मौलिक अधिकारों की विशेषताएँ –

मौलिक अधिकारों की विशेषताएँ

By Bandey

अनुक्रम

व्यक्ति और राज्य के आपसी सम्बन्धों की समस्या सदैव ही जटिल रही है और वर्तमान समय की प्रजातन्त्रीय व्यवस्था में इस समस्या ने विशेष महत्त्व प्राप्त कर लिया है। यदि Single ओर शान्ति तथा व्यवस्था बनाये रखने के लिए नागरिकों के जीवन पर राज्य का नियन्त्रण आवश्यक है तो दूसरी ओर राज्य की शक्ति पर भी कुछ ऐसी सीमाएँ लगा देना आवश्यक है जिससे राज्य मनमाने तरीके से आचरण करते हुए व्यक्तियों की स्वतन्त्रता और अधिकारों के विरुद्व कार्य न कर सके। मौलिक अधिकार व्यक्तिगत स्वतन्त्रता और अधिकारों के हित में राज्य की शक्ति पर प्रतिबन्ध लगाने का श्रेष्ठ उपाय हैं।

फ्रांस की राज्य क्रान्ति ने विश्व को ‘स्वतन्त्रता, समानता और भ्रातृत्व’ का सन्देश दिया था। क्रान्ति के उपरान्त फ्रांस की राष्ट्रीय सभा ने 1789 के नवीन संविधान में ‘Humanीय अधिकारों की घोषणा’ (Declaration of the Rights of Men) को शामिल करके नागरिकों के कुछ अधिकारों को संवैधानिक Reseller देने की प्रथा प्रारम्भ की। इसके बाद संयुक्त राज्य अमरीका के संविधान में 1791 में First दस संशोधनों द्वारा व्यक्तियों के अधिकारों को संविधान का अंग बनाया गया। ये संशोधन ही सामूहिक Reseller से ‘अधिकार पत्र‘ क (Bill of Rights) कहलाये। इसका प्रभाव अन्य यूरोपियन राज्यों के संविधानों पर पड़ा। First महायुद्व के बाद अनेक पुराने राज्यों और युद्व के बाद स्थापित अनेक नवीन राज्यों के संविधानों में मौलिक अधिकारों का समावेश Reseller गया। इस सम्बन्ध में जर्मनी का वीमर संविधान तथा आयरलैंड का संविधान विशेष Reseller से Historyनीय है। द्वितीय महायुद्व के बाद मौलिक अधिकार का विचार और भी लोकप्रिय हुआ और युद्व के बाद भारत, बर्मा, जापान आदि जिन देशों के संविधानों का निर्माण हुआ उन All में मौलिक अधिकारों का समावेश Reseller गया। 1945 में स्थापित अन्तर्राष्ट्रीय संगठन, ‘संयुक्त राष्ट्र संघ’ के द्वारा भी 10 दिसम्बर, 1948 ई. को ‘Humanीय अधिकारों की सार्वलौकिक घोषणा’ (Universal Declaration of Human Rights) के नाम से अन्तर्राष्ट्रीय अधिकार पत्र स्वीकार Reseller गया। भारत में भी वर्ष 1993 में राष्ट्रीय Humanाधिकार आयोग की स्थापना कर ली गई हैं। इस प्रकार मौलिक अधिकारों के विचार ने वर्तमान समय में Single सर्वमान्य धारणा का Reseller ग्रहण कर लिया है।


मौलिक अधिकारों की विशेषताएँ

Indian Customer संविधान में दिए गये मौलिक अधिकारों की विशेषताएँ इस प्रकार हैं-

विस्तृत अधिकार-पत्र

Indian Customer अधिकार-पत्र की First विशेषता यह है कि यह Single विस्तृत अधिकार-पत्र है। 23 अनुच्छेदों में, जिनकी आगे जाकर कई धाराएँ हैं, नागरिकों के अधिकारों का विस्तृत वर्णन Reseller गया है। उदाहरणत: अनुच्छेद 19 द्वारा नागरिकों को स्वतन्त्रता का अधिकार दिया गया है तथा इसके 6 भाग ऐसे हैं जिनमें नागरिकों की 6 विभिन्न स्वतन्त्रताओं और उनके अपवादों आदि का विस्तृत वर्णन है। ऐसा ही विस्तृत वर्णन अन्य अनुच्छेदों में Reseller गया है।

संविधान द्वारा दिये गये अधिकारों के अतिरिक्त नागरिकों का कोई अधिकार नहीं

अमरीकी संविधान में यह व्यवस्था है कि नागरिकों को न केवल ये अधिकार प्राप्त हैं जोकि संविधान में लिखे गये हैं अपितु उनके अतिरिक्त वे सब अधिकार भी नागरिकों को प्राप्त हैं जोकि नागरिकों के पास प्राचीन समय से हैं। Second Wordों में, अमरीका के संविधान द्वारा प्राकृतिक अधिकारों के सिद्वान्त को अप्रत्यक्ष Reseller में मान्यता प्रदान की गई है। Indian Customer संविधान में ऐसे सिद्वान्त का स्पष्ट Reseller में खण्डन Reseller गया है। यह स्पष्ट कहा गया है कि नागरिकों को केवल वे ही अधिकार प्राप्त हैं जोकि संविधान में लिखे हैं। उनके अतिरिक्त किसी भी अधिकार को मान्यता नहीं दी गई है।

All नागरिकों को समान अधिकार

मौलिक अधिकार जाति, धर्म, नस्ल, रंग, लिंग आदि के भेदभाव के बिना All नागरिकों को प्राप्त हैं। बहुसंख्यक और अल्पसंख्यकों में कोई भेद नहीं। यह All पर समान Reseller से लागू होते हैं और कानूनी दृष्टि से All नागरिकों के लिए हैं। सरकार इन पर उचित प्रतिबन्ध लगाते समय नागरिकों में भेद नहीं कर सकती।

अधिकार पूर्ण और असीमित नहीं हैं

कोई भी अधिकार असीमित नहीं हो सकता। उसका प्रयोग दूसरों के हित को ध्यान में रखकर ही Reseller जा सकता है। अधिकार सापेक्ष होते हैं तथा उनका प्रयोग सामाजिक प्रसंग में ही Reseller जा सकता है। इसलिए हमारे संविधान में सरकार को राज्य की Safty, सार्वजनिक व्यवस्था, सार्वजनिक नैतिकता तथा लोक-कल्याण की दृष्टि से मौलिक अधिकारों पर समय की Need According उचित प्रतिबन्ध लगाने का अधिकार दिया गया है।

अधिकार नकारात्मक अधिकार

Indian Customer अधिकार-पत्र में लिखित अधिकार अधिकतर नकारात्मक अधिकार हैं। Second Wordों में इन अधिकारों द्वारा राज्य पर प्रतिबन्ध तथा सीमाएँ लगाई गई हैं। उदाहरणत: राज्य पर यह सीमा लगाई गई है कि राज्य जाति, धर्म, रंग, लिंग आदि के आधार पर कोई भेद-भाव नहीं करेगा तथा न ही सरकारी पद पर Appointment करते समय ऐसा कोई भेद-भाव करेगा। परन्तु इसके साथ ही कुछ अधिकार सकारात्मक Reseller में भी लिखे गये हैं। उदाहरणत: स्वतन्त्रता की अधिकार जिस द्वारा नागरिकों की भाषण तथा विचार प्रकट करने की स्वतन्त्रता, समुदाय निर्माण करने की स्वतन्त्रता, किसी जगह रहने तथा कोई भी पेशा अपनाने की स्वतन्त्रता आदि प्रदान की गई है।

अधिकार संघ, राज्यों तथा अन्य सरकारी संस्थाओं पर समान Reseller से लागू हैं

मौलिक अधिकारों के भाग में ही संविधान द्वारा राज्य Word की व्याख्या की गई है तथा यह कहा गया है कि राज्य Word के Means हैं-संघ, प्रान्त And स्थानीय संस्थाएँ। इस तरह अधिकार-पत्र द्वारा लगाई गई सीमाएँ संघ, राज्यों And स्थानीय संस्थाओं-नगरपालिकाए! तथा पंचायतों-पर भी लागू हैं। इन All संस्थाओं को मौलिक अधिकारों द्वारा निर्धारित सीमाओं के अन्दर कार्य करना होता है। हमारे संविधान में ऐसा स्पष्ट करके Indian Customer संविधान-निर्माताओं ने अमरीकी संविधान की कमी को पूरा Reseller है। वहाँ अब भी कभी-कभी यह वाद-विवाद खड़ा हो जाता है कि क्या संविधान द्वारा दिये गये मौलिक अधिकार संघ के साथ-साथ संघीय इकाइयों पर भी लागू हैं कि नहीं?

Indian Customer नागरिकों और विदेशियों में अन्तर

Indian Customer संविधान में मौलिक अधिकारों के सम्बन्ध में Indian Customer नागरिकों तथा विदेशियों में भेद Reseller गया है। कुछ मौलिक अधिकार ऐसे हैं, जो Indian Customer नागरिकों को तो प्राप्त हैं परन्तु विदेशियों को नहीं, जैसेμभाषण देने और विचार प्रकट करने की स्वतन्त्रता, घूमने-पिफरने और देश के किसी भी भाग में रहने की स्वतन्त्रता। 8. अधिकार निलम्बित किये जा सकते हैं (Rights can be suspended)μहमारे संविधान में अधिकारों को संकटकाल में निलम्बित किये जाने की व्यवस्था की गई है। नोट्स बाहरी आक्रमण अथवा बाहरी आक्रमण की सम्भावना से उत्पन्न होने वाले संकट का सामना करने के लिये राष्ट्रपति सम्पूर्ण भाग अथवा भारत के किसी भाग में संकटकालीन घोषणा कर सकता है तथा ऐसी व्यवस्था में नागरिक के अधिकारों विशेषत: स्वतन्त्रता के अधिकार (Art. 19) तथा संवैधानिक उपचारों के अधिकार को निलम्बित कर सकता है। संविधान की इस व्यवस्था की कई आलोचकों द्वारा कड़ी निन्दा की गई है परन्तु हमारे विचार में आलोचना बुद्वि संगत नहीं है। देश का हित सर्वोपरि है। अत: देश के हित में अधिकारों को निलम्बित Reseller जाना उचित ही है।

मौलिक अधिकार न्यायसंगत हैं

मौलिक अधिकार न्यायालयों द्वारा लागू किए जाते हैं। मौलिक अधिकारों को लागू करवाने के लिए संविधान में विशेष व्यवस्थाएँ की गई हैं। संवैधानिक उपचारों का अधिकार मौलिक अधिकारों में विशेष Reseller से शामिल है। इसका Means यह है कि कोई भी नागरिक जिसके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हो, हाई कोर्ट अथवा सुप्रीम कोर्ट से अपने अधिकारों की रक्षा के लिए अपील कर सकता है। हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट नागरिकों के अधिकारों की रक्षा के लिए कई प्रकार के लेख ;ॅतपजेद्ध जारी करते हैं। यदि मौलिक अधिकारों का उल्लंघन सिद्व हो जाए तो वे किसी व्यक्ति, संस्था अथवा सरकार द्वारा की गई गलत कार्यवाही को अवैध घोषित कर सकते हैं।

संसद अधिकारों को कम कर सकती है

संविधान के द्वारा संसद मौलिक अधिकार वाले अध्याय सहित समूचे संविधान में संशोधन कर सकती है। यहाँ यह Historyनीय है कि संसद साधारण कानूनों द्वारा मौलिक अधिकारों में किसी प्रकार का संशोधन नहीं कर सकती। यदि संसद कोई ऐसा कानून बनाती है तो वह सर्वोच्च न्यायालय द्वारा रद्द कर दिया जाएगा। अभिप्राय यह है कि वह संवैधानिक संशोधन द्वारा ही मौलिक अधिकारों में संशोधन कर सकती है। राज्य विधानमण्डलों को मौलिक अधिकारों में कमी करने की शक्ति प्रदान नहीं की गई है। धारा 368 में दी गई कार्यविधि से मौलिक अधिकारों का संशोधन Reseller जा सकता है। इसके लिए कुल सदस्य-संख्या के बहुमत तथा दोनों सदनों में से प्रत्येक में उपस्थित व मत देने वाले सदस्यों के 2/3 बहुमत का होना अनिवार्य है। 1952 में सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश शास्त्री ने कहा था कि फ्अनुच्छेद 368 संसद को संविधान में बिना किसी छूट के संशोधन करने का अधिकार प्रदान करता है। लेकिन 1967 में गोलकनाथ मुकद्दमे में सर्वोच्च न्यायालय ने यह निर्णय दिया था कि संसद का मौलिक अधिकारों को कम या समाप्त करने की शक्ति नहीं है। 24वें संशोधन के द्वारा संसद ने इस शक्ति को मान्यता दे दी तथा 24 अप्रैल, 1973 को केशवानन्द भारती केस में सर्वोच्च न्यायालय ने यह निर्देश दिया कि संसद मौलिक अधिकारों में संशोधन कर सकती है।

अल्पसंख्यकों के लिए विशेष अधिकार

Indian Customer अधिकार-पत्र में अल्पसंख्यकों के हितों का विशेष ध्यान रखा गया है। विशेषकर दो अधिकार-धार्मिक स्वतन्त्रता का अधिकार (Right to Freedom of Religion) तथा सांस्कृतिक And शैक्षिक अधिकार (Cultural and Educational Rights) तो अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा के लिये ही लिखे गये हैं। Single आदर्श लोकतन्त्र में बहुमत अल्पमत पर शासन कर उन्हें कुचलता नहीं अपितु अल्पमत को पनपने का अवसर दिया जाता है। Indian Customer अधिकार-पत्र द्वारा ऐसी व्यवस्था को अल्पसंख्यकों के अधिकारों के Reseller में लिखा गया है।

सामाजिक And आर्थिक अधिकारों का अभाव

Indian Customer अधिकार-पत्र में सामाजिक And आर्थिक अधिकारों, उदाहरणतया काम करने का अधिकार (Right to Work), आराम का अधिकार (Right of Rest and Leisure), सामाजिक Safty का अधिकार (Right to Social Security), आदि शामिल नहीं किये गये हैं। हाँ, इन अधिकारों को निर्देशक सिद्वान्तों के अधीन लिखा गया है।

शस्त्रधारी सेनाओं के अधिकार सीमित किए जा सकते हैं

संविमाान की धारा 33 के According संसद सेनाओं में अनुशासन को बनाए रखने के लिए मौलिक अधिकारों में संशोधन कर सकती है। संसद पुलिस, सीमा Safty आदि के विषय में उचित व्यवस्था कर सकती है।

मौलिक अधिकारों को लागू करने के लिए विशेष संवैधानिक व्यवस्था

Indian Customer संविधान की धारा 226 के अन्तर्गत हमारे छीने गए अधिकार को लागू करवाने के लिए उचित विधि द्वारा प्रान्त में उच्च न्यायालय की शरण ले सकते हैं तथा धारा 32 के अन्तर्गत उचित विधि द्वारा सर्वोच्च न्यायालय की शरण ले सकते हैं। इस सम्बन्ध में हम उचित याचिका (Writ) कर सकते हैं। जैसे-है बीयस कारपस (Habeas Carpus), मण्डामस (Mandamus), वर्जन (Prohibition), क्यो-वारंटो (Quo-Warranto) And सरट्योटरी (Certiotari)।

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