हड़प्पा सभ्यता का उद्भव, विस्तार, नगर-योजना

हड़प्पा सभ्यता का उद्भव

हड़प्पा सभ्यता के उद्भव सम्बन्धी मतों में भिन्नता का कारण है कि इस सभ्यता के अवशेष जहाँ कहीं भी मिले हैं। अपनी पूर्ण विकसित अवस्था में मिले हैं। सुमेरियन से उद्भव का मत – सर जॉन मार्शल, गार्डन चाइल्ड, सर मार्टीमी ह्वीलर आदि पुराविदों का कहना है कि हड़प्पा सभ्यता का उद्भव मेसोपोटामिया की सुमेरियन सभ्यता से हुर्इ है। इन विद्वानों के According सुमेरियन सभ्यता हड़प्पा सभ्यता से प्राचीनतर थी। इन विद्वानों के According के दोनों सभ्यताओ में कुछ समान विशेषतायें हैं जो इस प्रकार हैं

  1. दोनों नगरीय (Urban) सभ्यतायें हैं। 
  2. दोनों के निवासी कांसे तथा तांबे के साथ-साथ पाषाण के लघु उपकरणो का प्रयोग करते थे। 
  3. दोनों के भवन कच्ची तथा पक्की र्इंटों से बनाये गये थे। 
  4. दोनों सभ्यताओं के लोग चाक पर मिट्टी के बर्तन बनाते थे। 
  5. दोनों को लिपि का ज्ञान था। 

उपर्युक्त समानताओ के आधार पर ह्वीलर से सैन्धव सभ्यता को सुमेरियन सभ्यता का Single उपनिवेश (Colony) बताया है किन्तु गहरार्इ से विचार करने पर यह मत तर्कसंगत नहीं प्रतीत होता। कारण कि दोनों सभ्यताओ में इन बाह्य समानताओ ं के होते हुए भी कुछ मौलिक विषमतायें भी है जिनकी हम अपेक्षा नहीं कर सकते। सैन्धव सभ्यता की नगर-योजना सुमेरियन सभ्यता की अपेक्षा अधिक सुव्यवस्थित है। दोनों के बर्तन, उपकरण, मूर्तियाँ, मुहरे आदि आकार-प्रकार में काफी भिन्न है। यह सही है कि दोनों की सभ्यताओ ं में लिपि का प्रचलन था। किन्तु दोनो ही लिपियाँ परस्पर भिन्न है। जहाँ सुमेरियन लिपि में 900 अक्षर हैं, वहाँ सैन्धव लिपि मेंं केवल 400 अक्षर मिलते हैं। इन विभिन्नताओं के कारण दोनों सभ्यताओं को सुमेरियन उपनिवेशीकरण का परिणाम नहीं कह सकते हैं।

वैदिक आर्यों से उद्भव का मत – 

कुछ विद्वान वैदिक आर्यों को ही इस सभ्यता का निर्माता मानते है। परंतु आर्यों को सैन्धव सभ्यता का निर्माता नहीं माना जा सकता है। दोनों ही सभ्यताओं की रीति-रिवाजो, धार्मिक तथा आर्थिक परम्पराओ  में पर्याप्त विभिन्नतायें दिखार्इ देती हैं। सैंधव तथा वैदिक सभ्यताओं में मुख्य अन्तर इस प्रकार है-

  1. वैदिक आर्यों की सभ्यता ग्रामीण And कृषि प्रधान थी। जबकि सैंधव सभ्यता नगरीय तथा व्यापार-व्यवसाय प्रधान थी। आर्यो के मकान घास-फूल तथा बांस की सहायता से बनते थे किन्तु सैन्धव लोग इसके लिये पकी र्इटों का प्रयोग करते थे। 
  2. वैदिक कार्य लिंग पूजा और मूर्ति पूजा के विरोधी थे जबकि सैंधव लोग लिंग And मूर्ति पूजा करते थे।
  3. आर्यों का प्रिय पशु अश्व था जबकि हड़प्पा के लोग स्पष्टत: अश्व से परिचित नहीं थे। सिन्धु सभ्यता के लोग व्याघ्र तथा हाथी से भी परिचित थे। इसके विपरित वैदिक आर्यो को इनका ज्ञान नहीं था। 
  4. आर्यों के धार्मिक जीवन में गायन की महत्ता थी इसके विपरीत सैंधव लोग वृषभ को पवित्र And पूज्य मानते थे। 
  5. सैन्धव निवासियों के पास अपनी Single लिपि थी जबकि आर्य लिपि से परिचित नहीं थे उनकी शिक्षा प्रणाली मौखिक थी। 

द्रविड़ उत्पत्ति का मत – 

सैंधव सभ्यता की खुदार्इ से भिन्न-भिन्न जातियों के अस्थिपंजर प्राप्त होते हैं। इनमें प्रोटो-आस्ट्रलायड (काकेशियन), मूमध्यसागरीय, मंगोलियन तथा अल्पाइन इन चार जातियों के अस्थिपंजर हैं। मोहनजोदड़ों के निवासी अधिकांशत: भूमध्य-सागरीय थे। अधिकांश विद्वानों की धारणा है कि सैंधव सभ्यता के निर्माता द्रविड़ भाषी लोग थे। सुनीति कुमार चटर्जी ने भाषा विज्ञान के आधार पर यह सिद्ध Reseller है कि ऋग्वेद में जिन दास-दस्युओ  History हुआ है वे द्रविड़ भाषी थे और उन्हें ही सिन्धु सभ्यता के निर्माण का श्रेय दिया जाना चाहिए। यह निष्कर्ष अन्यो  की अपेक्षा अधिक वजनदार है तथापि इसे पूर्णतया निश्चित नहीं कहा जा सकता है।

ताम्रपाषाणिक संस्कृति से उद्भव का मत – 

स्टुअर्ट पिगट, आल्चिन आदि कुछ पुराविदों का विचार है कि सैंधव की उत्पत्ति दक्षिणी अफागनिस्तान, ब्लूचिस्तान, सिन्ध तथा पंजाब (पाकिस्तान) और उत्तरी राजस्थान (भारत) के क्षेत्रों में इसके पूर्व विकसित होने वाली ताम्रपाषाणिक संस्कृतियों से हुर्इ। इन ग्रामीण संस्कृतियों के लोग कृषि कर्म तथा पशुपालन करते थे और विविध अलंकरणो  वाले मिट्टी के वर्तन तैयार करते थे। खुदार्इ से पशु तथा नारी मूर्तियाँ भी मिलती हैं। अनुमान Reseller जा सकता है कि ब्लूचिस्तान के लोग मातृदवे ी की पजू ा तथा लिंगोपासना भी करते रहे होगें। इन संस्कृतियों के पात्रों पर प्राप्त कुछ चित्रकारियो  जैसे -पीपल की पत्ती, हिरण, त्रिभुज आदि सैंधव पात्रो  पर भी प्राप्त होती हैं। अत: इस सम्भावना से इन्कार नहीं Reseller जा सकता है कि सैंधव सभ्यता का विकास इसी क्षेत्र की पवूर् वर्ती सभ्यताओं से हुआ है। किन्तु यह निष्कर्ष भी अन्तिम नहीं होगा क्योंकि इन ग्रामीण संस्कृतियों में लिपि तथा मुहरों का प्रचलन And पकी र्इटो के प्रयोग का प्रमाण नहीं मिलता है।

वास्तविकता तो यह है कि हमारे ज्ञान की वर्तमान अवस्था मेंं सैंधव संस्कृति के निर्माताओं और उद्भव का प्रश्न असंदिग्ध Reseller से हल नहीं Reseller जा सकता। सभ्ं ाव है कि इस सभ्यता के निर्माता विभिन्न जातियो  के मिश्रण रहे हो जिन्होनं े अपने को Single सांस्कृतिक सत्रू में आबद्ध कर लिया हो। इस प्रश्न का अन्तिम निर्णय भविष्य की खुदार्इयों से ही संभव है।

हड़प्पा सभ्यता का विस्तार 

इस संस्कृति का उदय ताम्रपाषाणिक पृष्ठभूमि पर Indian Customer उपमहाद्वीप के पश्चिमोत्तर भाग में हुआ है। इसका नाम हड़प्पा संस्कृति पडा़ क्योंि क इसका पता सबसे First 1921 में पाकिस्तान के पश्चिम पंजाब प्रान्त में अवस्थित हड़प्पा के आधुनिक स्थल में चला। सिन्ध के बहुत से स्थल प्राक् हड़प्पीय संस्कृति का कोन्द्रीय क्षेत्र बने। परिणामस्वReseller वह संस्कृति परिपक्व होकर सिन्ध और पंजाब में नगर सभ्यता के Reseller में परिणत हुर्इ। इस परिपक्व हड़प्पा संस्कृति का केन्द्र स्थल पंजाब और सिन्ध मे, मुख्यत: सिन्धुघाटी में पड़ता है। यहीं से इसका विस्तार दक्षिण और पूरब की ओर हुआ। इस प्रकार हड़प्पा संस्कृति के अन्तर्गत पंजाब, सिन्ध और ब्लूचिस्तान के भाग नहीं, बल्कि गुजरात, राजस्थान, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदश्े ा के सीमान्त भाग भी थे। इसका फैलाव उत्तर में जम्मू से लेकर दक्षिण में नर्मदा के मुहाने तक और पश्चिम में ब्लूचिस्तान के मकरान समुद्र तट से लेकर पूर्व में मेरठ तक था। यह समूचा क्षेत्र Single त्रिभुज के आकार का है। इसका पूरा क्षेत्रफल लगभग 1299600 वर्ग किलोमीटर है। अत: यह क्षेत्र पाकिस्तान से बड़ा तो है ही, प्राचीन मिस्र और मेसोपोटामिया से भी निश्चय ही बड़ा है।

हड़प्पा सस्कृति के लगभग 1000 स्थलो  का पता लग चुका है। इनमें कुछ हड़प्पा संस्कृति की आरंभिक अवस्था के हैं, कुछ परिपक्व अवस्था के और कुछ उत्तर अवस्था के हैं किन्तु परिपक्व अवस्था वाले स्थलों की संख्या सीमित है, और उनमें केवल आधे दर्जन को ही नगर की संज्ञा दी जा सकती है। इनमें दो सर्वाधिक महत्व के नगर थे – पजं ाब में हड़प्पा और सिन्ध में मोहनजोदड़ों (Meansात् प्रेतों का टीला)। दोनों पाकिस्तान में पड़ते हैं। दोनों Single Second से 483 किलोमीटर दूर थे और सिन्धु नदी द्वारा जुड़े हुए थे। तीसरा नगर चन्हुदड़ों, चौथा नगर गुजरात में खंभात की खाडी के ऊपर स्थित लोथल, पॉचवां नगर उत्तरी राजस्थान में कालीबंगा वह छठा नगर बनावली हरियाणा के हिसार जिले में स्थित था। कालीबंगा और बनावली में हड़प्पा पूर्व और हड़प्पा कालीन दोनों सांस्कृतिक अवस्थायें देखी जा सकती है। कच्ची र्इटों के चबूतरों, सड़कों ओर मोरियों के अवशेष हड़प्पा कालीन हैं। इन छहो  स्थलों पर परिपक्व और उन्नत हड़प्पा सस्कृति के दर्शन होते है। सुतकागंडे ोर और सुरकोतड़ा के समुद्रतटीय नगरों में भी इस संस्कृति की परिपक्व अवस्था दिखायी देती है। इन दोनों की विशेषता है Single-Single नगर दुर्ग का होना। उत्तर हड़प्पा अवस्था गुजरात के काठियावाड़ प्रायद्वीप में रंगपुर और रोजड़ी स्थलों पा पार्इ गर्इ है।

हड़प्पा सभ्यता की नगर -योजना 

नगर योजना को सिन्धु सभ्यता की ही प्रमुख विशेषता माना जाता है। हड़प्पा सभ्यता के नगर और कस्बे Single निश्चित योजना के According बसाये जाते थे। हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, कालीबंगा तथा सुत्कांगेनडोर के नगर-निवेश में मुख्य बातों में प्राय: समानता मिलती है। इन पुरास्थलों पर पूर्व और पश्चिम में दो टीले मिले हैं। पूर्व दिशा में विद्यमान टीले पर नगर या आवास-क्षेत्र (Lower City) के साक्ष्य मिले है। पश्चिम के अपेक्षाकृत ऊँचे किन्तु छोटे टीने पर किले अथवा दुर्ग (Citadel) थे। हड़प्पा, मोहनजोदड़ो तथ कालीबंगा के दुर्ग मजबूत रक्षा प्राचीर से युक्त थे और इनके आकार समलम्ब चतुर्भुज की तहर थे। रक्षा प्राचीर में बुर्ज (Towers) तथा पुश्ते (Bastions) बने हुये थे। कालीबंगा का नगर क्षेत्र भी रक्षा-प्राचीर से युक्त था, यद्यपि हड़प्पा तथा मोहनजोदड़ों के नगर क्षेत्र से अभी तक इस प्रकार के साक्ष्य नहीं मिले है।

सिन्धु सभ्यता के नगर क्षेत्र में सामान्य नागरिक, व्यपारी, शिल्पकार कारीगर और श्रमिक रहते थे। दुर्ग के अन्दर मुख्यत: महत्वपूर्ण प्रशासनिक और सार्वजनिक भवन तथा अन्नागार स्थित थे। मोहनजोदड़ों मेंं किले के भीतर पुराहित-आवास, सभा भवनख् अन्नगार और विशाल स्नानागार स्थित थे। हड़प्पा के दुर्ग के बाहर उत्तर दिशा में स्थित ‘एफ’ टीले पर अन्नागार, अनाज कूटने के वृत्ताकार चबूतरे तथा श्रमिक-आवास के प्रमाण मिले है। लोथल का दक्षिणी-पूर्वी भाग दुर्ग क्षेत्र था जिसमें अन्नागार अथवा मालगोदाम स्थित था। कालीबंगा के दुर्ग-क्षत्रे के दक्षिणी आधे भाग में मिट्टी और कच्ची र्इटों के बने हुए आयाताकार चबतू रे मिले हैं। इनमें से Single चबूतरे पर Single पंि क्त में Seven ‘अग्निकुण्ड’ मिले हैं। जिनमें पशुओ की हड्डियाँ, श्रृंग तथा राख मिली हैं। इनके धार्मिक महत्व के विषय में कोर्इ संदेह नहीं है।

रिहायशी मकान – 

सिन्धु सभ्यता के नगरों में प्रत्येक रिहायसी मकान के बीच में Single ऑगन होता था जिसके तीन या चारो ओर चार पॉच कमरे, Single रसोर्इघर और Single स्नान घर बना होता था। अधिकांश घरो में Single कुआँ भी होता था। सम्पन्न लोगो  के घरों में शौचालय भी होते थे। कतिपय बड़े आकार के भवनां े में तीस कमरे तक मिले हैं। मकानो  में मिल सीढ़ियों से इंि गत होता है कि दुमंजिले भवन भी बनते थे। घरों के दरवाजे मुख्य सड़क में न खुलकर पिछवाड़े की ओर गली में खुलते थे। सडक़ की ओर खिड़की और रोशनदान भी नहीं होते थे। मिट्टी कूटकर , कच्ची र्इटें या पकी र्इटें बिछा की मकानो  के फर्श बनाये जाते थे। कुछ इमारतों की दीवालों पर पलस्तर के भी साक्ष्य मिले हैं। अनुमान Reseller जाता है कि छतें समतल होती थी। छतोंं पर घास-फूस बिछा कर ऊपर से मिट्टी छाप दी जाती थी।

मोहनजोदड़ो तथा हड़प्पा में पकी हुर्इ र्इटों का प्रयोग मकानों के निर्माण के लिये Reseller गया है। लोथल, रंगपुर तथा कालीबंगा में भवनो  के निर्माण के लिए कच्ची र्इटों का ही उपयोग Reseller गया है। कालीबंगा में पकी हुइर््र र्इटों का प्रयोग केवल नालियो, कुओं तथा देहली जो निर्माण के लिये Reseller गया है। कर्इ आकार-प्रकार के र्इटों का उपयोग होता था किन्तु सुप्रचलित आकार 28 x 14 x 7 सेमी (4:2:1) था।

सड़कें – 

हड़प्पा सभ्यता की वास्तुकला में सड़कों का महत्वपूर्ण स्थान था। सड़कों का निर्माण Single सुनियोजित योजना के According Reseller जाता था। मुख्य मार्गो  का जाल प्रत्येक नगर को पॉच-छ: खण्डों में  विभाजित करता था। सड़कें कच्ची होती थी। सड़कों की स्वच्छता And सफार्इ पर विशेष ध्यान दिया जाता था। कूड़ा-कचरा फेंकने के लिए सडक़ों के किनारे या तो गड्ढे बने होते थे अथवा रखे रहते थे। नालियाँ – हड़प्पा सभ्यता के नगरों में सड़कोंं तथा गलियों के जल And मल के निकास लिए पक्की हुर्इ र्इटों की बनी हुर्इ नालियों की व्यवस्था थी। प्राय: नालियो  को बड़े आकार की पकी हुर्इ र्इटो  से ढका जाता था। बडी़ नालियों पत्थर की पटियों से ढ़की हुर्इ मिली हैं। बरSevenी और स्नानघरों के पानी और घरों के मल-मूत्र के बहने के लिए मल-कूप (Manroges) बने हुए थे। घरों की नालियाँ सड़क के किनारे की बडी़ नालियों में गिरती थी। नालियो  की संभवत: समय-समय पर सफार्इ की जाती थी। मोहनजोदड़ों में नालियों के किनारे मिले रेते के ढेर इसके साक्ष्य हैं।

राजनीतिक संगठन 

हड़प्पा, मोहनजोदड़ों तथा कालीबंगा आदि पुरास्थलो पर पश्चिम में दुर्ग तथा पूर्व दिशा में नगर की स्थिति से सिन्धु सभ्यता में सुदृढ़ प्रशासनतंत्र के अस्तित्व का सकं ेत मिलता है। प्रत्यक्ष प्रमाणों के अभाव होतु हुए भी यह अनुमान करना संभवत: उचित है कि हड़प्पा सभ्यता की प्रशासनिक व्यवस्था में धर्म की महत्वपूर्ण भूमिका रही होगाी। अधिकांश विद्वानों के According सिन्धु सभ्यता का प्रशासन हड़प्पा तथा मोहनजोदड़ों नामक नगरो की दो राजधानियो से होता था। सभ्ं ाव है कि कालीबंगा तीसरा महत्वपूर्ण प्रशासनिक नगर रहा हो। ऐसा संकेत मिलता है कि उत्तर अवस्था में गुजरात के लोथल में अग्नि पूजा की परम्परा चली, किन्तु इसके लिए मन्दिरों का उपयोग नहीं होता था। शायद हड़प्पार्इ Kingों का ध्यान विजय की ओर उतना नहीं था जितना वाणिज्य की ओर, और हड़प्पा का शासन संभवत: वणिक् वर्ग के हाथ में था।

आर्थिक संगठन – 

कृषि, पशुपालन के अतिरिक्त शिल्प और व्यापार हड़प्पा सभ्यता के जीवन के प्रमुख आधार थे।

1. कृषि – 

हड़प्पा सभ्यता के लोग बाढ उतर जाने पर नवम्बर के महीने में बाढ़ वाले मैदान में बीज बो देते थे और अगली बाढ़ के आने से First अप्रैल महीने में गेहूँ और जौ की अपनी फसल काट लेते थे। कालीबंगा की प्राक् हड़प्पा अवस्था में जो कूॅड (हल रेखा) देखे गये हैं उनसे पता चलता है कि हड़प्पा काल में राजस्थान में हल जोते जाते थे। हड़प्पार्इ लोग शायद लकड़ी के हलों का प्रयोग करते थे। इस हल को आदमी खींचते थे या बैल इस बात का पता नहीं है। फसल काटने के लिये शायद पत्थर के हॅसियां े का प्रयोग होता था। नालों को बॉधों से घेरकर जलाशय बनाने की परिपाटी ब्लूचिस्तान और अफगानिस्तान के कुछ हिस्सो  मेंं रही।

हड़प्पा सभ्यता के लोग गेहँू, जौ, रार्इ, मटर आदि अनाज पैदा करते थे। वे दो किस्म का गेहूँ और जौ उगाते थे। बनावली में मिला जौ बढ़िया किस्म का है। इनके अलावा वे तिल और सरसों भी उगाते थे। लगता है कि लोथल के लोग 1800 र्इ0प0ू में ही चावला उपजाते थे जिसका अवशेष वहाँ पाया गया है। सबसे First कपास पैदा करने का श्रेय सिन्धु सभ्यता के लोगों को है। चूंकि कपास का उत्पादन सबसे First सिन्धु क्षेत्र में ही हुआ, इसीलिए यूनान के लोग इसे सिन्डन कहने लगे जो सिन्धु Word से उद्भूत हुआ है।

2. पशुपालन – 

कृषि पर निर्भर होते हुए भी हड़प्पार्इ लोग बहुत-सारे पशु पालते थे। वे बैल, गाय, भैंस, बकरी, भेडं और सूअर पालते थे। उन्हें कूबड़ वाला साँड विशेष प्रिय था। कुत्ते शुरू से पालतू जानवरों में थे। बिल्ली भी पाली जाती था। कुत्ता और बिल्ली दोनों के पैरों के निशान मिले हैं। वे गधे और ऊँट भी रखते थे और शायद इन पर बोझा ढोते थे। घोड़े के अस्तित्व का सकेंत मोहनजोदड़ों की Single ऊपरी सतह से तथा लोथल में मिले Single संदिग्ध मूर्तिका (टेराकोटा) से मिला है। गुजरात के पश्चिम में अवस्थित सुरकोतड़ा में घोडे़ के अवशेषों के मिलने की रिपोर्ट आर्इ है और वे 2000र्इ0 पू0 के आस-पास के बताए गए हैं, परन्तु पहचान संदेहग्रस्त है। जो भी हो, इतना तो स्पष्ट है कि हड़प्पा काल में इस पशु के प्रयोग का आम प्रचलन नहीं था। हड़प्पार्इ लोग हाथी, गैंडे से भी परिचित थे।

3. व्यापार – 

सिन्धु सभ्यता के लोगों के जीवन में व्यापार का बड़ा महत्व था। इसकी पुष्टि हड़प्पा मोहनजोदड़ो ं और लोथल में अनाज के बड़े- बड़े कोठारों के पाए जाने से ही नहीं होती, बल्कि Single बड़े भू-भाग में ढेर-सारी सीलों (मुन्मुद्राओं), Single लिपि और मानकीकृत माप-तोलों के अस्तित्व से भी होती है। हड़प्पार्इ लोग सिन्धु-सभ्यता क्षेत्र के भीतर पत्थर, धातु, शल्क (हड्डी) आदि का व्यापार करते थे। वे धातु के सिक्कों का प्रयोग नहीं करते थे। संभवत: अनाज भी नावों और बैलगाड़ियों पर लाद कर पड़ोस के इलाकों में ले जाते और उन वस्तुओ के बदले धातुओं े ले आते। वे अरब सागर के तट पर जहाजरानी (नौचालन) करते थे। वे चक्र के उपयोग से परिचित थे, और हड़प्पा में ठोस पहियों वाली गाड़ियाँ प्रचलित थी। यह भी प्रतीत होता है कि हड़प्पार्इ लोग किसी न किसी प्रकार के आज के इक्के (रथ) का भी इस्तेमाल करते थे। हड़प्पार्इ लोगों का निर्माण का वाणिज्यिक सम्बन्ध राजस्थान के Single क्षेत्र से था और अफगानिस्तान और र्इरान से भी। उन्हांने े उत्तरी अफागानिस्तान में Single वाणिज्य उपनिवेश स्थापित Reseller था। जिसके सहारे उनका व्यापार मध्य एशिया के साथ चलता था। उनके नगरों का व्यपार दजला-फरात प्रदेश के नगरो  के साथ चलता था। बहुत सी हड़प्पार्इ सीलें मेसोपोटामिया की खुदार्इ में निकली हैं और प्रतीता होता है कि हड़प्पार्इ लोगों ने मेसोपोटामियार्इ नागरिकों के कर्इ प्रसाधनों का अनुकरण Reseller है।

हड़प्पार्इ लोगों ने लाजवर्दमणि (Lops Lquli) का सुदूर व्यापार चलाया था। 2350 र्इ0 प0ू के आस-पास और उसके आगे के मेसोपोटामियार्इ अभिलेखो ं में मेलुहा के साथ व्यापारिक सम्बन्ध का History है। मेलुहा सिन्धु क्षेत्र का प्राचीन नाम है।

हड़प्पार्इ नगरों का पतन – 

हड़प्पा सभ्यता जैसे नगरीय सभ्यता के पतन के संदर्भ में Historyकारों ने अनेक कारणो  को उत्तरदायी माना है जो इस प्रकार हैं-

1. आर्योे के आक्रमण 

  1. मोहनजोदड़ों के ऊपरी स्तर पर कर्इ सारे कंकालों का अन्वेषण – इस बात का साक्ष्य है कि आर्यो ं ने स्थानीय जनसंख्या का व्यापक सहं ार कर डाला था। 
  2. ऋग्वेद के अन्तर्गत वैदिक देवता इंद्र का History दुर्ग-संहारक के Reseller में Reseller गया है। परंतु यह सिद्ध हो चुका है कि मोहनजोदड़ों के ऊपरी स्तर के कंकाल किसी Single ही काल से सम्बन्ध नहीं रखते, इसीलिए उनसे जन-संहार का संकेत नहीं मिलता। किन्तु ऋग्वेद में दुर्ग-संहारक के Reseller में इंद्र के History को Need से अधिक महत्व नहीं देना चाहिए। अधिकांश आधुनिक विद्वान इस मान्यता को स्वीकार नहीं करते कि सिन्धु सभ्यता के अंत का कारण आर्यां े के आक्रमण थे। 

2. साधनों का अधिक व्यय – 

Single आधुनिक मत यह है कि इस सभ्यता ने अपने संसाधनों का जरूरत से ज्यादा व्यय कर डाला जिससे उसकी जीवन-शक्ति Destroy हो गर्इ। परंतु इसकी जॉच के लिए विस्तृत अनुसंधान की Need है।

3. विवर्तनिक विक्षोभ – 

Single अन्य आधुनिक मत यह है कि किसी विवर्तनिक विक्षोभ के परिणामस्वReseller मोहनजोदड़ों में सिन्धु नदी का पूर्वी बॉध ध्वस्त हो गया था। इससे सिंधु के बहाव मेंं रूकावट आ गर्इ और उसके ऊपरी हिस्से में जहाँ मोहनजोदड़ोंं स्थित था। मिट्टी जमा हो गर्इ। फलस्वReseller कुछ समय बाद लोग मोहनजोदड़ों छोड़कर चले गये। इस सिद्धान्त की जॉच के लिए विस्तृत अनुसंधान की जरूरत है। 

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