राष्ट्रपति का निर्वाचन, कार्यकाल And शक्तियां

भारत का राष्ट्रपति 

संविधान के अनुच्छेद 52 के According भारत का Single राष्ट्रपति होगा। संघ की कार्यपालिका शक्ति इसी में निहित की गर्इ है। अनुच्छेद 53 में उपबन्ध Reseller गया है कि-

  1. संघ की कार्यपालिका शक्ति राष्ट्रपति में निहित होगी और वह इसका प्रयोग संविधान के उपबन्धों के According स्वयं या अपने अधीनस्थ अधिकारियों के द्वारा करेगा।
  2. संघ के रक्षा बलों का सर्वोच्च समादेश राष्ट्रपति में निहित होगा और उसका प्रयोग विधि द्वारा विनियमित होगा। 
  3. इस अनुच्छेद की कोर्इ बात-(क) किसी विद्यमान विधि द्वारा किसी राज्य की सरकार या किसी अन्य प्राधिकारी का प्रदान किए गए कृत्य राष्ट्रपति को अन्तरित करने वाली नहीं समझी जाएगी; या (ख) राष्ट्रपति से भिन्न अन्य प्राधिकारियों को विधि द्वारा कृत्य प्रदान करने से संसद को निवारित नहीं करेगी। 

इस प्रकार राष्ट्रपति मुख्य कार्यपालक है। फिर भी उन कृत्यों को जो First से ही अन्य प्राधिकारियों को दिए गये हैं और संसद की अन्य प्राधिकारियों को किन्हीं कृत्यों को सौंपने की क्षमता को अछूता छोड़ दिया गया है।

संघीय सरकार के समस्त कार्य राष्ट्रपति के नाम से ही सम्पादित होते है। वास्तव में वह देश के शासन का संचालन नहीं करता वरण उसे जो शक्रियां पा्रप्त हैं व्यवहार में उसका प्रयोग संघीय मंत्री परिषद ही करती है। वास्तव में वह मंत्री परिषद के परामर्श को मानने के लिए बाध्य है।

राष्ट्रपति निर्वाचित होने के लिये योग्यताएं 

अनुच्छेद ‘58 के According राष्ट्रपति निर्वाचित होने के लिए अर्हताएं इस प्रकार हैं-(1) कोर्इ व्यक्ति राष्ट्रपति निर्वाचित होने का पात्र तभी होगा जब वह-

  1. वह भारत का नागरिक हो। 
  2. कम से कम 35 वर्ष की आयु पूरी कर चुका हो । 
  3. वह लोक सभा का सदस्य बनने की योग्यता रखता हो। 
  4. वह किसी सरकारी लाभकारी पद पर कार्यरत न हो। 
  5. राष्ट्रपति के पद पर आसीन व्याप्ति संसद का सदस्य या राज्यों में विधायक नहीं हो सकता । 

परन्तु अनुच्छेद 58(2) के According कोर्इ व्यक्ति, जो भारत सरकार के या किसी राज्य की सरकार के अधीन अथवा उक्त सरकारों में से किसी के नियन्त्रण में किसी स्थानीय या अन्य प्राधिकारी के अधीन कोर्इ लाभ का पद धारण करता है, राष्ट्रपति निर्वाचित होने का पात्र नहीं होगा। इसके स्पष्टीकरण में यह कहा गया है कि इस अनुच्छेद के प्रयोजनों के लिए, कोर्इ व्यक्ति केवल इस कारण कोर्इ लाभ का पद धारण करने वाला नहीं समझा जाएगा कि वह संघ का राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति या किसी राज्य का राज्यपाल है अथवा संघ का या किसी राज्य का मन्त्री है।

राष्ट्रपति का निर्वाचन प्रक्रिया 

राष्ट्रपति का निर्वाचन Single निर्वाचन मण्डल द्वारा होता है जिसमें संसद के दोनों सदनों Meansात लोकसभा And राज्यसभा तथा राज्यों की विधान सभाओं के All निर्वाचन सदस्य होते है। ससंद के मनोनीत सदस्य तथा राज्य विधान परिषदों के मनोनीत सदस्य इस निर्वाचक मण्डल के सदस्य नहीं होते। निर्वाचन आनुपातिक प्रतिनिधित्व के आधार पर Singleल संक्रमणीय प्रणाली द्वारा Reseller जाता हेै। मतदान गुप्तमत द्वारा होता है। संविधान निर्माता चाहते थे कि संसद के निर्वाचन सदस्यों के मत तथा All राज्यों की विधान सभाओं के निर्वाचन सदस्यों के मत Single समान हों। इसलिए मतों की समानाता को सुनिश्चित करने के लिए उन्होनें Single तरीका निकाला जिसके द्वारा प्रत्यके निर्वाचित सांसद तथा विधायक के वोट का मूल्य निर्धारित Reseller जा सके। किसी राज्य की विधान सभा के प्रत्येक विधायक के मत का मूल्य निम्नलिखित सूत्र द्वारा निकाला जाता है:-

राज्य की कुल जनसंख्या राज्य विधान सभा के कुल निर्वाचन सदस्यों की सख्ंया सरल Wordों में हम इसे इस प्रकार भी कह सकते हैं कि राज्य की कुल जनसंख्या को राज्य विधान सभा के निवार्चन सदस्यों की संख्या से भाग करके भागफल को फिर 1000 से भाग दिया गया । उदाहरण:- मान लीजिए अभी 2009 में राज्य की जनसंख्या 2,08,33,803 है तथा विधान सभा के सदस्यों की संख्या 90 है तो प्रत्येक विधायक के मत का मूल्य होगा-

20,83,33,803

 = ———————-  » 1000

 90 

= 231.48 = 231

 ( क्योंकि, .48 50प्रतिशत से कम हैं । )

संसद के प्रत्येक सदस्य के मत का मूल्न्य निकालने के लिए All राज्यों तथा केन्द्र शासित क्षेत्रों – दिल्ली And पांडीचेरी की विधान सभाओ के All सदस्यों के मत जाडे कर लाके सभा तथा राज्य सभा के All निर्वाचित सांसदो की संख्या से विभाजित Reseller जाता हैं

               All विधान सभाओं के निर्वाचि विधायको के कुल मत

 = Single सांसद के मत ————————————————-

             संसद के दोनों सदनों के कुल  निर्वाचित सांसदो की संख्या

उदाहरण : All राज्यों की विधान सभाओं के मतों को जोड़ दिया जाता है । मान लिजिए यह संख्या 5; 44 ; 971 है और संसद के कुल निर्वाचन सदस्य है 776 तो –

       544971 

प्रत्येक सांसद के मत = ———————- = 702.28 776 

                  = 702 (पूर्ण संख्या बनाने पर )

गणना करते समय यदि शेष फल 50 प्रतिशत से कम हो तो उसे छोड दिया जाता है और यदि 50 प्रतिशत से अधिक हो तो भागफल में Single मत जोड दिया जाता है।

Singleल संक्रमणीय मत प्रणाली –

राष्ट्रपति का निर्वाचन आनुपातिक प्रतिनिधित्व के आधार पर Singleल संक्रामणीय मत प्रणाली से होता हैं। इस प्रणाली में All प्रत्याशियों के नाम मतपत्र पर लिख दिए जाते है। और मतदाता उनके आगे संख्या लिखते हैं। प्रत्येक मतदाता मतपत्र पर वरीदता क्रम में उतनी पसंदे लिखता है जितने प्रत्याशी होते है इसी पक्रार वह अन्य प्रत्याशियों के नाम के आगे भी अपनी पसंद के आधार पर संख्या 2, 3, 4 आदि…….. लिख देता है। यदि पहली पंसद न लिखी जाए अथवा Single से अधिक प्रत्याशियों के नाम के आगे पहली पसंद लिखी जाए तो मत अवैध घोषित कर दिया जाता हैं ।

मतगणना परिणाम की घोषणा

राज्य विधान सभाओ के सदस्य अपना मतदान राज्यों की राजधानियों में करते है जबकि संसद सदस्य अपना मत दिल्ली या राज्य की राजधानियों में कर सकते है मतगणना नर्इ दिल्ली में होती है पहली पसंद के आधार पर All प्रत्याशियों के मत अलग करके गिन लिए जाते है निर्वाचित घोषित होने के लिए कुल डाले गए वैध मतो के 50 प्रतिशत से अधिक मत प्राप्त करना आवश्यक हैं। इसे कोटा अथवा न्यूनतम Need अंक कहतें है कोटा निकालने के लिए कूल डाले गए वैध मतों को निर्वाचित होने वाले प्रत्याशिंयों की संख्या में Single जोडकर भाग Reseller जाता हैं। क्योकि केवल राष्ट्रपति को निर्वाचित होना है इसलिए 1+1 Meansात दो से भाग दिया जाता है । न्यूनतम अंकाे को 50 से अधिं कतम बनाने के लिए भागफल में Single जोड़ दिया जाता है । इसलिए

        कुल डाले गए वैध मत 

कोटा = —————————-+ 1 

पहली गणना में केवल पहली पसंदो को गिना जाता है। यदि कोर्इ भी प्रत्याशी कोटा प्राप्त कर लेता है तो उसे विजयी घोषित कर दिया जाता है। यदि कोर्इ भी प्रत्याशी आवश्यक न्यनू तम अकं Meansात कोटा प्राप्त नही कर सकता, तो सबसे कम पहली पसंदे पा्रप्त करने वाले प्रत्याशित की दूसरी पसंदो के आधार पर उसके मतों का हस्तांतरण बाकी प्रत्याशियों में कर दिया जाता है। इस प्रकार सबसे कम मत प्राप्त करने वाले प्रत्याशी का नाम हटा दिया जाता हैं। दूसरी गणना के आधार पर यदि किसी प्रत्याशी को वांछित मत मिल जाते है। तो उसे राष्ट्रपति पद के लिए विजयी घोषित कर दिया जाता हैं। यदि अब भी किसी प्रत्याशी को कोटा मत प्राप्त नहीं होता तो सबसे कम मत प्राप्त करने वाले प्रत्याशी के मत उसकी तीसरी पसंद के आधार पर बाकी प्रत्याशियों में हस्तातं रित कर दिए जाते हैं।  यह प्रReseller तब तक चलती है जब तक कि कोर्इ भी प्रत्याशी वांछित मत प्राप्त करके विजयी घोषित नहीं होता। आइए हम, इसे Single उदाहरण की सहायता से समझने का प्रयास करें मान लीजिए कलु वैध मत 20,000 हैं और अ, ब, स और द चार प्रत्याशी है। यहां पर वांछित अंक या कोटा होगा :-

20,000 

—————-  = +1 = 10,0001 

1 + 1

मान लीजिए पहली गणना में चारों प्रत्याशियों को पहली पसंद के आधार पर मिले मत इस इस प्रकार हैं :-

अ = 9000
ब = 2000
स = 4000
द = 5000

इस स्थिति में किसी भी प्रत्याशी को वांछित अंक Meansात 10,001 मत नहीं मिले सबसे कम अंक प्राप्त करने वाले प्रत्याशित ब को हटा दिया जाता हैं और उसके 2,000 मत दूसरों को हस्तातंरित कर दिये जाते हैं । मान लीजिए मतों के हस्तांतरण से अ को 1100, स को 500 तथा को द 400 मत मिलें। अब उनकी स्थिति इस प्रकार हैं :

अ = 9000 + 1100 = 10,100
स = 4000 + 500 = 4,500
द = 5000 + 400 = 5,400

क्योंकि प्रत्याशित अको वांछित मत Meansात कोटा मिल गया गया है इसीलिए इसे राष्ट्रपति पद के लिए विजयी घोषित कर दिया जाता है। राष्ट्रपति का पद ग्रहण करने से पूर्व उसे भारत के मुख्य न्यायाधीश की उपस्थिति में शपथ लेनी होती है ।

राष्ट्रपति का कार्यकाल – 

राष्ट्रपति का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है परन्तु वह त्यागपत्र द्वारा (जो उपराष्ट्रपति को सम्बोधित Reseller जायेगा जो इसकी सूचना लोक सभा के अध्यक्ष को देगा) इस कालावधि से First भी अपना पद त्याग सकता है। यदि राष्ट्रपति संविधान का अतिक्रमण करता है तो उसे अनुच्छेद 61 में अपबन्धित तरीके से महाभियोग द्वारा उसके पद से हटाया जायेगा। यहाँ पर राष्ट्रपति अपने पद की समाप्ति के बाद भी तब तक पद धारण किये रहेगा। जब तक उसका उत्तराधिकारी अपना पद ग्रहण नहीं कर लेता। संविधान के अनुच्छेद-57 के According राष्ट्रपति अपने पद पर पुन: निर्वाचित हो सकता है Meansात् कोर्इ व्यक्ति Single से अधिक बार राष्ट्रपति पद के लिए निर्वाचित हो सकता है (अनुच्छेद-57) जबकि अमेरिका में 22वें संविधान संशोधन के According कोर्इ व्यक्ति 2 से अधिक बार राष्ट्रपति पद नहीं ग्रहण कर सकता है।

महाभियोग – 

राष्ट्रपति को उसके पद से हटाने की प्रReseller को महाभियोग कहते है। महाभियोग का प्रस्ताव संसद के सदन के किसी में प्रस्तुत Reseller जा सकता है। संविधान का अतिक्रमण करने पर राष्ट्रपति को महाभियोग द्वारा हटाने जाने की प्रणाली निम्न हैं –

  1. महाभियोग सूचना सदन को 14 दिन पूर्व प्राप्त होनी चाहिए। उस प्रस्ताव की सचू ना पर उस सदन के 1/4 सदस्यों के हस्ताक्षर होना चाहिए। 
  2. यह प्रस्ताव जिस सदन में रखा जाता है उसके कुल सदस्यों के 2/3 बहुमत से पारित हो कर ही Second सदन में भेजा जावेगा ।
  3. द्वितीय सदन में जांच के दौरान राष्ट्रपति स्वयं या अपने प्रतिनिधि के माध्यम से स्पष्टीकरण दे सकता है। 
  4. द्वितीय सदन जाचं के बाद अपने कुल सदस्यों के 2/3 बहमु त से महभियोग के प्रस्ताव को पारित कर दे तो राष्ट्रपति पर महाभियोग सिद्ध हो जाता है और उसी दिन राष्ट्रपति को अथवा पद त्यागना पड़ता है। 

राष्ट्रपति का पद रिक्त होने पर उपराष्ट्रपति कार्य भार सम्भालता है यदि उपराष्ट्रपति न हो तो उच्चतम न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश नये राष्ट्रपति के निर्वाचित होते तक राष्ट्रपति पद का कार्यभार सम्भालता है। संविधान के According राष्ट्रपति के रिक्त पद को 6 माह के अंदर निर्वाचन करना आवश्वयक होता है।

राष्ट्रपति की शक्तियां – 

राष्ट्रपति रांष्ट्र का प्रमुख होता है। केन्द्र सरकार की All शक्तियों का प्रयोग प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष Reseller से राष्ट्रपति (प्रधानमंत्री And मंत्री परिषद के द्वारा) करता है ।

1. कार्यपालिका संबंधी – 

भारत सरकार के समस्त कार्यपालिका संबंधी कार्य राष्ट्रपति के नाम से किये जाते है।। शक्तियां निम्न हैं :-

  1. Appointment And पदच्युति सम्बन्धी शक्तियां- राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री तथा उसके सलाह से अन्य मंत्रियोंं की Appointment करता है। राष्ट्रपति, राज्यपाल, सर्वोच्च न्यायालय व उच्च न्यायालय के न्यायाधीश, भारत के राजदूत ,भारत का महान्यायवादी, नियंत्रक And महालेखा परीक्षक, वित्त आयोग, योजना आयोग आदि के सदस्यों की Appointment करता है। राष्ट्रपति उक्त पदााधिकारियों को विशेष प्रक्रिया का पालन करते हुए पद से हटा भी सकता है। 
  2. शासन संचालन सम्बन्धी शक्तियॉं –शासन के सुचारू Reseller से संचालन हेतु राष्ट्रपति, विभिन्न प्रकार के नियम बना सकता है। इसके अतिरिक्त संधीय क्षेत्रो के प्रशासन का दायित्व भी राष्ट्रपति का ही हैं। 
  3. वैदेशिक मामलों से सम्बन्धित शाक्तियॉं- राष्ट्रपति राजदूतोंं की Appointment व विदेशी राजदूतों को मान्यता देते हैं। समस्त अन्तार्राष्ट्रीय संधियॉं व समझौते व वैदेशिक कार्य राष्ट्रपति के नाम किये जातें है।
  4. सेना सम्बन्धी शक्तियॉं –राष्ट्रपति तीनों सेनाओं ( जल,थल वायु ) का सर्वोच्च सेनापति होता है। तीनों सेनाओं के सेनापतियों की Appointment, यद्धु पा्ररम्भ व बंद करने की घोषणा करता है। 

2. व्यवस्थापिका संबंधी शक्तियॉं-

विधायी या व्यवस्थापिका सम्बन्धी शक्तियॉं निम्नलिखित है –

  1. संसद संगठन सम्बन्धी शक्तियां- राष्ट्रपति को ससंद के दोनों सदनों के लिये सदस्यों को मनोनीत करने करने का अधिकार है। लोक सभा के लिये आंग्ल – Indian Customer 2 सदस्य, राज्य सभा के लिये 12 सदस्यों को मनोनीत करता है । 
  2. संसद के सत्रों से सम्बन्धित शक्तियॉ – संसद के दाने ों सदनों के सत्रों की, किसी भी समय बैठक आमंत्रित कर सकता है। किसी भी Single सदन या संयुक्त अधिवेशन में भाषण दे सकता है, संदेश भेज सकता है। सदन की बैठक स्थगित करा सकता है। Single वर्ष में संसद के दो सत्रों (अधिवेशन) का होना अनिवार्य है। 
  3. विधेयकों की स्वीकृति या अस्वीकृति सम्बन्धी शाक्तियाँ – संसद द्वारा पारित कोर्इ भी विधेयक राष्ट्रपति के हस्ताक्षर हुए बिना कानून नहीं बन सकता तथा कछु विधये क ऐसे होते ह,ै जिन्हें सदन में प्रस्तुत करने से पूर्व राष्ट्रपति की स्वीकृति लेनी पडती है जैसे – वित्त विधेयक या कोर्इ नया राज्य बनाने सम्बन्धी विधेयक।
  4. अध्यादेश जारी करने की शक्ति – जब संसद का सत्र नहीं चल नहीं चल रहा हो और कानून की Need हो, तो राष्ट्रपति अध्यादेश जारी करके कानून की पूर्ति कर सकता हैं। 

3. वित्तिय संबंधी शक्तियॉं- 

राष्ट्रपति की वित्तीय शक्तियॉं मे निम्नलिखित आती है –

  1. बजट प्रस्तुत करने की शक्तियां –प्रत्येक वर्ष के प्रारंभ में ससंद की स्वीकृति हेतु वाषिंर्क बजट राष्ट्रपति की ओर से First लोकसभा में और बाद में राज्य सभा में प्रस्तुत Reseller जाता है । 
  2. कोर्इ भी वित्त विधेयक राष्ट्रपति की स्वीकृति लिये बिना लोक सभा में प्रस्तुत नहीं Reseller जा सकता है।
  3. आकस्मिकता निधि के नियंत्रण सम्बन्धी शाक्तियॉं- राष्ट्रपति संसद की पूर्व स्वीकृति के बिना इस निधि से धन व्यय की स्वीकृति प्रदान कर सकता है । 
  4. वित्त आयोग की Appointment सम्बन्धी शक्तियां- वित्तीयं मामलों में परामर्श लेने के लिए वित्त आयोग की Appointment करता है । 
  5. संसद द्वारा नियम न बनाये जाने की स्थिति में, राष्ट्रपति भारत की संचित – निधि सें धन निकालनें या जमा करने से सम्बन्धित नियम बना सकता है । 

4. न्याय संबंधी शक्ति- 

किसी अपराध के लिए दण्डित किये गये व्यक्ति को राष्ट्रपति चाहे तो क्षमा दान कर सकता है। किसी दण्ड को कम कर सकता है। उसकी सजा को परिवर्तन कर सकता है-मृत्यु दण्ड को आजीवन कारावास कर सकता है। ऐसा सब विधि मंत्रालय की सलाह पर Reseller जा सकता है। राष्ट्रपति पर फौजदारी मुकदमा नहीं चलाया जा सकता। 

5. संकट कालीन शक्तियॉं – 

संविधान द्वारा राष्ट्रपति को प्राप्त समस्त शक्तियों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण And व्यापक शक्ति संकट कालीन शक्तियॉें है । इस शक्ति के आधार पर संकटकाल (आपातकाल) की घोषणा करके देश के संविधान को लगभग Singleात्मक स्वस्प प्रदान कर सकता है। निम्न लिखित तीन परिस्थितियों में संकट काल को घोषणा कर सकता है – 

  1. वाह्य संकट – Fight बाहरी आक्रमण की स्थितिया शंका उत्पन्न होने पर राष्ट्रपति संकट काल की घोषणा कर सकता है । 
  2. आंतरिक संकट – 
    1. देश के आंतरिक भाग में सशस्त्र विद्रोह की स्थिंति अथवा राज्यों में संवैधानिक तंत्र के विफल होने पर संकट काल की घोषणा कर सकता है । 
    2. राष्ट्र में वित्तिय संकट उत्पन्न हो जाने पर राष्ट्रपति संकट काल की घोषणा कर सकता है। 

44वें संविधान संशोधन के According राष्ट्रपति ऐसी संकटकालीन घोषणा केवल मंत्रीमण्डल की लिखित सिफाारिश पर ही कर सकता है । ऐसी संकटकालीन घोषणा की पुष्टि संसद के दोनों के द्वारा Single मास के अंदर होना अनिवार्य है, नहीं तो वह घोषणा स्वंय समाप्त हो जाती है । संकटकालीन घोषणा के समय यदि लोकसभा भंग है अथवा उसका अधिवेशन नहीं चल रहा है तो इसकी पुष्टि राज्य सभा द्वारा Single महीने के अंदर होनी होती हैं तथा बाद मे लाके सभा द्वारा अधिवेशन शुरू होने के Single मास के अंदर हो जानी चाहिए। 

संसद द्वारा Single बार पुष्टि हो जाने पर आपातकाल का प्रभाव घोषणा की तिथी से छह महीनें तक रहता है। यदि इसको छह महीनें से आगे बढाना है तो संसद द्वारा दूसरा प्रस्ताव पास Reseller जाना आवश्यक होता है। इस प्रकार आपातकाल अनिश्चित काल तक जारी रहता है। परन्तु स्थिति में सुधार होने पर राष्ट्रपति द्वारा आपातकाल समाप्त हो सकता है। संविधान के 44वें संशोंधन के According लोकसभा के 10 प्रतिशत या अधिक सदस्य लोकसभा के अधिवेशन की मांग कर सकते हैं तथा उस अधिवेशन में साधारण बहुमत द्वारा आपातकाल को रद्द अथवा समाप्त Reseller जा सकता है । 

भारत में तीन बार राष्ट्रीय आपात काल की घोषणा की जा चूकी है। पहली 26-10-1962 को चीनी आक्रमण के समय । दसू री 03-12-1977 को भारत – पाक Fight के समय। तीसरी 21 मार्च 1975 को की गर्इ । तीसरी घोषणा आंतरिक गडबडी को आधार मान कर की गर्इ जिसको लागू करने का कोर्इ औचित्य नहीं था । 

राष्ट्रपति की स्थिति – 

राष्ट्रपति का पद ख्याति और गौरव का है न कि वास्तविक शाक्तियों का पद। उसको प्राप्त शक्तियों का प्रयोग वह स्वयं नहीं करता बल्कि राष्ट्रपति के नाम से मंत्री -परिषद द्वारा Reseller जाता है। यदि मंत्रीपरिषद् की इच्छा के विरूद्ध कार्य करता है तो यह संवैधानिक सकंट माना जाता है। इसके लिए उस पर महाभियोग चलाया जा सकता है और उसे हटाया भी करता है। इससिए राष्ट्रपति के पास प्रधानमंत्री की बात मानने के अतिरिक्त और कोर्इ विकल्प नहीं है। आखिकार प्रंधानमंत्री कायर्पालिका का मुखिया है। राष्ट्रपति के साथ निरंतर सम्पर्क बनाए रखता है।

मंत्री -परिषद् लोकसभा के प्रति उत्तरदायी होता है केवल अविश्वास का प्रस्ताव पारित होने पर ही हटार्इ जा सकती है। परन्तु संविधान के According मंत्री-परिषद् राष्ट्रपति के प्रसाद काल तक कार्य करते रह सकती है। संविधान के 42 संविधान के According राष्ट्रपति मंत्री -परिषद् के परामर्श के According कार्य करने के लिए बाध्य है। वह स्वतंत्र Reseller से कार्य नहीं कर सकता। 

राष्ट्रपति की शक्तियां औपचारिक हैं। प्रधानमंत्री के नेतृत्व में मंत्री-परिषद् ही वास्तविक कार्यपालिका है। संविधान के चवालीसवें संशोधन के According राष्ट्रपति संसद द्वारा पारित किसी विधेयक को पुन: विचार के लिए वाापिस भेज सकता है। यदि विधेयक पुन: पारित कर दिया है तो राष्ट्रपति को अपनी स्वीकृति देनी ही पडत़ ी है। संि वधान सभा में डॉ. बी आर अम्बेकडर ने ठीक कहा था ‘‘राष्ट्रपति की स्थिति बिल्कुल वही है। जो ब्रिटिश संविधान मे King की होती है।’’ परन्तु वास्तविकता में भारत का राष्ट्रपति मात्र रबर की मुहर नही है। संविधान के According Indian Customer संविधान की Safty का दायित्व राष्ट्रपति का है। वह नवयुक्ति प्रधानमंत्री को निर्धारित समय के अंदर विश्वास का मत प्राप्त करने के लिए कह सकता है। देश का सारा प्रशासन राष्ट्रपति के नाम से चलाया जाता है। वह किसी भी मंत्री से कोर्इ भी जानकारी प्राप्त कर सकता है। मंत्री- परिषद् द्वारा लिए नए All निर्णयों की सूचना राष्ट्रपति को भेज दी जाती है । उसे प्रशासन से संबंधित All जानकारी भी दी जाती हैं। राष्ट्रपति पद की उपयोगिता का पता उसी बात से लग जाता है। कि उसे सरकार को परामर्श, प्रेरणा अथवा प्रोत्साहन तथा चेतावनी देने का अधिकार है इसे संदर्भ में राष्ट्रपति Single परामर्शदाता, मित्र तथा आलाचे क के Reseller में उभर कर सामने आता है।

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