श्रम कल्याण क्या है ?

कारखानों में काम करने वाले श्रमिकों के कल्याण, उनकी Safty और स्वास्थ्य संबंधी विभिन्न पहलुओं को नियमित करने का दायित्व सरकार अपने ऊपर लेती है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद औद्योगिक विकास को गति प्रदान करने के लिए भारत सरकार ने कारखाना अधिनियम, 1948 (Factory Act, 1948) प्रतिपादित Reseller। इसका उद्देश्य श्रमिकों को औद्योगिक और व्यावसायिक खतरों से Safty प्रदान करना था। केन्द्रशासित प्रदेश और विभिन्न राज्य सरकारें इस अधिनियम के तहत अपने प्रावधान और नियम बनाती है। और निरीक्षणालयों की मदद से इन्है। कार्यान्वित करती है।

श्रम-कल्याण सामूहिक सौदेबाजी का Single प्रमुख तत्त्व कैसे बन गया, इसको जानने से First हम यह जान लें कि श्रम-कल्याण क्या है ? इसकी क्या विशेषताएं हैं ? इसकी Need क्यों है ? तथा इस दिशा में भारत में लिए गए ठोस कदम कितने सफल हुए हैं ?

श्रम-कल्याण की परिभाषा 

श्रम-कल्याण की प्रमुख परिभाषाओं में से कुछ निम्न हैं –

  1. कैली – ‘‘श्रम-कल्याण कार्य का Means किसी फर्म द्वारा श्रमिकों के व्यवहार और कार्य के लिए अपनायें जाने वाले कुछ सिद्धान्तों से है।’’ 
  2. सामाजिक विज्ञान का विश्वकोष – ‘‘श्रम-कल्याण से Means, कानून, औद्योगिक व्यवस्था और बाजार की Needओं के अतिरिक्त मालिकों द्वारा वर्तमान औद्योगिक व्यवस्था के अन्तर्गत श्रमिकों के काम करने और कभी-कभी जीवन निर्वाह और सांस्कृतिक दशाओं के उपलब्ध करने के ऐच्छिक प्रयासों से हैं।’’ 
  3. पेन्टन – ‘‘श्रम-कल्याण कार्यो से Means श्रम से सुख, स्वास्थ्य और समृद्धि के लिए उपलब्ध की जाने वाली दशाओं से है।’’ 
  4. अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन – ‘‘श्रम-कल्याण से ऐसी सेवाओं और सुविधाओं को समझा जाना चाहिए जो कारखाने के अन्दर या निकटवर्ती स्थानों में स्थापित की गर्इ हो ताकि उनमें काम करने वाले श्रमिक स्वस्थ और शान्तिपूर्ण परिस्थितियों में अपना काम कर सकें तथा अपने स्वास्थ्य और नैतिक स्तर को ऊँचा उठाने वाली सुविधाओं का लाभ उठा सकें।’’ 
  5. ग्राउण्ड – ‘‘श्रम-कल्याण से तात्पर्य विद्यमान औद्योगिक प्रणाली तथा अपनी फैक्ट्रियों में रोजगार की दशाओं का उन्नत करने के लिए मालिकों द्वारा किये जाने वाले ऐच्छिक प्रयासों से है।’’ 
  6. आर्थर जेम्स टोड ने इस सम्बन्ध में उचित ही कहा है, ‘‘औद्योगिक कल्याण के सम्बन्ध में कार्य की प्रेरणा And औचित्य सम्बन्धी विभिन्न विचारधाराओं की श्रंृखला ही उपलब्ध है।’’ कुछ लोग श्रम-कल्याण कार्य को कारखानों के अन्तर्गत किए जाने वाले कार्यो तक सीमित बताते है।, यद्यपि यह परिभाषा बहुत ही संकुचित है। श्रमिक कल्याण की प्रगति के लिए सुविधाओं की व्यवस्था पर। 
  7.  श्रम अन्वेषण समिति, 1943 के According, ‘‘अपनी दिशा में, हम श्रम-कार्यो के अन्तर्गत श्रमिकों के बौद्धिक, शारीरिक, नैतिक और आर्थिक उन्नति के लिए किए गए किसी भी कार्य को सम्मिलित करने को प्राथमिकता देते हैं। चाहे यह मालिकों अथवा सरकार अथवा किसी अन्य संस्था द्वारा किए गए हों। इसके अतिरिक्त जो कानून द्वारा निश्चित कर दिया गया है अथवा वह सब जिसे श्रमिकों के संविद्-जनित लाभों के अंश के Reseller में, जिसके लिए श्रमिक स्वयं सादै ा कर सकते है।, साधारणतया अपेक्षित समझा जाता ह ै वह भी श्रम-कल्याण के अन्तर्गत माना जाता है। 

इस प्रकार इस परिभाषा के अन्तर्गत हम आवास समस्या, स्वास्थ्य And शिक्षा सम्बन्धी सुविधाएँ, आहार सुविधाएँ (कंटै ीन को भी सम्मिलित करते हएु ), आराम तथा खेल-कूद की व्यवस्था, सहकारी समितियाँ, बाल-क्रीड़ा स्कूल, स्वच्छ गृहों की व्यवस्था, 20 वेतन सहित अवकाश, मालिकों द्वारा अकेले ऐच्छिक Reseller से अथवा श्रमिकों के सहयोग से चलार्इ गर्इ सामाजिक बीमा व्यवस्था, जिसमें बीमारी तथा प्रसूति सुविधा योजना, प्राविडेण्ट फण्ड, सेवोपहार और पेंशन इत्यादि को भी सम्मिलित कर सकते हैं।

श्रम-कल्याण की विशेषताएं 

श्रम-कल्याण कार्य की निम्न विशेषताएं होती हैं –

  1. श्रम-कल्याण कार्य का Means कुछ विशेष सुविधाओं से है जो श्रमिकों को प्रदान की जाती है, 
  2. इन विशेष सुविधाओं का सम्बन्ध कार्य करने की उन्नत दशाओं से है। 
  3. विशेष सुविधाओं का उद्देश्य श्रमिकों के शारीरिक, मानसिक, आत्मिक, नैतिक, बौद्धिक और सामाजिक जीवन की उन्नति है,
  4. इससे श्रमिकों का जीवन-स्तर ऊँचा होता है और उनका दृष्टिकोण विस्तृत होता है, 
  5. श्रम-कल्याण कार्य सिर्फ मालिकों से ही सम्बन्धित न होकर राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय जीवन से भी सम्बन्धित है, 
  6. इन कार्यों का उद्देश्य सामाजिक असन्तोष और क्रान्ति को समाप्त करना है, 
  7. ये कल्याण कार्य ऐच्छिक संस्थाओं द्वारा भी किये जा सकते हैं।

श्रम-कल्याण कार्य का उद्देश्य 

श्रम-कल्याण कार्यो के उद्देश्यों को निम्न भागों में बाँटा जा सकता है –

  1. श्रमिकों को कार्य की Humanीय दशाएं उपलब्ध करना,
  2. कार्यक्षमता में वृद्धि करना, 
  3. नागरिकता की भावना का ज्ञान कराना,
  4. श्रमिकों, मालिकों और सरकार के बीच स्वस्थ सम्बन्धों का निर्माण करना, 
  5. राष्ट्रीय उत्पादन को प्रोत्साहित करना, तथा 
  6. अनुकूल सामाजिक परिस्थितियां निर्मित करना। 

श्रम-कल्याण कार्य के अंग 

श्रम-कल्याण कार्य के प्रमुख अंग क्या हैं? श्रम-कल्याण कार्यो के अन्तर्गत कौन-कौन से तत्वों का समावेश होता है। संक्षेप में श्रम-कल्याण कार्यक्रम के निम्न अंग होते हैं –

  1. श्रमिकों की भर्ती के वैज्ञानिक तरीके, 
  2. वातावरण जहां श्रमिक काम करते हैं – की समुचित व्यवस्था। वहां स्वच्छता, वायु और प्रकाश का उचित प्रबंन्ध, 
  3. प्रौद्योगिकी तथा सामान्य शिक्षा की व्यवस्था,
  4. दुर्घटनाओं की रोक-थाम की उचित व्यवस्था,
  5. साफ-सुधरे मकानों का निर्माण, 
  6. चिकित्सा, स्वास्थ्य और पोषण की पर्याप्त सुविधाएं, 
  7. मनोरंजन की व्यवस्थाएं 
  8. भोजन की उचित व्यवस्था, 
  9. काम के सन्तोषजनक और वैज्ञानिक घण्टे, 
  10. पर्याप्त मजदूरी की दरें, 
  11. उत्तम मजदूरी और यन्त्र, 
  12. मितव्ययी जीवन की शिक्षा, 
  13.  श्रमिक केन्द्रों को आकर्शक बनाना।

श्रम-कल्याण कार्य की Need 

श्रमिकों के कल्याण, अधिक उत्पादन तथा राष्ट्रीय आर्थिक प्रगति के लिए श्रमिकों के लिए कल्याण कार्यो की Need है। भारत में श्रम-कल्याण कार्य की Need के सम्बन्ध में निम्न तर्क दिए जा सकते हैं –

  1. औद्योगिक शान्ति की स्थापना – भारत में श्रम-कल्याण कार्यो की पहली Need औद्योगिक शान्ति को स्थापित करने की दृष्टि से है। औद्योगिक शान्ति के अभाव में न तो पर्याप्त उत्पादन ही हो सकेगा और न ही औद्योगिक विकास तथा प्रगति ही सम्भव है। श्रम-कल्याण कार्यो का श्रमिकों के मन पर यह प्रभाव पड़ता है और वे मानसिक दृष्टि से ऐसा अनुभव करने लगते हैं कि उद्योगपति और राज्य उनके कल्याण कार्यो के प्रति जागरूक हैं। इससे स्वस्थ वातावरण का निर्माण होता है और औद्योगिक शान्ति की स्थापना हो सकती है।
  2. सामाजिक गुणों का विकास – कल्याण कार्यो का दूसरा प्रभाव यह पड़ता है कि इससे श्रमिकों में अनेक सामाजिक गुणों का विकास होता है। कैण्टीन, मनोरंजन और स्वास्थ्य सुविधाओं का परिणाम यह होता है कि श्रमिकों में अनेक सामाजिक गुणों का विकास होता है। 
  3. उत्तरदायित्व की भावना – श्रम-कल्याण कार्यो का परिणाम यह होता है कि इससे श्रमिकों में उत्तरदायित्व की भावना का विकास होता है। इससे वे औद्योगिक कार्यो में विशेष रुचि लेते हैं। 
  4. मानसिक शान्ति – श्रम-कल्याण कार्य औद्योगिक शान्ति की स्थापना करते है।। साथ ही श्रमिकों के सामाजिक गुणों का विकास और उत्तरदायित्व की भावना को जाग्रत करते हैं। इसका परिणाम यह होता है कि श्रमिकों में मानसिक शान्ति की भावना विकसित होती है। 
  5. कार्यक्षमता में वृद्धि – श्रम-कल्याण कार्यो से श्रमिकों में अनेक सामाजिक गुणों का विकास होता है। उन्हें अनेक प्रकार की सुविधाएं प्रदान की जाती है। इन सुविधाओं का परिणाम यह होता है कि श्रमिकों की कार्यक्षमता में वृद्धि होती है। 

श्रम-कल्याण कार्य का वर्गीकरण 

भारत में श्रम-कल्याण कार्यो में अनेक सरकारी और गैर-सरकारी संस्थाओं का योग है। भारत में श्रमिकों के कल्याण-कार्य से सम्बन्धित भावना का विकास द्वितीय विश्व Fight के बाद हुआ था। अनियोजित नगरीकरण और औद्योगीकरण का परिणाम यह हुआ कि अनेक प्रकार की समस्याओं का जन्म हुआ। इन समस्याओं के कारण श्रमिकों की कार्यक्षमता में कमी आने लगी और उत्पादन पर इसका प्रभाव पड़ने लगा। ऐसी परिस्थिति में उद्योगपति, सरकार तथा अन्य संस्थाओं ने श्रमिकों के कल्याण कार्यो की ओर ध्यान दिया। भारत में निम्न संस्थाओं ने श्रम-कल्याण सम्बन्धी कार्यो का सम्पादन Reseller है –

  1. केन्द्र सरकार, 
  2. राज्य सरकारें, 
  3. उद्योगपति, 
  4. श्रमिक संघ, 
  5. समाज सेवी संस्थाएं, और 
  6. नगरपालिकाएं। 

इन संस्थाओं द्वारा श्रमिकों के लिए किये गए कल्याण कार्यो का description इस प्रकार है – 

1. केन्द्र सरकार – भारत सरकार ने श्रमिकों के कल्याण की दृष्टि से अनेक अधिनियमों का निर्माण Reseller है। इन अधिनियमों का description इस प्रकार है –

    • क) मीटर परिवहन कर्मचारी अधिनियम 1961 
    • ख) अभ्रक खान श्रम-कल्याण निधि 
    • ग) कोयला खान श्रम-कल्याण निधि 
    • घ) बागान श्रमिक अधिनियम, 1951 
    • ड़) लोहा खान श्रम-कल्याण सेस अधिनियम, 1961 
    • च) खानों में Saftyत्मक उपाय 
    • छ) श्रम-कल्याण केन्द्र 
    • ज) राष्ट्रीय Safty पुरस्कार योजना 
    • झ) श्रम दशाओं का सर्वेक्षण 
    • व) श्रम-कल्याण निधियाँ 

    2. राज्य सरकार – केन्द्रीय सरकार के अतिरिक्त राज्य सरकारों ने भी इस सम्बन्ध में अधिनियमों का निर्माण Reseller है। ये अधिनियम राज्य की परिस्थितियों के According होते हैं। इसके साथ ही राज्य सरकार ने श्रमिकों के कल्याण के लिए श्रम-कल्याण विभाग की स्थापना भी की है।

    3. उद्योगपति – जहां तक श्रमिकों के कल्याण का सम्बन्ध है। इसके लिए विभिन्न उद्योगपतियों ने भी महत्त्वपूर्ण कार्य किये है। आधुनिक युग में परिस्थितियों के According होते है। इसके साथ ही राज्य सरकार ने श्रमिकों के कल्याण के लिए श्रम-कल्याण विभाग की स्थापना भी की है। 

    • क) चिकित्सा की व्यवस्था, 
    • ख) शिक्षा की व्यवस्था, 
    • ग) जलपान-गृहों की स्थापना, 
    • घ) सरकारी समितियों की स्थापना, 
    • ड़) मनोरंजन गृह और वाचनालयों की व्यवस्था, 
    • च) प्राविडेण्ट फण्ड आदि की व्यवस्था। 

    4. श्रमिक संघ – श्रमिक संघों का गठन जिस उद्देश्य से Reseller जाता है वह श्रमिक कल्याण है। भारत में श्रमिकों के कल्याण की दृष्टि से जो श्रमिक संघ स्थापित है उनमें से कुछ के नाम हैं – 

    • क) अहमदाबाद टैक्साटाइल श्रम संघ, 
    • ख) कानपुर मजदूर सभा, 
    • ग) इन्दौर मिल संघ, 
    • घ) रेल कर्मचारी संघ। 

    5. समाज-सेवी संस्थाएँ – श्रम-कल्याण के क्षेत्र में बहुत-सी स्वयंसेवी संस्थाएँ कार्य कर रही है।। उदाहरण के लिए – 

    • क) मुम्बर्इ समाज सेवा लोग, 
    • ख) सेवा सदन समिति, 
    • ग) मुम्बर्इ प्रेसीडेन्सी महिला मण्डल। 

    6. नगरपालिकाएँ – अनेक नगरनिगमों और नगरपालिकाओं ने भी श्रम-कल्याण के सम्बन्ध में अनेक कार्य किए है। इन नगरपालिकाओं में दिल्ली, मुम्बर्इ, अजमेर, कानपुर, चेन्नर्इ है।। इन नगरपालिकाओं ने श्रमिकों के कल्याण के लिए जो कार्यक्रम किये, उनमें से कुछ निम्न है। – 

    • क) निवास की व्यवस्था, 
    • ख) प्राथमिक स्कूल And स्वास्थ्य केन्द्रों की स्थापना, 
    • ग) रात्रि पाठशालाएँ, 
    • घ) प्राविडेण्ट फण्ड, आदि। 
    • ख) शिक्षा की व्यवस्था, 
    • ग) जलपान-गृहों की स्थापना, 
    • घ) सरकारी समितियों की स्थापना, 

    कल्याण कार्यो की असफलता के कारण 

    अनेक योजनाओं और संस्थाओं द्वारा श्रम-कल्याण कार्य किये गये है।, किन्त ु इनमें उतनी सफलता नहीं मिली, जितनी मिलनी चाहिए। श्रम-कल्याण कार्यो की असफलता के प्रमुख कारण निम्न हैं –

    • क) नियोजन And वैज्ञानिक दृष्टिकोण का अभाव, 
    • ख) उद्योगपतियों द्वारा उपेक्षा, 
    • ग) प्रशिक्षित कार्यकर्त्ताओं का अभाव, 
    • घ) अधिनियमों की अपर्याप्तता, 
    • ड़) मजदूरों में जागरूकता की कमी। 

    उपर्युक्त कमियों को दूर कर देने से श्रम समस्याओं का समाधान होगा, और कल्याण कार्यो को गति मिलेगी।

    श्रम कल्याण कार्य का महत्त्व 

    श्रमिकों के लिए कल्याण-कार्य के महत्त्व पर बल देने की कोर्इ Need विशेषकर भारत में नहीं प्रतीत होती। यदि हम अपने देश में श्रमिक वर्ग की दशा को ध्यान से देखें तो हमें मालूम होगा कि उन्हें अस्वस्थ वातावरण में बहुत लम्बे समय तक काम करना पड़ता है और अपने खाली समय में अपने जीवन की परेषानियों को दूर करने के लिए उसके पास कोर्इ साधन नहीं है। ग्रामीण समुदाय से दूर हटाए जाने के कारण तथा Single अनजान And अस्वस्थ शहरी समुदाय के शिकार बन जाते हैं जो उन्हें अनैतिकता और विनाश की ओर उन्मुख कर देती है। Indian Customer श्रमिक औद्योगिक रोजगार को Single बुरार्इ की दृष्टि से देखते हैं, जिससे वे यथासम्भव शीघ्र से शीघ्र बच निकलने का प्रयास करते हैं। अत: औद्योगिक केन्द्रों में श्रमिकों के जीवन तथा काम करने की दशाओं में सुधार किए बिना सन्तुष्ट, स्थायी और कुशल श्रम-शक्ति नहीं प्राप्त की जा सकती। इसलिए कल्याण-कार्य का महत्त्व पश्चिमी देशों की अपेक्षा भारत में अधिक है। कल्याण-कार्य से होने वाले लाभदायक प्रभावों के सम्बन्ध में श्रम अन्वेषण समिति ने तीन आवश्यक लाभों की ओर विचार Reseller है –

    1. कल्याण सुविधाएँ- जैसे शिक्षा सम्बन्धी सुविधाएँ, खेल-कूद, मनोविनोद आदि-कारखाने में भावनात्मक वातावरण पर लाभपूर्ण प्रभाव रखती है।, साथ ही साथ औ़द्योगिक शान्ति को कायम रखने में भी सहायता करती हैं। जब श्रमिक यह अनुभव करने लगते हैं कि मालिक तथा राज्य-सरकारें उनके दैनिक जीवन में रुचि रखते है। तथा प्रत्येक सम्भव तरीके से उनके भाग्य को खुशहाल बनाना चाहते हैं, तब उनकी असन्तोष And विशाद की प्रवृत्ति स्वयं धीरे-धीरे समाप्त हो जाती है। 
    2. उत्तम गृह-व्यवस्था, सहकारी समितियाँ, जलपान-गृह, बीमारी तथा प्रसूति-सुविधाएँ, प्राविडेण्ड फण्ड, ग्रेचुटी And पेंशन और इसी तरह की अन्य बातें श्रमिकों में यह भावना आवश्यक Reseller से उत्पन्न करती है कि वे उद्योगों में अन्य लोगों की भाँति की महत्त्व रखते हैं। आधुनिक स्थिति के अन्तर्गत श्रम-पलटाव तथा गरै हाजरी अधिक व्यापक है। और सामाजिक Safty तथा मनोविनोद की खोज में श्रमिक अपने गाँवों की ओर नियमित Reseller से जाते नजर आते हैं। कल्याण-कार्यो के द्वारा नर्इ स्थिति उत्पन्न हो जाती है जिसमें श्रमिक वर्ग अधिक स्थायी तथा आर्थिक दृष्टि से अधिक कुशल हो जाता है।
    3. Humanता के मूल्य के अतिरिक्त यहाँ तक सामाजिक लाभ भी होता है। जलपान-गृहों की व्यवस्था से, जहाँ श्रमिकों को सस्ता, तथा संतुलित आहार उपलब्ध होता है, उनकी शारीरिक उन्नति होती है। मनोविनोद के साधनों से उनकी बुराइयों को कम करना चाहिए, चिकित्सा सहायता तथा प्रसूति And शिशु-कल्याण से श्रमिकों तथा उनके परिवारों का स्वास्थ्य सुधारना चाहिए और सामान्य मातृ तथा शिशु मृत्युओं की दर कम करनी चाहिए। शिक्षा सम्बन्धी सुविधाओं द्वारा उनकी मानसिक कुशलता तथा आर्थिक उत्पादन शक्ति को बढ़ाया जाना चाहिए। Indian Customer औद्योगिक मजदूर को सदैव आलसी तथा अकुशल मानकर उसकी अवहेलना की गर्इ है परन्तु बम्बर्इ की कपड़ा श्रम जाँच समिति का यह निराकरण उचित ही है कि ‘‘यह स्वत: सिद्ध-सिद्धान्त है कि All बातों में कुशलता के Single उच्च स्तर की अपेक्षा उन व्यक्तियों से की जा सकती है जो शारीरिक दृष्टि से योग्य तथा मानसिक परेशानियों और चिन्ताओं से मुक्त है।। ऐसा उन्हीं मनुष्यों से सम्भव है जो कायदे से प्रशिक्षित किए गए हैं, जिनकी गृह-व्यवस्था ठीक और आहार उचित है तथा जिनके वस्त्रों की व्यवस्था सन्तोषपूर्ण है।’’ कल्याण-कार्यो से मजदूरों की उत्पादन कुशलता में वृद्धि होती है और उनमें स्वानुभूति और चेतना की Single नर्इ भावना का प्रादुर्भाव होता है। 

    श्रम कल्याण अधिकारी 

    औद्योगिक व्यवसाय के बुनार्इ उद्योग में ‘Jobbers’ या इंजनियरिंग उद्योग में, ‘Mukadams’ या खेती या बागानी में ‘Sirdars’, की कड़ी जकड़ में था वे मजदूरों/श्रमिकों की Appointment और उनको अनुशासन में रखते थे, तैयार हुये माल की देखरेख, Needओं और समय-समय पर फैक्ट्री यूनियन पर ध्यान भी रखते थे। वे बड़े पैमाने पर श्रमिकों के उत्पीड़न में लिप्त थे। श्रम पर बने रॉयल कमीशन ने ‘Jobber’ व्यवस्था को खत्म करने तथा श्रम अधिकारी को नियुक्त करने की सिफारिश 1831 में की। कमीशन का कहना था कि – ‘‘हम All फैक्ट्रीयों से ‘Jobber’ के श्रमिकों को हटाने तथा नियुक्त करने के कार्य का निषेध करने की वकालत करते हैं।’’ यह पूर्ण व अच्छी तरह से श्रम अधिकारी की Appointment से हासिल Reseller जा सकता है और यह क्रम हम सिफारिश करते हैं जहाँ पर भी फैक्ट्रीयां मापदण्ड की मान्यता है। वह श्रमिक अधिकारी सिर्फ फैक्ट्री के कार्मिक प्रबन्धक के अधीन रहेगा और उसका चुनाव सावधानीपूर्वक करना चाहिए।

    उसमें – सच्चार्इ, र्इमानदारी, व्यक्तित्व, ऊर्जा, दूसरों को समझने की क्षमता, बहुभावी ये सारे गुण होने चाहिये, कोर्इ भी श्रमिक बिना श्रम अधिकारी तथा संस्थान या विभागअध्यक्षों की बिना Agreeि के व्यक्तिगतReseller से नियुक्त नहीं Reseller जा सकता न ही बिना श्रम अधिकारी के विचार से हटाया जा सकता है। यह श्रम अधिकारी की जिम्मेदारी है कि कोर्इ भी श्रमिक बिना पर्याप्त या तर्क संगत कारण के हटाया न जाये। अगर श्रम अधिकारी सही या कर्तव्यनिष्ठ है तो श्रमिक उससे जल्द ही विश्वास करना सीख लेगें तथा उसे अपना मित्र समझेंगे, यहां और भी कार्य/दायित्व है जो Single अधिकारी को पूरे करने पड़ते हैं जब बात कल्याण की होती है। इस प्रकार से श्रम अधिकारी के पद की शुरूआत प्रारम्भ में निम्न के लिये हुयी –

    • Jobber – व्यवस्था की बुरार्इयों तथा खराब अभ्यासों को दूर करने। 
    • श्रम प्रबन्धन को मीलों में बढ़ाने तथा बेहतर करने में।
    • राज्य श्रम आयुक्त के साथ Single कड़ी के Reseller में सेवा करने हेतु। 

    कॉटन कपड़ा मील, मुम्बर्इ तथा जूट उद्योग, कलकत्ता में 1930 में First श्रम अधिकारी की Appointment हुर्इ। उस समय के श्रम अधिकारी को व्यवस्था सुदृढ़ करने, कानून को, अनुशासन को बनाये रखने की जिम्मेदारी थी। जबकि बाद में व्यवस्था सुदृढ़ करने का काम धीरे-धीरे कल्याणकारी गतिविधियों में बदल गया और श्रम अधिकारी ने कुछ कल्याणकारी सेवायें जैसे – कि अनाज, खेल, सहयोग, संगठन इत्यादि लागू की इन कारणों से श्रम अधिकारी – श्रम कल्याण अधिकारी बन गया।

    श्रम अनुसंधान समिति ने श्रम अधिकारी के संस्थान को भी महत्व दिया। इस समिति की सिफारिशों का आजादी से First सरकार की सोच पर पर्याप्त प्रभाव पड़ा। 1948 के फैक्ट्री अधिनियम में कानूनन Single कल्याण अधिकारी की Appointment का प्रावधान है, धारा 49(1) और (2) – फैक्ट्र अधिनियम में दिया गया है कि –

    1. जिस भी फैक्ट्री में 500 या उससे अधिक श्रमिक कार्यरत् हों वहाँ पर श्रमिकों के अनुकूल संख्या में मालिकों को श्रम अधिकारी की Appointment करना चाहिये।
    2. राज्य सरकार को सह धारा (i) के अन्तर्गत नियुक्त श्रम अधिकारी की योग्यता, कत्तव्र्य तथा सेवा की शर्तो को निश्चित करने का अधिकार हैं। 

    फैक्ट्री अधिनियम के द्वारा दिये गये मार्गदर्शन को बाद में कानूनन कार्यरत बागानी तथा खदान उद्योग द्वारा भी अपनाया गया। बागानी श्रम अधिनियम, 1951 के 26 धारा 18 के (1) व (2) के According (1) जिस भी बागान में 300 या इससे अधिक श्रमिक कार्यरत है वहां मालिक को उनकी संख्या के अनुकूल श्रम अधिकारी की Appointment करनी चाहिये। (2) राज्य सरकार सह धारा (i) के अन्तर्गत नियुक्त श्रम अधिकारी की योग्यता, कर्त्तव्य तथा सेवा की शर्त्तो को निश्चित कर सकती है। 

    खदान अधिनियम, 1952 में यह प्रावधान धारा 58(q) के अन्तर्गत बनाया गया है, खदान अधिनियम के धारा 72 (1955), में प्रत्येक खदान में जहाँ पर भी 500 या अधिक सामान्य श्रमिक कार्यरत है वहां मालिक, या प्रबन्धक को Single योग्य श्रम अधिकारी या योग्य व्यक्ति को Single कल्याण अधिकारी के Reseller में नियुक्त करना पड़ता है। इसके आगे नियम कल्याण अधिकारी की योग्यता, कर्त्तव्य, तथा सेवा की शर्तो को बताते हैं। राज्य सरकारों को कानूनी Reseller से आवश्यक नियमों जिसमें Single कल्याण अधिकारी की योग्यता कत्तव्र्य तथा Appointment की दशा निहित हो का ढांचा बनाने की बाध्यता है। केन्द्र सरकार ने भी उपरोक्त 3 मुख्य अधिनियमों के तहत मार्गदर्शन के लिये ढांचा तथा मॉडल तैयार किये है। All तीन मॉडल नियम ने कल्याण अधिकारी के पद के लिये निम्नलिखित योग्यता बनायी है – 

    1. इसके सन्दर्भ में राज्य सरकार से मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय द्वारा Single डिग्री रखता हो। 
    2. समाज विज्ञान या श्रमिक कल्याण खदान के मामले में या समाज कार्य का डिप्लोमा या डिग्री – राज्य सरकार से मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय से प्राप्त Reseller। इसके अतिरिक्त – खदान नियम ने कुछ निम्नलिखित और नियम दिये है। ‘‘किसी भी औद्योगिक व्यवसाय में कम से कम 3 वर्ष तक श्रमिक समस्या को देखने तथा उनके निवारण का आभ्यासिक अनुभव।’’
    3. जहाँ पर फैक्ट्री, खदान या बागान स्थित है उस जगह पर कार्यरत श्रमिकों द्वारा बोली जाने वाली भाषा की पर्याप्त जानकारी/ज्ञान हो। 

    धारा 49 (फैक्ट्री अधिनियम, 1948) तथा महाराष्ट्र कल्याण अधिकारी (कर्त्तव्य, योग्यता तथा सेवा की शर्तो) के According जिस भी फैक्ट्री में 500 या अधिक श्रमिक (संविदा कान्टे्रक्ट श्रमिकों को मिलाकर) है, उन्हें Single कल्याण अधिकारी को नियुक्त करना आवश्यक है – 

    इसमें कल्याण अधिकारी, अतिरिक्त कल्याण अधिकारी तथा उप/सह. कल्याण अधिकारी शामिल है। इसकी सूची निम्नलिखित है। 

    जहां पर श्रमिकों की
    संख्या इससे ज्यादा हो
    परन्तु इससे
    ज्यादा न हो
    कल्याण अधिकारी/ उप कल्याण अधिकारी/
    अरिक्ति कल्याण अधिकारी की संख्या
    1  2
    500 2500 Single कल्याण अधिकारी
    2500  3500  Single कल्याण अधिकारी और Single उप कल्याण
    अधिकारी
    3500 4500   Single कल्याण अधिकारी And 1-अतिरिक्त
    कल्याण अधिकारी
    4500 6500  1-कल्याण अधिकारी
    1- उप कल्याण अधिकारी
    1- अतिरिक्त कल्याण अधिकारी
    6500 8500 1- कल्याण अधिकारी
    2- अतिरिक्त कल्याण अधिकारी
    8500  10500 1- कल्याण अधिकारी
    2- अरिक्ति कल्याण अधिकारी 
    10500 1- उप कल्याण अधिकारी 
    1- कल्याण अधिकारी
    3- अरिक्ति कल्याण अधिकारी 

             

    फैक्ट्री अधिनियम के तहत नमूना (मॉडल) नियमों में कल्याण अधिकारी के कर्त्तव्यों की Single सूची तैयार की गयी है यह कर्त्तव्य है – 

    1. कानून के तहत प्राप्त सेवाओं की देख रेख, Safty, स्वास्थ्य तथा कल्याण कार्यक्रम जैसे रहना (आवास, निर्माण, सफार्इ आदि।
    2. श्रमिकों को व्यक्तिगत, पारिवारिक तथा कार्य क्षेत्र में सहायता सम्बन्धी मामलों में सलाह या परामर्श देना। 
    3. प्रबन्धन को श्रमिक कल्याण नितियों तथा प्रशिक्षण कार्यक्रम बनाने में सलाह देना। 
    4. श्रमिक, प्रबन्धन तथा अन्य बाहरी संस्था जैसे – फैक्ट्री निरीक्षक, केन्द्रीय श्रम संस्थान तथा अन्य सामाजिक कल्याण संस्थाओं के बीच Single कड़ी के Reseller में कार्य करना। 
    5. औ़द्योगिक सम्बन्धों तथा सामान्य सहिष्णुता, श्रमिकों के भले के लिये सौहार्दपूर्ण सम्बन्ध तथा उसके विकास के लिये मापदण्ड का सुझाव देना, श्रमिकों के कष्टों को दूर करने तथा कार्य की क्षमता बढ़ाने के लिये भिन्न तरह के मापदण्ड अपनाना। 

    Human संसाधन शक्ति प्रबन्धन के 3 क्षेत्रों में कल्याण अधिकारी के कार्यो को वर्गीकृत Reseller जा सकता है। 

    1. श्रमिक कल्याण (कल्याणकारी प्रणाली/कार्य) 
    2. श्रमिक प्रबन्धन (व्यक्तिगत कार्य) 
    3. श्रमिक सम्बन्ध (समझौता/मैत्री कार्य) 

    श्रम-कल्याण अधिकारी के श्रमिक कल्याण कारी कार्यो में सलाह देना स्वास्थ्य, Safty तथा कल्याण, कार्य के समय, छुट्टी, कल्याण समिति के गठन सम्बन्धी कानूनी तथा गैर कानूनी प्रावधान को लागू करने में सहायता देना सम्मिलित है। उसके श्रमिक प्रबन्धन उत्तरदायित्व के अन्तर्गत संगठनात्मक अनुशासन Safty तथा स्वास्थ्य प्रबन्धन के मध्य कड़ी के Reseller में (प्रबन्धन तथा श्रमिक के बीच), वेतन तथा भत्तों के प्रबन्धन, श्रमिक शिक्षा शामिल है। उसके श्रमिक सम्बन्धी क्रियाओं में श्रमिकों की शिकायतों का निवारण त्वरित आदेश प्रबन्धन, कार्य क्षमता बढ़ाने हेतु कदम उठाना, झगड़ो का शान्तिपूर्वक निवारण, श्रमिक-प्रबन्धन के बीच सौहार्दपूर्ण सम्बन्धों को बढ़ाना शामिल है। यह मुख्यत: 28 Single अधिकारी समूह के सलाहकार या विशेषज्ञ के Reseller में अधिकारी समूह में कार्यरत रहता है। 

    कल्याण अधिकारी से Single सलाहकार, परामर्शदाता, बिचौलिया तथा मध्यस्थ कड़ी (प्रबन्धन तथा श्रमिक के बीच) के Reseller में कार्य करने की अपेक्षा की जाती है। 

    फैक्ट्री अधिनियम, 1948 (L-XIII of 1948) के भाग 49 के सह भाग (2) भाग 50, तथा 112 के अन्तर्गत दिये गये अधिकार के अभ्यास में महाराष्ट्र सरकार ने निम्नलिखित नियम बनाये : 

    कल्याण अधिकारी के कर्त्तव्य 

    कल्याण अधिकारी, सह-कल्याण अधिकारी तथा अतिरिक्त कल्याण अधिकारी को करना चाहिये – 

    • फैक्ट्री मालिक तथा कर्मचारियों के बीच सौहार्दपूर्ण सम्बन्ध बनाये रखने की दृष्टि से सुझाव व सम्बन्ध स्थापित करना। 
    • कर्मचारियों के दु:खों, व्यक्तिगत या सामूहिक Reseller से फैक्ट्री प्रबन्धन के समक्ष शीघ्र निदान की दृष्टि से लाना या प्रबन्धन को उससे अवगत कराना। 
    • कर्मचारियों को समझना व उनका अध्ययन, ताकि वह फैक्ट्री प्रबन्धन के निर्माण तथा कर्मचारी नितियों को बना सके तथा इन नितियों को कर्मचारी के समझने योग्य भाषा में परिवर्तित करे ताकि कर्मचारी उसे समझ सके। 
    • फैक्ट्री प्रबन्धन तथा कर्मचारियों के बीच झगडे़ को होने से रोकने की दृष्टि से औद्योगिक सम्बन्धों को देखना, अगर ऐसी कोर्इ झड़प हो जाती है तो उसे शान्त करना। 
    • कर्मचारियों को फैक्ट्री के खिलाफ अवैध हड़ताल तथा प्रबन्धन के खिलाफ तालाबन्दी करने से रोकना और असामाजिक गतिविधियों को रोकने में सहायता देना। 
    • हड़ताल और तालाबन्दी के दौरान Single निष्पक्ष नजरिया रखना ताकि शान्तिपूर्वक समझौता हो सके। 
    • फैक्ट्री अधिनियम 1948, के अन्तर्गत बने नियमों को लागू करने तथा फैक्ट्री प्रबन्धन को कानूनी तथा बन्धन सम्बन्धी Needओं पूर्ति में सहायता तथा सलाह देना। स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं और फैक्ट्री निरीक्षक के बीच कड़ी स्थापित करना, कर्मचारियों का चिकित्सीय स्वास्थ्य परीक्षण, स्वास्थ्य ब्यौरा, जोखिम भरी नौकरी की देख-रेख बीमारों का दौरा और स्वास्थ्य लाभ, हादसा प्लान्ट निरीक्षण, Safty शिक्षा हादसों की छानबीन, मात्त्व लाभ, कर्मचारियों को क्षतिपूर्ति सम्बन्धी मामलों में प्रावधान लागू करना। 
    • कर्मचारियों तथा प्रबन्धन के बीच सम्बन्धों को बढ़ाना ताकि उत्पाद क्षमता बढ़ सके तथा साथ ही साथ कार्य स्थिति में सुधार तथा कर्मचारियों को कार्य के वातावरण में सुधार लाने तथा सहज करने में सहायता करता है। 
    • कार्य शैली के निर्माण तथा सन्धि उत्पाद समिति, सहकारी संस्थाओं Safty तथा कल्याण समिति को प्रोत्साहन तथा उनके कार्यो की देख-रेख करना।
    • फैक्ट्री प्रबन्धन को कल्याण के प्रावधान जैसे कैन्टीन, आराम करने के लिये स्थान, बच्चों के देख-रेख का स्थान, पर्याप्त शौचालय व्यवस्था, पीने का पानी, तथा अच्छी तनख्वाह/वेतन, पेंशन, भविष्य निधि, ऐच्छिक वेतन में सलाह तथा सहयोग देना।
    • फैक्ट्री प्रबन्धन को छुट्टी के साथ कर्मचारी को तनख्वाह निर्धारित करने, तथा कर्मचारियों के छुट्टी की समय तनख्वाह सम्बन्धी अन्य नियमों को बताने तथा इसके सम्बन्ध में कर्मचारियों को आवेदन सम्बन्धी जानकारी देने तथा उनका निर्देशन करने में सहायता देना। 
    • फैक्ट्री प्रबन्धन को कल्याणकारी सुविधा देने जैसे आवास सुविधा खाना, सामाजिक तथा पुन: निर्माण सुविधा, सफार्इ, बच्चों की शिक्षा तथा व्यक्तिगत समस्याओं में सलाह देने में सलाह देना तथा सहायता करना। 
    • फैक्ट्री प्रबन्धन को नये कर्मचारियों, प्रशिक्षुओं, कर्मचारी स्थानान्तरण प्रोन्नति, शिक्षक व निरीक्षक, निरीक्षक व सूचना नियन्त्रण और कर्मचारियों को आगे किसी प्रकार की शिक्षा दी जाये ताकि वे किसी तकनीकि की जगह उपलब्ध रह सकें, इन मुद्दों पर सलाह देना। 
    • कर्मचारियों के जीवन स्तर में वृद्धि तथा उनके भले के लिये मापदण्डों का सुझाव देना। 
    • कर्मचारियों को उनके अधिकार, दायित्व को बताना तथा उनके कर्त्तव्यों को परिभाषित करना जो फैक्ट्री व उनके अनुशासन, Safty तथा बचाव में बनाये गये हैं। 

    अन्य कर्त्तव्यों का गैर निर्वाहन 

    यदि मुम्बर्इ, फैक्ट्री का मुख्य निरीक्षक इस मत में हो कि फैक्ट्री के मालिक द्वारा कल्याण अधिकारी, सह कल्याण अधिकारी या अतिरिक्त कल्याण को नियम 7 में दिये गये कार्यो से असंगत कार्यो को करने को कहता है तो इस दशा में मुख्य निरीक्षक सीधे या लिखित तौर पर ऐसे कल्याण अधिकारी इस प्रकार का कार्य नहीं करेगें। 

    कल्याण अधिकारी की भूमिका और स्थिति को लेकर यह Single मतभेद का प्रश्न बना हुआ है। श्रमिक कल्याण पर बनी समिति ने विभिन्न पक्षों राज्य सरकार पब्लिक सेक्टर उद्योग, निजी नियोक्ता संगठन, कर्मचारी संगठन तथा श्रमिक सम्बन्धों के क्षेत्र में प्रसिद्ध व्यक्तियों के मतों के आधार पर कल्याण अधिकारी की भूमिका और स्थिति इच्छित की है। इस संदर्भ में दिये गये कुछ मत निम्नवत है – 

    1. यह सुझाव दिया कि कल्याण अधिकारी को सरकार के द्वारा नियुक्त करना चाहिये तथा कर्मचारी अपने वेतन तथा भत्ते सरकार के साथ जमा करें और उनके कार्य सरकारी श्रम विभाग द्वारा देखे जाये जिसके प्रति उनकी जबाब देही हो।
    2. कल्याण अधिकारी को कर्मचारियों के झगड़ों में पेश होने की अनुमति नहीं होनी चाहिए। व्यक्तिगत तथा कल्याण कार्यक्रम को स्पष्ट Reseller से परिभाषित तथा उन्हें भिन्न अधिकारियों को सौप देना चाहिये, उसे किसी प्रकार के व्यक्तिगत मामलों को देखने या हल करने की अनुमति नहीं क्योंकि वह प्रबन्धन का प्रतिनिधि है। सिवाय की प्रबन्धन का होता है। 
    3. Single मत है कि कल्याण अधिकारी को कानूनी Reseller से Safty प्राप्त होनी चाहिये ताकि वह अपना विचार बिना किसी भय के दे सके। वह प्रबन्धन के हाथों में 30 कर्मचारी के विरुद्ध Single हथियार भी बन सकता है। और दूसरा मत यह है कि कानूनी Safty कल्याण अधिकारी को प्रभावशाली ढंग से कार्य करने के लिये आवश्यक नहीं है। क्योंकि कानूनी Safty बाहरी शक्ति को ग्रहण करने की प्रवृत्ति को बढ़ाता है।
    4. कल्याण अधिकारी की अनिवार्यता को रद्द कर देना चाहिये क्योंकि यह कर्मचारियों को कोर्इ लाभ नही पहंचु ाता तथा यह नियोक्ता द्वारा कमर्च ारी के खिलाफ प्रयोग Reseller जाता है। यह पद केवल Single भ्रम पैदा करता है तथा उसे बनाये रखता है। 
    5. अधिनियम के कुछ सम्बन्धित भागों में परिवर्तन/संशोधन कल्याण अधिकारी को प्रबन्ध द्वारा दिये गये कार्यो को पूर्ण Reseller से क्रियान्वित करने के लिये आवश्यक है कुछ प्रतिबन्धित कार्यो को छोड़कर। ये प्रतिबन्धित कार्य निम्नवत् हैं – (a)कोर्ट के समक्ष प्रबन्धन की तरफ से प्रस्तुत होना या इसके बारे में तैयारी करना। (b) कर्मचारियों के खिलाफ अनुशासनात्म कार्यवाही करना/करने का निर्णय लेना। 
    6. श्रम कल्याण अधिकारी के कार्यो की ‘उदासीन’ अवधारणा जहाँ तक उद्देश्यपूर्ण कार्य है वह बहुत ही खराब ढंग से अनुमानित, अव्यक्त/अपरिभाषित और सामान्य तौर पर Means हीन है। कल्याण अधिकारी प्रबन्धन के द्वारा नियुक्त Reseller जाता है तथा वेतन प्राप्त करता है और बाद में उसकी दक्षता, उद्देश्य को आकलित Reseller जाता है तथा यही उसकी प्रान्नति तथा वेतन वृद्धि तय करती है। इन परिस्थितियों के अन्तर्गत वह श्रमिक तथा प्रबन्धन के बीच तृतीय शक्ति नहीं बन सकता जो स्वतन्त्र तथा निर्णय लेने की शक्ति अपने पास रखता हो। 
    7. यहां व्यावसायिक प्रशिक्षण संस्थानों के बीच यह भावना है कि कल्याण अधिकारी उद्योगों में समाज कार्य करने की भूमिका निभाता है। यह माना जाता है कि कल्याण अधिकारी की भूमिका Single समाजकार्य तथा व्यवसाय पूर्वदेशीयत्व का अनोखा समागम है । 

    सारे सम्बन्धित पहलू तथा विचारों की अभिव्यक्ति को देखने के बाद श्रम कल्याण पर बनी समिति ने यह संस्तुति दी कि प्रबन्धन को नियमों के निर्माण पूर्ति के लिये अपने व्यक्तिगत विभाग में उपस्थिति अधिकारी में से Single कल्याण अधिकारी का पद बनाना चाहिये। प्रबन्धन को यह निश्चित करना चाहिये कि उनके व्यक्तिगत विभाग का जो ऐसे अधिकारी है वह कल्याण कारी गतिविधियों को देखने के लिये पूरी तरह प्रशिक्षित दक्ष तथा उनके पास कल्याण कार्यो के लिये योग्यता होनी चाहिये। 

    श्रम पर बने राष्ट्रीय आयोग के Wordों में ‘‘कर्मचारी की देखभाल हर तरह से जो कार्य स्थल पर बाहर उन्है। प्रभावित करती है।, कल्याण अधिकारी के ऊपर Single विशेष उत्तरदायित्व है जिसे Human पक्ष में Single रख-रखाव अभियन्ता बनना पड़ता है। कर्इ मामलों में कल्याण अधिकारी व्यक्तिगत प्रबन्धन की ओर से कर्मचारियों के दुख, शिकायतों जो कि सेवा के नियम व शर्तो से सम्बन्धित है तथा घरेलू तथा अन्य मामलों से सम्बन्धित है। उत्तराखण्ड मुक्त वि

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