भारत पाक Fight (1965, 1971) के कारण और परिणाम

भारत के विभाजन के बाद पाकिस्तान बनते ही तमाम ऐसे मुद्दे पैदा हो गए जो आज तक दोनों देशों के बीच विवाद की जड. बने हुए है। ऐसे मुद्दों का समाप्त होना तो दूर बल्कि इनमें इजाफा ही होता गया हैं विभाजन के तत्काल बाद दोनों देशों ने आपस में Fight कर अपनी भडास निकालने की कोशिश की। उससे भी नहीं निकली तो 1965 व 1971 में दो और Fight लडेगए इसके बावजूद दोनों देश, आपसी वैमनस्यता में आज तक कायम है। इस वैमनस्यता के तमाम कारण है। जो आज तक कायम है।

15 अगस्त 1947 से ठीक पूर्व पाकिस्तान प्राप्ति के लिए हुआ खून खराबा History के पन्नो को भी काला कर चुका है। इसके बाद 14 अगस्त 1947 को देश दो भागों में विभक्त हो गया। बँटवारे से उत्पन्न सबसे पहली समस्या शरणार्थियों को लेकर उत्पन्न हुई। विभाजन के बाद हुए सांप्रदायिक दंगों ने लोगों को इतना झकझोर दिया कि लाखों शरणार्थी विस्थापित होकर भारत की ओर आ गए। भारत में भी प्रतिक्रिया स्वReseller मुसलमानों का पाकिस्तान भागना प्रारभ्भ हो गया। भारत धर्मनिरपेक्षता के नाम पर मुसलमानों को रोकना चाहता था। किंतु पाकिस्तान अल्पसंख्यक वर्गो को निकालने के लिए कटिबद्ध था।

शरणार्थियों द्वारा Single दुसरे के देशों में छोड़ी गयी संपत्ति को लेकर भी वाद-विवाद की स्थिति उत्पन्न हुई। दोनों देशों के प्रतिनिधियों की कई बैठकें भी इस समस्या का समाधान नहीं खोज पाई। Single Second के मुल्कों के विभिन्न साम्प्रदाय के लोगों को मांगने के कारण दंगे भडके इसलिए 8 अप्रैल 1950 को पंडित जवाहर लाल नेहरू तथा पाकिस्तान के प्रधानमंत्री लियाकत अली खाँ व मध्य समझौते का प्रभाव दिखाई पड़ा परन्तु फिर इसकी उपेक्षा करना आरभ्भ हो गया।

दोनों मुल्कों के अल्पसंख्यकों की Safty के लिए जुलाई 1954 जनवरी 1955 तथा अप्रैल 1955 में दोनों देश के मंत्रियों की वार्ताएं हुई परिस्थिति वश विवश होकर 30 अप्रैल 1970 को हमारे तत्कालीन विदेश मंत्री दिनेश सिंह ने लोक सभा में वक्तव्य देते हुए विदेश विभाग के उप मंत्री सुरेंद्र पाल ने कहा ‘’पाकिस्तान का अपने अल्पसंख्यकों हिन्दू, बौद्ध, तथा ईसाईयों के प्रति विशेष कर व्यवहार काफी बुरा है जिसकी वजह से 26000 लोग तो बिना यात्रा पत्रों के ही भारत आए थे। इसका मुख्य कारण इनके साथ Reseller दुर्व्यवहार, सम्पत्ति छीन लेना आर्थिक And राजनीतिक अस्थिरता तथा आगामी चुनावों के सांप्रदायिक प्रचार आदि है।’’

भारत पाक Fight 1965

भारत द्वारा विराम रेखा को पार करने की प्रतिक्रिया पाकिस्तान में स्वाभाविक Reseller से हुई। 25 अगस्त के बाद से Indian Customer और पाकिस्तानी सेनाओं में कई जगह प्रत्यक्ष मुठभेड़ हो गई और यह निश्चय सा प्रतीत होने लगा कि भारत और पाकिस्तान में अब Fight छिड़ जायेगा। अधिक पाकिस्तानी क्षेत्र को Indian Customer अधिकार में जाने से रोकने के उद्देश्य से पाकिस्तान ने प्रत्यक्ष Reseller से आक्रमण करने का निश्चय Reseller। छम्ब जूरिया क्षेत्र इसके लिए बहुत उपयोगी था, क्योंकि पाकिस्तान इस क्षेत्र में आसानी से हमला कर सकता था और अखनूर पर कब्जा करके ऊपरी कश्मीर को जम्मू से अलग कर Indian Customer क्षेत्र पर अधिकार कर सकता था।

हिटलर के विद्युत प्रवाह के ढर्रे पर 1 सितम्बर को तड़के ही टैंकों और आधुनिकतम शस्त्रास्त्रों से लैस पाकिस्तानी सेना ने अंतरराष्ट्रीय सीमा रेखा पार करके छम्ब जूरिया क्षेत्र पर आक्रमण शुरू कर दिया। पाकिस्तान का यह आक्रमण भारत के जीवन मरण का प्रश्न हो गया, लेकिन शत्रु का दबाव घटा नहीं और ऐसा प्रतीत होने लगा कि इस क्षेत्र पर किसी भी क्षण पाकिस्तान का अधिकार हो सकता है।

5 सितम्बर को पाकिस्तानी वायु सेना ने अमृतसर पर हमला Reseller। इस घटना से यह निष्कर्ष निकालना कठिन नहीं था कि पाकिस्तान संघर्ष के क्षेत्रों को विस्तृत करके पंजाब पर आक्रमण करने का इरादा रखता है। पाकिस्तान की योजना को कुचलने और छम्ब जूिरया क्षेत्र में पाकिस्तानी सैनिक दबाव को कम करने के उद्देश्य से भारत ने 6 सितम्बर को पाकिस्तान के पंजाब प्रदेश पर तीन तरफ से आक्रमण कर दिया और Indian Customer सेना लाहौर की ओर बढ़ने लगी। पाकिस्तान रेडियो से बोलते हुए राष्ट्रपति अयूब खां ने कहा कि हम लोग अब Fight की स्थिति में हैं। यह सचमुच भारत और पाकिस्तान के बीच Single अघोशित Fight था जो समस्त सीमांत पर बड़े पैमाने पर लड़ा जा रहा था। दोनों पूरी शक्ति के साथ Fight में जूझे हुए थे।

Fight विराम

यह Fight 23 सितम्बर तक चला और संयुक्त राष्ट्रसंघ के हस्तक्षेप के उस दिन साढ़े तीन बजे सुबह से Fight विराम हो गया। पाकिस्तान को यह आषा थी कि चीन उसकी सहायता करेगा, लेकिन उसे निराष होना पड़ा। उसने सीआटो और सेण्टो के संगठनों से सहायता की याचना की। लेकिन वहां से भी उसे निराष होना पड़ा। Indian Customer सेना ने पाकिस्तान के Single बहुत बड़े भू-भाग पर अधिकार कर लिया। Fight के खत्म होने पर Seven सौ चालीस वर्गमील का पाकिस्तानी क्षेत्र Indian Customer कब्जे में थे और दो सौ चालीस वर्गमील के लगभग Indian Customer क्षेत्र पाकिस्तान के कब्जे में थे। जन-धन और सैनिक साजो सामान में दोनों पक्षों को अपार क्षति हुई।

Safty परिषद के प्रयत्नो से भारत पाक Fight बंद

Safty परिशद ने 20 सितम्बर, 1965 (सोमवार) को Single प्रस्ताव पास Reseller जिसमें भारत तथा पाकिस्तान से कहा गया कि वे बुधवार, 22 सितम्बर ,1965 को दोपहर के 12.30 बजे तक Fight बन्द कर दें। प्रस्ताव के पक्ष में 10 मत तथा विरोध में Single भी नहीं। जोर्डन ने प्रस्ताव पर मत नहीं कर दें। इस प्रस्ताव में भारत तथा पाकिस्तान दोनों देशों की सरकारों से यह भी कहा गया कि वे अपनी – अपनी सैनाओं को निष्चित समय पर Fight – विराम के लिये आदेश दे दें। इसके बाद सैनायें 5 अगस्त, 1965 से पूर्व की स्थिति पर लौट जाये।’’

प्रस्ताव में Safty परिशद से यह भी अनुरोध Reseller गया कि वह Fight विराम की उचित देख – रेख तथा All सषस्त्र व्यक्तियों की वापसी के लिये समुचित व्यवस्था करें। प्रस्ताव द्वारा All राष्ट्रों से यह अपील की गई कि वे ऐसा कोई कदम न उठायें जिससे भारत – पाक Fight को बढावा मिलें।’’ भारत तथा पाकिस्तान दोनों देशों ने इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया और 23 सितम्बर, 1965 को प्रात: काल 3.30 बजे दोनों देशों में Fight बन्द हो गया। रूस ने इस Fight बन्दी का बड़े हर्ष से स्वागत Reseller।

1965 के Fight – विराम के समय स्थिति तथा युद्द के परिणाम

7 अक्टूबर, 1965 को भारत सरकार ने Single मानचित्र प्रकाशित Reseller जिसमें यह दिखाया गया है कि 23 सितम्बर, 1965 ईसवी को Fight – विराम रेखा के समय (3.30 बजे) पाकिस्तान में और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में कुल 740 वर्ग मील क्षेत्र भारत के अधिकार में था। इसमें यह भी दिखाया गया है कि उस समय Indian Customer प्रदेश में पाकिस्तान ने केवल 210 वर्ग मील क्षेत्र पर अधिकार कर रखा था।

ताशकंद – समझौता

23 नवम्बर, 1965 को हमारे प्रधानमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री ने राज्य सभा में कहा कि उन्हें सोवियत प्रधानमंत्री श्री कोसीगिन का Single पत्र प्राप्त हुआ है जिसमें उनसे ताशकन्द में पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयबू खॉ से वार्ता का सुझाव दिया हैं रूस के प्रधानमंत्री ने पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति श्री अयूब खॉ को भी इस हेतु पत्र लिखा था। दोनों देशों की Agreeि प्राप्त होने पर 8 दिसम्बर, 1965 को यह घोषणा कर दी गई कि भारत के प्रधानमंत्री और पाकिस्तान के राष्ट्रपति के बीच 4 जनवरी, 1966 को रूस के प्रसिद्ध नगर ताशकन्द (उजवेगिस्तान की राजधानी) में Single सम्मेलन होगा।

इस घोषणा के According ताशकन्द में 4 जनवरी, 1966 से भारत और पाकिस्तान में Single सम्मेलन आरम्भ हो गया। ताशकन्द की यात्रा करने से पूर्व पाकिस्तान के राष्ट्रपति ने कहा कि कश्मीर के बिना भारत के साथ किसी प्रकार का कोई समझौता नहीं होगा। भारत के प्रधानमंत्री ने भी अपनी ताशकन्द की यात्रा से पूर्व यह कहा था कि हम कश्मीर के प्रश्न पर पाकिस्तान से किसी प्रकार की वार्ता नहीं करेगें। इसीलिये रूस की समाचार ऐजेन्सी ‘‘तास’’ ने घोषणा की थी कि दोनों का विवाद लगभग बीस वर्श पुराना हो चुका है।

इसीलिये उसको Singleदम सुलझाना आसान नहीं है। इतना सब कुछ होते हुये भी रूस के प्रधानमंत्री ने सम्मेलन शुरू होने से पूर्व यह कहा था कि सोवियत जनता को यह आषा है कि सम्मेलन सफल होगा।

ताशकंद – समझौता And सोवियत संघ की कूट नीति

सोवियत संघ के निमंत्रण पर भारत के प्रधानमंत्री और पाकिस्तान के राष्ट्रपति का सम्मेलन ताशकन्द में 4 जनवरी से 10 जनवरी 1966 तक चला। 4 जनवरी, 1966 को इस सम्मेलन का औपचारिक उद्घाटन होने के बाद सबसे विकट समस्या यह उत्पन्न हुई कि सम्मेलन की विचारणीय विषय सूची क्या हो? पाकिस्तान कश्मीर को First विचार का विषय बनाना चाहता था किन्तु भारत कश्मीर समस्या पर विचार करने को तैयार नहीं था। वह सोवियत संघ के यह आश्वासन मिल जाने पर ही कि इस सम्मेलन में कश्मीर का प्रश्न नहीं उठाया जावेगा, इस सम्मेलन में शामिल हुआ था।

इसी समय चीन ने भारत को कड़ा विरोध भेजकर पाकिस्तान को अपने समर्थन का विश्वास दिलाते हुये समझौता न करने की प्रेरणा दी। भारत और पाकिस्तान के लम्बे मतभेदों के कारण विशेषकर कश्मीर समस्या के कारण इस वार्ता के सफल होने की कोई संभावना नहीं थी। इस समय सोवियत कूटनीति अपने सर्वोत्कृष्ट Reseller में दिखाई दी। 9 जनवरी को कोसीगिन के 13 घण्टों की दोड़धूप और रूसी नेताओं के प्रयत्न सफल हुये।

रूसी विदेशमंत्री श्री ग्रेमिको के सद्प्रयत्नों से दोनो देश इस बात पर Agree हो गये कि दोनों देशों में राजदूतों का आदान प्रदान हो, वाणिज्य और व्यापार के संबंधों की पुन: स्थापना हो। किन्तु सबसे बड़ा प्रश्न सेनाओं की वापसी का था। इस समय शास्त्रीजी सेनाओं की 5 अगस्त से पूर्व की स्थिति में वापसी के लिये तब तक तैयार नहीं थे। रूस इस अवसर का दोहरा लाभ उठाना चाहता था, Single भारत की समस्या का समाधान कर उसका अभिन्न बनना तथा दूसरी ओर पाकिस्तान को भी आश्वस्त करना कि वह उसे भी अपनी ओर से किसी भी प्रकार की कठिनाई से व परेशानी में नहीं देख सकता है। जब तक पाकिस्तान भविष्य में कभी घुसपैठ करने का आश्वासन न दे।

कश्मीर के प्रश्न पर भारत की दृढ़ता सोवियत नेताओं को पूर्ववत् जान पड़ी। पाकिस्तान को Fight त्याग की घोषणा के लिये Agree करने के लिये कोसीगिन ने अयूब खॉ से कहा कि पाकिस्तान संयुक्त राष्ट्र संघ का सदस्य बनते समय तथा इसके चार्टर पर हस्ताक्षर करते समय यह स्वीकार कर चुका है कि वह शक्ति का प्रयोग नहीं करेगा, अत: उसे पुन: ऐसी घोषणा करने में कोई आपत्ति नहीं होनी चाकिये किन्तु इसके बाद भी पाकिस्तान इस घोषणा के लिये तैयार नहीं हुआ तो सोवियत संघ ने पाकिस्तान को यह चेतावनी दी कि ताशकन्द वार्ता विफल होने के बाद यदि पाकिस्तान कश्मीर के प्रश्न को Safty परिषद में उठायेगा तो सोवियत संघ अपनी पूर्व निर्धारित नीति के According इस विषय पर अपने निशेधाधिकार का प्रयोग करेगा।

5 जनवरी, 1966 को सोवियत संघ के नगर ताशकन्द में भारत और पाकिस्तान के बीच शान्ति वार्ता आरम्भ हुई। दोनों देशों की स्थिति परस्पर विरोधी थी। श्री शास्त्री भारत की जनता को कहकर गये थे कि कश्मीर के प्रश्न पर कोई बातचीत नहीं होगी और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खॉ अपने देश की जनता को आश्वासन देकर गये थे कि कश्मीर की समस्या का समाधान हो जायेगा। दोनो देशों की परस्पर विपरीत परिस्थितियों के कारण आरम्भ में ही शान्ति वार्ता में गतिरोध उत्पन्न हो गया था। वार्ता टूटने की स्थिति आ गई थी। परन्तु ताशकन्द की शान्ति वार्ता को रूस ने अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया था। इसीलिये रूस ने काफी प्रयास किये कि वार्ता को रूस ने अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया था। इसीलिये रूस ने काफी प्रयास किये कि वार्ता जारी रहे और दोनों देशों के बीच कोई समझौता हो जाये।

‘‘ इन्टरनेशनल स्टडीज’’ में प्रकाशित Single लेख ‘‘सोवियत रूस और भारत पाक संबंध’’ में हरीश कपूर ने लिखा – कि ‘‘अन्तिम क्षणों में सोवियत रूस के हस्तक्षेप के कारण ही भारत – पाक वार्ता भंग होने से बची। सोवियत प्रषंसक डॉ. देवेन्द्र कौशिक ने भी लिखा कि प्रधानमंत्री कोसीगिन ने समझौता कराने में बहुत मद्द की। अन्त में पाकिस्तान ने विवश होकर ताशकन्द घोषणा पर हस्ताक्षर किये। सोवियत संघ के सद्प्रयत्नों से 10 जनवरी, 1966 की रात्रि को 9 बजे इस ऐतहासिक घोषणा पर तालियों की गडग़ डा़ हट के बीच हस्ताक्षर हुये । इस नवसूत्री घोषणा के आरम्भ में अवतरणिका है। तथा इसके बाद 9 बातों पर समझौता किये जाने का History है। इसकी अवतरणिका में दोनों देशों के शासनाध्यक्षों ने इस बात के लिये अपने इस दृढ़ संकल्प की घोषणा की, कि वे दोनों देशों में सामान्य और शान्तिपूर्ण संबंध पुन: स्थापित करेगें तथा भारत और पाकिस्तान की जनता में मसैीपूर्ण सबंधों को ओर बढ़ायेगे।

भारत के प्रधानमंत्री तथा पाकिस्तान के राष्ट्रपति दोनों देशों की 60 करोड़ जनता के कल्याण के लिये इन उद्देश्यों की प्राप्ति का अत्यधिक महत्वपूर्ण समझते है। बाद में सोवियत सरकार को इस सम्मेलन के सुन्दर आयोजन के लिये धन्यवाद देने के बाद सोवियत जनता तथा प्रधानमंत्री के प्रति कृतज्ञता प्रकट की। उसके सद्प्रयत्नों से यह सम्मेलन हो सका। अन्त में यह महत्वपूर्ण बात भी कही गई कि भारत के प्रधानमंत्री और पाकिस्तान के राष्ट्रपति सोवियत संघ के प्रधानमंत्री को इस घोषणा का साक्षी बनाते है।

भारत पाकिस्तान Fight 1971

इस Fight की शुरूआत की Single दिलचस्प कहानी है। 25 नवंबर को पाकिस्तान के राष्ट्रपति याहिया खां ने घोषणा की थी कि वह दस दिनों के भीतर भारत के साथ निपट लेंगे। तीन दिसंबर की शाम थी, यानी राष्ट्रपति याहिया खां की धमकी का नवां दिन था। संध्या समय भारत-सरकार ने सूचना दी कि भारत की पश्चिमी सीमा पर हमला करके पाकिस्तान ने Fight प्रारंभ कर दिया है। Single सरकारी प्रवक्ता ने बताया कि ऐसा लगता है कि राष्ट्रपति याहिया खां ने अपना वादा पूरा कर दिखाया है।

श्रीनगर से आगरा तक पश्चिम भारत के दस हवाई अड्डो पर पाकिस्तान की खुली बमबारी, जम्मू कश्मीर के पूंछ अंचल से Fight विराम रेखा रेखा पार करके बड़ी संख्या में पाकिस्तानियों के घुस आने तथा पश्चिमी सीमाओं की अनेक चौकियों पर गोलीबारी शुरू करने के साथ दोनों के बीच Fight शुरू हो गया। पश्चिमी भारत के दस हवाई अड्डों पर Single ही साथ अचानक हमला करने का Single उद्देश्य था-Indian Customer वायु सेना को पंगु बना देना। जिस तरह 1967 में इजरायल ने अरब राज्यों के हवाई अड्डों पर SingleाSingle आक्रमण करके उनकी हवाई सेना को पूर्णतया Destroy कर दिया था उसी तरह पाकिस्तान भी Indian Customer वायुसेना को Destroy करने का इरादा रखता था, लेकिन इसमें उसको सफलता नही मिली।

भारत सरकार SingleाSingle हमले की संभावना पके प्रति पूर्ण Reseller से सतर्क थी और अपने वायुयानों को Windows Hosting स्थानों में रख छोड़ा था, इसलिए पाकिस्तान की आरंभिक मनोकामना पूरी नहीं हो सकी।

Indian Customer प्रतिक्रिया

जिस समय पाकिस्तान ने भारत पर आक्रमण Reseller उस समय देश का कोई वरिश्ठ नेता राजधानी में नहीं था। प्रधानमंत्री कलकत्ता में थीं और रक्षा मंत्री तथा वित्त मंत्री भी दिल्ली से बाहर थे। Fight छिड़ने के दिन वरिश्ठ नेताओं को दिल्ली से बाहर हटना ही इस बात का प्रमाण था कि Fight की पहल भारत ने नहीं की थी। समाचार मिलते ही प्रधानमंत्री शीघ्र ही दिल्ली वापस आ गर्इं। इसी बीच राष्ट्रपति ने आपातकालीन स्थिति की घोषणा कर दीं पर्याप्त विचार-विमर्श के उपरांत यह निर्णय लिया गया कि न केवल पाकिस्तान के हमले का डटकर मुकाबला Reseller जाये बल्की उसकी Fight मशीनरी को तबाह कर दिया जाये ताकि हमेशा के लिए बखेड़ा ही दूर हो जाये।

अगरतल्ला में इकट्ठी Indian Customer सेनाओं को आदेश दिया गया कि बंगलादेश में प्रवेश कर दुश्मन को Defeat करे। पश्चिमी क्षेत्र में भी सेना को इसी तरह के आदेश दिये गये। मध्यरात्रि के करीब Indian Customer बमबारों ने पाकिस्तान की ओर उड़ानें शुरू कीं और पाकिस्तान के महत्वूपर्ण हवाई अड्डों और सैनिक ठिकानों पर बमबारी की। दो देशों के बीच बड़े पैमाने पर Fight छिड़ चुका था।

लगभग साढ़े बारह बजे रात को प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने राष्ट्र के नाम Single संदेश प्रसारित Reseller। उन्होंने अपने प्रसारण में कहा कि पाकिस्तान ने भारत पर हमला Reseller है और अब हम निर्णयात्मक लड़ेंगे। उन्होंने कहा कि भारत के पास Fight के अतिरिक्त और कोई उपाय नहीं रह गया है।

Fight का description

पाकिस्तान बड़े हौसले और पर्याप्त तैयारी के बाद Fight में कूदा था। उसकी सेना और तैयारी की सोहरत सम्पूर्ण उपमहाद्वीप में फैली हुई थी। लेकिन जब वास्तविक परीक्षा का अवसर आया तब पता चला कि पाकिस्तान किसी मोर्चे पर भारत का प्रतिरोध नहीं कर सकता है। पष्चिमी मोर्चे पर सबसे जबर्दस्त प्रहार पाकिस्तान ने छम्ब के इलाके में Reseller। बांगलादेश और राजस्थान तथा पंजाब सीमा पर काफी इलाका खोने के बाद पाकिस्तान को छम्ब में कार्यवाई करना स्वाभाविक था। इसे पाकिस्तान ने अपनी सामरिक सफलता का आवश्यक लक्ष्य चुना।

छम्ब में उसकी सफलता का Means यह होता था कि राजौरी और पुंछ की ओर जाने वाली Indian Customer संचार-व्यवस्था पर उसका अधिकार हो जाता और इस प्रकार कश्मीर को जाने वाली सड़क खतरे में पड़ जाती। छम्ब पर उसका आक्रमण बड़ा ही प्रबल था और उससे होने वाली धन-जन की हानि की भी उसने कोई परवाह नहीं की, लेकिन प्रयास के बाद भी पाकिस्तान को कोई महत्वपूर्ण सफलता नहीं मिली। पष्चिमी क्षेत्र में अन्य All मोर्चों पर भी इसकी करारी हार होती गई।

बांग्लादेश में Indian Customer सेना ने स्थल, जल और वायुसेना से सम्मिलित कार्यवाई की। वायुसेना ने निष्चित ठिकानों पर प्रहार करके बांग्लादेश में पाकिस्तानी वायुसेना के अस्तित्व को ही मिटा दिया। Indian Customer नौसेना ने भी साहसिक कदम उठाकर बांग्लादेश के पाकिस्तानी सेना के भागने के All जलमार्ग अवरूद्ध कर दिये। स्थल सेना की अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। सीमित सड़कों और उस पर नदी नालों को पार करने की कठिनाइयों से सेना का बढ़ाव कुछ मंद अवष्य रहा। Indian Customer सेना को लगभग चार डिवीजन पाकिस्तानी सेना का मुकाबला करना था, लेकिन सही Means में यह मुकाबला करना था, लेकिन सही Means में यह मुकाबला कभी नहीं हुआ। पाकिस्तानी सेना में भगदड़ मच गई और वह जब अपनी जान बचाने के उपाय में लग गयी।

पाकिस्तानी सेना का आत्मसमर्पण

इस हालत में पाकिस्तानी सेना का मनोबल स्वाभाविक था। इसका पता तब लगा जब पूर्व बंगाल के गर्वनर के सैनिक सलाहकार मेजर फरमान अली ने तार भेजकर संयुक्त राष्ट्रसंघ के महासचिव से प्रार्थना की कि उनकी फौज को पष्चिम पाकिस्तान पहुंचाने में सहायता दी जाये। राष्ट्रपति याहिया खां ने तुरंत इस प्रस्ताव का विरोध Reseller। उधर सेना के उच्च अधिकारी बराबर चेतावनी दे रहे थे कि पाकिस्तानी सेना को आत्मसमर्पण कर देना चाहिए अन्यथा व्यर्थ की जानें जायेंगी, लेकिन पाकिस्तानी सेनापति जनरल नियाजी अपनी जिद्द पर डटा हुआ था। उसने कहा कि वह आखिरी दम तक Fight लड़ेगा और किसी भी कीमत पर आत्मसमर्पण नहीं करेगा। बात यह थी कि अमेरिका का Sevenवां बेड़ा बंगाल की खाड़ी की ओर चल चुका था। पाकिस्तानी अधिकारियों को विश्वास था कि चीन और अमेरिका सक्रिय हस्तक्षेप करके पाकिस्तानी सेना को बेषर्त आत्मसमर्पण से बचा लेंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

Indian Customer सेनाध्यक्ष ने स्पष्ट Wordों में चेतावनी दे हुए कहा कि बांगलादेश में सारी पाकिस्तानी सेनाये घिर गयी हैं। चारों ओर से रास्ता बंद हो गया है। वे भाग नहीं सकती हैं। भला इसी में है कि आत्मसमर्पण कर दे, पर जनरल नियाजी हथियार डालना नहीं चाहता था। उसने प्रस्ताव Reseller कि उसे अपनी फौजें लड़ाई से हटाकर कुछ खास क्षेत्रों में सीमित करने की अनुमति दी जाये जहां से उन्हें पश्चिम पाकिस्तान भेजा जा सके। जनरल मानिक शॉ ने इस प्रस्ताव को नामंजूर कर दिया। नियाजी हताश था और झुकने में आनाकानी कर रहा था। इस पर ढाका स्थित विदेशी राजनयिकों ने उसे वास्तविकता को समझने की सलाह दी। नियाजी के समक्ष कोई विकल्प नहीं था।

15 दिसम्बर को अपरान्ह में जनरल नियाजी ने उत्तर देते हुए कहा कि बांग्लादेश में All पाकिस्तानी सैनिकों को तुरंत Fight बंद करने और Indian Customer सेना के समक्ष आत्मसमर्पण करने के लिए आदेश दिया जाये। Indian Customer जनरल ने यह चेतावनी भी दी कि यदि 16 दिसम्बर को 9 बजे सुबह तक पाकिस्तानी सैनिकों ने Fight बंद करके आत्मसमर्पण नहीं Reseller तो हमारे जवान पूरी ताकत से अंतिम अभियान शुरू कर देगें ।

इस अवधि तक गोलाबारी और बमबारी बंद करने की Singleतरफा घोषणा भी कर दी गई ताकि आत्मसमर्पण की तैयारियों को पूरा Reseller जा सके। पाकिस्तानी सैनिक अधिकारियों को यह आश्वासन भी दिया गया कि जो पाकिस्तानी सैनिक और अफसर आत्मसमर्पण करेंगे उनके साथ जेनेवा समझौता के According अच्छा व्यवहार Reseller जाएगा।

Fight के परिणाम

  1. पाकिस्तान हमेशा कहता था कि कश्मीर की समस्या का हल शांतिपूर्ण में नहीं निकला तो Fight करके इस समस्या का हल निकाल लेंगे। इसकी यह धमकी इस Fight में समाप्त हो गई थी।
  2. इस Fight में भारत ने अधिकतर स्वदेशी हथियार, टैंक का उपयोग Reseller जिसमें प्रत्येक Indian Customer का सिर ऊँचा होगा।
  3. पाकिस्तान के लिए यह Fight बड़ा घातक सिद्ध हुआ इस Fight ने पाकिस्तान के All विश्वासों और मान्यताओं को चकनाचूर कर दिया और पाकिस्तान के तरफ से All सैन्य तैयारी And पैसा Destroy हो गई।
  4. इस Fight से यह सिद्ध हो गया कि यदि अंतरराष्ट्रीय मसलों पर महाशक्तियां सहयोग से काम करें तो विश्व शांति आ सकती है।
  5. भारत – पाकिस्तान Fight में सोवियत राजमय को Single नया मोड़ लेने का अवसर प्रदान Reseller। दो राष्ट्रों के झगड़ों को सुलझाने में सोवियत संघ ने आज तक कभी अपनी सेवाएं अर्पित नहीं की थीं। वस्तुत: सोवियत राजनय का इस सिद्धांत में विश्वास नहीं था लेकिन भारत और पाकिस्तान के झगड़ों को सुलझाने में उसने अपनी सेवाएं अर्पित कीं और ताशकंद के सम्मेलन का आयोजन Reseller। सोवियत राजनय के लिए यह बिल्कुल नवीन चीज थी और विश्व राजनीति पर इसका प्रभाव पड़ना अवश्य यानी थी।
  6. पाकिस्तान को विश्वास था कि महाशक्तियां इस Fight में कोई भी भारत को सैन्य सहयोग नहीं करेगा लेकिन उसका यह भ्रम टूट गया। 8 भारत – पाकिस्तान के Fight में संयुक्त राष्ट्र संघ की भूमिका महत्वपूर्ण थी। संयुक्त राष्ट्र संघ को सफलता इसलिए मिली क्योंकि सोवियत संघ और संयुक्त राज्य अमेरिका ने अपूर्ण सहयोग दिया था।
  7. पाकिस्तान के एि यह Fight घातक सिद्ध हुआ। Fight में पराजय ने उसकी तानाशाही के खोखलेपन को सिद्ध कर दिया।
  8. भारत – पाकिस्तान के 1971 Fight में पाकिस्तान का Single क्षेत्रफल का ऐरिया, जनसंख्या, शक्ति की कमी हुई।
  9. इस Fight के बाद बांग्लादेश का निर्माण हुआ।
  10. 1971 के बाद में पाकिस्तान का मनोबल टूट गया।
  11. 1965 में अमेरिका ने भारत का साथ दिया लेकिन 1971 में भारत को पता चला कि हितैशी कौन है। अत: भारत ने सोवियत संघ के साथ मित्रता बढ़ाई।
  12. इस Fight ने पाकिस्तान से सहानुभूति रखने वाले राष्ट्र अमेरिका और चीन के हौसलों और महत्वाकांक्षा की पराजय हुई।
  13. भारत-पाकिस्तान Fight के समय देश के विभिन्न राजनीतिक दलों ने अपने सारे मतभेद भुला दिये। बांग्लादेश की मुक्ति का प्रश्न Single राष्ट्रीय प्रश्न बन गया था।
  14. पाकिस्तान की आन्तरिक राजनीति पर इसका गहरा प्रभाव पड़ा। जनता ने राष्ट्रपति याहिया खां से त्यागपत्र की मांग की।

पराजय से असंतुश्ट होकर पाकिस्तान में प्रदर्शन हुए। याहिया खां को त्यागपत्र देना पड़ा। उनका स्थान जुल्फिकार भुट्टो ने लिया, जिन्हें विरासत में कई समस्याएं मिलीं। विभक्त जनमत, विभक्त मन:स्थिति और विभक्त नेतृत्व वाला पाकिस्तान नियति के चक्र में बुरी तरह फंस गया।

संदर्भ –

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