सीमान्त लागत क्या है ?

वस्तु की Single अतिरिक्त इकार्इ निर्मित करने की लागत सीमान्त लागत है। सीमान्त लागत से आशय परिवर्तनशील लागतों Meansात्, मूल लागत तथा परिवर्तनशील उपरिव्ययों के योग से है। प्रति इकार्इ सीमान्त लागत उत्पादन के किसी भी स्तर पर राशि में हुए परिवर्तन से है जिससे कुल लागत में परिवर्तन होता है, यदि उत्पादन मात्रा Single इकार्इ से बढ़ायी या घटार्इ जाती है।

सीमान्त लागत विधि का Means

इन्स्टीट्यूट ऑफ कास्ट एण्ड मैनेजमेंट Singleाउन्टेन्ट्स, इंग्लैण्ड के According “सीमान्त लागत विधि का आशय स्थायी लागत And परिवर्तशील लागत में अन्तर करके सीमान्त लागत का निर्धारण करना तथा उत्पादन की मात्रा अथवा किस्म में परिवर्तन का लाभ पर प्रभाव ज्ञात करने से है।”

सीमान्त लागत विधि के अन्तर्गत लाभ की गणना

सीमान्त लागत विधि के अन्तर्गत लाभ ज्ञात करने के लिए कुल लागत को स्थिर लागत व परिवर्तनशील लागत में विभाजित कर लिया जाता है। तत्बाद सीमान्त लागत को विक्रय मूल्य में से घटा दिया जाता है। शेष राशि अंशदान (Contribution) कहलाती है। इस अंशदान में स्थिर लागतों को घटाकर लाभ ज्ञात कर लिया जाता है। निर्मित माल व चालू कार्य के स्कन्ध का मूल्यांकन सीमान्त लागत पर ही Reseller जाता है जिसमें किसी भी प्रकार के स्थिर व्यय सम्मिलित नहीं होते है

सीमान्त लागत विधि के लाभ

सीमान्त लागत निर्धारण विधि व्यावसायिक प्रबन्ध के क्षेत्र में Single महत्वपूर्ण And उपयोगी तकनीक है। इसके प्रमुख लाभ, संक्षेप में हैं-

  1. समझने में सरल – सीमान्त लागत विधि समझने में सरल है। इसकी प्रक्रिया आसान है क्योंकि इसमें स्थायी लागतों को सम्मिलित नहीं Reseller जाता है, जिससे उनके अनुभाजन And अवशोषण की समस्या उत्पन्न नहीं होती। इसे प्रमाण लागत के साथ जोड़ा जा सकता है। 
  2. लागत तुलना – इस विधि में स्कन्ध का मूल्यांकन सीमान्त लागत पर Reseller जाता है। जिससे स्थायी लागतों का Single हिस्सा स्कन्ध के Reseller् में अगली अवधि में नहीं ले जाया जाता। इसलिए लागत And लाभ निष्प्रभाव नहीं होते तथा लागतों में तुलना सार्थक हो जीती है। 
  3. परिवर्तनों का लागत पर पड़ने वाले प्रभावों का अध्ययन – उत्पादन अथवा विक्रय मात्रा या विक्रय मिश्रण तथा उत्पादन या विक्रय पद्धति में किये जाने वाले परिवर्तनों का लागतों And लाभों पर क्या प्रभाव पड़ेगा, इस विधि द्वारा अध्ययन Reseller जा सकता है। इससे प्रबन्ध को नीति-निर्धारण तथा निर्णय लेने में सहायता मिलती है। 
  4. लाभ नियोजन – इस विधि द्वारा लाभ तथा इसको प्रभावित करने वाले घटकों के मध्य आपसी सम्बन्ध का अध्ययन सम-विच्छेद बिन्दु, लाभ मात्रा अनुपात आदि तकनीकों द्वारा भली-भांति समझा जा सकता हैं इससे प्रबन्धकों को बजटिंग तथा लाभ नियोजन में सरलता रहती है। प्रबन्ध इस विधि के कारण भावी लाभ-योजनाएं बना सकते हैं तथा उनका मूल्यांकन Reseller जा सकता है। 
  5. लाभ नियंत्रण – अधिकतम लाभ अर्जित करने के लिए लागतों पर नियंत्रण Reseller जाना आवश्यक है। सीमान्त लागत विधि में लागतों को स्थिर And परिवर्तनशील में वर्गीकृत करके उनके स्वभाव का सूक्ष्म विश्लेषण Reseller जाता है। लागतों के इस प्रकार विभाजन से लागत नियंत्रण के लिए उत्तरदायित्व निश्चित Reseller जा सकता है। विभिन्न प्रबन्धकों को केवल उन्हीं लागतों की सूचना दी जाती है जिनके लिए वे उत्तरदायी होते है। सामान्यत: परिवर्तनशील लागतों के नियंत्रण का दायित्व प्रबन्ध के निम्न स्तर का होता है। जबकि स्थिर लागतों में नियंत्रण का दायित्व उच्च प्रबन्ध का होता है। इस तरह यह विधि उत्पादन And बिक्री की परिवर्तित परिस्थितियों में लागत व्यवहार का अध्ययन करके उनके नियंत्रण में सहयोग देती है। 
  6. प्रबन्धकीय निर्णयों में उपयोगी – आधुनिक प्रबन्धक को विक्रय And उत्पादन से सम्बन्धित महत्वपूर्ण अनेक निर्णय लेने होते हैं। इन निर्णयों का मुख्य आधार न्यूनतम प्रयासों से अधिकतम लाभ प्राप्त करना है। सीमान्त लागत विधि प्रबन्धकों को इस कार्य (निर्णयन) में महत्वपूर्ण सहायता प्रदान करती है। इसकी सहायता से इन समस्याओं के सम्बन्ध में सही And उचित निर्णय लिये जा सकते हैं-
    1. उत्पाद मूल्य निर्धारण
    2. विभिन्न विभागों या उत्पादों की लाभप्रदता का मूल्यांकन
    3.  क्रियाशीलता के स्तर का नियोजन 
    4. उपयुक्त उत्पाद मिश्रण तथा विक्रय मिश्रण का चुनाव 
    5. नये उत्पाद का निर्माण 
    6. अतिरिक्त क्षमता का उपयोग 
    7. क्रियाओं को बंद करना अथवा स्थगित करना
    8. सर्वाधिक लाभप्रद वितरण पद्धति का चुनाव
    9. संयंत्र प्रतिस्थापन 
    10. बनाओ या खरीदो पट्टे पर या खरीदो 
    11. प्रमुख कारक की समस्या तथा 
    12. विक्रय अथवा आगे प्रक्रिया

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