राज्यपाल की Appointment, पद के लिए योग्यताएँ, कार्य और शक्तियां 

राज्यपाल की Appointment, पद के लिए योग्यताएँ, कार्य और शक्तियां 

By Bandey

अनुक्रम

राज्यपाल की Appointment अनुच्छेद 153 के अधीन भारत का संविधान यह व्यवस्था करता है कि, प्रत्येक राज्य का Single राज्यपाल होगा। परन्तु साथ ही यह व्यवस्था भी की गई है कि Single व्यक्ति दो या इससे अधिक राज्यों के राज्यपाल के Reseller में कार्य कर सकता है।

राज्यपाल की Appointment

जब संविधान निर्माण सभा में राज्यपाल के पद की व्यवस्था के बारे में विचार Reseller जा रहा था तो राज्यपाल की Appointment के लिए कई प्रस्ताव प्रस्तुत किए गए। परन्तु अन्तत: इस बात पर Agreeि हो गई कि क्योंकि राज्यपाल ने राज्य के संवैधानिक मुखिया के Reseller में ही कार्य करना था, इसलिए राज्यपाल की राष्ट्रपति के द्वारा Appointment की व्यवस्था करना सबसे उपयुक्त बात होगी। यह भी अनुभव Reseller गया कि यदि राज्यपाल और मुख्यमन्त्री दोनों निर्वाचित प्रतिनिधि होंगे तो दोनों के बीच टकरावा की संभावना बन सकती थी, क्योंकि Single निर्वाचित राज्यपाल नाममात्र के King के Reseller में कार्य करना पसंद नहीं करेगा। इस बात के लिए Agreeि हुई कि संसदीय प्रबन्ध में Single निर्वाचित राज्यपाल Single गोल छिद्र में चौरस वस्तु के समान होगा। यह भी प्रस्ताव Reseller गया था कि राज्य के विधानकार चार सदस्यों, जोकि राज्य के निवासी हों, के Single पैनल का चयन करें और देश का राष्ट्रपति इन चारों में से किसी Single को राज्यपाल नियुक्त करे। परन्तु यह अनुभव Reseller गया कि राज्य के विधायकों के द्वारा चार उम्मीदवारों का पैनल बनाते समय व्यवहार में राजनीति का खेल खेला जा सकता था। इससे राज्यपाल को संघ और राज्य के बीच Single सम्पक्र सूत्र बनाने की Need परोक्ष हो जाएगी। इसलिए यह निर्णय Reseller गया कि राज्यपाल भारत के राष्ट्रपति के द्वारा नियुक्त Reseller जाएगा। इसके According संविधान के अनुच्छेद 155 में लिखा गया कि फ्राज्य के राज्यपाल की Appointment राष्ट्रपति के द्वारा अपने हस्ताक्षरों और मोहर से जारी आदेश के द्वारा की जाएगी।


दो महत्त्वपूर्ण परम्पराएँ जिनके आधार पर राज्यपाल की Appointment की जाती है- पहली परम्परा यह है कि राज्यपाल उस राज्य का निवासी नहीं होना चाहिए जिस राज्य में उसकी राज्यपाल के Reseller में Appointment की जाती है। इस परम्परा का आधार यह विचार है कि यदि राज्यपाल उस राज्य का निवासी होगा तो वह स्वतंत्र और निष्पक्ष ढंग से कार्य नहीं कर सकेगा। उसकी राज्य में अपनी राजनीतिक प्रतिबद्व ताएँ होंगी और इस बात की प्रत्येक संभावना विद्यमान होगी कि वह राज्य के आंतरिक मामलों और राजनीति में हस्तक्षेप करेगा। प्राय: राष्ट्रपति के द्वारा इस परम्परा का सम्मान Reseller जाता है, परन्तु इस परम्परा से संबंधित कुछ अपवाद भी रहे हैं जैसे उदाहरण के लिए डॉ एच सी मुखर्जी को उनके पैतृक राज्य पश्चिमी बंगाल का राज्यपाल नियुक्त Reseller गया था। इसी प्रकार कुछ समय के लिए सरदार उज्जल सिह को पंजाब का राज्यपाल नियुक्त Reseller गया था। पंजाब के भूतपूर्व राज्यपाल लैफ्रिटनैंट जनरल (रिटायर्ड) बी के एन छिब्बर भी पंजाबी थे, परन्तु इनको परम्परा का अपवाद कह कर उपेक्षित Reseller जा सकता है। राज्यपाल नियुक्त किए जाने के संबंध में दूसरी परम्परा यह है कि किसी विशेष राज्य का राज्यपाल नियुक्त करने के लिए किसी व्यक्ति के चयन को अंतिम Reseller देने से First केन्द्र सरकार को उपेक्षित कर दिया जाता है। उदाहरण के Reseller में 1967 में हरियाणा के मुख्यमन्त्री राव बीरेन्द्र सिह के राज्यपाल की Appointment से संबंधित विचारों को केन्द्र सरकार ने स्वीकार नहीं Reseller था। बिहार के मुख्यमन्त्री महामाया प्रसाद सिन्हा के श्री एन एन कानगो की बिहार के राज्यपाल के Reseller में Appointment का विरोध Reseller था। परन्तु केन्द्र ने मुख्यमन्त्री के परामर्श को स्वीकार नहीं Reseller था। पश्चिमी बंगाल और तमिलनाडू की सरकारों ने सदैव ही राज्यपाल की Appointment से संबंधित अपनी भूमिका (सिफारिश करने की) पर बल दिया है। परन्तु अब यह स्थायी Reseller में निर्णय कर लिया गया है कि राज्यपाल की Appointment करते समय केन्द्र सदैव संबंध्ति राज्य की मन्त्रि-परिषद् का परामर्श लेगा और जहां तक हो सकेगा, ऐसे परामर्श को स्वीकार भी करेगा। इन दो अच्छी परम्पराओं के साथ-साथ देश में Single बुरी परम्परा भी विद्यमान रही है और वह है कि चुनाव में पराजित हुए राजनीतिक नेताओं की अलग-अलग राज्यों के राज्यपाल के Reseller में Appointment करना। Single और बुरी परम्परा यह पड़ रही है कि केन्द्र सरकार बदलने के बाद राज्यपालों का थोक में हस्तांतरण या उनको हटाया जाना। Need इस बात की है इन बातों से उपर उठा जाए और योग्यता के आधार पर ही राज्यपाल की Appointment की जाए।

राज्यपाल के पद के लिए योग्यताएँ

संविधान का अनुच्छेद 157 यह शर्त रखता है कि कोई भी व्यक्ति राज्यपाल की Appointment के लिए योग्य नहीं हो सकता जोकि भारत का नागरिक न हो और जिसकी आयु 35 वर्ष से कम हो। अनुच्छेद 158 कुछ अन्य योग्यताओं का वर्णन रखता है :

  1. राज्यपाल संसद के किसी भी सदन का या किसी राज्य की विधानसभा का सदस्य नहीं होना चाहिए और यदि संसद के किसी भी सदन के सदस्य या किसी भी राज्य की विधानपालिका के सदस्य को राज्यपाल नियुक्त Reseller जाता है तो उसी दिन से यह समझा जाएगा कि उसकी सदन की सदस्यता समाप्त हो गई है जिस दिन से वह राज्यपाल के Reseller में पद संभाल लेगा।
  2. राज्यपाल कोई लाभदायक पद ग्रहण नहीं कर सकता।
  3. वह किसी भी न्यायालय के द्वारा घोषित दिवालिया नहीं होना चाहिए। अधिकतर सार्वजनिक जीवन में अच्छे व्यक्तित्व और मान-सम्मान वाले व्यक्ति या सक्रिय राजनीति छोड़ चुके किसी वरिष्ठ राजनीतिक नेता या सेवानिवृत्त सिविल या सैनिक अफसरों को ही राज्यपाल के Reseller में नियुक्त Reseller जाता है।

वेतन और भत्ते

इस समय राज्यपाल रुपए मासिक वेतन के Reseller में प्राप्त करता है, बिना किराए का मुफ्रत सरकारी निवास और संचार तथा यातायात की सुविध मिलती है, उसके स्तर, कर्त्तव्यों और पद की श्रेष्ठता को देखते अलग-अलग प्रकार के कई अन्य भत्ते मिलते हैं। राज्यपाल के पद के संबंध में Reseller जाने वाला व्यय, संबंधित राज्य के धन में से Reseller जाता है।

जहां कभी Single ही व्यक्ति को दो या इससे अधिक राज्यों का राज्यपाल बनाया जाता है वहां उसको मिलने वाले वेतन और भत्ते राष्ट्रपति के आदेश के अुनसार उसी अनुपात में संबंधित राज्यों में बाँट दिए जाते हैं। राज्यपाल का वेतन और भत्ते उनके कार्यकाल के दौरान कम नहीं किए जा सकते।

कार्यकाल

राज्यपाल की Appointment पांच वर्ष के लिए की जाती है परन्तु वह तब तक अपने पद पर रह सकता है जब तक कि राष्ट्रपति चाहे। राष्ट्रपति उसको किसी समय पद से हटा सकता है या उसका हस्तांतरण कर सकता है। यहां तक कि 5 वर्ष की अवधि पूरी होने के बाद भी राज्य का राज्यपाल तब तक अपने पद पर बना रह सकता है जब तक कि उसके स्थान पर नया नियुक्त हुआ व्यक्ति अपना पद नहीं संभाल लेता। 1999 में पंजाब में ऐसा ही देखने को मिला। भूतकाल में हरियाणा और पश्चिमी बंगाल के राज्यपाल का पद अस्थायी Reseller में रिक्त हो जाता है या उसकी मृत्यु के कारण रिक्त हो जाता है तो राज्य के उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश कार्यवाहक राज्यपाल के Reseller में कार्य करता है। राज्यपाल किसी भी समय अपने पद से त्याग-पत्र दे सकता है। जून, 1991 में पंजाब के राज्यपाल जनरल (सेवानिवृत्त) ओ पी मल्होत्रा ने पंजाब में चुनाव स्थगित किए जाने के विरोध में अपने पद से त्याग-पत्र दे दिया था। मार्च, 1995 में तमिलनाडू विधानसभा ने Single प्रस्ताव पास करके मांग की थी कि राज्यपाल श्री चन्ना रैडी को वापस बुलाया जाए परन्तु केन्द्र ने राज्य विधानसभा तथा सरकार की ऐसी मांग प्रस्तुत करने का अधिकार को स्वीकार नहीं Reseller था।

राज्यपाल के द्वारा शपथ लेना या प्रतिज्ञा लेनी

प्रत्येक राज्यपाल और राज्यपाल के कर्तव्य निभा रहे प्रत्येक व्यक्ति को अपना पद संभालने से First राज्य के उच्च न्यायालय के चीपफ जस्टिस की उपस्थिति में अपने पद की शपथ उठानी अथवा प्रतिज्ञा लेनी पड़ती है।

राज्यपाल की कानूनी छूटें

राज्य के राज्यपाल को राज्य का मुखिया होने के नाते अपने कार्य निपटाने के संबंध में हुए कुछ विशेष कानूनी छूटें प्राप्त हैं। संविधान के अनुच्छेद 361 के अधीन राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री या किसी राज्य का राज्यपाल उनके पद के अधिकारों और कर्त्तव्यों का पालन करने के प्रति या अपने उन अधिकारों और कर्त्तव्यों का पालन करते समय किए गए किसी कार्य के प्रति किसी भी न्यायालय के समक्ष उत्तरदायी नहीं होता। इसी प्रकार उसके कार्यकाल के दौरान राज्यपाल के विरुद्व कोई भी पफौजदारी या सिविल कार्यवाही नहीं की जा सकती। राज्यपाल के कार्यकाल के दौरान उसकी गिरफ्रतारी या केद करने के लिए किसी भी न्यायालय के द्वारा कोई भी आदेश जारी नहीं Reseller जा सकता।

राज्यपाल के कार्य और शक्तियां

राज्य का मुखिया होने के नाते राज्यपाल को बहुत-सी शक्तियां और सम्मान मिलता है जिसकी तुलना भारत के राष्ट्रपति को प्राप्त शक्तियों और सम्मान से की जा सकती है। जैसा कि डी डी बसु लिखते हैं, फ्राज्य के राज्यपाल की शक्तियां देश के राष्ट्रपति की शक्तियों के समान ही हैं। अन्तर केवल यह है कि राज्यपाल के पास कोई कूटनीतिक (डिप्लोमैटिक) सैनिक या संकटकालीन शक्तियां नहीं होती। परन्तु जबकि भारत के राष्ट्रपति के पास कोई स्वैच्छिक शक्तियां नहीं होतीं, राज्यपाल के पास कुछ स्वैच्छिक शक्तियां होती हैं, जो राज्य में उसकी स्थिति को सुदृढ़ बनाती हैं। राज्यपाल की शक्तियों का निम्नलिखित शीर्षकों के अधीन वर्णन Reseller जा सकता है:

कार्यकारी शक्तियाँ

राज्यपाल राज्य का मुखिया होता है। संविधान राज्य की कार्यपालिक शक्तियां राज्यपाल को सौंपता है जिनका प्रयोग उसने प्रत्यक्ष Reseller में या अपने अधीन कर्मचारियों के द्वारा करना होता है। वह मुख्यमन्त्री की Appointment करता है और मुख्यमन्त्री की सिपफारिश पर अन्य मन्त्रियों को नियुक्त करता है। मन्त्री तब तक पद पर रह सकते हैं जब तक राज्यपाल चाहे। यदि राज्यपाल अनुभव करे कि सरकार को बहुमत का विश्वास प्राप्त नहीं या वह उचित ढंग से कार्य नहीं कर रही तो वह राज्य के मुख्यमन्त्री को पद से हटा सकता है जैसा कि जुलाई, 1984 में जम्मू और कश्मीर के राज्यपाल श्री जगमोहन ने Reseller था जब उन्होंने डॉ फारूक अब्दुल्ला को मुख्यमन्त्री के पद से हटा दिया था। राज्य में All महत्त्वपूर्ण Appointmentयां (एडवोकेट जनरल, राज्य लोक सेवा आयोग का चेयरमैन और सदस्य, विश्वविद्यालय के उपकुलपति) राज्यपाल के द्वारा की जाती हैं। परन्तु ऐसा करते समय, राज्य में राष्ट्रपति राज्य लागू होने की स्थिति को छोड़कर, राज्यपाल राज्य के मुख्यमन्त्री और मन्त्रि-परिषद् की सिपफारिशों पर निर्भर करता है। मुख्यमन्त्री को राज्य के प्रशासन और मन्त्रि-परिषद् के द्वारा लिए गए निर्णयों से राज्यपाल को सूचित करते रहना पड़ता है। राज्यपाल राज्य के प्रशासन से संबंधित मुख्यमन्त्री से जानकारी मांग सकता है। वह मुख्यमन्त्री से यह मांग कर सकता है कि मन्त्रि-परिषद् में निर्णय लेने से पूर्व किसी मन्त्री ने कोई निर्णय लिया हो तो उस पर मन्त्रि-परिषद् के द्वारा विचार Reseller जाए। राष्ट्रपति उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की Appointment समय राज्यपाल से परामर्श भी लेता है। राज्यपाल राज्य के All विश्व-विद्यालयों के चांसलर के Reseller में कार्य करता है।

राज्य का प्रशासन राज्यपाल के नाम पर चलाया जाता है। वह उन All विषयों जोकि राज्य की विधान पालिका के अधिकार क्षेत्र में आते हैं, का प्रशासन चलता है। वह मन्त्रि-परिषद् के कार्य-व्यवहार को उचित ढंग से चलाने के लिए नियम बनाता है। वह राज्य सरकार को यह कह सकता है कि वह अपने किसी निर्णय पर पुन: विचार करें। असम और सिक्किम के राज्यपालों को अनुसूचित कबीलों के हितों की रक्षा करने के लिए विशेष शक्तियां प्राप्त हैं।

सामान्य Reseller में राज्यपाल अपने All कार्यपालिक शक्तियों का प्रयोग राज्य मन्त्रि-परिषद् की सिफारिश के According करता है। राज्यपाल के All कार्यों के लिए मन्त्री उत्तरदायी होते हैं। परन्तु घोषित संकटकाल स्थिति में राज्यपाल कार्यकारिणी का वास्तविक कार्यपालक मुखिया बन जाता है।

वैधानिक शक्तियां

राज्यपाल राज्य विधानपालिका का सदस्य नहीं होता परन्तु इसके बावजूद वह इसका Single अंग माना जाता है। राज्य विधानपालिका के द्वारा पास किए बिल तब ही कानून बनते हैं जब इन पर राज्यपाल हस्ताक्षर कर देता है। वह राज्य विधानसभा के अधिवेशन बुला सकता है और इनको स्थागित कर सकता है। वह राज्य विधानपालिका को भंग कर सकता है। सामान्य Reseller में उसके द्वारा इन शक्तियों का प्रयोग राज्य के मुख्यमन्त्री के परामर्श के साथ Reseller जाता है। राज्य विधानसभा का अधिवेशन राज्यपाल के भाषण से आरंभ होता है। वह आम चुनावों के बाद विधानपालिका के First अधिवेशन में भाषण देता है और विधानपालिका का प्रत्येक वर्ष का First अधिवेशन राज्यपाल के First अधिवेशन में भाषण देता है और विधनपालिका का प्रत्येक वर्ष का First अधिवेशन राज्यपाल के भाषण से आरंभ होता है। यदि वह अनुभव करे कि आंग्ल-Indian Customer भाईचारे को राज्य विधानसभा में उचित प्रतिनिधित्व नहीं मिला तो वह इस भाई-चारे का सदस्य राज्य विधानसभा में मनोनीत कर सकता है। वह किसी भी बिल पर अपनी Agreeि रोक सकता है या किसी भी Single बिल (वित्तीय बिल को छोड़कर) को राज्य विधानसभा को पुन: विचार के लिए वापस कर सकता है। परन्तु यदि वह बिल दूसरी बार पास हो जाता है तो राज्यपाल इस पर अपनी Agreeि प्रकट कर अपने Meansात् हस्ताक्षर करने से इन्कार नहीं कर सकता। वह राज्य विधानपालिका के द्वारा पास कुछ बिलों को राष्ट्रपति की स्वीकृति प्राप्त करने के लिए Windows Hosting रख सकता है। इनमें अनिवार्य सम्पत्ति ग्रहण करने से या उच्च न्यायालय के अधिकारों को ठेस पहुंचाने से संबंधित बिल शामिल होते हैं। जब राज्य विधनपालिका का अधिवेशन न चल रहा हो तो राज्यपाल अध्यादेश जारी कर सकता है। राज्यपाल के द्वारा जारी ऐसे अध्यादेश की शक्ति वैसी ही होती है जोकि विधानसभा के द्वारा पास कानून की होती है। जब राज्य विधानपालिका का अधिवेशन जिस दिन से आरंभ होता है उससे 6 सप्ताह बाद यह अध्यादेश लागू नहीं रहता। यह तो भी समाप्त हो जाता है यदि राज्य विधानपालिका इस अध्यादेश को अस्वीकार करने का प्रस्ताव पास कर देती है।

वित्तीय शक्तियां

राज्य विधानपालिका में Single वित्तीय बिल राज्यपाल की पूर्ण स्वीकृति लेकर ही प्रस्तुत Reseller जा सकता है। वह वार्षिक बजट राज्य विधान पालिका में प्रस्तुत करने के लिए कहता है। राज्य का आकस्मिक घटना फंड (Contigency Fund) उसके अधिकार में होता है और वह इसमें से किसी भी व्यय के आदेश दे सकता है और बाद में इसकी स्वीकृति राज्य विधानसभा से प्राप्त की जाती हैं वास्तव में इन All शक्तियों का प्रयोग राज्यपाल राज्य मन्त्रि-परिषद् की परामर्श के According करता है।

न्यायिक शक्तियां

राज्यपाल की कुछ न्यायिक शक्तियां भी हैं। वह जिला न्यायाधीशों और अन्य न्याया अधिकारियों के चयन, उनकी Appointmentयों और पदोन्नतियों को प्रभावित कर सकता है। अनुच्छेदों 161 के अधीन राज्य की कार्यपालिका के अधिकार-क्षेत्र में पड़ते किसी भी विषय से संबंधित किसी भी कानून के उल्लंघन के कारण दोषी ठहराए और बन्दी बनाए किसी भी व्यक्ति के दण्ड को क्षमा कर सकता है, उसके दण्ड को कम कर सकता है या आम मापफी दे सकता है, या उसकी केद के दण्ड को स्थगित, क्षमा या कम कर सकता है। राष्ट्रपति संबंधित राज्य की उच्च न्यायालय के चीफ जस्टिस और अन्य न्यायाधीशों की Appointment समय उस राज्य के राज्यपाल से भी परामर्श करता है।

फुटकल शक्तियां

उपर्युक्त described शक्तियों के साथ-साथ राज्यपाल कुछ अन्य कार्य भी करता है। वह राज्य लोक सेवा आयोग (एस पी एस सी) से वार्षिक रिपोर्ट प्राप्त करता है और इस पर टिप्पणियों के लिए इसको मन्त्रि-परिषद् के पास प्रस्तुत करता है। फिर वह यह रिपोर्ट और इस पर मन्त्रि-परिषद् की टिप्पणियां विधानसभा के स्पीकर के सुपुर्द करता है ताकि वह इसको विधानसभा में रख सके। यदि वह यह अनुभव करता है कि राज्य प्रशासन संविधान के According नहीं चलाया जा रहा तो वह अनुच्छेद 356 के अधीन राष्ट्रपति राज्य लागू होने की स्थिति में राज्यपाल राज्य प्रशासन के वास्तविक मुखिया के Reseller में कार्य करता है। राष्ट्रपति की ओर से वह कानून और नीतियां लागू करके राज्य का प्रशासन चलाता है। राष्ट्रपति के राज्य का वास्तविक Means राज्यपाल का शासन होता है। वह राज्य सरकार या राज्य विधानसभा भंग करने का भी अधिकार रखता है। अनुच्छेद 356 के अधीन अपने अधिकारों का प्रयोग करते समय राज्यपाल अपने स्व-विवेक से भी कार्य कर सकता है।

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