भ्रष्टाचार का Means, परिभाषा And प्रकार

भ्रष्टाचार “भ्रष्ट और आचरण” दो पदों के योग से बना है। भ्रष्टाचार Word का Means है – निकृश्ट आचरण अथवा बिगड़ा हुआ आचरण। भ्रष्टाचार सदाचार का विलोम और कदाचार का समानार्थी माना जाता हे। नीति न्याय, सत्य, ईमानदारी आदि मौलिक और Seven्विक वृत्तियों स्वार्थ, असत्य और बेईमानी से सम्बन्धित All कार्य भ्रष्टाचार से सम्बन्धित हैं।

भ्रष्टाचार का Means

भ्रष्टाचार संस्कृत भाषा के दो Word “भ्रष्ट” और “आचार” से मिलकर बना है। “भ्रष्ट” का Means होता है – निम्न, गिरा हुआ, पतित, जिसमें अपने कर्त्तव्य को छोड़ दिया है तथा “आचार” Word का Means होता है आचरण, चरित्र, चाल, चलन, व्यवहार आदि। अत: भ्रष्टाचार का Means है – गिरा आचरण अथवा चरित्र और भ्रष्टाचारी का Means होता है – ऐसा व्यक्ति जिसने अपने कर्तव्य की अवहेलना करके निजी स्वार्थ के लिये कुछ ऐसे कार्य किए हैं, जिनकी उससे अपेक्षा नहीं थी। आजकल स्वतंत्र भारत में यह Word प्राय: नेताओं, जमाखोरों, चोर बाजारियों, मुनाफाखोरों आदि के लिये ज्यादा प्रयोग Reseller जाता है। अंग्रेजी के ‘करप्शन’ Word को ही हिन्दी में भ्रष्टाचार कहा जाता है तथा नई सभ्यता And भोगवादी मनोवृत्ति को भ्रष्टाचार की जननी माना जाता है।

राजनीतिक भ्रष्टाचार से तात्पर्य मुख्य Reseller से लोक सत्ता का राजनीतिक सत्ताधारियों अथवा राजनेताओं द्वारा व्यक्तिगत लाभ हेतु दुरुपयोग करने से है। लोकसत्ता का दुरुपयोग करते हुए इनके द्वारा सार्वजनिक साधनों का प्रयोग सार्वजनिक हितों के लिए न करके व्यक्तिगत हितों के लिए Reseller जाता है। राजनीतिक कार्यों में धन के हस्तक्षेप ने राजनीतिक सत्ताधारियों को स्वहितों की पूर्ति के लिए अधिक धन संग्रह हेतु प्रेरित Reseller है। उनका उद्देश्य सार्वजनिक सेवाओं के लक्ष्य से भटक कर व्यक्तिगत लाभ प्राप्त करना हो गया है। और यह व्यक्तिगत लाभ उनके द्वारा सार्वजनिक हितों की उपेक्षा करके सार्वजनिक सेवाओं हेतु उपलब्ध साधनों का व्यक्तिगत सेवाओं हेतु प्रयोग करके Reseller जाता है। व्यक्तिगत हितों की पूर्ति And Need से अधिक सेवाओं का लाभ प्राप्त करने की महत्वकांक्षा ने ही राजनीतिक भ्रष्टाचार को बढावा दिया है। Second Wordों में, राजनेताओं के सरकारी कार्यक्षेत्र. में दुव्र्यवहार को भी राजनीतिक भ्रष्टाचार की संज्ञा दी जाती है क्योंकि जो सत्ता और प्रभुत्व किसी भी सार्वजनिक पदाधिकारी को जनता की सेवा के लिए प्रदान Reseller जाता है, उन All का प्रयोग उनके द्वारा अपनी विशेष स्थिति और शक्तियों के कारण व्यक्तिगत हितों की पूर्ति हेतु Reseller जाता है। राजनीतिक भ्रष्टाचार में ऐसी प्रक्रिया निहित है जिसमें लोक व्यवस्था के लिए बनाए गए नियमों का प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष Reseller से उल्लंघन Reseller जाता है। जब सार्वजनिक व्यय हेतु निर्धारित की गई धनराशि व्यक्तिगत लाभ And स्वार्थपूर्ति हेतु खर्च की जाने लगती है तो राजनीतिक भ्रष्टाचार और अधिक ऊँचे स्तर पर पहुँच जाता है। यह लाभ मात्र व्यक्तिगत ही न रहकर पारिवारिक सदस्यों अथवा समूहों को भी प्राप्त होता है। राजनीतिक भ्रष्टाचार में राजनेताओं द्वारा सार्वजनिक कार्यालयों में गुप्त Reseller से विषैले And निंदनीय कार्यों को सम्मिलित Reseller जाता है। उनके द्वारा लोकहित अथवा लोकमत की उपेक्षा करते हुए देश की वैधानिक व्यवस्था सम्बन्धी नियमों का उल्लंघन Reseller जाता है। सार्वजनिक सेवाओं को ईमानदारी से उपलब्ध कराने में उनकी कोई रुचि नहीं रह जाती। राजनीतिक भ्रष्टाचार में प्राय: बेईमानी से काम कराने के लिए रिश्वत के प्रलोभन दिय जाते हैं जिनमें वांछित नियमों की पूरी तरह से उपेक्षा की जाती है।

यद्यपि यह स्पष्ट Reseller से नहीं कहा जा सकता कि कौन सा कार्य राजनीतिक भ्रष्टाचार में सम्मिलित Reseller जाए कौन सा नहीं, तथापि यदि जनता द्वारा राजनेताओं के किसी कार्य के विरोध में उत्तेजनापूर्ण रोश दर्शाया जाता है तो वह निश्चित Reseller से राजनीतिक भ्रष्टाचार का हिस्सा है।

भ्रष्टाचार की परिभाषा

सेन्चूरिया के According, “किसी भी राजनीतिक कार्य का भावना And परिस्थितियों के आधार पर परीक्षण करने के पष्चात् यदि समकालीन सिद्च्छा And राजनीतिक नैतिकता के तर्क इस निष्कर्ष पर पहुँचते है कि व्यक्तिगत हितों के लिए सार्वजनिक हितों को बलिदान Reseller गया है तो निश्चित Reseller से वह कार्य राजनीतिक भ्रष्टाचार का अंग है।”

यहाँ भ्रष्टाचार And राजनीतिक भ्रष्टाचार में भेद करना भी अनिवार्य हो जाता है। यद्यपि प्रत्यक्ष Reseller से दोनों Wordों का Single ही Means प्रतीत होता है, किन्तु वस्तुत: भ्रष्टाचार राजनीतिक भ्रष्टाचार से कहीं अधिक व्यापक है।
दिन-प्रतिदिन के कार्यों में लोकसेवकों द्वारा अतिरिक्त आय प्राप्त करने के लिए अपनी शक्तियों का दुरुपयोग करके आम नागरिकों से कार्यों को करने के बदले में धन वसूला जाता है जिसे हम शक्ति का दुरुपयोग अथवा शक्ति की विकृति कह सकते हैं। कोई भी भ्रष्टाचार युक्त कार्य किसी सार्वजनिक अथवा सरकारी व्यवस्था के प्रति पूर्ण किये जाने वाले उत्तरदायित्वों का उल्लंघन है। किसी विशेष उपलब्धि हेतु साधारण हितों की उपेक्षा करनाा और व्यक्तिगत हितों को महत्व देना ही भ्रष्टाचार है। यह प्रशासनिक, व्यापारिक, सामाजिक, न्यायिक अथवा राजनीतिक All प्रकार का हो सकता है। लेकिन राजनीतिक भ्रष्टाचार, भ्रष्टाचार की अपेक्षा केवल राजनीतिक गतिविधियों तक संकुचित हो जाता है। इसके अन्तर्गत हम केवल उन गलत कार्यों को सम्मिलित करते हैं जिनमें मुख्य Reseller से राजनेताओं द्वारा अपने व्यक्तिगत उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए, सत्ता का दुरुपयोग Reseller जाता है। राजनीतिक भ्रष्टाचार राजनेताओं द्वारा अपने अथवा अपने से सम्बन्धित अन्य लोगों को प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष Reseller से लाभान्वित करने हेतु राजनीतिक सत्ता का औचित्यहीन And गलत ढंग से Reseller गया प्रयोग है। Second Wordों में, यह व्यक्तिगत प्राप्तियों के लिए Reseller जाने वाला सार्वजनिक हितों का व्यापार है।

राजनीतिक भ्रष्टाचार किसी भी Reseller में रिश्वत के समानार्थी Word के Reseller में स्वीकार नहीं Reseller जा सकता। जहां Single ओर राजनीतिक भ्रष्टाचार में कर्तव्यों की उपेक्षा करने के लिए अनुचित प्रतिफल का प्रलोभन है वहीं दूसरी ओर रिश्वत लोकसेवकों को किसी काम को अपने हित पूर्ति के लिए दिया जाने वाला पैसा है, जो उन्हें कीमत, इनाम अथवा उपहार के Reseller में दिया जाता है। रिश्वत का प्रयोग मुख्य Reseller से कर्त्तव्यों की अनदेखी अथवा कर्त्तव्यों And शक्तियों का गलत प्रयोग करने के प्रतिफल में लोकसेवकों, अभिकर्ताओं, न्यायाधीषों, गवाहों, मतदाताओं आदि को बहुमूल्य उपहार प्रदान करके अथवा मुद्रा के Reseller में Reseller जाता है। रिश्वत और राजनीतिक भ्रष्टाचार का Means अलग-अलग होते हुए भी दोनों Single Second से घनिश्ठ Reseller में सम्बन्धित हैं, जिनको अलग नहीं Reseller जा सकता। रिश्वत लेने वाला व्यक्ति तो भ्रष्ट होता ही है किन्तु ऐसा व्यक्ति भी भ्रष्टाचार में लिप्त हो सकता है जिसका रिश्वत लेने से कोई सम्बन्ध नहीं है। राजनीतिक भ्रष्टाचार किसी व्यक्तिगत लाभ की प्रवृत्ति के बिना भी Reseller जाना संभव है। कई बार जब व्यवस्थापिका सदस्यों द्वारा अपने कर्त्तव्यों से विमुख होकर आर्थिक लाभ के लिए अनुचित कार्य करते हैं तो वह रिश्वत के अभाव में भी राजनैतिक भ्रष्टाचार की श्रेणी में आ जाता है। उन्हें किसी अन्य के द्वारा कोई प्रलोभन नही दिया जाता। यह Single प्रकार का स्वभ्रष्टाचार (auto corruption) है जो राजनेताओं में स्वत: ही अपने हितों की पूर्ति के लिए उत्पé होता है। इस प्रकार राजनीतिक भ्रष्टाचार में रिश्वत के माध्यम से Second लोगों की हितों की पूर्ति के लिए अनुचित कार्य किए जाते हैं। जबकि अपने हितों की पूर्ति के लिए राजनेताओं द्वारा अपने पद की शक्तियों का दुरुपयोग औचित्यहीनता के साथ Reseller जाता है। अत: यह कहा जा सकता है कि राजनीतिक भ्रष्टाचार में न्यूनाधिक लाभ प्राप्ति की दृष्टि से Reseller गया कोई भी कार्य सम्मिलित है जिसमें पद के कर्त्तव्यों का निर्वहन न करके शक्तियों का दुरुपयोग Reseller गया है। इसके साथ-साथ राजनीतिक भ्रष्टाचार में भाई-भतीजावाद And गबन पर आधारित गतिविधियों को भी सम्मिलित Reseller जाता है।

राजनीतिक भ्रष्टाचार व्यक्तिगत साध्यों के लिए राजनीतिक संसाधनों का असंस्वीकृत And औचित्यहीन प्रयोग है जिसमें मुख्य Reseller से तीन तत्वों को सम्मिलित Reseller जाता है – (1) राजनीतिक भ्रष्टाचार और गैर राजनीतिक भ्रष्टाचार में अंतर है। (2) राजनीतिक भ्रष्टाचार And राजनीतिक प्रक्रिया में अंतर है और (3) राजनीतिक भ्रष्टाचार वर्तमान में सामाजिक प्रक्रिया का हिस्सा बन गया है। व्यापक Meansों में राजनीतिक भ्रष्टाचार उन लोगों में व्याप्त है जो औपचारिक राजनीति में किसी पद पर आसीन हैं तथा शक्ति का दुरुपयोग करते हैं। इसके साथ ही कुछ अन्य लोग, समूह And संस्थाएं जो औपचारिक राजनीति का हिस्सा नहीं हैं, परन्तु इनसे सम्बन्धित है वो भी राजनीतिक भ्रष्टाचार का अंग मानी जाती हैं।

(David H. Bayley) कहते हैं कि “भ्रष्टाचार Single सामान्य Wordावली है जिसमें अपने व्यक्गित लाभ के विचार के परिणामस्वReseller सत्ता का दुरुपयोग भी आता है, जो जरूरी नहीं धन-संबंधी हो।” (J.S. Nye) भ्रष्टाचार की परिभाषा इस प्रकार करते हैं, “ऐसा व्यवहार जो Single सार्वजनिक भूमिका के औपचारिक कर्त्तव्यों से निजी (व्यक्तिगत, निकट परिवार, निजी गुट) आर्थिक लाभ या स्तरीय लाभ के कारण विचलित हो जाता है, या कुछ प्रकार के निजी प्रभावों से प्रभावित हो कर नियमों का उल्लंघन करता है,10 भ्रष्टाचार कहलाता है”। ऐसे व्यवहार, जो “औपचारिक कर्त्तव्यों” का उल्लंघन करता है, के उदाहरण हैं: घूसखोरी (Single विष्वस्त स्थिति वाले व्यक्ति के निर्णय को विकृत करने के लिए धन का प्रयोग), भाई-भतीजावाद (संरक्षित पदों को योग्यता की अपेक्षा पारिवारिक संबंधों के आधार पर बांटना); बेईमानी से हथियाना (सार्वजनिक साधनों का निजी प्रयोग के लिए अवैध आवंटन); तथा किसी स्थिति के अनुकूल दंड शासन को लागू करने या कानून को लागू करने में जानबूझ कर असफल होना। इस परिभाशा के According कोई व्यवहार केवल तभी भ्रष्ट होता है जब यह किसी औपचारिक मानक अथवा नियम का उल्लंघन करता है (जिसको विधि द्वारा भ्रष्ट घोशित Reseller गया है)। वर्तमान प्रयोग में भ्रष्टाचार का Means अपने व्यक्तिगत अथवा समूह के हित के लिये सार्वजनिक दायित्व के साथ धोखा करना है। इस परिभाशा में यह बात First से स्वीकार कर ली जाती है कि लोक-अधिकारियों के पास कार्य के दो या अधिक विकल्पों में से Single को चुनने की शक्ति होती है, और सरकार के पास कुछ शक्ति या सम्पत्ति का स्रोत है जो लोक-अधिकारी अपने निजी लाभ के लिए ले सकता है या प्रयोग कर सकता है।

भ्रष्टाचार के कुछ अनिवार्य तत्व

  1. यह Single लोक-अधिकारी द्वारा अपनी स्थिति, स्तर अथवा संसाधनों का जानबूझ कर या ऐच्छिक दुरुपयोग है। 
  2. यह प्रत्यक्ष या परोक्ष Reseller में Reseller जा सकता है। 
  3. यह अपने निजी स्वार्थ या लाभ को बढ़ाने के लिये Reseller जाता है, चाहे वह आर्थिक लाभ हो या शक्ति, सम्मान या प्रभाव को बढ़ाना हो। 
  4. यह व्यवहार के विधिवत, मान्य अथवा सामान्य स्वीकृत नियमों का उल्लंघन करके Reseller जाता है। 
  5. यह समाज या अन्य व्यक्तियों के हितों के प्रतिकूल Reseller जाता है। आजादी के पूर्व Indian Customerों ने स्वतन्त्र भारत के लिए अनेक सपने संजोये थे। उनमें से उनका Single प्रमुख सपना भ्रष्टाचार मुक्त शासन व्यवस्था तथा समाज का भी था परन्तु दुर्भाग्यवष उनका यह सपना महज सपना ही है। यह Single कटु सत्य है कि जैसे-जैसे नैतिकतापूर्ण, भ्रष्टाचार मुक्त शासन व्यवस्था तथा समाज निर्माण की ओर बढने के प्रयास किये जा रहे हैं वैसे-वैसे समाज में भ्रष्टाचार And अनैतिकता के नये-नये Reseller में नित नये कीर्तिमान भी स्थापित हो रहे हैं।

भ्रष्ट आचरण, इसके अन्तर्गत वह All भ्रष्ट आचरण में आते हैं जो नैतिकता के विरुद्ध होते हैं, Meansात् कोई भी ऐसा व्यवहार जो लोकाचार अथवा सदाचार के विपरीत है, वस्तुत: यह भ्रष्टाचार है। कदाचार, दुराचार, स्वेच्छाचार, मिथ्याचार, छल-छद्म, अत्याचार, अन्याय, पक्षपात, पाखण्ड, रिष्वतखोरी, कालाबाजारी, गबन, तस्करी, विष्वासघात, देषद्रोह, व्यभिचार, आदि सब भ्रष्टाचार के ही वंषज हैं। भ्रष्टाचार का स्तर और प्रकार परिस्थितियों अथवा संस्कृतियों पर निर्भर करता है। लेकिन बेईमानी स्वत: भ्रष्टाचार की मूल अवस्था है, जो भ्रष्ट आचरण से भ्रष्ट व्यवस्था को जन्म देती है। Indian Customer दण्ड संहिता के अध्याय-9 में भ्रष्टाचार को विस्तृत Reseller में परिभाशित Reseller गया है। इसमें उपबन्धित धारा 161 प्रमुखत: लोक सेवकों में भ्रष्टाचार से संबंधित है, जिनकी परिधि में घूस अथवा रिष्वत और सहवर्ती अपराध, विधि विरुद्ध कार्य And लोक सेवकों के प्रतिResellerण संबंधी कार्य आते हैं। धारा 161 में उपबन्धित है कि वह व्यक्ति भ्रष्टाचार का दोशी माना जायेगा जो कोई लोक सेवक होते हुए या होने को प्रत्यक्ष रखते हुए वैध पारिश्रमिक से भिन्न किसी प्रकार का भी परितोशण इस बात को करने के लिए या इनाम के Reseller में किसी व्यक्ति से प्रतिगृहीत या अभिप्राप्त करेगा या प्रतिगृहीत करने को Agree होगा या अभिप्राप्त करने का प्रयत्न करने का प्रयास करेगा कि वह लोक सेवक अपना कोई पदीय कार्य करे या प्रवृत्त रहें अथवा किसी व्यक्ति को अपने पदीय कृत्यों के प्रयोग में कोई अनुग्रह दिखाये या दिखाने से प्रवृत्त रहें अथवा केन्द्रीय सरकार या किसी राज्य सरकार या संसद या किसी राज्य के विधानमण्डल में या किसी लोक सेवक के यहाँ उसको वैसी हैसियत में किसी व्यक्ति का कोई उपकार या अपकार करे या करने का प्रयत्न करें।

उपरोक्त वाक्यांश में – “लोक सेवक प्रत्याक्षा रखते हुए” का स्पश्टीकरण इस प्रकार दिया गया है कि यदि कोई व्यक्ति, जो किसी पद पर नियुक्त होने की प्रत्याक्षा न रखते हुए दूसरों को प्रवचना से यह विष्वास कराकर कि वह किसी पद पर होने वाला है और यह कि तब वह उनका उपकार करेगा, उनसे परितोशण अभिप्राप्त करेगा तो वह छल करने का दोशी हो सकेगा, किन्तु वह इस धारा में परिभाशित अपराध का दोशी नहीं है।

पुन: उक्त धारा में पारितोशण Word का स्पष्टीकरण करण इस प्रकार से Reseller गया है कि ‘परितोशण Word धन संबंधी परितोशण तक या उन परितोशणों तक ही जो धन में आंके जाने योग्य है, निर्बन्धित नहीं है।’ इसमें All प्रकार के अवैतनिक सम्मान And अभिलाशायें सम्मिलित हैं। वैध पारिश्रमिक से भिé किसी भी प्रकार का परितोशण इसके अन्तर्गत आता है।

संक्षेप में, उक्त विवेचन से यह स्पश्ट होता है कि लोक सेवकों द्वारा अपने पद पर रहते हुए पद से संबंधित दायित्वों के निर्वहन के प्रति उदासीनता बरतने अथवा विरत रहने अथवा ऐसे कार्यों के संचालित करने जो उन्हें नहीं करने चाहिए; पारितोशिक प्राप्त करना भ्रष्टाचार की श्रेणी में आता है, जो अपराध है। सामान्यतया पारितोशिक का आषय रिष्वत से लिया जाता है, जिसका दैनिक जीवन And सामान्य व्यवहार में अत्यधिक प्रचलन है। आज किसी अवैध कार्य को करने के लिए या वैध कार्य को अवैध तरीके से करने के लिए या अपराध को दबाने अथवा छिपाने के लिए प्राय: सेवकों को घूस अथवा रिष्वत दी जाती है। यदि यह कह दिया जाये तो अतिष्योक्ति नहीं होगी कि घूस अथवा रिष्वत आज जन सामान्य के जीवन का Single अंग सा हो गया है। घूस अथवा रिष्वत को ही विधिक भाशा में परितोशण कहा जाता है। जिसमें All प्रकार के अवैतनिक सम्मान And अभिलाशाएँ सम्मिलित हैं, और वैध पारिश्रमिक से भिé किसी भी प्रकार का पारितोश्याण इसके अन्तर्गत आता है।

यद्यपि Indian Customer दण्ड संहिता के उपरोक्त 161 से 165ए तक की धाराओं को अब समाप्त करके उसके स्थान पर भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम, 1988 को प्रवर्तन में ला दिया गया है, लेकिन भ्रष्टाचार के सम्बन्ध में उक्त अधिनियम के अन्तर्गत दी गई परिभाशा को भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम, 1988 में भी उसी Reseller में शामिल Reseller गया है।

किसी भी समाज की व्यवस्था कायम रखने में जिन विधियों का महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है उनमें भ्रष्टाचार निवारण विधि को विषेश स्थान प्राप्त है। यह कानून समाज के प्रत्येक वर्ग के व्यक्तियों से संबंध रखता है। माननीय उच्चतम न्यायालय ने वीरा स्वामी बनाम भारत संघ (1191(3) एमसीसी पृश्ठ 655) के प्रकरण में अभिनिर्धारित Reseller है कि नया भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम लोक सेवकों में भ्रष्टाचार का निवारण ही नहीं करता बल्कि ईमानदार लोकसेवकों की परेशानी से भी रक्षा करता है। इस अधिनियम में कुल 31 धाराएँ हैं जिनमें से अपराध And शास्तियों से संबंधित अध्याय 3 में described धारा 7 से 16 कुल धारायें 10 हैं। भ्र.नि.अ. की धारा 7 Indian Customer दण्ड संहिता, 1860 की धारा 161 के समानान्तर है इस धारा में ऐसे लोक सेवकों के लिए प्रावधान है जो रिष्वत प्राप्त करते हैं, या प्राप्त करने के लिए Agree होते हैं अथवा प्राप्त करने का प्रयास करते हैं। धारा 8 Indian Customer दण्ड संहिता धारा 162 के समानान्तर है। इस धारा में वे All व्यक्ति आते हैं जो लोकसेवक हैं अथवा नहीं है परन्तु लोक सेवक को भ्रष्ट अथवा विधि विरुद्ध साधनों द्वारा असर डालने के लिए पारितोशण प्राप्त करते हैं।

धारा 9 Indian Customer दण्ड संहिता की धारा 163 के समानान्तर है तथा इस धारा में वे All व्यक्ति आते हैं जो अपने लिए या किसी अन्य के लिए लोक सेवक पर प्रभाव डालने के लिए परितोशण प्राप्त करते हैं।

धारा 10 Indian Customer दण्ड संहिता की धारा 164 के समानान्तर है तथा इस धारा में वे लोक सेवक आते हैं जो धारा 8 व 9 Meansात् भा.द.सं. की धारा 162 व 163 का दुश्प्रेशण करते हैं Meansात् जो व्यक्ति रिष्वत प्राप्त करता है उसमें लोक सेवक की Agreeि होती है।

धारा 11 Indian Customer दण्ड संहिता की धारा 165 के समानान्तर है इसमें वे लोक सेवक आते हैं जो उनके द्वारा लोक सेवक की हैसियत से की गयी कार्यवाही या कारोबार में सम्पर्क में आते हैं उनसे या तो बिना प्रतिफल से या अपर्याप्त प्रतिफल के मूल्य वस्तु अभिप्राप्त करते हैं।

धारा 12 Indian Customer दण्ड संहिता की धारा 165(क) के समानान्तर है, इसमें वे व्यक्ति आते हैं जो लोक सेवक को रिश्वत देते हैं या रिश्वत का प्रस्ताव रखते हैं या लोक सेवक रिश्वत लेने को राजी होंवे या नहीं होंवे। धारा 13 भ्र.नि.अ. 1947 की धारा 5 के समानान्तर है तथा उसके पांच खण्ड हैं :-

  1. जो धारा 7 के अपराध करने का अभ्यस्थ है।
  2. जो धारा 9 का अपराध करने का अभ्यस्थ है।

ग. जो लोक सेवक उसे लोक सेवक के Reseller में सौंपी गई सम्पत्ति का बेईमानी से या कपटपूर्व दुर्विनियोग करता या सम्परिवर्तित करता है यह अपराध Indian Customer दण्ड संहिता की धारा 409 के समानान्तर है तथा घ. इस उपधारा के अन्तर्गत वे लोक सेवक आते हैं जो अपने पद का दुरुपयोग कर स्वयं के लिए या किसी अन्य के लिए भ्रष्ट या अवैध साधनों से या किसी लोक रुचि के बिना मूल्यवान वस्तु या धन संबंधित लाभ अभिप्राप्त करता है इस अपराध को लोक सेवक द्वारा आपराधिक दुराचरण की संज्ञा दी गई है, इसके अलावा, ड़. यदि लोक सेवक या उसकी ओर से किसी व्यक्ति के आधिपत्य में ऐसे धन संबंधी साधन And सम्पत्ति हो जो उसकी ज्ञान स्रोतों से अनुपातिक हो अथवा उसकी पदीयकालावधि के दौरान किसी संभव आधिपत्य में रही जिसका लोक सेवक समाधानप्रदReseller से वितरण नहीं दे सकता तो उसे भी आपराधिक दुराचरण माना जायेगा।

धारा 14 में धारा 8, 9 धारा 12 के अधीन अभ्यस्त अपराध है तो दण्ड का विधान रखा गया है धारा 15 में जो धारा 13(ग) या ़(घ) में described अपराध करने का प्रयत्न करता है तो उसके दण्ड का विधान है तथा धारा 16 में न्यायालय के जुर्माना निधारण करते समय न्यायालय अभियुक्त व्यक्ति द्वारा उपार्जित सम्पत्ति का मूल्य विचार में रख सकेगा, परिभाशित Reseller गया है।

इस अधिनियम की धारा 20 दाण्डिक मामलों में सबूत के भार के बारे में सामान्य नियम के अपवाद की प्रस्तावना करता है, और साबित करने का भार अभियुक्त पर होता है, इस धारा के अधीन उप धारणा कानूनी होती है और इसलिए इस धारा के अधीन लाये गये प्रत्येक मामले में प्रत्येक उपधारणों को जन्म देने के लिए न्यायालय पर बाध्यकारी प्रभाव पड़ता है, कारण यह है कि कानून की उपधारणाएँ तथ्य की उपधारणों के मामलों में असम्यनविधि शास्त्र की Single शाखा का गठन करती है। इस विधि के अपराध में पुलिस निरीक्षक से निम्न स्तर का अधिकारी अन्वेशण नहीं कर सकता है। अन्वेशण उच्च अधिकारी द्वारा Reseller जाता है, जिससे अन्वेशण की निश्पक्षता स्थापित होती है इसके अलावा धारा 19 में यह प्रावधान रखा गया है कि केन्द्रीय सरकार, राज्य सरकार अथवा केन्द्र सरकार या राज्य सरकार के उस अधिकारी की पूर्व स्वीकृति के बिना कोई भी न्यायालय प्रसंज्ञान नहीं ले सकता जो कि दोशी अधिकारी को सेवा से पृथक करने में सक्षम है अत: किसी भी अधिकारी या कर्मचारी के विरुद्ध कितना भी गंभीर आरोप है उसे सेवा से पृथक करने वाला अधिकारी स्वीकृति नहीं देता तो कोई कार्यवाही संभव नहीं है। परन्तु माननीय दिल्ली उच्च न्यायालय ने गुरचरण सिंह बनाम राज्य 1970 कि.ला.ज. पृश्ठ 674 में यह सिद्धान्त प्रतिपादित Reseller कि Single मंजूरी के लिए प्रावधान करने में विधान मण्डल का आशय मात्र उनके Kingीय कर्तव्यों के निर्वहन में लोकसेवकों को Single मुक्त संरक्षण प्रदान करना होता है इस धारा का उद्देश्य यह नहीं होता है कि Single लोक सेवक जो अधिनियम की धारा 6 में described विशेष अपराध का दोशी है को मंजूरी की अवैधानिकता को Single तकनीकी अभिवचन को प्रस्तुत करके आपराधिक कार्यों के परिणामों से बच निकलना चाहिए। यह धारा निर्दोश के लिए Single रक्षोपाय है न कि दोशी व्यक्ति के लिए Single रक्षा कवच है। परन्तु सेवानिवृति के बाद संरक्षण उपलब्ध नहीं है।

इस अधिनियम के प्रकरण विशेष न्यायालय द्वारा ही सुने जाते हैं जो धारा 3 के अन्तर्गत कम से कम सत्र न्यायाधीश, अपर सत्र न्यायाधीश या सहायक सत्र न्यायाधीश के पद पर रह चुका हो उसे ही Appointment दी जाती है। यह प्रकट होता है कि वरिष्ठ नागरिक अधिकारी द्वारा ऐसे मामलों पर विचार Reseller जाता है जिससे उचित न्याय मिलने की उम्मीद अधिक रहती है। इस अधिनियम के व्यापक प्रचार And प्रसार की Need है जिससे भ्रष्टाचार से समाज को मुक्ति दिलाई जा सके।

भ्रष्टाचार के प्रकार

वर्ल्ड बैंक ने भ्रष्टाचार को छ: प्रकारों में वर्गीकृत Reseller है-

  1. प्रशासनिक भ्रष्टाचार, 
  2. राजनीतिक भ्रष्टाचार, 
  3. लोक भ्रष्टाचार, 
  4. निजी भ्रष्टाचार, 
  5. वृहद् भ्रष्टाचार, 
  6. लघु भ्रष्टाचार।

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