्ध के बीच अच्छे सम्न्ध बनाए रखने तथा कर्इ प्रकार की समस्याओं का हल निकालने के लिए यह Single अच्छा माध्यम हो सकता है।
  6. कर्मचारी की परिवेदना पर त्वरित कार्यवाही होने से उसे संतोष मिलता है तथा औद्योगिक शांति को बढ़ावा मिलता है।
  7. इस प्रणाली में सम्प्रेषण का माध्यम के Reseller में उपयोग होता है।
  8. व्यवस्थित प्रणाली होने से परिवेदना सुलझाने में SingleResellerता बनी रहती है। 
  9. श्रमिक वर्ग को अपनी परिवेदना व शिकायत के न्यायपूर्ण निस्तारण का विश्वास उत्पन्न हो जाता है।
  10. व्यवस्थित प्रणाली होने पर हर कार्य नियमानुसार होता है। अत: निर्णय अधिक विश्वसनीय हो जाते है। 
  11. परिवेदना निवारण की व्यवस्थित प्रणाली होने पर इस प्रक्रिया में कोर्इ व्यक्तिगत वैमनस्य उत्पन्न नहीं होता। 

इस प्रकार व्यवस्थित परिवेदना निवारण क्रियाविधि से औद्योगिक विवादों व श्रमिकों की शिकायतों का त्वरित समाधान हो जाने से औद्योगिक माहौल में सुधार होता है, जोकि उत्पादकता को बढ़ावा देने वाला साबित होता है।

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