श्लेष अलंकार क्या है और इसके उदाहरण

श्लेष अलंकार क्या है और इसके उदाहरण


By Bandey

अनुक्रम

श्लेष अलंकार अत्यन्त प्रचलित अलंकार है। Wordालंकारो में अनुप्रास और यमक के बाद श्लेष का ही नाम आता है। डॉ0 रामानन्द शर्मा ने इसके स्वReseller पर व्यापक Reseller में प्रकाश डाला है। वे कहते हैं: ‘‘साधारणत: Single बार प्रयुक्त Word Single ही Means का बोध कराता है, इसलिए किसी भी Single Word से दो Meansों की प्रतीति नहीं हो सकती जहाँ दो Meansों का बोध कराना ही अभीष्ट हो, वहाँ अलग-अलग Wordों का प्रयोग अनिवार्य होता है। किन्तु कहीं-कहीं दो अलग-अलग Meansों की प्रतीति के लिए समानान्तर समान स्वर-व्यंजन वाले Word जतुकाष्ठ न्याय से परस्पर इस प्रकार मिल जाते हैं, चिपक जाते हैं कि उनकी भिन्नता की प्रतीति नहीं होती। लाख और लकड़ी दो अलग-अलग वस्तुएँ हैं, लेकिन कभी-कभी लाख लकड़ी के साथ इस प्रकार चिपक जाता है कि उसकी भिन्नता की प्रतीति नहीं हो पाती। इसी प्रकार समान स्वर-व्यंजन वाले दो Word परस्पर इस प्रकार चिपक जाते है कि उनकी भिन्नता की प्रतीति नहीं हो पाती। ++ कहने का आशय यह है कि दो भिन्नार्थक Word Single प्रयत्न से Single साथ उच्चरित होने पर सहृदय को उसकी भिन्नता की प्रतीति नहीं हो पाती। अतएव उसे यही आभास होता है कि Single ही Word से दो Meansों की प्रतीति हो रही है। इस प्रकार दो भिन्नार्थक Wordों का सभंग या अभंगपूर्वक Single साथ उच्चारण ही श्लेष नामक अलंकार है। चूँकि इसमें दो Word जतुकाश्ठ न्याय से इस प्रकार चिपक जाते हैं कि उनकी भिन्नता की प्रतीति ही नहीं होती, इसलिए इसे श्लेष कहा जाता है।’’

श्लेष Single कठिन अलंकार है और काव्य में इसके प्रयोग से कठिनता आ जाती है। यदि कवि इसका कम प्रयोग करे और कठिनता को बचाकर, सरल प्रचलित Wordों का प्रयोग करे तो काव्य में सरलता के साथ-साथ सरसता भी बनी रहती है। सुन्दर कविराय रसरीति के कवि हैं जो रस और उसमें भी विशेषत: श्रृंगार, पर बल देते हैं। फलत: ऐसे कवि श्लेष से दूर ही रहते हैं। सुन्दर कविराय ने Single स्थल पर श्लेष का रसमय प्रयोग Reseller है-

कोऊ पचौ रात-दिन, निबहै न Single छिन,

नेह बिन कैसें कै उजारो होत बाती सों।

हौं तो थकी जाइ-जाइ, हा-हा खाइ, गहे पाइ,

आपुही मनाइ जाइ, लाइ लेहु छाती सों।।

नेह (स्नेह) के दो Means हैं: घी या तेल और प्रेम। इस छन्द में दूती नायक से कह रही है कि कोई कितना ही प्रयास करे, लेकिन निर्वाह सम्भव नहीं है। जिस प्रकार केवल बत्ती से प्रकाश नहीं होता, जब तक वह तेल से भीगी हुई ही न हो , उसी प्रकार केवल सामने बात कर लेने का तब तक कोई ठोस परिणाम नहीं निकलता जब तक वह स्त्री आपसे प्रेम न करती हो। कहने का आशय यह है कि तेल या घी से भीगी बत्ती ही अग्नि का सम्पर्क पाकर प्रकाश करने लगती है, उसके अभाव में नहीं, उसी प्रकार स्नेह से अनुरक्त स्त्री पुरूष का संकेत पाकर मिलने के लिए उतावली होती है। जब उसमें प्रेम ही न हो तो दूती क्या कर सकती है? प्रेम की विद्यमानता ही उसे अधीर बनाती है, दूती तो केवल प्रेरित कर सकती है अधीर नहीं बना सकती। यहाँ नेह (स्नेह) के दोनों Meansों का निर्वाह Reseller गया है। बत्ती के सन्दर्भ में नेह का Means घी है और स्त्री के सन्दर्भ में प्रेम। अतएव श्लेष अलंकार है। सुन्दर रसरीति-परस्परा के कवि हैं और रसवादी कवि रसमयता पर बल देते हैं, Word-वैचित्र्य पर नहीं। सुन्दर में भी ऐसे स्थल बहुत कम मिलते है।

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