वेदान्त दर्शन का परिचय And योग

वेदान्त दर्शन का परिचय- 

वेद के अन्तिम भाग को वेदान्त की संज्ञा से सुषोभित Reseller गया है जिसने उपनिषदों के विस्तृत स्वReseller कों Single अनुशासित ढंग से संजोया गया है महर्षि व्यास ने वेदान्त दर्शन में इसी प्रकार वेदों एंव उपनिषदो से सारगभित विद्या के स्वReseller को सुव्यवस्थित ढंग से प्रस्तुत Reseller है वेदान्त के सूत्रों को बहमसूत्र भी कहा जाता है तथा वेदस्त सूत्र के नाम से भी जाना जाता है इन बह्मसूत्रों ने कुल 550 सूत्रों का संकलन है जिन पर श्री शंकराचार्य, श्री भास्कराचार्य, श्री रामानुजाचार्य, श्री मध्वाचार्य तथा श्री निम्बाकाचार्य द्वारा भाश्य Reseller गया है इन भाष्यकारों द्वारा इन ब्रह्मसूत्रों की विस्तृत Reseller में व्याख्या की गयी है

वैदान्त दर्शन में अद्वैत And हैत को मुख्य Reseller से described Reseller गया अद्वैत मत में आत्मा के परमचैतन्य स्वReseller की व्याख्या करते हुए उसे ही परमचैतन्य (परमात्मा) का अंश में कहा गया है यहॉ पर बतलाया गया है कि यह आत्मा परमात्मा का ही अंश है जो आगे चलकर अपने पूर्ण को प्राप्त होकर पूर्ण हो जाता है जबकि द्वेत विचार धारा में परमात्मा And जीवात्मा के पृथक-पृथक स्वReseller को स्वीकार Reseller गया है द्वैत विचार धारा में आत्मा के स्वReseller को परमात्मा के स्वReseller से भिन्न-भिन्न माना गया है द्वैत मत के According यद्यपि जीव और र्इश्वर दोनों चैतन्यस्वReseller है किन्तु फिर भी दोनो में अन्तर है Single और जीव जहॉ अल्पज्ञय, अज्ञान तथा अविद्या मोह माया आदि क्लेशों से युक्त है वही दूसरी ओर र्इश्वर सर्वज्ञ सर्वशिक्तामान,निर्विकार,अजन्मा,अनन्त,अभय शुद्व मुक्त एंव विकारों से रहित है।

वेदान्त दर्शन मे जीव की तीन अवस्थाओं जाग्रत स्वप्न And सुसुप्ति पर प्रकाश डाला गया है साथ ही साथ जीव के पॉच कोश अन्नमय कोश मनोमय कोश, प्राणमय कोश, विज्ञानमय कोश And आनन्दमय कोश को भी वेदान्त दर्शन में समझाया गया है।

वेदान्त दर्शन में योग का स्वReseller- 

वेदान्त दर्शन में अविद्या कारण माना गया है तथा उदाहरण के साथ इस तथ्य की पुश्टि की गयी कि जिस प्रकार अविद्या के कारण रस्सी को सर्प समझकर उससे भय पाकर दुखी होता है ठीक उसी प्रकार यह पुरूष अविद्या के कारण विभिन्न सांसारिक विषय वस्तु के साथ अपना सम्बन्ध जोडता है तथा अपने सम्बन्ध को नित्य मान लेता हेै आगे चलकर प्रकृति के साथ सम्बन्ध विच्छेद इसके दु:ख का कारण बनता है पुन: वेदान्त दर्शन में भी संसार के साथ सम्बन्ध को बंधन का कारण माना गया।

वेदान्त दर्शन में सृष्टि या प्रकृति को Single विशिष्ट संज्ञा दी गयी है तथा कहा गया है कि इस माया की Creation Single आभास मात्र है Meansात इस माया की Creation ह्रदय अथवा काल्पनिक है जिसे अज्ञानता के कारण पुरूष वास्तविक समझ होता है तथा इसे वास्तविक समझ होता है तथा इसे वास्तविक मानकर इसके साथ जुड जाता है बन्धन मे फंस जाता है इस बंधन के कारण वह विभिन्न दु:खों को प्राप्त होता है जिससे मुक्त होने का Single मात्र साधन ज्ञान है । ज्ञान के उदय से पुरूष को प्रकृति के वास्तविक स्वReseller की अनुभूति होती है उसके स्वReseller का ज्ञान होता है जिससे वह बंधन से छूटकर मुक्ति के मार्ग की ओर प्रशस्त्र होता है वेदान्त दर्शन में इसी संदर्भ में विवेक ज्ञान के द्वारा नित्य And अनित्य वस्तु में भेद करने का उपदेश दिया गया है वेदान्त दर्शन में लौलिक एव्र पारलौलिक भागो की कामना का परित्याग का उपदेश दिया गया है जिसे महर्षि पतंजलि योग दर्शन में प्रत्याहार की संज्ञा देते है जिस प्रकार महर्षि पतंजलि इन्द्रियों पर संयम करते हुए चित्त की Single्रागता का उपदेश करते है ठीक उसी प्रकार वेदान्त दर्शन में भागों के परित्याग कर ज्ञान प्राप्ति का उपदेश दिया गया है वेदान्त दर्शन में शम,दम,श्रद्वा,समाधान,उपरति ,And तितिक्षा नामक छ: साधनों का उपदेश दिया गया है। शम का Means मन के संयम से लिया गया है दम का Means है इन्द्रियों के नियन्त्रण से लिया गया है श्रद्वा का Means शास्त्रों के प्रति निष्ठा भाव से है समाधान का Means चित्त को ज्ञान के साधन में लगाने से है उपरति का Means है चित्त को विपरीत कार्यो से विरक्त करने से है तितिक्षा का Means उष्ण व शीत आदि इन्द्रियों को सहन करने से है

इन साधनों का History महर्षि पतंजलि द्वारा अष्टांग योग मे भली-भॉति Reseller गया है मन के संयम को यम की साधना से जोडा जाता है। अहिंसा सत्य, अस्तेय आदि का Means मन पर संयम से ही है इन्द्रियों पर नियन्त्रण को प्रत्याहार के अन्तगर्त Reseller गया ही श्रद्वा को र्इश्वर प्राणिधान के अन्तर्गत रखा गया है समाधान को स्वाध्याय के अन्र्तगत रखा जा सकता है जबकि उपरति को भी यम के अन्र्तगत समाहित Reseller जा सकता है।तितिक्षा को तप के अन्र्तगत रखा भी जा सकता है वेदान्त दर्शन में तीन अन्तरंग साधनों का History Reseller गया है श्रवण, मनन And निदिध्यासन को वेदान्त दर्शन में described Reseller गया है श्रवण का Means है उपदेशों पर तार्किक दृष्टि से विचार करने से है जबकि सत्य पर ध्यान रखना निदिध्यासन कहलाता है। महर्षि पतंजलि भी इन साधनों को धारणा,ध्यान और समाधि नामक अन्तरंग में रखते है जिस प्रकार महर्षि पतंजलि दुखों से निवृत्ति प्राप्त कर कैवल्य की प्राप्ति को साधक का उद्देश्य मानते है ठीक उसी प्रकार वेदान्त दर्शनों को भी परम तत्व की प्राप्ति को ही पुरूष उद्देश्य मानते है।

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