रामधारी सिंह दिनकर का जीवन परिचय

ओजस्वी काव्य का सृजन करने वाले कवि श्री रामधारी सिंह दिनकर का जन्म सन् 1908 में बिहार के मुंगेर जिले के सिमरिया धार ग्राम में हुआ था। हिन्दी की सेवाओं पर आपको पद्यभूषण और साहित्य अकादमी और Indian Customer ज्ञानपीठ पुरस्कार से भी सम्मानित Reseller गया। सन् 1974 में आपका स्वर्गवास हुआ।

Creationएँ-

  1.  काव्य-रेणुका, हुँकार, रसवन्ती, कलिंग विजय, बापू, नीम के पत्ते, कुरूक्षेत्र, नील कुसुम, उर्वशी ।
  2. गद्य-मिट्टी की ओर, अर्द्ध-नारीश्वर, संस्कृति के चार अध्याय।

    भाव पक्ष- 

    दिनकर जी राष्ट्रीय भावनाओं के कवि हैं। इन्होंने देश की राजनैतिक व सामाजिक परिस्थतियों पर लेखनी चलार्इ। इनके विद्रोही स्वर ललकार व चुनौती के Reseller में प्रस्फूटित होकर देश पर बलिदान होने की पे्ररणा देते हैं। इन्होंने समाज की Meansव्यवस्था तथा आर्थिक असमानता के प्रति रोष प्रकट Reseller जो प्रगतिवादी Creationएँ कहलायीं। इन्होंने शोषण, उत्पीड़न, वर्ग विषमता की निर्भीकता से निंदा की ।

    ‘‘छात्रि ! जाग उठ आडम्बर में आग लगा दे।
    पतन ! पाप, पाखंड जले, जग में ऐसी ज्वाला सुलगा दे।’’

    इनके काव्य में राष्ट्र प्रेम, विश्व प्रेम, प्रगतिवाद, Indian Customer सभ्यता संस्कृति से प्रेम, Fight शांति, आधुनिक काल का पतन, किसान मजदूर की दयनीय दशा, उच्चवर्ग की शोषण नीति तथा जीवन के विभिन्न क्षेत्रों के All विषयों का सजीव चित्रण है और समता, समानता के स्वप्न हैं। उन्होंने देशप्रेम से प्रेमोन्मत होकर कहा है-
    ‘‘ले अंगडार्इ, हिल उठे धरा, कर निज विराट स्वर में निनाद। तू शैल राट। हुँकार भरे। फट जाये कुहा, भागे प्रमाद।’’

    कला पक्ष- 

    दिनकर जी राष्ट्रीय कवि हैं, जो अतीत के सुख स्वप्नों को देखकर उनसे उत्साह व प्रेरणा ग्रहण करते हैं। वर्तमान पर तरस व उनके प्रति विद्रोह की भावना जाग्रत करते हैं। इसलिये उन्हें क्रान्तिकारी उपादानों से अलंकृत Reseller है। भाषा-भाषा शुद्ध संस्कृत, तत्सम, खड़ी बोली सम्मिलित है। शैली ओज And प्रसाद गुण युक्त है। नवीन प्रयोगों द्वारा व्यंजना शक्ति भी बढ़ार्इ । छंद-Creationओं में मुक्तक And प्रबन्ध दोनों प्रकार की शैलियों का योग है। अलंकार-काव्य में उपमा, उत्प्रेक्षा, Resellerक, अनुप्रास, श्लेष आदि अलंकारों का प्रयोग हुआ है।

    साहित्य मेंं स्थान-

    अपनी बहुमुखी प्रतिभा के कारण ‘दिनकर जी’ अत्यन्त लोकप्रिय हुए। उन्हें Indian Customer संस्कृति And History से अधिक लगाव था। राष्ट्रीय धरातल पर स्वतन्त्रता की भावना का स्फुरण करने वाले कवियों में ‘दिनकर जी’ का अपना विशिष्ट स्थान है।

    केन्द्रीय भाव-

    कवि ने ‘परशुराम का उपदेश’ कविता द्वारा देशवासियों में ओज और वीरता का भाव भरा है। अन्याय और अत्याचार के विरूद्ध आवाज उठाना Human का धर्म है। अत्याचार और अन्याय सहना कायरों का काम है। Human को प्रकृति से अनेक नैसर्गिक शाक्तियाँ प्राप्त हुर्इं है, जिनकी पहचान हो जाने पर उसकी भुजाओं में अत्यधिक बल आ जाता है कि Single-Single वीर सैकड़ों को Defeat कर पाता है। अब समय आ गया है कि प्रत्येक भारतवासी अपनी शाक्ति को पहचाने और Single जुट होकर शत्रु पर टूट पड़े। इसलिए कवि देशवासियों से कहता है-’बाहों की विभा सँभालो।’ कविता में स्थान-स्थान पर अलंकारों, लाक्षणिक प्रयोगों और प्रतीकों के प्रयोग से कवि ने काव्य सौंदर्य को बखूबी उभारा है।

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