नारीवाद क्या है ?

नारीवाद Single बौद्धिक, दार्शनिक और राजनीतिक सम्वाद श्रंखला है जिसक केन्द्र में महिलाओं के लिए समान अधिकार और कानूनी संरक्षण का विचार निहित होता है। नारीवाद की संकल्पना में विभिन्न आन्दोलन, सिद्धान्त, दर्शन आदि समाहित होते है । जो लैिगक असमानता, नारी अधिकार और नारी हितों से संबद्ध होते है । पाश्चात्य नारीवादी विद्वान मैगी हॅुंम्म और रिबेका वालकर के According नारीवादी History को तीन कालखण्डों में बांटा जा सकता है। पहला कालखण्ड 19वी सदी से 20वी सदी के प्रारंभ तक । दूसरा कालखण्ड 1960 से 1970 तक तथा तीसरा कालखण्ड 1990 से वर्तमान तक। नारीवाद के History का उदय इन तीनों कालखण्डों के दौरान हुये नारीवादी आन्दोलनों से हुआ है । हम प्रधान Reseller से यहा ं20वी सदी में नारीवाद And नारी आन्दोलन की Discussion करेंगे ।

20वी सदी का प्रभातकाल नारी में आये जबरदस्त परिवर्तन का साक्षी रहा है । इस परिवर्तन ने समाज में नारी की स्थिति को घरेलु वातारण से लेकर सार्वजनिक जीवन तक के समस्त पहलुओं को प्रभावित Reseller । नारीवादी आन्दोलन की समान अधिकारों के प्रति वकालत, नारीवादी संस्थाओं, नर्इ पीढ़ी के कलाकारों, नारीवादी बुद्धिजीवियों तथा कामकाजी महिलाओं ने सम्पूर्ण विश्व की परंपरागत समाजिक संCreation को Resellerांतरित कर दिया । First महाFight के पश्चात का काल महिलाओं के लिए Single नर्इ सुबह लेकर आया । इस काल में महिलायें Single महान कार्यबल के Reseller में उभरकर सामने आर्इ, जिसने पुरूष प्रधान वैश्विक आर्थिक ढांचे को हिलाकर रख दिया । यह वह काल था जिसमें घर व समाज में नारी की भूमिका में क्रान्तिकारी बदलाव आये । इसके पूर्व 19वी सदी के अंत में पश्चिमी विश्व में अनेक नारीवादी आन्दोलन हुये जो कि महिलाओं के लिए राजनीतिक अधिकारों की मांग कर रहें थे । यह आन्दोलन विशेष कर अमेरिका और इंग्लैण्ड में हुये ।

20वी सदी में पश्चिम के नारीवादी आन्दोलनों के बीच सर्वाधिक महत्वपूर्ण आन्दोलन अमेरिका में हुये इन आन्दोलनों ने ही आधुनिक युग में कमोवेश सम्पूर्ण विश्व की महिलाओं को प्रभावित Reseller और इन आन्दोलनों से प्रेरित होकर अन्य महिला आन्दोलन प्रारंभ हुये । अमेरिका में आन्दोलन वास्तव में समाजिक – राजनीतिक आन्दोलन था जो समाज में नारी की समानता को स्थापित करने का प्रयास कर रहा था । 20वी सदी के First दो दशकों के दौरान नारीवादियों का मुख्य लक्ष्य महिलाओं के लिये मताधिकार प्राप्त करने का था और वह इसमें सफल भी रहा। 1920 में अमेरिका के संविधान में संशोधन करके महिला मताधिकार को Windows Hosting Reseller गया। 20वी सदी के उत्रार्द्ध में महिलाओं के लिए समान अधिकारों हेतु संघर्ष चलाया गया। यह संघर्ष तुलनात्मक Reseller से लम्बा चला और यद्यपि 1970 तक श्समान अधिकार संशोधनश् को संवैधानिक स्वीकृति नहीं मिल पायी तथापि यह आन्दोलन पश्चातवर्ती नारीवादियों के लिए प्रेरणास्त्रोत बना रहा और इसने राष्ट्र का ध्यान अपनी ओर खिंचा।

1917 से 1960 तक कालखण्ड दो महायुद्वों के साथ-साथ आर्थिक तेजी का दौर था । जिसने विश्व के अनेक देशों की महिलाओं को कार्य स्थल पर जाने के लिए प्रेरित Reseller । इसका प्रभाव यह हुआ कि इन कार्यस्थलों पर कामकाज करनेवाली महिलाओं में अपने असमान समाजिक और आर्थिक अधिकारों के प्रति सजगता बढ़ी । 1960 के नागरिक अधिकार आन्दोलन And छात्र आन्दोलनों के लक्ष्य अलग-अलग थे किन्तु इन्होने के अप्रत्यक्ष Reseller से महिलाओं को अपने अधिकारों के लिये लड़ार्इ लड़ने के प्रेरित Reseller। 1966 में राष्ट्रीय महिला संगठन (National Organization For Women) की स्थापना की गर्इ । यह First ऐसी संस्था थी जो अधिकृत Reseller से महिलाओं से संबंधित मुद्दों का प्रतिनिधित्व करती थी । इस संस्था के पश्चात अन्य संस्थायें जैसे राष्ट्रीय गर्भपात And प्रजनन अधिकार लीग (National Abortion & Reproductive Rights Action League), नारी समानता लीग (Women’s Equity Action League), महिला रोजगार संगठन (Women Organization For Employment) आदि संस्थायें अस्तित्व में आर्इ जिन्होने ने अमेरिकी समाज का महिलाओं की समस्याओं के प्रति ध्यान आकर्षित Reseller । नारीवादी नेता जैसे फ्रेडन, बेला एब्जग, शिर्ले किसॉल्म, और ग्लोरिया स्टीनेम आदि के सतत प्रयासों के बाद आखिरकार 1975 में राष्ट्रपति गेराल्ड फोर्ड के समक्ष महिला एजेण्डा (Women Agenda) प्रस्तुत Reseller गया । 1977 में नारीवादियों ने हॉस्टन नगर में Single राष्ट्रीय सम्मेलन बुलाया और महिलाओं से संबंधित मुद्दों के समाधान के लिए Single कार्य योजना तैयार की ।

1980 के दशक में नारीवादी आन्दोलन को अमेरिका And पाश्चात्व विश्व में कुछ अन्तरविरोधों का सामना करना पड़ा। नारीवादी आन्दोलन पर श्पाश्चात्य श्वेत महिलाओं के प्रभुत्वश् के लिए इसकी आलोचना की गर्इ । इसकी असफलता के लिये इसके उच्चवर्गीय स्वReseller और गरीब अफ्रो-अमेरिकन, हिस्पेनिक महिलाओं की अवहेलना को उत्तरदायी ठहराया गया। लेकिन अनेक विरोधाभासों के बावजूद नारीवादी आन्दोलन पश्चिमी देशों में Single प्रधान राजनैतिक घटना क्रम बना रहा। 1990 के दशक के बाद निश्चित Reseller से यह कहा जा सकता है कि समाज में नारी की स्थिति में विज्ञान, राजनीति, लेखन कला, मनोरंजन आदि के क्षेत्र में क्रान्तिकारी परिवर्तन आयें है और पश्चिम की महिलाओं ने अपने आपको फिर से परिभाषित Reseller है ।

Indian Customer परिपे्रक्ष्य में ऐतिहासिक परिस्थितियों और मूल्यों ने महिलाओं के मुद्दों को पश्चिमी देशों के सापेक्ष अलग ढंग से प्रस्तुत Reseller । प्राचीन भारत ने मातृ-सत्तात्मक परिवार की संस्कृति रही है और धार्मिक साहित्य भी Indian Customer समाज में नारी की स्थिति के महत्व को रेखांकित करते हैं । लेकिन सहीं मायनों में नारीवादी आन्दोलन का First चरण 1850 से 1915 के बीच माना जा सकता है जबकि उपनिवेशी शासन की जड़े भारत में मजबूत हुर्इ । उपनिवेशी शासन के आगमन के साथ ही प्रजातंत्र, समानता और व्यक्तिगत अधिकारों की अवधारणा को बल प्राप्त हुआ। राष्ट्रवाद और भेदभावपूर्ण परंपराओं के आत्मविश्लेषण ने जाति व्यवस्था और लैंगिक समानता संबंधी सामाजिक सुधारों के आन्दोलन को जन्म दिया । भारत में First चरण के नारीवादी आन्दोलन को पुरूषो (जैसे की Kingराम मोहन राय ) ने प्रारंभ Reseller । इस आन्दोलन के केन्द्र में सती प्रथा, विधवा विवाह, महिला साक्षरता, महिला संपत्ति अधिकार आदि ऐसे मुद्दे थे जिनका कानूनी तौर पर समाधान करने के प्रयास किये गये ।

नारीवादी आन्दोलन का दूसरा चरण 1915 से 1947 तक माना जा सकता है । जबकि संपूर्ण देश में उपनिवेशी श्शासन के विरूद्व संघर्ष का वातारण बन गया था । गांधी जी ने महिलाओं की भूमिका को घरेलू And पारिवारिक परिवेश से आगे निकाल कर राष्ट्रीय आन्दोलन में समायोजित Reseller । इस चरण में्र महिलाओं की समस्या से संबंधित विभिन्न संस्थायें जैसे:- अखिल Indian Customer महिला कांफ्रेस (।सस प्दकपं ॅवउमदश्े ब्वदमितमदबम) और Indian Customer महिला राष्ट्रीय परिसंघ (छंजपवदंस थ्मकमतंजपवद व िप्दकपंद ॅवउमद) आदि संस्थाओं का उदय हुआ। इस काल में नारीवादी आन्दोलन के केन्द्र में, राजनीति में महिलाओं की भागीदारी, महिला मताधिकार, कम्युनल अवार्ड, और राजनीतिक पार्टी में नेतृत्व भूमिका आदि मुद्दे थे । राष्ट्रवादी आन्दोलन में महिलाओं की भागीदारी ने उन्हे स्वतंत्र भारत में अपने अधिकारों के भविष्य के प्रति सचेत Reseller । आगे चलकर इस तथ्य ने संविधान में महिलाओं के लिए मताधिकार, नागरिक अधिकार, समान वेतन, स्वास्थ्य And शिशु देखभाल आदि से संबंधित रक्षोपाय निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभार्इ । यहां यह तथ्य Historyनीय है कि Indian Customer महिलाओं को अपने अधिकारों के कानूनी संरक्षण के लिए वो संघर्ष नहीं करना पड़ा जो पश्चिमी देशों की महिलाओं ने Reseller। यह बात अलग है कि विशिष्ट सामाजिक संCreation और परम्पराओं के चलते अभी भी महिलाअें के प्रजातांत्रिक अधिकारों को व्यावहारिक मान्यता अपेक्षानुReseller नहीं मिल पायी है । संपूर्ण विश्व में नारीवाद की नवीन तरंग के बीच 1974 से लेकर आगे तक के समय काल को भारत में नारीवादी आन्दोलन का तीसरा चरण कहा जा सकता है । इस काल में इन्दिरा गांधी जैसी लौह-महिला का Indian Customer राजनीति में पदार्पण हुआ । इस काल में नारीवाद ने अपने परंपरागत स्वReseller को त्यागा और Single नवीन आयाम में उभरकर सामने आया । इस काल में महिलाओं ने अपनी स्थिति को बदले हुये गर्भपात ,यौन उत्पीड़न, दहेज प्रथा, घरेलु हिंसा, प्रजनन अधिकार, लैंिगक स्वतंत्रता, वेश्यावृत्ति, समान वेतन, विवाह विच्छेद, शिक्षा आदि अधिकारों के लिए संघर्ष Reseller और इसमें काफी हद तक सफलता भी प्राप्त की । स्वतंत्र भारत में मेधा पाटकर, मधु किश्वर, वृंदा करात, अमृता प्रीतम, कुसुम अंसल, किरण बेदी, आदि अनेक ऐसी महिलायें हैं जिन्होने Indian Customer महिलाओं के अधिकारों की लड़ार्इ को आगे बढ़ाया है और महिलाओं के लिए रोल मॉडल बनकर उभरी हैं । वर्तमान में संमलैगिकता और राजनेैतिक आरक्षण ऐसे प्रमुख मुद्दें है जो कि नर्इ पीढ़ी के नारीवादियों के लिए चुनौती के Reseller में देखे जा सकतें है ।

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