मुद्रा के कार्य

मुद्रा का कार्य लेन -देन को इतना सरल और सस्ता बनाना है कि उत्पादन में जितना भी माल बने वह नियमित Reseller से वह उपभोक्ताओं के पास पहचुंता रहे और भगु तान का क्रम निरंतर चलता रहे। प्रो. चैण्डला के According-“किसी आथिर्क प्रणाली में मुद्रा का कवे ल Single मौलिक कार्य है, वस्तुए तथा सेवाओं के लेन -देन को सरल बनाना।”प्रो. किनले ने मुद्रा के कार्यों को निम्न प्रकार विभाजित Reseller है-

  1. प्राथमिक कार्य
  2. गौण कार्य
  3. आकस्मिक कार्य
  4. अन्य कार्य

प्राथमिक या मुख्य कार्य-

आधुनिक मुद्रा के प्राथमिक कार्य विनिमय का माध्यम And मूल्य की मापकता है-

(1) विनिमय का माध्यम – 

मुद्रा का सबसे महत्वपूर्ण कार्य विनिमय का माध्यम है। वस्तु और सेवाओं का विनिमय प्रत्यक्ष Reseller से वस्तुओं तथा सेवाओं में न होकर मुद्रा के माध्यम से होता है। मुद्रा के कारण मनुष्य को अपना समय और शक्ति ऐसे Second व्यक्ति की खाजे करने में Destroy करने की Need नहीं रही है जिसके पास उसकी Need की वस्तुएँ है। और जो अपनी उन वस्तुओं की बदले में उन दसू री वस्तुओं को स्वीकार करने को तैयार है जो उस First मनुष्य के पास है। फलत: मुद्रा के विनिमय के कार्य को बहतु ही सरल And सहज बना दिया है।

(2) मूल्य का मापक – 

मुद्रा का दसूरा महत्वपूर्ण कार्य वस्तुओं तथा सेवाओं के मूल्यों को मापने का है। वस्तु विनिमय प्रणाली की Single बड़ी कठिनाइर् यह निर्णय करना था कि Single वस्तु की दी हुर्इ मात्रा के बदले दूसरी वस्तु की कितनी मात्रा प्राप्त होनी चाहिए। मुद्रा से सामान्य मूल्य मापक का कार्य करके समाज को इस असुिवधा से मुक्त कर दिया है।

गौण या सहायक कार्य-

मुद्रा के प्राथमिक कार्यों के अलावा इसके कछु गौण अथवा सहायक कार्य भी होते है, जो निम्न प्रकार है-

(1) भावी भुगतानों का आधार – 

मुद्रा का सबसे First गौण कार्य भावी भुगतान का आधार है। आधुिनक यगु में सम्पूर्ण आथिर्क ढाँ चा साख पर आधारित है और इसमें भिन्न-भिन्न कार्यों के लिए उधार लेन-देन की Need पड़ती है। ऋण का लेन-देन मुद्रा के माध्यम से ही होता है। वस्तुओं के Reseller में ऋण के लेन -देन के कार्य में कठिनार्इ होती है। इसलिए इस कार्य में लिए मुद्रा का प्रयागे Reseller जाता है।

(2) मूल्य संचय का आधार – 

मुद्रा का दूसरा गौण कार्य मूल्य सचं य का आधार है। वस्तुत: मुद्रा मूल्य संचय का भी साधन है। वस्तु विनिमय प्रणाली में मुद्रा के अभाव में धन सचं य करने में कठिनार्इ होती थी। मुद्रा के आविष्कार ने इस कठिनार्इ को दूर कर दिया है।

(3) क्रयशक्ति का हस्तांतरण – 

मुद्रा का तीसरा महत्वपूर्ण कार्य क्रयशक्ति का हस्तांतरण है। मुद्रा के क्रयशक्ति को Single मनुष्य से Second मनुष्य तथा Single स्थान से Second स्थान को हस्तांतरित Reseller जा सकता है। क्रयशक्ति का हस्तांतरण करके मुद्रा ने विनिमय को व्यापक बनाने में सहायता की है।

आकस्मिक कार्य –

मुद्रा के प्राथमिक तथा गौण कार्यों  के साथ ही प्रो किनले के According, मुद्रा के अग्रांि कत चार आकस्मिक कार्य भी होते हैं

(1) साख का आधार – 

मुद्रा के आकस्मिक कार्यों में सवर्प्र थम साख के आधार पर कार्य करना है। आज के यगु में साख मुद्रा का महत्व, मुद्रा के महत्व से भी अधिक हो गया है। आजकल समस्त औद्योगिक तथा व्यापारिक गतिविधियाँ साख मुद्रा की आधारशिला पर टिकी है। बैंकों द्वारा उत्पन्न साख मुद्रा की सहायता से Meansव्यवस्था की उन्नति सभंव हो पायी है।

(2) आय के वितरण में सहायक – 

मुद्रा का दसू रा आकस्मिक कार्य आय के वितरण में सहायक का कार्य करना है। मुद्रा समाज में राष्ट्रीय आय को उत्पादन के विभिन्न साधनों के बीच वितरण करने में सुि वधा प्रदान करती है। यह ज्ञातव्य है कि किसी देश में जितना उत्पादन होता है उसमें उत्पत्ति के विभिन्न साधनों का सहयोग होता है।

(3) पूँजी के सामान्य Reseller का आधार – 

मुद्रा All प्रकार की पूँजी के सामान्य Reseller का आधार होती है। मुद्रा के Reseller में बचत करके विभिन्न वस्तुओं को प्राप्त Reseller जा सकता है। आजकल धन या पूँजी को मुद्रा के Reseller में ही रखा जाता है। इससे पूँजी के तरलता And गतिशीलता में वृद्धि होती है। आधुिनक यगु में मुद्रा के इस कार्य का विशेष महत्व है।

(4) उपभोक्ता को सम-सीमान्त उपयोगिता प्राप्त करने में सहायक – 

मुद्रा के माध्यम से ही उपभोक्ता अपनी आय को विभिन्न प्रयोगों में इस प्रकार से व्यय करता है कि All प्रयोग से Single समान उपयोगिता प्राप्त हो। इस प्रकार वह अपनी आय से अधिकतम संतुष्टि प्राप्त कर सकता है। उत्पादन के क्षत्रे में भी मुद्रा के प्रयोग से All साधनों की सीमान्त उत्पादकता को बराबर करने में सुि वधा प्राप्त होती है जिससे उत्पादन अधिकतम होता है।

मुद्रा के अन्य कार्य –

मुद्रा के उपर्युक्त कार्यों  के अलावा कछु Meansशास्त्रियों ने मुद्रा के कछु अन्य कार्य भी बताये हैं जो निम्न प्रकार है –

(1) इच्छा की वाहक –  

फ्रेंक डी. ग्राह्य के According, मुद्रा मनुष्य को समाज में ऐसी क्षमता प्रदान करती है जिसके द्वारा वह भावी बदलती हुर्इ परिस्थितियों के According संचित क्रयशक्ति का प्रयोग कर सकता है। यदि मुद्रा के स्थान पर अन्य वस्तु का सचंय Reseller जाये तो यह सुिवधा उपलब्घ नहीं हो सकती है क्योंकि मुद्रा में वह गुण है जिसे किसी भी वस्तु में किसी भी समय विनिमय Reseller जा सकता है। मुद्रा मनुष्य को भावी निर्णय लेने में सहायता करती है।

(2) तरल सम्पत्ति का Reseller –  

प्रो. कीन्स के According, मुद्रा तरल सम्पत्ति के Reseller में बहतु महत्वपूर्ण कार्य सम्पादित करती है। तरलता के कारण मुद्रा स्वयं मूल्य सचंय का कार्य करती है। मनुष्य की सम्पत्ति में मुद्रा सबसे उत्तम सम्पत्ति है। इसीलिए प्रत्यके मनुष्य अपनी सम्पत्ति को अन्य सम्पत्ति में संचित रखने की बजाय मुद्रा के Reseller में संचित रखते हैं। मनुष्य कर्इ कारणों से मुद्रा को तरल या नकद Reseller में रखता है। आकस्मिक संकटों का सामना करने प्रतिदिन के लेन -देन अथवा सटटे या निवेश के उद्देश्य से मुद्रा को तरल सम्पत्ति के Reseller में रखता है।

(3) भुगतान-क्षमता का सूचक –  

प्रो. आर.पी. केण्ट के According, “मुद्रा मनुष्यों को ऋण भुगतान करने की क्षमता प्रदान करती है।” किसी व्यक्ति या फर्म के पास मुद्रा -Resellerी तर सम्पत्ति उसी भुगतान-क्षमता की सूचक होती है। मुद्रा की अनुपस्थिति व्यक्ति या फर्म को दिवालिया घोषित कर देती है। इसीलिए प्रत्येक व्यक्ति या फर्म को अपने ऋण का भगु तान करने के लिए अपनी आय अथवा साधनों का कुछ भाग नकद में संचित रखना आवश्यक होता है। मुद्रा के उपर्युक्त कार्यों के विवेचन से स्पष्ट है कि मुद्रा समाज के आर्थिक विकास के लिए अत्यन्त आवश्यक है। मुद्रा के अभाव में मनुष्य के लिए सभ्य जीवन बिताना अत्यन्त कठिन है। Human सभ्यता के विकास के लिए मुद्रा का उपयोग अत्यन्त आवश्यक ह।

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