लाभांश का Means, परिभाषा And प्रकार

विभाजन योगय लाभ (Divisible Profits) का वह भाग जो कम्पनी के प्रत्येक सदस्य को उसके द्वारा धारित अंशों के अनुपात में प्राप्त होता है, ‘लाभांश’ कहलाता है। विभाजन योग्य लाभ से अवश्य कम्पनी के उन लाभों से है, जो वैधानिक तौर पर अंशधारियों में लाभांश के Reseller में बाँटे जा सकते है। इस आशय के लिए शुद्ध लाभ का अभिप्राय उस लाभ से होता है जो कम्पनी अधिनियम, 1956 की धारा 394 की व्यवस्थाओं के According है तथा इसमें आयकर की राशि घटा दी गर्इ है व कम्पनी अधिनिमय की धाना 205 के According ह्रास घटा दिया गया है। कम्पनी द्वारा लाभांश की घोषणा तब तक नहीं की जा सकती है जब तक कि कम्पनी के पास पर्याप्त लाभ न हो, संचालक मण्डल सिफारिश न करें And वार्षिक साधारण सभा में अंशधारियों द्वारा अनुमोदन न हो।

  1. एस.एम. शाह के According, “लाभांश Single व्यावसायिक कम्पनी के लाभ हैं जो उसके सदस्यों में अंशों के अनुपात में बाँटे जाते हें।
  2. सर्वोच्च न्यायालय के According, “लाभांश कम्पनी के लाभों का वह भाग है जो अंशधारियों में बाँटने के लिए नियम कर दिया गया है।
  3. इिन्स्टट्यूट ऑफ चार्टर्ड Singleाउण्टेन्ट्स ऑफ इंडिया के According “उपलब्ध लाभों And रिजर्व में से अंशधारियों को Reseller गया वितरण ही लाभांश है।”

उपरोक्त से स्पष्ट है कि लाभांश क आशय कम्पनी की अर्जनों के उस भाग से है जो कम्पनी के अंशधारियों में बाँटा जाता है। लाभांश वस्तुत: कुल अर्जनों में से समस्त व्ययों के घटाने And विभिन्न प्रकार के कोषों व करों के लिए उचित प्रावधान करने के बाद बचे आधिक्य का ही Single भाग होता है। इस आधिक्य पर सामान्य अंशधारियों का ही अधिकार हेाता है यद्यपि वे इसके तत्काल वितरण के लिए कम्पनी को बाध्य नही कर सकते हैं। यदि कम्पनी को अतिरिक्त पूँजी की Need है तो ऐसी स्थिति में संचालकगण चाहे तो कम्पनी का समस्त अर्जित लाभ व्यवसाय में धारित ;त्मजंपदद्ध कर सकते हें। ऐसी स्थिति में लाभांश की घोषणा नहीं की जावेगी तथा समस्त अर्जनों को विभिन्न कोषों अथवा अधिकोषों के Reseller में ही रहने दिया जाएगा। लाभांश का घोषणा करते समय कम्पनी के संचालक मण्डल को दो बातों को अवश्य ध्यान में रखना चाहिए-

  1. कम्पनी की Needएँ (Need of the Company)- लाभांश की घोषणा करने से पूर्व कम्पनी की वित्तीय Needओं को अवश्य ध्यान में रखा जाना चाहिए। यदि कम्पनी की निकट भविष्य में विस्तार व विकास की योजना हो तो उसके लिए कम्पनी को वित्त की Need होगी। ऐसी स्थिति में लाभांश कम घोषित Reseller जा सकता है तथा अधिक आवश्यक हो तो लाभांश घोषित ही नहीं जाये। इस प्रकार कम्पनी की वित्तीय सुदृढ़ता बनाए रखना अधिक आवश्यक है चाहे इसके लिए अंशधारियों को कम लाभांश ही क्यों न देना पडे़।
  2. अंशधारियों को उचित प्रतिफल (Reasonable Return to Shareholders)- अंशधारी अंशो में विनियोग प्रत्याय करने की आशा से करते हैं है। अत: संचालकों को इस बात का अनुमान होना चाहिए कि अंशधारियों को उचित प्रतिफल दे सकें। यदि ऐसा नहीं Reseller जाए तो अंशधारियों में असन्तोष होगा जिससे कम्पनी के अंशों के बाजार मूल्य And कम्पनी की साख पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है। 

लाभांश घोषणा And वितरण के सम्बन्ध में Indian Customer कम्पनी अधिनियम, 1956 के प्रावधान

भारत में लाभांश की घोषणा And वितरण के सम्बन्ध में कम्पनी को अपने अन्तर्नियमों, कम्पनी अधिनियम, 1956 की धारा 205 तथा 206 And सारणी ‘अ’ के नियमों का पालन करना अनिवार्य है। इस सम्बन्ध मे व्यवस्थाएँ Historyनीय हैं-

  1. पूँजी में से लाभांश न बाँटा जाये (Restricting Payment of Dividend from capital) –कम्पनी किसी भी अवस्था में पूँजी में से लाभांश नही बाँट सकती है। लाभांश वर्ष के लाभों या अन्य किन्हीं अवितरित लाभों में से ही दिया जाना चाहिए। 
  2. पार्षद सीमानियम तथा अन्तर्नियमों का पालन (As per Memorandum and Articles) – संस्था के पार्षद सीमानियमों तथा अन्तर्नियमों में विभाजन-योग्य लाभ के सम्बन्ध में कुछ निर्देश दिये हैं तो उनका पालन Reseller जाना चाहिए। लाभांश घोषित करने व उनकेा भुगतान करने की रीति का Historyीनय वर्णन संस्था के अन्तर्नियमों में दिया जाता है। ये अन्तर्नियम कम्पनी अधिनियम की व्यवस्थाओं के विरुद्ध नहीं हो सकते। सारणी ‘अ’ के अधिनियम 85-94 के अधीन लाभांश के सम्बन्ध में नियम है-
    1. कम्पनी अपनी साधारण सभा में लाभांश घोषित कर सकती है। लाभांश उस धनराशि से अधिक नहीं हो सकते जिसके लिए संचालक मण्डल ने स्वीकृति दी है। 
    2. संचालक मण्डल समय-समय पर ऐसे लाभांशों का भुंगतान कर सकता है। जो कि कम्पनी लाभों को देखते हुए उसे उचित प्रतीत होते है। 
    3. संचालक मण्डल कम्पनी मे लाभांश की स्वीकृति देने से First Single निश्चित धनराशि Windows Hosting कोष अथवा कोषों के लिए नियोजित कर सकता है और ऐसे कोषों का प्रयोग ऐसे कार्यों के लिए कर सकता है जिनके लिए कम्पनी के लाभ उचित Reseller से प्रयोग किये जा सकते हैं। संचालक मण्डल कम्पनी के किन्हीं लाभों को उक्त कोषों से नियोजित न करके वर्ष के लिए हस्तान्तरित कर सकता है।
    4. ऐसे व्यक्तियों को, जिन्हें अपने अशों के लिए लाभांश के विशेष अधिकार हैं, लाभांश घोषणा तथा भुगतान प्रदत्त धनराशि के आधार पर Reseller जाएगा। पूर्व प्राप्त माँगों की धनराशि इस आशय के लिए प्रदत्त्र राशि नहीं मानी जाएगी।
    5. संचालक मण्डल किसी सदस्य को देय लाभांश में से ऐसी धनराशि रोक सकता है जो कि उस सदस्य द्वारा कम्पनी को लाभों के लिए अथवा कम्पनी के अंशों के सम्बन्ध में अन्य किसी Reseller में उस समय देय हो। ;अपद्ध नकदी में देय लाभांश अंशधारियों के रजिस्टर्ड पते पर चैक अथवा अधिपत्र भेज कर भुगतान Reseller जा सकता है। ऐसा प्रत्येक चैक अथवा अधिपत्र आदेशित चैक होगा। 
    6. संयुक्त अंशधारियों की दशा में कोइ भी अंशधारी लाभांश प्राप्त कर सकता है। 
    7. घोषित किये गये लाभांश की सूचना सदस्यों को देना आवश्यक है। 
    8. किसी भी लाभांश पर कम्पनी द्वारा ब्याज देय नहीं होगा।
  3. लाभांश का भुगतान केवल लाभों में से (Payment of dividend only from Profit)- लाभांश का भुगतान केवल लाभों में से Reseller जा सकता है, पूँजी में से नहीं। कम्पनी अधिनियम के अधीन, कम्पनी द्वारा किसी लेखा-वर्ष के लाभांश की घोषणा अथवा भुगतान- (i) ह्रास की व्यवस्था करने के बाद कम्पनी के उस लेखा वर्ष के लाभों में से Reseller जा सकता है, अथवा (ii) जहाँ केन्द्रीय अथवा प्रान्तीय सरकार ने लाभांश की प्रतिभूति दी है वहाँ उसके फलस्वReseller प्राप्त होने वाली धनराशि में से Reseller जा सकता है। यह भी व्यवस्था है कि केन्द्रीय सरकार ऐसी आज्ञा (बिना मूल्य ह्रास की व्यवस्था किये लाभांश वितरण की) दे सकती है, यदि ऐसा करना जनता के हित में हो।
  4. लाभांश का भुगतान केवल नकदी में (Payment of Divident only in Cash) – अधिनियम की धारा 205(3) के According केवल  परिस्थितियों को छोड़कर लाभांश का भुगतान नकद में Reseller जाना चाहिए। (i) लाभों का पूँजीकरण करना, (ii) कम्पनी के संचय को पूर्णदत्त अधिलाभांश अंशों के निर्गमन के लिए प्रयोग करना, (iii) सदस्यों को पूर्व निर्गमित अंशों के अदत्त भाग का भुगतान करना। 
  5. लाभांश का भुगतान केवल निर्दिष्ट व्यक्तियों (Payment of Divident only to Specified Persons)- लाभांश का भुगतान (i) रजिस्टर्ड अंशधारियों को अथवा उसके बैंकर को , अथवा (ii) यदि अंश अधिपत्र निर्गमित Reseller जा चुका है तो ऐसे अधिपत्र के वाहक को अथवा उसके बैंकर को Reseller जा सकता है, अन्य किसी व्यक्ति को नहीं Reseller जा सकता। 
  6. लाभांश का भुगतान 30 दिन में (Payment of divident within 30 days) – यदि कम्पनी द्वारा लाभांश घोषित कर दिया गया है तो घोषणा की तिथि से 30 दिन के अन्दर उसका भुगतान भी कर दिया जाना चाहिए। त्रुटि के लिए दायी व्यक्ति को तीन वर्ष तक का साधारण कारावास और 1,000 रुपये प्रति दिन का जुर्माना दोष जारी रहने तक Reseller जा सकता है। इसके अतिरिक्त दोष जारी रहने के अवधि के लिए कम्पनी 18: की दर से ब्याज चुकाने हेतु उत्तरदाीय होगी कम्पनी (संशोधन) अधिनियम, 2000 द्वारा संशोधित धारा 2007,।

लाभांश के प्रकार

लाभांश विभिन्न Resellerें में वितरीत Reseller जा सकता है। साधारणतया यह नकद के Reseller में ही वितरित Reseller जाता है, किन्तु यह बोनस अंशों के Reseller में भी वितरित Reseller जा सकता है। लाभांश नकद या बोनस अंशों के अतिरिक्त अन्य Resellerों में वितरित Reseller जा सकता है। यहाँ लाभांश के प्रमुख Resellerों का विस्तार से वर्णन Reseller गया है।

(1) नकद लाभांश 

लाभांश का यह सबसे प्रचलित And लोकप्रिय Reseller है। साधारणतया अंशधारी इस Reseller में लाभांश लेना सबसे अधिक पसन्द करते हैं, क्योंकि लाभांश प्राप्ति का यह Single सुविधाजनक तरीका है। जिन कम्पनियों की तरल स्थिति ठीक होती है वे कम्पनीयाँ लाभांश नकद में ही वितरित करना पसन्द करती हैं। Indian Customer कम्पनी अधिनियम की धारा 205 के According Indian Customer कम्पनियाँ नकद व स्कन्ध लाभांश के अलावा अन्य किसी प्रकार से लाभांश नहीं बाँट सकती हैं।

(2) स्कन्ध लाभांश 

स्कन्ध लाभांश को “बोनस अंशों” के Reseller में लाभांश के नाम से जाना जाता है तथा ऐसा संचित कोषों या लाभों का पूँजीकरण करके Reseller जाता है। जिन कम्पनियों की तरल स्थिति ठीक नहीं होती, वे साधारणतया अपने लाभों का पूँजीकरण करके स्कन्ध लाभांश वितरित करती है। इसके अन्तर्गत कम्पनी नकद लाभांश नहीं देती है। ऐसे अंशों को बोनस अंश के नाम से जाना जाता है। ऐसा करने से लाभ का समुचित उपयोग व्यवसाय में ही हो जाता है तथा लांभाश का वितरण भी सम्भव हो जाता है।

(3) बन्ध-पत्रों के Reseller में लाभांश

कम्पनी नकद लाभांश न देकर बन्ध-पत्रों या ऋण-पत्रों के Reseller में भी लाभांश वितरित करती है। बन्ध-पत्र या ऋण-पत्र दीर्घकालीन हो सकते हें। इसका अभिप्राय यह हुआ कि कम्पनी लाभांश का वितरण तत्काल न करके भविष्य की किसी तिथि को करना चाहती है। इस प्रकार का लाभांश तभी वितरित Reseller जाता है जब कम्पनी ब्याज सम्बन्धी बढ़े हुए दायित्वों का सम्पूर्ण भार उठाने में अपने आपको असमर्थ पाये। कभी-कभी लाभांश के लिए प्रतिज्ञा-पत्र भी दिये जाते हैं जिन पर ब्याज भी दिया जा सकता है। इसे स्क्रिप लाभांश (Scrip Dividend) कहा जाता है। स्क्रिप्ट लाभांश की अवधि अल्पकालीन होती है।

(4) सम्पित्त लाभांश – 

नगद के अतिरिक्त लाभांश सम्पित्त के Reseller में भी वितरित Reseller जा सकता है। अन्य कम्पनियों की तथा सरकार की प्रतिभूतियों को लाभांश के Reseller वितरित Reseller जा सकता है। इसी प्रकार कम्पनी की अन्य किसी विभाजन योगय सम्पित्त को भी लाभांश के Reseller में वितरित Reseller जा सकता है। लाभांश वितरण का यह Reseller बहुत ही कम संस्थाओ द्वारा अपनाया जाता है, क्योंकि यह अंशधारियों को असुविधाजनक होता है। पश्चिमी देशों में कुछ मदिरा उत्पादक कम्पनियाँ मदिरा की बोतलें निर्धारित मूल्यों पर लाभांश के बदले वितरित करती हैं। इसे “वस्तुओं के Reseller में लाभांश” (Dividend in Kind) के नाम से जाना जा सकता है। Indian Customer कम्पनियों में लाभांश वितरण कायह तरीका अभी प्रचलित नहीं है।

(5) संयुक्त लाभांश  – 

जब लाभांश का कुछ हिस्सा नकद में तथा शेष सम्पित्त के Reseller में दिया जाता है, तो यह संयुक्त लाभांश कहलाता है।

भुगतान के According लाभांश के प्रकार

भुगतान के According लाभांश को तीन वर्गों में बाँटा जाता है-

1. अन्तरिम लाभांश (Interim Dividend)- 

साधारणतया लाभांश की घोषणा कम्पनी के वित्त्ाीय वर्ष के अन्त में की जाती है। ऐसी स्थिति में इसे ‘नियमित लाभांश’ (Regular Dividend) कहा जाता है, किन्तु कभी जब कम्पनी यह महसूस करे कि व्यवसाय में लाभ पर्याप्त मात्रा में अर्जित कर लिये गये हैं, ऐसी स्थिति में वर्ष की समाप्ति के पूर्व ही कुछ लाभांश घोषित कर देती है तो इसे अन्तरिम लाभांश के नाम से जाना जाता है। कम्पनी इस अन्तरिम लाभांश के बाद अन्तिम लाभांश (Final dividend) भी घोषित करती है।

2. अतिरिक्त अथवा विशिष्ट लाभांश (Extra or Special Dividend)-

Single सुदृढ़ लाभांश नीति के लिए यह आवश्यक है कि लाभांश की दर में अत्यधिक परिवर्तन न Reseller जाये। नियमित लाभांश दर वह दर होती । जिसके According पिछले कर्इ वर्षों से लाभांश का भुंगतान Reseller जा रहा है। यह कोर्इ निश्चित या स्थायी दर नहीं होती है तथा इसमें थोड़ा-बहुत परिवर्तन लाभों की मात्रानुसार Reseller जा सकता है। अतिरिक्त लाभांश का प्रश्न तभी उठता है जब संस्था किसी वर्ष अप्रत्याशित या अत्यधिक मात्रा में लाभांश अर्जित करती है। ऐसी स्थिति में कम्पनी नियमित लाभांश के अलावा कुछ अतिरिक्त या विशिष्ट लाभ भी दे देती है। अतिरिक्त लाभांश देने का उद्देश्य अंशधारियों को यह जानकारी देना होता है कि अतिरिक्त लाभांश की राशि अस्थायी है।

3. नियमित लभांश (Regular Dividend)- 

Single कम्पनी द्वारा वित्त वर्ष की समाप्ति के बाद संचालक मण्डल द्वारा प्रस्तावित तथा साधारण वार्षिक सभा द्वारा पारित लाभांश भुगतान को नियमित लाभांश के नाम से पुकारा जाता है।

Indian Customer कम्पनी अधिनिमय, 1956 की धारा 205(3) के According नकद के अतिरिक्त अन्य किसी प्रकार से लाभांश का भुगतान नहीं Reseller जा सकता है, लेकिन लाभों का पूँजीकरण करके बोनस अंशों के Reseller में लाभांश का वितरण इसका अपवाद है। इसी प्रकार अंशधारियों द्वारा लिये गये अंशों पर अदत्त्ा राशि को चुकता करके भी लाभांश का भुगतान Reseller जा सकता है। Indian Customer कम्पनियाँ अन्तरिम And अतिरिक्त लाभांश का वितरण भी कर सकती है, लेकिन सम्पित्त या बन्ध-पत्र के Reseller में लाभांश का भुगतान नहीं कर सकती हैं।

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