आदर्शवाद क्या है ?

आदर्शवाद अंग्रेजी के आइडियलिज्म का शाब्दिक Means है। यह दर्शन की Single शाखा के लिये प्रयुक्त होता है। इस दर्शन में उच्च आदर्शों की बात की जाती है। इस दर्शन से सम्बंधित दार्शनिक विचार की चिरन्तन सत्ता में विश्वास करते हैं, अत: मूलत: यह दर्शन ‘‘विचारवादी दर्शन अथवा आइडियालिज्म’’ है। हिन्दी में उसका Wordत: अनुवाद उभर आया। यद्यपि ‘‘विचारवाद’’ Word का प्रयोग करना उपयुक्त होता परन्तु Word की रूढ़ प्रक§ति को ध्यान में रखकर यहां आदर्शवाद Word का प्रयोग Reseller जा रहा है।

आदर्शवाद के According सिर्फ विचार ही सत्य है इसके सिवा सत्य का Means और Reseller नहीं। हमारा हर व्यवहार मस्तिष्क से ही नियंत्रित होता है, इसलिये मस्तिष्क ही वास्तविक सत्य है भौतिक शरीर तो इसकी छाया मात्र है। मनुष्य वास्तव में आत्मा ही है। शरीर तो केवल इसका कवच मात्र ही है, जो Destroy हो जायेगा यानि मनुष्य असल में आत्म Resellerी सत्य है। पाश्चात दर्शन में ये मनस के Reseller में देखा गया। इसी को बुद्धि भी कहा गया विचार ही प्रमुख तत्व है। विचार मस्तिष्क देता है अत: इस प्रकार की विचारधारा विचारवादी या प्रत्ययवादी भी कहलायी और विश्वास करने वाले आध्यातमवादी कहलाये।

  1. गुड महोदय के According- ‘‘आदर्शवाद वह विचारधारा है, जिसमें यह माना जाता है, कि पारलौकिक सार्वभौमिक तत्वों, आकारों या विचारेां में वास्विकता निहित है और ये ही सत्य ज्ञान की वस्तुएं है जबकि ब्रह्म Reseller Human के विचारों तथा इन्द्रिय अनुभवों में निहित होते हैं, जो विचारों की प्रतिच्छाया के अनुReseller के समान होते हैं।’’
  2. रोजन- ‘‘आदर्शवादियों का विश्वास है कि ब्रह्माण्ड की अपनी बुद्धि And इच्छा और सब भौतिक वस्तुओं को उनके पीछे विद्यमान मन द्वारा स्पष्ट Reseller जा सकता है।’’
  3. हार्न के According- ‘‘आदर्शवादियों का सार है ब्रह्माण्ड, बुद्धि And इच्छा की अभिव्यक्ति है, विश्व के स्थायी तत्व की प्रक§ति -मानसिक है और भौतिकता की बुद्धि द्वारा व्याख्या की जाती है।’’
  4. हैण्डरसन- ‘‘आदर्शवाद मनुष्य के आध्यात्मिक पक्ष पर बल देता है। इसका कारण यह है कि आध्यात्मिक मूल्य मनुष्य और जीवन में सबके महत्वपूर्ण पहलु है।’’ आदर्शवादी यह मानते हैं कि व्यक्ति और संसार- दोनो बुद्धि की अभिव्यक्तियां है। वे कहते हैं कि भौतिक संसार की व्याख्या मन से ही की जा सकती है।

आदर्शवाद की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

सृष्टि में Second जीवधारियों से हमें पृथक Reseller हमारे मस्तिष्क ने, हमारे विचार-विमर्श, सोचने-समझने, सूझ-बूझ की शक्ति ने Reseller। इसी मस्तिष्क के कारण हममें भाषा विचार या तर्क करने की ताकत आयी, और विचारकों के जिस वर्ग ने मस्तिष्क को महत्व देते हुये विचार करने की प्रक्रिया में अपना ज्यादा विश्वास दिखाया वह विचारवादी कहलाये और इस विचारधारा को आदर्शवाद कहा गया। आदर्शवादी जीवन की Single बहुत पुरानी विचारधारा कही जाती है, जब से मनुष्य ने विचार And चिन्तन शुरू Reseller तब से वह दर्शन है।

इसके ऐतिहासिक विकास पाश्चात्य देशों में सुकरात और प्लेटो से मानते है। हमारे देश में भी उपनिषद् काल से ब्रह्म-चिन्तन पर विचार मिलते हैं, जहां आत्मा, जीव ब्राह्माण्ड पर विचार-विमर्श हुए और हम पश्चिमी देशों से पीछे नहीं रहे। अंग्रेजी के Word ‘‘आइडियलिस्म’’ आदर्शवाद का यथार्थ द्योतक है, परन्तु विषय-वस्तु के हिसाब से ‘‘आइडियलिस्म’’ के स्थान पर आइडिस्म अधिक समीप And Meansपूर्ण जान पड़ता है।

पाश्चात्य जगत में ऐतिहासिक क्रम में प्लेटो से आदर्शवाद का आरम्भ माना जाता है। प्लेटो के According- ‘‘संसार भौतिकता में नहीं है बल्कि उसकी वास्तविकता प्रत्ययों And विचारों से है।’’ मनुष्य का मन प्रत्ययों का निर्माण करता है। तर्क के आधार पर प्लेटो ने तीन शाश्वत विचार माने है। ये तीन विचार हैं- सत्यं, शिवम्, सुन्दरं। इन तीनों विचारों के द्वारा ही इन्द्रियगम्य वस्तुओं का निर्माण होता है। शिवं का विचार ही श्रेण्ठ माना गया है। इसका कारण यह है कि प्लेटो ने व्यैक्तिक मन और साथ-साथ समाजिक मन की परिकल्पना की है और यह भी माना कि वैयक्तिक मन सामाजिक मन से अलग नहीं रह सकता प्लेटो के विचारों का प्रभाव उसके द्वारा प्रभावित धर्म पर दिखायी दिया। हिब्रू परम्परा में र्इश्वर को तर्कपूर्ण माना गया है। Human तथा अन्य चेतन प्राणियों में क्या सम्बंध है इस पर हमारे हिन्दू धर्म And अन्य All धर्मों में काफी विवेचना हुयी है तथा विचार-विमर्श हुये है। धर्मों के According All प्राणी र्इश्वर के अंश कहे गये यह आदर्शवादी दृष्टि कोण है, जिसके According All जीवित प्राणियों में चिद् होता है। आगे चलकर रेने डेकार्टे का द्वितत्ववाद प्रसिद्ध हुआ। डेकार्टे का कहना है कि र्इश्वर ने मन तथा पदार्थ देानों की Creation की है। इन्द्रियज्ञान को डेकार्टे ने भ्रामक कहा है।

डेकार्टे के बाद स्पिनोजा ने आदर्शवाद को आगे बढ़ाया। स्पिनोजा ने अपना तत्व सिद्धान्त रखा है। स्पिनोजा के तत्व शाश्वत है वह पदार्थ नहीं है यह Single तत्व है, जिसे र्इश्वर करहे हैं। स्पिनोजा के बाद लाइबनीज का चिद्विन्ुदवाद दर्शन प्रसिद्ध हुआ। लाइबनीज के According चिद्बिन्दुओ से संसार निर्मित है यह चिद्विन्दु साधारण, अविभाज्य इकार्इ है। जटिल Reseller में यह आत्मा कहलाती है। र्इश्वर भी Single उच्च आत्मा वर्ग का चिद्विन्दु है। Indian Customer दर्शन में भी लाइबनीज के समाज विचार है। तत्व मीमांसा के According ठीक लाइबनीज की तरह यह विचार है कि पदार्थ चिद् है तथा All वस्तुएं आध्यात्मिक परमाणुओं से Single-Second के अनुकुल बनी हुर्इ है। बर्कले ने भी संसार की सत्ता को लाइबनीज की तरह माना है लेकिन Second ढंग से। बकेले ने पदार्थ के अस्तित्व को आध्यात्मिक आधार पर ही माना है, इसीलिये उसने र्इश्वर को ही वास्तविक माना है।

अत: मन के द्वारा प्रत्यक्ष बना लेने पर ही पदार्थ का अस्तित्व हो जो विभिन्न संवेदनाआ, विचारों तथा इन्द्रियानुभवों के सहारे सिद्ध होता है। हमारे सामने जो सृष्टि है उसके पीछे आत्मा होती है। यह आत्मा र्इश्वर है। र्इश्वर ही Single तत्व है जो All मानसिक And भौतिक संसार के पीछे रहता है। बर्कले का दर्शन आत्मगत आदर्शवाद कहा जाता है। मैंनुअल कांट Single Second प्रमुख आदर्शवादी माने गये। कांट मानते हैं कि प्रतीति वाले अनुभवगम्य जगत के पीछे स्थगित वस्तु है। आत्मा की अमरता तथा स्वतंत्रता And नैतिक प्रधानता ने Indian Customerों का विश्वास First से ही है। गीता दर्शन में कहा है- ‘‘नैन छिन्दति शास्त्राणि नैनं दहति पावक:, नैनं क्लेदयन्ति आपो नैनं शोशयते मारूत:’’। Meansात् पाप, पुण्य, अच्छार्इ-बुरार्इ आदि नैतिक नियमों की प्रध् ाानता है और इन सबसे उपर र्इश्वर का होना Indian Customerों का प्राचीन विश्वास है। कान्ट के प्रभाव से जर्मनी में फिश्टे व हेगले का अविर्भाव हुआ जिन्होनें आदर्शवाद के विकास में अपने योगदान दिये।

फिश्टे ने जीवन के भौतिक पक्ष पर बहुत बल दिया। इसने वास्तविकता को नैतिकता से पूर्ण इच्छाशक्ति माना तथा इस प्रतीत्यात्मक जगत को मनुष्य की इच्छा शक्ति को विकसित करने हेतु बताया, जिससे उसके चरित्र का निर्माण होता है। समीम And असीम आत्मा की भावना Indian Customer दर्शन में भी पायी जाती है तथा जड़ प्रकृति की ओर फिश्टे का अनात्मक जगत संकेत करता है।

फिश्टे के बाद हेगेल ने आदर्शवादी दर्शन के क्षेत्र में प्रभाव डाला इनके दर्शन को विश्व चैतन्यवाद कहा है, इन्होनें समस्त विश्व की सम्पूर्ण के Reseller में देखा और अनुभव के प्रत्येक प्रकरण की सम्पूर्णता से Added हुआ बताया। हेंगेल के According इस प्रकार अनन्त आत्मा अथा र्इश्वर का ब्रह्म Reseller संसार है और संसार को समझना र्इश्वर का Reseller समझने के लिये आवश्यक भी है क्येांकि ज्ञान के ब्रह्म एंव आंतरिक दो Reseller है। Indian Customer विचारधारा भी र्इश्वर को सर्वभूतेशु And सर्वभूत हित: कहा है।

हेगले के प्रभाव शेलिंग तथा शापेनहावर पर पड़ा। शेलिंग ने चरम को आत्म And अनात्म, ज्ञेय And अज्ञेय से अलग Single सत्ता मानी है। Single प्रकार से Indian Customer द्वैता द्वैत की भावना इसमें पायी जाती है। शापेनहावर ने अपने चरम को परम इच्छा में बदल दिया और कहा जगत मेरा विचार हैं इस प्रकार इच्छा को परम श्रेष्ठ बताया। शापेनहावर ने जड़ प्रकृति पर दृष्टि जमार्इ और उसे अचेतन कहा। जड़ प्रकृति को चरम नहीं कहा जा सकता है। इन सब दार्शनिकों का प्रभाव फ्रांस, इटली, रुस, इंग्लैण्ड तथा अमेरिका के दार्शनिकों पर काफी पड़ा है। फ्रांस में बर्गसन क्रोस तथा जेन्टाइल जैसे आदर्शवादी हुये। रुस में माक्र्स And एंजेल हुये और इंग्लैण्ड में कालेरिज ग्रीन, स्अग्ंिल, केयर्ड, बोसैंके और ब्रेडले जैसे आदर्शवादी बढ़ें।

भारत में वैदिक काल में बहुतत्तवादी आदर्शवादी थे। इस्लामी दर्शन के साथ अद्वैतवाद, द्वैताद्वतवाद, विशिष्ट द्वैतवाद आदि रुप मिलते है। आज भी इनके पोषक दयानन्द, विवेकानन्द, अरविन्द, टैगोर, गांधी, रामकृष्ण, राधाकृष्ण तथा कुछ मुस्लिम विचारक जैसे अबुल कलाम आजाद, जाकिर हुसैन, सेयदेन जैसे शिक्षाविद् गिने जाते है।

आदर्शवाद का आधार

1. आदर्शवाद का आधार विचार- 

आदर्शवाद का शुद्ध नाम विचारवाद होना चाहिये क्योंकि इसका मुख्य आधार विचार है। जगत की वास्तविकता विचारों पर आश्रित है। प्रक§ति And भौतिक पदार्थ की सत्ता विचारों का कारण है। आदर्शवाद का आधार भौतिक जगत न होकर मानसिक या आध्यात्मिक जगत है। विचार अन्तिम And सार्वभौमिक महत्व वाले होते हैं। वे सार अथवा भौतिक प्रतिReseller है जो जगत को आकार देते हैं, ये मानदण्ड है जिनसे इन्द्रिय अनुभव योग्य वस्तुओं की जॉच होती है।

2. आदर्शवाद का आधार आत्मा- 

Single दसू रा आधार आन्तरिक जगत है जिसे आत्मा या मन कहते हैं। इसी के कारण विचार प्राप्त होते और उन विचारों को वास्तविकता मिलती है जगत का आधार मनस है। यह यांत्रिक नहीं है, जीवन हम जटिल भौतिक रासायनिक शक्तियों में ही नहीं घटा सकते। यह मनस पर आध् ाारित है। पदार्थ को मनस का प्रक§ति क§त बाह्य Reseller माना जाता है। आदर्शवाद का आधार तर्क व बुद्धि – आदर्शवाद का त§तीय आधार तर्क And बुद्धि कहा जा सकता है। इस सम्बंध में प्लेटो और सुकरात के विचार Single प्रकार से मिलते है कि मनुष्य में ही तर्क की शक्ति है और तर्क द्वारा ही विचार प्राप्त होते हैं।

3. आदर्शवाद का आधार Human – 

आदर्शवाद का चौथा आधार Human माना जा सकता है। आत्मा उच्चाशय And विचार, तर्क और बुद्धि से युक्ति हेाती है। Human वह प्राणधारी है जिसमें अनुभव करने उनहें धारण करने और उन्हें उपयोग में लाने की विलक्षण शक्ति होती है। Human All प्राणियों व पणुओं में सर्वश्रेण्ठ इसी कारण गिना जाता है क्योंकि महान अनुभव कर्ता है और उसे गौरव And आधार दिया जाता है, और र्इश्वर के अन्य All कार्यों पर उसका आधिपत्य होता है। मनुष्य में जो आत्मा होती है वास्तव में विभिन्न उच्च शक्तियों उसमें निहित होती है, उसी में तर्क, बुद्धि, मूलय नैतिक धार्मिक और आध्यात्मिक सत्तायें होती है।

4. आदर्शवाद का आधार राज्य – 

आदर्शवाद का पॉचवा आधार हगेले ने राज्य को माना है। इस सम्बंध में कर्निघम का विचार है कि हेगेल के लिये राज्य महान आत्मा का संसार में सर्वोच्च प्रकाशन है जिसका समय के द्वारा विकास सबसे बड़ा आदर्श है। राज्य दैवी विचार है इस प§थ्वी पर जिसका अस्तित्व है। इससे यह ज्ञात होता है कि राज्य की संकल्पना आदर्शवादी आधार के कारण ही है।

आदर्शवादी दर्शन के प्रमुख तत्व

1. तत्व मीमासां- 

All आदर्शवाददियों की मान्यता है कि यह जगत भौतिक नहीं अपितु मानसिक या आध्यात्मिक है। जगत विचारों की Single व्यवस्था, तर्कना का अग्रभाग है। प्रक§ति मन की क्रिया या प्रतीति है। भौतिक स§ष्टि का आधार मानसिक जगत है, जो उसे समझता है तथा मूल्य प्रदान करता है। मानसिक जगत के अभाव में भौतिक जगत Meansहीन हो जायेगा। आदर्शवाद के According यह जगत सोद्देश्य है।

2. स्व अथवा आत्मा- 

आदर्शवादी स्व की प्रक§ति आध्यातिमक मानता है तथा तत्व मीमांसा में ‘‘स्व’’ को सर्वोपरि रखता है। यदि अनुभव का जगत ब्रह्म स§ष्टि से अधिक महत्वपूर्ण है, तो अनुभवकर्ता मनुष्य तो और भी अधिक महत्वपूर्ण होना चाहिये। आदर्शवाद के According ‘‘स्व’’ की प्रक§ति स्वतंत्र है उनमें संकल्प शक्ति है, अत: वह भौतिक स§ष्टि में परिवर्तन लाने की क्षमता रखता है। क्रम विकास की प्रक्रिया में मनुष्य सर्वश्रेण्ठ इकार्इ है।

3. ज्ञान मीमांसा में आदर्शवाद- 

आदर्शवादी ज्ञान एव सत्य की विवचे ना विवेकपूर्ण विधि से करते हैं। वे ब्रह्माण्ड में उन सामान्य सिद्धान्तों की खोज करने का प्रयास करते है, जिनको सार्वभौमिक सत्य का Reseller प्रदान Reseller जा सके। इस द§ष्टि कोण से उनकी धारणा है कि सत्य का अस्तित्व है, परन्तु इसलिये नहीं है कि वह व्यक्ति या समाज द्वारा निर्मित Reseller गया है। सत्य को खोजा जा सकता है। जब उसकी खोज कर ली जायेगी तब वह निरपेक्ष सत्य होगा आदर्शवादियों की मान्यता है कि र्इश्वर या निरपेक्ष मन या आत्मा सत्य है।

4. मूल्य आदर्शवाद- 

शिव क्या है? इसके विषय में आदर्शवाददियों का कहना है कि सद्जीवन को ब्रह्माण्ड से सामंजस्य स्थापित करके ही व्यतीत Reseller जा सकता है। निरपेक्ष सत्ता का अनुकरण करके ही शिव या अच्छार्इ की प्राप्ति की जा सकती है। आदर्शवादियों का मत है कि जब मनुष्य का आचरण, सावैभौमिक नैतिक नियम के According होता है तो वह स्वीकार्य होता है सुन्दर क्या है? आदर्शवादियों के According यह निरपेक्ष सत्ता सुन्दरम है। इस जगत में जो कुछ भी सुन्दर है, यह केवल उसका अंशमात्र है, Meansात् उसकी प्रतिछाया है। जब हम कला के किसी कार्य को सौन्दर्यनुभूति करते हैं, तब हम ऐस इसलिये करते हैं, क्येांकि वह निरपेक्ष सत्ता का सच्चा प्रतिनिधि है। आदर्शवादी संगीत को सर्वोत्तम प्रकार की सौन्दर्यात्मक Creation मानते हैं।

आदर्शवाद की प्रशाखायें

आदर्शवादी दर्शन की अनेक शाखाये-प्रशाखायें है, परन्तु उनमें प्रमुख पॉच है-

  1. प्लेटो का वस्तुनिष्ठ आदर्शवाद।
  2. बर्कले का व्यक्तिनिष्ठ आदर्शवाद।
  3. कान्ट का प्रपंचात्मक आदर्शवाद।
  4. हेगले का द्वन्द्ववाद।
  5. आधुनिक ब्रिटिश अमरीकी आदर्शवाद।

1. प्लेटा का वस्तुनिष्ठ आदर्शवाद-

इस शाखा को यथाथर्वादी आदर्शवाद भी कहा जाता है। प्लेटो के According विचार सनातन, सर्वव्यापी तथा सार्वकालिक होते है। उनका अस्तित्व अपने आप में होता है। वे न तो र्इश्वर, न जगत पर आश्रित रहते हैं। इसका पूर्व भी अस्तित्व था, तथा हमारे अन्त के पण्चात् भी वे रहेंगे। विचार इस जगत की वस्तुओं का सार है। इन सनातन विचारेां की अपूर्ण प्रतिक§ति हम अनुभव द्वारा मालूम करते है। प्लेटो के According इन पूर्ण विचारेां की प्रतीति ऐन्द्रिक ज्ञान की अपेक्षा विवेक ज्ञान से होती है। इन्द्रियों द्वारा प्राप्त ज्ञान अपूर्ण तथा असंगत होता है, जबकि विवेक ज्ञान से सिद्धान्तों की पकड़ आती है, जो हमेशा सत्य हेाते हैं।

2. बर्कले का व्यक्तिवादी आदर्शवाद- 

जॉन लॉक ने न्यूटन के सिद्धान्त को स्वीकार Reseller कि जगत का आधार पुदगल है, जिसमें संवेदनीय लम्बार्इ, चौड़ार्इ, मोटार्इ, रंग ध्वनि, दूरी,दबाव आदि संवेदन अन्तनिर्हित है। बर्कले ने पुदग्ल की सत्ता को अस्वीकार Reseller तथा गुणों के द्वैत को भी। उसके According हम केवल गुणों को देखते हैं, गुणी जैसी किसी चीज को नहीं देखते। वस्तु गुणों का वह समूह मात्र है, और गुण मनोगत (आत्मगत) है, अत: केवल मनस् या आत्मा का अस्तित्व है, वस्तु का नहीं। इसी आधार पर उसने यह निष्कर्ण निकाला कि न केवल गौण गुण अपितु प्रधान गुण भी मानसिक है, न कि भौतिक। बर्कले के According स्व का सम्बंध हमारा ज्ञान परोक्ष तथा अनुमानित ज्ञान है, जिनका इन्द्रियों से अनुभव Reseller जा सके।

3. कान्ट का प्रपचांत्मक आदर्शवाद – 

प्लेटो तथा बकर्ले की भाित काटं भी पदार्थ को सत्य नहीं मानता। वह तर्कनाबुद्धि को हमारे All अनुभवों का समन्वयकारी केन्द्र मानता है। उसके According जागतिक पदार्थ का ज्ञान प्रत्यक्ष Reseller से न होकर परोक्ष Reseller से होता है। प्रत्यक्ष ज्ञान के लिये कांट दिक और काल देा तत्वों को प्रमुख मानता है। इन्ही दो गुणों के फलस्वReseller हम बाह्य जगत का ज्ञान प्राप्त करते हैं। प्रत्यक्ष ज्ञान भी विश्रश्खलित होता है, उसे समन्वित Reseller में ग्रहण करने के लिये कांट तर्कना को आवण्यक मानता है। आत्मीकरण की इस प्रक्रिया को कांट की अवधारणा नाम से जाना जाता है, ज्ञेय प्रत्ययों को कांट ने 12 भागों में विभक्त Reseller है।

कांट ने Human आत्मा अथवा ‘‘स्व’’ को सर्वोपरि माना। All आदर्शवादियों के समान वह भी स्व को मनस युक्त मानता है भौतिक नहीं। कांट के According मनस दिक् और काल का सर्जक है, तथा आवधारणा से उपर्युक्त वर्गीकरण का धारक है मनुष्यात्मा सर्वोपरि है।

4. हगेल का द्वन्द्वावाद-

हगेल के According सत्ता तथा उससे सम्बधं का हमारा ज्ञान समReseller है And हमारा ज्ञान तर्क बुद्धि परक होता है और स्वयं सत्ता कि इस तर्कबुद्धि परक व्यवस्था के कारण मनुष्य का ज्ञान सत्ता को उसी सीमा तक ग्रहण कर पाता है, जिस सीमा तक हमारे ज्ञान तथा सत्ता के बीच समResellerता हो। हेगल की मान्यता है कि विश्व निर्बाध गति से सक्रिय विकास की ओर बढ़ रहा है इस क्रम विकास की प्रक्रिया द्वारा विश्व अपने आप में अन्तर्निहित उद्देश्य की ओर बढ़ रहा है। इस क्रम विकास का प्रयोजन अपने आप में निहित लक्ष्य तथा नियति के बारे में सचेत होना है। हेगल इसी क्रम विकास के विचार को आगे बढ़ाते हुये कहता है कि ‘‘सत्ता’’ परम-तत्व के मन में विचार का विकास है। ब्रह्माण्ड चेतना (परमेण्वर) सत्ता के Reseller में तीन स्थितियों में विकसित होती है यथा, स्थापना, प्रतिस्थापना तथा संस्थापना। हेगल इसे अधिकाधिक पूर्णता की ओर बढ़ने की प्रक्रिया मानता है।

5. नैतिकता का सिद्धान्त – 

इस द्वन्द्वात्मक चिन्तन शैली को हगेल नैतिकता के क्षेत्र में भी प्रयुक्त करता है। समूह की नैतिकता जो कि सामाजिक संस्थाओं में परिलक्षित होती है, वैयक्तिक नैतिकता का सही मार्ग दर्शन कर सकती है।

6. आधुनिक आदर्शवाद – 

यूरापे में आदर्शवाद का जो आरम्भ जमर्नी में हुआ था, वह हेगल के साथ समाप्त हुआ। माक्र्स ने हेगल के द्वन्द्वावद को अपनाया परन्तु तत्व मीमांसा में भौतिकवाद को ग्रहण Reseller। इंग्लैण्ड, स्काटलैण्ड, इटली तथा संयुक्त राज्य अमेरिका में आदर्शवादी विचारधारा ने नया Reseller ग्रहण Reseller। ब्रिटेन में सेम्युअल,, कालरिज, जेम्स, हचिसन, स्टलिंगि, जान केअर्ड, बर्नाड, बोसाके बे्रडले नन आदि का नाम लिया जाता है।

आदर्शवाद के प्रमुख सिद्धान्त

थामस और लैंग ने आदर्शवाद के सिद्धान्त बताये हैं-

  1. वास्तविक जगत मानसिक And आध्यात्मिक है। 
  2. सच्ची वास्तविकता आध्यात्मिकता है। 
  3. आदर्शवाद का मनुष्य में विश्वास है क्योंकि वह चिन्तन तर्क And बुद्धि के विशेष गुणों से परिपूर्ण है। 
  4. जो कुछ मन संसार को देता है, केवल वही वास्तविकता है।
  5. ज्ञान का सर्वोच्च Reseller अन्तद§ष्टि है And आत्मा का ज्ञान सर्वोच्च है। 
  6. सत्यं शिवं सुन्दरं के तीनों शाश्वत मूल्य हैं और जीवन में इनकी प्राप्ति करना अत्यान्तावश्यक है। 
  7. इन्द्रियों की सच्ची वास्तविकता को नहीं जाना जा सकता है। 
  8. प्रक§ति की दिखायी देने वाली आत्म निर्भरता भ्रमपूर्ण है। 
  9. र्इश्वर मन से सम्बंध रखता है।
  10. भौतिक और प्राक§तिक संसार- जिसे विज्ञान जानता है, वास्तविकता की अपूर्ण अभिव्यक्ति है। 
  11. परम मन में जो कुछ विद्यमान है वही सत्य है और आध्यात्मिक तत्व है। 
  12. विचार, ज्ञान, कला, नैतिकता और धर्म जीवन के महत्वपूर्ण पहलू है। 
  13. हमारा विवेक और मानसिक And आध्यात्मिक द§ष्टि ही सत्य ज्ञान प्राप्त करने का सच्चा साधन है। 
  14. मनुष्य का विकास उसकी भौतिक And आध्यात्मिक शक्तियों पर निर्भर करता है।

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