स्वाध्याय चिकित्सा का Means, प्रक्रिया And महत्व

कुछ लोग स्वाध्याय का Means पुस्तकों का अध्ययन मात्र करना समझते हे, किन्तु इस प्रकार के अध्ययन को हम स्वाध्याय की संज्ञा नहीं दे सकते। स्वाध्याय की अवधारणा अत्यन्त व्यापक है। कुछ भी पढ़ लेने का नाम स्वाध्याय नहीं है, वरन् स्वाध्याय की सामग्री केवल वही ग्रन्थ, पुस्तक का विचार हो सकता है, जो किसी अध्यात्मवेदता तपस्वी द्वारा सृजित हो। जैसे कि वेद, उपनिषद, गीता अथवा महान तपस्वी And योगी स्वामी विवेकानन्द, महर्षि अरविन्द, महर्षि रमण इत्यादि महापुरूषों के विचारों को स्वाध्याय की पाठ्य सामग्री बनाया जा सकता है। प्राय: स्वाध्याय से तात्पर्य Self Study से लिया जाता है, किन्तु यह Self Study न होकर Study of Self है Meansात् सद्ग्रन्थों के प्रकाश में स्वयं के अध्ययन की प्रक्रिया है। कहा भी गया है कि – ‘‘स्वाध्याय सद्ग्रन्थों के प्रकाश में आत्मानुसंधान की प्रक्रिया है।’’

इस प्रकार स्वाध्याय हमारे विचार तंत्र या सोचने विचारने के ढंग को सकारात्मक बनाने की अत्यन्त वैज्ञानिक प्रक्रिया है। इसके सतत् अभ्यास द्वारा व्यक्ति नकारात्मक दृष्टिकोण के स्थान पर स्वयं के भीतर विधेयात्मक And आशावादी दृष्टिकोण का विकास कर सकता है। स्वाध्याय के सन्दर्भ में Single बात जो अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है, वह यह कि स्वाध्याय की प्रक्रिया अच्छ्रे विचारों के केवल अध्ययन से ही पूरी नहीं हो जाती, वरन् जब तक इन विचारों को व्यावहारिक Reseller से आचरण में नहीं लिया जाता, तब तक यह प्रक्रिया अधूरी ही रहती है और इसके अपेक्षित परिणाम नहीं आ पाते है। पाठकों, इस प्रकार आप समझ गये होगें कि स्वाध्याय सकारात्मक विचारों के माध्यम से मन को स्वस्थ करने की प्रक्रिया है।

आपके मन में इस संबध में सहज ही यह जिज्ञासा उत्पन्न हो रही होगी कि Single सामान्य अध्ययन And स्वाध्याय में क्या मौलिक अन्तर होता है? तो आइये, आपकी इसी जिज्ञासा के समाधान के लिये अब हम Discussion करते है, सामान्य अध्ययन And स्वाध्याय में अन्तर के बारे में।

अध्ययन And स्वाध्याय में अन्तर –

अध्ययन And स्वाध्याय में मूलभूत अन्तर यह है कि अध्ययन केवल हमारी बुद्धि का विकास करता है, इसके माध्यम से हमारे भीतर तर्क -वितर्क And बौद्धिक विश्लेषण करने की क्षमता का विकास होता है, तथा हमें विभिन्न प्रकार की जानकारी प्राप्त होती है, किन्तु अध्ययन के द्वारा व्यक्ति के अन्दर किसी प्रकार का सकारात्मक परिवर्तन हो, यह अनिवार्य And आवश्यक नहीं है, जबकि स्वाध्याय के द्वारा व्यक्ति में में सकारात्मक परिवर्तन अपेक्षित है, अनिवार्य है, अन्यथा स्वाध्याय का उद्देश्य पूरा नहीं होगा, यह अधूरा ही रह जायेगा।

स्वाध्याय की प्रक्रिया में व्यक्ति सद्ग्रन्थों के आलोक में आत्ममूल्यांकन करता है, अपनी कमजोरियों And गुणों का तटस्थ अवलोकन करता है तथा उसके व्यक्तित्व में जो भी अवांछनीयतायें है, बुरी आदतें, बुरे विचार या व्यावहारिक गड़बड़ियाँ है, उनको सकारात्मक विचारों के व्यावहारिक प्रयोग द्वारा दूर करने का यथासंभव प्रयास करता है। ‘‘अध्ययन केवल बौद्धिक विकास तक सीमित है, जबकि स्वाध्याय अपने बोध को संवारने की प्रक्रिया है।’’ (डाँ. प्रणव पण्ड्या : आध्यात्मिक चिकित्सा Single समग्र उपचार पद्धति) बोध का Means है- ज्ञान और विशेषज्ञों के According हमें ज्ञान दो प्रकार से प्राप्त होता है। पहला ज्ञानेन्द्रियों (नेत्र, त्वचा, कर्ण, नासिका जिº्वा) के माध्यम से होने वाला ज्ञान जिसे हम बाह्य बोध भी कह सकते है। Second प्रकार का बोध है- बौद्धिक विश्लेषण And आन्तरिक अनुभवों के द्वारा होने वाला ज्ञान।

बोध के ये दोनों प्रकार Single Second से अत्यन्त गहरे Reseller में जुड़े रहते हैं Meansात् Single का प्रभाव सुनिश्चित Reseller से Second पर पड़ता है। कहने का आशय है कि इन्द्रियों से जो कुछ जानकारी हमें मिलती है Meansात हम जो भी देखते है- सुनते है, उसका प्रभाव हमारे विचारों And भावनाओं पर सुनिश्चित Reseller से पड़ता है। इसी प्रकार जैसे हमारे विचार, भावनायें, आस्थायें होती है, उनका प्रभाव भी हमारे इन्द्रियजन्य ज्ञान पर पड़ता है। इस सन्दर्भ में आपने Single कहावत भी सुनी होगी कि – ‘‘जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि’’ Meansात जिस व्यक्ति का दृष्टिकोण या नजरिया जैसा होता है उसे प्रत्येक व्यक्ति, वस्तु, घटना उसी Reseller में दिखार्इ देती है। ‘‘

इसी कारण Single ही घटना अथवा वस्तु या व्यक्ति अलग – अलग लोगों के लिये अलग – अलग परिणाम उत्पन्न करती है, क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति का सोचने का ढंग हर Second व्यक्ति से अलग होता है। जो व्यक्ति नकारात्मक दृष्टिकोण वाला है, उसे प्रत्येक चीज में नकारात्मकता ही दिखायी देती है, इसके विपरीत जो जिन्दगी के प्रति सकारात्मक रवैया अपनाता है, वह विषम परिस्थितयों में में भी प्रकाश की Single किरण खोज लेता है। इस प्रकार सब कुछ व्यक्ति की अपनी प्रकृति पर निर्भर करता है।

अत: यदि हम अपने जीवन को शांति And खुशी के साथ जीना चाहते है तो हमें अपने दृष्टिकोण में सकारात्मक परिवर्तन लाना ही होगा और स्वाध्याय इसी दृष्टिकोण की चिकित्सा की अत्यन्त वैैज्ञानिक And सटीक विधि है। यह स्वस्थ मन से स्वस्थ जीवन जीने की विधा है।

इस प्रकार स्पष्ट है कि अध्ययन And स्वाध्याय में मूलभूत अन्तर होने के कारण अध्ययन को स्वाध्याय कहना न्यायसंगत नहीं होगा। प्रिय पाठकों, अब अत्यन्त महत्वपूर्ण बात जिस पर विचार करना है, वह यह है कि इस स्वाध्याय की प्रक्रिया को जीवन में कैसे अपनाया जाये? इसके सोपान क्या है? तो आइये, अब Discussion करते हैं स्वाध्याय चिकित्सा की प्रक्रिया के बारे में।

स्वाध्याय चिकित्सा की प्रक्रिया

स्वाध्याय चिकित्सा की प्रक्रिया चार चरणों में पूरी होती है – 1. First चरण – सद्ग्रन्थों या सद्विचारों का चयन। 2. द्वितीय चरण – आत्ममूल्यांकन 3. तृतीय चरण – अपने दृष्टिकोण को संवारने की नीति तय करना। 4. चतुर्थ चरण – निर्धारित नीति का व्यावहारिक जीवन में प्रयोग।

1. First चरण –

सद्ग्रन्थों या सद्विचारों का चयन – स्वाध्याय चिकित्सा का First चरण है- स्वाध्याय की सामग्री का चयन करना Meansात् यह निर्धारित करना कि स्वाध्याय के लिये किन सद्ग्रन्थों या विचारों का चयन Reseller जाये। इस सन्दर्भ में यह ध्यान देना आवश्यक है कि स्वाध्याय हेतु उन्हीं विचारों का चयन Reseller जाये जो आध्यात्म को जानने वाले महाHumanों या महापुरूषों के द्वारा दिये गये हो क्योंकि ऐसे लोगों का जीवन ही हमारे लिये आदर्श And प्रेरणादायी होता है। इस हेतु हम वेद, उपनिषद, गीता इत्यादि ग्रन्थों का And विभिन्न तपस्वियों जैसे कि महात्मा बुद्ध, आचार्य भास्कर, महावीर स्वामी, स्वामी विवेकानन्द, महर्षि अरविन्द, महर्षि रमण, स्वामी रामकृष्ण परमहंस, स्वामी दयानंद सरस्वती, श्री माँ इत्यादि के विचारों का चयन कर सकते हैं।

‘‘स्वाध्याय के First क्रम में हम उन ग्रन्थों विचारों का चयन करते हैं, जिन्हें स्व की अनुभूति से सम्पन्न महाHumanों ने सृजित Reseller है। ध्यान रखें कोर्इ भी पुस्तक या विचार स्वाध्याय की सामग्री नहीं बन सकता। इसके लिये जरूरी है कि यह पुस्तक या विचार किसी महान् तपस्वी आध्यात्मवेदत्ता के द्वारा सृजित हो।’’ (डाँ0 प्रणव पण्ड्या : आध्यात्मिक चिकित्सा Single समग्र उपचार पद्धति)

2 द्वितीय चरण –

आत्म-मूल्यांकन – पाठकों, यह स्वाध्याय का अत्यन्त महत्वपूर्ण चरण है। यही वह अवस्था है जिसमें स्वयं का स्वयं से परिचय होता है। यह आत्मविश्लेषण की अवस्था हैं जिसमें व्यक्ति उन चयनित ग्रन्थों And विचारों के परिप्रेक्ष्य में आत्म-मूल्यांकन करता है। आत्म-मूल्यांकन का Means है- अपने गुणों-कमियों का तटस्थ अवलोकन। अपने व्यक्तित्व में जो अच्छाइयाँ And बुराइयाँ हैं, दोनों को समान Reseller से देखना और बुराइयों को पूरी निष्पक्षता And साहस के साथ स्वीकार करना। इसी चरण में व्यक्ति इस बात पर विचार करता है कि हमारा जीवन कैसा है? हम किस ढंग से जी रहे हैं और किस ढंग से हमें जीना चाहिये। इसी स्तर पर व्यक्ति अपने विचार तंत्र की विकृतियों से परिचय पाता है। इसलिये व्यक्ति को पूरी सजगता से अपनी कमियों को पहचानना चाहिये और इस बात के प्रति सावधान रहना चाहिये कि कोर्इ भी विकृति दब न जाये, छिप न जाये।

इस प्रकार स्पष्ट है कि द्वितीय चरण में विचार तंत्र की विकृतियों का निदान Reseller जाता है। निदान से आशय है- समस्या को पहचानना और यह जानना कि इसके दुष्प्रभाव कहाँ- कहँ पड़ रहे हैं और भविष्य में कहाँ – कहाँ पड़ सकते हैं?

3. तृतीय चरण –

अपने दृष्टिकोण को संवारने की नीति निर्धारित करना – द्वितीय चरण में विकृतियों के निदान के उपरान्त तृतीय चरण में उन्हें दूर करने के उपाय का चयन Reseller जाता है, उसकी पूरी प्रक्रिया को सुनिश्चित Reseller जाता है कि व्यावहारिक Reseller में इसे किस प्रकार से अपनाया जायेगा। इसकी पूरी योजना इस चरण में बनायी जाती है।

‘‘स्वाध्याय चिकित्सा का तीसरा मुख्य बिन्दु यही है। विचार, भावनाओं, विश्वास, आस्थाओं, मान्यताओं, आग्रहों से संबधित अपने दृष्टिकोण को ठीक करने की नीति तय करना। इसकी पूरी प्रक्रिया को सुनिश्चित करना। हम कहाँ से प्रारम्भ करें और किस रीति से आगे बढ़े। इसकी पूरी विधि – विज्ञान को इस क्रम में बनाना और तैयार करना पड़ता है।’’ (डाँ0 प्रणव पण्ड्या : आध्यात्मिक चिकित्सा Single समग्र उपचार पद्धति)

4. चतुर्थ चरण –

निर्धारित नीति का व्यावहारिक जीवन में प्रयोग – स्वाध्याय का यह चतुर्थ चरण अत्यन्त चुनौतीपूर्ण होता है, यही वह अवस्था है जिसमें व्यक्ति को अपनी विकृतियों को दूर करने का व्यावहारिक प्रयास करना होता है Meansात अपने विकृत विचारों को दूर करने के लिये समाधान की जिस नीति का निर्धारण Reseller गया है, इस चरण में उस नीति के According आचरण करना होता है। उन सद्विचारों को अपने जीवन में व्यावहारिक Reseller से अपनाना होता है। सद्विचारों के अनुReseller जीवन जीकर दिखाना होता है। जिसमें हमारे संस्कारों And पुरानी बुरी आदतों के Reseller में अनेक बाधायें सामने आती हैं, किन्तु अपने साहस And जुझाResellerन के द्वारा हम उन बाधाओं को पार कर सकते हैं और Single आदर्श जीवन जी सकते हैं। जब तक स्वाध्याय की यह योजना व्यावहारिक Reseller से क्रियान्वित नहीं होती है। तब तक वह मात्र अध्ययन ही बना रहेगा। सद्ग्रन्थों में described आदर्श जीवन का व्यावहारिक प्रयोग ही इस स्वाध्याय चिकित्सा की सार्थकता है, जो इसे उद्देश्य की पूर्णता तक पहुँचाता है।

स्वाध्याय चिकित्सा का महत्व –

प्रिय पाठकों, स्वाध्याय की उपयोगिता के विषय में जितना वर्णन Reseller जाये उतना ही कम है, क्योंकि यह Single ऐसी औषधि है, जिसके द्वारा व्यक्तित्व के समग्र विकारों से मुक्ति पाकर स्वस्थ जीवन जिया जा सकता है। प्रमुख Reseller से स्वाध्याय चिकित्सा की महत्ता का विचेचन Reseller जा सकता है- (1) नकारात्मक विचारों को दूर करना (2) दुर्भावनाओं से मुक्ति (3) व्यावहारिक विकृतियों को दूर करना (4) समूचे व्यक्तित्व का Resellerान्तरण (5) स्वस्थ जीवन की प्राप्ति

(1) नकारात्मक विचारों को दूर करना – 

पाठकों, जैसा कि अब तक आप समझ चुके होंगे कि स्वाध्याय का संबध हमारे विचार तंत्र से है। यह विचार परिष्कार से जीवन परिष्कार की प्रक्रिया है। स्वाध्याय चिकित्सा का First परिणाम यह होता है कि व्यक्ति का चिन्तन सकारात्मक होने लगता है। वह अब घटनाओं को सकारात्मक दृष्टिकोण से देखता है। स्वाध्याय के द्वारा उसके चारों ओर Single सकारात्मक वैचारिक वातावरण बना रहता है और वह वैचारिक प्रदूषण से मुक्त रहता है। ‘‘ सोच विचार या बोध के तंत्र को निरोग करने की सार्थक प्रक्रिया स्वाध्याय से बढ़कर और कुछ नहीं है।’’ (डाँ0 प्रणव पण्ड्या : आध्यात्मिक चिकित्सा Single समग्र उपचार पद्धति)

(2) दुर्भावनाओं से मुक्ति- 

जैसा कि हम जानते है कि हमारे विचारों का प्रभाव हमारी भावनाओं पर भी पड़ता है। जैसे विचार हमारे अन्दर आते हैं, उसी के अनुReseller भाव भी उत्पन्न होने लगते हैं। ये दोनों (भाव And विचार) Single Second से इतने अधिक प्रभावित होते हैं कि हम इनमें से किसी भी Single को Second से तोड़कर नहीं देख सकते। विचार हमारी भावनाओं को प्रभावित करते हैं और भावनायें भी विचारों को अपने रंगों में रंगे बिना नहीं रहती। अत: स्वाध्याय से हमारे विचारतंत्र के परिष्कृत होने के कारण भाव भी पवित्र होने लगते हैं, जो हमारे आध्यात्मिक विकास में अत्यन्त सहायक है।

(3) व्यावहाररिक विकृतियों को दूर करना- 

स्वाध्याय मन की चिकित्सा के साथ – साथ व्यवहार की चिकित्सा भी करता है क्योंकि विचार हमारे व्यवहार को बहुत गहरे Reseller में प्रभावित करते हैं और व्यवहार का प्रभाव भी विचारों पर पड़ता है। जब व्यक्ति सद्विचारों को अपने जीवन में, आचरण में उतारने लगता है तो उससे स्वत: उसकी व्यवहारगत विकृतियाँ And परेशानियाँ दूर होने लगती है और उसका व्यवहार Single आदर्श के Reseller में दूसरों को भी प्रेरणा प्रदान करता है। ‘‘मानसिक आरोग्य की ओर ध्यान दिये बगैर शरीर को स्वस्थ करने की सोचना या व्यावहारिक दोषों को ठीक करना, कुछ वैसा ही है, जैसे – पत्तों को काटकर पेड़ की जड़ों को सींचते रहना। जब तक पेड़ की जड़ों को खाद – पानी मिलता रहेगा, तब तक पत्ते अपने आप ही हरे होते रहेंगे। इसी तरह से जब तक सोच – विचार के तंत्र में विकृति बनी रहेगी, शारीरिक And व्यावहारिक परेषानियाँ बनी रहेंगी।’’ (डाँ0 प्रणव पण्ड्या : आध्यात्मिक चिकित्सा Single समग्र उपचार पद्धति)

(4) समूचे व्यक्तित्व का Resellerान्तरण- 

हमारे व्यक्तित्व के तीन आयाम हैं – संवेग, विचार And व्यवहार और ये तीनों आयाम Single – Second को प्रभावित करते हैं। भावनाओं (संवेग) से हमारे विचार And व्यवहार प्रभावित होते हैं तो विचारों का प्रभाव भी हमारे संवेगों And व्यवहारों पर पड़ता है। इसी प्रकार हमारे व्यवहार का प्रभाव संवेगों और विचारों पर पड़े बिना नहीं रहता। जिस प्रकार हमारे शरीर के विभिन्न संस्थान हैं, जैसे – अस्थि तंत्र, पेशीय तंत्र, पाचन तंत्र, तंत्रिका तंत्र इत्यादि और इन All के अपने – अपने विशिष्ट कार्य है, फिर भी इनके कार्यो का प्रभाव परस्पर पड़ता है और Single भी तंत्र के अंगों के कार्यो में बाधा आने पर समूचा शारीरिक संस्थान प्रभावित होता है, उसी प्रकार हमारे व्यक्तित्व का कोर्इ भी आयाम यदि विकृत है तो वह समूचे व्यिक्त्त्व को बुरी तरह प्रभावित करता है और यदि Single आयाम सुदृढ़ And स्वस्थ है तो समग्र व्यक्तित्व परिष्कृत होने लगता है। अत: स्वाध्याय प्रत्यक्ष Reseller से तो हमारे विचारों को प्रभावित करता है, किन्तु अप्रत्यक्ष Reseller से समग्र व्यक्तित्व (संवेग, विचार, व्यवहार) के Resellerान्तरण में ही इसकी अत्यन्त महत्वपूर्ण भूमिका है।

(5) स्वस्थ जीवन की प्राप्ति-

स्वाध्याय स्वस्थ जीवन की प्राप्ति की Single अत्यन्त महत्वपूर्ण विधा है। इसके द्वारा First मन की चिकित्सा होती है। उसके बाद जीवन की चिकित्सा/ वैज्ञानिकों के According रोगी मन समस्त जीवन को रोगी बना देता है। इसलिये यदि जीवन को स्वस्थ बनाना है तो हमें First मन को निरोग बनाने का साहसिक कार्य करना होगा, जिसे हम स्वाध्याय चिकित्सा द्वारा सहज Reseller सेकर सकते है।

स्वस्थ जीवन का तात्पर्य है – समग्र स्वास्थ्य की प्राप्ति, जिसमें हमारा शरीर भी स्वस्थ हो, मन भी सकारात्मक दृष्टिकोण वाला हो, आत्मा भी संतुष्ट हो और सामाजिक दृष्टि से भी व्यक्ति का व्यवहार Single आदर्श व्यवहार हो और प्रेरणास्पद आदर्श व्यक्ति के Reseller में उसकी छवि बने।

इस प्रकार स्पष्ट है कि स्वाध्याय चिकित्सा का महत्व असाधारण है। इसके द्वारा हम Single स्वस्थ And सुखी जीवन व्यतीत कर सकते है। स्वाध्याय की इसी महत्ता के कारण इसे योग साधना के अत्यन्त महत्वपूर्ण साधन के Reseller में भी स्वीकार Reseller गया है। महान योग वैज्ञानिक महर्षि पतंजलि ने क्रियायोग के Second अंग (तप, स्वाध्याय, र्इश्वर प्रणिधान) के Reseller में इसका अत्यन्त विस्तृत विवेचन Reseller है और अष्टांग योग में भी नियम के अन्तर्गत चतुर्थ नियम (शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय और र्इष्वर प्रणिधान) के Reseller में इसकी महत्ता का वर्णन Reseller है।

‘‘स्वाध्याय चिकित्सा की उपयोगिता असाधारण है। इसके द्वारा First मन स्वस्थ होता है, फिर जीवन।’’ (डाँ0 प्रणव पण्ड्या : आध्यात्मिक चिकित्सा Single समग्र उपचार पद्धति)

इस प्रकार स्वाध्याय के द्वारा हम अपने समूचे जीवन का Resellerान्तरण कर सकते हैं और साथ ही इस चिकित्सा की महत्ता इस कारण भी अत्यधिक बढ़ जाती है कि यह पद्धति अत्यन्त सहज है। इसे कोर्इ भी व्यक्ति अपना सकता है, इसमें किसी प्रकार का कोर्इ आर्थिक खर्च भी नहीं है और न ही इसके कोर्इ दुष्प्रभाव है। वास्तव में यह स्वाध्याय चिकित्सा अपने आप में असाधारण है।

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