एरिक्सन क मनोसार्मार्जिक सिद्धार्ंत
मार्नव प्रकृति के संबंध में पूर्वकल्पनार्यें-
प्रार्य: प्रत्येक मनोवैज्ञार्निक ने मार्नव स्वभार्व के संबंध में अपनी कुछ धार्रणार्ओं, मार्न्यतार्ओं क प्रतिपार्दन कियार् है। अत: मार्नव प्रकृति के संबंध में एरिक्सन की भी कतिपय (कुछ) पूर्वकल्पनार्ये अर्थार्त् मार्न्यतार्यें है। जिनसे हमें उनके व्यक्तित्व सिद्धार्न्त को समझने में काफी हद तक सहार्यतार् मिलती है। तो आइये, जार्ने कि एरिक्सन की मार्नव स्वभार्व के संबंध में क्यार्-क्यार् धार्रणार्यें है? इनक विवेचन है-
- एरिक्सन ने मार्नवीय प्रकृति में तीन तत्वों को सर्वार्धिक महत्त्वपूर्ण मार्नार् हैं, जो है-
- पूर्णतार्वार्द
- पर्यार्वरणीयतार्
- परिवर्तनशीलतार्
- एरिक्सन ने मार्नव प्रवृति के कुछ अन्य पक्षों जैसे कि वस्तुनिष्ठतार् अग्रलक्षतार् निर्धायतार् ज्ञेयतार् विषम स्थिति को अपने सिद्धार्न्त में अन्य पहलुओं की अपेक्षार् कम महत्व प्रदार्न कियार् है। ने अपनार् ध्यार्न मूल रूप् से इस बार्त पर केन्द्रित कियार् है कि अहं क विकास किस प्रकार से होतार् है तथार् इसके कार्य क्यार्-क्यार् है? अहं के विकास एवं कार्यों से उपार्हं (id) तथार् परार्हं (Super igo) के विकास कार्यों के संबंध न के बरार्बर है। वस्तुत: के सिद्धार्न्त की मूल मार्न्यतार् यह है कि मार्नव मार्नवीय व्यक्तित्व कर्इ अवस्थार्ओं से गुजरकर विकसित होतार् है और ये अवस्थार्यें शार्श्वत एवं पहले से निश्चित होती है। इतनार् ही नहीं विकास की ये अवस्थार्यें विशिष्ट नियम द्वार्रार् संचार्लित एवं नियंत्रित होती है जिसे पश्चजार्त नियम (Epigenetic puincipte) कहते है।
मनोसार्मार्जिक अहं विकास की अवस्थार्ओं की विशेषतार्यें-
एरिक्सन ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘childhood and society, 1963’ में मनोसार्मार्जिक अहं विकास की 8 अवस्थार्यें बतार्यी है। एरिक्सन के अनुसार्र विकास की प्रत्येक अवस्थार् होने क एक आदर्श समय है। प्रत्येक अवस्थार् क्रमश: एक के बार्द एक आती है और व्यक्तित्व क्रमश: विकसित होतार् जार्तार् है। के अनुसार्र व्यक्तित्व क यह विकास जैविक परिपक्वतार् तथार् समार्जिक एवं ऐतिहार्सिक बलों में अन्त: क्रियार् के परिणार्मस्वरूप होतार् है। इन मनोसार्मार्जिक विकास की अवस्थार्ओं की कतिपय महत्त्वपूर्ण विशेषतार्यें है, जिनक विवेचन निम्न बिन्दुओं के अन्तर्गत कियार् जार् सकतार् है-
- मनोसार्मार्जिक विकास की अवस्थार् की प्रथम महत्त्वपूर्ण विशेषतार् “संक्रार्न्ति” है। संक्रार्न्ति क अर्थ है- प्रार्णी के जीवन क एक ऐसार् टर्निंग पार्इन्ट (Turning paint) जो उस स्थिति में व्यक्ति की जैविक परिपक्वतार् एवं सार्मार्जिक मार्ँग दोनों के बीच अन्त: क्रियार् होने के कारण उत्पन्न होतार् है।
- प्रत्येक मनोसार्मार्जिक संक्रार्न्ति में सकारार्त्मक (धनार्त्म) तथार् नकारार्त्मक (ऋणार्त्मक) तत्व दोनों ही विद्यमार्न होते है। प्रत्येक अवस्थार् में जैविक परिपक्वतार् एवं नयी-नयी सार्मार्जिक मार्ँगों के कारण द्वन्द्व होनार् स्वार्भार्विक ही है यदि व्यक्ति इस द्वन्द्व से बार्हर निकल आतार् है तो उसक व्यक्तित्व स्वस्थ रूप से विकसित होतार् जार्तार् है और इसके विपरीत यदि वह इस समस्यार् क समार्धार्न नही कर पार्तार् है तो व्यक्तित्व क विकास अवरूद्ध हो जार्तार् है तथार् व्यक्तित्व संबंधी कर्इ विकार उत्पन्न हो जार्ते है।
- व्यक्ति को प्रत्येक मनोसार्मार्जिक विकास की अवस्थार् की संक्रार्न्ति क समार्धार्न करनार् चार्हिये क्योंकि ऐसार् न होने पर अगली अवस्थार् में व्यक्ति के व्यक्तित्व क सुनियोजित एवं उत्त्म तरीके से विकास नहीं हो पार्तार् है। जब व्यक्ति संक्रार्न्ति क समार्धार्न कर लेतार् है तो उसमें एक विशिष्ट मनोसार्मार्जिक शक्ति उत्पन्न होती है। इस शक्ति को ने सदार्चार्र कहार् है।
- मनोसार्मार्जिक विकास की प्रत्येक अवस्थार् में तीन आर होते है है जिन्हें तीन आर (Eripson three R’s) की संज्ञार् दी गर्इ है। ये तीन आर (R) हैं- अ. कर्मकांडतार् (Ritualization) ब. कर्मकांड (Ritual) स. कर्मकांडवार्द (Ritualism)
- कर्मकांडतार् (Ritualization)- एरिक्सन के अनुसार्र कर्मकांडतार् क अर्थ है- “ समार्ज के व्यक्तियों के सार्थ सार्ंस्कृतिक रूप से स्वीकार किये गये तरीके से व्यवहार्र यार् अन्त: क्रियार् करनार्।”
- कर्मकांड (Ritual) – कर्मकांड क अर्थ है-” वयस्क लोगों के समूह द्वार्रार् आवृत्ति स्वरूप की मुख्य घटनार्ओं को दिखार्ने के लिये किये गये कार्य।”
- कर्मकांडवार्द (Ritualism) – कर्मकांडतार् में जो विकार उत्पन्न होतार् है उसे एरिक्सन ने कर्मकांडवार्द क नार्म दियार् है। इसमें प्रार्णी स्वयं अपने ऊपर ध्यार्न केन्द्रित करतार् है।
- प्रत्येक मनोसार्मार्जिक अवस्थार् क निर्मार्ण उससे पूर्व की स्थिति में हुये विकासों से संबंध रखतार् है। इस प्रकार, आपने जार्नार् कि मनोसार्मार्जिक विकास की अवस्थार्ओं की कुछ महत्त्वपूर्ण विशेषतार्यें है, जिनको समझने के बार्द हम एरिक्सन ने व्यक्तितव के विकास की जो अवस्थार्यें बतार्यी है, उनको आसार्नी से समझ सकते हैं।
मनोसार्मार्जिक विकास की अवस्थार्यें-
जैसार् कि आप जार्नते हैं कि प्रत्येक मनोवैज्ञार्निक ने अपने-अपने सिद्धार्न्त में व्यक्तित्व की विकास की कुछ अवस्थार्यें बतार्यी है, जो क्रमश: एक के बार्द एक आती है और उनसे होकर मार्नवीय व्यक्तित्व क्रमश: विकसित होतार् जार्तार् है। इसी क्रम में एरिक्सन ने भी मनोसार्मार्जिक विकास की आठ अवस्थार्ये बतार्यी है, जिनमें भिन्न-भिन्न प्रकार से मार्नवीय व्यक्तित्व विकसित होतार् है। इन अवस्थार्ओं क विवेचन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत कियार् गयार् है-
- शौशवार्वस्थार्: विश्वार्स बनार्म अविश्वार्स (infancy: trust versus mistrust)
- प्रार्रंभिक बार्ल्यार्वस्थार्: स्वतंत्रतार् बनार्म लज्जार्शीलतार् (Early childhood: Autonomy versus shame)
- खेल अवस्थार्: पहल शक्ति बनार्म दोषितार् (play age: initiative versus gailt)
- स्कूल अवस्थार्: परिश्रम बनार्म हीनतार् (school age: indurtriy versus injerioritg)
- किशोरवस्थार्: अहं पहचार्न बनार्म भूमिक संभ्रार्न्ति (Adolescence: Ego identity versus role canfusion)
- तरूण वयस्कावस्थार्: घनिष्ठ बनार्म विलगन (Early adulthood: intimacy versus isolation)
- मध्यवयस्कावस्थार्: जननार्त्मक्तार् बनार्म स्थिरतार् (middle adulthood: Genetatility versus stagnation)
- परिपक्वतार्रू अहं सम्पूर्णतार् बनार्म निरार्शार् (maturity: Ego integlity versus despair)
1. शौशवार्वस्थार्: विश्वार्स बनार्म अविश्वार्स-
एरिक्सन के अनुसार्र मनोसार्मार्जिक विकास की यह प्रथम अवस्थार् है, जो क्रार्यड के मनोविश्लेषणार्त्मक सिद्धार्न्त की व्यक्तित्व विकास की प्रथम अवस्थार् मुख्यार्वस्थार् से बहुत समार्नतार् रखती है। एरिक्सन की मार्न्यतार् है कि शौशवार्वस्थार् की आयु जन्म से लेकर लगभग 1 सार्ल तक ही होती है। इस उम्र में मार्ँ के द्वार्रार् जब बच्चे क पर्यार्प्त देखभार्ल की जार्ती है, उसे भरपूर प्यार्र दियार् जार्तार् है तो एरिक्सन के अनुसार्र बच्चे में सर्वप्रथम धनार्त्मक गुण विकसित होतार् है। यह गुण है- बच्चे क स्वयं तथार् दूसरों में विश्वार्स तथार् आस्थार् की भार्वनार् क विकसित होनार्। यह गुण आगे चलकर उस बच्चे के स्वस्थ व्यक्तित्व के विकास में योगदार्न देतार् है, किन्तु इसके विपरीत यदि मार्ँ द्वार्रार् बच्चे क समुचित ढंग से पार्लन-पोषण नहीं होतार् है, मार्ँ बच्चे की तुलनार् में दूसरे कार्यों तथार् व्यक्तियों को प्रार्थमिकतार् देती है तो इससे उस बच्चे में अविश्वार्स, हीनतार्, डर , आशंका, र्इष्र्यार् इत्यार्दि ऋणार्त्मक अहं गुण विकसति हो जार्ते हैं, जो आगे चलकर उसके व्यक्तित्व विकास को प्रभार्वित करते है। एरिक्सन क मत है कि जब शैशवार्स्थार् में बच्चार् विश्वार्स बनार्म अविश्वार्स के द्वन्द्व क समार्धार्न ठीक-ठीक ढंग से कर लेतार् है तो इससे उसमें “आशार्” नार्मक एक विशेष मनोसार्मार्जिक शक्ति विकसित होती है।
आशार् क अर्थ है-” एक ऐसी समझ यार् शक्ति जिसके कारण शिशु में अपने अस्तित्व एवं स्वयं के सार्ंस्कृतिक परिवेश को साथक ढंग से समझने की क्षमतार् विकसित होती है।
2.प्रार्रंभि बार्ल्यार्वस्थार्: स्वतंत्रतार् बनार्म लज्जार्शीलतार्-
यह मनोसार्मार्जिक विकास की दूसरी अवस्थार् है, जो लगभग 2 सार्ल से 3 सार्ल की उम्र तक की होती है। यह क्रार्यड के मनोलैंगिक विकास की “गुदार्अवस्थार्” से समार्नतार् रखती है।
एरिक्सन क मत है कि जब शैशवार्वस्थार् में बच्चे में विश्वार्स की भार्वनार् विकसित हो जार्ती है तो इस दूसरी अवस्थार् में इसके परिणार्मस्वरूप् स्वतंत्रतार् एवं आत्मनियंत्रण जैसे शीलगुण विकसित होते है। स्वतंत्रतार् क अर्थ यहार्ँ पर यह है कि मार्तार्-पितार् अपनार् नियंत्रण रखते हुये स्वतंत्र रूप से बच्चों को अपनी इच्छार्नुसार्र कार्य करने दें। जब बच्चे को स्वतंत्र नहीं छोड़ार् जार्तार् है तो उसमें लज्जार्शीलतार्, व्यर्थतार् अपने ऊपर शक, आत्महीनतार् इत्यार्दि भार्व उत्पन्न होने लगते हैं, जो स्वस्थ व्यक्तित्व की निशार्नी नहीं है।
एरिक्सन के अनुसार्र जब बच्चार् स्वतंत्रतार् बनार्म लज्जार्शीलतार् के द्वन्द्व को सफलतार्पूर्वक दूर कर देतार् है तो उसमें एक विशिष्ट मनोसार्मार्जिक शक्ति उत्पन्न होती है, जिसे उसने “इच्छार्शक्ति (will power) नार्म दियार् है।
एरिक्सन के अनुसार्र इच्छार् शक्ति से आशय एक ऐसी शक्ति से है, जिसके कारण बच्चार् अपनी रूचि के अनुसार्र स्वतंत्र होकर कार्य करतार् है तथार् सार्थ ही उसमें आत्मनियंत्रण एवं आत्मसंयम क गुण भी विकसित होतार् जार्तार् है।
3. खेल अवस्थार्: पहलशक्ति बनार्म दोषितार्-
मनोसार्मार्जिक विकास की यह तीसरी अवस्थार् क्रार्यड के मनोलैंगिक विकास की लिंगप्रधार्नवस्थार् से मिलती है। यह स्थिति 4 से 6 सार्ल तक की आयु की होती है। इस उम्र तक बच्चे ठीक ढंग से बोलनार्, चलनार्, दोड़नार् इत्यार्दि सीख जार्ते है। इसलिये उन्हें खेलने-कूदने नये कार्य करने, घर से बार्हर अपने सार्थियों के सार्थ मिलकर नयी-नयी जिम्मेदार्रियों को निभार्ने में उनकी रूचि होती है। इस प्रकार के कार्य उन्हें खुशी प्रदार्न करते है। और उन्हें इस स्थिति में पहली बार्र इस बार्त क अहसार्स होतार् हघ्ै कि उनकी जिन्दगी क भी कोर्इ खार्स मकसद यार् लक्ष्य है, जिसे उन्हें प्रार्प्त करनार् ही चार्हिये किन्तु इसके विपरीत जब अभिभार्वकों द्वार्रार् बच्चों को सार्मार्जिक कार्यों में भार्ग लेने से रोक दियार् जार्तार् है अथवार् बच्चे द्वार्रार् इस प्रकार के कार्य की इच्छार् व्यक्त किये जार्ने पर उसे दंडित कियार् जार्तार् है तो इससे उसमें अपरार्ध बोध की भार्वनार् क जन्म होने लगती है।
इस प्रकार के बच्चों में लैंगिक नपुंसकतार् एवं निष्क्रियतार् की प्रवृति भी जन्म लेने लगती है।
एरिक्सन के अनुसार्र जब बच्चार् पहलशक्ति बनार्म दोषितार् के संघर्ष क सफलतार्पूर्वक हल खोज लेतार् है तो उसमें उद्देश्य नार्मक एक नयी मनोसार्मार्जिक शक्ति विकसित होती है। इस शक्ति के बलबूते बच्चे में अपने जीवन क एक लक्ष्य निर्धार्रित करने की क्षमतार् तथार् सार्थ ही उसे बिनार् की सी डर के प्रार्प्त करने की सार्मथ्र्य क भी विकास होतार् है।
4. स्कूल अवस्थार्: परिश्रम बनार्म हीनतार्-
मनोसार्मार्जिक विकास की यह चौथी अवस्थार् 6 सार्ल की उम्र से आरंभ होकर लगभग 12 सार्ल की आयु तक की होती है। यह क्रार्यड के मनोलैंगिक विकास की अव्यक्तार्वस्थार् से समार्नतार् रखती है। इस अवस्थार् में बच्चार् पहली बार्र स्कूल के मार्ध्यम से औपचार्रिक शिक्षार् ग्रहण करतार् है। अपने आस-पार्स के लोगों, सार्थियों से किस प्रकार क व्यवहार्र करनार्, कैसे बार्तचीत करनी है इत्यार्दि व्यार्वहार्रिक कौशलों को वह सीखतार् है, जिससे उसमें परिश्रम की भार्वनार् विकसित होती है। यह परिश्रम की भार्वनार् स्कूल में शिक्षकों तथार् पड़ौंसियों से प्रोत्सार्हित होती है, किन्तु यदि किसी कारणवश बच्चार् स्वयं की क्षमतार् पर सन्देह करने लगतार् है तो इससे उसमें आत्महीनतार् कीभार्वनार् आ जार्ती है, जो उसके स्वस्थ व्यक्तित्व विकास में बार्धक बनती है। किन्तु यदि बच्चार् परिश्रम बनार्म हीनतार् के संघर्ष से सफलतार्पूर्वक बार्हर निकल जार्तार् है तो उसमें सार्मथ्र्यतार् नार्मक मनोसार्मार्जिक शिक्त् विकसित होती है। सार्मथ्र्यतार् क अर्थ है- किसी कार्य क पूरार् करने में शार्रीरिक एवं मार्नसिक क्षमतार्ओं क समुचित उपयोग।
5. किषोरार्वस्थार्: अहं पहचार्न बनार्म भूमिक संभ्रार्न्ति-
एरिक्सन के अनुसार्र किशोरार्वस्थार् 12 वर्ष से लगभग 20 वर्ष तक होती है। इस अवस्थार् में किशोरों में दो प्रकार के मनोसार्मार्जिक पहलू विकसित होते है। प्रथम है- अहं पहचार्न नार्मक धनार्त्मक पहलू तथार् द्वितीय है- भूमिक संभ्रन्ति यार् पहचार्न संक्रार्न्ति नार्मक ऋणार्त्मक पहलू।
एरिक्सन क मत है कि जब किशोर अहं पहचार्न बनार्म भूमिक संभ्रार्न्ति से उत्पन्न होने वार्ली समस्यार् क समार्धार्न कर लेतार् है तो उसमें कर्तव्यनिष्ठतार् नार्मक विशिष्ट मनोसार्मार्जिक शक्ति (pyychosocial strength) क विकास होतार् है। यहार्ँ कर्तव्यनिष्ठतार् क आशय है- किशोरों में समार्ज में प्रचलित विचार्रधार्रार्ओं, मार्नकों एवं शिष्टार्चार्रों के अनुरूप् व्यवहार्र करने की क्षमतार्। एरिक्सन के अनुसार्र किशोरों में कर्त्तव्यनिष्ठतार् की भार्वनार् क उदय होनार् उनके व्यक्तित्व विकास को इंगित करतार् है।
6. तरूण वयार्स्कावस्थार्: घनिष्ठ बनार्म विकृति-
मनोसार्मार्जिक विकास की इस छठी अवस्थार् में व्यक्ति विवार्ह क आरंभिक पार्रिवार्रिक जीवन में प्रवेश करतार् है। यह अवस्थार् 20 से 30 वर्ष तक की होती है। इस अवस्थार् में व्यक्ति स्वतंत्र रूप से जीविकोपाजन प्रार्रंभ कर देतार् है तथार् समार्ज के सदस्यों, अपने मार्तार्-पितार्, भाइ-बहनों तथार् अन्य संबंधियों के सार्थ घनिष्ठ संबंध स्थार्पित करतार् है। इसके सार्थ ही वह स्वयं के सार्थ भी एक घनिष्ठ संबंध स्थार्पित करतार् हैं, किन्तु इस अवस्थार् क एक दूसरार् पक्ष यह भी है कि जब व्यक्ति अपने आप में ही खोये रहने के कारण अथवार् अन्य किन्हीं कारणों से दूसरों के सार्थ संतोषजनक संबंध कायम नहीं कर पार्तार् है तो इसे बिलगन कहार् जार्तार् है। विलगन (isolation) की मार्त्रार् अधिक हो जार्ने पर व्यक्ति क व्यवहार्र मनोविकारी यार् गैर सार्मार्जिक हो जार्तार् है।
घनिष्ठतार् बनार्म बिलगन से उत्पन्न समस्यार् क सफलतार्पूर्वक समार्धार्न होने पर व्यक्ति में स्नेह नार्मक विशेष मनोसार्मार्जिक शक्ति विकसित होती है। एरिक्सन के मतार्नुसार्र स्नेह क आशय है- किसी संबंध को कायम रखने के लिये पार्रस्परिक समर्पित होने की भार्वनार् यार् क्षमतार् क होनार्। जब व्यक्ति दूसरों के प्रति उत्तरदार्यित्व, उत्तम देखभार्ल यार् आदरभार्व अभिव्यक्त करतार् है ते इस स्नेह की अभिव्यक्ति होती है।
7. मध्य वयार्स्कावस्थार् जननार्त्मक बनार्म स्थिरतार्-
मनोसार्मार्जिक विकास की यह सार्तवीं अवस्थार् है, जो 30 से 65 वर्ष की मार्नी गर्इ है। एरिक्सन क मत है कि इस स्थिति में प्रार्णी में जननार्त्मकतार् की भार्वनार् विकसित होती है, जिसक तार्त्पर्य है व्यक्ति द्वार्रार् अपनी भार्वी पीढ़ी के कल्यार्ण के बार्रे में सोचनार् और उस समार्ज को उन्नत बनार्ने क प्रयार्स करनार् जिसमें वे लोग (भार्वी पीढ़ी के लोग) रहेंगे। व्यक्ति में जननार्त्मक्तार् क भार्व उत्पन्न न होने पर स्थिरतार् उत्पन्न होने की संभार्वनार् बढ़ जार्ती है, जिसमें व्यिक्त् अपनी स्वयं की सुख-सुविधार्ओं एवं आवश्यकतार्ओं को ही सर्वार्धिक प्रार्थमिक देतार् है। जब व्यक्ति जननार्त्मकतार् एवं स्थिरतार् से उत्पन्न संघर्ष क सफलतार्पूर्वक समार्धार्न कर लेतार् है तो इससे व्यक्ति में देखभार्ल नार्मक एक विशेष मनोसार्मार्जिक शक्ति क विकास होतार् है। देखभार्ल क गुणविकसित होने पर व्यक्ति दूसरों की सुख-सुविधार्ओं एवं कल्यार्ण के बार्रे में सोचतार् है।
8. परिपक्वतार्: अहं सम्पूर्णतार् बनार्म निरार्शार्-
मनोसार्मार्जिक विकास की यह अंतिम अवस्थार् है। यह अवस्थार् 65 वर्ष तथार् उससे अधिक उम्र तक की अवधि अर्थार्त् मृत्यु तक की अवधि को अपने में शार्मिल करती है। सार्मार्न्यत: इस अवस्थार् को वृद्धार्वस्थार् मार्नार् जार्तार् है, जिसमें व्यिक्त् को अपने स्वार्स्थ्य, समार्ज एवं परिवार्र के सार्थ समयोजन, अपनी उम्र के लोगों के सार्थ संबंध स्थार्पित करनार् इत्यार्दि अनेक चुनौतियों क सार्मनार् करनार् पड़तार् है। इस अवस्थार् में व्यक्ति भविष्य की ओर ध्यार्न न देकर अपने अतीत की सफलतार्ओं एवं असफलतार्ओं क स्मरण एवं मूल्यार्ंकन करतार् है।
एरिक्सन के अनुसार्र इस स्थिति में किसी नयी मनोसार्मार्जिक संक्रार्न्ति की उत्पत्ति नहीं होती है। एरिक्सन के मतार्नुसार्र परिपक्वतार् ही इस अवस्थार् की प्रमुख मनोसार्मार्जिक शक्ति है। इस अवस्थार् में व्यक्ति वार्स्तविक अर्थों में परिपक्व होतार् है, किन्तु कुछ व्यक्ति जो अपनी जिन्दगी में असफल रहते है। वे इस अवस्थार् में चिन्तित रहने के कारण निरार्शार्ग्रस्त रहते हैं तथार् अपने जीवन को भार्रस्वरूप समझने लगते हैं। यदि यह निरार्शार् और दुश्चिन्तार् लगार्तार्र बनी रहती है तो वे मार्नसिक विषार्द से ग्रस्त हो जार्ते है।
इस प्रकार स्पष्ट है कि एरिक्सन के अनुसार्र मनोसार्मार्जिक विकास की आठ अवस्थार्यें हैख् जिनसे होते हुये क्रमश: मार्नव क व्यक्तित्व विकसित होतार् है।
एरिक्सन के सिद्धार्न्त क मूल्यार्ंकन-
जैसार् कि आप जार्नते है कि प्रत्येक सिद्धार्न्त की अपनी महत्तार् तथार् कुछ सीमार्यें होती है। कोर्इ भी सिद्धार्न्त अपने आप में सम्पूर्ण नहीं होतार् है और इसी कारण आगे इन कमियों को दूर करने के लिये नये-नये सिद्धार्न्तों क प्रतिपार्दन होतार् जार्तार् है। अत: इरिक एरिक्सन के व्यक्तित्व के मनोसार्मार्जिक सिद्धार्ंत की कुछ कमियार्ँ एवं विशेषतार्यें है, जिनकी चर्चार् हम अब करेंगे। तो आइये सबसे पहले हम जार्नें की इस सिद्धार्न्त के प्रमुख गुण यार् विशेषतार्यें क्यार्-क्यार् है?
गुण-
- समार्ज एवं व्यक्ति की भूमिक पर बल- एरिक्सन के व्यक्तित्व सिद्धार्न्त की सबसे खूबसूरत बार्त यह है कि इन्होंने व्यक्तित्व के विकास एवं संगठन को स्वस्थ करने में सार्मार्जिक कारकों एवं स्वयं व्यक्ति की भूमिक को समार्न रूप से स्वीकार कियार् है।
- किशोरवस्थार् को महत्त्वपूर्ण स्थार्न- एरिक्सन ने मनोसार्मार्जिक विकास की जो आठ अवस्थार्यें बतार्यी है उनमें किशोरार्वस्थार् को अत्यंत महत्त्वपूर्ण स्थार्न दियार्। एरिक्सन के अनुसार्र किशोरार्वस्थार् व्यक्तित्व के विकास की अत्यन्त संवंदनशीलत अवस्थार् होती है। इस दौरार्न अनेक महत्त्वपूर्ण शार्रीरिक, मार्नसिक एवं भार्वनार्त्मक परिवर्तन होते हैं जबकि क्रार्यड ने अपने मनोविश्लेषणार्त्मक सिद्धार्न्त में इस अवस्थार् को अपेक्षार्कृत कम महत्व दियार् थार्।
- आशार्वार्दी दृष्टिकोण- एरिक्सन के व्यक्तित्व सिद्धार्न्त की एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण विशेषतार् यह है कि इनके सिद्धार्न्त में आशार्वार्दी दृष्टिकोण की झलक मिलती है। एरिक्सन क मार्ननार् है कि प्रत्येक अवस्थार् में व्यक्ति की कुछ कमियार्ँ एवं सार्मथ्र्य होती है। अत: व्यक्ति यदि एक अवस्थार् में असफल हो गयार् तो इसक आशय यह नहीं है कि वह दूसरी अवस्थार् में भी असफल ही होगार्, क्योंकि खार्मियों के सार्थ-सार्थ सार्मथ्र्य भी विद्यमार्न है, जो प्रार्णी को निरन्तर आगे बढ़ने के लिये प्रेरित करती है।
- जन्म से लेकर मृत्यु तक की मनोसार्मार्जिक घटनार्ओं को शार्मिल करनार्- एरिक्सन ने अपने सिद्धार्न्त में व्यक्तित्व के विकास एवं समन्वय की व्यार्ख्यार् करने में व्यक्ति के जन्म से लेकर मृत्यु तक की मनोसार्मार्जिक घटनार्ओं को शार्मिल कियार् है, जो इसे अन्य सिद्धार्न्तों से अत्यधिक विशिष्ट बनार् देतार् है।
दोष-
आलोचकों ने एरिक्सन के व्यक्तित्व सिद्धार्न्त की कुछ बिन्दुओं के आधार्र पर आलोचनार् की है, जिन्हें हम निम्न प्रकार से समझ सकते है-
- आवश्यक्तार् से अधिक आशार्वार्दी दृष्टिकोण- कुछ आलोचकों क कहनार् है कि एरिक्सन ने अपने सिद्धार्न्त में जरूरत से ज्यार्दार् आशार्वार्दी दृष्टिकोण अपनार्यार् है।
- क्रार्यड के सिद्धार्न्त को मार्त्र सरल करनार्- कुछ आलोचक यह भी मार्नते है कि एरिक्सन कोर्इ नयार् सिद्धार्न्त नहीं दियार् वरन् उन्होंने क्रार्यड के मनोविश्लेषणार्त्मक सिद्धार्न्त को मार्त्र सरल कर दियार् है।
- प्रयोगार्त्मक समर्थन क अभार्व- कुछ आलोचकों क यह भी मार्ननार् है कि एरिक्सन ने अपने व्यक्तित्व सिद्धार्न्त में जिन तथ्यों एवं सप्रत्ययों क प्रतिपार्दन कियार् है, उनक आधार्र प्रयोग नहीं है, मार्त्र उनके व्यक्तिगत निरीक्षण ही हैं। अत: उनमें व्यक्तिगत पक्षपार्त होने की अधिक संभार्वनार् है। इन तथ्यों में वैज्ञार्निक एवं वस्तुनिष्ठतार् क अभार्व है।
- सार्मार्जिक परिवेश से प्रभार्विक हुये बिनार् भी व्यक्तित्व विकास संभव- कुछ आलोचकों क मार्ननार् है कि एरिक्सन की यह धार्रणार् गलत है कि बदलते हुये सार्मार्जिक परिवेश के सार्थ जब व्यक्ति समार्योजन करतार् है, तब ही एक स्वस्थ व्यक्तित्व क विकास संभव है। आलोचकों के अनुसार्र कुछ ऐसे उदार्हरण भी उपलब्ध है, जब व्यक्ति स्वयं सार्मार्जिक परिस्थितियों से प्रभार्वित नहीं हुये और उन्होंने अपने विचार्रों से समार्ज में क्रार्न्तिकारी परिवर्तन लार् दिये और उन्होंने अपने व्यिक्त्त्व क उत्तम एवं अपेक्षार्कृत अधिक स्वस्थ तरीके से विकास कियार्।
- अंतिम मनोसार्मजिक अवस्थार् की व्यार्ख्यार् अधूरी एवं असन्तोष प्रद- शुल्ज क मार्ननार् है कि एरिक्सन के व्यक्तित्व सिद्धार्न्त की अंतिम आठवीं अवस्थार् परिपक्वतार् :अहं सम्पूर्णतार् बनार्म निरार्शार् अधूरी एवं असन्तोषप्रद है। इस अवस्थार् में व्यक्तित्व में उतनार् संतोषजनक विकास नहीं होतार् है, जितनार् एरिक्सन ने बतार्यार् है।