शिक्षा मनोविज्ञान के सम्प्रदाय And History

“मनोविज्ञान का अतीत लम्बा है परन्तु History छोटा है।” मनोविज्ञान के तथ्यों की जानकारी पौराणिक ग्रीक दर्शनशास्त्र से मिलते है। लेकिन Single स्वतंत्र शाखा के Reseller में 1879 र्इ0 में मनोविज्ञान की स्थापना हुर्इ। 1879 के बाद तथा बीसवी शताब्दी के प्रारम्भिक वर्षो में कर्इ मनोवैज्ञानिकों ने मनोविज्ञान की विषय-वस्तु तथा उसके अध्ययनविधि के बारे में करीब-करीब Single जैसे विचार व्यक्त किये है तथा अन्य मनोवैज्ञानिकों ने इनके विचारों का विरोध Reseller। Single समान विचारधारा वाले लोगों को Single सम्प्रदाय के अन्तर्गत रखा गया। इन सम्प्रदायों को ही मनोविज्ञान के स्कूल की ही संज्ञा दी गयी। मनोविज्ञान के विभिन्न सम्प्रदाय है

  1. संCreationवाद
  2. प्रकार्यवाद
  3. व्यवहारवाद
  4. मनोविश्लेषण
  5. गेसटाल्ट मनोविज्ञान
  6. हारमिक मनोविज्ञान

संCreationवाद

मनोविज्ञान को दर्शनशास्त्र से अलग करके क्रमबद्ध अध्ययन करने का श्रेय संCreationवाद को जाता है। जिसके प्रवर्तक विलियम बुण्ट (1832-1920) के शिवाय र्इ0बी0 टिचनर (1867-1927) थे। इन्होंने अमेरिका के कार्नेल विश्वविद्यालय में इसकी शुरूआत करी। बुण्ट ने मनोविज्ञान के स्वReseller को प्रयोगात्मक बनाया जब 1879 में लिपजिंग विश्वविद्यालय में मनोविज्ञान की First प्रयोगशाला की स्थापना करी। बुण्ट ने मनोविज्ञान को चेतन अनुभूति का अध्ययन करने वाला माना। जिसे मूलत: दो तत्वों में विश्लेषित Reseller जा सकता था। वे दो तत्व थे- संवेदन तथा भाव। बुण्ट ने चेतन को वस्तुनिष्ठ तत्व बताया। बुण्ट का विचार था कि प्रत्येक भाव का अध्ययन तीन विभाओं में अवस्थित Reseller जा सकता है उत्तेजना-शांत, तनाव-शिथिलन तथा सुखद-दु:खद। इसे भाव का त्रिविमीय सिद्धान्त कहा गया। टिचनर ने बुण्ट की विचारधारा को उन्नत बनाते हुये कहा कि चेतना के दो नहीं तीन तत्व होते है- संवेदन, प्रतिमा तथा अनुराग। टिचनर ने बुण्ट के समान अन्त निरीक्षण को मनोविज्ञान की Single प्रमुख विधि माना है। बुण्ट ने चेतना के तत्वों की दो विशेषताएं बतायी थी- गुण तथा तीव्रता। टिचनर ने इनकी संख्या चार कर दी- गुण, तीव्रता, स्पष्टता तथा अवधि। टिचनर ने ध्यान प्रत्यक्षण, साहचर्य, संवेद आदि क्षेत्रों में भी अपना योगदान दिया।

संCreationवाद का शिक्षा में योगदान

  1. संCreationवाद का योगदान शिक्षा तथा शिक्षा मनोविज्ञान के लिये प्रत्यक्ष ना होकर परोक्ष Reseller में है। संCreationवाद ने First मनोविज्ञान को दर्शनशास्त्र से अलग करके इसके स्वReseller प्रयोगात्मक बनाया। जिससे मनोविज्ञान की हर शाखा जिसमें शिक्षा मनोविज्ञान भी शामिल था, का स्वReseller प्रयोगात्मक हो गया।
  2. मनोविज्ञान का स्वReseller प्रयोगात्मक होने से शिक्षा की नयी पद्धति के बारे में शिक्षकों को सोचने की चेतना आयी। अन्तनिरीक्षण विधि को प्रयोग शिक्षार्थी की मानसिक दशाओं का जैसे ध्यान, सीखना, चिंतन आदि प्रक्रियाओं का अध्ययन करने में प्रारंभ कर दिया। 
  3. शिक्षा में उन पाठ्यक्रमों को अधिक महत्व दिया जाने लगा जिससे शिक्षार्थियों के चिन्तन, स्मरण, प्रत्यक्षण And ध्यान जैसी मानसिक क्रियाओं का समुचित विकास तथा उनका प्रयोगात्मक अध्ययन संभव हो।

कार्यवाद

मनोविज्ञान में कार्यवाद Single ऐसा स्कूल या सम्प्रदाय है जिसकी उत्पत्ति संCreationवाद के वर्णनात्मक तथा विश्लेषणात्मक उपागम के विरोध में हुआ। विलियम जेम्स (1842-1910) द्वारा कार्यवाद की स्थापना अमरीका के हारवर्ड विश्वविद्यालय में की गयी थी। परन्तु इसका विकास शिकागो विश्वविद्यालय में जान डीवी (1859-1952) जेम्स आर एंजिल (1867-1949) तथा हार्वे ए0 कार (1873-1954) के द्वारा तथा कोलम्बिया विश्वविद्यालय के र्इ0एल0 थार्नडाइक तथा आर0एफ0 बुडवर्थ के योगदानों से हुयी।

कार्यवाद में मुख्यत: दो बातों पर प्रकाश डाला- व्यक्ति क्या करते है ? तथा व्यक्ति क्यों कोर्इ व्यवहार करते है ? वुडवर्थ (1948) के According इन दोनों प्रश्नों का उत्तर ढूंढ़ने वाले मनोविज्ञान को कार्यवाद कहा जाता हैं। कार्यवाद में चेतना को उसके विभिन्न तत्वों के Reseller में विश्लेषण करने पर बल नहीं डाला जाता बल्कि इसमें मानसिक क्रिया या अनुकूली व्यवहार के अध्ययन को महत्व दिया जाता है। अनुकूली व्यवहार में मूलत: प्रत्यक्षण स्मृति, भाव, निर्णय तथा इच्छा आदि का अध्ययन Reseller जाता है क्योंकि इन प्रक्रियाओं द्वारा व्यक्ति को वातावरण में समायोजन में मदद मिलती है।

कार्यवादियों ने साहचर्य के नियमों जैसे समानता का नियम, समीपता का नियम तथा बारंबारता का नियम प्रतिपादित Reseller जोकि सीखने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका बनाता है।

कोलम्बिया कार्यवादियों में र्इ0एल0 थार्नडाइक व आर0एस0 वुडवर्थ का योगदान सर्वाधिक रहा। थार्नडाइक ने Single पुस्तक शिक्षा मनोविज्ञान लिखी जिसमें इन्होंने सीखने के नियम लिखे हैं। थार्नडाइक के According मनोविज्ञान उछीपन-अनुक्रिया सम्बन्धों के अध्ययन का विज्ञान है। थार्नडाइक ने सीखने के लिये संबंधवाद का सिद्धान्त दिया। जिसके According सीखने में प्रारम्भ में त्रुटिया अधिक होती है। किन्तु अभ्यास देने से इन त्रुटियों में धीरे-धीरे कमी आ जाती है।

वुडवर्थ ने अन्य कार्यवादियों के समान मनोविज्ञान को चेतन तथा व्यवहार के अध्ययन का विज्ञान माना। इन्होनें सीखने की प्रक्रिया को काफी महत्वपूर्ण बताया क्योंकि इससे यह पता चलता है कि सीखने की प्रक्रिया क्यों की गयी। वुडवर्थ ने उद्वीपक-अनुक्रिया (एस0आर0) के सम्बन्ध में परिवर्तन करते हुये प्राणी की भूमिका को महत्वपूर्ण मानते हुये उद्वीपक-प्राणी-अनुक्रिया (S.O.R.) सम्बन्ध को महत्वपूर्ण बताया।

कार्यवाद का शिक्षा मे योगदान

  1. कार्यवाद ने Human व्यवहार को मूलत: अनुकूली तथा लक्ष्यपूर्ण बताया। अत: स्कूलों का प्रमुख लक्ष्य बच्चों को समाज में समायोजित करना होना चाहिये। सीखने की प्रक्रिया में वातावरण की महत्ता पर बल दिया गया। अत: अध्यापकों का यह प्रयास होना चाहिये कि विद्यार्थियों को स्वस्थ वातावरण प्रदान Reseller जाये जोकि उनकी सीखने की प्रक्रिया को प्रेरित करें।
  2. इस विचारधारा ने First से चले आ रहे सैद्धान्तिक प्रत्ययों जोकि पाठ्यक्रम के अंग थे, में क्रांतिकारी बदलाव लाये। स्कूल पाठ्यक्रम में करके सीखना ( Learnning by doing ) पर बल दिया जाने लगा। 
  3. शिक्षार्थियों की क्षमता में वैयक्तिक भिन्नता पर बल डाला गया।
  4. कार्यवाद ने अलग-अलग आयु स्तरों के बच्चों की Needयें भिन्न-भिन्न होती है, इस बात पर बल दिया।
  5. कार्यवाद ने शिक्षा में उपयोगिता सिद्धान्त को जन्म दिया। इसने सीखने की प्रक्रिया में बालक की महता पर बल दिया। पाठ्यक्रम में केवल उन्हीं विषयों को सम्मिलत करना चाहिये जिनकी समाज में उपयोगिता हो।
  6. इस स्कूल ने शिक्षा में वैज्ञानिक जानकारी पर बल डाला। साथ ही शिक्षण व सीखने के लिये नयी विधियों जैसे: कार्य क्रमित सीखना ( Programmed Learning ) जैसी शिक्षण विधि को विकसित Reseller।
  7. कार्यवाद में विशेषकर थार्नडाइक ने इस बात पर बल दिया कि शिक्षक को अध्यापन कार्य करने के First शैक्षिक उद्देश्यों को परिभाषित कर लेना चाहिए। तभी शिक्षार्थी के व्यवहार में परिवर्तन ला सकते है।

शिक्षक को उन परिस्थितियों पर अधिक बल डालना चाहिये जो आम जीवन में अक्सर देखे जाते है तथा उन अनुक्रियाओं पर बल डालना चाहिये जिनकी जीवन में Need हो।

व्यवहारवाद

व्यवहारवाद मनोविज्ञान का Single ऐसा स्कूल है जिसकी स्थापना जे0बी0 वाटसन द्वारा 1913 में जान हापीकन्स विश्वविद्यालय में की गयी। इस स्कूल की स्थापना संCreationवाद तथा कार्यवाद जैसे सम्प्रदायों के विरोध में वाटसन द्वारा की गयी। वह स्कूल अपने काल में विशेषकर 1920 र्इ0 के बाद अधिक प्रभावशाली रहा जिसके कारण इसे मनोविज्ञान में द्वितीय बल के Reseller में मान्यता मिली। वाटसन ने 1913 में साइकोलाजिकल रिव्यू में Single विशेष शीर्षक Psychology as the behouristic view it के तहत प्रकाशित Reseller गया। यही से व्यवहारवाद का औपचारिक शुभारम्भ माना जाता है।

वाटसन का व्यवहारवाद

जे0वी0 वाटसन ने व्यवहारवाद के माध्यम से मनोविज्ञान में क्रान्तिकारी विचार रखे। वाटसन का मत था कि मनोविज्ञान की विषय-वस्तु चेतन या अनुभूति नहीं हो सकता है। इस तरह के व्यवहार का प्रेक्षण नहीं Reseller जा सकता है। इनका मत था कि मनोविज्ञान व्यवहार का विज्ञान है। व्यवहार का पे्रक्षण भी Reseller जा सकता है तथा मापा भी जा सकता है। उन्होने व्यवहार के अध्ययन की विधि के Reseller में प्रेक्षण तथा अनुबंधन को महत्वपूर्ण माना। वाटसन ने Human प्रयोज्यों के व्यवहारों का अध्ययन करने के लिये शाब्दिक रिपोर्ट की विधि अपनायी जो लगभग अन्तर्निरीक्षण विधि के ही समान है।

वाटसन ने सीखना, संवेग तथा स्मृति के क्षेत्र में कुछ प्रयोगात्मक अध्ययन किये जिनकी उपयोगिता तथा मान्यता आज भी शिक्षा मनोविज्ञान के क्षेत्र में अर्निाक है। व्यवहारवाद के इस धनात्मक पहलू को आनुभविक व्यवहारवाद कहा जाता है। वाटसन के व्यवहारवाद का ऋणात्मक पहलू वुण्ट तथा टिचनर के संCreationवाद को तथा एंजिल के कार्यवाद को अस्वीकश्त करना था। 1919 र्इ0 में वाटसन ने अपने व्यवहारवाद की तात्विक स्थिति को स्पष्ट Reseller जिसमें चेतना या मन के अस्तित्व को स्वीकार नहीं Reseller गया। इसे तात्विक व्यवहारवाद कहा गया। वाटसन ने सीखना, भाषा विकास, चिन्तन, स्मृति तथा संवेग के क्षेत्र में जो अध्ययन Reseller वह शिक्षा मनोविज्ञान के लिये काफी महत्वपूर्ण है।

वाटसन व्यवहार को अनुवंशिक न मानकर पर्यावरणी बलों द्वारा निर्धारित मानते थे। वे पर्यावरणवाद के Single प्रमुख हिमायती थे। उनका कथन “मुझे Single दर्जन स्वस्थ बच्चे दे, आप जैसा चाहे मै उनको उस Reseller में बना दूंगा।” यह उनके पर्यावरण की उपयोगिता को सिद्ध करने वाला कथन है। वाटसन का मानना था कि Human व्यवहार उदीपक-अनुक्रिया (S-R) सम्बन्ध को इंगित करता है। प्राणी का प्रत्येक व्यवहार किसी न किसी तरह के उद्दीपक के प्रति Single अनुक्रिया ही होती है।

उत्तरकालीन व्यवहारवाद

वाटसन के बाद भी व्यवहारवाद को आगे बढ़ाने का प्रयास जारी रहा और इस सिलसिले में हल स्कीनर, टालमैन और गथरी द्वारा Reseller गया प्रयास काफी सराहनीय रहा। स्कीनर द्वारा क्रिया प्रसूत अनुबन्धन पर किये गये शोधों में अधिगम तथा व्यवहार को Single खास दिशा में मोड़ने And बनाये रखे में पुनर्बलन के महत्व पर बल डाला गया है। कोर्इ भी व्यवहार जिसके करने के बाद प्राणी को पुनर्बलन मिलता है या उसके सुखद परिणाम व्यक्ति में उत्पन्न होते है, तो प्राणी उस व्यवहार को फिर दोबारा करने की इच्छा व्यक्त करता है। गथरी ने अन्य बातों के अलावा यह बताया कि सीखने के लिये प्रयास की जरूरत नहीं होती और व्यक्ति Single ही प्रयास में सीख लेता है। इसे उन्होने इकहरा प्रयास सीखना की संज्ञान दी। गथरी ने इसकी व्याख्या करते हुये बताया कि व्यक्ति किसी सरल अनुक्रिया जैसे पेंसिल पकड़ना, माचिस जलाना आदि Single ही प्रयास में सीख लेता है। इसके लिये उसे किसी अभ्यास की जरूरत नही होती। परन्तु जटिल कार्यो को सीखने के लिये अभ्यास की जरूरत होती है। गथरी ने Single और विशेष तथ्य पर प्रकाश डाला जो शिक्षा के लिये काफी लाभप्रद साबित हुआ और वह था बुरी आदतों से कैसे छुटकारा पाया जाए। इसके लिए गथरी ने तीन विक्रिायों का प्रतिपादन Reseller –

  1. सीमा विधि
  2. थकान विधि
  3. परस्पर विरोधी उद्दीपन की विधि

व्यवहारवाद का शिक्षा में योगदान

पी0 साइमण्ड ने शिक्षण व अधिगम के क्षेत्र में व्यवहारवाद की उपयोगिता बताते हुये कहा कि सीखने में पुरस्कार (पुर्नबलन) की महती भूमिका है। जिसकी जानकारी Single अध्यापक के लिये होना आवश्यक है। अध्यापक द्वारा प्रदत्त पुनर्बलन बच्चों के भविष्य की गतिविधियों के क्रियान्वयन में निर्देशन का कार्य करता है। अध्यापक द्वारा मात्र सही या गलत की स्वीकश्ति ही बच्चे के लिये पुरस्कार का कार्य करती है। व्यवहारवाद का शिक्षा के क्षेत्र में योगदान है –

  1. व्यवहारवाद ने जो विधियां व तकनीक प्रदान करी उनसे बच्चों के व्यवहार को समझने में काफी मदद मिली। 
  2. सीखने और प्रेरणा के क्षेत्र में व्यवहारवाद ने जो विचार प्रस्तुत किये वे अत्यन्त महत्वपूर्ण है। 
  3. बच्चों के संवेगों का प्रयोगात्मक अध्ययन करके व्यवहारवादी मनोवैज्ञानिकों ने इनके संवेगात्मक व्यवहार को समझने का ज्ञान प्रदान Reseller। 
  4. व्यवहारवाद ने Human व्यवहार पर वातावरणीय कारकों की भूमिका पर विशेष जोर दिया। वाटसन ने पर्यावरणी कारकों को बच्चों के वयक्तित्व विकास में काफी महत्वपूर्ण बताया। वाटसन का यह कथन कि यदि उन्हें Single दर्जन भी स्वस्थ बच्चे दिये जाते है तो वे उन्हें चाहे तो डाक्टर, इंजीनियर, कलाकार या भिखारी कुछ भी उचित वातावरण प्रदान कर बना सकते है, ने वातावरण की भूमिका पर विशेष प्रकाश डाला। 
  5. स्किनर द्वारा सीखने के लिये जो नयी विधि कार्यक्रमित सीखना दी गयी, ने शिक्षा मनोविज्ञान के क्षेत्र में हलचल मचा दिया। आधुनिक मनोवैज्ञानिकों ने इस विधि को अत्यन्त महत्वपूर्ण माना है और अनेक तरह के पाठों को सिखाने में उन्हें सफलता भी मिली। 
  6. कुसमायोजित बालकों के समायोजन के लिए व्यवहारवाद द्वारा जो विस्किायां दी गयी वे अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं।
  7. व्यवहारवाद ने Human व्यहवार को समझने के लिये पूर्ववर्ती समस्त वाद जोकि मानसिक प्रक्रियाओं पर बल देते थे, के विवाद का अंत Reseller।

मनोविश्लेषणवाद

मनोविश्लेषण का प्रयोग मनोविज्ञान में तीन Meansो में होता है मनोविश्लेषण मनोविज्ञान का Single स्कूल है, मनोविश्लेषण व्यक्तित्व का Single सिद्धान्त है तथा मनोविश्लेषण मनोचिकित्सा की Single विधि है।

मनोविज्ञान के Single स्कूल के Reseller में मनोविश्लेषण की स्थापना साइमण्ड फ्रायड (1856-1932) द्वारा नैदानिक परिस्थितियों में की गयी। मनोविज्ञान पर इस स्कूल का काफी प्रभाव पड़ा था। इसी कारण मनोवैज्ञानिक ने इसे First बल कहा। व्यवहारवादियों द्वारा व्यवहार की व्याख्या करने में अप्रेक्षणीय मानसिक बलों को पूर्णत: अस्वीकश्त कर दिया था, वहीं साइमण्ड फ्रायड ने ऐसे अदश्श्य And अचेतन मानसिक बलों को Human प्रकश्त्ति तथा व्यवहार को समझने के लिये काफी महत्वपूर्ण बताया।

मनोविश्लेषणवाद की विशेषतायें

1. स्थलाकृतिक संCreation

फ्रायड ने मन के तीन स्तरों का वर्णन Reseller है-चेतन, अर्द्वचेतन तथा अचेतन। मन के चेतन में वैसी अनुभूति होती है जिससे व्यक्ति वर्तमान समय में पूर्णत: अवगत रहता है। अर्द्धचेतन में वैसी अनुभूतियां संचित होती है जिनमें व्यक्ति वर्तमान समय में अवगत तो नहीं रहता है। परन्तु थोड़ी कोशिश करने पर उससे अवगत हो सकता है। अचेतन में वैसी अनुभूतियां संचित होती है जिनसे व्यक्ति वर्तमान समय में अवगत तो नही रहता है, परन्तु थोड़ा कोशिश करने पर उससे अवगत हो सकता है। अचेतन में वैसी अनुभूतियां, इच्छाएं आदि होती है जो कभी चेतन में थी लेकिन प्राय: असामाजिक होने के कारण चेतन से दमित कर दी गयी और अचेतन स्तर पर चली गयी। फ्रायड ने चेतन, अर्द्धचेतन तथा अचेतन में से, अचेतन को सर्वाधिक महत्वपूर्ण माना है। यह भी माना है कि व्यक्ति का व्यवहार अचेतन की प्रेरणाओं द्वारा निर्धारित होता है।

2. संCreationत्मक माडल

फ्रायड ने Human व्यक्तित्व के तीन भाग बताये – उपाहं, अहं तथा पराहं। उपाहं मूल प्रवृत्तियों का भण्डार होता है और यह आनन्द के नियम द्वारा संचालित होता है तथा यह पूर्णत: अचेतन होता है। उपाहं केवल आनन्द प्राप्त करना चाहता है। अत: उपाहं में जो इच्छाए उत्पन्न होती है उनका मुख्य लक्ष्य सुख की प्राप्ति करना होता है। चाहे वह इच्छा सामाजिक दृष्टिकोण से उचित हो या अनुचित अथवा नैतिक दृष्टिकोण से नैतिक हो या अनैतिक हो। उनके व्यक्तित्व में होती है। अहं व्यक्तित्व का कार्यपालक होता है तथा यह वास्तविकता के नियम द्वारा संचालित होता है। अहं को समय तथा वास्तविकता का ज्ञान होता है। पराहं व्यक्तित्व का नैतिक कमाण्डर होता है। यह नैतिकता के नियम द्वारा संचालित होता है। पराहं आदर्शो And नैतिकताओं का भंडार होता है तथा बच्चों के समाजीकरण में यह प्रमुख भूमिका निभाता है।

3. दुश्चिंता And मनोCreationएं

फ्रायड के According दुश्चिंता Single दु:खद अवस्था है जो व्यक्ति को आने वाले खतरों से आगाह करता है। इन्होने दुश्चिंता के तीन प्रकार बताये – वास्तविक दुश्चिंता, तंत्रिकातापी दुश्चिंता तथा नैतिकता संबंधी दुश्चिंता। वाºय वातावरण में मौजूद खतरों जैसे आग, सांप, भूकम्प आदि से जब व्यक्ति में चिन्ता उत्पन्न होती है तो उसे वास्तविक दुश्चिंता कहते है। तंत्रिकातापी दुश्चिंता में व्यक्ति को उपाहं प्रवृत्तियों से खतरा उत्पन्न हो जाता है। नैतिकता-संबंधी दुश्चिंता में अहं को पराहं से दंडित कये जाने की धमकी मिलती है। ऐसी परिस्थिति में व्यक्ति में आत्मदोष, लज्जा आदि जैसी मानसिक स्थिति उत्पन्न हो जाती है। इन चिंताओं से बचने के लिये व्यक्ति विभिन्न तरह ही मनोCreationओं का सहारा लेता है। इन मनोCreationओं में दमन युक्त्याभास, प्रक्षेपण, आत्मीकरण आदि मुख्य है।

मनोविश्लेषणवाद का शिक्षा में योगदान

  1. शिक्षा में अचेतन प्रेरणाओं का बड़ा महत्व बताया गया है। इससे शिक्षार्थियों के उन व्यवहारों को समझने में शिक्षा मनोवैज्ञानिक को काफी मदद मिलती है जो ऊपर से देखने में बिना कारण लगते है। बालक द्वारा Reseller गया कोर्इ भी कार्य जिसे बालक व्यक्त नहीं कर पाता है। इन्हीं अचेतन की प्रेरणाओं में छिपा रहता है। 
  2. मनोविश्लेषणवाद ने Single बच्चे के जीवन की प्रारम्भिक अनुभूतियों व अनुभवों पर काफी बल दिया है जोकि उसकी शैक्षिक प्रक्रिया को प्रभावित करता है। बच्चे को जो भी अनुभव अपने जीवन के पांच वर्षो में मिलते है वे ही उसके व्यक्तित्व की नीवं रखते है। यदि जीवन के आरम्भिक वर्षो में बच्चे को प्यार स्नेह और सहानुभूति मिलती है तो जीवन के प्रति धनात्मक अभिवश्त्ति का जन्म होता है। इसके विपरीत यदि ऋणात्मक व दण्डात्मक पुनर्वलन की अधिकता होती है तो भविष्य के लिये खतरा उत्पन्न हो जाता है।
  3. मनोविश्लेषणवाद ने बच्चों के लिये विरेचन प्रक्रिया को महत्वपूर्ण बताया। बच्चों को कक्षा के अन्दर व बाहर अपने संवेगों को स्वतंत्र Reseller से अभिव्यक्त करने की स्वतन्त्रता होनी चाहिए। 
  4. मनोविश्लेषणवाद ने शिक्षा मनोवैज्ञानिकों को समस्यात्मक बालकों के कारणों तथा इन्हीं बच्चों को पुन: समायोजित करने में मदद दी। 
  5. इस वाद ने शिक्षा प्रक्रिया में संवेगों की भूमिका पर विशेष बल दिया।
  6. व्यक्ति के व्यक्तित्व विकास में स्वतन्त्र भावनाओं की अभिव्यक्ति का विशेष महत्व होता है। मनोविश्लेषणवाद ने इस स्वतंत्रता पर विशेष बल डाला। 
  7. बाल्यकालीन अनुभवों का Human व्यक्तित्व पर विशेष प्रभाव होता है। इसी कारण शिक्षा मनोवैज्ञानिकों ने बाल्यकालीन शैक्षिक व्यवस्था पर विशेष बल दिया। 
  8. विद्यार्थी जीवन में अध्यापक की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। विद्यार्थियों के साथ बने अध्यापक के अन्तवैयक्तिक सम्बन्ध ही उनके व्यवहार को प्रभावित करते है और जीवन के प्रति धनात्मक अभिवृत्ति विकसित करने में मदद करता है। अत: अध्यापकों का व्यवहार विद्यार्थियों के प्रति ध् नात्मक होना चाहिये।

गेस्टाल्ट मनोविज्ञान

गेस्टाल्ट मनोविज्ञान की स्थापना जर्मनी में मैक्स बरदार्इमर द्वारा 1912 र्इ0 में की गयी। इस स्कूल के विकास में दो अन्य मनोवैज्ञानिकों, कर्ट कौफ्का (1887-1941) तथा ओल्फगैंग कोहलर (1887-1967) ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। इस स्कूल की स्थापना वुण्ट व टिचनर की आणुविक विचारधारा के विरोध में हुआ था। इस स्कूल का मुख्य बल व्यवहार में सम्पूर्णता के अध्ययन पर है। इस स्कूल में अंश की अपेक्षा सम्पूर्ण पर बल देते हुये बताया कि यद्यपि All अंश मिलकर सम्पूर्णता का निर्माण करते है। परन्तु सम्पूर्णता की विशेषताएं अंश की विशेषताओं से भिन्न होती है। गेस्टाल्ट मनोवैज्ञानिकों ने इसे गेस्टाल्ट की संज्ञा दी। जिसका Means प्राReseller आकार या आकृति बताया। इस स्कूल द्वारा प्रत्यक्षण के क्षेत्र में प्रयोगात्मक शोध किए गए है। जिससे प्रयोगात्मक मनोविज्ञान का नक्शा ही बदल गया। प्रत्यक्षण के अतिरिक्त इन मनोवैज्ञानिकों ने सीखना, चिंतन तथा स्मृति के क्षेत्र में काफी योगदान दिया। जिसने शिक्षा मनोविज्ञान को अत्यधिक प्रभावित Reseller।

1. प्रत्यक्षण

प्रत्यक्षण के क्षेत्र में किये गये प्रयोगों ने गेस्टाल्ट मनोविज्ञान के महत्व को बढ़ा दिया। गेस्टाल्ट मनोवैज्ञानिकों ने प्रत्यक्षण के सिद्धान्त बताये-

  1. प्रैगनैन्ज का नियम- इस नियम को उत्तम आकृति का नियम भी कहा जाता है। यह नियम इस बात को इंगित करता है कि व्यक्ति देखे गये उद्दीपनों को Single संतुलित And समकित आकृति के Reseller में प्रत्यक्षण करता है, जबकि उद्दीपन पैटर्न इतना संतुलित व समकित नही भी हो सकता है। 
  2. समानता का नियम – इस नियम में इस बात पर बल डाला है कि वस्तु जिनकी संCreation समान होती है, उसे व्यक्ति Single साथ संगठित कर Single प्रत्यक्षणात्मक समग्रता के Reseller में प्रत्यक्ष करता है।
  3. समीप्यता का नियम – इस नियम के According वे All वस्तुएं जो समय तथा स्थान में Single-Second से नजदीक होते है, उसे व्यक्ति प्रतयक्षणात्मक Reseller में संगठित कर प्रत्यक्षण करता है।
  4. निरन्तरता का नियम – इस नियम के According वस्तुओं में Single दिशा में आगे बढ़ते रहने की निरन्तरता बनी रहती है, उसे व्यक्ति Single संगठित आकृति वाला तस्वीर के Reseller में प्रत्यक्षण करता है। 
  5. आकृति पृष्ठभूमि का नियम – यह नियम इस तथ्य पर बल डालता है कि प्रत्यक्षण किसी आकृति के Reseller में संगठित हो जाती है जो Single निश्चित पृष्ठभूमि पर दिखायी देती है। आकृति का Single मुख्य गुण यह होता है कि यह स्पष्ट And उत्कृष्ट होती है तथा पृष्ठभूमि तुलनात्मक Reseller से अस्पष्ट And अनुउत्कृष्ट होते है। पलटावी आकृति में आकृति कभी पृष्ठभूमि में और पृष्ठभूमि कभी आकृति के Reseller में पलटते हुए देख पड़ता है।

2. सीखना

गेस्टाल्ट मनोवैज्ञानिकों ने सीखने के क्षेत्र में अनेक महत्वपूर्ण प्रयोगात्मक अध्ययन करके सीखने की Single नयी अन्तर्दृष्टि विधि प्रदान की । इन लोगों ने यह स्पष्ट Reseller कि सीखना Single तरह का क्षेत्र का प्रत्यक्षणात्मक संगठन होता है। जिसमें व्यक्ति परिस्थिति को नये ढंग से देखता है। इन लोगों ने भी यह स्पष्ट Reseller कि प्राणी प्रयत्न And भूल से नही बल्कि सूझ से सीखता है। सूझ व्यक्ति में किसी समस्या का समाधान करते समय या किसी पाठ को सीखते समय प्राय: अचानक विकसित होती है और व्यक्ति उद्धीपनों के बीच के संबन्धों के Meansपूर्ण संबंध को समझ जाता है। इससे सीखने की प्रक्रिया में तेजी आ जाती है। इसलिये गेस्टाल्टवादियों का मत था कि सीखना भी अचानक होता है न कि अभ्यास के साथ क्रमिक ढंग से धीरे-धीरे होता है। गेस्टाल्टवादियों ने सूझपूर्ण सीखना के चार व्यवहारात्मक सूचकांक बतलाये-किंकत्र्तव्य विमुढता से अचानक पूर्णता की ओर, अन्तरण नियम को समझने के बाद निष्पादन में तेजी व सहजता, उत्तम धारण तथा समान समस्यात्मक परिस्थिति में तत्परता के साथ समाधान का अन्तरण। इस अंतिम प्रकार के अन्तरण को गेस्टाल्टवादियों ने पक्षान्तर कहा है।

3. चिन्तन

गेस्टाल्ट मनोवैज्ञानिकों ने चिन्तन के क्षेत्र में अध्ययन कर शिक्षा मनोवज्ञान के लिये बहुत ही उपयोगी तथ्य प्रदान Reseller है। वरदाइमर ने चिन्तन प्रक्रिया का वैज्ञानिक अध्ययन Reseller। अपनी Single पुस्तक प्रोडक्टीव थिंकिंग में इन प्रयोगों को प्रकाशित Reseller। इनके According चिन्तन का अध्ययन समग्रता के Reseller में Reseller जाना चाहिये। किसी समस्या के समाधान पर चिन्तन करते समय व्यक्ति को परिस्थिति के बारे में समग्रस्वReseller से ध्यान में रखना चाहिये। समस्या का समाधान समग्रता से अंश की ओर बढ़ना चाहिये।

बरदाइमर ने चिन्तन के तीन प्रकार बताये ए, बी तथा वार्इ। ए प्रकार का चिंतन Single तरह का उत्पादी चिन्तन है। जिसमें बालक लक्ष्य तथा उस पर पहुंचने के साधनों के बीच सीधा संबंध स्थापित कर पाता है। इस तरह के चिन्तन में बालक समस्या के विभिन्न पहलुओं का पुनर्सगठन करने में समर्थ हो पाते है। वार्इ प्रकार का चिन्तन ऐसा चिंतन है जिसमें प्रयत्न And भूल की प्रधानता होती है तथा समस्या के विभिन्न पहलुओं का आपसी संबंध बिना समझे-बूझे ही बालक उसका समाधान करना प्रारम्भ कर देता है। वार्इ प्रकार का चिंतन अधिक होने से ए प्रकार का चिन्तन स्वभावत: कम हो जाता है। बी प्रकार का चिन्तन ऐसा चिंतन है जो अंशत: उत्पादी तथा अंशत: अनुत्पादी व यांत्रिक होता है।

4. स्मृति

गेस्टाल्ट मनोवैज्ञानिकों ने स्मृति के क्षेत्र में प्रत्यक्षण के नियमों का उपयोग Reseller है। इन्होंने स्मृति को Single गत्यात्मक प्रक्रिया माना है। जिसमें समय बीतने के साथ-साथ कर्इ तरह के क्रमिक परिवर्तन होते है। ऐसे क्रमिक परिवर्तन प्रत्यक्षणात्मक संगठन के नियम के अनुReseller होते है। विभिन्न प्रयोगात्मक अध्ययनों से इस बात की पुष्टि मनोवैज्ञानिकों ने की है। गिब्सन (1929), बार्टलैट (1932) And आलपोर्ट And पोस्टमैन (1947) ने अपने प्रयोगों से यह स्पष्ट Reseller कि मूल सामग्रियों की धारणा में समय बीतने के साथ विकृति होती है, परन्तु इस विकृति का स्वReseller ऐसा होता है जिससे मूल सामग्रियों का स्वReseller First से कुछ उन्नत हो जाता है। शिक्षा मनोवैज्ञानिकों को गेस्टाल्टवादियों के इस योगदान से स्मृति के स्वReseller को समझने में काफी मदद मिली। इसी कारण इन लोगों ने स्मरण के स्वReseller को पुनरूत्पादक न कहकर Creationत्मक कहा है।

गेस्टाल्टवाद का शिक्षा में योगदान

  1. गेस्टाल्टवादियों ने प्रत्यक्षण के नियमों का प्रयोग सीखने के क्षेत्र में भी Reseller। अत: अध्यापक को चाहिये कि वह शिक्षार्थी के सामने विषय सामग्री को पूर्ण Reseller में प्रस्तुत करे।
  2. गेस्टाल्टवादी मनोवैज्ञानिकों ने सर्वांिगक व्यवहार की महत्ता पर बल दिया। प्राणी द्वारा जो भी अनुभव प्राप्त किये जाते है वह उन्हें समग्र Reseller में बताता है नाकि उद्वीपन-अनुक्रिया संबन्धो के Reseller में तोड कर। 
  3. व्यक्तित्व विकास में वातावरण की अग्रणी भूमिका पर बल दिया। अत: स्कूल का वातावरण ऐसा होना चाहिये जोकि बच्चे के व्यक्तित्व विकास में सहायक हों।
  4. शिक्षार्थियों में सूझ उत्पन्न करने पर बल दिया गया। ताकि विद्यार्थी समस्यात्मक परिस्थिति का समाधान सूझ विधि से करके सीख सके।
  5. सीखने के लिये यह आवश्यक है कि अधिगमार्थी को उद्धेश्यों और लक्ष्यों को जानकारी हो। अत: अध्यापक का प्रयास होना चाहिये कि विद्यार्थी स्वयं के लिये Single वैयक्तिक लक्ष्य निर्धारित करें। यह वैयक्तिक लक्ष्य शिक्षाथ्र्ाी के समक्ष Single तनाव की स्थिति उत्पन्न कर देगा, जिससे विद्यार्थी उस तनाव को दूर करने के लिये सीखने के लिये सक्रिय हो जायेगा। इस प्रकार लक्ष्यों का निर्धारण व्यक्ति को सक्रिय बनाता है। 
  6. स्कूल में शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया को उन्नत बनाने के लिये अध्यापक, प्रध् ाानाचार्य और विद्यार्थियों को संगठित होकर कार्य करना चाहिये। 
  7. अध्यापकों को विद्यार्थियों के विचारों को जानने व समझने का प्रयास करना चाहिये। अपने विचारों को उन पर लादकर विद्यार्थियों के प्रत्यक्षण को प्रभावित नही करना चाहिये।
  8. अध्यापक को पाठ्न सामग्री रूचिपूर्ण तथा समझ आने योग्य Reseller में शिक्षाथ्र्ाी के समक्ष प्रस्तुत करना चाहिये। जो भी निर्देश दिये जाये Meansपूर्ण होने चाहिये।
  9. अध्यापकों को विद्यार्थी के सोचने को क्षमता या कार्यशैली की जानकारी होनी चाहिये। यदि कोर्इ बच्चा अमूर्त चिंतन करने योग्य नहीं है तो साचां केतिक Reseller में प्रस्तुत की गयी सूचनायें उसके लिये लाभदायक नहीं होगी। 
  10. अध्यापक को विद्यार्थियों के समक्ष सूचनायें इस तरह संगठित करके प्रस्तुत करनी चाहिये कि विद्यार्थी नये व पुराने अनुभवों की विवेचना करके उन्हें समझने योग्य हो जाये।

हारमिक मनोविज्ञान

हारमिक मनोविज्ञान की स्थापना विलियम मैक्डूगल ने की। उन्होने ग्रीक Word Horme से Hormic बनाया। जिसका Means होता है वृत्ति। मैक्डूगल ने Human व्यवहार की जो व्याख्या व्यवहारवादियों द्वारा दी गयी, उसका विरोध करते हुय बताया कि वृत्ति उद्धेश्यपूर्ण होती है। उनका विचार था कि उद्धेश्य या लक्ष्य व्यक्ति को संबंधित अनुक्रिया करने के लिए बिना किसी तरह के आभास पैदा किए हुए ही प्रेरित करता है। हालांकि कभी-कभी Single अस्पष्ट आभास व्यक्ति में उत्पन्न हो जाता है। इन्होंने उद्धेश्यपूर्ण व्यवहार की चार विशेषताओं का वर्णन Reseller –

  1. उद्धेश्यपूर्ण व्यवहार अपने आप होता है। अन्य Wordों में कोर्इ उद्धेश्य या लक्ष्य को देखकर व्यक्ति स्वत: संबंधित अनुक्रिया कर देता है। 
  2. उद्धेश्यपूर्ण व्यवहार का प्रभाव लक्ष्य पर पहुंचने के कुछ देर बाद भी प्राणी में बना रहता है। 
  3. उद्धेश्यपूर्ण व्यवहार में प्राणी Single के बाद Single क्रियाएं व्यक्ति तब तक करता जाता है जब तक कि वह लक्ष्य पर न पहुंच जाए। 
  4. उद्धेश्यपूर्ण व्यवहार अभ्यास से उन्नत बनाता है।

मैकडूगल के According उद्धेश्यपूर्ण व्यवहार करने के पीछे छिपी शक्ति को मूल प्रवृत्ति कहा गया है। मूल प्रवृत्ति व्यक्ति में Single जन्मजात मनोदैहिक प्रवृत्ति होती है जो व्यक्ति की कोर्इ उद्धेश्यपूर्ण क्रिया करने के लिये बाध्य करती है। मैक्डूगल ने प्रमुख Seven मूल प्रवृत्तियां बतायी जो कि किसी न किसी संवेग से जुड़ी होती है। वे Seven मूल प्रवृत्तियां तथा उनसे सम्बंधित संवेग है –

मूल प्रवृत्ति  संवेग 
स्वीकृति विरक्ति
लड़ार्इ क्रोध
आत्म-दृढ़कथन उल्लास
उत्सुक ता  अचरज 
मातृत्व-पितृत्व नरम संवेग
आत्म-अपमान नकारात्मक
आत्म-भाव उन्मुक्ति डर

हारमिक मनोविज्ञान का शिक्षा में योगदान

शैक्षिक परिस्थितियों में हारमिक मनोविज्ञान द्वारा प्रतिपादित मूल प्रवृत्ति के सिद्धान्त द्वारा बालकों के मूलप्रवृत्तिक व्यवहारों को समझने में काफी सहायता मिली है। टारेन्स (1965) के According शिक्षक को शिक्षार्थियों द्वारा वर्ग में किए जाने वाले मूल-प्रवृत्ति से संबंधित स्वाभाविक व्यवहार को तो समझने में मदद मिलती है, साथ ही साथ इन शिक्षार्थियों के विभिन्न तरह के, संवेगात्मक व्यवहार जैसे साथियों के साथ क्रोध करना, साथियों के साथ मिल कर खुशी मनाना, अपने को स्वयं दोषी मानना आदि व्यवहारों के कारणों को भी समझने में, काफी मदद मिलती है। मूलप्रवृत्ति के सिद्धान्त ने विद्यार्थियों के व्यवहार को समझने योग्य बनाया।

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