74वां संविधान संशोधन अधिनियम- नगर निकायों के संदर्भ में

सत्ता विकेन्द्रीकरण की दिशा में संविधान का 73वां और 74वां संविधान संशोधन Single महत्वपूर्ण और निर्णायक कदम है। 74वां संविधान संशोधन नगर निकायों में सत्ता विकेन्द्रीकरण का Single मजबूत आधार है। अत: इस अध्याय का उद्ेश्य 74वें संविधान संशोधन की Need और 74वें संविधान संशोधन में मौजूद उपबंधों और नियमों को स्पश्ट करना है। भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र के Reseller में जाना जाता है। इस लोक तंत्र का सबसे रोचक महत्वपूर्ण पक्ष है सत्ता व शक्तियों का विकेन्द्रीकरण। Meansात केन्द्र स्तर से लेकर स्थानीय स्तर पर गांव इकार्इ तक सत्ता व शक्ति का बंटवारा ही विकेन्द्रकरण कहलाता है। विकेन्द्रीकरण की व्यवस्था किसी न किसी Reseller में प्राचीन काल से ही भारत में विद्यमान थी। King/महाKingओं के समय भी सभा, परिषद, समितियां सूबे आदि के माध्यम से शासन चलाया जाता था। लोगों को उनकी जरुरतें पूरी करने के लिए निर्णयों में हमेशा महत्वपूर्ण सहभागी माना जाता था। लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता गया लोगों की शासन व लोक विकास में भागेदारी से अलग कर दिया गया तथा उनके अपने हित व विकास के लिए बनार्इ जाने वाले कार्यक्रम, नीतियों पर केन्द्र सरकार या राज्य सरकार का नियंत्रण बनता गया। 1992 में सरकार के 74वें संविधान संशोधन के माध्मय से पुन: नगरीय क्षेत्रों में स्थानीय लोगों को निर्णय लेने के स्तर पर सक्रिय व प्रभावषाली सहभागिता बनाने का प्रयास Reseller गया है। संविधान का 74वां संशोधन में नगर निकायों – नगर पलिका, नगर निगम और नगर पंचायतों में शहरी लोगों की भागीदारी बढ़ाने में मदद की है। इस संशोधन ने यह स्पष्ट कर दिया है कि अब शहरों, नगरों, मोहल्लों की भलार्इ उनके हित व विकास संबंधी मुद्दों पर निर्णय लेने का अधिकार केवल सरकार के हाथ में नहीं है। अब नगरों व शहर के ऐसे लोग जो शहरी मुद्दों की स्पष्ट सोच रखते हैं व नगरों, कस्बों व उनमें निवास करने वाले लोगों की नागरिक सुविधाओं के प्रति संवेदनशील है, निर्णय लेने की स्थिति में आगे आ गये हैं। महिलाओं व पिछड़े वर्गों के लिए विषेष आरक्षण व्यवस्था ने हमेषा से पीछे रहे व हाषिये पर खड़े लोगों को भी बराबरी पर खड़े होने व निर्णय प्रक्रिया को प्रभावित करने का अवसर दिया है। 74वें संशोधन ने सरकार (लोगों का शासन) के माध्मय से आम लोगों की सहभागिता स्थानीय स्वशासन में सुनिश्चित की है। हर प्रकार के महत्वपूर्ण निर्णयों में स्थानीय लोगों को सम्मिलित करने से निणर्य प्रक्रिया प्रभावी, पारदश्र्ाी व समुदाय के प्रति संवेदनशील हो जाती है।

बहुत समय First नीति निर्माताओं, वरिष्ठ अधिकारियों And कार्यक्रमों को चलाने वाले अधिकारियों तथा कार्यकर्त्ताओं द्वारा जनता के लिये योजनायें बनायी जाती थीं। इसलिए योजना को बनाने की प्रक्रिया पूर्व में उपर से नीचे की ओर थी। परन्तु यह प्रक्रिया जनता की जरूरतों को पूरी नहीं कर पाती थी, विकास गतिविधियों को चलाने में लोगों की सहभागिता को प्रोत्साहित नहीं करती थी And लोगों को भी यह नहीं लगता था कि लागू की जा रही योजना अथवा कार्यक्रम उनका अपना है। इसलिए यह महसूस Reseller गया कि लोगों को कार्य योजनायें स्वयं बनानी चाहिए, क्योंकि उन्हें अपनी Needओं का पता होता है कि किस प्रकार वे अपने जीवन स्तर में सुधार ला सकते हैं And वे अपने विकास में सहभागी बन सकते हैं। अत: यह महसूस Reseller गया कि लोगों के लिए योजना बनाने की प्रक्रिया अनिवार्य Reseller से नीचे से उपर की ओर होनी चाहिये क्योंकि लोगों को अपनी ज़रूरतों की पहचान होती है जिससे वे योजनाओं को वरीयता क्रम निर्धारित करते हुए योजना बना सकते हैं। कार्यक्रम क्रियान्वित करने वाले कार्मिक जनता/समुदाय की योजनाओं को समेकित कर सकते हैं।

74वें संविधान संशोधन के उद्देश्य

  • देश में नगर संस्थाओं जैसे नगर निगम, नगर पालिका, नगर परिषद तथा नगर पंचायतों के अधिकारों में SingleResellerता रहे। 
  • नागरिक कार्यकलापों में जन प्रतिनिधियों का पूर्ण योगदान तथा राजनैतिक प्रक्रिया में निर्णय लेने का अधिकार रहे। 
  • नियमित समयान्तराल में प्रादेशिक निर्वाचन आयोग के अधीन चुनाव हो सके व कोर्इ भी निर्वाचित नगर प्रशासन छ: माह से अधिक समयावधि तक भंग न रहे, जिससे कि विकास में जनप्रतिनिधियों का नीति निर्माण, नियोजन तथा क्रियान्वयन में प्रतिनिधित्व सुनिश्चित हो सके। 
  • समाज की कमजोर जनता का पर्याप्त प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिये (संविधान संशोधन अधिनियम में प्राविधानित/निर्दिष्ट) प्रतिशतता के आधार पर अनुसूचित जाति, अनुसूचित जन-जाति व महिलाओं को तथा राज्य (प्रादेषिक) विधान मण्डल के प्राविधानों के अन्तर्गत पिछड़े वर्गों को नगर प्रशासन में आरक्षण मिलें। 
  • प्रत्येक प्रदेश में स्थानीय नगर निकायों की आर्थिक स्थिति सुधारने के लिये Single राज्य (प्रादेषिक) वित्त आयोग का गठन हो जो राज्य सरकार व स्थानीय नगर निकायों के बीच वित्त हस्तान्तरण के सिद्वान्तों को परिभाषित करें। जिससे कि स्थानीय निकायों का वित्तीय आधार मजबूत बने। 
  • All स्तरों पर पूर्ण पारदर्शिता रहे। 

74वें संविधान संशोधन की Need 

पूर्व की नगरीय स्थानीय स्वशासन व्यवस्था लोकतन्त्र की मंशा के अनुReseller नहीं थी। सबसे पहली कमी इसमें यह थी कि इसका वित्तीय आधार कमजोर था। वित्तीय संसाधनों की कमी होने के कारण नगर निकायों के कार्य संचालन पर राज्य सरकार का ज्यादा से ज्यादा नियंत्रण था। जिसके कारण धीरे-धीरे नगर निकायों के द्वारा किये जाने वाले अपेक्षित कार्यों/या उन्हें सौंपे गये कायांर् े में कमी होनी लगी। नगर निकायों के प्रतिनिधियों की बरखास्ती या नगर निकायों का कार्यकाल समाप्त होने पर भी समय पर चुनाव नहीं हो रहे थे। इन निकायों में कमजोर व उपेक्षित वर्गों (महिला, अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति)का प्रतिनिधित्व न के बराबर था। अत: इन कमियों को देखते हुए संविधान के 74वें संशोधन अधिनियम में स्थानीय नगर निकायों की संCreation, गठन, शक्तियों, और कार्यों में अनेक परिवर्तन का प्राविधान Reseller गया ।

74वें संविधान संशोधन के पीछे सोच 

  • संविधान के 74वें संशोधन अधिनियम द्वारा नगर-प्रशासन को संवैधानिक दर्जा प्रदान Reseller गया है। 
  • इस संशोधन के अन्तर्गत नगर निगम, नगर पालिका, नगर परिषद And नगर पंचायतों के अधिकारों में Single Resellerता प्रदान की गर्इ है 
  • नगर विकास व नागरिक कार्यकलापों में आम जनता की भागीदारी सुनिश्चित की गर्इ है। तथा निर्णय लेने की प्रक्रिया तक नगर व शहरों में रहने वाली आम जनता की पहुंच बढ़ार्इ गर्इ है। 
  • समाज कमजोर वर्गों जैसे महिलाओं अनुसूचित जाति, जनजाति व पिछड़े वर्गों का प््रतिशतता के आधार पर प्रतिनिधित्व सुनिश्चित कर उन्हें भी विकास की मुख्य धारा से जोड़ने का प्रयास Reseller गया है। 
  • 74वें संशोधन के माध्यम से नगरों व कस्बों में स्थानीय स्वशासन को मजबूत बनाने के प्रयास किये गये हैं। 
  • इस संविधान की मुख्य भावना लोकतांत्रिक प्रक्रिया की Safty, निर्णय में अधिक पारदर्षिता व लोगों की आवाज पहुंचाना सुनिश्चित करना है। 

नगर निकायों के गठन And संCreation 

शहरी क्षेत्रों के आकार व जनसंख्या आधारित 

  • अधिक आबादी वाले/महानगरीय क्षेत्रों में – नगर निगम का गठन होगा (Single लाख से ज्यादा जनसंख्या वाले नगर) 
  • छोटे नगरीय क्षेत्रों में- नगरपालिका परिषद का गठन होगा (50 हजार से Single लाख तक जनसंख्या वाले नगर)
  • संक्रमणशील (ग्रामीण क्षेत्रों से नगरीय क्षेत्रों में परिवर्तित होने वाले क्षेत्र ) क्षेत्रों में- नगर पंचायत का गठन होगा (50 हजार तक जनसंख्या वाले नगर)
  • नगर निगम, नगर पालिका परिशद व नगर पंचायत स्तर पर जनता द्वारा Single अध्यक्ष निर्वाचित Reseller जायेगा
  • नगरीय क्षेत्र के प्रत्येक वार्ड से प्रत्यक्ष Reseller से सदस्य निर्वाचित किये जायेंगे जिनकी संख्या वार्डों की संख्या के आधार पर राज्य सरकार द्वारा जारी विज्ञप्ति के According होगी।
  • पदेन सदस्य के Reseller में नगर निकायों में लोकसभा And राज्य विधान सभा के ऐसे सदस्य शमिल किये जायेंगे, जो नगरीय निकाय क्षेत्र (पूर्णत: या भागत:) के निर्वाचन क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
  • पदेन सदस्य के Reseller में राज्य सभा व राज्य विधान परिषद के ऐसे सदस्य जो नगरीय निकाय क्षेत्र के अन्दर निर्वाचकों के Reseller में पंजीकृत है। 
  • नगरपालिका प्रशासन में विशेष ज्ञान या अनुभव रखने वाले निर्दिष्ट/नामित सदस्य स्थानीय निकायों में शामिल किये जायेंगे। 
  • संविधान के अनुच्छेद 243-एस. के प्रस्तर (5) के अधीन स्थापित समितियों के अध्यक्ष यदि कोर्इ हो। 

नगर निकायों का कार्यकाल 

नगर निगम, नगर पालिका, And नगर पंचायतों का कार्यकाल पहली बैठक के दिन से पांच वर्ष तक रहेगा। अगर किसी कारणवष 74वें संविधान संशोधन के नियमों के अनुReseller नगर निकाय अपनी जिम्मेदारियों व उत्तरदायित्वों को पूरा नहीं करते या उनमें अनियमतता पायी जाती है तो पांच वर्श पूर्व भी राज्य सरकार इन्हें भंग या बर्खास्त कर सकती है। बर्खास्त/भंग करने के 6 माह के अन्दर अनिवार्य Reseller से चुनाव करवाकर नया बोर्ड गठित Reseller जाना आवश्यक है। नगर निकायों को भंग करने से पूर्व सुनवार्इ का Single न्यायोचित अवसर दिया जायेगा।

नगर निकायों की बैठकें व उनकी कार्यवाहियाँ 

कार्यपालक पदाधिकारी द्वारा निश्चित दिन तथा नियत समय पर Single माह में कम से कम Single बैठक आयोजित की जाएगी। अध्यक्ष के निर्देश पर अन्य बैठकें भी कार्यपालक अधिकारी द्वारा बुलायी जा सकती हैं। यदि नगर निकाय के पास कार्यपालक पदाधिकारी नहीं है तो अध्यक्ष बैठक आयोजित करेगा। Need पड़ने पर किसी भी दिन या समय पर नोटिस देने के बाद अघ्यक्ष द्वारा आपातकालीन बैठक बुलायी जा सकती है। आपातकालीन बैठकों के अतिरिक्त अन्य बैठकों हेतु नोटिस को कम से कम 3 दिन पूर्व All सदस्यों को भेजा जाना अनिवार्य होगा। नोटिस की अवधि 3 दिन से अधिक भी हो सकती है। आपातकालीन बैठकों के मामले में यह अवधि कम से कम 24 घंटे की होनी चाहिए। बैठक हेतु प्रत्येक सूचना में बैठक की तिथि, समय तथा स्थान का History आवश्यक है। बैठक की गणपूर्ति कुल सदस्यों के Single तिहार्इ सदस्यों की उपस्थिति मानी जायेगी। गणपूर्ति के अभाव में बैठक स्थगित कर दी जायेगी तथा तय की गर्इ तिथि को बैठक आयोजित की जाएगी। जिसकी सूचना आयोजन के कम से कम तीन दिन पूर्व दी जाएगी। बैठक की कार्यवाही को कार्यवाही पुस्तिका में अंकित Reseller जाएगा जिस पर अध्यक्ष का हस्ताक्षर होगा कार्यवाही की प्रतियों को राज्य सरकार या राज्य सरकार द्वारा निदेषित प्रधिकारी को तुरन्त भेज दी जाएगी। पारिस्थितियों की अनुकूलता के आधार पर अधिषासी अधिकारी अथवा सचिव द्वारा बैठक से पूर्व All सदस्यों को बैठक से सम्बन्धित अभिलेख, पत्राचार जो उस बैठक में विचार किये जायेगें, दिखाये जायेंगे जब तक कि अध्यक्ष अथवा उपाध्यक्ष द्वारा अन्यथा निर्देषित Reseller गया हो।

किसी सदस्य द्वारा बैठक में कोर्इ प्रस्ताव लाना 

यदि कोर्इ सदस्य, बैठक में कोर्इ प्रस्ताव लाना चाहता है तो उसे कम से कम Single सप्ताह पूर्व अघ्यक्ष को अपने इस विचार से लिखित Reseller में अवगत कराना होगा। कोर्इ भी सदस्य सभा में व्यवस्था के प्रष्न को अध्यक्ष के समक्ष उठा सकता है लेकिन उस पर तब तक कोर्इ Discussion नहीं की जायेगी जब तक कि उपस्थित सदस्यों की राय जानने हेतु अध्यक्ष उपयुक्त न समझे। किसी भी प्रस्ताव अथवा प्रस्तावित संशोधन पर विचार-विमर्ष से पूर्व अध्यक्ष सदस्यों से उस प्रस्ताव के समर्थन की मांग कर सकता है। प्रत्येक सदस्य/सभासद अपने स्थान से अघ्यक्ष को सम्बोधित करते हुए ही प्रष्न पूछ सकता है, And उस पर Discussion कर सकता है। प्रस्तुतकर्ता के अतिरिक्त कोर्इ भी सदस्य किसी प्रस्ताव या संशोधन पर अध्यक्ष की अनुमति के बिना दो बार नहीं बोलेगा। बैठक की कार्य सूची/कार्यवाही से सम्बन्धित All प्रष्न किसी/Single सदस्य द्वारा Second सदस्य से अध्यक्ष के माध्यम से ही पूछे अथवा प्रस्तुत किये जाएगें। अध्यक्ष द्वारा बैठक की कार्यवाही/कार्यसंचालन निम्न क्रम से की जायेगी-

  • First गत बैठक का कार्यवृत्त पढ़ा जाऐगा। 
  • यदि First बैठक है, तो गत माह का लेखा बोर्ड के विचार्थ तथा आदेशार्थ प्रस्तुत होगा। 
  • स्थानीय शासन तथा उनके अधिकारियों से प्राप्त पत्रों/सूचनाओं को पढ़ा जाऐगा।
  • समितियों तथा सदस्यों के प्रतिवेदन यथा आवश्यक आदेशार्थ तथा स्वीकृतार्थ विचार किये जाऐगें। 
  • निर्धारित प्रक्रियानुसार सूचित किये गये प्रस्तावों पर Discussion व मतदान कराया जायेगा।
  • अगली बैठक में लाये जाने वाले प्रस्तावों का नोटिस/सूचना दी जाऐगी।
  • समितियों, अधिकारियों आदि के आदेशों की अपीलों का निस्तारण Reseller जाएगा। 

नगरीय निकायों में वित्तीय प्रबंधन 

74वें संविधान संशोधन के उपरान्त अब नगर निकायों के आय के निम्नलिखित सा्रेत है।
1. राज्य वित्त आयोग के द्वारा निर्धारित धनराशि।
2. नगर निकायों द्वारा वसूले गये करों से प्राप्त धनराशि।
3. राष्ट्रीय वित्त आयोग के द्वारा निर्धारित धनराशि ।

  • राज्य सरकार द्वारा नगरीय निकायों में समय-समय पर अनुदान देने की प्रथा को समाप्त कर राज्य सरकार द्वारा प्राप्त कुल करों में नगरीय स्थानीय निकायों के अंश का निर्धारण Reseller गया।
  • स्थानीय निकायों को दी जाने वाली राशि के वितरण का आधार 80 प्रतिशत जनसंख्या And 20 प्रतिशत क्षेत्र के आधार पर निर्धारित Reseller गया है।
  • इसके अतिरिक्त प्रत्येक केन्द्रीय वित्त आयोग प्रतिवर्ष शहरी स्थानीय निकायों के लिए धन आवंटित करता है। 
  • आयोग के निर्देशानुसार केन्द्रीय वित्त आयोग द्वारा दी गर्इ राशि का उपयोग वेतन, मजदूरी में नहीं Reseller जाएगा बल्कि यह सामान्य सुविधाएं जैसे जल निकासी, कूड़ा निकासी, शौचालयों की सफार्इ, मार्ग-प्रकाश इत्यादि में ही इसका उपयोग Reseller जाएगा। 
  • 74वें संविधान संशोधन अधिनियम में 12वीं अनुसूची के अन्तर्गत जो 18 कार्य/दायित्व शहरी स्थानीय निकायों को दिये गये हैं राज्य सरकार को उन उद्देष्यों की पूर्ति हेतु नगर निकायों आवश्यक राशि दी जायेगी। 
  • नगरपालिका के आय का Single मुख्य स्रोत इसके द्वारा लगाये गये विभिन्न कर And शुल्क भी हैं। 

नगर निकायों में बजट की Need व महत्ता 

वित्तीय प्रबन्धन के लिए आय-व्ययक अनुमान/आगणन Meansात बजट तैयार करना अत्यन्त आवश्यक है। बजट आय तथा व्यय का Single अनुमान है जो कि अपने संसाधनों के उपयोग के लिए Single प्रकार से मार्ग दर्शक, नीतियों के निर्धारण, व्यय संबंधी निर्णय लेने के लिए मार्ग दर्शक, वित्तीय नियोजन का Single यंत्र तथा संप्रेषण का Single माध्यम है। बजट वित्तीय प्रबन्धक का Single महत्वपूर्ण अवयव है, इसे मात्र औपचारिकता के Reseller में नहीं लेना चाहिए।

नगर निकायों में बजट Single विधिक Need है, क्यों कि जब तक वित्तीय वर्ष का बजट बोर्ड द्वारा पारित नहीं Reseller जाता है, तब तक कोर्इ खर्चा नहीं Reseller जा सकता है। बजट तैयार कर लेने से लक्ष्यों व उद्देश्यों के निर्धारण तथा नीतिगत निर्णय लेने में सहायता मिलती है।बजट के द्वारा वास्तविकता आधारित कार्य नियोजन आसानी से Reseller जा सकता है Meansात योजनाओं व कार्यक्रम की प्राथमिकतायें निर्धारित करने में सहायता मिलती है। इससे कार्य कलापों पर वित्तीय नियन्त्रण रखा जा सकता है और धन का अपव्यय भी रोका जा सकता है। अगर नगर निकाय आय-व्यय का विधिवत व उचित दस्तावेजीकरण करते हैं व उसको आधार मानकर अपना बजट बनाते हैं तो अंशदान, अनुदान, सहायता प्राप्त करने में सहायता मिलती है।

बजट Need आधारित होना चाहिए व इस हेतु ‘‘जीरो बेस बजटिंग’’(शून्य आधारित बजट) प्रक्रिया को अपनाना चाहिए न कि पिछले आय व्ययक अनुमान पर कुछ प्रतिशत बढोतरी या घटोतरी करें। अगले वित्तीय वर्ष का बजट वर्तमान वित्तीय वर्ष के अन्तिम माह Meansात मार्च की 15 तारीख तक बोर्ड द्वारा विचारोपरान्त पारित पारित कर लिया जाना चाहिए। अत: बजट तैयार करने की प्रक्रिया प्रत्येक दशा में अंतिम तिमाही के पूवार्द्ध में ही पूर्ण कर ली जानी चाहिए व इस पर बोर्ड बैठक में विस्तृत Discussion करनी चाहिए जिससे कि नीतिगत निर्णय, प्राथमिकता निर्धारण तथा जनता के हित में उचित वित्तीय निर्णय लिये जा सकें। चूंकि बोर्ड सभासदों से ही बना है, अत: बजट के माध्यम से सभासदों के बहुमत निर्णय से नीतियों व रणनीतियों का निर्धारण होता है।

नगरीय निकायों में लगाये जाने वाले कर 

  1. भवनों या भूमियों या दोनों के वार्षिक मूल्य पर कर। 
  2. नगर पालिका की सीमा के अन्तर्गत व्यापार पर कर जिन्हें नगर पालिका की सेवाओं से विशेष लाभ मिलता है। 
  3. व्यापार, पेशों तथा व्यवसायों पर कर जिसमें All रोजगार जिनके लिये वेतन या शुल्क मिलता है वह सम्मिलित हैं। 
  4. मनोरंजन कर। 
  5. नगरपालिका के अंदर भाड़े पर चलने वाली गाड़ियों या उसमें रखी गर्इ गाड़ियों पर कर। 
  6. नगरपालिका के अन्दर रखे कुत्तों पर कर।
  7. नगर पालिका के अन्दर रखे सवारी, चालन या बोझे के पशुओं पर कर। 
  8. व्यक्तियों पर सम्पत्तियों या परिस्थितियों के आधार पर कर। 
  9. भवनों या भूमि या दोनों के वार्षिक मूल्य पर जल कर।
  10. भवन के वार्षिक मूल्य पर उर्तक मूल्य पर उत्प्रवाह कर। 
  11. सफार्इ कर। 
  12. शोचालयों, मूत्रालयों तथा गड्ढ़ों से उत्प्रवाह तथा प्रदूषित जल के Singleत्रीकरण, हटाने तथा खात्मा करने के लिए कर। 
  13. नगर पालिका की सीमा के अन्तर्गत स्थित सम्पत्ति के हस्तांतरण पर कर। 
  14.  संविधान के अन्तर्गत कोर्इ अन्य कर जो राज्य विधायिका द्वारा राज्य में लागू Reseller जा सके। 

प्रावधान 

  1. 3 व 8 के कर Single साथ नहीं लगाए जा सकते हैं। 
  2. 10 0 12 के कर Single साथ नहीं लगाए जा सकते हैं। 
  3. 13 के अन्तर्गत नगर पालिका के अन्तर्गत अचल सम्पति के हस्तांतरण पर कर नहीं लगाया जा सकता है। (यदि वह सम्पति नजूल की हो) 
  4. 5 का कर मोटर गाड़ी, पर नहीं लगाया जा सकता है। 

मूल्यांकन , छूट व वसूली 

भवन या भूमि दोनों पर कर लगाने के लिए नगर निकाय Single मूल्यांकन सूची तैयार कर Single सार्वजनिक स्थल पर प्रदर्षित कर सकते हैं ताकि जिन लोगों को आपति हो वह Single महीने के अन्दर दाखिला कर सकें। जब आपतियों का निवारण हो जाता है तब मूल्याँकन सूची को प्रमाणित Reseller जाता है। प्रमाणित मूल्याँकन सूची नगर निकाय कार्यालय में जमा कर दी जाती है तथा उसे जनता द्वारा निरीक्षण के लिये खुला घोषित कर दिया जाता है। सामान्यत: नर्इ मूल्याँकन सूची पाँच वर्ष में Single बार तैयार की जाती है। नगर निकाय किसी समय मूल्यांकन सूची को बदल सकते हैं या उसमें संशोधन कर सकते हैं। यदि कोर्इ भवन या भूमि वर्ष में 90 या अधिक दिनों तक लगातार खाली रहती है तो नगर पालिका उस अवधि में कर छूट देती है। उस भवन या भूमि के पुन: कब्जे के लिए उस सम्पत्ति के मालिक को 15 दिनों के अंदर नगरपालिका को सूचना देनी होती है। अगर कोर्इ ऐसा नहीं करता तो वह दंड का भागी होता है। दण्ड की राशि वास्तविक कर की दुगुनी राशि से दस गुना राशि से भी अधिक हो सकती है।

नगर पालिका करों से संबंधित अपीलें नगर पालिका कार्यालय में दायर की जा सकती है। साथ ही साथ इसकी Single प्रति जिलाधिकारी के यहाँ भी जाती है। सामान्यत: किसी भी अवधि के लिए देय कर या शुल्क का भुगतान उसकी अवधि के शुरू होने से पूर्व करना होता है। जब व्यक्ति कर का भुगतान समय पर नहीं करता तो उसके विरूद्व नगरपालिका द्वारा वारंट जारी हो जाता है। ऐसे व्यक्ति के अहाते से सम्पति को जब्त कर उसे नीलामी द्वारा बेचा जा सकता तथा बकायों की वसूली की जा सकती है। जब कोर्इ व्यक्ति किसी कर का बकायेदार हो तो नगरपालिका कलेक्टर से प्रार्थना कर सकती है कि वह ऐसे धन को भू-राजस्व की भाँति वसूल करें, जिसमें कार्यवाही का खर्च शामिल नहीं होगा। कलेक्टर जब बकाया धन से संतुष्ट हो जाता है तो उसे वसूल करने की कार्यवाही करता है।

नगरीय निकायों में वार्ड कमेटियाँ 

  1. स्थानीय लोग स्थानीय विकास में भागीदारी निभा सकें इसलिए संविधान के 74वें संशोधन अधिनियम के अन्तर्गत स्थानीय नगरीय सरकार के लिए शक्तियों And सत्ता का विकेन्द्रीकरण Reseller गया है।
  2. संशोधन के माध्यम से विकेन्द्रीकरण के द्वारा ऐसे संस्थागत ढ़ांचे का निर्माण करने का प्रयास Reseller गया जिससे All स्तर के लोग स्थानीय विकास में भागेदारी निभा सकें। नगरीय निकायों के इस ढ़ाचे को हम स्थानीय स्वशासन की दो स्तरों पर की गर्इ व्यवस्था के Reseller में जानते हैं।
  3. पहला स्तर नगर निकाय स्तर पर चयनित सरकार है जिसमें स्थानीय लोग प्रतिनिधि के Reseller में चुनकर आते हैं जो स्थानीय समस्याओं की बेहतर समझ के साथ स्थानीय विकास के लिए प्रयास करते हैं।
  4. Second स्तर पर वार्ड कमेटियों के गठन का प्रावधान है जिससे कि वार्ड के स्तर पर भी लोग विकास के लिए नियोजन से लेकर निर्णय लेने की प्रक्रिया And विकास कार्यों के क्रियान्वयन में अपनी भागीदारी निभा सकें।
  5. 74वें संविधान की धारा 243(1) के According यह व्यवस्था केवल उन शहरों में लागू होती है जिनकी जनसंख्या तीन लाख या उससे अधिक हो। जिन शहरों की जनसंख्या तीन लाख है या उससे कम है, वहाँ पर राज्य सरकार अन्य समीतियों को गठित करने को स्वतंत्र है। वार्ड कमेटी पाँच या उनसे अधिक वार्डों से मिलकर बनती है, जिसमें Single अध्यक्ष तथा जितने भी वाडर् उस कमेटी में हैं के चयनित प्रतिनिधि/सदस्य उसके होते हैं। 
  6. नगरीय स्थानीय स्वशासन के तीन व्यक्ति जो इससे संबंधी मुद्दों/समस्याओं के बारे में विशेष ज्ञान रखते हों उसके वार्ड के नामित सदस्य होते है। उन्हीं में से किसी Single व्यक्ति का चुनाव Single वर्ष के लिए अध्यक्ष के पद के लिए होता है। जो यदि चाहे तो दुबार अध्यक्ष पद के लिए चुनाव लड़ सकता है। 
  7. वार्ड कमेटी का कार्यकाल उक्त नगर निकाय की अवधि के साथ समाप्त होता है। 

संविधान के 74वें संशोधन के According वार्ड कमेटियों का व्यवहारिक Reseller में वह स्वReseller नहीं बन पा रहा है जिसकी कल्पना की गर्इ थी। Single सशक्त वार्ड कमेटी की भूमिकाओं में वार्ड/वार्डों की समस्याओं की पहचान कर उनकी प्राथमिकताएं तय करना, नगर निकायों के द्वारा कराये जा रहे कार्यों का निरीक्षण, नियोजन And विकाSeven्मक गतिविधियों का संचालन, वार्षिक आम सभा का आयोजन, म्यूनिसीपल वार्ड की जवाबदेही And इनके कायांर् े में पारदर्शिता इत्यादि हो सकती है।

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