लाभांश नीति का Means, आवश्यक तत्व And प्रकार

लाभांश नीति Single बहुत ही लोचपूर्ण And व्यापक Word है। लाभांश नीति दो Wordों लाभांश नीति से मिलकर बना है। लाभांश से अभिप्राय कम्पनी की आय में से अंशधारियो को मिलने वाले हिस्से से नीति से अभिप्राय ‘व्यवहार के तरीके’ या ‘कार्य करने के सिद्धान्तों’ से होता है। अत: लाभांश नीति का Means लाभांश वितरित करने के सिद्धान्तों व योजना से होता है। लाभांश वितरण के सम्बन्ध में योजना संचालकों द्वारा बनार्इ जाती है। लाभांश नीति या योजना बनाते समय पिछले वर्षों में बाँटा गया लाभांश, वर्तमान वर्ष के लाभ उद्योग की स्थिति इत्यादि तत्वों को ध्यान में रखा जाता है। वैस्टन And ब्रिघम ने लाभांश नीति के विषय में मत व्यक्त करते हुए लिखा है कि, “प्रबन्धकों के सामने यह विकल्प नहीं होता है कि लाभांश बाँटे अथवा न बाँटै, हाँ यह प्रश्न अवश्य होता है कि कितना बाँटें?” इस प्रश्न का उत्तर लाभांश नीति से मिलता है। लाभांश नीति को परिभाषित करते हुए वैस्टन And ब्रिघम ने लिखा है, “लाभांश नीति अर्जनों का अंशधारियों को भुगतान And प्रतिधारित अर्जनों मे विभाजन निश्चित करती है।” अत: लाभांश वितरण के सम्बन्ध में कर्यकारी योजना को लाभांश नीति कहा जाता है। प्रत्येक प्रबन्धक यह चाहता है कि वह Single आदर्श या समुचित लाभांश नीति का अनुसरण करे। लाभांश नीति समता अंश पूँजी से सम्बन्धित नीति है। पूर्वाधिकार अंश पूँजी पर लाभांश की घोषणा And दर पूर्व निर्धारित होने के कारण ये अंश लाभांश नीति से सम्बन्धित नहीं होते हैं।

Single सुदृढ़ लाभांश नीति के आवश्यक तत्व

  1. स्थायित्व (Stability)- स्थिरता का आशय लाभांश के वितरण में नियमितता बनाये रखने से है। यदि कोर्इ संस्था Single वर्ष तो बहुत अच्छा लाभांश घोषित कर देती है लेकिन अगले ही वर्ष लाभांश नहीं बाँट पाती तो इसे अच्छा नहीं कहा जा सकता। इसके विपरीत यदि कोर्इ संस्था मध्यम दर से ही प्रतिवर्ष लाभांश देती रहती है तो उससे अंशधारी सन्तुष्ट रहते हैं और अंशों के मूल्यों में सट्ठा नहीं होता हे। 
  2. लाभांश दरों में क्रमश: वृद्धि (Gradually Rising Dividend Rates)- संस्था को हमेश इस बात पर प्रयत्नशील रहना चाहिए कि उसकी लाभांश दरों में वृद्धि हो। मूल्य-स्तर बढ़ने व कम्पनी की आय अधिक होने पर अंशधारी भी यही चाहते हैं कि उनकी आय में भी वृद्धि हो। अत: संस्था को अपनी लाभांश दरों को भी थोड़ा-थोड़ा बढ़ाते रहना चाहिए। यह वृद्धि संस्था की आय में वृद्धि पर निर्भर करेगी। यदि किसी वर्ष अत्यधिक लाभ हो तो अतिरिक्त लाभांश भी वितरित किये जाने चाहिए। 
  3. लाभांश का नकद में वितरण (Distribution of Dividend in Cash)- लाभांश का वितरण अधिकतर नकदी के Reseller में ही Reseller जाना चाहिए, परन्तु जब संस्था में संचित कोषों की राशि बहुत अधिक हो जाए तो स्कन्ध लाभांश भी घोषित Reseller जा सकता। स्कन्ध लाभांश का वितरण उचित सीमा के अन्दर ही रखा जाना चाहिए, नहीं तो संस्था अति-पूँजीकरण का शिकार हो सकती है।
  4. प्रारम्भ में कम लाभांश (Moderate Start)- संस्था को प्रारम्भ के वर्षों मे कुछ समय तक कम दर पर ही लाभांश घोषित करना चाहिए जिससे संस्था की वित्त्ाीय स्थिति सुदृढ़ हो जाती है। बाद में संस्था की प्रगति के साथ-साथ लाभांश में भी धीरे-धीरे वृद्धि कर देनी चाहिए। 
  5. अन्य बातें (Other Factors)- लाभांश का भुगतान केवल अर्जित लाभों में से ही Reseller जाना चाहिए। यदि लाभ-हानि खाते में कोर्इ हानि पिछले वर्षों से चली आ रही है तो First उसे अपलिखित करना चाहिए, उसके बाद लाभांश की घोषणा करनी चाहिए। लाभांश अधिकांशत: वर्ष में Single बार ही दिया जाता है लेकिन अंशधारियों के उत्साह में वृद्धि के लिए अन्तरिम लाभांश भी वितरित किये जा सकते हैं।

लाभांश नीति  के प्रकार

लाभांश नीति के निर्धारण के लिए कोर्इ सामान्य या सर्वमान्य सूत्र नहीं दिया जा सकता है जो प्रत्येक स्थिति में लागू होता हो। लाभांश नीति प्रबन्धकीय नीति And कम्पनी की परिस्थितियों पर निर्भर करती है। प्रबन्धकों द्वारा प्राय:  described तीन प्रकार की लाभांश नीतियाँ अपनायी जा सकती है-

(1) कठोर लाभांश नीति

कठोर या अनुदार लाभांश नीति अपनाने पर प्रबन्धकगण कम्पनी की वित्त्ाीय सुदृढ़ता एव ंव्यवसाय को सर्वोपरि रखते हैं तथा अंशधारियों की वर्तमान आशाओ ंको गौण स्थान देते हैं। इस नीति में प्रबन्धक लाभ का अधिकांश भाग व्यवसाय में पुनर्विनियोजित करना चाहते हैं तथा सदस्यों को लाभांश कम से कम देते हैं। इसलिए इस नीति को अनुदार या कठोर लाभांश नीति के नाम से जाना जाता है। इस नीति में भुगतान अनुपात (Payout Ratio) बहुत कम या कभी-कभी शून्य होता है। Single विकासशील कम्पनी जिसको सुधार And विस्तार के लिए पर्याप्त अतिरिक्त पूँजी की Need हो, इस प्रकार की लाभांश नीति बुद्धिमतापूर्ण मानी जाती है’ क्योंकि दीर्घकाल में अंशधारियों को इससे लाभ होता है। किन्तु ऐसी नीति अपनाते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि यह नीति कहीं अंशधारियों की धैर्य-सीमा को पार न कर जाये।

(2) उदार लाभांश नीति

लाभांश की इस नीति मे प्रबन्धक लाभ के अधिकांश भाग का वितरण सदस्यों मे ंलाभांश के Reseller में कर देते हैं। कम्पनी द्वारा लाभ का केवल उतना ही भाग प्रतिधारित Reseller जाता है जितना अत्यन्त आवश्यक समझा जाये। इस नीति में भुगतान अनुपात (Payout Ratio) उच्च होता है जैसे 90 प्रतिशत या 95 प्रतिशत – Meansात् प्रति सौ रुपये की आय में 90 या 95 रुपये लाभांश के Reseller में वितरित कर दिये जाते हैं तथा व्यवसाय में केवल 10 या 5 रुपये ही रखे जाते हैं। इस नीति में सदस्यों के दीर्घकालीन हितों की अपेक्षा वर्तमान हितों को अधिक महत्व दिया जाता है। इस नीति का पालन करने पर कम्पनी में विकास व प्रतिस्थापना के लिए कोषों की कमी आ सकती है तथा अंशों के मूल्य में सट्टा बढ़ जाता है जिससे कम्पनी की वित्त्ाीय सुदृढ़ता को हानि पहँुच सकती है। कभी-कभी प्रबन्धक अपने स्वार्थों की सिद्धि के लिए या प्रबन्ध-दक्षता प्रदर्शित करने के लिए अधिक लाभांश बाँटने के जोश में अनुचित तरीकों का भी प्रयोग करते हैं। अत: उदार लाभांश नीति अपनाते समय प्रबन्धकों को कम्पनी के हितों तथ सदस्यों की अपेक्षाओ ंमें ताल-मेल बैठाना चाहिए।

(3) सुस्थिर लाभांश नीति

लाभांश भुगतान की यह नीति दीर्घकालीन होती है तथा इसमें साधारणतया लम्बी अवधि तक कोर्इ महत्त्वपूर्ण परिवर्तन नहीं किये जाते है। इस नीति में कम्पनी की भावी Needओं व सदस्यों की वर्तमान अपेक्षाओं को समान महत्व दिया जाता है। साधारणतया जितना लाभ लाभांश के Reseller में वितरित Reseller जाता है, लगभग उतना ही लाभ व्यवसाय में पुनर्विनियोजित भी Reseller जता है। सम्पन्न वर्षों में भी साधारणतया उतना ही लाभांश दिया जाता है जितना कि सामान्य अथवा प्रतिकूल वर्षों में । सम्पन्नता या अधिक लाभ वाले वर्षों में पर्याप्त कोषों का निर्माण कर लिया जाता है जिनका प्रयोग कम लाभ वाले वर्षों में लाभांश दर को स्थिर बनाये रखने मे Reseller जाता है। अत: यह Single मध्यमार्गी नीति है। निश्चित And अनिश्चत All सम्भावनाओं के लिए पर्याप्त आयोजन कर लिये जाते हैं। अत: यह नीति कम्पनी को साख And प्रतिष्ठा बनाये रखने में सहायक होती है।

सुस्थिर लाभांश नीति (Stable Dividend Policy) में प्रबन्धकों द्वारा यह प्रयत्न Reseller जाता है कि सदस्यों को दिये जाने वाले लाभांश की दर में यथासम्भव परिवर्तन नहीं हो। इसके लिए विभिन्न वर्षों में आय तथा कर रहित लाभों में उतार-चढ़ाव होते रहने पर भी लाभांश दर मे परिवर्तन नहीं Reseller जाता है। यहाँ यह बता देना आवश्यक है कि कम्पनी के संचालक मण्डल को Windows Hosting भुगतान अनुपात (Stable Payout Ratio) की अपेक्षा सुस्थिर लाभांश दर (Stable Dividend Rate) की नीति अपनानी चाहिए। इसका प्रमुख कारण यह है कि अंशधारी नियमित And स्थायी Reseller से मिलने वाले लाभांश को अधिक अच्छा समझते है।

सुस्थिर लाभांश नीति के लाभ

सुस्थिर लाभांश नीति की प्रमुख विशेषताएँ लाभांश की स्थिरता And नियमितता है। यदि लाभांश नीति में स्थायित्व का अभाव होता है तो इससे संस्था की स्थायी साख नहीं बन पाती तथा अंशधारियों की स्थिति भी संदिग्ध हो जाती है। जब अंशों के बाजार मूल्यों में उतार-चढ़ाव होता रहता है तो इससे संस्था व अंशधानियों दोनों पर ही बुरा प्रभाव पड़ता है। ऐसी स्थिति का सटोरिये लाभ उठा लेते हैं और यह स्थिति संस्था के अस्तित्व को भी चुनौती दे सकती है। सुस्थिर लाभांश नीति के लाभ हो सकते हैं-

  1. अंशधारियों के मन में विश्वास (Confidence among Shareholders)- नियमित And स्थायी लाभांश मिलते रहने से अंशधारियों के मन में अंशों के प्रति विश्वास जम जाता है। किसी वर्ष लाभ कम होने पर भी संस्था लाभांश में कटौती नहीं करती और कोषों में से नियोजन करके लाभांश वितरित कर देती है तो पूँजी बाजार में इन अंशों की साख अच्छी रहती हे।
  2. अंशधारियों में सन्तोष (Satisfaction among Shareholders)- कुछ अंशधारी आय के प्रति बहुत ही सतर्क And जागरूक होते हैं और वे नियमित दर से प्रति वर्ष मिलने वाले लाभों को अधिक महत्व देते है। अत: Single नियमित लाभांश नीति अपना कर अंशधारियों को सन्तुष्ट रखा जा सकता है।
  3. अंशों के बाजार मूल्यों में स्थिरता (Comparative Stability in Market Price of such Shares) – जिन अंशों पर नियमित दर से लाभांश मिलता है उनके बाजार मूल्यों में अपेक्षाकृत कम उतार-चढ़ाव आते हैं तथा ऐसे अंशों में सट्टेबाजी की सम्भावनाएँ कम रहती है।
  4. साख में वृद्धि (Strengthens Goodwill) – संस्था की साख बढ़ जाने से संस्था सफलतापूर्वक ऋण प्राप्त कर सकती है। 
  5. दीर्घकालीन नियोजन में सहायक (Helpful in Long-term Planning) – संस्था के विकास के लिए दीर्घकालीन योजना बना सकते हैं, क्योंकि इस नीति के अन्तर्गत वित्त्ाीय Needओं तथा उनकी पूर्ति के साधनों का मूल्यांकन Reseller जा सकता है।
  6. राष्ट्रीय आय में स्थायित्व (Stability in National Income) – यदि राष्ट्र की अधिकांश संस्थाएँ सुस्थिर लाभांश नीति का पालन करती हैं तो इससे राष्ट्रीय आय में भी स्थायित्व आता है जो सम्पूर्ण Meansव्यवस्था के स्थायित्व का सूचक है। अत: उपर्युक्त लाभों को देखते हुए कुशल And अनुभवी प्रबन्धक सदैव इस बात का प्रयत्न करते है कि उकने द्वारा सुस्थिर लाभांश नीति का पालन Reseller जाए।

सुस्थिर लाभांश नीति का निर्माण

प्रत्येक संस्था के लिए Single सुस्थिर लाभांश नीति का निर्माण करना Single अत्यन्त महत्त्वपूर्ण कार्य है जिस पर प्रबन्धकों को सबसे ध्यान देना चाहिए। संस्था की भावी प्रगति तथा बाजार में उसकी साख And प्रतिष्ठा के लिए सुस्थिर लाभांश नीति अनिवार्य है। सुस्थिर लाभांश नीति का निर्माण करते है समय इन बातों को ध्यान में रखा जाना चाहिए-

  1. लाभांश की स्थिरता And नियमितता।
  2. कम्पनी की नकद स्थिति।
  3. केवल अर्जित लाभ अथवा अधिशेष में से ही लाभांश का भुगतान Reseller जाना चाहिए। 
  4. अधिक लाभ के वर्षों मे नियमित लाभांश की दर में अचानक वृद्धि करने की अपेक्षा अतिरिक्त लाभांश दिया जाना चाहिए।
  5. स्कन्ध लाभांश का वितरण उचित सीमा के अन्दर ही रखा जाना चाहिए, अन्यथा आये दिन स्कन्ध लाभांश देने से अति-पूँजीकरण की स्थिति आ सकती है। 
  6. प्रारम्भिक वर्षों में कुछ समय मामूली लाभांश दिया जा सकता है। बाद में संस्था की प्रगति के साथ-साथ इसमें वृद्धि की जा सकती है।
  7. यदि लाभ-हानि खाते में First से हानि की रकम चली आ रही है तो जब तक वह अपलिखित न हो जाए तब तक लाभांश की घोषणा नहीं करनी चाहिए।
  8. स्थायित्व को बनाये रखने के लिए लाभांश समानीकरण कोष (Dividend Equalisation Fund) की स्थापना की जानी चाहिए जिससे कम लाभ के वर्षों में उसमें से लाभांश दिया जा सके। 

किसी संस्था द्वारा पिछले वर्षों में दिये लाभांश का लेख संस्था की सही स्थिति का मूल्यांकन करने का Single उचित आधार माना जाता है। लाभांश दर तथा संस्था के चिट्ठे के आधार पर संस्था की वित्त्ाीय स्थिति And सफलता का सही अनुमान लगाया जा सकता है। सुस्थिर लाभांश की नीति को बनाये रखने के लिए कम्पनी के स्वामित्व के ढाँचे And प्रबन्ध में भी स्थायित्व रहना आवश्यक है। जिस संस्था में प्रबन्धक, आये दिन बदलते रहते हैं, उसमें स्थायी लाभांश नीति का पालन Reseller जाना सम्भव नहीं होता। ऐसी संस्था विनियोजकों का विश्वास खो देती है, जिसे पुन: प्राप्त करना कठिन होता है।

लाभांश नीति को प्रभावित करने वाले तत्व

  1. लाभों की स्थिति –लाभांश का वितरण लाभों में से ही Reseller जाता है। अत: कम्पनी को यह देखना चाहिए कि उस वर्ष का लाभ पर्याप्त है या नहीं। लाभ की मात्रा पिछले वर्षों के लाभों की तुलना में कम है या ज्यादा, तथा वह लाभ उसी तरह की व्यावसायिक संस्थाओं की तुलना में कैसा है? साथ ही कम्पनी को यह भी ध्यान रखना चाहिए कि अगले वर्षों में लाभ की इस राशि के कम व अधिक होने की क्या सम्भावनाएँ है। 
  2. व्यापार -चक्र की अवस्था – यदि किसी संस्था में कारोबार कभी मन्द तथा कभी तेज हो जाता है तो यहाँ पर स्थिर लाभांश देने तथा संस्था की वित्त्ाीय स्थिति को सुदृढ़ रखने के लिए यह आवश्यक है कि अधिक लाभ के वर्षों में लाभ का अधिकांश भाग मन्दी के समय का सामना करने के लिए संचित ;त्मजंपदद्ध कर लिया जावे। 
  3. अतिरिक्त पूँजी की Need – यदि संस्था अपना कारोबार वर्ष के दौरान बढ़ाने या अपनी पुरानी सम्पित्त्ायों को नयी तथा आधुनिक सम्पित्त्ायों में बदलने की योजना रखती है तो उसके लिए उसे अतिरिक्त पूँजी की Need पड़ेगी, ऐसी स्थिति में संस्था उस वर्ष सम्पूर्ण लाभ व्यवसाय में ही प्रतिधारित कर सकती है या कम दर लाभांश वितरित कर सकती है। 
  4. कोषों की तरलता – लाभांश प्राय: नकदी के Reseller में दिया जाता है और यह तभी सम्भव है जब कम्पनी के पास लाभांश की घोषणा के समय पर्याप्त नकद शेष उपलब्ध हों । यदि लाभांश का भुगतान बैकों आदि से ऋण लेकर करना पड़ता है तो यह वित्त्ाीय दृष्टिकोण से अवांछनीय होगा, क्योंकि ऐसा करने पर कम्पनी की वित्त्ाीय स्थिति नाजुक होने की सम्भावना रहती है। 
  5. अंशधारियों के विचार And Needएँ – अंशधारी कम्पनी के स्वामी होते हैं। वे अंश क्रय करते समय लाभांश आदि के बारे में कुछ विचार व आशाएँ बना लेते हैं। कम्पनी इन विचारों व आशाओं को नहीं भुला सकती, वरना उसे पूँजी बाजार से नर्इ पूँजी Singleत्रित करने में कठिनार्इ हो सकती है। इस सम्बन्ध में प्रबन्ध को यह देखना चाहिए कि वेसी ही अन्य कम्पनियाँ अपने अंशधारियों को कितना लाभांश दे रही है। तेजी या वृद्धि के समय अंशधारी अधिक लाभांश प्राप्त करने की आशा करते हैं। 
  6. वैधानिक व्यवस्थाएँ तथा समझौते – कम्पनी के प्रबन्धकों को वैधानिक (कम्पनी अधिनियम, पार्षद सीमानियमों तथा अन्तर्नियमों) व्यवस्थाओं को धन में रखकर ही लाभांश सम्बन्धी निर्णय लेना चाहिए। कम्पनी अधिनियम, 1956 की धारा 205 में इस बात की विशेष व्यवस्था की गर्इ है कि लाभांश का भुगतान पूँजी में से न Reseller जाए। प्रबन्धकों द्वारा लाभांश की घोषणा करने के कम्पनी के अन्तर्नियमों में भी विस्तृत व्यवस्था होती है। अत: प्रबन्धकों को इन नियमों का पालन करना चाहिए। यदि कम्पनी ने अपने अंशधारियों से लाभांश के बारे में कोर्इ समझौता Reseller है तो उसे भी पूरा करना चाहिए। उदाहरणर्थ, पूर्वाधिकारी अंशों पर लाभांश की दर निश्चित होती है और इन पर लाभांश समता अंशों के लाभांश से First दिया जाता है। 
  7. पुरानी लाभांश नीतियाँ – लाभांश की घोषणा करते सम कम्पनी के प्रबन्ध को बात का ध्यान रखना चाहिए कि पिछले वर्षों में से वे कितना लाभांश घोषित करते रहे हैं। यदि लाभांश की दरें Singleदम बढ़ा दी जाती हैं तो कम्पनी के अंशों में सट्टा शुरू हो जाता है जिससे कम्पनी की वित्त्ाीय व आर्थिक स्थिति बिगड़ने का डर हो जाता है, अत: प्रबन्धकों को लाभांश दर को यथास्थिर रखने का ही प्रयत्न करना चाहिए। 
  8. सरकारी नियन्त्रण – लाभांश की घोषणा विभिन्न वैधानिक नियन्त्रणों को मद्दे नजर रखते हुए की जारी चाहिए। इस सम्बन्ध में कम्पनी के आन्तरिक नियमों के अतिरिक्त कम्पनी अधिनियम व आयकर अधिनियम को ध्यान में रखना आवश्यक है। कम्पनी अधिनियम की धारा 205 में यह व्यवस्था की गयी है कि लाभांश का भुगतान पूँजी में से नहीं Reseller जा सकता है। आयकर अधिनियम की धारा 104-109 के अन्तर्गत लाभांश वितरण के सम्बन्ध में प्रावधानों का वर्णन Reseller गया है। इन प्रावधानों की अवहेलना करनेवालों से दण्ड के Reseller में अतिरिक्त कर वसूल Reseller जा सकता है। 1974 में भारत सरकार ने कम्पनियों द्वारा शुद्ध लाभ के Single-तिहार्इ से अधिक अथवा सामान्य अंश पर 12 प्रतिशत लाभांश से अधिक इनमें से जो भी कम हो लाभांश वितरित करने पर प्रतिबन्ध लगा दिया था। अत: विद्यमान वैधानिक व्यवस्था के अनुReseller लाभांश नीति में परिवर्तन करना आवश्यक होता है।
  9.  कराधान नीति – कभी-कभी सरकार पूँजी निर्माण की गति को बढ़ाने के लिए आय संचित करनेवाली संस्थाओं को आयकर की सुविधा देती है। ऊँची दर पर लाभांश वितरित करने वाली संस्थाओं पर अतिरिक्त कर लगाकर लाभों के प्रतिधारण को प्रोत्साहित Reseller जा सकता है। ऐसी दशा में कर बचत की सुविधा पाने के उद्देश्य से लाभों का अधिकाधिक भाग संचित करने की नीति अपना ली जाती है।
  10. स्वामित्व का ढाँचा- यदि कम्पनी की पूँजी कुछ ही व्यक्तियों के हाथ में हो तो वे इस बात के लिए Agree हो सकते हैं कि कम्पनी के विकास के लिए पर्याप्त आन्तरिक साधन बनाये रखने हेतु कुछ वर्षों तक कठोर लाभांश नीति का पालन Reseller जाए, किन्तु यदि कम्पनी में अंशधारियों की संख्या बहुत अधिक है तथा वे विभिन्न विचार वाले हैं, तो ऐसी दशा में वे संस्था को उदार लाभांश नीति अपनाने के लिए बाध्य करते हैं। 
  11.  ऋणों का भुगतान – पिछले वर्षों के लिये गये ऋणों के भुगतान के लिए संस्था के पास दो साधन होते हैं- (i) ऋणपत्र जारी करके व ;पपद्ध आय से व्यवस्था करके। यदि संस्था आये ऋणों का भुगतान करने की नीति अपनाती है तो ऐसी दशा में उसे कठोर लाभांश नीति का अनुसरण करना पड़ेगा। 
  12. आय में स्थायित्व – कम्पनी Reseller से आय अर्जित करने वाली संस्थाएँ, आय में उच्चावचन होने वाली संस्थाओं की अपेक्षा आय का अधिक भाग लाभांश के Reseller में वितरित करती हैं। अस्थायी Reseller से आय प्राप्त करने वाली संस्थाएँ, यह निश्चित Reseller से नहीं जानती हैं कि उन्हें भविष्य में कितनी आय प्राप्त होगी। भविष्य में आय कम होने पर लाभांश बनाये रखने के उद्देश्य से ये संस्थाएँ आय का अधिकांश हिस्सा संचित कोषों में जमा कर लेती हैं।
  13. कम्पनी की आयु  – नयी कम्पनियाँ प्रारम्भ में इस स्थिति में नहीं होती हैं कि वे कुछ वर्षों तक उचित लाभांश अपने सदस्यों को दे सकें। शुरू में All संस्थाओं को विकास के लिए पूँजी पर्याप्त Need पड़ती है जिसे वे सरलता से बाजार से प्राप्त नहीं कर सकतीं। अत: उन्हें अपने आन्तरिक साधनों पर निर्भर होना पड़ता है। इस कारण इन संस्थाओं को कठोर लाभांश नीति अपनानी पड़ती है। इसके विपरीत पुरानी संस्थाओं में उदार नीति अपनायी जाती है क्योंकि उन्हें अपेक्षाकृत कम पूँजी की Need होती है और यदि होती भी है तो उसकी पूर्ति के लिए बाह्य स्रोतों से पूँजी जुटाने में उन्हें उतनी कठिनार्इ अनुभव नहीं होती जितनी कि Single नयी संस्था को होती है।
  14. लोक मत – संस्थाओं की लाभांश नीति पर जनमत तथा सार्वजनिक प्रतिक्रियाओं का भी प्रभाव पड़ता है। प्राय: बहुत अधिक लाभांश वितरित करने वाली संस्थाओं की आलोचना All क्षे़त्रों में होने लगती है जिससे कर्मचारी अपने वेतनों में वृद्धि की माँग करते लगती हैं और उपभोक्ता माल की कीमतों में कमी चाहते हैं तथा संस्था के अधिकारी भी उस लाभ में से अधिक बोनस दिये जाने की माँग करते हैं।

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