ह्वेनसांग का यात्रा वृतांत And जीवन परिचय

ह्वेनसांग का यात्रा वृतांत

हर्ष के शासन काल में चीनी यात्री ह्वेनसांग भारत के विभिन्न भागों की यात्रा की और चीन लौटने के पश्चात उसने अपनी यात्रा वृतांत संस्मरणों को लेखबद्ध Reseller । अतएव उसका description हर्षकालीन History पर अत्यन्त महत्वपूर्ण प्रकाश डालता है ।

ह्वेनसांग का जीवन परिचय 

ह्वेनसांग का जन्म चीन के होननफू नामक नगर में हुआ था । बचपन से धर्म के प्रति उसका विशेष प्रेम था । 13 वर्ष की अल्पायु में वह भिक्षु हो गया । अत्यंत प्रतिभाशाली होने के कारण धर्माचार्य के Reseller में शीघ्र ही उसकी ख्याति सम्पूर्ण चीन में फैल गयी । वह बौद्ध धर्म के मूल ग्रंथो और तीर्थ की यात्रा करने के उद्देश्य से भारत आना चाहता था और उसने भारत की यात्रा की चीनी सरकार ने उन्हें भारत यात्रा की अनुमति दे दी । वह 620 र्इ. में चीन से रवाना हुआ तथा 645 र्इस्वी में वापस पहुंचा । ह्वेनसांग नालन्दा विश्वविद्यालय में अध्ययन करने तथा बौद्ध धर्म से संबंधित सामग्री Singleत्र करने आया था उसने हर्ष के राज दरबार में कर्इ वर्ष व्यतीत किये तथा दूर-दराज की यात्राएं की । उसका वृतान्त इस काल की राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक And धार्मिक दशा की जानकारी के लिए Single महत्वपूर्ण साधन है ।

ह्वेनसांग के प्रमाणों के According हर्ष Single परिश्रमी, उदार जागरूक तथा परोपकारी King था । उसकी ठोस नीतियों ने साम्राज्य को Single कुशल प्रशासन प्रदान Reseller । King ने स्वयं की जनता के कल्याण के लिए समर्पित Reseller हुआ था । उसेने अपने दैनिक जीवन में सरकारी कार्यो तथा धार्मिक कार्यो को करने के लिए घंटे बांट रखे थे । हर्ष की धर्म-परायणता And उद्यम की श्रद्धांजलि देते हुए ह्वेनसांग लिखता है : ‘‘अच्छे कार्यो के प्रति समर्पण ने उसे निद्रा और भोजन भुला रखा था, उसका दिन बहुत छोटा होता था ।’’ वह अक्सर अपने साम्राज्य की यात्रा करता था तथा सभाए अयोजित करता था ताकि वह आम आदमी की समस्याएं समझ सके और उनसे संपर्क रख सके ।

ह्वेनसांग हर्ष की कलात्मक भावनाओं पर भी प्रकाश डालता है । हर्ष ने सदा ज्ञानार्जन को प्रोत्साहन दिया । कला और शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए अनेक अधिकारियों की Appointment की गर्इ थी । स्वयं हर्ष ने नागनन्द नाटक की Creation की थी । आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि चीनी विद्वान इस नाटक को चीन तक ले गये जहां से यह जापान पहुंचा । जापान में आज भी बुगाकू थिएटर में इस नाटक को अभिनीत Reseller जाता है ।

ह्वेनसांग की Creationओं में इस काल के समान की झलक देखने को मिलती है । ब्राह्मणों और क्षत्रियों का जीवन सादा था किन्तु कुलीन वर्गो तथा धर्माधिकारियों का जीवन वैभवशाली था। शुद्रो को कृषक कहा गया है । वह अछूतो का भी History करता है तथा मेहतर तथा जल्लाद जो शहर की सीमाओं से बाहर रहते थे । सामान्य Reseller से जनता के संदर्भ में ºयून-त्सांग कहता है कि ‘‘उग्र स्वभाव के होने पर भी लोग र्इमानदार और निष्कपट थे ।’’

ह्वेनसांग कन्नौज का सजीव चित्रण प्रस्तुत करता है ं यह उसके विशालकाय भवनों, सुन्दर उद्यानों तथा स्वच्छ जलाशयों का History करता है । वहां के निवासी समृद्ध थे और सजेसंवरे मकानों में रहते थे । यह चमकदार रेशम के वस्त्र धारण करते थे तथा संस्कृत भाषा बोलते थे । देश की समृद्धि का प्रतीक बुद्ध की वह स्वर्ण प्रतिमाएं थी जो ह्वेनसांग ने देखी थी । उसके द्वारा देखे गये बौद्ध मठ भी धन संपदा के मालिक थे तथा विभिन्न प्रकार की गतिविधियों में रत थे । मात्र तथ्य कि ह्वेनसांग तथा अन्य यात्री भूमि और जल मार्गो से भारत आए, इस बात की ओर अंकित करते है कि भारत का दक्षिण पूर्व और मध्य एशिया के साथ सशक्त व्यापार होता था। ह्वेनसांग बौद्ध धर्म के महायान सम्प्रदाय को मानता था इस लिए उसका वृतान्त महायान बौद्ध धर्म के सिद्धांतो पर प्रकाश डालता है तथा उससे संबंधित विचार विमर्श भी described करता है। ह्वेनसांग का वृतान्त हर्ष के काल की राजनीतिक, समाजिक आर्थिक तथा धार्मिक दशा पर प्रकाश डालता है ।

ह्वेनसांग लगभग 15 वर्ष भारत में रहा । 644 र्इ. के लगभग वह मध्य एशिया के रास्ते होता हुआ चीन वापस लौट गया । अपने साथ वह छ: सौ से भी अधिक हस्तलिखित ग्रंथ ले गया। उसने अपना शेष जीवन इन ग्रंथो के अनुवाद और अपने संस्मरण लिखने में व्यतीत Reseller 664 र्इह्वेनसांग की मृत्यु हो गयी ।

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